फरवरी में जब तुम आए तो जनता आश्वस्त थी कि अच्छे दिन की तरह तुम भी , सबेरे वाली गाड़ी से , चले जाओगे ! तब कौन जानता था कि तेरा आना मंहगाई की तरह स्थायी होगा ! विरोधी लहते हैं कि उस वक्त तुम और ट्रम्प साथ साथ आए थे! ट्रंप चले गए - कोरोना तुम कब जाओगे ! मार्च में हमारे नेताओं ने कहा था कि गर्मी में तुम्हारा प्रकोप होगा ! तब मुझे उनकी भविष्यवाणी नहीं समझ में आई थी ! बाद में पता चला कि मरकज वाले तुम्हे थैलों में भरकर लाये थे ! ( इसका पता पहले मींडिया को लगा बाद में केजरीवाल को ! ) गरमी जैसे जैसे बढ़ी वैसे वैसे प्राइवेट और सरकारी डॉक्टर तेजी से आत्मनिर्भर हो रहे थे ! तुम दीर्घायु हो रहे थे और लोग बेरोजगार , पर देश आगे बढ़ रहा था !
तुम्हारा डर बढ़ता गया और लोग बेखौफ होते गए ! तुझे जुलाई अगस्त में ही चले जाना चाहिए था! तब तेरी वापसी सम्मान जनक होती ! अब तू मातम करता हुआ चीन जाकर बतायेगा कि - बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे में हम आए ! अबे देख किया ना, तुझे कैसे तवायफ की तरह नचा रहे हैं ! कहां कहां तेरा इस्तेमाल हो रहा है, और तू मना भी नहीं कर सकता ! तेरी वजह से कितने घर में मुहर्रम उतर आया और कितनो के घर दीवाली ! तुझे भी पता नहीं होगा कि पांच रुपए वाला फेस मास्क इतना चमत्कारी हो चुका है ! भारतीय पुलिस तेरी कुंडली बना रही है! वो सड़क पर कार रोक कर फेस मास्क चेक कर रही है! नाक से नीचे खिसके फेस मास्क
को "जमाती" समझा जायेगा ! दो हज़ार का चालान !! दे दाता के नाम - तुझे " कोरोना" समझे !
तू भी गज़ब का है ! बिहार के इलेक्शन के दौरान कोमा में चला गया ! जनता और जनार्दन दोनो थूथन उठाए विकास बटोरते रहे ! चुनाव में फेस मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की ज़रूरत इसलिए नहीं पड़ी, क्योंकि बड़े बड़े कोरोना चुनाव प्रचार में व्यस्त थे ! तुम्हें बता दिया गया था कि उधर मत जाना - दिशाशूल है ! सेंसेक्स नीचे चला गया और तुम कोमा में ! दिल्ली वाले इस गलतफहमी में स्वेटर खरीदने निकल पड़े कि पटाखे भी फोड़ लिए, अब तो कोरोना पक्का मर गया होगा ! ( हमें तो सदियों से पराली और प्रदूषण की आदत है !) अब तो ' छठ ' भी निकल गया ! कोरोना तुम कब जाओगे !
लो जी, सब निपट गया, अब फिर तुम्हारी ज़रूरत पड़ गई , अत: साजन आन मिलो ! सुना है कि फिर तुम्हारी खुमारी टूट चुकी है ! दिल्ली में अभी चुनाव दूर है, इसलिए केजरीवाल जी दुबारा लॉक डॉउन की सोच रहे हैं ! कोरोना दद्दा ! मान गया तुम्हें, चुनाव से डरते हो - चुन्नीलाल से नहीं ! बाज़ार में विकलांग आलू भी पचास रुपए किलो बिक रहा है, और जनता बगैर दिहाड़ी के आत्म निर्भर हो रही है ! बेकारी और गुर्बत के इसी रहस्यवाद से कबीर पैदा हुऐ थे। अब तो बरसे कंबल भीगे पानी का छायावाद समझ में आ गया होगा ।
गो कोरोना गो ! चीनी जनता तेरी याद में गा रही होगी, - अबहूं ना आए बालमा , सावन बीता जाए!
हो सकता है इटली, फ्रांस अमेरिका आदि देश तुझे भूल जाएं , पर हम तुझे याद रखेंगे ! याद रखेंगे कि कोई दुश्मन देश से आया था, जिसकी नस्ल हमने बदली थी ! तू हमें इसलिए याद करेगा कि पश्चिमी देश तुझसे डरते थे और तू हमसे ! हमारे ठेके पर लगी भीड़ देखकर तुझे हमारे स्टेमिना का अंदाजा हो गया होगा ! तो,,, मेरे बारे में क्या ख्याल है! नया साल दिसंबर को लेकर चिंतित है! सारे सांताक्लॉज इस बार बिहार में थैला खाली कर आए हैं ! अब बांटने के लिए तू ही बचा है ! इब हट जा ताऊ पाछे ने ! विकास आने दे ! अभी गनीमत है, सब्र मेरा - अभी लबालब भरा नहीं है !
घणा खून पी गया ! इब लिकड़ ले बावली पूंछ !!
देर ना हो जाए कदी देर ना हो जाए !!
बहुत शानदार
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