Tuesday, 29 December 2020

" दे दे प्यार दे !"

                            "दे दे प्यार दे  "  

 अब इस वक्त जब कि दिन के ग्यारह बज रहे हैं , मै पूरी निर्भीकता से चादर ओढ़ कर लेटा हूं ! बगल वाले घर   से टीवी पर गाने की आवाज़ सुनाई पड़ रही है ,  - दे दे 
प्यार दे प्यार दे प्यार दे दे ! मुझे प्यार दे- !! वक्त के साथ साथ इजहारे इश्क का तरीका किस कदर जामे से बाहर हुआ है ! ये भी कोई तमीज है, - दे दे यार दे ! प्यार दे - प्यार दे दे -! सुनकर ऐसा लगता है गोया आशिक अपना गिरवी माल छुड़ाने आया हो ! पहले इजहारे इश्क का एक सलीका हुआ करता था,  ' तेरे प्यार का आसरा चाहता हूं -' ! ज़माने ने इश्क पर कितना घातक असर डाला है, आशिक का इजहारे इश्क भी  राहजनी जैसा लगता है, - ' दे दे प्यार दे ! प्यार दे प्यार दे दे - मुझे प्यार दे ' ! (जितना है सब तिज़ोरी से निकाल दे !) इसे कहते हैं दिनदहाड़े इश्क की तहबाजारी ! प्यार और व्यापार के बीच की दूरी सिमट रही है !
        टीवी बंद हो चुकी है, मगर आवाज़ अभी भी सुनाई पड़ रही है, - दे दे प्यार दे-!  घर का युवा भविष्य अब इजहारे इश्क के लिए बाल्कनी में खड़ा है !  मै हैरान था , दुनियां कोरोना की वैक्सीन मांग रही है और वो प्यार की डिलीवरी का इंतज़ार कर रहा था ! लौंडे पर लैला मजनू का बसंत देख मैं सोचने लगा,  ' शादी से पहले भला शादी के बाद का संकट क्यों नहीं नज़र आता '!  वैसे ये सवाल मैंने ' वर्मा ' जी से भी पूछा था ! उनका जवाब था , 'नज़र भी आ जाए तो लोग उसे नज़र का धोखा मान लेते हैं ! उदाहरण मेरे सामने खड़ा है ! जब तुझे इश्क का इन्फेक्शन हुआ था तो मैंने कितना समझाया था , कि इस दरिया ए आतिश में मत कूद - पर तू कहां माना था ! और फ़िर,,,,शादी के पांच साल बाद किस तरह  के .एल . सहगल की आवाज़ में मेरे सामने रोना रो रहा था, ' जल गया जल गया - मेरे दिल का जहां !' 
                                इश्क का साइड इफेक्ट देखिए ! लोग कहते हैं इश्क अंधा होता है !  मै नहीं मानता, लैला मजनू, रोमियो जूलियट,शिरीन फरहाद और हीर.रांझा  में कोई अंधा नहीं था ! सभी आँख वालों ने जान बूझकर चूल्हे में सर दिया ! हर आदमी इश्क नहीं कर सकता !  कुछ लोग इश्क करते हैं, कुछ लोग इश्क के तंदूर में गिर कर सिर्फ धुआं पैदा करते हैं !इश्किया साहित्य में और बुरा हाल है ! जिसे इश्क का सलीका नहीं आता, वही इश्क की परिभाषा तय करता है !  वही तय करता है कि लौकिक और पारलौकिक इश्क में  किसके अंदर फिटकिरी कम है ! जो इश्क के मामले में बंजर होता है , वही इश्क में  'अद्वैतवाद ' खोजता है ! ऐसे लोगों ने साहित्य को बंजर बनाने में बड़ी अहम भूमिका निभाई है !  जिन्हें इश्क का शऊर नहीं था, उन्होंने    छायावाद और अद्वैतवाद की दिव्यता  में  लपेट कर इश्क को  पिरामिड की ममी बना दिया  !  कहीं तो इश्क को सबक सिखाना था !
                                                                                   तो,,,,इश्क क्या है? वो ज़माना गया जब इश्क भी
' इबादत '  हुआ करता था ! इस दौर में इश्क कमीना हो चुका है  - ' मुश्किल कर दे जीना - इश्क कमीना '!   (लगता है कि इश्क में  ऑक्सीजन कम और  कार्बन डाइ ऑक्साइड बढ़ गई है !) ऐसा शायद  उन महापुरुषों की वजह से हुआ है  जो वैलेंटाइन की मोमबत्ती जला कर ज़िंदगी में बसंत ढूंढते हैं !।इश्क के इंफेक्शन में आदमी निकम्मा हो जाता है, ऐसा मै नहीं चचा गालिब कहते हैं ,-
                          इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
                          वरना हम भी आदमी थे काम के"!!
  
               बदलता है रंग आसमां कैसे कैसे ! कॉरोना ने इश्क को भी संक्रमित कर दिया ! इस दौर मे आकर  इश्क  ' नमाज़ी ' से इश्क ' जेहादी ' हो गया ! ये अब तक का सबसे बड़ा हृदय परिवर्तन था ! लव सीधे जेहाद हो चुका है ! अब  पुलिस बाकायदा इश्क का धर्म , राशन कार्ड और आधार कार्ड  चेक करेगी !  ऐसे मामले में पुलिस ईश्वर का भी दख़ल बर्दाश्त नहीं करेगी  ! उधर,,,, इश्क गहरे सदमे में है ! वो जेहादी हो गया और खुद उसे भनक तक ना लगी ! ये सब इतनी जल्दी में हुआ कि इश्क को संभलने का भी मौक़ा नहीं मिला ! अब उसके सामने चेतावनी है कि -' चलाओ न नज़रों से बाण  रे। -'! (वरना रोज  थाने  का चक्कर काटना पड़ेगा !)
          लगता ' मां का लाडला बिगड़ गया '  है ! बाल्कनी से फिर लौंडे के गाने की आवाज़ आ रही है, " दे दे प्यार दे "! इस बार उसकी आवाज में रोब नहीं याचना है ! जैसे वो इश्क नहीं गेहूं मांग रहा हो ! ( वैसे इस हालात ए हाजरा में इश्क के मुक़ाबले गेहूं ज़्यादा महफूज़ है ! इश्क को तो पुलिस और पब्लिक दोनों पीट रही है !  मैं एक व्यंग्य लिखने की सोच रहा हूं और उधर देश का भविष्य प्यार का कटोरा उठाए याचना कर रहा है ! हम यूपी वाले ऐसे  इश्क का धुआं देख लें तो खांसने लगते हैं ! मैं फ़ौरन उठकर बाल्कनी में आ गया ! छिछोरा आशिक टॉप फ्लोर की ओर देख कर गाने लगा, ' हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे ! मरने वाला कोई - जिंदगी चाहता हो जैसे '! उस फ़्लैट की खिड़की अभी भी बंद है  पर लौंडा डटा है !आशिक और भिखारी दोनों के धंधे में धैर्य ज़रूरी है !
       सतयुग को देखते हुए मुझे पूरा यकीन है कि - अभी
इश्क के इम्तेहान और भी हैं - ' ! इश्क का दिल से बडा गहरा रिश्ता होता है ! और,,,,दिल हैं कि मानता नहीं ! तो,,, नतीज़ा ये निकला कि सारा किया धरा दिल का है , इश्क खाम खा बदनाम है ! दिल तेरा दीवाना है सनम ! दिल खुराफाती है और इश्क मासूम ! सदियों से  कौआ  वेचारा कोयल के बच्चे पालता आया है ,  और दुनियां की नज़र में ' वो ' कोयल आज भी मासूम है जो बडे़ शातिराना तरीके से अपने अंडे कौए के घोसले में रख देती है ! इश्क के इस अवसर वादिता पर एक ताज़ा शेर पेश करता हूं ! -

कितनी लगन से फूल की दरियां बिछाई थीं !
कमबख्त  मौक़ा  पाते  ही  कुत्ते पसर  गए !!

                     ( सुलतान ' भारती ')

Thursday, 24 December 2020

रमेश बिधूड़ी ( एक सांसद ऐसा भी )

         एक  "सांसद"  ऐसा  भी
              ( रमेश बिधूड़ी )
 
 मैं उन्हें बहुत नज़दीक से जानता हूं ! उनके प्रशंसक और विरोधियों के संतुलन को देखूं तो समर्थक और प्रशंसक ज़्यादा नज़र आते हैं। वैसे विरोधी और आलोचकों की भी कोई कमी नहीं है ! उनके निवास पर जन समस्याओं को लेकर आने वाली भीड़ २००३ के मुकाबले आज 2023 में कई गुना ज़्यादा बढ़ गई है ! लोगों की ये भीड़ ही रमेश बिधूड़ी की बढ़ती लोकप्रियता की खुली गवाही देती है ! रमेश जी एक ऐसे नेता हैं जिन्हें मैंने तब से लोगों की जन समस्याओं के लिए स्थानीय प्रशासन से जूझते देखा है, जब वो विधायक भी नहीं थे ! आज वह सांसद हैं ! तो,,, ज़ाहिर है कि उनकी जिम्मेदारियों का कद बहुत बढ़ गया है ! लोगों की ये भीड़ ही रमेश बिधूड़ी की बढ़ती लोकप्रियता की खुली गवाही देती है  !चलिए मैं अपने पाठकों को रमेश बिधूड़ी के कठोर संघर्ष, विकट साहस,जन सेवा , और सतत संघर्ष की उस कहानी से रूबरू कराता हूं, जिसके बारे में एक शेर कहा जा सकता है -

जिस्म  छिल जाता है पहचान नई पाने में !
कौन आसानी से बनता है मील का पत्थर !!
                   यादों का एलबम                             रमेश बिधूड़ी का जन्म 18 जुलाई 1961 को दिल्ली के ऐतिहासिक गांव तुगलकाबाद में हुआ ! पिता रामरिख बिधूड़ी की सामाजिक कार्यों में बड़ी सक्रीय भूमिका का प्रभाव बालक रमेश पर भी पड़ा ! प्रारंभिक शिक्षा कालका जी स्थित स्कूल से   शुरू हुई ! आगे चलकर उन्होंने दिल्ली के विख्यात भगत सिंह  कॉलेज से बी. कॉम किया। किसान बाहुल्य उस गांव में उस दौर में विरले ही कॉलेज तक पहुंचते थे ! साहसी, जोशीले और प्रखर वक्ता रमेश बिधूड़ी छात्र जीवन में ही सियासत में दाखिल हो गए ! लेकिन एक किसान के बेटे के लिए राजनीति का ये रास्ता आसान नहीं था ! बस,,,, इतनी सी पूंजी लेकर वो अपने ख्वाबों को सूरज दिखाने निकल पड़े !
        
       १९९३ के विधान सभा चुनाव को एक साल बचा था और संगम विहार में नए नए नेता अंकुर की तरह उग आए थे ! प्रदेश में कांग्रेस का दबदबा था, मगर मंदिर आंदोलन से सारा देश आंदोलित था ! अगले साल चुनाव हुआ और बाबरी विध्वंस का खामियाजा कोंग्रेस को भुगतना पड़ा ! दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी संगठित मुस्लिम वोटर्स ने कोंग्रेस को ज़बरदस्त झटका दिया ! संगम विहार की सीट पर भी कोंग्रेस को शिकस्त मिली , और दिल्ली में चार सीटें जनता दल के खाते में गईं ! ( जो बाद में कोंग्रेस के खेमें में शामिल हो गई !) इस त्रिकोणीय चुनावी मुकाबले में रमेश बिधूड़ी ने  जबरदस्त परफॉर्मेंस दिखाया पर भाजपा वोटों के बिखराव और मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के चलते आज़ाद उम्मीदवार शीशपाल विजयी हुए !
          निराश होने की बजाय  उन्होंने अपने आप को दोबारा जनसेवा में झोंक दिया ! देश में बहुत कम ऐसे नेता होंगे जो जनता को रमेश बिधूड़ी जितना वक्त देते हैं! प्रदेश हाईकमान ने उनकी योग्यता और समर्पित सेवा के  आधार पर  १९९८ में उन्हें फिर संगम विहार सीट से दोबारा उतारा , मगर वो फ़िर हार गए  ! संगठित मुस्लिम वोटर्स  के मुकाबले में बिखरे हिन्दू वोटर्स को  को एक दिशा देना आसान काम नहीं था ! भाजपा कैडर और संगठन बनाने का मुश्किल काम करने में रमेश बिधूड़ी ने जबरदस्त मेहनत किया था  ! लगातार दूसरी हार आदमी को निराश कर देती है , मगर रमेश बिधूडी किसी और ही  मिट्टी के बने थे ! ऐसे जीवट के लोग अपनी शिकस्त को आने वाली जीत का नक्शा बना लेटे हैं , और ,,,,, दिल्ली ने वही देखा !! आखिरकार 2003 में उसी संगम विहार से  सारे पूर्वानुमान को ध्वस्त करते एवं सारे विरोधियों को धूल चटाते हुए हुए रमेश बिधूड़ी ने यह सीट भाजपा के खाते में डाल दी !      
                             हर राजनेता के सियासी रास्ते में कठिनाइयां  आती हैं, किंतु रमेश बिधूड़ी के रास्ते में कुछ ज़्यादा ही मुश्किलें खड़ी थीं ! ये शायद एकमात्र ऐसे विधायक थे जो अपनी विधान सभा के साथ साथ दुसरी विधान सभा की जनता की परेशानी भी सुनते, समझते और हल करते थे ! मै अक्सर किसी काम के बगैर भी (सुनपत हाउस) उनके निवास चला जाता था, सिर्फ उनकी कार्यप्रणाली देखने ! हमने हमेशा उन्हें समस्याग्रस्त लोगो से घिरा पाया था ! वो मुझे भीड़ मै भी देख कर पहचान लेते और एक ही बात कहते,." आओ भारती भाई " !.
      उनकी सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा 2008 के दिल्ली विधान सभा चुनाव में तब पेश आई जब विधायक होने के बावजूद उन्हें पार्टी ने संगम विहार से टिकट न देकर तुगलकाबाद से प्रत्याशी बना दिया ! कोई भी प्रत्याशी होता तो लड़ने से पहले ही हार मान लेता । मगर रमेश बिधूड़ी को अपने निस्वार्थ भाव से की गई जन सेवा पर पूरा भरोसा था ! चुनाव परिणाम आया तो विरोधियों के सारे जोश पस्पा हो गए ! मिडिया के सारे पूर्वानुमान को ध्वस्त करते हुए रमेश बिधूड़ी ने भारी जीत हासिल की ! इस असंभव जीत को संभव बनाने के बाद प्रदेश में उनका कद काफ़ी बढ़ गया !
          "सांसद का कांटो भरा ताज" !
     २०१४.के लोक सभा चुनाव की जब तारीख़ घोषित हुई तो रमेश बिधूड़ी विधायक थे, मगर पार्टी हाईकमान ने उनके साहस,जुझारूपन, सूझबूझ, जनसेवा और सियासी पकड़ को देखते उन्हे दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया ! मोदी जी का जादू और रमेश बिधूड़ी की मेहनत सर चढ़ कर बोल रही थी ! रमेश बिधूड़ी भारी मतों से जीत कर संसद भवन पहुंचे ! भाजपा के प्रचंड बहुमत ने पूरे देश मे कांग्रेस की चूलें हिला दी थी , और संसद में एक दिशाहीन - नामनिहाद विपक्ष की तस्वीर नजर आने लगी ! पूरे देश में भाजपा  'कोंग्रेस मुक्त भारत ' के अभियान को गति और उर्जा देने लगी ।
           मै कभी कभी चला जाता था उनसे मिलने, पर कम ही जाना होता था ! सांसद बनने के बाद जनसेवा का भार काफ़ी बढ़ गया था । घर ( तुगलकाबाद) और सरकारी आवास ( लोदी इस्टेट) दोनों जगह लोग अपनी अपनी समस्या लेकर पहुंच रहे थे ! २०१६ में इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट में पत्रकारों से भरे हॉल में जब मेरी पहली किताब " राज दंश " का विमोचन हुआ तो अपने व्यस्त कार्यक्रम से वक्त निकाल कर रमेश बिधूड़ी जी मेरी हौसला अफजाई को वहां आए थे!
            अपने इस स्पष्टवादिता, सत्यवादित, साहस और  जनसेवा से जहां उनका जनाधार बढ़ा है वहीं उनके बहुत सारे विरोधी और दुश्मन भी पैदा हो है गए हैं !  खासकर स्थानीय प्रशासन के वो भ्रष्ट अधिकारी जिन्हें अब बगैर रिश्वत के काम करना पड़ रहा है ! रमेश बिधूड़ी के जनता दरबार में कोई शख्स ये शिकायत नहीं कर सकता कि उसकी शिक़ायत सुनी नहीं गई ! वो ना केवल सुनते हैं बल्कि तुरंत संबंधित अधिकारी को फोन कर के सख़्त लेहजे में समाधान करने का निर्देश भी देते है ! इस भाग दौड़ और असाधारण व्यस्तता का असर रमेश जी की सेहत पर भी पड़ा है ! (  आम दिनों में भी वो चार घंटे से ऊपर नहीं सोते हैं !)
                  विगत १९ दिसंबर २०२० को  कई महीने के अंतराल पर हमारी मुलाक़ात हुई ! हमेशा की तरह उनके पुश्तैनी घर सुनपत निवास का मीटिंग कक्ष भरा हुआ था ! मुझे देखते ही वह मुस्कराकर बोले, " ओ हो !
सुलतान द ग्रेट ! " बस,,,,वो अपने काम में लग गए , और मै उनकी जन सेवा का तरीका देखने लगा ! वहां पर आए लोगों में किसी का घर बनते बनते रोक दिया गया था , किसी को पड़ोसी तंग कर रहा था , तो,,, किसी को पेंशन योजना का लाभ लेना था !  एक बुज़ुर्ग का केस सबसे अलग था , उनके पूरे घर का सूख चैन नई बहू ने छीन लिया था !ये केस  पड़ोस के गोविंद पूरी क्षेत्र से आया था ! समस्या सुनकर सांसद भी हैरान थे ! ये जनता की चाहत का कद्दावर सबूत था, जो लोग उनसे अपनी पारिवारिक समस्या भी डिस्कस करलेते हैं! 
        अक्टूबर 2023 का पहला हफ्ता है! आज काफी दिन बाद मैं सुनपत निवास आया! 
           दिन के पौने ग्यारह बज चुके थे ! अभी ग्यारह बजे उन्हें दस किलो मीटर दूर जाकर  दूसरे ऑफिस में बैठ कर जन समस्याओं से रुबरू होना था ! दस बजकर पचास मिनट पर वो उठकर अपनी कार की ओर चल पड़े !  आज की जन पंचायत खत्म हो चुकी थी ! बीच में बसपा साँसद दानिश अली के साथ हुई बहस मे रमेश जी नाम सभी के ज़बान पर चढ़ गया! आज भी वो भारी भीड़ से घिरे लोगोँ की समस्या के निदान में लगे थे! आज तो भीड़ इतनी थी कि उन्हें घर से लगे पार्क में बैठना पड़ा था! बीच बीच मे लोग नारा लगा देते थे-     हमारा सांसद कैसा हो!
        " रमेश बिछुड़ी जैसा हो!!" 
    कई लोग मिठाई का डिब्बा लेकर आते हैं, रमेश जी तुरंत उपस्थित जनसमुदाय मे बंटवा देते हैं! सामने होने के बावजूद उनसे मिलने में घंटा भर लग गया  ! इस लोकप्रियता के पीछे उनका काम बोल रहा है ! उनके हर ऑफिस मे भीड़ का यही आलम है! आने वाले लोकसभा चुनाव में दक्षिणी दिल्ली की ये सीट तीसरी बार रमेश बिछुड़ी को जीत का सेहरा पहनाने जा रही है !

               साढ़े ग्यारह हो चुके थे! मुलाकात कर मैं ऑफिस से निकला!अपनी बाइक पर सवार घर लौटते हुए सांसद रमेश बिधूड़ी के लिए  एक शेर बार बार मेरे ज़ेहन में आ रहा था , जो उन पर पूरी तरह फिट बैठता है ! ---

हज़ारों  साल  नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है!
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा !!

            सुलतान भारती
( प्रेमचंद साहित्य सम्मान से सम्मानित पत्रकार)


Sunday, 20 December 2020

" साहित्यिक पुरस्कार "

                              आजकल पालक से पेट्रोल तक की कीमत में आग लगी हुई है !कोरोना ने आटा से लेकर अर्थव्यवस्था तक का मुंडन कर डाला है , पर साहित्यकार की प्रतिभा में सूनामी ना रोक पाया ! रचनाओं की वेगमती धारा ने कोरोना को भी तबीयत से लपेटा ! मार्च 2020 से जून २०२० तक का समय संक्रमण और साहित्य से मालामाल होता रहा ! ( अनुकूल जलवायु पाकर कुछ अस्पताल " किडनी" में भी आत्मनिर्भर हो गए !) लॉक डॉउन में पत्नी का अत्याचार झेल रहे अधिकांश रचनाकर साहित्य में नई नई सुरंग खोदने लगे ! साहित्य सृजन से संपदा कम और समस्या ज़्यादा आती है ! (  लेखक के पड़ोसियों की आपबीती ! इसलिए सुरक्षावश कई लोग रचनाकार और कोरोना दोनो से सोशल डिस्टेन्स बना कर चलते हैं !)
         अमूमन साहित्यकार की दो प्रजातियां पाई जाती है !  एक झेला जा सकता है, दूसरा लाईलाज ! पहले किस्म का रचनाकार टैलेंट की जगह जुगाड को आधार बनाता है ! ये जुगाड़ू साहित्यकार अक्सर टैलेंट वाले साहित्यकार के हिस्से की साहित्यिक पंजीरी चट कर जाते हैं ! जुगाड़ू रचनाकार की  बगैर रीढ़ वाली रचनाएं भी आसानी से छप जाती हैं, समीक्षा भी अखबारों में आ जाती है और पुरस्कार की संस्तुति भी हो जाती है ! इसके बरक्स - प्रतिभाशाली साहित्यकार कलम, स्वाभिमान, और क्रोध से लबालब होता है ! वो अपने और ईश्वर के बीच में किसी तीसरे के अस्तित्व को बर्दाश्त ही नहीं करता  ( कोई कोई तो ईश्वर को भी बड़ी मुश्किल से पास आने देता p है !) 
       कुदरती साहित्यकार के मित्र बहुत सीमित होते हैं ! ( झेलने की सहिष्णुता सबमें नहीं होती !) शादी के बाद आजीवन बीबी दुखी ! जिस कॉलोनी में घर हो , वहां के पडोसी दुखी ! ( मंच से बेदखल कई रचनाकार श्रोता की घात में रहते हैं !)  ज़माना खराब है , नकली साहित्यकार का बाज़ार पर कब्ज़ा है !  "श्री जुगाड चंद" दुबई तक पहुंच गए और  "बुद्धि लाल" जी को अपने ही शहर के कवि सम्मेलन में नहीं बुलाया जाता ! नियति के इसी छायावाद से प्रतिभा कुंठित है और कवि क्रुद्ध ! गधे एक सुर में घोड़ों के निष्कासन की वकालत कर रहें हैं ! साहित्य में गधा युग का प्रयास जारी  है! कई सभ्रांत परिभाषाओं की खालपोशी तय है !
            हमें झूठी प्रशंसा की दीमक लग गई है ! कई बार आपके द्वारा की गई झूठी प्रशंसा को रचनाकार सच मान लेता है ! सोचिए ! अगर कोई रचनाकार गलती से साहित्य के दरिया ए आतिश में उतर आया है और उसकी दुखी आत्मा उसे घर वापसी की सलाह दे रही हो , और ऐसे में कोई दुश्मन उसकी बेजान रचना को "कालजयी" कह दे तो क्या होगा ! वो तो आक्रामक तरीके से साहित्य सृजन की शपथ ले लेगा ! ऐसे में रचना कालजयी हो न हो , रचनाकार के परिवार का  ' काल कवलित ' होना तय है ! कुछ लोगों को प्रशंसा करने का ऐसा रोग होता है कि उन्हें मौक़ा दिया जाये तो वो मक्खी में भी मिनरल्स और विटामिन ढूंढ लेंगे ! 
             हर लेखक का सपना होता है - पुरस्कार हासिल करना ! सबको सपना देखने की आज़ादी है ! लेकिन प्रॉपर चैनल से पुरस्कार पाना बहुत कठिन है ! अपने देश की एक विचित्र साहित्यिक रवायत है ! यहां साहित्यकार की उम्र पचास साल के बाद शुरू होती है ! दस किलो आर्टिकल्स लिखने के बाद लेखक " वरिष्ठ " होना शुरू होता है ! सत्तर साल का होते होते वो " विख्यात " मान लिया जाता है ! ( स्मरण रहे, ज़्यादातर मामलों में वरिष्ठ या विख्यात होने के लिए "टेलेंट" की बाध्यता नहीं है !) प्रतिभा के बावजूद हर रचनाकार साठ साल की उम्र में वरिष्ठ मान लिया जाये , इसकी भी कोई गारंटी नहीं ! ऐसा भी हो सकता है कि ' वरिष्ठ ' और ' विख्यात ' होने की  प्रतीक्षा में साहित्यकार सीधे  "वीरगति" को प्राप्त हो जाए ! ( वैसे मरने के बाद रचना कार को ज़्यादा सम्मान मिलता है ! विरोधी   भी कहते हैं, - " खुदा बख्शे ! बहुत सी खूबियां थीं मरने वाले में !)
                               मुझे याद है, जाने माने पत्रकार और " राष्ट्रीय विश्वास " अख़बार के कार्यकारी संपादक लतीफ़ किरमानी साहब ने आठ साल पहले यूपी के सबसे बड़े साहित्यिक पुरस्कार ' यश भारती ' के बारे में मुझसे कहा था , ' व्यंग्य विधा के स्थापित स्तंभकार हो !. इस बार अप्लाई करो ! तुम डिजर्व करते हो !' मै भी बहकावे में आ गया , सोचा  पुरस्कार का नाम    ' यश भारती ' और  मै  ' सुलतान भारती ' ! हो ना हो , इस पुरस्कार की प्रेरणा सरकार को मेरे ही नाम से मिली होगी ! अप्लाई करने के अगले ही दिन से अख़बार देखने लगा ! अगले महीने जब लिस्ट आईं तो आसमान से गिरा - पता चला कि '  अबहुं ना आए  बालमा सावन बीता जाए -' !  

                अब मैं ऐसी गलती नहीं करता ! क्योंकि,,,, पुरस्कार हासिल करने वाले ' पाइथागोरस  का प्रमेय ' कुछ कुछ समझ में आने लगा है !!

.... Sultan bharti

Saturday, 19 December 2020

" किसान आन्दोलन और ' इन्द्र ' का सिंहासन !

                       महाराज इन्द्र के सामने रंभा डांस कर रहीं थी और वो सोशल मीडिया पर नजर जमाए बैठे थे ! पिछले कई दिनों से उनका सिंहासन ६.५ के रिक्टर स्केल पर हिल रहा था ! फेसबुक से ही उन्हें सूचना मिली कि भूलोक में किसान आंदोलन शुरू हो गया है ! तब भी इन्द्र ने अपने रूटीन में कोई परिवर्तन नहीं किया था ! पंद्रह दिन बीतते बीतते आंदोलन खत्म होने की बजाय क्लाइमैक्स की ओर जाता नज़र आया ! अब इन्द्र का मन थोड़ा उचटने लगा था ! उनके मुंह लगे चारण और कैबिनेट के महारथी देवताओं ने लगातार जन समर्थन पा रहे आंदोलन के बारे में कभी वास्तु स्थिति की जानकारी नहीं दी ! इन्द्र लोक के ईमानदार मीडिया प्रभारी नारद जी अज्ञातवास पर थे , और  ' आईटी सेल ' के खैरात पर पल रहा मीडिया आंखो पर गांधारी पट्टी बांध कर फर्जी ब्रेकिंग न्यूज देने में लगा था !
           अचानक इन्द्र ने हाथ उठा कर रंभा को डांस रोकने का इशारा किया ! रंभा ने चैन की सांस ली, उसने घुटनों पर ऑर्थो ऑयल की मालिश करनी शुरू कर दी ! पैंतालिस मिनट से लगातार नाचने से कमबख्त घुटनें कत्थक करने लगे थे ! महाराजा इंद्र रिक्रिएशन हॉल से उठ कर कॉन्फ्रेंस हॉल की ओर चले गए ! उधर रंभा से दूसरी नर्तकी उर्वशी पूछ रही थी, " हिज हाईनेस का मन कत्थक में लगा नहीं !"
          ' हां, उनका मन कत्थक में नहीं किसान आंदोलन में लगा है बहन ! " 
     " चलो इसी बहाने अपनी कैजुअल लीव सैंक्शन हो जायेगी ! बहुत दिनों से कश्मीर जाना नहीं हुआ "!
       उधर,,,,, कॉन्फ्रेंस रूम में देवराज इन्द्र आईटी सेल के प्रमुख से पूछ रहे थे, " किसान आन्दोलन की लेटेस्ट पोजीशन क्या है भद्र "?
                  " बहुत आनंदमय खबर है, किसान घी में तर बतर मक्के दी रोटी और सरसों दा साग खा रहें हैं ! हमारा पूरा आईटी सेल आज वहीं छक कर आया है "!
      " तुम आंदोलन तोड़ने गए थे या रोटी तोड़ने ?"
" आपने ही कहा है कि उनके अन्दर घुस कर खबर लाओ ! आज कुछ ज़्यादा ही अंदर घुस गया था " !
        " अंदर की क्या खबर है?"
 " दुश्मन की सप्लाई लाइन बहुत मजबूत है। खाने पीने की कोई कमी नहीं है। बाईस दिन बाद भी उनकी तादाद घटने की जगह बढ़ रही है ! लेकिन,,,, किसान आंदोलन दो तीन दिन में खत्म हो जायेगा !"
     " वो कैसे ?"
" मुझे भी नहीं मालूम ! मगर आपने कहा था कि आकर  खुश खबरी बताना , मैंने वही बताया !"
     इंद्र ने घूर कर देखा , " लगता है कि तुमने राक्षस दल से सांठ गांठ कर ली है ! तुम्हारा कोरोना टेस्ट करवाना पड़ेगा ! जब बगैर सैलरी के छे महीने के लिए सरकारी अस्पताल में कोरेंटाइन रहोगे तो उम्मीद है कि मुझे किसी दधीचि के पास नहीं जाना पड़ेगा !   हड्डी और किडनी दोनो तुम्हीं से मिल जायेगी"!
     " त्राहिमाम ! त्राहिमाम !!" 
इंद्र देव ने  वायुदेव ' से पूछा , " नारद जी के बारे में कोई इनफॉरमेशन ? ' 
      " कदापि नहीं ! एक बार तो सोचा कि कहीं दुबारा " नारद मोह " का कांसेप्ट ना हो, मगर शादी से लेकर स्वयंवर तक छान डाला- कहीं मिले नहीं ! "
     " कहीं किसान आंदोलन की समर्थक मीडिया से तो नहीं मिल गए ? "
                          "  विपक्ष उन्हें इतना बड़ा पैकेज नहीं दे सकता देवराज ! ये तो हम हैं जो इतने सारेसफ़ेद हाथी पालते हैं ! " 
     देवराज ने आईटी सेल के मुखिया पर निशाना साधते
हुए कहा," हमारी मीडिया नाकारा लगती है ! कभी कभी तो मुझे लगता है कि वो मुझसे भी सच छुपाते हैं ! अग्नि देव आप क्या कहते हैं !"
     " मुझे भी कुछ ऐसा ही फील होता है ! भूलोक के इतिहास में पहली बार अन्नदाता किसान हमारे खिलाफ आंदोलन पर उतरा है !"
      " मगर हमारा आईटी सेल तो कहता है कि वहां किसान नहीं खालिस्तानी और पाकिस्तानी बैठे हैं !"
     " तो उन्हें बॉर्डर पर रोका क्यों नहीं ? देवराज ! आखिरकार इन तीन कानून को वापस लेने में क्या दिक्कत है ?"
       इंद्रदेव बड़बड़ाए, " तुम्हें कैसे समझाऊं - बडे़ नासमझ हो !" फिर ज़ोर से बोले - ' इस आग के पीछे विपक्ष की माचिस है! हमारे आईटी सेल का चरित्र देखो, सैलरी हमसे लेता है और मक्के दी रोटी सरसों दा साग सिंघू बॉर्डर पर खाता है ! इन्हें कोरोना की भी शरम नहीं है ! इसकी सजा मिलेगी - बराबर मिलेगी ! कितने आदमी हैं ?."
      " दो आदमी !" अग्नि देव बोले ,"  सिर्फ  दो  आदमी , जिनकी वजह से ये सारा "कोरोना" है !"  

      देवराज अभी भी धर्मसंकट  में है !

Tuesday, 15 December 2020

" भाग्य सौभाग्य और दुर्भाग्य"

        अचानक आज मुझे तुलसीदास जी की एक अर्धाली याद आ गयी , ' सकल पदारथ है जग माहीं - करमहीन नर पावत नाही -' !  (मुझे लगता है, ये कोरोना काल में नौकरी गवां चुके उन लोगों के बारे में कहा गया है जो इस सतयुग में भी आत्मनिर्भर नहीं हो पाए !) ये जो  'सकल पदारथ' है ना , ये किसी भी युग में शरीफ़ और सर्वहारा वर्ग को नहीं मिला ! सकल पदारथ पर हर दौर में नेताओं का कब्ज़ा रहा है ! इस पर कोई और चोंच मारे , तो नेता की सहिष्णुता ऑउट ऑफ कंट्रोल हो जाती है ! अब देखिए ना, सैंतालीस साल से ऊपर तक कांग्रेसी ' सकल पदारथ ' की पंजीरी खाते रहे मगर मोदी जी को सात साल भी देने को राजी नहीं ! बस यहीं से भाग्य और दुर्भाग्य की एलओसी शुरु होती है ! हालात विपरीत हो तो दिनदहाड़े प्राणी रतौंधी का शिकार होकर दुर्भाग्य का गेट खोल लेता है - आ बैल मुझे मार !
            बुजुर्गों ने कहा है, - ' भाग्य ' बड़ा बलवान ! हो सकता है , मैंने तो देखा नहीं ! हमनें तो हमेशा ' दुर्भाग्य '
को ही बलवान पाया है ! कमबख्त दादा की जवानी में घर में घुसा और पोते के बुढ़ापे तक वहीं जाम में फंसा रहा ! जाने कितनी पंचवर्षीय योजनाएं आयी और गईं , मगर सौभाग्य  ' ग्राम प्रधान ' के घर से आगे बढ़ा ही नहीं ! मैंने चालीस साल पहले अपने गावं के राम गरीब का घर बगैर दरवाजे  के देखा था ! आज भी छत पर छप्पर है, सिर्फ टटिया की जगह लकड़ी का किवाड़ से गया है ! इकलौती बेटी रज्जो की शादी हो गई है। राम गरीब की विधवा और दुर्भाग्य आज भी साथ साथ रहते हैं ! उनकी ज़िंदगी में ना उज्ज्वला योजना आयी ना आवास योजना ! अलबत्ता सरकारें कई आयी ! सचमुच दुर्भाग्य ही दबंग है ! दलित, दुर्बल, और असहाय पीड़ित  को देखते ही दुर्भाग्य कहता है, हम बने तुम बने - इक दूजे के लिए '!
             भाग्य कभी कभी लॉटरी खेलता है ! ऐसे मौसम में प्राणी ' माझी ' से सीधे मुख्यमंत्री हो जाता है ! अब प्रदेश के सकल पदारथ उसी के हैं , बाकी सारे करम हीन छाती पीटें ! कभी कभी ठीक विपरीत घटित होता है। सकल पदारथ की पॉवर ऑफ अटॉर्नी लेकर विकास की जलेबी तल रहा प्राणी मुख्यमंत्री से लुढ़क कर सीधे ' कमलनाथ ' हो जाता है ! ये सब ' सकल पदारथ के लिए किया जाता है ! एक बार सकल पदार्थ हाथ आ जाए, फिर विधायक या सांसद के हृदय परिवर्तन का मुहूर्त आसान होता है ! "सकल पदारथ से युक्त सूटकेस" देखते ही काम क्रोध मद लोभ  में नहाई आत्मा सूटकेस में समा जाती है ! अगला चरण विकास का है ! जिन्होंने बिकने का "कर्म"  किया उन्हें सकल पदार्थ मिला ! जो "करम हीन" पार्टी से चिपके रहे , वो विपक्ष और  दुर्भाग्य के हत्थे चढ़े ! जाकी रही भावना जैसी,,,,,,!
           मुझे कहावतें बहुत कन्फ्यूज़ करती हैं! भाग्य, सौभाग्य और दुर्भाग्य के बारे में एक कहावत है, ' भाग्य में जो लिखा है वही मिलेगा '!! तो फिर इतनी हाय तौबा किसलिए ! भाग्य में सकल पदार्थ का पैकेज होगा तो डिलीवरी आयेगी ! फिर भला रूकी हुई " कृपा" के लिए काहे फावड़ा चलाएं ! और,,,अगर किस्मत में सौभाग्य है ही नहीं, तो  रजाई से बाहर क्यों  निकलें ! ( ऐश्वर्य,लोभ, प्रोग्रेस और परिश्रम से सोशल डिस्टेंस रखो - मोक्ष डिजिटल होता जायेगा !) 
           इसके बाद अगर  ' करम हीन ' कहा तो तुम्हारे दरवाजे का बल्ब तोड़ दूंगा !   ' कर्मवान'  और 'कर्महीन'  के पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहिए , गीता में साफ साफ लिखा है, - जैसा कर्म करोगे वैसा फल देगा भगवान ! इलाके का विधायक अगर तुम्हें आठ आठ आंसू रुला रहा है तो इसमें विधायक का क्या दोष ! वोट देने का  "कर्म" किया है तो पांच साल तक "फल" खाओ ! विकास फंड का सकल पदार्थ उसी के हाथ में है ! तुम अपने आप को इस काम, क्रोध, मद लोभ से दूर रखो !

          वो ज़माना गया  जब "सकल पदारथ"  परिश्रम  का नतीजा हुआ करता था ! अब सुविधा, संपदा और सत्ता का सकल पदारथ अभिजात वर्ग को दे दिया गया है, और मेहनत और मजदूरी करने वालों को - रूखी सूखी खाय के ठंढा पानी पीव - की सात्विक सलाह दी जाती है ! धर्मराज की सलाह  है  कि आम आदमी को तामसी प्रवृत्ति वाले ' सकल पदारथ ' के नजदीक नहीं जाना चाहिए, वरना मरने के बाद स्वर्ग तक जाने वाला  "हाई वे"  कुहरे की चपेट में आ जाता है ! अब आम आदमी धर्म संकट में है! जीते जी 'सकल पदारथ' ले -  या मरने पर ' स्वर्ग ' ! ( गुरु गोविन्द दोऊ खड़े,,, काके लागूं पाय !) आखिरकार  संस्कार उसे - रूखा सूखा खा कर - "स्वर्ग " में जाने की सलाह देता है !
                    देवताओं का कुछ भरोसा नहीं कि कब रूठ जाएं ! भाग्य का सौभाग्य में बदलना तो - बहुत कठिन है डगर पनघट की- !. मगर ' दुर्भाग्य ' बग़ैर प्रयास बेहद सुगमता से हासिल हो जाता है ! जब देखो तब आंगन में महुआ की तरह टपकने लगता है ! जिन्होंने साहित्य से गेहूं हासिल करने की ठानी, उसे दुर्भाग्य  ' वन प्लस वन' की स्कीम के साथ मिलता है। शादी के सात साल बाद ही मेरी बेगम को साहित्य और साहित्यकार की " महानता " का ज्ञान हो चुका था ! एक दिन उन्होंने मेरे इतिहास पर ही सवाल उठा दिया, ' मै वसीयत कर जाऊंगी कि मेरी सात पीढ़ी तक कोई साहित्यकार से शादी ना करे ' !  लक्ष्मी और सरस्वती के पुश्तैनी विरोध में खामखा लेखक पिसता है ! लक्ष्मी जी का वाहक उल्लू लक्ष्मी जी को लेखक की बस्ती से दूर रखता है !
                                    भाग्य और दुर्भाग्य के बीच में  ' सकल पदारथ ' की चाहत में खड़ा इंसान तोते वाले  ज्योतिषी के पास जाता है ! कोरोना का सम्मान करते हुए ज्योतिषि अपने तोते से कहता है , ' इस का भाग्यपत्र निकालो वत्स '!  तोते ने घूर कर देखते हुए कहा, " कोई फ़ायदा नहीं ! इसकी फटेहाल जैकेट देख कर मैं इसका भाग्य बता सकता हूं । बेकारी का शिकार है ! शनि इसके घर में रजाई ओढ़ कर सो गया है ! ये किसान आन्दोलन में सपरिवार बैठा है, घर में आटा और नौकरी दोनों खत्म है ! इसे नक्षत्रों की जलेबी में मत फसाओ उस्ताद ! " ज्योतिषी को पहली बार अपने कस्टमर दया आ आ यी , ' जा भाई , तेरी शक्ल से ही लग रहा है कि तेरे पास किडनी के अलावा कुछ बचा नहीं है ! तोते का पैर छू और - फकीरा चल चला चल' !   
           बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले ना भीख ! जाने किस मूर्ख ने ये कहावत गढ़ी थी । मोती को कौन कहे, मिट्टी भी मांगने से नहीं मिलती ! रही सकल पदार्थ के लिए समुद्र मंथन की बात , तो यहां भाग्य चक्र प्रबल हो जाता है ! धर्मभीरू जनता घर का गेहूं बेचकर तीर्थ यात्रा पर जा रही है और  ' सेवकनाथ जी  '  नौ बैंकों का हरा हरा "सकल पदारथ" समेट कर विदेश यात्रा पर ! यही विधि का विधान है !

        कल मैने अपने मित्र चौधरी से पूछा , ' सौभाग्य और दुर्भाग्य को संक्षेप में समझा सकते हो ?' चौधरी कहने लगा -" बहुत आसान है ! तुम मुझसे उधार दूध ले जाते हो, ये तुम्हारा " सौभाग्य" है और मेरा "दुर्भाग्य" !!

    जाने क्यों - ये मुझे तुरंत समझ में आ गया !!

Saturday, 12 December 2020

" सोशल मीडिया के ' सदाचारी "!

                        अब क्या बताऊं मित्र ! सारी सारी रात मोहे नींद ना आए - जैसी सिचुएशन है । मेरे अनिद्रा रोग को लेकर आप भी भ्रम में हो सकते हैं ! न न न ! कैरेक्टर में इन्फेक्शन का मामला नहीं है ! अब इस उमर में ''मटुक नाथ ' होने का कौनो इरादा नहीं है भाई ! तो,,, काहे मुंह कोंहड़ा हो रहा है ! ऊ का है कि सोशल मीडिया पर रिश्तेदार बढ़ गए हैं ! ऐसे ऐसे आदर्श 'महामानव ' नज़र आ रहे हैं जिन्हें देखकर मेरा मनोबल एवरेस्ट से फिसल कर सीधे बंगाल की खाड़ी जा गिरा है ! माँ बाप की इतनी इज़्ज़त और सेवा करने वाले लोगों को अगर  'श्रवण कुमार' देख लें तो फ़ौरन हीनभावना के शिकार हो जाएं ! कितने चरित्रवान लोग फेस बुक पर 'नाईट वॉक' कर रहें हैं ! (मॉर्निग वॉक के समय ये बाप के जगाने पर भी नहीं उठते !)
             मैं 2015 में फेस बुक के गुरुकुल में दाख़िल हुआ था ,तब तक ज्ञान और संस्कार दोनो में नाबालिग था ! ( वैसे उम्र पचास की हो गई थी !) फेसबुक पर आते ही ज्ञान और आदर्श के एक से एक डायनोसोर खलीफा  से मुलाकात होने लगी ! मुझे पता नहीं था कि इस असार संसार में इतने विद्वान और उपदेशक आसन जमाए बैठे हैं ! सुबह होते ही फेस बुक पर रंगबिरंगी " गुड मॉर्निंग" नज़र आती ! (कई बार तो मै जवाब देने की मूर्खता भी कर जाता था़ !) उसके बाद सदाचार की शिक्षा शुरू होती , " मां"  की सेवा ही परमानंद है"! ( ऐसी पोस्ट डालने वालों में वो सदाचारी आगे होते हैं जिन्होंने अपनी मां को वृद्धाश्रम भेज रखा है !) साक्षात धर्मराज की पोस्ट में भी रिश्तों की इतनी आदर्शवादिता नहीं होगी, ज़रा देखिए - " सत्य का मार्ग संकट में भी नहीं त्यागना चाहिए -"! ( लगता है, विभीषण को इन्होंने ही मोडीवेट किया था!)   कुछ ने तो संस्कार के मामले में सतयुग को भी सिल्वर मेडल पर रोक दिया है, ' व्यवहार में नम्रता महापुरुषों की निशानी है '! ( इसके बावजूद कोई महापुरुष होने को तैयार नहीं !)
        दुनियां में कितना भी कलियुग या कोरोना आया हो पर सोशल मीडिया पर सतयुग और सदाचार का बसन्त उतरा हुआ है। इस पर इतने सदाचारी सवार हैं कि गांधी जी के बन्दर भी पूंछ उठाकर भाग लें ! सोशल मीडिया पर विद्वान महापुरुषों की एक नस्ल ऐसी भी है जिसने अपनी आंखों में सतयुग का लेंस डलवा लिया है! इसका फ़ायदा ये हुआ है कि चाहें जितना सूखा पड़े, उन्हें सावन की  ही अनुभूति होगी ! लेंस की बिक्री बढ़ रही है और साथ ही सतयुग की अनुभूति भी।  ये उसी लेंस का चमत्कार है कि प्राणियों को सूखे में मानसून, पतझड़ में बसंत, गरीबी में आत्मनिर्भता और किसान आंदोलन के
पीछे हरा भरा खालिस्तान नज़र आता है! लगता है - आने वाले वक्त में खुशहाली और बदहाली के बीच का भेदभाव खत्म हो जायेगा ! 
                                 हां तो,,,,, सोशल मीडिया के सात्विक चरित्र निर्माताओं की बात चल रही थी ! परसों फेस बुक पर एक सज्जन ने गांव से शहर आई अपनी वृद्ध माता जी के साथ अपना फोटो शेयर किया है! फोटो में शायद माता जी को मुस्करा कर फोटो खिंचवाने की सलाह दी गई थी। वो मुस्कराने और रोने के बीच की तस्वीर है ! (तसवीर में बहू सामने खड़ी है, शायद इसी लिए माता जी मुस्करा नहीं पायी !) मातृभक्त बेटे ने पोस्ट में लिखा था ,  ' माता की सेवा में परमानंद की अनुभूति होती है ' ! (पता नहीं ये दिव्य ' अनुभूति ' कितने दिन तक चली!) एक और सदाचारी बेटे ने अपनी मां को जूस पिलाते हुए तस्वीर शेयर की थी ! ( शायद दूध का क़र्ज़ उतार रहा था !) कितना घनघोर सतयुग है , फ़र्ज़ सिमट कर गिलास भर रह गया है !
             मैंने ' वर्मा ' जी से पूछ ही लिया, -' लोग जन्म देने वाले मां बाप के लिए थोडा़ सा भी फ़र्ज़ अदा करते हैं तो पोस्ट डाल कर ढिंढोरा क्यों पीटते हैं ?' वर्मा जी ने अपने तरीके से समझाया , " आज के दौर में इंसान ने ईश्वर को संदिग्ध बना दिया है ! तथाकथित धर्मगुरुओं ने मानव को भ्रम में लपेट दिया है ! उसे बिलकुल भरोसा नहीं है कि उसके पुण्य को ईश्वर कोई क्रेडिट देगा ! तो,,, क्यों ना दुनियां को अवगत कराया जाए '!  मैंने तर्क़ पेश किया , ' सर ! हर इंसान के कंधे पर एक एक फरिश्ता होता है जो उसके नेकी और बदी का अकाउंट अपडेट रखता है ! इंसान को इश्वर पर भरोसा रखना चाहिए"!                 "ईश्वर पर भरोसा तो ठीक है, फरिश्तों पर कैसे रखें! कहीं वो ख़ुद कंधों से उतर कर  ' पोस्ट ' डालने बैठ जाएं तो !! वो रंभा और मेनका का वीडियो देख रहें हों, और उतनी देर में  माता जी जूस का गिलास खाली कर दें ! फरिश्तों की लापरवाही से इतना बड़ा "पुण्य"  पल भर में रोहिंग्या हो कर रह गया "!

         हरि अनन्त हरि कथा अनंता - ! मै हैरान हूं इतने  विद्वानो की पोस्ट देखकर ! उम्र के इंटरवल पर मेरी हीनता क्लाइमैक्स पर है ! धीरे धीरे समझ में आ रहा है कि हिमालय और किष्किंधा की गुफाओं में तपस्या रत सारे ज्ञानी सोशल मीडिया पर लौट आए हैं ! सदाचार की अनंत शोधशालाएं जीवंत हो उठीं हैं ! कोरोना की कृपा से विद्वानों की बुद्धि भले भ्रमित हो पर सदाचार का उत्पादन बढ़ गया है । दस महीने में जीडीपी गरीबी रेखा से नीचे चली गई , मगर कोरोना मरदूद को मिर्गी तक ना आई ! बोर हो सारे सदाचारी  फावड़ा लेकर फेसबुक पर आ  गए , - सदाचार बिना चैन कहां रे !! अब चूंकि युग परिवर्तन में लगे हैं, कलिकाल में सतयुग फेंटना है ! इसलिए ऐसे कमेंट पर - लाइक या शेयर की उदासीनता नहीं देखी जाती ! गमले में रखा  मनीप्लांट का पौधा ताज़े पानी के इंतजार में कुपोषण का शिकार है , और  घर का मालिक फेसबुक पर पोस्ट डाल रहा है , -  'आज का सुविचार ! हमें अपने आस पास के पेड़ पौधों को नियमित रूप से खाद पानी देना चाहिए ! पर्यावरण को बचाने में आप हमारी इस मुहिम का हिस्सा बनें ' !!

       मुझे यकीन है, वो कल भी मनीप्लांट में पानी नहीं डालेगा, मगर फेसबुक पर पोस्ट ज़रूर डालेगा !


Thursday, 10 December 2020

" पैसा बोलता है "!

             मुझे पूरा यकीन है कि ध्यान से सुनेंगे तो पैसे की आवाज़ साफ़ साफ़ सुनाई देगी ! पैसा बोलता ही नहीं दहाड़ता भी है ! उसके सामने आदमी घिघियाता है, रोता है, फरियाद करता है और चारण बनकर पैसे की वंदना करता है ! पैसा वो  'मास्टर की ' है जो हर बंद ताला खोल देता है ! पैसा न हो तो खून के रिश्तों में भी चीनी कम हो जाती है, और पैसा हो बेगानी शादी में भी अब्दुल्ला दीवाना हो कर नाचता है  ! पैसे वाले मूर्ख की बकवास भी प्रवचन का आनंद देती है, और पैसे से बंजर विद्वान की नेक सलाह भी मोहल्ले को बकवास लगती है! पैसे वाले का चरण रज चन्दन होता है और गुरबत का चबैना फांक रहे इन्सान के सलाम का जवाब देने से भी लोग कतराते हैं,-  क्या पता उधार मांगने के लिए नमस्ते कर रहा हो -!
                                  पहले सिर्फ सुनता था, अब देख भी लिया कि लेखक कड़की के तालाब में उगा हुआ वो कमल है जिसमें कभी पैसे की खुशबू नहीं आती ! दूर से बडा़ खूबसूरत लगता है - खिलखिलाता और अपने टैलेंट से सबका ध्यान अपनी ओर खींचता ! लोग उसकी खूब तारीफ़ करते हैं, - ' कमाल है! गज़ब की रचना !! कोई मुकाबला नहीं जी ' ! मगर उसकी जड़ों में लिपटे हुए गुरबत के कीचड़ को कोई नहीं देखता ! ट्रेजडी देखिए - आह से निकला होगा गान - को पूरी बेशर्मी से लेखक की नियति बताई जाती है ! शायद ऐसी रुग्ण मानसिकता ने रचनाकार को  नोट से दूर नियति की ओर धकेल दिया है ! लिहाज़ा आख़री  सांस तक सिर्फ उसके हाथ की कलम बोलती है, पैसा नहीं बोलता !
       इंसान तो सिर्फ मुंह से बोलता है,पर पैसा चारों तरफ़ से बोलता है।  पैसा चाहे कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे या पिछली सीट पर , लोग पहचान  ही लेते हैं ! और,,, मेरे जैसा शख़्स सूट बूट और टाई पहन कर कार की पिछली सीट पर बैठे तो भी हमारे पड़ोसी "वर्मा जी" पहचान कर बोल ही देंगे, ' कौआ चला हंस की चाल '!  पैसा जो बोलता है ! एल आई सी वाले मछली पकड़ने के लिए एक स्लोगन लाए हैं, - ज़िंदगी के साथ भी - ज़िंदगी के बाद भी -! ये पैसे के बारे में कहा गया है ! पैसा जितना ज़िन्दगी में बोलता है, उससे ज़्यादा मरने के बाद बोलता है ! धर्मशाला,प्याऊ, मस्ज़िद,मंदिर , अनाथालय बनवाकर लोग पुण्य के ब्याज में पैसे की झंकार सुनते रहते हैं ! पैसे के बगैर स्वर्ग कितना दुरूह और नर्क कितना नज़दीक  है ! तभी तो किसी दिलजले ने कहा है, - पैसे बिना प्यार बेकार है ! ( सुनते ही फौरन चीनी कम हो जाती है!)
         हमारे  'वर्मा जी ' इतने कठोर सत्यवादी हैं कि लोग सामने पड़ने  से घबराते हैं ! क्या पता बबूल की कांटेदार टहनी जैसी कौन सी बात बोल दें कि कान तक का कोरोना निकल भागे ! खाते पीते बुद्धिजीवी हैं, पूंजीपतियों से छत्तीस का आंकड़ा है ! मोहल्ले के बडे़ व्यापारी सेठ नत्थूमल को भी नथुआ कह कर बुलाते हैं ! पैसे को पैर की जूती समझने वाले वर्मा जी  अपना अलग  दर्शन बताते हैं , ' पैसा कमाने के लिए आदमी तोते की तरह बोलता है, पैसा आने के बाद आदमी मुंह में फेवीकोल डाल कर ' नथुआ ' हो जाता है! पैसा आने के बाद आदमी को बोलने की ज़रूरत ही नहीं , लोग बोलते हैं, पैसा सुनता है ! पैसे की ख़ामोशी में बड़ी आवाज़ होती है बबुआ "!
            बुजुर्गों ने एक कहावत गढ़ी थी, - अक्ल का  अंधा गांठ का पूरा -! जब पैसा किसी मूर्ख के पास आ जाए और पैसे को तरसते बुद्धि जीवी का उसी मूर्ख से वास्ता पड़ जाए तो क्या होगा ! दुर्भाग्यवश बुद्धिजीवी अगर साहित्यिक प्रजाति का हो तो सोने पर सुहागा ! साहित्यकार की जेब बेशक सूखा पीड़ित हो, पर दिल में खुद्दारी का हिन्द महासागर और क्रोध में दुर्वाषा से कम नहीं होता ! एक तो करैला - दूजा नीम चढ़ा ! पूंजीपति को देखते ही लेखक ऐसे फुंफकारता है, गोया सांड ने लाल रंग देख लिया हो ! कुछ करनी कुछ करम गति कुछ लेखक का भाग ! लेखक अपनी खुद्दारी नहीं छोड़ता और दुर्भाग्य पीछा ! पैसा और कलम - मत छेड़ो सनम !!
       पैसा बगैर ज़बान के बोलता है ! बोलता ही नहीं चिढ़ाता भी है ! पैसा जिसके पास जाता है उसे मुखिया बना देता है ! जो बोले वही सत्य वचन, जिधर से जाए वही रास्ता ! ( महाजनों येन गता: सा पंथा : ) पैसा परिभाषा बदल देता है ! हर कान पैसे की आवाज़ सुनता है! समाज भी पैसे वाले तराजू की जै जै कार करता है ! पैसा सूखा हगे या गीला - उसमें बदबू नहीं होती ! पैसा ही रस्म और परंपरा तय करता है !  गरीब आदमी की पत्नी  अगर कम कपड़े पहने तो  'मज़दूर ' - और,,,, पैसे वाले की बीबी अगर लंगोट पहन कर निकले तो  "मॉडल"  कहलाए ! 

         ।।  कि मैं कोई झूठ बोल्या ,,, ?  ।।

Tuesday, 8 December 2020

" रिटर्न ऑफ अलादीन और जिन्न "!

        अलादीन बड़ी मुश्किल से अपनी झुग्गी तक लौट पाया था  ! आज का दिन बहुत बुरा गुजरा था ! बदरपुर बॉर्डर ( दिल्ली) से थोडा़ बहुत कबाड़ खरीद कर जब वो अपने रिक्शे पर घर लौट रहा था, तो रास्ते में पुलिस ने रिक्शा रोक कर पूछा, - ' क्या लाद रखा है बे ?'.
          " कबाड़ है साहेब "!
        " कहां से ला रहा है ?'
        " ताजपुर पहाड़ी से "!
         " दिल्ली बॉर्डर पर चारों ओर किसान बैठे हैं, और तू माहौल ख़राब करने की कौशिश कर रहा है!" 
  अलादीन घबरा गया, ' मैंने कैसे ख़राब किया साहेब '?
        " किसानों का धरना चल रहा है और तू मुझसे जबान लड़ा रहा है ! तू तो मुझे संदिग्ध लग रहा है बे !!"
     " नहीं सर ! मै तो एक गरीब कबाड़ी हूं "!
 " तुझे क्या पता कि तू क्या है, ये तो मैं तय करूंगा ! ज़रा मुझे कबाड़ चेक करने दे! तब मैं डिसाइड करूंगा कि तू खालिस्तानी है या बांग्लादेशी !" 
      " मगर मैं तो हिन्दुस्तानी हूं!"                                     " तेरे कहने से कुछ नहीं होता ! ये तो मुझे डिसाइड करना है!"
      अलादीन रूआंसा हो गया ,  तभी दूसरा पोलिस वाला उसे एक तरफ ले जाकर बोला, ' अगर इन्होंने जांच शुरू कर दी तो इस जनम में तू कभी भी इंडियन नहीं साबित हो पायेगा ! वीजा लगाऊं तेरा ?"
        " वीज़ा "!
 " हां, आजकल रोहिंग्या का सीज़न चल रहा है! बीस साल के लिए जेल जाएगा !"
   
       " कुछ कीजिए सर !"
 " इब आया तू कानून के नीचे ! लिकाल दो सौ रुपया !"
       " किस जुर्म में सरकार ?"
" नाक के नीचे रिक्शा समेत रोहिंग्या बरामद हो गयो "!
     ' अभी सौ रुपया है सरकार।"
" कोई बात नहीं, पचास बाद में दे देना "!
                   जान बची और लाखों पाए ! अलादीन तेज़ी से रिक्शा चलाता हुआ अपनी झुग्गी की ओर चल पड़ा ! अभी वो तुगलकाबाद किले के नज़दीक पहुंचा था कि नाका लगाए पुलिस वाले ने उसका रिक्शा रुकवा दिया ! आसमान से गिरे खजूर में अटके , अब तो जेब में इतना भी पैसा नहीं था कि  'दिल धक धक ' गुटखा खरीद सके ! एक पुलिस वाले ने पास आकर कबाड़ का जायज़ा लिया, -' ये सब क्या है बे ?' 
     " कबाड़ है दरोगा जी !" 
पुलिस वाला दरोगा कहे जाने पर थोड़ा नरम हुआ, फ़िर भी ठेले का मुआइना करता हुआ बोला , ' कब से ये धंधा कर रहा है ?"
      " पांच साल से!"
 "तो इसका मतलब पांच साल से कानून की आंख में धूल झोंक रहा है , दस साल के लिए अंदर जायेगा "!
           " मगर क्यों मेरे आका ! क्या कबाड़ खरीदना जुर्म है ! मै तो बड़ी मुश्किल से अपना पेट पालता हूं"!
    पुलिस वाला धीरे से बोला ,- ' मेरे धौरे भी एक पेट सै बावली पूंछ ! उसने कूण पालेगो ! लिकाड सौ रुपया !!"
       " पिछली चेकपोस्ट पर सब ले लिया, सौ रुपया उधार चढ़ा है "! 
      " चल इब दो सौ रुपया उधार चढ़ लिया ! पे टी एम नहीं है के ?" 
        " मै बहुत छोटा आदमी हूं सरकार  "!
         अपनी झुग्गी में आकर भी अलादीन के दिल की धड़कन नॉर्मल नहीं हो रही थी ! शरीफ आदमी था इसलिए पुलिस को देखते ही ऐसे घबरा जाता था़, गोया किसी की जेब काट कर भागा हो !
      अचानक उसे जिन्न वाले चिराग़ की याद आई । इक्कीसवीं सदी में आकर जिन्न बिलकुल बदल गया था़ ! अव्वल तो रगड़ने के बावजूद वो चिराग़ से बाहर नहीं निकलता था़, और निकलता भी तो सियासत, क्राइम और किसान आंदोलन की बातें करता था। वर्तमान व्यवस्था का इतना बुरा असर जिन्न पर पड़ा था कि बगैर लेन देन के वो कोई काम नही करता था !
      अलादीन ने चिराग़ को रगड़ना शुरू किया ! पांच मिनट निकल गया ! अलादीन के मुंह से " पाताल लोक" वेब सीरीज की ओरिजनल गालियां निकलने लगीं, पर चिराग़ से धुआं न निकला ! खीझ कर अलादीन ने चिराग़ उठाकर फर्श पर दे मारा !
     चमत्कार हुआ ! चिराग़ से सफेद धुआं निकलता नजर आया और जब धुआं छटा तो गैस सिलेंडर पर बैठा हुआ जिन्न नज़र आया। अलादीन को देखते ही जिन्न ने फॉर्मेलिटी निभाई, " क्या हुक्म है मेरे फटीचर आका "?
        " तंग आ गया तुमसे ! रगड़ रगड़ कर हाथ घिस गए और तुम हो कि केजरीवाल सरकार की तरह सोये पड़े हो ! आखिर कहां कोमा में चले जाते हो ?"
       " मै सिंघु बॉर्डर पर किसान रसोई में खाना खा रहा था ! जबसे कोरोना आया है, तुम्हारी झुग्गी तो गरीबी रेखा से नीचे चली गई है ! कोरोना से तो बच गया पर कुछ दिन और तुम्हरे साथ रहा तो कुपोषण से मर जाऊंगा ! गांधी जी से भी ज्यादा उपवास कराते हो !" 
             " तो मै क्या करूं ! जब भी तुमसे कुछ मांगता हूं तो आसाराम की तरह उपदेश देने लगते हो ! कुछ लाते ही नहीं!!"
      "तुम अपनी च्वाइस तो देखो ! कैसी कैसी वाहियात डिमांड करते हो ! कभी एक पाव सरसों का तेल मांगते हो तो कभी सस्ता आलू ! कभी फुटपाथ पे दो सौ रुपए में बिकने वाले जूते की फरमाइश करते हो तो कभी सौ रुपए में जाड़ा उतारने वाली स्वेटर लाने को कहते हो ! इस सतयुग में क्या हो गया उस्ताद आपको ! लगता है रामराज सूट नहीं कर रहा है ! खैर आज क्या चाहिए ? सुर में बोले तो,,,, क्या हुक्म है मेरे आका !"
       अलादीन ने सारी समस्या बताते हुए कहा, ' मेरी सात पुश्तें यहीं मरी और दफ़न हुईं, लेकिन पुलिस वालों से मिलने के बाद तो मुझे खुद अपने ऊपर ही शक होने लगा है कि कहीं मैं रोहिंग्या तो नहीं ! कुछ चक्कर सा आ रहा है तब से !" 
         " बहुत छोटी सी समस्या है, डॉन्ट वरी मैं हूं ना ! "सुविधा शुल्क" ज़िंदाबाद ! सारा इंतजाम मैं कर दूंगा, बस आप ज़रा एक लिम्का की बोतल और चिकन तन्दूरी लेते आइए ! मुर्गा अंदर - समस्या बाहर !"
     ".कभी बगैर लेनदेन के भी काम कर दिया कर !"
" सुविधा शुल्क के बगैर कुछ नहीं होता बॉस ! होता तो पुलिस वाले तुमसे डेढ़ सौ क्यों लेते ! ' 

      अलादीन मन ही मन गाली देते हुए झुग्गी से निकल गए ! वो समझ गए कि बगैर मुर्ग़ा और लिम्का के जिन्न उन्हें रोहिंग्या होेने से बचाएगा नहीं ! लेकिन इस घबराहट और जल्दबाज़ी में उनसे एक भारी भूल हो गई ! वो चिराग़ को जेब में रखना भूल गए ! जब याद आया तो बगैर मुर्ग़ा लिए झुग्गी को वापस भागे , मगर तबतक देर हो चुकी थीं !

                  में लालकिले से खरीदी हुई नई जीन और टी शर्ट खूंटी से गायब थी , और,,,,, चिराग़ लेकर जिन्न फ़रार हो चुका था!

                  *(Sultan bharti)*
       

Friday, 4 December 2020

" सब ठीक है ना !"

             अब क्या बताऊं, ये औपचारिक सवाल अपने आप में घाव पर नमक से कम नहीं है ! ' सब ठीक है ना ' दुनियां का अकेला ऐसा वाहिद सवाल है जो नकारात्मक परिस्थिति का सामना कर रहे इंसान से भी  सकारात्मक जवाब चाहता है ! आप तालाब में डूब रहे हों और आपके खैरख्वाह जब बगल से गुजरते हुए जल्दी से पूछें,  - सब ठीक है न - तो कभी हकीकत न बताएं  कि बस चंद पल का मेहमान हूं - , बल्कि मुस्करा कर कहें , " " हां सब ठीक है , बस ज़रा मरने वाला हूं , क्योंकि  मुझे तैरना नहीं आता "! यकीन मानों इसके बाद भी वो रुकेगा नहीं, क्योंकि उसे आपसे कोई लेना देना नहीं है ! उसने रिश्ते, इंसानियत, हमदर्दी , दुख दर्द सबको औपचारिकता की पोटली में बांध रखा है ! सच पूछो तो ऐसे लोगों का समाज में ज़िंदा होना  भी औपचारिकता से ज़्यादा कुछ नहीं होता !
          हमारे पड़ोसी " बुद्धि लाल" जी को लिजिए ! जब से उन्हें शुगर हुई है, केजरिवाल से सख़्त नाराज़ हैं ! लॉक डॉउन में बिजली विभाग ने बगैर रीडिंग देखे अनाप शनाप बिल भेज दिया । उसे सैटल करवाने चिंता में इतना दौड़े कि इस शुगर पेशेंट हो गए ! हर दिन सुबह पार्क में नज़र आने लगे। उन्हें देखकर हर आदमी पूछने लगा, ' सब ठीक है ना '! वो कहना चाहते कि बिलकुल ठीक नहीं है - ' मेरा चैन वैन सब लूटा...! बी एस ई एस ने लूट मचा रखी है ! किसी दिन विधान सभा के सामने बिजली के तार से लटक कर सती हो जाऊंगा ! ' पर उनकी चिंता या चेतावनी पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा ! दुर्भाग्य से एक दिन मैं उनके सामने पड़ गया ! सोचा , एक औपचारिक सवाल उछाल कर बरी हो जाऊंगा ! देखते ही मैंने पूछा,  "सब ठीक है ना !"
      वो पहाड़ी बादल की तरह फटे, " ख़ाक ठीक है ! मेरी नौकरी कोरोना खा गया और सिलेण्डर की सब्सिडी उज्ज्वला योजना ! किचन गरीबी रेखा के नीचे ऑक्सीजन ढूंढ रहा है ! केजरी सरकार ने सुकून की जगह शुगर दे दिया ! तुम कुछ करो !"
      मैंने हाथ खड़े कर दिए, " मुझे खुद शुगर है"! 
वो जान को अटक गए, ' फिर तुमने क्यों पूछा कि सब ठीक है ना ?" 
     मै मुस्कराया, " आप भी तो मोहल्ले में इसी थोथी औपचारिकता के लिए जाने जाते हैं ! किसी की कटी उंगली पर एंटीसेप्टिक समझ कर ही कभी मूता हो तो बताइए  "?
                    आदमी आइने में सिर्फ अपनी सूरत देख कर रह जाता है, सीरत देखता ही नहीं ! पैसे और पेट से अघाये आदमी बहुत बढ़िया सलाह देते हैं ! और भूखा अक्लमंद आदमी उसकी मूर्खता में प्रोटीन ढूढता है! अक्ल का अंधा अमीर आदमी अगर  प्रवचन दे तो सामायिक कवि छायावाद और रहस्यवाद तक ढूढ लेते हैं , और सर्वहारा वर्ग को उनकी मूर्खता में भी अध्यात्म की रोशनी नजर आ जाती है ! दरअसल यही पूंजीपति वर्ग सर्वहारा समाज को औपचारिकता की अफीम चटाता है। हमारे एक बडे़ व्यापारी मित्र की एक विचित्र आदत है! वो अपने हर दुखी मित्र को एक ही सलाह देते हैं, " खुश रहा करो "! उनको अपने इस सलाह पर कभी राई बराबर भी हैरत या शर्मिंदगी नहीं हुई !वो आज़ भी दूसरों को यही सलाह देते हैं, ' खुश रहा करो!" ! कौन नहीं चाहता कि वह खुश रहे, पर खुश रहना अपने हाथ में है कहां !
        हमारे 'वर्मा जी ' ने इस मामले में भी मैराथन जीत रखा है ! बावन साल की उम्र में भी मोहल्ले के लोगों को छेड़ने में काफी सक्रिय है ! समस्याग्रस्त शख़्स को घेर कर पूछते हैं,' सब ठीक है ना !' अगर किसी ने उनके तंज़ को संजीदगी से लेकर कह दिया, " कहां ठीक है वर्मा जी, पिछले हफ्ते अमेरिका वाले फूफ़ा जी मर गए!' 
                       उसके बाद तो वर्मा जी फुल फॉर्म में आ जाते हैं, ' कमाल है ! आप तो कहानी लेकर बैठ गए ! मैने तो सिर्फ हाल चाल पूछा था़, मैने ये कब पूछा कि आप के फूफा जी जिन्दा हैं या मर गए ! सबको मरना है मिश्रा जी , कोई अजर अमर नहीं है ! आज फूफा जी मरे हैं, कल आप भी मर सकते हैं ! इस वक्त मरोगे तो क्रेडिट कोरोना को मिलेगा ! हमारी याददाश्त कुछ ठीक नहीं है, अगर हमसे कुछ उधार लिया हो तो याद कर के मरने से पहले दे देना "!
     मिश्रा जी की घिग्घी बंध गई , आकस्मिक हमले से सदमे में आए मिश्रा जी रुआंसे होकर सिर्फ इतना  कह पाए,  " मुझ पर आपका कोई उधार नहीं "!
          वर्मा जी ' सब ठीक है ना ' के जवाब में रामराज चाहते हैं ! अब ऐसे में कोई कांग्रेसी देश या गांव की दुर्दशा लेकर बैठ जाए तो वर्मा जी आपे से बाहर हो जाते हैं , " किस दुनियां में रहते हो ! अपने अलावा किसी का विकास पसंद नहीं ! अब देश में इमरजेंसी मॉडल नहीं रामराज मॉडल ही चलेगा ! कमाल है ! चुनाव में नहीं जीते तो आप लोग कोरोना लेकर आ गए ! कहां कहां की कौड़ी ढूंढ लाते हो ! मैने तो सिर्फ इतना पूछा था कि - सब ठीक है ना '!
         बेशक आप सर से पैर तक पट्टियों में लिपटे स्ट्रेचर पर जा रहे हों, पर- सब ठीक है ना - के जवाब में मुस्करा कर सिर्फ़ यही कहें, ' हां सब ठीक है, बस ज़रा कार के नीचे आ गया था ! चार पसलियों के साथ दोनों पैर टूट गए हैं , मगर जबान चल रही है ! ईश्वर की कृपा देखिए, नाक टूट गई मगर दांत नहीं टूटा ! " यकीन मानिये, इतना सुनकर भी सामने वाले की बेशर्मी एक मिलीमीटर कम नहीं होगी !
                                 दिल्ली की सड़कों पर आपको जगह जगह एक बोर्ड नज़र आएगा , - जब तक कोरोना की दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं ! घर से बाहर ना निकले! घर में रहें - सुरक्षित रहें -! ( कौन कमबख्त घर से निकलना चाहता है ! लेकिन एक शादीशुदा प्राणी से हलफ दिलवा दो कि घर में रहेगा तो सुरक्षित रहेगा !) ये उपदेश भी " सब ठीक है ना"- से अलग नहीं है ! 

          हमारे यूपी में कहते हैं, - सावन के अंधे को सिर्फ हरा हरा नज़र आता है -! सब ठीक है चच्चा ! झाड़े रहौ कलक्टर गंज !!  

Wednesday, 2 December 2020

" डायना ह्यूमन"

       सन  2020 ,,,,,,,,        (   अरब सागर के एक खूबसूरत सी बीच पर धूप स्नान करता एक आत्मनिर्भर नेता ! वो अभी अभी समंदर से नहाकर बाहर आया था, और अब धूप सेंक रहा था ! पास के सेवन स्टार होटल के बाहर खड़े नारियल के पेड़ पर बैठे एक मच्छर ने नेता को देखते ही उड़ान भरी और नेता की पीठ पर टेक ऑफ किया ! मच्छर कई दिनों का भूखा था और उसकी हालत कांग्रेस की तरह दयनीय लग रही थी ! उसने जी भर कर नेता का खून पिया ! अचानक मच्छर ने ऐसा महसूस किया जैसे उसने खून नहीं तेज़ाब पी लिया है ! वो घबरा कर उड़ा और पास के एक बबूल के पेड़ जा बैठा ! बैठते ही मच्छर कोमा में चला गया ! तभी पेड़ से गोंद बही और मच्छर एक इतिहास समेटे  "गोंद" में सुरक्षित हो गया !)

                          सन 2080
       जीव वैज्ञानिकों की एक खोजी टीम को साठ साल बाद गोंद में सुरक्षित वो मच्छर बरामद हो गया जो आज भी कोमा में था ! खोजी दल उसे लेकर लैब आए और फिर भारत के चोटी के तीन वैज्ञानिक आपस में सलाह करने लगे , डॉक्टर मंजीत सिंह बेंस का कहना था़," हमें प्री वर्ल्ड वॉर की बड़ी दुर्लभ जानकारी मिलने वाली है ! 2040 में हुए तीसरे वर्ल्ड वॉर में जब सब कुछ खत्म हो गया तो ये क्या खाकर जिंदा बचा ?"
     दूसरा युवा वैज्ञानिक डॉक्टर नज़ीर सिद्दीक़ी बोले " ये मच्छर आज के मच्छर से डिफरेंट है। इसके खून की जांच से पता चलेगा कि इसने किस जानवर का खून पिया था़ ! फिर ब्लड सैंपल से हमें क्रोमोसोम्स डेवलप करने में आसानी होगी "!
        जांच दल के मुखिया और सीनियर वैज्ञानिक डॉक्टर अजीत वर्मा ने फैसला किया ," जब डायोग्राफर मशीन जीव की संरचना दिखाए तो उसके मेमोरी डॉट्स को डेवलप करके ये ज़रूर पता करना है कि मच्छर ने जिस जीव का खून पिया था़, वो क्या खाता था ! कल एक प्रेस कांफ्रेंस का इंतजाम भी किया जाए "!
      तीनो वैज्ञानिक अपने काम में लग गए ।
,2040 मे हुए तीसरे विश्व युद्ध में आबादी के साथ साथ सभ्यता की रूपरेखा तक बदल गई थी ! बडे़ बडे़ वैज्ञानिक , राजनेता और कार्पोरेट घराने अपने अपने स्पेसशिप में बैठ कर अंतरिक्ष में चले गए थे ! दो साल बाद जब पृथ्वी पर परमाणु विकिरण खत्म हुआ, नए पेड़ पौधों ने ऑक्सिजन का उत्पादन और गुणवत्ता नियंत्रित किया तो स्पेस शिप पृथ्वी पर वापस लौटे ! अगले दस साल इंफ्रा स्ट्रक्चर खड़े होने में लगे ! दुनियां अब सतयुग के दायरे में थी।  देश और दुनियां की बच्ची खुची आबादी अपना अतीत ढूंढ रही थी ! इसी खोज में विश्व की नई महाशक्ति भारत के वैज्ञानिकों को साठ साल पहले का मच्छर हाथ लगा था ।
         अगले दिन पूरी दुनियां से मिडिया वाले दिल्ली आए हुऐ थे ! उनमें ज़्यादातर नई दुनियां के लोग थे़ । सबकी नजरें एक बडे़ स्क्रीन पर लगी थीं, जहां तीनों चोटी के वैज्ञानिक मच्छर को घेर कर खड़े थे ! उसके ब्लड सैंपल से क्रोमोजोम्स लेकर तीनों वैज्ञानिक अलग अलग मशीनों द्वारा जांच कर कर रहे थे़ ! सबसे पहले युवा वैज्ञानिक सरदार मंजीत सिंह चिल्लाए , " रब दी सौं, मैनू कदी ना बेख्या ऐसा जानवर !"
      " क्या मतलब" ? डॉक्टर अजीत ने पूछा !
" बॉडी डायोग्राफ़र मशीन के मुताबिक मच्छर ने कोमा में जाने से पहले जिस जीव का खून पिया था़, दिखने में वो हमारे पूर्वज इन्सानों जैसा है! पर उसकी खुराक़ डायनासोर से बड़ी है !"
   "क्या मतलब"?
" जाने  किस ग्रह से पृथ्वी पर आया था, इसके फेवरेट भोजन में कंद मूल या कढ़ी की जगह कमीशन खाने का सबूत है ! कैरेक्टर डाटाबेस की जांच से पता चला है कि ये मर्डर, रेप, करेप्शन और किडनेपिंग में इन्वॉल्व था ! क्या आप इस जीव के प्रोडक्शन का रिस्क उठायेंगे "?
   डॉक्टर अजीत के बोलने से पहले ही dr सिद्दीक़ी चिल्लाए , " खुदा की मार हो इस पर ! आखिर इस मासूम मच्छर ने इतना खतरा क्यो उठाया !"
       " अब क्या हुआ डॉक्टर ?"
  " इसका मेमोरी डॉट्स एक्टिव हो चुका है ! मैंने उसे इसके कैरेक्टर डाटा बेस से जोड़ दिया है! माय गॉड ! ये तो एक दर्जन हिंदू मुस्लिम दंगे करवा चुका है ! ये तो पूरी दुनियां के लिए खतरनाक है !" 
                " इसका निर्माण कर हम इसे म्यूजियम में रखने का रिस्क नहीं उठा सकते ! " डॉक्टर अजीत वर्मा बोले " ये नई सभ्यता को पनपने से पहले ही खत्म कर देगा । सारे क्रोमोसोम्स फ्रीज़ कर दो और मिडिया को बोलो कि हर कोशिश के बाद भी हम डीएनए को ऐक्टिव करने में नाकाम रहे ! बाई द वे , इस जीव को हमारे पूर्वज क्या कहते थे ?"
        " मेमोरी डॉट्स और कैरेक्टर डाटा बेस में इसे "नेता" की पहचान दी गई है "!
 "  नेता ! ओह गॉड, सो डेंजरस ! गुड बाय मिस्टर नेता , हमारी दुनियां को अभी किसी नेता की जरूरत नहीं है । हम अभी नफ़रत और हिंसा मुक्त दुनियां के निर्माण में लगे हैं । ब्वायज ! इसे सीज़ कर दो !"

    और,,,,,इस तरह नई दुनियां तबाह होने से बच गई !
       

Tuesday, 1 December 2020