Friday, 26 March 2021

की "खेला" होबे !

         की - "  खेला "   होबे !

               अब इसका जवाब तो कोई  खिलाड़ी ही दे सकता है , मै तो ( सियासत वाले) खेल में अनाड़ी हूं ! आजकल हर कोई  'खेला होबे' की आशंका जता रहा है। कमाल है, गरीब टोला में ही फाग खेला जाता है । एक तो खेल खेल में  "दीदी" का पैर तोड़ा, ऊपर से उनके दर्द  की खिल्ली उड़ा रहे हो ! अब अगर उन्होंने गुस्से में कह दिया कि - "खेला होबे" तो सारी मीडिया ततैया की तरह टूट पड़ी । 'हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,,,,, ' - वाली स्थिति है ! अब सारे विरोधी पिचकारी लेकर दीदी को घेर कर है रहे हैं, " आज न छोड़ेंगे ममता दीदी - खेलेंगे हम होली ! चाहे मानो होली दीदी, चाहे मानो ठिठोली '! इस घातक ठिठोली को समझने वाले समझ रहे हैं, ना समझे वो अनाड़ी है!
            .         सत्ता का विरोध जब बगावत मान लिया जाए तो प्रजातंत्र शरसैया पर लेट जाता है , - ' चलो रे डोली उठाओ कहांर,,,,!' अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा अब बंगाल में हिन हिना रहा है  ! दीदी जानती है कि  उसके साथ - की खेला होबे ,  पर नक्कारखाने में तूती की आवाज़ सुने कौन ! 'दादा' के सामने 'दीदी' पैर में पलस्तर बंधवाए विलाप कर रही है ,- ' इन्हीं लोगों ने लै लीन्हा दुपट्टा मेरा "! पूरा बंगाल "सोनार बांग्ला" होने के लिए कतार में खड़ा हो गया है ! कोरोना घबरा कर वहां से निकल भागा है और आदेशानुसार दिल्ली और महाराष्ट्र  में चटाई बिछा चुका है ! सोनार बांग्ला के लिए मानसून भी आदेश की प्रतीक्षा कर रहा है कि कब रामराज का आगमन हो, और वह सारा विकास उड़ेले ! भिखारी तक को सोनार बांग्ला से काफ़ी आशाएं हैं, -'  शोनार बोंगला में अमी कार में बैठ कर भीख मांगबे "!
                 पहले चरण का विकास हो चुका है , दो चार बूथों पर मार कुटाई की ख़बर है ! विपक्षी नेता आरोप लगा रहे हैं कि इस बार बंगाल में सबसे कम हिंसा हुई है ! ( मलाल नहीं होना चाहिए क्योंकि -' पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त -'! ) आज होली है, इसलिए आज़ कोई खेला नहीं होबे ! सारे दिग्गज खिलाड़ी चुनाव में लगे हुए  हैं ! ऐसी ऐसी गुगली और यार्कर " फेंका " जा रहा है , जिसे सुनकर विद्वान सकते में हैं और इतिहास सदमे में ! अभी विकास बस शुरू हुआ है, आगे आगे देखिए फेंकेंगे क्या !! खेल बडा होबे , क्योंकि राष्ट्रीय खिलाड़ी के मुकाबले अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी खड़े हैं ! अभी उन्होंने अपने सारे पत्ते खोले नहीं हैं !  वो स्वस्थ हैं, संतुष्ट है और जानते हैं कि बहुमत को " सोनार बांग्ला" चाहिए ! तो,,, ले लो, वो तो कब से आवाज़ लगा रहे हैं -" ले लो चंपा चमेली गुलाब लई लो"!
                      "दीदी" व्हील चेयर पर है और तमाम खिलाड़ी होली मनाने के मूड में ! सारा विपक्ष दीदी को घेर कर "खेला होबे" का शोर मचा रहा है। कमबख्त होली को भी आज़ ही आना था ! खेल शुरू होने से पहले ही जनता को स्टेडियम से बाहर निकाल दिया गया ! दर्शकों से कह दिया गया कि आंख पर नहीं, कमेंट्री पर भरोसा करें! अब कमेंट्री की जिम्मेदरी मीडिया को दी गई है, जो पूरी ईमानदारी और भक्ति भाव से कमेंट्री कर रही है, " प्रथम चरण का " खेला" हो चुका है ! "बाबा" के मुकाबले  "दीदी" का मनोबल स्ट्रेचर पर पीछे पीछे चल रहा है ! जनता को परिवर्तन चाहिए, और बंगाल को सोनार बांग्ला ! सोनार बांग्ला होते ही आम के पेड़ों से चावल की बोरियां टपकने लगेंगी और बंगाल की खाड़ी से मछलियां निकल कर हावड़ा ब्रिज पर बैठ कर गाने लगेंगी, ' दुख भरे दिन बीते रे भइया , अब सुख आयो रे - सोनार बांग्ला का 'रसोगुल्ला' लायो रे "!
          किराए का टोटा है वरना बंगाल चला जाता ! सच कहूं, सोनार बांग्ला देखने के लिए जिया बेकरार है ! कल चौधरी भी मुझ से पूछ रहा था, " उरे कू सुण भारती ! तमै
 कछु पतो है "?
   " हां, दिल्ली और महाराष्ट्र में लॉकडाउन के आसार हैं, कोरोना है कि मानता नहीं"!
    " परे कर कोरोना कू ! मै विकास की बात करूं सूं अर तमैं कोरोना सूझ रहो ! नू बता - अक- यू सोनार बांग्ला किस तर्या बनाया ज्यागा !"
 " बड़ा मुश्किल सवाल है ! मैं नहीं बता पाऊंगा ! रुकावट
के लिए खेद है '!
      " क्यों ?"
   " क्या बताऊं, मैंने कभी किसी को ठीक से उल्लू तक नहीं बनाया- सोनार बांग्ला कैसे बनाऊंगा "!
        " फिर कूण बना रहो ?"
" इतनी दूर से कैसे बताऊं ! जाकर देखना पडेगा ! वैसे जहां तक बनाने की बात है तो कुछ लोगों को तो बहाना बनाना भी नहीं आता ! और कुछ लोग दूसरे देश जाकर लोगों को उल्लू बना कर लौट आते हैं "! 
       चौधरी बिलकुल कन्विंस नहीं है ! सारा देश खेला होबे को अपने अपने चश्में से देख रहा है। इस बको ध्यानम में किसी को अपने आस पास का खेला बिलकुल नहीं नज़र आ रहा ! कुछ लोग पूरी चतुराई से कोरोना कोरोना खेल रहे हैं ! देश में नाना प्रकार के खेल हो रहे हैं, पर नज़र बंगाल पर टिकी है। सुकई चच्चा बुधई से पूछ रहे हैं, " ई सुनार बांग्ला में सारे सुनार रहेंगे या राशन की दुकान भी होगी?" 
     " अरे चच्चा ! सोच कर काहे वजन घटाए हैं। बहुत दूर का मामला है - का पता, राशन न दें ! "
        दीदी का खेला भी हाई प्रोफाइल है, धक्का मुक्की में लगी चोट पर चढ़ा प्लास्टर उतरने का नाम नही ले रहा।  इसी प्लास्टर को लेकर देव दानव दोनो चिंतित है ! प्लास्टर ने दीदी को व्हील चेयर पर और टी एम सी को मुख्य धारा में ला दिया है ! ये देश का वो सौभाग्यशाली प्लास्टर है जो किसी के लिए वरदान और किसी के लिए अभिशाप बन गया है ! ऐसा प्लास्टर है जो विरोधियों के सुखद सपनों पर कोरोना बनकर गिरा है ! जैसे जैसे प्लास्टर दीर्घ जीवी हो रहा है, विरोधी खेमें में गठिया रोग बढ़ रहा है ! अब इसी प्लास्टर पर बंगाल  का भविष्य टिका है ! "सोनार बांग्ला" के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा इस प्लास्टर के आगे लाचार खड़ा है ! जनता को प्लास्टर वाला पांव नज़र आ रहा है, व्हील चेयर के पीछे मक्खी उड़ाता दुखियारा "घोड़ा" नहीं नज़र आ रहा !  "सोनार बांग्ला" का सारा तिलिस्म इस घायल पैर के नीचे दब गया है ! व्हील चेयर और प्लॉस्टर चिरंजीवी होते जा रहे हैं ! "बाबा जी" सारे नुस्खे बेअसर हो रहे हैं!!

  "ठीक" होने के लिए "पैर" है कि मानता नहीं !

                         (  सुलतान भारती )

Sunday, 21 March 2021

" बही खाता "

                " सत्यमेव  जयते "


             मैं कसम खाता हूं कि आज जो भी कहूंगा सच कहूंगा - सच के अलावा,,,,,,,,, मौका मिला तो ज़माने का लिहाज़ करते हुए थोडा़ बहुत झूठ भी बोलूंगा ! ( वरना लोग ताना मारेंगे कि अच्छे दिन आते ही औकात भूल गया !) जब सच और झूठ पर बहस छिड़ ही गई तो लगे हाथ मुझे कह लेने दो कि दुनियां                " सत्यमेव  जयते "

             मैं कसम खाता हूं कि आज जो भी कहूंगा सच कहूंगा - सच के अलावा,,,,,,,,, मौका मिला तो ज़माने का लिहाज़ करते हुए थोडा़ बहुत झूठ भी बोलूंगा ! ( वरना लोग ताना मारेंगे कि अच्छे दिन आते ही औकात भूल गया !) जब सच और झूठ पर बहस छिड़ ही गई तो लगे हाथ मुझे कह लेने दो कि दुनियां में आदर्श सिर्फ "माल्यार्पण" के काम आता है और झूठ एक ताकतवर हकीकत है ! सत्यमेव जयते की तख्ती लगाकर लोग सरेआम झूठ की मार्केटिंग करते हैं ! थाने के बाहर लिखा होता है,-शांति सुरक्षा न्याय - और इनकी चाहत में अंदर जाते हुए  'शांतिलाल जी' के पैर कांपते हैं ! उन्हें इस खोखले आदर्शवादी सच के पीछे खड़े इस शक्तिशाली झूठ की जानकारी  है कि  "शांतिलाल जी" को  "गांधी जी" के बगैर 'शांति ' नहीं मिलने वाली।  
      "सच" को सत्य मेव जयते मान लिया गया है , इसलिए जीवन भर नीलकंठ बने रहो ! सेठ अखरोट चंद की धर्मशाला , औषधालय और प्याऊ के भरोसे जीवन का नर्क काट कर, मरने के बाद जब एक आम आदमी सत्यमेव जयते की गठरी लेकर धर्मराज के सामने खड़ा  होगा तो क्या उसे स्वर्ग मिलता होगा! या फिर उसके साथ कुछ इस तरह की पूछ ताछ होगी, " क्या नाम है तुम्हारा "?
     ' दुखी लाल '!
     " काम क्या करते थे "?
 ' कभी झूठ नहीं बोला, चोरी नहीं की, किसी को चोट नहीं पहुंचाया , किसी का हक नहीं मारा, लालच नहीं किया, किसी को गाली नहीं दी,,,,'!
" कामचोर कहीं के ,  अबे ! ये तो वो काम हैं जो तूने किया ही नहीं ! इसका मतलब ईश्वर द्वारा दिया गया जीवन व्यर्थ गवां दिया , पक्का नर्क काटेगा !  ख़ैर - जीवन में कभी कोई गौशाला या धर्मशाला बनवाया था या नहीं ?'
      " नहीं, बल्कि मेरा परिवार तो खुद कभी कभी धर्मशाला में खा कर आ जाता था "!
       " कभी किसी गरीब की शादी कराई हो,या सर्दी में कंबल बांटा हो ?"
       " नहीं "! दुखी लाल को अपनी आवाज़ भी दूर से आती हुई लगी ।
                 चित्रगुप्त ने कंप्यूटर पर फाइनल रिर्पोट लगाकर धर्मराज को मेल करते हुए शिफारिश की, " ये बहुत गरीब आदमी है , पृथ्वी पर रहकर भी विकास नहीं कर पाया ! गरीबी और अभाव का नर्क भोग कर आया है , बेचारे को सुख का अनुभव नहीं है !  अगर इसे स्वर्ग में डाला गया तो इसे पक्का इंफेक्शन हो जायेगा ! "
           सच की पैरवी करने वाले खुद उसे " कड़वा" बताते हैं ! यही महापुरुष समाज को उपदेश देते हुए कहते हैं, " सत्यम ब्रुयात- प्रियम ब्रूयात "! ( सच बोलना चाहिए - मीठा बोलना चाहिए )  अब आप सर धुनिए, जब सच कड़वा होता है तो मीठा कैसे बोलोगे ?  सच की नसों मे झूठ की चाशनी डालिए ! दूसरी तरफ़ झूठ में नीम जैसी कड़वाहट नही, कलाकंद जैसी मिठास है। शूगर का पेशेंट भी बोलने से परहेज़ नहीं करता ! सच बोलने के लिए प्राणी को हिम्मत, कोशिश और संस्कार की ज़रूरत पड़ती है ! झूठ के लिए मुंह मे जबान होना  काफ़ी है ! बाकी यार दोस्त बोलना सिखा देते हैं,और कुछ ही दिनों में मुंह से फूल झड़ने लगते हैं !
             दुनियां के ८० प्रतिशत लोगों की लगाम २० प्रतिशत लोगों के हाथ में है । यही बीस प्रतिशत लोग बहुमत के गले में आदर्शवादिता की घंटी बांधते हैं ! यही लोग तय करते हैं कि किसे कड़वा सच बोलना है और किसे "निकृष्ट झूठ" की मार्केटिंग करना है ! बस इसके बाद अलौकिक विकास शुरू हो जाता है, एक तबका सत्य और स्वर्ग की ख़ोज में तीर्थयात्रा की ओर जाने लगता है , और दूसरा लोभ,लालच और झूठ के पापकुंड में नहाता " विदेश यात्रा" की ओर ! 'धर्मबुद्धि ' पेट काट कर बच्चों का भविष्य बैंक में जमा करेगा और "पापबुद्धि"  बैंक  समेट कर फरार हो जायेगा! अस्सी फीसदी वाला तबका "बेचारा" होता चला जायेगा और बीस प्रतिशत वाला " विश्व गुरु "!
         सच की पैरवी बड़ी हिम्मत का काम है और विरले ही इस पुलसरात पर टिक पाते हैं ! ये भी सच है कि जब तक सच ज़िंदा है, संसार वजूद में है। सच विहीन संसार एक बेलगाम हिंसक भीड़ में बदल जायेगा ! मगर दिनो दिन सच का गिरता सेंसेक्स झूठ का वर्चस्व बढ़ा रहा है !
विडंबना ये है कि जिस ढांचे पर सच को प्रमोट करने की जिम्मेदारी है वही झूठ के तानेबाने में लिपटा हुआ है। फल ये हुआ कि सच के पेड़ पर "बौर" आते ही झूठ का "लासा" लग जाता है ! झूठ के ब्रांड एंबेसडर कौए ऐसे बगीचे से कोयल को खदेड़ कर खुद बैठ जाते हैं! झूठ कितना पॉवरफुल है ये अगले महीने यूपी के पंचायत चुनाव में जाकर देखना ! आरक्षित सीटों पर हरिजन  उम्मीदवार की पीठ पर "बेताल" की तरह सवार ठाकुर, सैयद, पंडित या खान साहब का छाया चित्र प्रशासन के अलावा सबको नज़र आ आयेगा
          सच और झूठ की रेस में सच को कछुआ बना कर  जिता देना अक्ल को अफीम चटाने जैसा है ! झूठ कभी सोता नहीं, और सच इस गफलत में दौड़ता नहीं कि हम तो - सत्यमेव जयते - में आते हैं ! हम इंसानों को सदियों से  'थ्योरी'  पढ़ाई जाती है और 'प्रैक्टिकल' को छुपाया जाता है ! हम थ्योरी के आदर्शवादिता की अफीम चाटकर सोते आए हैं फिर भी चारण हमे विजेता घोषित कर देते हैं ! मैं ये नहीं कहता कि झूठ के पैरोकार बने, मेरा मकसद ये है कि सच का संरक्षण हो । सच को किताबों से निकाल कर कल्ब ( दिल) में उतारा जाए ! सच अगर सत्यमेव जयते है तो समाज और संविधान में नज़र भी आना चाहिए !       

        सच का उपहास उड़ाते झूठ की ताज़ा बानगी देखिए !  "आर्थिक रूप से कमज़ोर" तबके की मदद के लिए एसडीएम ऑफिस में उपलब्ध ( EWS) फॉर्म के एक क्लॉज में अभ्यार्थी से  " तीन साल के आयकर रिटर्न " का लेखा जोखा मांगा गया है ! ( अब अगर गरीब आदमी को आर्थिक सहायता प्राप्त करना है तो पहले तीन साल तक अमीर होकर इनकम टैक्स भरे ! तभी उसके गरीब होने पर यकीन होगा !) 

            वरना - हट जा ताऊ पाछे नै !!

                           ।।। ( सुलतान भारती ) !!! में आदर्श सिर्फ "माल्यार्पण" के काम आता है और झूठ एक ताकतवर हकीकत है ! सत्यमेव जयते की तख्ती लगाकर लोग सरेआम झूठ की मार्केटिंग करते हैं ! थाने के बाहर लिखा होता है,-शांति सुरक्षा न्याय - और इनकी चाहत में अंदर जाते हुए  'शांतिलाल जी' के पैर कांपते हैं ! उन्हें इस खोखले आदर्शवादी सच के पीछे खड़े इस शक्तिशाली झूठ की जानकारी  है कि  "शांतिलाल जी" को  "गांधी जी" के बगैर 'शांति ' नहीं मिलने वाली।  
      "सच" को सत्य मेव जयते मान लिया गया है , इसलिए जीवन भर नीलकंठ बने रहो ! सेठ अखरोट चंद की धर्मशाला , औषधालय और प्याऊ के भरोसे जीवन का नर्क काट कर, मरने के बाद जब एक आम आदमी सत्यमेव जयते की गठरी लेकर धर्मराज के सामने खड़ा  होगा तो क्या उसे स्वर्ग मिलता होगा! या फिर उसके साथ कुछ इस तरह की पूछ ताछ होगी, " क्या नाम है तुम्हारा "?
     ' दुखी लाल '!
     " काम क्या करते थे "?
 ' कभी झूठ नहीं बोला, चोरी नहीं की, किसी को चोट नहीं पहुंचाया , किसी का हक नहीं मारा, लालच नहीं किया, किसी को गाली नहीं दी,,,,'!
" कामचोर कहीं के ,  अबे ! ये तो वो काम हैं जो तूने किया ही नहीं ! इसका मतलब ईश्वर द्वारा दिया गया जीवन व्यर्थ गवां दिया , पक्का नर्क काटेगा !  ख़ैर - जीवन में कभी कोई गौशाला या धर्मशाला बनवाया था या नहीं ?'
      " नहीं, बल्कि मेरा परिवार तो खुद कभी कभी धर्मशाला में खा कर आ जाता था "!
       " कभी किसी गरीब की शादी कराई हो,या सर्दी में कंबल बांटा हो ?"
       " नहीं "! दुखी लाल को अपनी आवाज़ भी दूर से आती हुई लगी ।
                 चित्रगुप्त ने कंप्यूटर पर फाइनल रिर्पोट लगाकर धर्मराज को मेल करते हुए शिफारिश की, " ये बहुत गरीब आदमी है , पृथ्वी पर रहकर भी विकास नहीं कर पाया ! गरीबी और अभाव का नर्क भोग कर आया है , बेचारे को सुख का अनुभव नहीं है !  अगर इसे स्वर्ग में डाला गया तो इसे पक्का इंफेक्शन हो जायेगा ! "
           सच की पैरवी करने वाले खुद उसे " कड़वा" बताते हैं ! यही महापुरुष समाज को उपदेश देते हुए कहते हैं, " सत्यम ब्रुयात- प्रियम ब्रूयात "! ( सच बोलना चाहिए - मीठा बोलना चाहिए )  अब आप सर धुनिए, जब सच कड़वा होता है तो मीठा कैसे बोलोगे ?  सच की नसों मे झूठ की चाशनी डालिए ! दूसरी तरफ़ झूठ में नीम जैसी कड़वाहट नही, कलाकंद जैसी मिठास है। शूगर का पेशेंट भी बोलने से परहेज़ नहीं करता ! सच बोलने के लिए प्राणी को हिम्मत, कोशिश और संस्कार की ज़रूरत पड़ती है ! झूठ के लिए मुंह मे जबान होना  काफ़ी है ! बाकी यार दोस्त बोलना सिखा देते हैं,और कुछ ही दिनों में मुंह से फूल झड़ने लगते हैं !
             दुनियां के ८० प्रतिशत लोगों की लगाम २० प्रतिशत लोगों के हाथ में है । यही बीस प्रतिशत लोग बहुमत के गले में आदर्शवादिता की घंटी बांधते हैं ! यही लोग तय करते हैं कि किसे कड़वा सच बोलना है और किसे "निकृष्ट झूठ" की मार्केटिंग करना है ! बस इसके बाद अलौकिक विकास शुरू हो जाता है, एक तबका सत्य और स्वर्ग की ख़ोज में तीर्थयात्रा की ओर जाने लगता है , और दूसरा लोभ,लालच और झूठ के पापकुंड में नहाता " विदेश यात्रा" की ओर ! 'धर्मबुद्धि ' पेट काट कर बच्चों का भविष्य बैंक में जमा करेगा और "पापबुद्धि"  बैंक  समेट कर फरार हो जायेगा! अस्सी फीसदी वाला तबका "बेचारा" होता चला जायेगा और बीस प्रतिशत वाला " विश्व गुरु "!
         सच की पैरवी बड़ी हिम्मत का काम है और विरले ही इस पुलसरात पर टिक पाते हैं ! ये भी सच है कि जब तक सच ज़िंदा है, संसार वजूद में है। सच विहीन संसार एक बेलगाम हिंसक भीड़ में बदल जायेगा ! मगर दिनो दिन सच का गिरता सेंसेक्स झूठ का वर्चस्व बढ़ा रहा है !
विडंबना ये है कि जिस ढांचे पर सच को प्रमोट करने की जिम्मेदारी है वही झूठ के तानेबाने में लिपटा हुआ है। फल ये हुआ कि सच के पेड़ पर "बौर" आते ही झूठ का "लासा" लग जाता है ! झूठ के ब्रांड एंबेसडर कौए ऐसे बगीचे से कोयल को खदेड़ कर खुद बैठ जाते हैं! झूठ कितना पॉवरफुल है ये अगले महीने यूपी के पंचायत चुनाव में जाकर देखना ! आरक्षित सीटों पर हरिजन  उम्मीदवार की पीठ पर "बेताल" की तरह सवार ठाकुर, सैयद, पंडित या खान साहब का छाया चित्र प्रशासन के अलावा सबको नज़र आ आयेगा
          सच और झूठ की रेस में सच को कछुआ बना कर  जिता देना अक्ल को अफीम चटाने जैसा है ! झूठ कभी सोता नहीं, और सच इस गफलत में दौड़ता नहीं कि हम तो - सत्यमेव जयते - में आते हैं ! हम इंसानों को सदियों से  'थ्योरी'  पढ़ाई जाती है और 'प्रैक्टिकल' को छुपाया जाता है ! हम थ्योरी के आदर्शवादिता की अफीम चाटकर सोते आए हैं फिर भी चारण हमे विजेता घोषित कर देते हैं ! मैं ये नहीं कहता कि झूठ के पैरोकार बने, मेरा मकसद ये है कि सच का संरक्षण हो । सच को किताबों से निकाल कर कल्ब ( दिल) में उतारा जाए ! सच अगर सत्यमेव जयते है तो समाज और संविधान में नज़र भी आना चाहिए !       

        सच का उपहास उड़ाते झूठ की ताज़ा बानगी देखिए !  "आर्थिक रूप से कमज़ोर" तबके की मदद के लिए एसडीएम ऑफिस में उपलब्ध ( EWS) फॉर्म के एक क्लॉज में अभ्यार्थी से  " तीन साल के आयकर रिटर्न " का लेखा जोखा मांगा गया है ! ( अब अगर गरीब आदमी को आर्थिक सहायता प्राप्त करना है तो पहले तीन साल तक अमीर होकर इनकम टैक्स भरे ! तभी उसके गरीब होने पर यकीन होगा !) 

            वरना - हट जा ताऊ पाछे नै !!

                           ।।। ( सुलतान भारती ) !!! 

Tuesday, 16 March 2021

बडे़ साइज़ की " सोच"

         बडे़ साइज़ की  छोटी "सोच"

           मैं अपनी तुच्छ सोच को लेकर दुखी हूं ! सीनियर सिटीजन होने की सीमा रेखा पर खड़ा होकर भी सोच के मामले में अभी नाबालिग हूं ! बुद्धिलाल जी हमेशा कहते रहते हैं कि आदमी को "बडा" सोचना चाहिए ! (वैसे अभी तक उन्होंने सोच की साइज़ नही बताई है !) वो सबको सलाह देते हैं, - जीवन में तरक्की करना है तो "बड़ा" सोचो - ! हालांकि बडा सोचने के मामले में उनकी सोच को लेकर मुझे थोडा़ डाउट है, क्योंकि अपनी शिक्षा को लेकर  उन्होंने हाई स्कूल से बड़ा सोचा ही नहीं ! तीन दिन पहले भी मुझे सुना कर कह रहे थे, -." आदमी बेशक गली कूचे का लेखक हो, और उसकी रचना मोहल्ले के साप्ताहिक अख़बार के अलावा कहीं न छपती हो, पर उसकी सोच बड़ी होनी चाहिए ! "
           मैने अक्सर कई बुद्धिजीवी प्रजाति के लोगों से से सुना है कि - सोच "बड़ी" होनी चाहिए - ! सुन सुन कर मेरे पतझड़ ग्रस्त दिल में भी सावन जाग उठा है ! ज़िंदगी के इंटरवल के बाद वाली लाइफ में पसरे रेगिस्तान के लिए शायद " सोच" ही जिम्मेदार है ! सोच को - लार्जर देन लाइफ - होना चाहिए था , पर हुआ उल्टा ! लाइफ बढ़ती गई और सोच सिमटती गई ! अब "बुद्धिलाल" जी कहते हैं कि बड़ा आदमी होने के लिए सोच बड़ी होनी चाहिए ! ये एक बड़ी समस्या है मेरे लिए , क्योंकि सोच बढ़ाने वाला फार्मूला कहां से लाऊं ! बड़ा आदमी तो मैं बचपन से होना चाहता था, पर तब घर वालों ने मिसगाइड कर दिया ! अब्बा श्री बोले थे, - "पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब ( बडा आदमी ) " ! जब पढ़ने लगा तो साहित्य ने मिस गाइड कर दिया - ' बड़ा  हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,,',! ( रहीम के दोहे भी मेरे बड़े होने के पक्ष में नहीं थे !) अब्बा श्री और मास्साब  दोनों चाहते थे कि मैं पढ़ लिख कर बडा आदमी बनूं ! तब किसी ने नहीं बताया था कि बड़ा आदमी होने के लिए शिक्षा नहीं - ' सोच' बड़ी होनी चाहिए ! अब कोरोना और बेकारी के बाद सोच कुपोषण का शिकार हो गई!
       हमारे एक विद्वान मित्र हैं जो बड़ा आदमी होने का वर्कशॉप चलाते हैं ! इस काम में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है ! मुझे उनसे गहरी ईर्ष्या है, (क्योंकि पैंसठ साल के बाद भी वो सफेद दाढ़ी में जवान बने हुए हैं !) अख़बार में छपी उनकी एक गाइड लाइन के मुताबिक़ , - बड़ा होने के लिए आदमी को अपनी "सोच" बड़ी करनी चाहिए -! पिछला पूरा साल मैं सिर्फ़ कोरोना के बारे में ही सोचता रहा, लिहाज़ा सोच बडा करने का कोई मौका नहीं मिला ! पूरा देश बडा सोचने की जगह कोरोना को छोटा करने में लगा था ! इस साल मेरे लिए बेकारी एक बड़ी समस्या है, पर इस हालत में भी मैं बड़ा सोचना  चाहता हूं !  प्रॉब्लम ये है कि कभी किसी ने सिखाया ही नहीं कि बेकारी में बडा कैसे सोचा जाता है! मेरे जैसा छोटा आदमी, जिसकी सोच - दाल, भात और चपाती से ऊपर जाती ही नहीं, वो क्या खाक नीरव मोदी या विजय माल्या जैसी बड़ी सोच ला पायेगा !
               पर,,,,अब मैं मानूंगा नहीं , मुझे हर हाल में बड़ा बनना है ! लिहाजा मैं हर उस महापुरुष से दीक्षा लेना चाहता हूं जो  " बड़ा सोचने" का हुनर जानते हैं। एकबार मैं बड़ा सोच कर देखना चाहता हूं। वैसे मैं अपनी तरफ़ से  जब भी बड़ा सोचने की कोशिश  करता हूं तो बेगम जली  कटी  सुना देती  हैं, - " कुछ काम भी करोगे या पड़े पड़े सोचते ही रहोगे ! वसीयत कर जाऊंगी कि लड़की कुंवारी मर जाए पर किसी लेखक से शादी ना करे !" देख लिया न,  बड़ी सोच के रास्ते में किस क़दर स्पीड ब्रेकर खड़े  हैं।
            मैंने बड़ी सोच के बारे में "वर्मा जी" से जानकारी मांगी तो वो भड़क उठे, " जीडीपी तेरे कैरेक्टर की तरह नीचे गिर रहा है और तू सोच बड़ी करने में लगा है ! मूर्ख! ज्यादातर लोगों ने अपने काले धंधे का नाम ही  " बड़ी सोच" रख दिया है "! मैं फिर भी चौधरी से पूछ बैठा, " मै बड़ा सोचना चहता हूं "! चौधरी ने गुस्से में जवाब दिया, - ' मेरी तरफ से रुकावट कोन्या, तू बड़ा सोचे या सल्फास खाए- पर पहले म्हारी उधारी चुकता दे! मोय भैंसन कू हिसाब देना पड़  ज्या ! कदी समझा कर "!!
         " बड़ा"  कैसे सोचूं,-बस यही सोच सोच कर वज़न घटा लिया है ! शायद मेरा बैकग्राउंड ही बड़ी सोच में बाधक  है ! यूपी के छोटे से गांव में पैदा हुआ , छोटा सा आंगन , ऊपर मेरे हिस्से का आसमान ! साझी धूप की विरासत में पलते छोटे छोटे सपने ! मां बाप की खुशी और नाखुशी के एहतराम में झूमती गेहूं की सुनहरी बालियों की मानिंद जवानी आई तो उन्हीं छोटे सपनों को लिए दिल्ली आ गया ! दिल्ली में पैर जमे संगम विहार में, जो प्रदेश की सबसे बड़ी सुविधा विहीन क्लस्टर कॉलोनी है । यहां कुछ और सोचने से पहले प्राणी को पीने वाले पानी के बारे में सोचना पड़ता है । सारे सपने पानी, राशन और सड़क के हैंगर पर टंगे मिलते हैं ! मेरी यही प्राब्लम है, जब भी ' बड़ा ' सोचने की कोशिश करता हूं , सारी सोच राशन कार्ड लेकर दुकान के सामने खड़ी हो जाती है  ! पेट से बंधी छोटी सोच !!

       फिर भी,,,,,, "बड़ी"  सोच के लिए आज भी - दिल है कि  मानता नहीं !!

                 (  सुलतान भारती  )

Saturday, 13 March 2021

" गलतफहमी"

             " गलत फहमी " 

                             मैं भी इस बीमारी का थोडा  बहुत शिकार हूं, लिस्ट में ऐसे मित्र बहुत हैं जिन्हें गम नहीं गलत फहमी ने मारा हुआ है। चचा बकलोल कहते हैं कि उन्हे इश्क से ज़्यादा गलतफहमी ने डुबोया है ! ये मुआ इंफेक्शन किसी भी उम्र में हो सकता है ! इसका कोई इलाज़ भी नहीं है ! रोगी किसी कीमत पर ये मानता ही नहीं कि वो किसी घातक बीमारी का शिकार है । गलत फहमी को वो सच मान कर जीने लगता है ! ऐसे दुर्लभ महापुरुषों से दुनिया का गुल्लक भरा हुआ है ।
       गांव में हमारे एक मित्र हुआ करते थे ! ग्रेजुएशन के बाद अचानक उन्हें ये गलत फहमी हो गई कि उनके चेहरे में काऊ ब्वॉय वाली खासियत है , और हर लड़की उन पर प्रथम दृष्टया आशिक हो सकती है ! ( हालांकि इस गलत फहमी से पहले उन पर ललिता पवार जैसी महिलाओं ने भी ध्यान नहीं दिया था !) इस घातक बीमारी की चपेट में आते ही वो गोपियों की तलाश में निकल पड़े ! जब तक घर वाले बीमारी सूंघ पाते, पुत्र रत्न ने कई लड़कियों को छेड़ डाला ! दो एक ने लोक लाज के डर से इग्नोर किया तो कुछ ने घर तक पीछा किया ! घर वालों को जब बेटे के टैलेंट का पता चला तो मुंह पीट लिया ! वो शादी ढूंढने लगे, किंतु  'होनहार विरवान' को इतना धैर्य कहां, एक रात गांव में हंगामा हो गया, पता चला कि गांव के एक लाला जी की छत पर सोती उनकी युवा लड़की को जगाकर प्रणय निवेदन कर बैठे थे ! कच्ची नींद से उठी लडकी ने डर कर शोर मचाया तो निर्भीक प्रेमी भागा भी नहीं। मामला सजातीय था, दोनों परिवारों ने असहमत होते हुए भी उनकी  शादी  पर सहमति जताई और इस तरह मित्र की गलत फहमी पर पूर्ण प्रतिबंध लग गया !
       लेकिन गृहस्थ जीवन के बीस साल बाद एक बार फिर उन्हे गलतफहमी ने धर दबोचा ! हालांकि तब उनकी उम्र पैंतालिस साल हो चुकी थी, पर इससे गलत फहमी पर क्या फ़र्क पड़ने वाला था। इस बार की  गलतफहमी बिलकुल मुख्तलिफ किस्म की थी ! अबकी बारी उन्हें लेखक होने की गलत फहमी हो गई । ये पहले के मुकाबले ज्यादा घातक बीमारी थी,- लगभग असाध्य किस्म का रोग था जिसका दूर दूर तक कोई हकीम या वैद्य नहीं था ! जब तक घर वाले भांप पाते , उन्होंने दो सौ अस्सी पेज का एक उपन्यास लिख डाला ! घर में परचून की दूकान थी, पत्नी सोचती थी कि हर वक्त बही खाता लिखते हैं, लेकिन जब पता चला तो मुंह पीट लिया ! उधर मित्र की प्रॉब्लम थी उपन्यास के श्रोता नहीं मिल रहे थे ! हार कर उन्होंने दूकान पर आने वाले गांव के
ग्राहकों को पाठक बनाया । सोंठ के ग्राहक को साहित्य की ओर खींचने में श्रोता उधार मांगने लगे ! नवोदित लेखक मगन थे और दुकान अवसाद ग्रस्त ! दोनों को बचाने के लिए पत्नी ने एक दिन उस "दुर्लभ" पांडुलिपि को आग के हवाले कर दिया !
        साहित्यकारों में गलत फहमी की बीमारी आम है ! बेशक कंधे से अपना एक सर न संभल रहा हो , पर इस लंका में सब अपने आप को "दशानन" समझते हैं ! कुछ साहित्यकार बेतरतीब दाढ़ी मूछों में  लपेट कर  खुद को ऐसे परोसते हैं गोया साहित्य का सारा डैमेज कंट्रोल संभालने में खुद को संभालने का भी होश नहीं रहा ! बिलकुल ताज़ा ताज़ा साहित्य में लैंड हुए लेखक को हर ऐरू गैरू को सलामी ठोकना होता है ! अगर छोटा साहित्यकार बडे़ को सलाम करता है तो सामने वाला फर्जी बड़प्पन ओढ़ने के चक्कर में मुंह की जगह सर हिलाकर जवाब देता है । बड़ा साहित्यकार होने की गलतफहमी , अंडे के बाहरी खोल की तरह होती है जिसके टूटते ही इमेज बिखर जाती है। गलत फहमी का शिकार कथित बड़ा साहित्यकार  व्हाट्स ऐप ग्रुप ज़रूर बनाता है , ताकि अपने जैसे और " विद्वानों" का समर्थन जुटा सके ! इन्हे अपने से इतर कहीं टैलेंट नज़र नहीं आता ! वो बेशक सोशल मीडिया या अपनी मैगजीन के अलावा कहीं न छपें, पर नामचीन लेखको से भी डींग मार लेते हैं, - " मैने कभी आपको पढ़ा नहीं!"
     कुछ लोग इतने विलक्षण होते हैं कि गलतफहमी मे ही जी लेते हैं ! कुछ को सच के प्रति गलत फहमी होती है तो कुछ गलत फहमी को ही सच मान लेते हैं ! एक युवक मेरा बड़ा करीबी है, उसे ये गलत फहमी दिन में बार बार होती है कि उसके हाथ पैर गंदे हो गए हैं ! वो हर वक्त पानी की तलाश में रहते हैं और दिन भर में पचासों बार हाथ पैर धोते हैं ! कई बार तो वो हाथ पैर धो कर घर से बाहर आए और  तुरंत घर में घुस कर हाथ पैर धोने लगे ! शायद बाहर की हवा लगते ही उन्हें हाथ पैर गंदे हो जाने की गलत फहमी हो गई थी ! इस मानसिक प्रदूषण ने आज भी उन्हें कुंवारा बना रखा है।
          ये नामाकूल बीमारी मारती कम घसीटती ज्यादा है। दारू पीने के बाद कई महापुरुष गलत फहमी के शिकार हो जाते हैं। (वो कहानी तो सुनी होगी जब दारू के ड्रम में गिरा चूहा नशे मे आकर बिल्ली को ललकार रहा था!)  दारू अंदर - गलत फहमी बाहर ! ये दारू की ही महिमा है कि नशे में धुत प्राणी नदी और "नाली" में भेदभाव नहीं करता ! जो आसानी से सुलभ हो उसी में कूद पड़ता है ! नशा और गलती फहमी एक ही प्रजाति की दो बीमारी है, और दोनों की सदगति नाली अथवा गाली है !

             गलत फहमी कालांतर में कल्पना को जन्म देती है और कर्म विहीन कल्पना इंसान को नाकारा बना देती है ! गलत फहमी और स्वर्णिम कल्पना के संसार में उड़ता हुआ प्राणी आखिरकार एक दिन खुद को हकीकत की नाली में ही गिरा हुआ पाता है ! कर्मविहीन सुखद कल्पना हो या गलत फहमी, अंतत: बहुत तकलीफ़ देती हैं ! कि मैं कोई झूठ बोल्या,,,,?

             (सुलतान भारती )
      

   
         

Wednesday, 10 March 2021

(बही खाता)

         " बाकी सब खैरियत है"!

                  महंगाई डायन खाए जात है, बाकी सब खैरियत है ! अभी कल की बात है - मैंने अपनी बाइक से विनम्र विनती की थी, -' रुक जाना नहीं तुम कहीं हांफ के,,,,'!  पेट्रोल के दामों में लगातार वृद्धि के बाद  अब आत्मनिर्भरता वहां आ पहुंची है, जहां पैट्रोल पम्प को देखते ही बाइक के चरित्र पर संदेह होने लगता है ! हर वक्त जेब में सौ रुपया नहीं होता , ऐसी जर्जर अर्थव्यवस्था में पेट्रोल पंप के सामने से स्कूटर या बाइक खींचते हुए घर की ओर बढ़ना, सड़क पर अपना जुलूस निकालने जैसा है! पर क्या करें, मैं तो जाने कितनी बार अपना जुलूस निकाल चुका हूं  ! इसके अलावा तो,,,बाकी सब खैरियत है !
        हमारे "वर्मा" जी ने अभी दो महीने पहले अपने चरित्र की बाई पास सर्जरी कराई है ! उन्होंने मौसम अनुकूल देखकर कांग्रेस छोड़ दिया । अब वो राष्ट्रवादी पार्टी में शामिल हैं और मंहगाई के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार बता रहे हैं ! कल मैं उनसे मिला तो उन्होंने सीधा मुझपर हमला बोल दिया, -" आप लोग देश के लिए क्या काम कर रहे हैं "?
              " मेरे पास कोई काम नहीं है, मेरी नौकरी चली गई है "!
        " इसी लिए कहता हूं कि कांग्रेस छोड़ दो, वरना एक दिन घर में नौकरी तो क्या नमक तक नही होगा "!
        " पर कांग्रेस तो सत्ता से बाहर है ?"
 " तभी तो इतना आग मूत रही है ! सोचो , जब कांग्रेस पॉवर में थी तो कभी इतनी महंगाई थी ! कभी किसी की नौकरी गई ! कभी पेट्रोल सौ रुपया लीटर बिका ? कभी नहीं, क्योंकि महंगाई, पेट्रोल, नौकरी अपराध सब कांग्रेस के हाथ में है ! कांग्रेस जब पॉवर में थी तो किसान आंदोलन क्यों नहीं हुआ ?"
       " राजीव गांधी के शासन में महेंद्र सिंह टिकैत हज़ारों किसानों को लेकर इंडिया गेट पर बैठ गए थे "!
      " और फिर आराम से चले भी गए थे, लाल क़िले में ट्रैक्टर लेकर तो नहीं घुसे ? मैं फिर कह रहा हूं कि रामराज चाहिए तो कांग्रेस से छुटकारा लो "!
      " पिछले इलेक्शन में यही बात आपने भाजपा के लिए कही थी !"
     " तब कांग्रेस ने मेरा ब्रेन वाश किया था, अब मैं नॉर्मल हो चुका हूं ! अब मैं इस पावन धरा को कांग्रेस मुक्त करके दम लूंगा ! प्रायश्चित करने के लिए तुझे मेरे साथ बंगाल चलना होगा "! 
    " बंगाल ! मगर मैने किया क्या है ? "
" भय, भ्रम या भूलवश तूने आज तक जो गैर राष्ट्रवादी पार्टियों को वोट दिया था, उसके प्रायश्चित करने का शुभ मुहूर्त आ गया है !  फकीरा चल चला चल "!
           मुझे पता था कि वर्मा जी मेरी सुनेंगे नहीं ! मैं आगे बढ़ गया ! देहात में एक कहावत सुनी थी,- चोटिल अंगूठे पर ही ठोकर लगती है - ! जबसे नौकरी गवांई है, फ़ोन पर दो प्रस्ताव बार बार आ रहा है। लगता है कि हातिमताई ने फेस बुक संभाल लिया है ! कल भी एक अनजान फोन आया, ' क्या आप को ज़ीरो इंट्रेस्ट पर लोन चाहिए "?  मैने बड़े मुश्किल से खुद को लोन लेने से रोका ! खुद पर काबू पाते हुए जवाब दिया , -" एक हफ़ते से आप बराबर दे ही रहे हैं ! किसी और को भी दे दो, अब नहीं लिया जाता "!
      " आप मजाक कर रहे हैं !"
    " शुरू तो आपने किया था लोन परवर "!
सिनेरियो बदल गया ! अब फेस बुक पर एक और व्यापारी ने मुझे ढूढ लिया है ! कल फ़ोन करके मुझे बता रहा था, " शायद आप को पता नहीं कि आप कितने बडे़ राइटर हैं ! आप पांच उपन्यास लिख चुके हैं ! कई अखबारों में आपके आर्टिकल छपते हैं !  फेस बुक पर आपके बडे़ फॉलोअर हैं "!
        " हां, उन में से कई मुझे गालियां भी देते हैं !"
" चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे राहत भुजंग -!  आप महान हैं तो हैं "!
      " अब आप भी मुझे लोन  देंगे क्या ?"
" नहीं, मैं तो आपको महान लेखक बनाने आया हूं , सिर्फ इक्कीस सौ का खर्चा  है "! 
     " रुपए की जगह मैं आपको आधी बोरी गेहूं दे सकता हूं !"
वो तुरंत  साहित्य से व्यापार की ओर चले गए,   " जहां काम आवे सुई, कहां करे तलवार ! मैं सिर्फ इतना कर सकता हूं कि इक्कीस सौ की जगह ग्यारह सौ ले लूं ! अब ये तुम्हारे ऊपर डिपेंड करता है कि विख्यात होना है या नहीं ! तुम्हारे जैसे कोरोना ग्रस्त लेखक के लिए इससे बेहतर पैकेज नहीं हो सकता "!

        क्या कहूं, सूखे का क्षेत्रफल लगभग रोज बढ़ता जाता है ! न्यूज चैनल के अलावा कहीं हरियाली नहीं है ! सिर्फ न्यूज चैनल पर मार्च के महीने में मानसून उपलब्ध है! विडंबना ये है कि अर्थव्यवस्था के इस पतझड़ में भी मोहल्ले वालों को पूछने पर बताना पड़ता है, - " जी हां, बाकी सब खैरियत है "!

        ( सुलतान भारती )