Tuesday, 16 March 2021

बडे़ साइज़ की " सोच"

         बडे़ साइज़ की  छोटी "सोच"

           मैं अपनी तुच्छ सोच को लेकर दुखी हूं ! सीनियर सिटीजन होने की सीमा रेखा पर खड़ा होकर भी सोच के मामले में अभी नाबालिग हूं ! बुद्धिलाल जी हमेशा कहते रहते हैं कि आदमी को "बडा" सोचना चाहिए ! (वैसे अभी तक उन्होंने सोच की साइज़ नही बताई है !) वो सबको सलाह देते हैं, - जीवन में तरक्की करना है तो "बड़ा" सोचो - ! हालांकि बडा सोचने के मामले में उनकी सोच को लेकर मुझे थोडा़ डाउट है, क्योंकि अपनी शिक्षा को लेकर  उन्होंने हाई स्कूल से बड़ा सोचा ही नहीं ! तीन दिन पहले भी मुझे सुना कर कह रहे थे, -." आदमी बेशक गली कूचे का लेखक हो, और उसकी रचना मोहल्ले के साप्ताहिक अख़बार के अलावा कहीं न छपती हो, पर उसकी सोच बड़ी होनी चाहिए ! "
           मैने अक्सर कई बुद्धिजीवी प्रजाति के लोगों से से सुना है कि - सोच "बड़ी" होनी चाहिए - ! सुन सुन कर मेरे पतझड़ ग्रस्त दिल में भी सावन जाग उठा है ! ज़िंदगी के इंटरवल के बाद वाली लाइफ में पसरे रेगिस्तान के लिए शायद " सोच" ही जिम्मेदार है ! सोच को - लार्जर देन लाइफ - होना चाहिए था , पर हुआ उल्टा ! लाइफ बढ़ती गई और सोच सिमटती गई ! अब "बुद्धिलाल" जी कहते हैं कि बड़ा आदमी होने के लिए सोच बड़ी होनी चाहिए ! ये एक बड़ी समस्या है मेरे लिए , क्योंकि सोच बढ़ाने वाला फार्मूला कहां से लाऊं ! बड़ा आदमी तो मैं बचपन से होना चाहता था, पर तब घर वालों ने मिसगाइड कर दिया ! अब्बा श्री बोले थे, - "पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब ( बडा आदमी ) " ! जब पढ़ने लगा तो साहित्य ने मिस गाइड कर दिया - ' बड़ा  हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,,',! ( रहीम के दोहे भी मेरे बड़े होने के पक्ष में नहीं थे !) अब्बा श्री और मास्साब  दोनों चाहते थे कि मैं पढ़ लिख कर बडा आदमी बनूं ! तब किसी ने नहीं बताया था कि बड़ा आदमी होने के लिए शिक्षा नहीं - ' सोच' बड़ी होनी चाहिए ! अब कोरोना और बेकारी के बाद सोच कुपोषण का शिकार हो गई!
       हमारे एक विद्वान मित्र हैं जो बड़ा आदमी होने का वर्कशॉप चलाते हैं ! इस काम में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है ! मुझे उनसे गहरी ईर्ष्या है, (क्योंकि पैंसठ साल के बाद भी वो सफेद दाढ़ी में जवान बने हुए हैं !) अख़बार में छपी उनकी एक गाइड लाइन के मुताबिक़ , - बड़ा होने के लिए आदमी को अपनी "सोच" बड़ी करनी चाहिए -! पिछला पूरा साल मैं सिर्फ़ कोरोना के बारे में ही सोचता रहा, लिहाज़ा सोच बडा करने का कोई मौका नहीं मिला ! पूरा देश बडा सोचने की जगह कोरोना को छोटा करने में लगा था ! इस साल मेरे लिए बेकारी एक बड़ी समस्या है, पर इस हालत में भी मैं बड़ा सोचना  चाहता हूं !  प्रॉब्लम ये है कि कभी किसी ने सिखाया ही नहीं कि बेकारी में बडा कैसे सोचा जाता है! मेरे जैसा छोटा आदमी, जिसकी सोच - दाल, भात और चपाती से ऊपर जाती ही नहीं, वो क्या खाक नीरव मोदी या विजय माल्या जैसी बड़ी सोच ला पायेगा !
               पर,,,,अब मैं मानूंगा नहीं , मुझे हर हाल में बड़ा बनना है ! लिहाजा मैं हर उस महापुरुष से दीक्षा लेना चाहता हूं जो  " बड़ा सोचने" का हुनर जानते हैं। एकबार मैं बड़ा सोच कर देखना चाहता हूं। वैसे मैं अपनी तरफ़ से  जब भी बड़ा सोचने की कोशिश  करता हूं तो बेगम जली  कटी  सुना देती  हैं, - " कुछ काम भी करोगे या पड़े पड़े सोचते ही रहोगे ! वसीयत कर जाऊंगी कि लड़की कुंवारी मर जाए पर किसी लेखक से शादी ना करे !" देख लिया न,  बड़ी सोच के रास्ते में किस क़दर स्पीड ब्रेकर खड़े  हैं।
            मैंने बड़ी सोच के बारे में "वर्मा जी" से जानकारी मांगी तो वो भड़क उठे, " जीडीपी तेरे कैरेक्टर की तरह नीचे गिर रहा है और तू सोच बड़ी करने में लगा है ! मूर्ख! ज्यादातर लोगों ने अपने काले धंधे का नाम ही  " बड़ी सोच" रख दिया है "! मैं फिर भी चौधरी से पूछ बैठा, " मै बड़ा सोचना चहता हूं "! चौधरी ने गुस्से में जवाब दिया, - ' मेरी तरफ से रुकावट कोन्या, तू बड़ा सोचे या सल्फास खाए- पर पहले म्हारी उधारी चुकता दे! मोय भैंसन कू हिसाब देना पड़  ज्या ! कदी समझा कर "!!
         " बड़ा"  कैसे सोचूं,-बस यही सोच सोच कर वज़न घटा लिया है ! शायद मेरा बैकग्राउंड ही बड़ी सोच में बाधक  है ! यूपी के छोटे से गांव में पैदा हुआ , छोटा सा आंगन , ऊपर मेरे हिस्से का आसमान ! साझी धूप की विरासत में पलते छोटे छोटे सपने ! मां बाप की खुशी और नाखुशी के एहतराम में झूमती गेहूं की सुनहरी बालियों की मानिंद जवानी आई तो उन्हीं छोटे सपनों को लिए दिल्ली आ गया ! दिल्ली में पैर जमे संगम विहार में, जो प्रदेश की सबसे बड़ी सुविधा विहीन क्लस्टर कॉलोनी है । यहां कुछ और सोचने से पहले प्राणी को पीने वाले पानी के बारे में सोचना पड़ता है । सारे सपने पानी, राशन और सड़क के हैंगर पर टंगे मिलते हैं ! मेरी यही प्राब्लम है, जब भी ' बड़ा ' सोचने की कोशिश करता हूं , सारी सोच राशन कार्ड लेकर दुकान के सामने खड़ी हो जाती है  ! पेट से बंधी छोटी सोच !!

       फिर भी,,,,,, "बड़ी"  सोच के लिए आज भी - दिल है कि  मानता नहीं !!

                 (  सुलतान भारती  )

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