Thursday, 21 January 2021

(व्यंग्य भारती) जब मन में दो दो लड्डू फूटे,,,!

          अब यही समस्या है दुरंत ! बुद्धिलाल जी कल मुझे अपनी समस्या बता रहे थे, - 'लड़का पच्चीस साल का हो गया, पढ़ाई की अपेक्षा what's app  में ज्यादा व्यस्त रहता है , क्या करूँ मान्यवर-?"
      " अपनी इस आपदा  से  छुटकारा पाना चाहते  हो तो  फौरन  लौंडे की शादी कर दो! "
                      बुद्धि लाल जी मुस्कुराए तो मैं भी अतीत में  जा पहुंचा ! जब मेरी शादी तय होने लगी तो मै घनघोर कश्मकश में था कि इसे कोरोना जैसी आपदा समझूं या जीवन में अमृत महोत्सव का अवसर । एक तरफ शादी शुदा भुग्तभोगी  मित्र चेतावनी दे रहे थे- '. सावधान ! आगे 11000  बोल्ट !!  दूसरी तरफ' कुंवारे मित्र हवन कुंड की ओर धकिया रहे थे , " मत चूको सुलतान !' ( सच कहूं, जो मित्र मुझे  शादी के 'लाक्षागृह' से बचने की सलाह दे रहे थे, तब वही लोग मुझे दुर्योधन लग रहे थे ! शादी न करने की उनकी हर नेक सलाह मुझे षडयंत्र लग रही थी !) आखिरकार,पहुंची वहीं पे ख़ाक जहां का खमीर था -! जन्नत को पहचानने में एक और बुद्धिजीवी असफल रहा ! ( ख़त को तार  समझना, और थोड़े लिखे को बहुत समझना !) अब आदम की संतानों को उनकी वंशानुगत ग़लती का सलीब कयामत तक ढोना है !
           ख़ैर ,  समय की कसौटी पर रुई की तरह धुनी जा रही ज़िंदगी के लिए शादी क्या है ?  आपदा या अवसर ?  वैश्विक बहस खिंच जायेगी ! इस मुद्दे पर मुंडे मुंडे मतिरभिन्ना हो सकते हैं ! लेकिन  दौरे कोरोना में जो प्राणी शादी करने  का खतरा उठा रहे थे उनके लिए- शादी करके - दो गज दूरी ऊपर से मास्क ज़रूरी- किसी 'आपदा '  से कम नहीं  था !  वैसे देखा जाये तो- "शादी" क्षणभंगुर "अवसर" का मायावी वर्तमान है, और "आपदा" अजर अमर भविष्य ! शादी के बही खाता में अवसर बहुधा कल्पना है और आपदा एक क्रूर हकीक़त ! ( अभी कुवारों को ये खुलासा हलाहल लग रहा होगा ! रात दिन प्रेमिका से चैट कर अपने लिए आपदा की बुकिंग करने मे लगे अविवाहित युवाओं को मेरी सलाह ज़हर लग रही होगी !)
        कोरोना काल में दिल्ली  और महाराष्ट्र पर कोरोना  कुछ ज्यादा ही मोहित था ! जब देखो तब भीड़ लेकर भोज में आ जाता था ! आया सावन झूम के! आपदा है कि मानता नहीं !  पब्लिक पूछती रही, - ' कोरोना तुम कब जाओगे-'! कोरोना इमरान खान की तरह विलाप कर रहा था , - तेरे जुल्फों से जुदाई तो नहीं मांगी थी -'! उस दौर में हुई शादियों के लिए कोरोना आपदा भी रहा और अवसर भी  ! मार्च २०२० से जुलाई २०२० तक  कोरोना के ' कथित तांडव ' के चलते न्यूनतम बजट में सैकड़ों शादियां निपट गईं ! दिल्ली की ऐसी दो शादियों में मेरी भी शिरकत रही ! एक में दोनों पक्ष को मिला कर ३२ लोग थे और दूसरे में 18 लोग .। काश दहेज पर भी कोरोना नियम लागू हो जाए !
               सवाल वहीं खड़ा है, शादी क्या है - आपदा या अवसर ! हमारे यूपी के ग्रामीण विद्वानों ने इसे  " गुड़ भरी हंसिया" कहा है ! ( हंसिया एक धारदार किसानी  औजार है !) इस परिभाषा में मिठास का अवसर भी है और गला कट जाने की आपदा भी ! शादी की इससे बड़ी कालजई परिभाषा दूसरी नहीं हो सकती ! इसमें अनुभव, इतिहास, वर्तमान ,  भविष्य  और चेतावनी सब कुछ है !  ना समझे तो अनाड़ी है ! लेकिन,,,कौन कमबख्त इस उम्र में समझना चाहता है !  बुज़ुर्ग चिल्लाते रहते हैं,- ' इक आग का दरिया है,,,!' मगर लोग कतार लगा कर आपदा के उसी दरियाए आतिश में महुआ की तरह टपकने  का अवसर ढूंढते हैं ! ऊपर वाले तेरा जवाब नहीं, - जन्नत का फ़ोटो दिखा कर दोजख गिफ्ट कर दी !  अब ' राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है - आपदा तेरा परमानेंट साथी है ! जैसा करम करेगा वैसा फल देगा भगवान ! जा पुत्र अपने कर्मों का फल भुगत !
            ईश्वर अपने ऊपर कोई ब्लेम नहीं लेता , जब कि सारा जाल उसी का बिछाया है ! ' वो '  करे तो - कोई कारण होगा - ! हम करें तो अपराध ! हम से ग़लती हो जाए तो आपदा का अटैक सौ पर्सेंट पक्का ! अच्छे कर्म करें तो भी अवसर की कोई गारंटी नहीं ! चित्रगुप्त कह देंगे -' इस आपदा के पीछे तुम्हारे द्वारा  अनजाने में किया गया गुनाह  है! शायद अनजाने में रेडलाइट जंप किया होगा "- ! अब कहां जाऊं किससे पूछूं कि , अनजाने में अच्छा काम क्यों नहीं होता ! कई बार  पूर्व जन्म  के  कर्म  इस जन्म का सारा  नफा चौपट कर जाते हैं ! कुंडली देखकर पंडित जी बता देंगे -" शादी के लिए अपेक्षित नक्षत्र, लग्न, शगुन, कुंडली सब कुछ ठीक थी ! ये आपदा तुम्हारे पूर्व जन्म के कुकर्म के कारण है '! अब आप पूर्व जन्म के अपने अज्ञात  कुकर्म  को  किस  बहीखाता  में   ढूंढ़ेगे !  ( पिछले  जन्म के कुकर्म की गंदगी को इस जन्म में  धोने की व्यवस्था तो है, मगर इतना " डीटर्जेंट" खर्च हो जाएगा कि प्राणी जीते जी  गरीबी रेखा के नीचे   चला जाए ! )
                   जब भी नाक के नीचे मूछें फूटें और मन में लड्डू तो समझ जाइए कि - सुख भरे दिन बीते रे भइया - आपदा आयो रे '! मैं भी कभी दिल में बसंत लिए घूमता था ! ये छत्तीस साल पहले की बात है जब गांव में रहता था ! वहां इश्क करना आज भी बड़े जोख़िम का काम है , मगर मैं आग की दरिया में कूद गया था! खैर हमारे दिल का धुआं देख दोनों परिवार के बुज़ुर्ग हफ़्तों खांसते रहे फिर शादी को राज़ी हो गए ! होने वाले ससुर जी  ने एक दिन मुझ  से  पूछा , " कुछ  सोचा  है आगे क्या करोगे ? "  सवाल बडा़ अजीब सा लगा मुझे ! शादी तो मैं कर ही रहा था, अब अक्षर इससे भी महान काम और क्या हो सकता है ! पढ़ाई कर चुका था और शादी करने जा रहा था , इसके आगे  कुछ और करने की सोचना भी मेरे लिए गुनाह था ! उन दिनों मैं आसमान में उड़ रहा था , नीचे बहुत कम उतरता था। ससुर जी का ये सवाल हफ्तों मेरे उड़ान में बाधक बना रहा ! हालांकि वो मुझे आने वाली आपदा से सावधान कर रहे थे, पर उस वक्त तो वो मुझे कबाब में हड्डी महसूस हुए !
      तो,,,,, हरि अनन्त हरि कथा अनंता !!

    इस मायावी   "गुड भरी.हंसिया" के बारे में पूछने पर अविवाहित युवकों को अब तो मैं भी आपदा भरी विनाशकारी सलाह देता हूं , - चढ़ जा बेटा सूली पर भली करेंगे राम '!

          ( सुलतान भारती )
        

 

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