Monday, 27 December 2021

"सूर्योदय"

                     " सूर्योदय"

(गोंडवाना आदिवासी जीवन पर आधारित फिल्म)

      मूल लेखक,,,,,,,,, अभिलाष

          रूपांतरित भावरूप एवम संवाद

                   सुलतान  भारती


          (ताकि सनद रहे  ( Disclaimer))
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(फिल्म की कहानी पूर्णतया काल्पनिक है इसमें फिल्माए गए  कथा,पात्र, नाम ,स्थान, संवाद या जीवन शैली का किसी जीवित व्यक्ति विशेष या वर्तमान स्थान अथवा सामाजिक परंपरा से कोई लेना देना नहीं है ! )

इंट्रो ,,,,,,,
      ( बैक ग्राउंड में एंकर की भारी आवाज़ गूंजती है!) जब एक बड़े धमाके के बाद हमारी पृथ्वी अपने वजूद में आई तो ये प्लैनेट आग का एक धधकता गोला था !)
     ( विजुअल् शुरु ,,,,,, कैमरा आग सी धधकती और अपने ऑर्बिट पर घूमती पृथ्वी पर फ़ोकस होता है ! पार्श्व में एक धीमी संगीत के साथ एक गीत उभरता है ! गीत के स्वर के साथ साथ पृथ्वी का स्वरूप बदलता जाता है!)
गीत,,,,,,,, 
पृथ्वी थी एक आग का गोला !
नर्म   हुई   फिर  थोडा  थोडा !!
 
फिर आकाश में बादल  आए!
जानें  कहां   से  पानी  लाए !

पर्वत ने जब  ली अंगड़ाई !
नन्हीं नदियां जमीं पे आई !!

बढता   पानी   बना  समंदर !
आग छुप गई ज़मी के अंदर!!

जंगल  फैले  जीवन  उपजा !
जिधर देखिए सब्जा सब्जा !! 

पृथ्वी पर फिर मानव  आए !
रिश्ते  बस्ती  मजहब लाए !!

नई   सभ्यता की पहचान !
जंगल का  दुश्मन  इंसान!!

शहरों  में   हैवान  बढ़े !
जंगल  में इंसान दिखे !!

जल, जंगल -जन जीवन की ! 
चली  कथा " सूर्योदय " की !!


 ( जंगल की खूबसूरत सुबह। ज़मीन और पहाड़ियों के सीने पर फैला हुआ जंगल! जहां तक नज़र जाती है, सागौन के कीमती पेड़ों का अंतहीन सिलसिला !! वातावरण में पक्षियों के चहचहाने की समवेत आवाजें जंगल को जगाते हुए !! प्रदूषण मुक्त प्राकृतिक सौंदर्य की अनुपम छटा दिखाता हुआ camera पहाड़ी नदी पर फोकस होता है , को जंगल के बीच से होकर बह रही है! प्रातःकाल के सूरज की सुर्ख रोशनी ने नदी की निर्मल धारा में जैसे सुनहरा रंग घोल दिया हो !
      अचानक नदी की सतह को चीरता एक युवती का चेहरा उभरता है ! वह गर्दन को झटका देती है तो उसके काले लंबे बाल पीठ से मूव करते हुए उसके सीने पर फैल जाते हैं ! युवती सूरज की तरफ़ मुंह करके हाथ जोड़े खड़ी है ! कमर तक पानी में खड़ी युवती की पीठ और कंधो  पर  "गोदना" गुदा है !
                          कैमरा पीछे हटता है तो युवती की तीन और आदिवासी  सहेलियां पानी में नहाती नज़र आती हैं ! अचानक उनमें से एक ( पार्वती )आगे बढ़ कर सौंदर्य वर्धक काली मिट्टी से दुर्गा की पीठ साफ करने लगती है !)

Scen  2
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

लोकेशन,,,,,, पहाड़ी नदी
इफेक्ट ,,,,,,,,,  सुबह
पात्र (कैरेक्टर) ,,,,,, दुर्गा, पार्वती, यमुना  आदि                                   आदिवासी युवतियां !

पार्वती        ( पीछे से हाथ बढ़ा कर लाल चूड़ियों से भरे दुर्गा के दोनो हाथ ऊपर उठाती है । दुर्गा धीरे धीरे पार्वती की ओर मुड़ती है ! उसके गोरे चेहरे पर मुस्कराहट है और  कमर से ऊपर की ओर नाभि तक गुदना गोदा हुआ है ! दुर्गा मुस्करा कर पूछती है !)

दुर्गा                काए पार्वती ! का देखा थौ बहन ?
जमुना   (दूसरी युवती ) तोला पसंद हस ई लाल चूड़ी                  का ! मड़ई तौ ला दूं का ?
पार्वती   ( दुर्गा की चूड़ियों पर हाथ फेरते हुए ) अरे                    नाहीं,  ई लाल चूड़ी तौ हमर बहनी के हाथ मा                दमके बस !
          लड़कियों के हंसने की आवाज़ उभरती है ! कैमरा पुल बैक होता है तो गांव की कुछ और लड़कियां नहाती नज़र आती हैं ! किनारे एक बूढ़ी आदिवासी महिला भी बैठी नज़र आ रही है ! पास में युवतियों के घड़े भी रखे नज़र आ रहे हैं !)

दुर्गा।     ( पार्वती को बाहों में भर कर प्यार करती हुई)                मोरी सबसे प्यारी सहेली हस ! तोरा खातिर                  सब कुछ दे सक थौं !
डोकरी    (बूढ़ी औरत आवाज़ देती है ) काए रे  छोरिन् ! हो गई हंसी ठिठोली, तो गगरी में पानी भर कर चलो !
     ( सारी युवतियां पानी भरकर कमर और सर पर मटका रखकर पगडंडी के रास्ते घने जंगल की ओर बढ़ती हैं ! कैमरा लॉन्ग शॉट में उन्हें जाते हुए फोकस करता है !)

Scen 3
,,,,,,,,,,,,,,,
लोकेशन
इफेक्ट
कैरेक्टर

Friday, 24 December 2021

(बही खाता) " तमसो मा ज्योतिग़मय"

(व्यंग्य चिंतन)
               "तमसो मा ज्योतिर्गमय"

       अभी  ताज़ा मामला है, हमारे पड़ोस के बुद्धिलाल जी ने अपनी प्रेमिका को लेकर  एक मोटी किताब लिख डाली  -' रात के 12 बजे"- ( दरअसल इक तरफा प्यार में भूसे की तरह सुलग रहे बुद्धिलाल जी ने एक रात दीवार कूद कर अपनी प्रेमिका को उसके घर में जा दबोचा ! लेकिन अंधेरे की वज़ह से टार्गेट उल्टा पडा, रज़ाई के नीचे प्रेमिका की जगह प्रेमिका की अम्मा थीं!) मामला ठंढ़ा होने पर बुद्धि लाल ने एक प्रेमकथा लिख डाली -'रात के 12 बजे' - !  लेकिन बौड़म से सीधे बुद्धिजीवी होकर भी वो संतुष्ट नहीं हुए ! अब वो अपनी पांडुलिपि प्रकाशित करवाना चाहते हैं  ताकि दुनियां जान ले कि एक और  'कालिदास' कुल्हाड़ी लेकर साहित्य की डाल पर  बैठ गया है। आज कल वो प्रकाशक खोज रहे हैँ !  उन्हें मशहूर होने की जल्दी है ! एक महीने  शहर में जूते घिसने के बाद  उन के जोश और गलतफहमी का इंडीकेटर ज्वार से भाटा तक आ गया। शहर में प्रकाशक 'आपदा' की तरह प्रचुर मात्रा में थे , पर फ्री में किताब छापने वाले ' अवसर ' की तरह गायब  थे ! इस नवोदित लेखक और बरामद प्रकाशक के बीच एक दिन कुछ ऐसा संवाद शुरू होता है, -' मैं अपनी किताब छपवाना चाहता हूं "!
          " पहले कभी छपे हो?"
   " ये मेरी पहली किताब है! "
"ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है ! मैंने पूछा , पहले कभी छपे हो ?"
       " नहीं सर !" बुद्धिलाल का कॉन्फिडेंस पिघलने लगा !
" तो मैं भी नहीं छाप सकता ! मैं नए घोड़े पर पैसा नही लगाता "!!
     भरी दुपहरी में लेखक की प्रतिभा का टाइटैनिक डूबता नजर आया ! एक सौ नब्बे पेज की पांडुलिपि पहली बार गोबर्धन पहाड़ जैसी वजनी लगी ! उसने अपने टूटते ख्वाबों का कचरा आख़री  बार सहेजने की कोशिश की, -' हर लेखक कभी न कभी नया घोड़ा होता है सर ! एक बार काठी लगा कर तो देखो "!
      " एक बार मैंने जो कमिटमेंट कर दिया तो कर दिया "! 
       लेखक को इस सदमे से उबरने में हफ़ते भर लगा !  उसके बाद एक फेसबुकिया विद्वान् मित्र ने उन्हें अंधेरे में रोशनी दिखाई, -' काहे सती होने की सोच रहे हो ! प्रकाशक तो तुम्हारी जेब मे बैठा आवाज़ लगा रहा है कि बोलो जी तुम क्या क्या खरीदोगे ! फेस बुक वॉल पर पब्लिशर ऐसे थोक में बैठे हैं जैसे शहतूत के पेड़ पर टिड्डी दल -"!
         वो दिन और आज़ का दिन , लेखक टेलेंट हंट से बाहर नहीं निकल पाया ! पहला विशाल पब्लिशर यूपी से बहुत दूर विशाखापत्तनम  में बरामद हुआ ! उसके वर्कशॉप में सिर्फ वेस्ट सेलर ऑथर  की ही बुक छपती थी ! प्रकाशक बरामद हुआ तो लेखक को अपनी प्रतिभा के वाटर लेवल पर शक हो गया ! लिहाजा उसने पब्लिशर से अपनी दुविधा शेयर की , - " मुझे कैसे यकीन होगा कि मैं बेस्ट सेलरऑथर हूं -"?
        " दुविधा में रहोगे तो बेस्ट सेलर की जगह ऑथर भी नहीं बन पाओगे ! मैं तुम्हारे व्हाट्स ऐप पर बेस्ट सेलिंग ऑथर होने के लिए ज़रूरी पैकेज भेजता हूं, सिलेक्ट करो  ! जल्दी करो, तुम्हारे अंदर  बेस्ट सेलिंग ऑथर होने के सारे लक्षण मुझे  विशाखापत्तम से ही नज़र आ रहे हैं  "! 
             बेस्ट सेलर ऑथर होने के लिए वो  तंदूर में अभी झांक ही रहा था कि मित्र ने नया सुझाव दिया , -' इतनी दूर जाकर बेस्ट सेलर होने की ज़रूरत नहीं है, और भी गम है ज़माने में मुहब्बत के सिवा -!  नज़दीक में ही कोई बेस्ट सेलिंग ऑथर बनाने वाला मिल जाए तो आखिर क्या बुरा है  ?"
      और,,, वो फेस बुक मंडी में  दूसरे वैंडर की खोज में लग गया ! इस बार उसे अदभुत प्रकाशक मिला,जो शायद संत कबीर के परिवार से आया था ! उसने अपने बारे में लिखा था, - " क्या आप अपनी किताब छपवाना चाहते हैं? किताब कहीं से भी छपवा लो, पर सलाह हम से लो ! हम बताएंगे कि आप कैसे और कहां से किताब छपवा कर पूरी दुनियां में मशहूर हो सकते हैं ! फौरन नीचे दिया हुआ 'अप्लाई ' का बटन दबाकर क़िस्मत का बंद फाटक खोलें"!
      वह यही तो चहता था , लेकिन इस बार भी क़िस्मत बनाने वाला कारपेंटर आरी लेकर चेन्नई में बैठा था ! दुखी लेखक को उसके मित्र ने फिर समझाया,  - ' बेस्ट सेलिंग ऑथर होने के लिए जल्दी मत करो ! फिर से ट्राई करते हैं, हो सकता है , किसी ने नजदीक में ही वर्कशॉप खोल रखा हो ! " मित्र का अनुमान सही था - जिन खोजा तिन पाइयां !! प्रकाशक बरामद हो गया ! लेखक ने इस बार जोश के बजाय होश इस्तेमाल किया, -'  एक सौ नब्बे पेज का नॉवेल है, चार्ज बताइए "! 
    उधर कंटिया और कैलकुलेटर लेकर फेसबुक वॉल पर बैठा पब्लिशर तैयार था़, -" सिर्फ पंद्रह हजार नौ सौ निन्नानबे"! लेखक दूध का जला था, उसने मट्ठे में भी फूंक मारी, -' इतने में किताब छप जाएगी न ?"
    " हां, इतने में सिर्फ किताब ही छपेगी ! कवर पेज, एडीटिंग , सेटिंग , प्रूफ रीडिंग, पेपर बैक, जैकेट पेज और आईएसबीएन नंबर का खर्चा अलग है !"  लेखक को लगा कि कमरे में जल रहा इकलौता बल्ब फ्यूज हो गया है ! इस जन्म में मशहूर हो पाना कठिन होता जा रहा था ! फिर भी उसने एक आख़री  कोशिश की , -" इतने झमेले के बाद तो मैं बेस्ट सेलर ऑथर हो जाऊंगा न ?"
        " नहीं ! बत्तीस हजार  खर्च करने के बाद आप लेखक हो जाएंगे ! सोचिए, कितने काम पैसों में कितना बड़ा सम्मान घर लेकर जायेंगे "!
       " मगर मुझे तो बेस्ट सेलर ऑथर होना है !"
          अच्छा वो ! देखिए वो पैकेज आप अफोर्ड नहीं कर पाएंगे ! बड़ा महंगा है !!"
          " कोई बात नहीं - मुझको चांद लाकर दो"!
           " ठीक है, वो पैकेज है तो एक लाख रुपए का , लेकिन आप जैसे बुद्धिजीवी को अस्सी हज़ार में दे देता हूं   - कैश सब्सिडी अट्ठारह हज़ार ! तो,,, कब हो रहे हैं बेस्ट सेलर ऑथर ?"
   " आप को कैसे पता कि मैं बुद्धिजीवी हूं! गांव में सारे लोग मुझे बौड़म कहते हैं ?" 
       "आप मुफ़्त में कभी भी बुद्धिजीवी नहीं हो सकते ! कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है ! तो कब खो रहे हैं आप,,,,, मेरा मतलब - कब बुद्धिजीवी हो रहे हैं आप "?
              इस बार लेखक बिलकुल मायूस नहीं हुआ ! वो बेस्ट ऑथर और बुद्धिजीवी बनाने वाला पाइथागोरस का फॉर्मूला समझ गया था ! अगले दिन लोगों ने फेसबुक वॉल पर एक नया विज्ञापन देखा, -  क्या आप अठारह दिन में बेस्ट सेलिंग बुक लिखना चाहते हैं ! फ़ौरन हमारे दिए हुए लिंक पर क्लिक करें ! हम बनाएंगे आप जैसे "भिंडी" को "बुद्धिजीवी !! आप से क्या छुपाना - सास भी कभी बहू थी ! जल्दी करें, सीटें सीमित हैं और बौड़म ज्यादा।"।  
           ( कथित बुद्धिजीवियों के कमेन्ट आना चालू है!)

                          ( सुलतान भारती)
              

Wednesday, 22 December 2021

आत्म कथ्य "बही खाता"

                   "   बही खाता"

        इस "तंज" समंदर  की  लहर दूर तलक  है!


         आज़ भी मुझे बहुत अच्छी तरह वह दिन याद है जब मैं नई दिल्ली में सुलतान भारती से पहली बार मिला था़ ! जिस अंदाज़ में मेरे परिचित ने मुझसे उनका ज़िक्र किया था, मेरे मस्तिष्क में उनकी छवि एक विराट शख्सियत के कद्दावर साहित्यकार की थी ! मैं नया नया गांव से आया था और थोड़ा घबराया हुआ भी था,पर मिला तो पांच फुट छे इंच के सुलतान भारती को देख कर मेरा उखड़ा हुआ कॉन्फिडेंस वापस आ गया ! लेकिन जब बातचीत शुरू हुई और दस मिनट में अपनेपन की जो बयार हमारे बीच बही कि मुझे यकीन करना मुश्किल हो गया कि मैं उनसे पहली बार मिल रहा हूं!
उनके लहजे में अवध की खुशबू है और आम बातचीत में व्यंग्य की बयार ! वो दिन और आज़,,,,,, हमारे संबंध युवा होते गए और हमारे रिश्तों के आधार में कंक्रीट बढ़ता ही  चला गया ।
      मैंने अपने पब्लिकेशन से उनकी चार किताबें प्रकाशित की ! हिंदी,उर्दू, अंग्रेजी और संस्कृत का ज्ञान रखने वाले भारती जी का शब्दकोश बेहद समृद्ध और खूबसूरत है ! उनकी शैली सबसे अलग है और उस पर किसी एक भाषा का आधिपत्य नही है ! उपन्यासकार सुलतान भारती - व्यंग्यकार सुलतान भारती से बिलकुल अलग नजर आते हैं ! हालांकि व्यंग्यकार सुलतान भारती का नाम, काम और कद उपन्यासकार सुलतान भारती से बहुत बड़ा  है , फिर भी भारती जी आज भी खुद को उपन्यासकार  कहलवाना ज़्यादा पसंद करते हैं।
       आज वो व्यंग्य लेखन में एक सफल, सक्षम और सशक्त शख्सियत हैं ! देश के लगभग सभी पत्र पत्रिकाओं में सामयिक विषय और मुद्दों पर उनका तीखा व्यंग्य प्रकाशित होता रहता है ! हद से ज्यादा स्वाभिमान उन्हें किसी भी परिस्थिति में झुकने नहीं देता , और शायद इसी लिए वो लेखकों के किसी गैंग में आज तक शामिल भी नहीं हुए ! बड़े निर्भीक व्यंग्यकार हैं, और इसका सबूत उनके व्यंग्य आलेख में नजर आ जाता है !
          वो हर हफ्ते अपने ब्लॉग पर एक व्यंग्य डालते हैं, और हर साल एक उपन्यास लिखते हैं ! " बही खाता" उनका तीसरा और बिलकुल ताज़ा व्यंग्य संग्रह है ! उनके शब्दों में व्यंग्य -  " विषम परिस्थितियों में सच लिखने के साहस का नाम है ! व्यवस्था के विरोध की साहित्यिक अभिव्यक्ति है !! समाज के भ्रष्ट और छुपे सफेदपोशो के चरित्र का " बही खाता" है -" !!!  
          " बही खाता" व्यंग्य संग्रह पढ़ कर पाठक खुद यकीन कर लेंगे कि "भारती" जी के चाहने वाले क्यों उन्हें व्यंग्य का "सुलतान" कहते हैं !  'वीएलएमएस' प्रकाशन  "बही खाता" को प्रकाशित कर एक बार फिर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है!

                                   नित्यानंद  तिवारी
                                       ( प्रकाशक )

Wednesday, 15 December 2021

(बही खाता) फिर भी - हैप्पी न्यू ईयर !

(व्यंग्य चिंतन)

          " फिर भी - हैप्पी न्यू ईयर "!

      मैं बड़े धर्मसंकट में हूं, दिसंबर 2024 के  टपकने में जब गिनती के घंटे बचे थे, औऱ नया साल ३१ दिसंबर की आधी रात को खिड़की के रास्ते घरों में  झाँक रहा था तथा गली के लौंडे डेक चलाकर जब गा रहे थे - मुश्किल कर दे जीना, इश्क़ कमीना -! उस वक़्त चौधरी पहली बोतल खोल कर बड़बड़ा रहा था , - 'इसके पहले कि भारती इतै फ़ोन कर के हैप्पी न्यू ईयर की बद्दुआ दे, मैं बचा खुचा हैप्पी पी लेता हूं !'  कहते हैं की बिच्छू के बच्चे बिच्छू को मार कर पैदा होते हैं! नए साल की पैदाइश के साथ भी कुछ ऐसा ही मामला है ! साल 2023 किसी बिच्छू से कम नहीं रहा ! पूरी दुनियां उस के डंक से अब तक कराह रही है ! पहले यूक्रेन और रूस, फ़िर इज़राइल और हमास जंग का श्रेय इसी साल को जाता है ! फिर भी,,,,, हैप्पी न्यू ईयर !
       मेरे बुजुर्ग,संत और उस्ताद मुझे बचपन से नसीहत देते रहे कि मोह माया से दूर रहना ! ये सीख इतनी बार दी गई कि आखिरकार समझ में आ गया कि मोह माया के अलावा संसार में बाकी सब मिथ्या है, क्षणभंगुर है ! नतीजा यह हुआ कि बड़ा होते होते मैं 'मोह माया'  के अलावा हर चीज़ से दूर हो गया ! लेकिन ट्रेज़डी देखिए, कि प्रचुर मात्रा में "मोह" के बावजूद अभी तक "माया" पकड़ से बाहर है ! प्रॉब्लम ये है कि गेहूं खरीदने  के लिए मोह नहीं माया चाहिए ! लेखक के लिए भी गेहूं से दूर रहना संभव नहीं है ! बस यहीं से मोह माया के प्रति मिली दीक्षा का अतिक्रमण हो गया ! गेहूं  चीज़ ही ऐसी है ! आदि पुरुष बाबा आदम को भी इसी गंदुम ने जन्नत से बेदखल करवाया था ! केजरीवाल को इस गेहूं के अंदर छुपी ऊर्जा का पता था , इसलिए दिल्ली वालों को फ्री गेंहू बांट कर भाजपा की किडनी  निकाल ली ! फिर काहे का हैप्पी न्यू ईयर !!( यह तो सितम है !) 
         जनता को विटामिन, प्रोटीन और कैल्शियम देने वाला चुनावी बसंत अभी से जनता का दरवाजा खटखटा रहा है, - खोलो प्रियतम खोलो द्वार -! लेकिन प्रियतम सहमे हुए हैं! जन्नत के पैकेज में भी प्रियतम को फफूंद नज़र आ रही है ! हर पार्टी का अपना अपना रामराज है ! प्रियतम घनघोर कन्फ्यूजन में हैं , - ' जाने किसके वादे में फाइबर  है ' !! इसलिए - काके लागूं पांय - का भ्रम बना हुआ है ! बाकी तो  देश में कुरुक्षेत्र उतरा हुआ है ! सारे दलों के महारथी अपना अपना चक्रव्यूह बना रहे हैं !  तारणहार ठेले पर  रेवड़ी और  रामराज साथ साथ लाए हैं ! 'हाथी' अभी कंफ्यूजन में है कि किसके साथ चले, इस महादशा  में वो सबको जनहित के लिए नुकसानदेह बता रहा है ! कांग्रेस के "शिवभक्त" अभी फ़ैसला नहीं कर पाए हैं कि इस बार "जनेऊ" सदरी के ऊपर पहनना ठीक  रहेगा या सदरी के नीचे ! विगत विधानसभा चुनाव परिणाम ने आस्था पर घातक असर डाला है !
        दिसंबर के आखरी हफ्ते में सांताक्लॉज सदमे में था कि इस बार क्या बांटे ! आने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र हर पार्टी ने अपने अपने सांता क्लॉज अभी से भेज दिए हैं ! वह लोग दिसंबर से ही धोती में गोबर लगाए गांव में घूम रहे हैं ! उनका पैकेज ओरिजनल वाले सांता से काफी ज्यादा दिव्य है !  सांताक्लाज के झोले में सब कुछ 18 साल से नीचे वालों के लिए है , जब कि सियासी "सांताओं" के झोले में बालिगों के लिए बेकारी भत्ता से लेकर दारू, मुर्गा,  साड़ी औऱ सिलाई मशीन जैसी हिट चीजें है  - !  सारा पैकेज - जाकी रही भावना जैसी ' के आधार पर  है ! हर साल दिसंबर में आने वाले सांता अब सोने की छड़ें तो अफोर्ड नहीं कर सकते, सतयुग में ये काम काफ़ी रिस्की  भी है ! सांता पर सोने की स्मगलिंग का केस लग सकता है !  हिरनो को स्लेज गाड़ी में जोत कर जिंगल बेल गाते हुए शहर या बस्ती में जाना और भी जोख़िम भरा है ! पुलिस ऐसा केस बनाएगी कि अगले दिसंबर तक जमानत भी नही होगी ! और कही बारी से पहले प्रमोशन की घात में बैठे, किसी पुलिस के हत्थे चढ़ गए तो सांता क्लॉज़ की मॉब लिंचिंग तय है !  क्योंकि हिरन को गाय साबित करना अब ज्यादा मुश्किल काम नहीं रहा !
           आने वाले साल को लेकर मेरे अंदर कोई जोश नहीं है !( जो था कोरोना और केजरीवाल को दे चुका हूं!) अन्दर  जिगर में  बीड़ी  सुलगाने लायक भी आग नहीं बची !अब खाली हाथ कंबल ओढ़ कर जनवरी की जान मार ठंढ में हैप्पी न्यू ईयर ढूंढ रहा हूँ ! तमाम रतौंधी वालों को जो न्यू ईयर 31 दिसम्बर को ही "हैप्पी" नज़र आ गया था, वो मुझे 8 जनवरी तक भी नहीं नज़र आया ! शायद कुहरा  हटे तो मुझे भी  'हैप्पी'  वाला न्यू ईयर नज़र आए ! नए साल में सब कुछ है- सिर्फ "हैप्पी" गायब है ! लगता है कि "हैप्पी" कुम्भ के मेले में कहीं ,,,,,!
     
 न्यू ईयर के "हैप्पी" होने को लेकर चौधरी अभी भी नाराज़ है , -" इब तू बता , अक  इकत्तीस दिसम्बर की रात कू जिब नया साड़ पहले ते  हैप्पी हो रहो , तो तमैं उस तारीख में हैप्पी होने की  के  जरूरत पड़  गी ! आगे पाच्छे हो लेता ?"

     तब से मेरा रहा सहा  "हैप्पी" भी लापता हैं !!

                                            (सुलतान भारती)

Wednesday, 1 December 2021

(बही खाता) भाग्य विधाता और "भगवान"

(बही खाता)
              " भाग्य विधाता" और "भगवान"

     अब आप कहेंगे कि दोनों एक ही महाशक्ति के  lदो नाम हैं ! कभी थे, पर अब  ऐसा नहीं है ! मुझे भी जो कुछ स्कूल में पढ़ाया गया था, उसके मुताबिक़ कालिकाल से पहले भगवान ही भाग्य विधाता हुआ करते थे ! कलिकाल आते ही ईश्वर, अल्ला तेरो नाम पर सवाल उठने लगे !भगवान  को  चुनौती देने वाले ऐसे कई भाग्य विधाताओं" ने अलग अलग स्थाrनों पर अवतार ले लिया था़। भगवान को बेरोजगार करने वाले कई  महकमें भाग्य विधाताओं ने खुद संभाल लिया ! कुछ काम तो ऐसे हैं जहां भाग्यविधाता ने भगवान को भी  ओवरटेक  कर रक्खा है ! ऐसे कई मंत्रालय जो पहले भगवान के हाथ में थे ,अब भाग्यविधाता ने हथिया लिये हैं! संतान के मामले में ईश्वर के हाथ खड़ा कर लेने पर ये केस भाग्य विधाता ले लेते हैं!
           रोटी रोजी भले ईश्वर के हाथ में हो लेकिन सरकारी टेंडर भाग्यविधाता के हाथ में है! टेंडर का न्यूनतम रेट अपने चहेते ठेकेदार को बताकर मुनाफे में अपना हिस्सा तय करना भाग्यविधाता की पहचान है ! ये काम इतनी गोपनीयता से सम्पन्न होता है कि  ठेकेदारों की विसात क्या खुद ईश्वर को कानों कान ख़बर नहीं होती की भाग्य विधाता ने क्या रेट क्वोट किया है! भाग्यविधाता की इसी कार्यकुशलता पर एक कहावत ने जन्म लिया - देवो न जाने कुतो मनुष्य: -!   ( ध्यान रहे, यहां पर टेंडर न पाने वाले ठेकेदारों को " मनुष्य:"  कहा गया है !) कालांतर में इस कहावत की किडनी निकल ली गई और   कहावत में टेंडर की जगह -' त्रिया चरित्रम पुरुषस्य भाग्यम -' कर दिया गया ! तब से भाग्यविधाता और ठेकेदार के षड्यंत्र का खामियाजा बेचारी महिलाएं भुगत रही हैं !
              अब तो भगवान का काफी काम यह भाग्यविधाता संभाल चुके हैं ! आजकल डॉक्टर भी उसी भाग्यविधाता की श्रेणी में आते हैं ! इनके चमत्कारी कामों के कारण कुछ चारण इनको भगवान भी कहते हैं ! ये अलग बात है कि ऐसे कई  'भगवान' युवा महिला मरीज़ को 'पकवान' और गरीब पेशेंट को  'नाशवान' समझते हैं ! ऐसे काफी भगवान केमिस्ट और दवा कंपनियों से सांठ गांठ कर मरीजों को मोक्ष देते रहते हैं ! इनकी सेहत का हीमोग्लोबिन खून पीने से नार्मल होता है ! कोरोना  काल में जब आत्मनिर्भर होने का मानसून आया तो कई ऐसे " भगवान"  अपने अस्पताल को दिल, फेफड़ा और किडनी के मामले में भी आत्मनिर्भर  बना  गए ! उनके प्राईवेट हॉस्पिटल में आज़ हर साइज की किडनी उपल्ब्ध है ! ( ऐसा काम सिर्फ भाग्यविधाता ही कर सकता है, क्योंकि भगवान सिर्फ किडनी बनाता है, अभी फ़िलहाल ट्रांस्प्लाट नहीं करता !)
         मजार पर बैठ कर लोगों को चुड़ैल, खबीस, भूत प्रेत से मुक्त कराने वाले सिद्ध बंंगाली बाबा "जिन्नात  शाह" भी काफी सफल भाग्यविधाता हैं !  ' वन वे इश्क ' के केस में नींद गंवाने वाले लौंडे को भी  सौ पर्सेंट कामयाबी की ताबीज़ देकर ऊपर वाले को भी हैरत  में डाल देते हैं ! ( अलबत्ता ऐसे केस में   "लोबान" का खर्चा ज्यादा आता है ! ) बाबा जिन्नात शाह जिस मजार पर बैठ कर अल्लाह को चुनौती देते रहते हैं, उन "शदीद बाबा"की खोज और नामकरण भी उन्होंने ही  किया है ! जैसे जैसे बाबा जिन्नात शाह का पोर्टफोलियो बड़ा हो रहा है, मोहल्ले के लोगों में "ऊपर वाले" वाले की मोनोपोली कम हो रही है ! अब तो बाबा बेऔलाद महिलाओं को औलाद प्रोवाइड  कराने की ताबीज़ भी देने लगे हैं ! ( इस चमत्कारी ताबीज़ के लिए आस्थावान महिला को बाबा के कमरे में अकेले आना पड़ता है !) बाबा 'जिन्नात शाह' के बारे में उनके कुछ मुरीदों का दावा है  कि  बाबा  ने  जिन्नात  को  वश  में कर रखा है! ( कुछ महिलाओं ने तो बाबा के साथ एकांत मुलाकात  में "साक्षात जिन्नात" का  दीदार  भी किया है!)
          भगवान के देखते देखते कई भाग्य विधाता ठेला लगाते लगाते अपना मॉल खोल बैठे !  तरक्की का ये पाइथागोरस प्रमेय मुझे आज तक नहीं  आया ! हमारे पांचू सेठ को ही लीजिए, चालीस साल पहले सायकल पर गांव गांव फेरी लगा कर मसाला बेचा करते थे ! आज पांचू लाला से 'पांचू सेठ' हो चुके हैं ! मसाले में अपने पालतू घोड़े की लीद मिलाते मिलाते एक दिन मसाले  की फैक्ट्री  डाल ली ! पहले वो ईश्वर पर भरोसा करते थे, आज काफी लोग उन्हे ही ईश्वर मान बैठे हैं ! भाग्यविधाता होते ही पांचू सेठ ने नारी मुक्ति आश्रम खोल लिया ! पांचू सेठ परित्यकता युवतियों  के दुर्भाग्य का सारा क्रेडिट ईश्वर को देते हैं,-' भगवान नहीं चाहते कि तुम्हारा उद्धार हो , लेकिन मैं हूं न ! और,,,,,जब हम हैं -.तो  क्या गम है!"
         "भाग्य विधाता" कभी भी अपनी उपलब्धियों का क्रेडिट खुद नहीं लेता ! वो सारा क्रेडिट ईश्वर को देते हुए कहता है, -'  शराब की एजेंसी का होलसेल लाइसेंस मिल गया , सब ईश्वर की कृपा है ! मैंने कोई मजार ,दरगाह, तीर्थ स्थान छोड़ा नहीं जहां चढ़ावा न भेजा हो ! क्योंकि ना जानें किस भेष में बाबा मिल जाएं भगवान ! पूरे प्रदेश में दारू की सप्लाई का  आशीर्वाद प्राप्त हुआ है ! परसों से सात दिन तक अखंड भंडारा चलेगा ! मान गया, प्रभु के घर देर है अंधेर नहीं है ! पहले दवा कंपनी की एजेंसी लेने के लिए दौड़ रहा था - नहीं मिली !! जानते हो क्यों ? क्योंकि भगवान को पता था कि दवा के मुक़ाबले दारू में ज्यादा प्रॉफिट है ! बस, प्रभु  का  इशारा  समझ में आते ही  मैं - अंधकार से प्रकाश की ओर - आ गया !! "

             सबको सन्मति दे भगवान !!