मैं 2015 में फेस बुक के गुरुकुल में दाख़िल हुआ था ,तब तक ज्ञान और संस्कार दोनो में नाबालिग था ! ( वैसे उम्र पचास की हो गई थी !) फेसबुक पर आते ही ज्ञान और आदर्श के एक से एक डायनोसोर खलीफा से मुलाकात होने लगी ! मुझे पता नहीं था कि इस असार संसार में इतने विद्वान और उपदेशक आसन जमाए बैठे हैं ! सुबह होते ही फेस बुक पर रंगबिरंगी " गुड मॉर्निंग" नज़र आती ! (कई बार तो मै जवाब देने की मूर्खता भी कर जाता था़ !) उसके बाद सदाचार की शिक्षा शुरू होती , " मां" की सेवा ही परमानंद है"! ( ऐसी पोस्ट डालने वालों में वो सदाचारी आगे होते हैं जिन्होंने अपनी मां को वृद्धाश्रम भेज रखा है !) साक्षात धर्मराज की पोस्ट में भी रिश्तों की इतनी आदर्शवादिता नहीं होगी, ज़रा देखिए - " सत्य का मार्ग संकट में भी नहीं त्यागना चाहिए -"! ( लगता है, विभीषण को इन्होंने ही मोडीवेट किया था!) कुछ ने तो संस्कार के मामले में सतयुग को भी सिल्वर मेडल पर रोक दिया है, ' व्यवहार में नम्रता महापुरुषों की निशानी है '! ( इसके बावजूद कोई महापुरुष होने को तैयार नहीं !)
दुनियां में कितना भी कलियुग या कोरोना आया हो पर सोशल मीडिया पर सतयुग और सदाचार का बसन्त उतरा हुआ है। इस पर इतने सदाचारी सवार हैं कि गांधी जी के बन्दर भी पूंछ उठाकर भाग लें ! सोशल मीडिया पर विद्वान महापुरुषों की एक नस्ल ऐसी भी है जिसने अपनी आंखों में सतयुग का लेंस डलवा लिया है! इसका फ़ायदा ये हुआ है कि चाहें जितना सूखा पड़े, उन्हें सावन की ही अनुभूति होगी ! लेंस की बिक्री बढ़ रही है और साथ ही सतयुग की अनुभूति भी। ये उसी लेंस का चमत्कार है कि प्राणियों को सूखे में मानसून, पतझड़ में बसंत, गरीबी में आत्मनिर्भता और किसान आंदोलन के
पीछे हरा भरा खालिस्तान नज़र आता है! लगता है - आने वाले वक्त में खुशहाली और बदहाली के बीच का भेदभाव खत्म हो जायेगा !
हां तो,,,,, सोशल मीडिया के सात्विक चरित्र निर्माताओं की बात चल रही थी ! परसों फेस बुक पर एक सज्जन ने गांव से शहर आई अपनी वृद्ध माता जी के साथ अपना फोटो शेयर किया है! फोटो में शायद माता जी को मुस्करा कर फोटो खिंचवाने की सलाह दी गई थी। वो मुस्कराने और रोने के बीच की तस्वीर है ! (तसवीर में बहू सामने खड़ी है, शायद इसी लिए माता जी मुस्करा नहीं पायी !) मातृभक्त बेटे ने पोस्ट में लिखा था , ' माता की सेवा में परमानंद की अनुभूति होती है ' ! (पता नहीं ये दिव्य ' अनुभूति ' कितने दिन तक चली!) एक और सदाचारी बेटे ने अपनी मां को जूस पिलाते हुए तस्वीर शेयर की थी ! ( शायद दूध का क़र्ज़ उतार रहा था !) कितना घनघोर सतयुग है , फ़र्ज़ सिमट कर गिलास भर रह गया है !
मैंने ' वर्मा ' जी से पूछ ही लिया, -' लोग जन्म देने वाले मां बाप के लिए थोडा़ सा भी फ़र्ज़ अदा करते हैं तो पोस्ट डाल कर ढिंढोरा क्यों पीटते हैं ?' वर्मा जी ने अपने तरीके से समझाया , " आज के दौर में इंसान ने ईश्वर को संदिग्ध बना दिया है ! तथाकथित धर्मगुरुओं ने मानव को भ्रम में लपेट दिया है ! उसे बिलकुल भरोसा नहीं है कि उसके पुण्य को ईश्वर कोई क्रेडिट देगा ! तो,,, क्यों ना दुनियां को अवगत कराया जाए '! मैंने तर्क़ पेश किया , ' सर ! हर इंसान के कंधे पर एक एक फरिश्ता होता है जो उसके नेकी और बदी का अकाउंट अपडेट रखता है ! इंसान को इश्वर पर भरोसा रखना चाहिए"! "ईश्वर पर भरोसा तो ठीक है, फरिश्तों पर कैसे रखें! कहीं वो ख़ुद कंधों से उतर कर ' पोस्ट ' डालने बैठ जाएं तो !! वो रंभा और मेनका का वीडियो देख रहें हों, और उतनी देर में माता जी जूस का गिलास खाली कर दें ! फरिश्तों की लापरवाही से इतना बड़ा "पुण्य" पल भर में रोहिंग्या हो कर रह गया "!
हरि अनन्त हरि कथा अनंता - ! मै हैरान हूं इतने विद्वानो की पोस्ट देखकर ! उम्र के इंटरवल पर मेरी हीनता क्लाइमैक्स पर है ! धीरे धीरे समझ में आ रहा है कि हिमालय और किष्किंधा की गुफाओं में तपस्या रत सारे ज्ञानी सोशल मीडिया पर लौट आए हैं ! सदाचार की अनंत शोधशालाएं जीवंत हो उठीं हैं ! कोरोना की कृपा से विद्वानों की बुद्धि भले भ्रमित हो पर सदाचार का उत्पादन बढ़ गया है । दस महीने में जीडीपी गरीबी रेखा से नीचे चली गई , मगर कोरोना मरदूद को मिर्गी तक ना आई ! बोर हो सारे सदाचारी फावड़ा लेकर फेसबुक पर आ गए , - सदाचार बिना चैन कहां रे !! अब चूंकि युग परिवर्तन में लगे हैं, कलिकाल में सतयुग फेंटना है ! इसलिए ऐसे कमेंट पर - लाइक या शेयर की उदासीनता नहीं देखी जाती ! गमले में रखा मनीप्लांट का पौधा ताज़े पानी के इंतजार में कुपोषण का शिकार है , और घर का मालिक फेसबुक पर पोस्ट डाल रहा है , - 'आज का सुविचार ! हमें अपने आस पास के पेड़ पौधों को नियमित रूप से खाद पानी देना चाहिए ! पर्यावरण को बचाने में आप हमारी इस मुहिम का हिस्सा बनें ' !!
मुझे यकीन है, वो कल भी मनीप्लांट में पानी नहीं डालेगा, मगर फेसबुक पर पोस्ट ज़रूर डालेगा !
बेहतरीन बात
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