Tuesday, 10 November 2020

।। "खांसते रहो !"

             आदमी की फितरत देखिए, मरना ही नहीं चाहता ! बीमार होने पर आसानी से अस्पताल नहीं जाना चाहता और कोरोना को मौसमी वॉयरल बताकर डॉक्टरों से बचना चाहता है। विकास की तरह बीमारी भी - हरि अनन्त हरि कथा अनंता - है। डॉक्टर और केमिस्ट की  जन्नत का दरवाजा इसी दोजख से होकर जाता है। कितने  "ज़मीनी भगवान" ( डॉक्टर) तो अपनी बेटी का रिश्ता तक बीमारी का मुहूर्त देखकर तय करते हैं , " लड़के वाले जल्दी मचा रहे थे,पर मैंने शादी की तारीख़ दिसम्बर से हटाकर जून कर दी!  मई जून खांसी, ऐक्सिडेंट, टीबी और हैजा का सीज़न होता है - यू नो !"
        खांसी से पीड़ित लोग अमूमन उतना नहीं घबराते जितना सुनने वाला घबराता है । क्या पता टीबी ना हो ! खांसी की वैरायटी बहुत है। डॉक्टर को भी उतना ज्ञान नहीं होगा जितना यूपी वालों को होगा ! सरसों के खेत में उड़ता हुआ भुनगा गले में घुस जाए तो यूपी वाले ऐसे खांसते हैं गोया गले में पेड़ उग आया हो ! हुक्का पीने वाले बुजुर्ग खांसने पर उतर आएं तो पूरे मोहल्ले का रतजगा करा दें! इतने ज़बरदस्त तरीके से खांसते हैं कि आंतों में रूकी हुई गैस भी ख़ारिज हो जाती है ! हमारे गांव के गियासू भाई बीड़ी के चेन स्मोकर थे, ( खुदा उन्हें जन्नत दे!) जब खांसना शुरू करते तो मुंह के अलावा भी कई जगह से आवाज़ आती थी !
         कुछ लोगों ने खांसने में भी काफी नाम कमाया है! इन्हें अगर वरीयता क्रम में रखा जाए तो  'केजरीवाल' जी की खांसी को गोल्डमेडल मिलेगा ! क्या खांसी थी, उड़ी बाबा! लोग निरूपा रॉय की खांसी भूल गए ! जब खांसने पर उतारू हो जाते तो टीवी देख रहा अभिभावक बीबी को डांटता था, "  बच्चों को टीवी से थोडा़ दूर बिठाया करो "!  उन्होंने खांस खांस कर पूरे देश को इमोशन में ला दिया था ! उनकी खांसी से घबराकर दिल्ली के वोटरों ने  डिसाइड किया कि जिताने से ही जान छूटेगी ! और,,,, जीतते ही उन्होंने मफ़लर और खांसी को अलविदा कर दिया ! अब उनकी खांसी अच्छे दिन की तरह नदारद है और दिल्ली वाले खांस रहे हैं ! विरोधियों का दिल पराली की तरह जल रहा है और केजरीवाल जी मुस्करा कर प्रदूषण पर झाड़ू फेर रहे हैं! आंकड़ों में पराली खाद में बदल रही है और खांसी मुस्कराहट में ! खुशहाल दिल्ली फेस मास्क लगाए आज भी खांस रही है!
         कुछ खांसी सामयिक होती है, कुछ अल्कोहलिक और कुछ मौसमी! एक  "कुकुर खांसी" भी होती है जिसकी दवा है - कुकर सुधा !( नाम से ऐसा लगता है कि इसका आविष्कार  किसी कुत्ते ने किया होगा !) लेकिन इसके इतर एक रहस्यमय खांसी ऐसी ऐसी भी है जो सनातनकाल से चली आ रही है, और आजतक उसका कोई इलाज नहीं है ! अगर आपके याददाश्त का प्लग स्पार्क नहीं कर रहा तो याद दिला देता हूं!
                ये रहस्यमय खांसी की बीमारी हिन्दी फ़िल्मों के गरीब हीरो की विधवा मां को होती थी ! याद कीजिए, गरीब गांव का बचपन से गरीब और अनाथ हीरो ! हीरो की खांसती हुई अम्मा ! पास में सनातनकाल से बनता आ रहा एक बांध ! ( पता नहीं उस बांध का ठेकेदार कौन है !) हर तीसरी फिल्म में माता जी खांस रही हैं और बांध पर डायनामाइट फट रहा है! हीरो पीपल के नीचे वाले गुरुकुल में पढ़ कर भी डायरेक्ट दरोगा हो रहा है! दर्शक सोच रहे हैं कि अब हीरो माता जी के बलगम की जांच ज़रूर कराएगा , पर हीरो इतना हयादार नहीं है वो माता जी के लिए खांसी की दवा लाने की बजाय हीरोइन से इश्क कर रहा है।  खांसी और ज़ालिम जमींदार के बीच में माता जी ऑक्सीजन पीकर खड़ी हैं ! ( मैंने उन्हें किसी फिल्म में खाना खाते नहीं देखा !)

        जब से कोरो ना आया है, हर बीमारी में उसी की छवि नज़र आती है ! तीन दिन पहले  जुकाम हुआ,फिर बुखार और फिर गला ख़राब ! मित्रों ! ये किस बीमारी के लक्षण हैं ! मुझसे आजिज आए दोस्तों की खुशी के लिए बता दूं कि तीन दिन से खांसी भी आ रही है ! कोरो ना सोच कर ख़ुश होने वाले मित्र मुगालते में ना रहें ! आज मैं बिलकुल ठीक हूं ! दर्द और बुखार दोनों ठीक हो चुका है ! क्या कहें -  कुछ लोगों की बददुआ में एंटी बायोटिक की तासीर होती है !
          खांसते रहिए !!     ( सुलतान भारती)

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