Wednesday, 6 January 2021

"फिर भी,,,,, हैप्पी न्यू ईयर !!"

        आज मैं जो भी कहूंगा सच कहूंगा - सच के अलावा ( मौक़ा मिला तो....) काफ़ी सारा झूठ भी बोलूंगा ! क्योंकि पिछले साल ( २०२०) की चरित्रहीनता से काफ़ी प्रभावित हुआ हूं ! पूरे साल ऐसे ऐसे झूठों से वास्ता पड़ा कि अपने सच पर शर्मिंदा होता रहा ! अब जब कि झूठ के मुआमले में मै काफ़ी आत्मनिर्भर हो चुका हूं तो गरीबी रेखा पर खड़ा मेरा ज़मीर आगबबूला है ! होने दो, कुपोषित आशाओं की गठरी लेकर अपने सूर्यास्त में सबेरा तलाशने दो उसे । मैंने देर से झूठ को पहचाना, पर कोई बात नहीं- देर आयद दुरुस्त आयद ! अब मुझे पूरी उम्मीद है कि कोरॉना, कंगाली, बेकारी, बदहाली , साम्प्रदायिकता के बाबजूद साल 2021 पूरे फॉर्म में हैप्पी होने जा रहा है ! ( अपना हाथ पांव बचा कर चलना !) 
          दिसंबर जब भी आता है, व्यापारी और नेता बहुत खुश होते हैं ! जाने कैसे एक हफ्ता पहले ही इन्हें नए साल के  "हैप्पी"  होने का पता चल जाता है ! ३१ दिसंबर की रात में ही मोहल्ले से लेकर मेन मार्केट तक पोस्टर चिपक जाता है ! ( पोस्टर में नेता से ज़्यादा उसके चेले हैप्पी नज़र आते हैं !) मोहल्ले वाले जब एक जनवरी को घर से बाहर निकलते हैं तो हर तरफ नए साल के हैप्पी होने की तस्वीर टेखकर हैरान हो जाते हैं ! हमारे दिलजले पड़ोसी " वर्मा " जी की प्रतिक्रिया आप भी सुनें, - ' मैं अख़बार लेने घर से बाहर निकला तो ये देख कर हैरान था कि रातों रात साल ' हैप्पी ' हो चुका था !   हालांकि मुझे अभी भी नज़र नहीं आ रहा था ! मैंने अपने पड़ोसी ' बुद्धिलाल ' से पूछा , ' दिन के दस बज गए और तुम ऐसे नजर आ रहे हो , जैसे विजय माल्या तुम्हारा ही बैंक लेकर भागा हो ' !
     - बुद्धीलाल बोले, - ' एक उचक्का दूध की थैली छीन कर भाग गया '!
   " तो क्या हुआ ! साल तो हैप्पी हो गया ! मै तो देर तक सोता हूं इसलिए नहीं देख पाया , तुमने तो साल 2021 को हैप्पी होते देखा होगा ?"
     वो रुआंसे होकर बोले, ' मैंने सिर्फ इतना देखा की वो आया और थैली छीन कर भाग गया ! अब मुझे क्या पता कि कि ' हैप्पी होकर ऐसा करेगा '!
     अचानक वर्मा जी मुझ पर ही भड़क उठे , ' तुम पत्रकार लोगों की चार आंखे होती हैं ना ! मैने तो आज तक नए साल को कभी हैप्पी होते देखा नहीं, तुम्हें कैसे नज़र आ जाता है ! हर आने वाले साल को तुम पत्रकार लोग जनवरी में हैप्पी बता देते हो और फिर पूरे साल उसमें कोरोना निकालते रहते हो ! खबरदार जो मुझे नए साल की मुबारकबाद देने की कोशिश की "!
       क्रोध में वो दुर्वाशा ऋषि नज़र आने लगे थे, मै उनके सामने से हट गया ! वर्मा जी करैला ज़रूर हैं मगर हक बोलते हैं ! साल 2020के बारे में भी लोगों ने हैप्पी न्यू ईयर कहा था ! फावड़ा लेकर भी यादों का मलबा हटाऊं तो भी कहीं दस ग्राम "हैप्पी" नहीं मिलेगा ! पूरा साल दुखीराम के नाम रहा! लोग ट्रंप के लाए तोहफ़े को संभालते रहे ! एक तरफ कोरोना - दूसरी तरफ आत्मनिर्भरता !! ( गुरु गोविन्द दोऊ खड़े,,,) जनता नौकरी ढूंढ़ रही थी और डॉक्टर किडनी ! हर किसी को अर्थव्यवस्था मजबूत करने की जल्दी थी ! ज्यादा जागरूक लोग देसी दारू के ठेकों पर लाइन लगा कर खड़े थे ! अर्थव्यवस्था के लिए हर जोख़िम उठाया जा रहा था ! सोशल डिस्टेंस देखते तो अर्थव्यवस्था मज़बूत होने की जगह ग़रीबी रेखा के नीचे चली जाती!
       इस बार २०२१ में मैने सिर्फ उन्हीं चंद लोगों को हैप्पी न्यू ईयर कहा है , जिनसे बदला लेना है ! अब मेरे समझ में आ गया है कि ऐसा कहकर लोग अपना शनि उतारते हैं ! ऐसे लोगों को कमी नहीं जो अपना बही खाता देख कर आश्वस्त हैं कि उनकी शुभकामनाएं किसी बददुआ से कम नहीं है ! पहली जनवरी को वो पुरी चैतन्यता से लिस्ट बना कर अपने विरोधी और खाते पीते पड़ोसियों को नींद से जगा कर हैप्पी न्यू ईयर की शुभकामना दे देते हैं ! ( वो दोहा तो सुना ही होगा - तोकों फूल के फूल हैं - वाको है " त्रिशूल"!) साल के पहले सप्ताह में ही जिसे इतने त्रिशूल भेंट किए गए हों, उसकी किस्मत में  कोरोना नहीं तो क्या होगा !
                      वैसे,,,,साल 2020 बडा़ क्रांतिकारी रहा ! शर्म, हया और लाज लिहाज से जिनका दूर दूर तक कोई नाता नहीं था,वो भी मुंह ढक कर निकलने लगे ! फेस मास्क को ख़्वाब में भी ना देखने वाले इसी को संजीवनी बूटी समझने लगे ! सोशल मीडिया पर इसके समर्थन और विरोध में हजारों चारण दिन रात ज्ञान की गंगा बहा रहे थे !  चालान के डर से लाखों लोगों को इसी से कोरोना रुकता नज़र आ रहा था , तो विपक्षी चारण दावा कर रहे थे, -' फेस मास्क का माइक्रो छेद भी कोरोना के साइज से दस गुना बड़ा है ! अगर कोरोना चाहे तो अपनी फेमिली के साथ फेस मास्क से घुस कर आपके मुंह में कॉलोनी बना सकता है ! ' सोशल डिस्टेंस की अनिवार्यता के चलते कवि साहित्यकार मंच से बेदखल होकर साहित्य सृजन में पिले पड़े थे ! श्रोता चैन से सो रहे थे और बीबियों की नींद हराम थी ! नौकरी गवां चुके कई असाहित्यिक प्राणियों ने करुण रस में लिखना सीख लिया था, - ' दुनियां बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई ! तूने काहे को पत्नी बनाई '!
      नए साल में  चार दिन बाद मै अपने दोस्त ' चौधरी ' 
से मिला ! विगत कई वर्षों से हमने ये नियम बना लिया था कि एक जनवरी को कोई किसी को हैप्पी न्यू ईयर का अभिशाप नहीं देगा ! मैने देखा कि चौधरी भैंसों का दूध दुह कर अख़बार देख रहा था ! मुझे देखते ही उसने गुस्से में पूछा, -.' इब कूण सा कीड़ा लिकड़ आयो मुर्गे में ?'
  ' वही, जो तीन साल पहले आया था जब मुर्गा और आलू एक भाव में बिके थे - बर्ड फ्लू '!
     " तू इतै कैसे आया ?"
   ' सोचा चार दिन बाद शनि उतर गया होगा, चलो हैप्पी न्यू ईयर कह दूं '!
     " भैंसन कौ चारा घणा महंगा हो गया , मैने भी दूध दस रुपए किलो बढ़ा दिया "!
        " किसान के खाते में सरकार बराबर पैसे ड़ाल रही है ! और तुम दूध महंगा कर रहे हो ! एक बार भैंसों से पूछ तो लेते ?"
      " मन्ने पूछा हा, नू बोली- अक - बेशक मेरे दूध कू नाले में गेर दे, पर कदी लेखक कू उधार मत नै दे"!
        " नया साल में एक और कीड़ा आ रहा है, इंगलैंड से ! अल्ला जाने क्या होगा आगे !"
       " थारे गैल रहूंगा तो सुखी कैसे रह सकूं ! साड दो हजार बीस ने आधा खून पी लई , इब बचा हुआ खून नया कीड़ा खावेगो ! कोरोना तो लिकड़ा भी ना इबे घर ते ! नू बता, सबै कीड़े म्हारे देश में क्यूं आ जावें , इनके देश में घणी बेकारी है - के ?"
           " नहीं, दरअसल हम अतिथि को देवता समझते हैं ! इसलिए हर विदेशी बीमारी नाक उठाए आ जाती है, और हम उसे अतिथि समझ कर कह देते हैं - आ गले लग जा - ! क्या करें - दिल है कि मानता नहीं -"!

       तब से चौधरी मुझे घूर रहा है !

1 comment:

  1. बेहतरीन ब्लॉग!

    हैपी न्यू ईयर 🌞

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