मैं कसम खाता हूं कि आज जो भी कहूंगा सच कहूंगा - सच के अलावा,,,,,,,,, मौका मिला तो ज़माने का लिहाज़ करते हुए थोडा़ बहुत झूठ भी बोलूंगा ! ( वरना लोग ताना मारेंगे कि अच्छे दिन आते ही औकात भूल गया !) जब सच और झूठ पर बहस छिड़ ही गई तो लगे हाथ मुझे कह लेने दो कि दुनियां " सत्यमेव जयते "
मैं कसम खाता हूं कि आज जो भी कहूंगा सच कहूंगा - सच के अलावा,,,,,,,,, मौका मिला तो ज़माने का लिहाज़ करते हुए थोडा़ बहुत झूठ भी बोलूंगा ! ( वरना लोग ताना मारेंगे कि अच्छे दिन आते ही औकात भूल गया !) जब सच और झूठ पर बहस छिड़ ही गई तो लगे हाथ मुझे कह लेने दो कि दुनियां में आदर्श सिर्फ "माल्यार्पण" के काम आता है और झूठ एक ताकतवर हकीकत है ! सत्यमेव जयते की तख्ती लगाकर लोग सरेआम झूठ की मार्केटिंग करते हैं ! थाने के बाहर लिखा होता है,-शांति सुरक्षा न्याय - और इनकी चाहत में अंदर जाते हुए 'शांतिलाल जी' के पैर कांपते हैं ! उन्हें इस खोखले आदर्शवादी सच के पीछे खड़े इस शक्तिशाली झूठ की जानकारी है कि "शांतिलाल जी" को "गांधी जी" के बगैर 'शांति ' नहीं मिलने वाली।
"सच" को सत्य मेव जयते मान लिया गया है , इसलिए जीवन भर नीलकंठ बने रहो ! सेठ अखरोट चंद की धर्मशाला , औषधालय और प्याऊ के भरोसे जीवन का नर्क काट कर, मरने के बाद जब एक आम आदमी सत्यमेव जयते की गठरी लेकर धर्मराज के सामने खड़ा होगा तो क्या उसे स्वर्ग मिलता होगा! या फिर उसके साथ कुछ इस तरह की पूछ ताछ होगी, " क्या नाम है तुम्हारा "?
' दुखी लाल '!
" काम क्या करते थे "?
' कभी झूठ नहीं बोला, चोरी नहीं की, किसी को चोट नहीं पहुंचाया , किसी का हक नहीं मारा, लालच नहीं किया, किसी को गाली नहीं दी,,,,'!
" कामचोर कहीं के , अबे ! ये तो वो काम हैं जो तूने किया ही नहीं ! इसका मतलब ईश्वर द्वारा दिया गया जीवन व्यर्थ गवां दिया , पक्का नर्क काटेगा ! ख़ैर - जीवन में कभी कोई गौशाला या धर्मशाला बनवाया था या नहीं ?'
" नहीं, बल्कि मेरा परिवार तो खुद कभी कभी धर्मशाला में खा कर आ जाता था "!
" कभी किसी गरीब की शादी कराई हो,या सर्दी में कंबल बांटा हो ?"
" नहीं "! दुखी लाल को अपनी आवाज़ भी दूर से आती हुई लगी ।
चित्रगुप्त ने कंप्यूटर पर फाइनल रिर्पोट लगाकर धर्मराज को मेल करते हुए शिफारिश की, " ये बहुत गरीब आदमी है , पृथ्वी पर रहकर भी विकास नहीं कर पाया ! गरीबी और अभाव का नर्क भोग कर आया है , बेचारे को सुख का अनुभव नहीं है ! अगर इसे स्वर्ग में डाला गया तो इसे पक्का इंफेक्शन हो जायेगा ! "
सच की पैरवी करने वाले खुद उसे " कड़वा" बताते हैं ! यही महापुरुष समाज को उपदेश देते हुए कहते हैं, " सत्यम ब्रुयात- प्रियम ब्रूयात "! ( सच बोलना चाहिए - मीठा बोलना चाहिए ) अब आप सर धुनिए, जब सच कड़वा होता है तो मीठा कैसे बोलोगे ? सच की नसों मे झूठ की चाशनी डालिए ! दूसरी तरफ़ झूठ में नीम जैसी कड़वाहट नही, कलाकंद जैसी मिठास है। शूगर का पेशेंट भी बोलने से परहेज़ नहीं करता ! सच बोलने के लिए प्राणी को हिम्मत, कोशिश और संस्कार की ज़रूरत पड़ती है ! झूठ के लिए मुंह मे जबान होना काफ़ी है ! बाकी यार दोस्त बोलना सिखा देते हैं,और कुछ ही दिनों में मुंह से फूल झड़ने लगते हैं !
दुनियां के ८० प्रतिशत लोगों की लगाम २० प्रतिशत लोगों के हाथ में है । यही बीस प्रतिशत लोग बहुमत के गले में आदर्शवादिता की घंटी बांधते हैं ! यही लोग तय करते हैं कि किसे कड़वा सच बोलना है और किसे "निकृष्ट झूठ" की मार्केटिंग करना है ! बस इसके बाद अलौकिक विकास शुरू हो जाता है, एक तबका सत्य और स्वर्ग की ख़ोज में तीर्थयात्रा की ओर जाने लगता है , और दूसरा लोभ,लालच और झूठ के पापकुंड में नहाता " विदेश यात्रा" की ओर ! 'धर्मबुद्धि ' पेट काट कर बच्चों का भविष्य बैंक में जमा करेगा और "पापबुद्धि" बैंक समेट कर फरार हो जायेगा! अस्सी फीसदी वाला तबका "बेचारा" होता चला जायेगा और बीस प्रतिशत वाला " विश्व गुरु "!
सच की पैरवी बड़ी हिम्मत का काम है और विरले ही इस पुलसरात पर टिक पाते हैं ! ये भी सच है कि जब तक सच ज़िंदा है, संसार वजूद में है। सच विहीन संसार एक बेलगाम हिंसक भीड़ में बदल जायेगा ! मगर दिनो दिन सच का गिरता सेंसेक्स झूठ का वर्चस्व बढ़ा रहा है !
विडंबना ये है कि जिस ढांचे पर सच को प्रमोट करने की जिम्मेदारी है वही झूठ के तानेबाने में लिपटा हुआ है। फल ये हुआ कि सच के पेड़ पर "बौर" आते ही झूठ का "लासा" लग जाता है ! झूठ के ब्रांड एंबेसडर कौए ऐसे बगीचे से कोयल को खदेड़ कर खुद बैठ जाते हैं! झूठ कितना पॉवरफुल है ये अगले महीने यूपी के पंचायत चुनाव में जाकर देखना ! आरक्षित सीटों पर हरिजन उम्मीदवार की पीठ पर "बेताल" की तरह सवार ठाकुर, सैयद, पंडित या खान साहब का छाया चित्र प्रशासन के अलावा सबको नज़र आ आयेगा
सच और झूठ की रेस में सच को कछुआ बना कर जिता देना अक्ल को अफीम चटाने जैसा है ! झूठ कभी सोता नहीं, और सच इस गफलत में दौड़ता नहीं कि हम तो - सत्यमेव जयते - में आते हैं ! हम इंसानों को सदियों से 'थ्योरी' पढ़ाई जाती है और 'प्रैक्टिकल' को छुपाया जाता है ! हम थ्योरी के आदर्शवादिता की अफीम चाटकर सोते आए हैं फिर भी चारण हमे विजेता घोषित कर देते हैं ! मैं ये नहीं कहता कि झूठ के पैरोकार बने, मेरा मकसद ये है कि सच का संरक्षण हो । सच को किताबों से निकाल कर कल्ब ( दिल) में उतारा जाए ! सच अगर सत्यमेव जयते है तो समाज और संविधान में नज़र भी आना चाहिए !
सच का उपहास उड़ाते झूठ की ताज़ा बानगी देखिए ! "आर्थिक रूप से कमज़ोर" तबके की मदद के लिए एसडीएम ऑफिस में उपलब्ध ( EWS) फॉर्म के एक क्लॉज में अभ्यार्थी से " तीन साल के आयकर रिटर्न " का लेखा जोखा मांगा गया है ! ( अब अगर गरीब आदमी को आर्थिक सहायता प्राप्त करना है तो पहले तीन साल तक अमीर होकर इनकम टैक्स भरे ! तभी उसके गरीब होने पर यकीन होगा !)
वरना - हट जा ताऊ पाछे नै !!
।।। ( सुलतान भारती ) !!! में आदर्श सिर्फ "माल्यार्पण" के काम आता है और झूठ एक ताकतवर हकीकत है ! सत्यमेव जयते की तख्ती लगाकर लोग सरेआम झूठ की मार्केटिंग करते हैं ! थाने के बाहर लिखा होता है,-शांति सुरक्षा न्याय - और इनकी चाहत में अंदर जाते हुए 'शांतिलाल जी' के पैर कांपते हैं ! उन्हें इस खोखले आदर्शवादी सच के पीछे खड़े इस शक्तिशाली झूठ की जानकारी है कि "शांतिलाल जी" को "गांधी जी" के बगैर 'शांति ' नहीं मिलने वाली।
"सच" को सत्य मेव जयते मान लिया गया है , इसलिए जीवन भर नीलकंठ बने रहो ! सेठ अखरोट चंद की धर्मशाला , औषधालय और प्याऊ के भरोसे जीवन का नर्क काट कर, मरने के बाद जब एक आम आदमी सत्यमेव जयते की गठरी लेकर धर्मराज के सामने खड़ा होगा तो क्या उसे स्वर्ग मिलता होगा! या फिर उसके साथ कुछ इस तरह की पूछ ताछ होगी, " क्या नाम है तुम्हारा "?
' दुखी लाल '!
" काम क्या करते थे "?
' कभी झूठ नहीं बोला, चोरी नहीं की, किसी को चोट नहीं पहुंचाया , किसी का हक नहीं मारा, लालच नहीं किया, किसी को गाली नहीं दी,,,,'!
" कामचोर कहीं के , अबे ! ये तो वो काम हैं जो तूने किया ही नहीं ! इसका मतलब ईश्वर द्वारा दिया गया जीवन व्यर्थ गवां दिया , पक्का नर्क काटेगा ! ख़ैर - जीवन में कभी कोई गौशाला या धर्मशाला बनवाया था या नहीं ?'
" नहीं, बल्कि मेरा परिवार तो खुद कभी कभी धर्मशाला में खा कर आ जाता था "!
" कभी किसी गरीब की शादी कराई हो,या सर्दी में कंबल बांटा हो ?"
" नहीं "! दुखी लाल को अपनी आवाज़ भी दूर से आती हुई लगी ।
चित्रगुप्त ने कंप्यूटर पर फाइनल रिर्पोट लगाकर धर्मराज को मेल करते हुए शिफारिश की, " ये बहुत गरीब आदमी है , पृथ्वी पर रहकर भी विकास नहीं कर पाया ! गरीबी और अभाव का नर्क भोग कर आया है , बेचारे को सुख का अनुभव नहीं है ! अगर इसे स्वर्ग में डाला गया तो इसे पक्का इंफेक्शन हो जायेगा ! "
सच की पैरवी करने वाले खुद उसे " कड़वा" बताते हैं ! यही महापुरुष समाज को उपदेश देते हुए कहते हैं, " सत्यम ब्रुयात- प्रियम ब्रूयात "! ( सच बोलना चाहिए - मीठा बोलना चाहिए ) अब आप सर धुनिए, जब सच कड़वा होता है तो मीठा कैसे बोलोगे ? सच की नसों मे झूठ की चाशनी डालिए ! दूसरी तरफ़ झूठ में नीम जैसी कड़वाहट नही, कलाकंद जैसी मिठास है। शूगर का पेशेंट भी बोलने से परहेज़ नहीं करता ! सच बोलने के लिए प्राणी को हिम्मत, कोशिश और संस्कार की ज़रूरत पड़ती है ! झूठ के लिए मुंह मे जबान होना काफ़ी है ! बाकी यार दोस्त बोलना सिखा देते हैं,और कुछ ही दिनों में मुंह से फूल झड़ने लगते हैं !
दुनियां के ८० प्रतिशत लोगों की लगाम २० प्रतिशत लोगों के हाथ में है । यही बीस प्रतिशत लोग बहुमत के गले में आदर्शवादिता की घंटी बांधते हैं ! यही लोग तय करते हैं कि किसे कड़वा सच बोलना है और किसे "निकृष्ट झूठ" की मार्केटिंग करना है ! बस इसके बाद अलौकिक विकास शुरू हो जाता है, एक तबका सत्य और स्वर्ग की ख़ोज में तीर्थयात्रा की ओर जाने लगता है , और दूसरा लोभ,लालच और झूठ के पापकुंड में नहाता " विदेश यात्रा" की ओर ! 'धर्मबुद्धि ' पेट काट कर बच्चों का भविष्य बैंक में जमा करेगा और "पापबुद्धि" बैंक समेट कर फरार हो जायेगा! अस्सी फीसदी वाला तबका "बेचारा" होता चला जायेगा और बीस प्रतिशत वाला " विश्व गुरु "!
सच की पैरवी बड़ी हिम्मत का काम है और विरले ही इस पुलसरात पर टिक पाते हैं ! ये भी सच है कि जब तक सच ज़िंदा है, संसार वजूद में है। सच विहीन संसार एक बेलगाम हिंसक भीड़ में बदल जायेगा ! मगर दिनो दिन सच का गिरता सेंसेक्स झूठ का वर्चस्व बढ़ा रहा है !
विडंबना ये है कि जिस ढांचे पर सच को प्रमोट करने की जिम्मेदारी है वही झूठ के तानेबाने में लिपटा हुआ है। फल ये हुआ कि सच के पेड़ पर "बौर" आते ही झूठ का "लासा" लग जाता है ! झूठ के ब्रांड एंबेसडर कौए ऐसे बगीचे से कोयल को खदेड़ कर खुद बैठ जाते हैं! झूठ कितना पॉवरफुल है ये अगले महीने यूपी के पंचायत चुनाव में जाकर देखना ! आरक्षित सीटों पर हरिजन उम्मीदवार की पीठ पर "बेताल" की तरह सवार ठाकुर, सैयद, पंडित या खान साहब का छाया चित्र प्रशासन के अलावा सबको नज़र आ आयेगा
सच और झूठ की रेस में सच को कछुआ बना कर जिता देना अक्ल को अफीम चटाने जैसा है ! झूठ कभी सोता नहीं, और सच इस गफलत में दौड़ता नहीं कि हम तो - सत्यमेव जयते - में आते हैं ! हम इंसानों को सदियों से 'थ्योरी' पढ़ाई जाती है और 'प्रैक्टिकल' को छुपाया जाता है ! हम थ्योरी के आदर्शवादिता की अफीम चाटकर सोते आए हैं फिर भी चारण हमे विजेता घोषित कर देते हैं ! मैं ये नहीं कहता कि झूठ के पैरोकार बने, मेरा मकसद ये है कि सच का संरक्षण हो । सच को किताबों से निकाल कर कल्ब ( दिल) में उतारा जाए ! सच अगर सत्यमेव जयते है तो समाज और संविधान में नज़र भी आना चाहिए !
सच का उपहास उड़ाते झूठ की ताज़ा बानगी देखिए ! "आर्थिक रूप से कमज़ोर" तबके की मदद के लिए एसडीएम ऑफिस में उपलब्ध ( EWS) फॉर्म के एक क्लॉज में अभ्यार्थी से " तीन साल के आयकर रिटर्न " का लेखा जोखा मांगा गया है ! ( अब अगर गरीब आदमी को आर्थिक सहायता प्राप्त करना है तो पहले तीन साल तक अमीर होकर इनकम टैक्स भरे ! तभी उसके गरीब होने पर यकीन होगा !)
वरना - हट जा ताऊ पाछे नै !!
।।। ( सुलतान भारती ) !!!
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