Friday, 4 December 2020

" सब ठीक है ना !"

             अब क्या बताऊं, ये औपचारिक सवाल अपने आप में घाव पर नमक से कम नहीं है ! ' सब ठीक है ना ' दुनियां का अकेला ऐसा वाहिद सवाल है जो नकारात्मक परिस्थिति का सामना कर रहे इंसान से भी  सकारात्मक जवाब चाहता है ! आप तालाब में डूब रहे हों और आपके खैरख्वाह जब बगल से गुजरते हुए जल्दी से पूछें,  - सब ठीक है न - तो कभी हकीकत न बताएं  कि बस चंद पल का मेहमान हूं - , बल्कि मुस्करा कर कहें , " " हां सब ठीक है , बस ज़रा मरने वाला हूं , क्योंकि  मुझे तैरना नहीं आता "! यकीन मानों इसके बाद भी वो रुकेगा नहीं, क्योंकि उसे आपसे कोई लेना देना नहीं है ! उसने रिश्ते, इंसानियत, हमदर्दी , दुख दर्द सबको औपचारिकता की पोटली में बांध रखा है ! सच पूछो तो ऐसे लोगों का समाज में ज़िंदा होना  भी औपचारिकता से ज़्यादा कुछ नहीं होता !
          हमारे पड़ोसी " बुद्धि लाल" जी को लिजिए ! जब से उन्हें शुगर हुई है, केजरिवाल से सख़्त नाराज़ हैं ! लॉक डॉउन में बिजली विभाग ने बगैर रीडिंग देखे अनाप शनाप बिल भेज दिया । उसे सैटल करवाने चिंता में इतना दौड़े कि इस शुगर पेशेंट हो गए ! हर दिन सुबह पार्क में नज़र आने लगे। उन्हें देखकर हर आदमी पूछने लगा, ' सब ठीक है ना '! वो कहना चाहते कि बिलकुल ठीक नहीं है - ' मेरा चैन वैन सब लूटा...! बी एस ई एस ने लूट मचा रखी है ! किसी दिन विधान सभा के सामने बिजली के तार से लटक कर सती हो जाऊंगा ! ' पर उनकी चिंता या चेतावनी पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा ! दुर्भाग्य से एक दिन मैं उनके सामने पड़ गया ! सोचा , एक औपचारिक सवाल उछाल कर बरी हो जाऊंगा ! देखते ही मैंने पूछा,  "सब ठीक है ना !"
      वो पहाड़ी बादल की तरह फटे, " ख़ाक ठीक है ! मेरी नौकरी कोरोना खा गया और सिलेण्डर की सब्सिडी उज्ज्वला योजना ! किचन गरीबी रेखा के नीचे ऑक्सीजन ढूंढ रहा है ! केजरी सरकार ने सुकून की जगह शुगर दे दिया ! तुम कुछ करो !"
      मैंने हाथ खड़े कर दिए, " मुझे खुद शुगर है"! 
वो जान को अटक गए, ' फिर तुमने क्यों पूछा कि सब ठीक है ना ?" 
     मै मुस्कराया, " आप भी तो मोहल्ले में इसी थोथी औपचारिकता के लिए जाने जाते हैं ! किसी की कटी उंगली पर एंटीसेप्टिक समझ कर ही कभी मूता हो तो बताइए  "?
                    आदमी आइने में सिर्फ अपनी सूरत देख कर रह जाता है, सीरत देखता ही नहीं ! पैसे और पेट से अघाये आदमी बहुत बढ़िया सलाह देते हैं ! और भूखा अक्लमंद आदमी उसकी मूर्खता में प्रोटीन ढूढता है! अक्ल का अंधा अमीर आदमी अगर  प्रवचन दे तो सामायिक कवि छायावाद और रहस्यवाद तक ढूढ लेते हैं , और सर्वहारा वर्ग को उनकी मूर्खता में भी अध्यात्म की रोशनी नजर आ जाती है ! दरअसल यही पूंजीपति वर्ग सर्वहारा समाज को औपचारिकता की अफीम चटाता है। हमारे एक बडे़ व्यापारी मित्र की एक विचित्र आदत है! वो अपने हर दुखी मित्र को एक ही सलाह देते हैं, " खुश रहा करो "! उनको अपने इस सलाह पर कभी राई बराबर भी हैरत या शर्मिंदगी नहीं हुई !वो आज़ भी दूसरों को यही सलाह देते हैं, ' खुश रहा करो!" ! कौन नहीं चाहता कि वह खुश रहे, पर खुश रहना अपने हाथ में है कहां !
        हमारे 'वर्मा जी ' ने इस मामले में भी मैराथन जीत रखा है ! बावन साल की उम्र में भी मोहल्ले के लोगों को छेड़ने में काफी सक्रिय है ! समस्याग्रस्त शख़्स को घेर कर पूछते हैं,' सब ठीक है ना !' अगर किसी ने उनके तंज़ को संजीदगी से लेकर कह दिया, " कहां ठीक है वर्मा जी, पिछले हफ्ते अमेरिका वाले फूफ़ा जी मर गए!' 
                       उसके बाद तो वर्मा जी फुल फॉर्म में आ जाते हैं, ' कमाल है ! आप तो कहानी लेकर बैठ गए ! मैने तो सिर्फ हाल चाल पूछा था़, मैने ये कब पूछा कि आप के फूफा जी जिन्दा हैं या मर गए ! सबको मरना है मिश्रा जी , कोई अजर अमर नहीं है ! आज फूफा जी मरे हैं, कल आप भी मर सकते हैं ! इस वक्त मरोगे तो क्रेडिट कोरोना को मिलेगा ! हमारी याददाश्त कुछ ठीक नहीं है, अगर हमसे कुछ उधार लिया हो तो याद कर के मरने से पहले दे देना "!
     मिश्रा जी की घिग्घी बंध गई , आकस्मिक हमले से सदमे में आए मिश्रा जी रुआंसे होकर सिर्फ इतना  कह पाए,  " मुझ पर आपका कोई उधार नहीं "!
          वर्मा जी ' सब ठीक है ना ' के जवाब में रामराज चाहते हैं ! अब ऐसे में कोई कांग्रेसी देश या गांव की दुर्दशा लेकर बैठ जाए तो वर्मा जी आपे से बाहर हो जाते हैं , " किस दुनियां में रहते हो ! अपने अलावा किसी का विकास पसंद नहीं ! अब देश में इमरजेंसी मॉडल नहीं रामराज मॉडल ही चलेगा ! कमाल है ! चुनाव में नहीं जीते तो आप लोग कोरोना लेकर आ गए ! कहां कहां की कौड़ी ढूंढ लाते हो ! मैने तो सिर्फ इतना पूछा था कि - सब ठीक है ना '!
         बेशक आप सर से पैर तक पट्टियों में लिपटे स्ट्रेचर पर जा रहे हों, पर- सब ठीक है ना - के जवाब में मुस्करा कर सिर्फ़ यही कहें, ' हां सब ठीक है, बस ज़रा कार के नीचे आ गया था ! चार पसलियों के साथ दोनों पैर टूट गए हैं , मगर जबान चल रही है ! ईश्वर की कृपा देखिए, नाक टूट गई मगर दांत नहीं टूटा ! " यकीन मानिये, इतना सुनकर भी सामने वाले की बेशर्मी एक मिलीमीटर कम नहीं होगी !
                                 दिल्ली की सड़कों पर आपको जगह जगह एक बोर्ड नज़र आएगा , - जब तक कोरोना की दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं ! घर से बाहर ना निकले! घर में रहें - सुरक्षित रहें -! ( कौन कमबख्त घर से निकलना चाहता है ! लेकिन एक शादीशुदा प्राणी से हलफ दिलवा दो कि घर में रहेगा तो सुरक्षित रहेगा !) ये उपदेश भी " सब ठीक है ना"- से अलग नहीं है ! 

          हमारे यूपी में कहते हैं, - सावन के अंधे को सिर्फ हरा हरा नज़र आता है -! सब ठीक है चच्चा ! झाड़े रहौ कलक्टर गंज !!  

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