Saturday, 7 November 2020

" अब किसी बात पर नहीं आती ! " (हँसी)

                   मैं जो भी कहूंगा, सच कहूंगा ! सच के अलावा,,, (मौका मिला तो काफ़ी सारा झूठ भी बोलूंगा!) यकीन मानों मैं हंसना चाहता हूं! ( कई लोग मेरे इस दुस्साहस पर हैरान होंगे !) पिछले चार महीने से बिलकुल हँसी नहीं आई ! हँसी के विलुप्ति के पीछे कांग्रेस या कोरोना का कोई हाथ नहीं है! बल्कि जब मार्च २०२० में कोरोना आया तो मैं हंस रहा था, -  बेटा  आ तो गया है अब बहुत बे आबरू होकर जायेगा -! आज कोरोना बड़ी साँसत में है! दुनियां के बड़े बड़े ताकतवर देश के नेता उसे सुनकर कांप रहे हैं, लेकिन यहां तो जूता पॉलिश करने वाला भी मास्क नहीं पहनना चाहता ! यहां कोई ये बिदाई गीत भी नहीं गा रहा है, " अब तो फूफा जी (ट्रंप) भी चले गए - कोरोना तुम कब जाओगे " !
             मई २०२० में आख़िरी बार हँसी आई थी, उसके बाद आत्मनिर्भर नहीं हो पाया ! पूरा जून बीस लाख करोड़ का इंतजार करता रहा! हंसना तो बहुत दूर, इतना सीरियस हो गया था कि ख़्वाब में भी कल्कुलेटर लेकर हिसाब लगाने लगता था कि इतनी आत्मनिर्भरता कहां कहां खर्च करना है! ऐसे में हंसना कौन कहे, मुस्कराने की भी फुरसत किसे थी !! अगले दो महीने प्रधान मंत्री मत्स्य पालन योजना में जाल डाल कर बैठा रहा ! इतनी भागदौड़ की कि रोना आ गया , प्रोजेक्ट रिर्पोट नहीं आई ! बार बार दिल कर रहा था कि अपने ऊपर हंसू, पर हलक सूखा हुआ था!
          नवंबर शुरू हो चुका है। मुद्रा और मनोबल दोनों पकड़ से बाहर हैं ! कल वर्मा जी समझा रहे थे कि आदमी को खुश रहना चाहिए ! खुश रहने से सेहत अच्छी रहती है ! ( वर्मा जी की सरकारी नौकरी है!) मैं भी चाहता हूं कि  हँसू और खुश रहूँ, पर कैसे ! हँसी तो मुंह से निकल कर जैसे पेट में गिर चुकी है ! दो तीन बार मुंह पीट कर देख लिया - कोई फायदा नहीं। गलाला करके देख लिया ! बलगम निकल गया, बेवफ़ा हँसी नहीं निकली! एक शेर बरबस जबान पर आ गया - 
पहले आती थी हाले दिल पे हँसी!
अब  किसी  बात  पर  नहीं आती !!
                          अतीत  हमेशा सुनहरा ही क्यों होता है ! ( कोई बतायेगा नहीं !) ' पहले देश सोने की चिड़िया थी ' ! ( तब शायद विकास की जिम्मेदारी नेताओं पर नहीं थी !) ' पहले दूध घी की नदियां बहती थी '! ( गाय भैंस पानी पीकर नदी में दूध छोड़ देती थीं!) अब क्या प्रॉब्लम है! आज भी देखिए - कलियुग जा रहा है , सतयुग आ रहा है! चारों ओर धर्मयुद्ध की गर्जना ! मंदिर मस्जिद, शादी ब्याह, फिल्म, विज्ञापन  पटाखे  सब का  "डी एन ए" टटोला जा रहा है ! इसके बावजूद अगर किसी को हँसी नहीं आती तो वो अपराधी है या विद्रोही ! मुझे अपना ही एक शेर राहत देता है ,-
हर एक ज़ख़्म पर हंसने का हुनर पैदा कर !
वगरना   रोने  के  दुनियां  में  सौ  बहाने हैं !!
          तो,,, ताज़ा नवैयत ये है कि अब मुझे बिलकुल हँसी नहीं आ रही ! कोई  "हकीम लुकमान" या "वैद्य धन्वंतरि" का नुस्खा काम नहीं आया तो मैंने चौधरी को अपनी दिक्कत बताई, - मुझे हँसी नहीं आ रही ?"
     " पर माेय रोना आ रहो ! कूण सा बुरा बखत था जिब मैं थारे धौरे आकर बसा । कती हंसने कू तरस गयो "!
    " मुझे तो छे महीने से हँसी नहीं आ रही ! क्या करूं, कहां जाऊं"? 
       " मेरे बकाया पैसे लौटा दे, उधारी का बोझ हटते ही दोनो हंसने के लायक हो ज्यां गे "!
       
        दो दिन से लगातार छींक आ रही है ! कल से खांसी, जुकाम और बुख़ार भी है ! ये सारे लक्षण "आत्मनिर्भरता" वाले हैं! दिल को समझा रहा हूं, -' ट्रंप की हार को दिल पर मत ले ! वो हार कर भी मुस्करा रहे हैं और तेरी तो अठन्नी भी  नहीं  गिरि, फिर भी शक्ल से ऐसा लग रहा है जैसे तुम्हारा ही बैंक बैलेंस लेकर विजय माल्या भागा हो।"  दिल बेवजह मायूस है और हँसी जैसे कुएं में गिर गई है ! अतीत कितना सुंदर था जब बात बात पर हंस लेते थे ! अब तो शायर कहते हैं -,

या  तो  दीवाना  हंसे  या  तू जिसे  तौफीक़ दे!
वरना इस दुनिया में आकर मुस्कराता कौन है !!

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