Sunday, 3 March 2024

(व्यंग्य 'चिंतन') झुरहू चच्चा आया चुनाव

(व्यंग्य चिंतन)
"झुरहू" चच्चा आया चुनाव 

       मार्च आ गया ! पहले मार्च में बसंत आया करता था , आजकल 14 दिन पहले वैलेंटाइन आने लगा है ! इधर 2024 में चुनाव की आहट आ रही है! वैसे चुनाव का मौसम भी किसी वैलेंटाइन से कम नहीं होता! सभी दलों के नेता वोटर को प्रेयसी की तरह मनाने में लगे होते हैं, - लेलो चंपा चमेली गुलाब ले लो-'! कुछ उम्मीदवार तो कुंडी खटखटा कर  याचना कर रहे होते हैं,- खोलो प्रियतम खोलो द्वार !' कोई कोई तो वोटरों को मनाने में हद ही कर देता है,- ' मैं तेरे इश्क़ में मर न जाऊं कहीं, तुम मुझे आजमाने की कोशिश न कर- ,,,अबकी बार बेड़ा पार,,,!'  अगली गली में कोई तारणहार फेरी लगाते हुए आवाज़ दे रहा है, - सोना लई जा रे ! चांदी लई जा रे !!   ठर्रा लई जा रे - मुर्गा लई जा रे -!!" कोई बिलकुल लेटेस्ट पैकेज लाया है- ' वोट दे दो, सतयुग ले लो ! कलियुग में काम आएगा-"!
    आम के पेड़ों से पहले पार्टियों के घोषणापत्रों में बौर नज़र आने लगे हैं! उनके 'बौर' देख कर आम के पेड़ सकते में है,- जाने इस बार उन्हें बौर मुक्त आम की फसल का फरमान न सुनाया जाए! उधर अमराईयों में कोयल सहमी बैठी है, अमृतकाल में कौवों ने अमराई पर  कब्जा कर रखा है! अब वहीं कूक रहे हैं और कोयल की घिग्घी बंधी  है। उसे को देखते ही कौवे  छेड़ने लगते हैं,-' आजा मेरी डाली पे बैठ जा-' ! अमृत काल के कौवों को महिला आयोग का भी खौफ नहीं है!
          आम चुनाव की तारीख घोषित होते ही गावं के झुरहू की मुसीबत शुरू हो गई! सुबह दिशा मैदान से दातुन करते हुए जब झुरहू अपने खपरैल वाले घर के दरवाज़े पहुंचे ही थे कि सिहर उठे! खादी के झकाझक सफेद कुर्ता-पायजामा में दो गनर के साथ एक नेता जी खड़े थे! ग्राम प्रधान को साथ देख कर झुरहू  कांप उठा ! जाने क्या अपराध हुआ है! मगर पास पहुंचते ही प्रधान ने मुस्कराते हुए नेता से कहा,-' लीजिए आपकी खोज पूरी हुई, ये हैं झुरहू काका ! गाँव के सबसे गरीब दलित !! घर में दो  वोट हैं! पत्नी भी मजदूरी करती है! दोनों का नाम मनरेगा में दर्ज है! आत्मनिर्भर और जागरूक नागरिक हैं , सर्दी में भी जल्दी जाग जाते हैं-! सादा जीवन उच्च विचार-'!
      नेता जी ने आगे बढ़ कर झुरहू के पैर छू कर उन्हें ऐसे देखा, गोया कसाई बकरे को देख रहा हो! झुरहू कांप उठे! उनकी पत्नी दरवाज़े की ओट में  घबराई हुई खड़ी  थी , नेता जी मुस्कुराते हुए कह रहे थे,-' आज मैं  ( मानो न मानो) तुम्हारा मेहमान हूँ ! अभी तो प्रचार मे जा रहा हूँ, रात में तुम्हारी कुटिया में रुकेंगे-'! फिर प्रधान की ओर मुड़कर बोले,- ' इसे ठीक से समझा देना ! मुझे गंदगी बिल्कुल पसंद नहीं ! मीडिया  भी  आ  रही  है ! इसकी शक़्ल तो देखो, ऐसा लग रहा है कि  मैं वोट नहीं इसकी किडनी मांग रहा हूँ-'!
         प्रधान ने झुरहू को धमकाते हुए समझाया, - ' रोनी सूरत मत बना, प्रदेश के मंत्री जी हैं! उनके लिए खाना और मिनरल वाटर बाहर से आ रहा है!  ऐसा पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन खाने से तो तुझे डाईरिया हो जाएगा, इसलिए कैमरे के सामने तू सिर्फ खाली पेट डकार मारते रहना ! तेरा नाम उज्जवला योजना में डलवा दूंगा !'
    झुरहू घबरा कर घर के अंदर चला गया! नेता जी ग्राम प्रधान के साथ पदयात्रा करने लगे! झुरहू से ज्यादा उनकी पत्नी शिवराजी घबराई हुई थी,-' का होई अब?' ( अब क्या होगा !)
    " ऊ रात में यहीं सोयेगे-'!
' मैं तो दोपहर मे ही घर छोड़ दूंगी! रात में घर में नहीं रह सकती ! ई बड़े लोग हम लोगन का बर्तन समझते हैं-'!
    झुरहू कुछ कहता, कि उसके पहले ही दरवाज़े पर शोर होने की आवाज़ आई, झुरहू घबराकर बाहर आया तो सकते में आ गया! दरवाज़े पर एक हाथी खडा झूम रहा था! हाथी पर एक नेता जी बैठे थे! पीछे पार्टी के समर्थक नारा लगा रहे थे------
सर्व समाज का सच्चा साथी !
नीला   झंडा -  ऊंचा   हाथी !!
          नेता जी हाथी से उतर कर झुरहू के गले मिल कर बोले-' आज हम आपकी कुटिया पर बिताएंगे -'! 
झुरहू फिर धर्म संकट मे थे ! उन्होंने बेबसी से हाथी की ओर देखा ! हाथी ने चिंघाड़ कर सर हिलाया, गोया झुरहू को चेतावनी दे रहा हो कि- 'हाँ मत करना ! इस नेता का रिकॉर्ड ठीक  नहीं है-!'
    अभी झुरहू कोई फैसला ही नहीं कर पाए थे कि सड़क की तरफ से शोर सुनाई पड़ा और थोड़ी देर में एक सज्जन सायकल चलाते हुए सामने से आते नज़र आए ! पीछे पीछे समर्थक नारा लगा रहे थे-' "हाथी" "कमल"  बेकार है!                   "सायकल" ही  दरकार है !!
     नारा सुनते ही हाथी आग बबूला हो गया ! पहले तो उसने एक जोरदार चिघाड़ लगाई ! दहाड़ सुनते ही सायकल चलाता उम्मीदवार दूर ही रुक गया! पीछे पीछे नारा लगाते समर्थक भी चुप हो गए ! इसके बाद हाथी ने अपने शरीर को ज़ोर ज़ोर से हिलाना शुरू किया ! खतरा भांप कर महावत पीठ से कूद कर बगल के पेड़ पर जा बैठा! नेता जी ने भी कोशिश की मगर डाल हाथी की पीठ से थोड़ी दूर थी ! तभी हाथी ने सूंड उठा कर पीठ पर खड़े नेता जी की धोती पकड़ कर खींच  ली! 
       चुनाव प्रचार के पहले चरण मे ही नेता जी का चीर हरण हो गया ! नेता जी नें हाथी की पीठ से झुरहू के घर पर छलांग लगाई और नरिया कपड़ा गिराते हुए आगन में जा गिरे! तभी झुरहू की पत्नी सियाराजी 2 भेली देसी गुड़ लेकर घर से निकली और क्रुद्ध हाथी के सामने जाकर बोली, - ' गणेश बाबा !अब गरीब का घर ढकेलबो का !'
      और हाथी का गुस्सा जाता रहा! वो चुपचाप गुड़ की भेली खाने लगा! सिया राजी ने अपने पति झुरहू से कहा,- 'अंदर जा कर अपनी धोती नेता जी को दे दो! उन्होंने नीचे कच्छा भी नहीं पहना है-'!
         झुरहू ने देखा कि हाथी नेता जी की छीनी हुई धोती पर खड़े होकर पेशाब कर रहा था ! वो सोचने लगा कि अगर धोती की जगह नेता जी हाथी की पकड़ में आते, तो,,,,,,!!

    हर घर से गुड़ की भेली निकलने लगी थी !!


       


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