Tuesday, 3 May 2022

बचपन के घरौंदे में रखी " ईद'' !

                "बचपन के घरौंदे में रखी ईद "!

       आज़ ईद है ! मुस्लिम बहुल इलाकों में लोग तीन दिन तक ईद मनाते हैं! दिल्ली का शाहीन बाग ऐसे ही इलाके में शुमार होता है ! इस वक्त रात के साढ़े नौ बजे है! शाहीन बाग की बडी मस्जिद में ईद की नमाज़ सुबह सात बजे हो चुकी है! लोगों के ज्यादातर मेहमान और दोस्त अहबाब पकवान डकार कर जा चुके हैं,फिर भी आज़ ईद है! कल चांद रात को शाहीन बाग की रोशनी, रश और रौनक देखने लायक थी। मेन रोड, चालीस फुटा मार्केट और हाई टेंशन रोड पर खरीदारो की सुनामी आई हुई थी ! नानवेज के शौकीनो का नया मरकज है शाहीन बाग ! चांद रात तड़के तीन बजे तक शाहीन बाग खरीदारों से गुलज़ार रहा ! 
              अभी एक घंटे पहले जब मै बॉल्कनी में बैठा गांव में फ़ोन मिला रहा था तो मेरा बिल्ला निम्बस पास आकर अपना शरीर मेरे पैर से रगड़ने लगा ! ऐसा वो तभी करता है जब उसे नीचे घूमने जाना होता है या मेरे साथ खेलना होता है ! मैं उसे लेकर बाहर गली में आया जहां तीन आवारा कुत्ते बैठे हुए थे ! निम्बस को देख कर कुत्तों का मुखिया धीरे से गुर्राया, जैसे कह रहा हो - अबे मर्द बिल्ला है तो कभी अकेले निकल कर दिखा ! तुझे रसगुल्ला समझ कर निगल जाऊंगा "! बाहर मैने इन कुत्तों के लिए मिट्टी के एक बर्तन में पानी भर कर रखता हूं ! कुत्ते जानते हैं कि ये नेक काम कौन करता है, तभी वो बिल्ले को अब तक झेल रहे हैं ! आज सुबह गैंग का मुखिया कुत्ता मुझे देख कर पूंछ हिलाते हुए हल्के से गुर्राया था, मुझे लगा कि पूछ रहा है, - '  गोद में लेकर घूमना ही है तो किसी सेलिब्रिटी को चुनो भ्राता श्री ! मेरे बारे में क्या ख़्याल है !! '
         तीन बजे मेरे अजीज़ दोस्त ( इब्राहीम) का गांव से फोन आया ! वो ईदगाह से लौट कर फोन कर रहे थे ! एक घंटा लम्हे की तरह निकल गया ! हम बचपन की खूबसूरत यादों को दिल और दिमाग़ से खुरच खुरच कर वर्तमान के खुरदरे दस्ताबेज की विरासत बनाते रहे ! एक  ईद आज़ थी जो तमाम व्यूह  से घिरकर दो साल बाद लोगो को हासिल हुई थी ! पिछली दो ईद की सिवइयां कोरोना पी चुका था ! ईद राष्ट्रीय पर्व पर है, इस बार का रमजान - रामनवमी, पथराव, हनुमान चालीसा और लाउड स्पीकर से ओतप्रोत रहा ! अज़ान और हनुमान चालीसा के बीच खड़ी ईद अपनी शिनाख्त ढूंढती हुई  सकते में खड़ी थी।
      एक मेरे बचपन की ईद थी ! रोज़ा बेशक नहीं रखते थे पर ईद की खुशी पर दावा हम बच्चों का ही था ! अब्बा और अम्मा दोनों से ईदी लेते थे और पूरी कोशिश होती थी कि ईदगाह में हमें अपना पैसा ना खर्च करना पड़े,और अब्बा हम दोनों भाईयों की पसंद की हर चीज़ अपने पैसे से खरीद कर घर ले आएं। अब्बा कलकत्ते में नौकरी करते थे और हमारा खाता पीता परिवार था । ईद के रोज नया कुर्ता पजामा पहन कर हम फूले न समाते ! ईदगाह जाते वक्त हम सभी हम उम्र बच्चे आपस में इंक्वायरी कर पता कर लेते थे कि किसके पास सबसे ज्यादा ईदी है ! उस दिन हर  कोई मेरा बेस्ट फ्रेंड साबित होने की कोशिश करता था! ( ईद के दूसरे दिन उनके तेवर अलग होते थे! ) तारा की अम्मा के ठेले पर लगा टिक्की चाट  हमारी सबसे फेवरेट चाट थी ! उनकी मिर्च मसाला  वाली चाट ज़हर से कुछ डिग्री नीचे थी ! खाते ही आंख और मुंह से गंगा जमुना छूट जाती थी !
        चांद रात को हम खुले छत पर बातें करते हुए देर रात तक अगले दिन मिलने वाली ईदी की बातें करते रहते ! तब बिजली नहीं थी लेकिन रिश्तों में गन्ने जैसी मिठास थी! ईद से दो दिन पहले ठाकुर अभिलाष सिंह के हाता से मेंहदी की पत्तियां तोड़ कर लड़कियां लाती, ताकि हाथ में मेंहदी लगाई जाए! अभिलाष सिंह हाथी नशीन जमींदार थे! तब कॉस्मेटिक मेहंदी कहां थी !  ईदगाह में दो तीन रुपए में हम अपने सपनों की कायनात खरीद लेते थे! घर से कारूं का ये खज़ाना जेब में डाल कर हम जब ईदगाह के लिए रवाना होते तो अम्मा नसीहत देती, -" फ़िज़ूल मत खर्च करना "! उस महान गुरु की वही नसीहत आज़ मैं अपने बेटे को देता हूं!
         ईद हो या दीवाली, खुशियों पर बच्चों का ही आधिपत्य होता है ! हम जाने क्यों बड़े होते हैं? बड़े होते ही हमारे होठों से मुस्कराहट और आखों से नींद छिन जाती है ! अपनी पलकों में खुशियों की सारी कहकशां भर कर जब बच्चे सो रहे होते हैं, तो उनके मां बाप अगले दिन भी यही खुशी बरकरार रखने के लिए जाग रहे होते हैं ! हम हमेशा अपने मां और बाप के उस फिक्र के कर्जदार रहेंगे! 
         आज बेटे को ईदी दिया तो मुझे अपने वालिद और वाल्दा याद आ गए ! वालिद साहब पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन अंग्रेजों के शासन में सबको नौकरी मिल जाती थी! मेरी मां ने अपने चारों बेटों को पढ़ाया! उन्होंने अपनी सारी खुशियों को हमारे ख्वाबों में पिरो दिए ! शायद दुनियां की हर मां ऐसी ही होती है ! वो हिन्दू और मुसलमान नहीं होती !
     आखिरी लाइन लिखते लिखते मैं जैसे ईद के रोज अपने बचपन में खड़ा था - मां के सामने ! लगा जेसे मां कह रही हो, -  "जिम्मी ! (मेरा प्यार का नाम) सबको सलाम करना, और  फिजूल खर्ची मत करना '' !

     फिर,,,,फिर मैं बड़ा हो गया, और आज तक वो ईद पलट कर दोबारा  नहीं आई! कभी नहीं !!

          ( सुलतान भारती)

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