पहले सिर्फ सुनता था, अब देख भी लिया कि लेखक कड़की के तालाब में उगा हुआ वो कमल है जिसमें कभी पैसे की खुशबू नहीं आती ! दूर से बडा़ खूबसूरत लगता है - खिलखिलाता और अपने टैलेंट से सबका ध्यान अपनी ओर खींचता ! लोग उसकी खूब तारीफ़ करते हैं, - ' कमाल है! गज़ब की रचना !! कोई मुकाबला नहीं जी ' ! मगर उसकी जड़ों में लिपटे हुए गुरबत के कीचड़ को कोई नहीं देखता ! ट्रेजडी देखिए - आह से निकला होगा गान - को पूरी बेशर्मी से लेखक की नियति बताई जाती है ! शायद ऐसी रुग्ण मानसिकता ने रचनाकार को नोट से दूर नियति की ओर धकेल दिया है ! लिहाज़ा आख़री सांस तक सिर्फ उसके हाथ की कलम बोलती है, पैसा नहीं बोलता !
इंसान तो सिर्फ मुंह से बोलता है,पर पैसा चारों तरफ़ से बोलता है। पैसा चाहे कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे या पिछली सीट पर , लोग पहचान ही लेते हैं ! और,,, मेरे जैसा शख़्स सूट बूट और टाई पहन कर कार की पिछली सीट पर बैठे तो भी हमारे पड़ोसी "वर्मा जी" पहचान कर बोल ही देंगे, ' कौआ चला हंस की चाल '! पैसा जो बोलता है ! एल आई सी वाले मछली पकड़ने के लिए एक स्लोगन लाए हैं, - ज़िंदगी के साथ भी - ज़िंदगी के बाद भी -! ये पैसे के बारे में कहा गया है ! पैसा जितना ज़िन्दगी में बोलता है, उससे ज़्यादा मरने के बाद बोलता है ! धर्मशाला,प्याऊ, मस्ज़िद,मंदिर , अनाथालय बनवाकर लोग पुण्य के ब्याज में पैसे की झंकार सुनते रहते हैं ! पैसे के बगैर स्वर्ग कितना दुरूह और नर्क कितना नज़दीक है ! तभी तो किसी दिलजले ने कहा है, - पैसे बिना प्यार बेकार है ! ( सुनते ही फौरन चीनी कम हो जाती है!)
हमारे 'वर्मा जी ' इतने कठोर सत्यवादी हैं कि लोग सामने पड़ने से घबराते हैं ! क्या पता बबूल की कांटेदार टहनी जैसी कौन सी बात बोल दें कि कान तक का कोरोना निकल भागे ! खाते पीते बुद्धिजीवी हैं, पूंजीपतियों से छत्तीस का आंकड़ा है ! मोहल्ले के बडे़ व्यापारी सेठ नत्थूमल को भी नथुआ कह कर बुलाते हैं ! पैसे को पैर की जूती समझने वाले वर्मा जी अपना अलग दर्शन बताते हैं , ' पैसा कमाने के लिए आदमी तोते की तरह बोलता है, पैसा आने के बाद आदमी मुंह में फेवीकोल डाल कर ' नथुआ ' हो जाता है! पैसा आने के बाद आदमी को बोलने की ज़रूरत ही नहीं , लोग बोलते हैं, पैसा सुनता है ! पैसे की ख़ामोशी में बड़ी आवाज़ होती है बबुआ "!
बुजुर्गों ने एक कहावत गढ़ी थी, - अक्ल का अंधा गांठ का पूरा -! जब पैसा किसी मूर्ख के पास आ जाए और पैसे को तरसते बुद्धि जीवी का उसी मूर्ख से वास्ता पड़ जाए तो क्या होगा ! दुर्भाग्यवश बुद्धिजीवी अगर साहित्यिक प्रजाति का हो तो सोने पर सुहागा ! साहित्यकार की जेब बेशक सूखा पीड़ित हो, पर दिल में खुद्दारी का हिन्द महासागर और क्रोध में दुर्वाषा से कम नहीं होता ! एक तो करैला - दूजा नीम चढ़ा ! पूंजीपति को देखते ही लेखक ऐसे फुंफकारता है, गोया सांड ने लाल रंग देख लिया हो ! कुछ करनी कुछ करम गति कुछ लेखक का भाग ! लेखक अपनी खुद्दारी नहीं छोड़ता और दुर्भाग्य पीछा ! पैसा और कलम - मत छेड़ो सनम !!
पैसा बगैर ज़बान के बोलता है ! बोलता ही नहीं चिढ़ाता भी है ! पैसा जिसके पास जाता है उसे मुखिया बना देता है ! जो बोले वही सत्य वचन, जिधर से जाए वही रास्ता ! ( महाजनों येन गता: सा पंथा : ) पैसा परिभाषा बदल देता है ! हर कान पैसे की आवाज़ सुनता है! समाज भी पैसे वाले तराजू की जै जै कार करता है ! पैसा सूखा हगे या गीला - उसमें बदबू नहीं होती ! पैसा ही रस्म और परंपरा तय करता है ! गरीब आदमी की पत्नी अगर कम कपड़े पहने तो 'मज़दूर ' - और,,,, पैसे वाले की बीबी अगर लंगोट पहन कर निकले तो "मॉडल" कहलाए !
।। कि मैं कोई झूठ बोल्या ,,, ? ।।
Paisa sach me bolta hai .....strongly agree
ReplyDeleteबेहद तीखा व्यंग । बेहद सच्चा
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