Saturday, 13 March 2021

" गलतफहमी"

             " गलत फहमी " 

                             मैं भी इस बीमारी का थोडा  बहुत शिकार हूं, लिस्ट में ऐसे मित्र बहुत हैं जिन्हें गम नहीं गलत फहमी ने मारा हुआ है। चचा बकलोल कहते हैं कि उन्हे इश्क से ज़्यादा गलतफहमी ने डुबोया है ! ये मुआ इंफेक्शन किसी भी उम्र में हो सकता है ! इसका कोई इलाज़ भी नहीं है ! रोगी किसी कीमत पर ये मानता ही नहीं कि वो किसी घातक बीमारी का शिकार है । गलत फहमी को वो सच मान कर जीने लगता है ! ऐसे दुर्लभ महापुरुषों से दुनिया का गुल्लक भरा हुआ है ।
       गांव में हमारे एक मित्र हुआ करते थे ! ग्रेजुएशन के बाद अचानक उन्हें ये गलत फहमी हो गई कि उनके चेहरे में काऊ ब्वॉय वाली खासियत है , और हर लड़की उन पर प्रथम दृष्टया आशिक हो सकती है ! ( हालांकि इस गलत फहमी से पहले उन पर ललिता पवार जैसी महिलाओं ने भी ध्यान नहीं दिया था !) इस घातक बीमारी की चपेट में आते ही वो गोपियों की तलाश में निकल पड़े ! जब तक घर वाले बीमारी सूंघ पाते, पुत्र रत्न ने कई लड़कियों को छेड़ डाला ! दो एक ने लोक लाज के डर से इग्नोर किया तो कुछ ने घर तक पीछा किया ! घर वालों को जब बेटे के टैलेंट का पता चला तो मुंह पीट लिया ! वो शादी ढूंढने लगे, किंतु  'होनहार विरवान' को इतना धैर्य कहां, एक रात गांव में हंगामा हो गया, पता चला कि गांव के एक लाला जी की छत पर सोती उनकी युवा लड़की को जगाकर प्रणय निवेदन कर बैठे थे ! कच्ची नींद से उठी लडकी ने डर कर शोर मचाया तो निर्भीक प्रेमी भागा भी नहीं। मामला सजातीय था, दोनों परिवारों ने असहमत होते हुए भी उनकी  शादी  पर सहमति जताई और इस तरह मित्र की गलत फहमी पर पूर्ण प्रतिबंध लग गया !
       लेकिन गृहस्थ जीवन के बीस साल बाद एक बार फिर उन्हे गलतफहमी ने धर दबोचा ! हालांकि तब उनकी उम्र पैंतालिस साल हो चुकी थी, पर इससे गलत फहमी पर क्या फ़र्क पड़ने वाला था। इस बार की  गलतफहमी बिलकुल मुख्तलिफ किस्म की थी ! अबकी बारी उन्हें लेखक होने की गलत फहमी हो गई । ये पहले के मुकाबले ज्यादा घातक बीमारी थी,- लगभग असाध्य किस्म का रोग था जिसका दूर दूर तक कोई हकीम या वैद्य नहीं था ! जब तक घर वाले भांप पाते , उन्होंने दो सौ अस्सी पेज का एक उपन्यास लिख डाला ! घर में परचून की दूकान थी, पत्नी सोचती थी कि हर वक्त बही खाता लिखते हैं, लेकिन जब पता चला तो मुंह पीट लिया ! उधर मित्र की प्रॉब्लम थी उपन्यास के श्रोता नहीं मिल रहे थे ! हार कर उन्होंने दूकान पर आने वाले गांव के
ग्राहकों को पाठक बनाया । सोंठ के ग्राहक को साहित्य की ओर खींचने में श्रोता उधार मांगने लगे ! नवोदित लेखक मगन थे और दुकान अवसाद ग्रस्त ! दोनों को बचाने के लिए पत्नी ने एक दिन उस "दुर्लभ" पांडुलिपि को आग के हवाले कर दिया !
        साहित्यकारों में गलत फहमी की बीमारी आम है ! बेशक कंधे से अपना एक सर न संभल रहा हो , पर इस लंका में सब अपने आप को "दशानन" समझते हैं ! कुछ साहित्यकार बेतरतीब दाढ़ी मूछों में  लपेट कर  खुद को ऐसे परोसते हैं गोया साहित्य का सारा डैमेज कंट्रोल संभालने में खुद को संभालने का भी होश नहीं रहा ! बिलकुल ताज़ा ताज़ा साहित्य में लैंड हुए लेखक को हर ऐरू गैरू को सलामी ठोकना होता है ! अगर छोटा साहित्यकार बडे़ को सलाम करता है तो सामने वाला फर्जी बड़प्पन ओढ़ने के चक्कर में मुंह की जगह सर हिलाकर जवाब देता है । बड़ा साहित्यकार होने की गलतफहमी , अंडे के बाहरी खोल की तरह होती है जिसके टूटते ही इमेज बिखर जाती है। गलत फहमी का शिकार कथित बड़ा साहित्यकार  व्हाट्स ऐप ग्रुप ज़रूर बनाता है , ताकि अपने जैसे और " विद्वानों" का समर्थन जुटा सके ! इन्हे अपने से इतर कहीं टैलेंट नज़र नहीं आता ! वो बेशक सोशल मीडिया या अपनी मैगजीन के अलावा कहीं न छपें, पर नामचीन लेखको से भी डींग मार लेते हैं, - " मैने कभी आपको पढ़ा नहीं!"
     कुछ लोग इतने विलक्षण होते हैं कि गलतफहमी मे ही जी लेते हैं ! कुछ को सच के प्रति गलत फहमी होती है तो कुछ गलत फहमी को ही सच मान लेते हैं ! एक युवक मेरा बड़ा करीबी है, उसे ये गलत फहमी दिन में बार बार होती है कि उसके हाथ पैर गंदे हो गए हैं ! वो हर वक्त पानी की तलाश में रहते हैं और दिन भर में पचासों बार हाथ पैर धोते हैं ! कई बार तो वो हाथ पैर धो कर घर से बाहर आए और  तुरंत घर में घुस कर हाथ पैर धोने लगे ! शायद बाहर की हवा लगते ही उन्हें हाथ पैर गंदे हो जाने की गलत फहमी हो गई थी ! इस मानसिक प्रदूषण ने आज भी उन्हें कुंवारा बना रखा है।
          ये नामाकूल बीमारी मारती कम घसीटती ज्यादा है। दारू पीने के बाद कई महापुरुष गलत फहमी के शिकार हो जाते हैं। (वो कहानी तो सुनी होगी जब दारू के ड्रम में गिरा चूहा नशे मे आकर बिल्ली को ललकार रहा था!)  दारू अंदर - गलत फहमी बाहर ! ये दारू की ही महिमा है कि नशे में धुत प्राणी नदी और "नाली" में भेदभाव नहीं करता ! जो आसानी से सुलभ हो उसी में कूद पड़ता है ! नशा और गलती फहमी एक ही प्रजाति की दो बीमारी है, और दोनों की सदगति नाली अथवा गाली है !

             गलत फहमी कालांतर में कल्पना को जन्म देती है और कर्म विहीन कल्पना इंसान को नाकारा बना देती है ! गलत फहमी और स्वर्णिम कल्पना के संसार में उड़ता हुआ प्राणी आखिरकार एक दिन खुद को हकीकत की नाली में ही गिरा हुआ पाता है ! कर्मविहीन सुखद कल्पना हो या गलत फहमी, अंतत: बहुत तकलीफ़ देती हैं ! कि मैं कोई झूठ बोल्या,,,,?

             (सुलतान भारती )
      

   
         

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