Thursday, 21 January 2021

(व्यंग्य भारती) जब मन में दो दो लड्डू फूटे,,,!

          अब यही समस्या है दुरंत ! बुद्धिलाल जी कल मुझे अपनी समस्या बता रहे थे, - 'लड़का पच्चीस साल का हो गया, पढ़ाई की अपेक्षा what's app  में ज्यादा व्यस्त रहता है , क्या करूँ मान्यवर-?"
      " अपनी इस आपदा  से  छुटकारा पाना चाहते  हो तो  फौरन  लौंडे की शादी कर दो! "
                      बुद्धि लाल जी मुस्कुराए तो मैं भी अतीत में  जा पहुंचा ! जब मेरी शादी तय होने लगी तो मै घनघोर कश्मकश में था कि इसे कोरोना जैसी आपदा समझूं या जीवन में अमृत महोत्सव का अवसर । एक तरफ शादी शुदा भुग्तभोगी  मित्र चेतावनी दे रहे थे- '. सावधान ! आगे 11000  बोल्ट !!  दूसरी तरफ' कुंवारे मित्र हवन कुंड की ओर धकिया रहे थे , " मत चूको सुलतान !' ( सच कहूं, जो मित्र मुझे  शादी के 'लाक्षागृह' से बचने की सलाह दे रहे थे, तब वही लोग मुझे दुर्योधन लग रहे थे ! शादी न करने की उनकी हर नेक सलाह मुझे षडयंत्र लग रही थी !) आखिरकार,पहुंची वहीं पे ख़ाक जहां का खमीर था -! जन्नत को पहचानने में एक और बुद्धिजीवी असफल रहा ! ( ख़त को तार  समझना, और थोड़े लिखे को बहुत समझना !) अब आदम की संतानों को उनकी वंशानुगत ग़लती का सलीब कयामत तक ढोना है !
           ख़ैर ,  समय की कसौटी पर रुई की तरह धुनी जा रही ज़िंदगी के लिए शादी क्या है ?  आपदा या अवसर ?  वैश्विक बहस खिंच जायेगी ! इस मुद्दे पर मुंडे मुंडे मतिरभिन्ना हो सकते हैं ! लेकिन  दौरे कोरोना में जो प्राणी शादी करने  का खतरा उठा रहे थे उनके लिए- शादी करके - दो गज दूरी ऊपर से मास्क ज़रूरी- किसी 'आपदा '  से कम नहीं  था !  वैसे देखा जाये तो- "शादी" क्षणभंगुर "अवसर" का मायावी वर्तमान है, और "आपदा" अजर अमर भविष्य ! शादी के बही खाता में अवसर बहुधा कल्पना है और आपदा एक क्रूर हकीक़त ! ( अभी कुवारों को ये खुलासा हलाहल लग रहा होगा ! रात दिन प्रेमिका से चैट कर अपने लिए आपदा की बुकिंग करने मे लगे अविवाहित युवाओं को मेरी सलाह ज़हर लग रही होगी !)
        कोरोना काल में दिल्ली  और महाराष्ट्र पर कोरोना  कुछ ज्यादा ही मोहित था ! जब देखो तब भीड़ लेकर भोज में आ जाता था ! आया सावन झूम के! आपदा है कि मानता नहीं !  पब्लिक पूछती रही, - ' कोरोना तुम कब जाओगे-'! कोरोना इमरान खान की तरह विलाप कर रहा था , - तेरे जुल्फों से जुदाई तो नहीं मांगी थी -'! उस दौर में हुई शादियों के लिए कोरोना आपदा भी रहा और अवसर भी  ! मार्च २०२० से जुलाई २०२० तक  कोरोना के ' कथित तांडव ' के चलते न्यूनतम बजट में सैकड़ों शादियां निपट गईं ! दिल्ली की ऐसी दो शादियों में मेरी भी शिरकत रही ! एक में दोनों पक्ष को मिला कर ३२ लोग थे और दूसरे में 18 लोग .। काश दहेज पर भी कोरोना नियम लागू हो जाए !
               सवाल वहीं खड़ा है, शादी क्या है - आपदा या अवसर ! हमारे यूपी के ग्रामीण विद्वानों ने इसे  " गुड़ भरी हंसिया" कहा है ! ( हंसिया एक धारदार किसानी  औजार है !) इस परिभाषा में मिठास का अवसर भी है और गला कट जाने की आपदा भी ! शादी की इससे बड़ी कालजई परिभाषा दूसरी नहीं हो सकती ! इसमें अनुभव, इतिहास, वर्तमान ,  भविष्य  और चेतावनी सब कुछ है !  ना समझे तो अनाड़ी है ! लेकिन,,,कौन कमबख्त इस उम्र में समझना चाहता है !  बुज़ुर्ग चिल्लाते रहते हैं,- ' इक आग का दरिया है,,,!' मगर लोग कतार लगा कर आपदा के उसी दरियाए आतिश में महुआ की तरह टपकने  का अवसर ढूंढते हैं ! ऊपर वाले तेरा जवाब नहीं, - जन्नत का फ़ोटो दिखा कर दोजख गिफ्ट कर दी !  अब ' राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है - आपदा तेरा परमानेंट साथी है ! जैसा करम करेगा वैसा फल देगा भगवान ! जा पुत्र अपने कर्मों का फल भुगत !
            ईश्वर अपने ऊपर कोई ब्लेम नहीं लेता , जब कि सारा जाल उसी का बिछाया है ! ' वो '  करे तो - कोई कारण होगा - ! हम करें तो अपराध ! हम से ग़लती हो जाए तो आपदा का अटैक सौ पर्सेंट पक्का ! अच्छे कर्म करें तो भी अवसर की कोई गारंटी नहीं ! चित्रगुप्त कह देंगे -' इस आपदा के पीछे तुम्हारे द्वारा  अनजाने में किया गया गुनाह  है! शायद अनजाने में रेडलाइट जंप किया होगा "- ! अब कहां जाऊं किससे पूछूं कि , अनजाने में अच्छा काम क्यों नहीं होता ! कई बार  पूर्व जन्म  के  कर्म  इस जन्म का सारा  नफा चौपट कर जाते हैं ! कुंडली देखकर पंडित जी बता देंगे -" शादी के लिए अपेक्षित नक्षत्र, लग्न, शगुन, कुंडली सब कुछ ठीक थी ! ये आपदा तुम्हारे पूर्व जन्म के कुकर्म के कारण है '! अब आप पूर्व जन्म के अपने अज्ञात  कुकर्म  को  किस  बहीखाता  में   ढूंढ़ेगे !  ( पिछले  जन्म के कुकर्म की गंदगी को इस जन्म में  धोने की व्यवस्था तो है, मगर इतना " डीटर्जेंट" खर्च हो जाएगा कि प्राणी जीते जी  गरीबी रेखा के नीचे   चला जाए ! )
                   जब भी नाक के नीचे मूछें फूटें और मन में लड्डू तो समझ जाइए कि - सुख भरे दिन बीते रे भइया - आपदा आयो रे '! मैं भी कभी दिल में बसंत लिए घूमता था ! ये छत्तीस साल पहले की बात है जब गांव में रहता था ! वहां इश्क करना आज भी बड़े जोख़िम का काम है , मगर मैं आग की दरिया में कूद गया था! खैर हमारे दिल का धुआं देख दोनों परिवार के बुज़ुर्ग हफ़्तों खांसते रहे फिर शादी को राज़ी हो गए ! होने वाले ससुर जी  ने एक दिन मुझ  से  पूछा , " कुछ  सोचा  है आगे क्या करोगे ? "  सवाल बडा़ अजीब सा लगा मुझे ! शादी तो मैं कर ही रहा था, अब अक्षर इससे भी महान काम और क्या हो सकता है ! पढ़ाई कर चुका था और शादी करने जा रहा था , इसके आगे  कुछ और करने की सोचना भी मेरे लिए गुनाह था ! उन दिनों मैं आसमान में उड़ रहा था , नीचे बहुत कम उतरता था। ससुर जी का ये सवाल हफ्तों मेरे उड़ान में बाधक बना रहा ! हालांकि वो मुझे आने वाली आपदा से सावधान कर रहे थे, पर उस वक्त तो वो मुझे कबाब में हड्डी महसूस हुए !
      तो,,,,, हरि अनन्त हरि कथा अनंता !!

    इस मायावी   "गुड भरी.हंसिया" के बारे में पूछने पर अविवाहित युवकों को अब तो मैं भी आपदा भरी विनाशकारी सलाह देता हूं , - चढ़ जा बेटा सूली पर भली करेंगे राम '!

          ( सुलतान भारती )
        

 

Monday, 18 January 2021

" रन फॉर भ्रष्टाचार भगाओ "

                  महामारी होती तो इतनी चिंता नहीं थी, मामला भ्रष्टाचार का था। मुख्यमंत्री को ख़ुफ़िया विभाग से खबर मिली थी कि प्रदेश में जबरदस्त भ्रष्टाचार की सूनामी आई हुई है ! हैरत थी कि मंत्री और दरबारी चारण में से किसी ने भी प्रदेश में भ्रष्टाचार को आते हुए नहीं देखा था ! राज्यपाल ने प्रधान मंत्री को खबर दी तो उन्होंने मुख्यमंत्री को फटकारा ! मुख्यमंत्री ने पहले अपने मुह लगे चारण से पूछा, - ' प्रदेश में कानून व्यवस्था कैसी चल रही है चरणदास जी ?'
          ' आनंद ही आनंद है प्रभुवर ! पुलिस और पब्लिक दोनो साक्षात बैकुंठ का अनुभव कर रहे हैं ! '
   "  और आप ?"
  " आपके चरणों में तो परमानंद का अनुभव होता है ! साले के लड़के को एक पेट्रोल पंप का लाइसेंस दिला देते तो जीते जी मोक्ष मिल जाता "!
      " प्रदेश में कहीं भ्रष्टाचार तो नहीं बचा ?" 
   ' लहसुन बराबर भी नहीं कि दाल बघार सकें ! आपके आने के बाद प्रदेश भ्रष्टाचार और अपराध मुक्त हो चुका है ! धर्म की जय हो- अधर्म का नाश हो ! अब तो जनता भी  गा रही है, -' दुख भरे दिन बीते रे भइया - सतयुग आयो रे ! विकास वाला बुलडोजर लायो रे '!'
     मुख्यमंत्री ने फटकारा, -' लगता है तुम्हारी आंखों को सतयुग और सावन के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता ! कल से नज़र मत आना '!
      अगले दिन ख़ुफ़िया विभाग की खबर आ गई ! कई विभाग में भ्रष्टाचार के घुन लग चुके थे ! कोरोना अब बीमारी ना होकर अंडा देने वाली मुर्गी बन गया था ! 'आपदा ' से धुंध हटी तो ' अवसर ' साफ साफ नज़र आने लगा था ! जनता का कोई भी काम बगैर पैसे के होता ही नहीं था ! ऊपर से दबाव था, इसलिए भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कुछ ना कुछ तो करना ही था !
       मुख्यमंत्री ने व्हिप जारी कर दिया ! एक हफ़ते बाद  सारे मंत्रियों की मौजूदगी में सीएम आवास के अंदर एक आपातकालीन बैठक शुरू हुई। मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में गहन चिंता प्रकट किया , - ' मै भ्रष्टाचार हटाना चाहता हूं। अब ये मत कहना कि प्रदेश में भ्रष्टाचार है ही नहीं! मेरे पास पूरी रिपोर्ट है !'
      सबको सांप सूंघ गया, पूरी मंडली को पता था पर भ्रष्टाचार के अलावा और बहुत कुछ दूर हो रहा था ! सौहार्द,सहिष्णुता, सांप्रदायिक सद्भाव को भी गरीबी और बेकारी की सूची में नत्थी कर दिया गया था ! गैंगस्टर  और प्रेम विवाह  की एक जैसी सजा थी ! पूरे प्रदेश में विश्व गुरु होने का मैराथन चल रहा था कि बीच में भ्रष्टाचार घुस आया ! मुख्यमंत्री कह रहे थे, - ' देखो! मुझे हर हालत में भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश चाहिए ! इसे दूर करने के उपाय पर सारे लोग अपना विचार रखें। ये विचार गोष्ठी इसलिए बुलवाई है !" 
       एक मंत्री ने सुझाव दिया, -' विधायक से लेकर मंत्री तक का पैकेज डबल कर दिया जाए !'
     ' पैसा कहां से आएगा ? '
   " हमारे प्रदेश से गुजरने वाले सारे वाहन के यात्रियों पर कोरोना टैक्स लगा देते हैं ! राजस्व और रबड़ी का अंबार लग जाएगा ! आपदा को एक और अवसर मिल जाएगा "!
       " कोई ऐसा कार्यक्रम बताओ कि पूरे देश को लगे कि भ्रष्टाचार हटाने का गंभीर प्रयास चल रहा है ! इस के लिए  बजट की चिंता मत करो !"
       एक अन्य मंत्री खड़े हुए , ' मेरे पास एक गंभीर सुझाव है , मगर बहुत खर्चीला है !" 
         " भ्रष्टाचार तो दूर हो जाएगा ना ?"
 " वो मै नहीं जानता ! अलबत्ता प्रदेश ही नहीं पूरे विश्व को पता चल जाएगा कि भ्रष्टाचार  दूर हो रहा है "!
      ' बहुत खूब ! सुझाव क्या है ?'
"  आजकल पूरी दुनियां में एक नया ट्रेंड है , "दौड़ कराने" का ! रन फॉर यूनिटी- रन फॉर कैंसर, रन फॉर बाघ बचाओ, रन फॉर मंहगाई भगाओ आदि ! इसी तरह हम भी एक दौड़ कराते हैं, - रन फॉर भ्रष्टाचार भगाओ ! "
     एक मंत्री ने प्रतिरोध किया, ' क्या दौड़ने से भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा ?" 
         ' तो क्या आप बगैर भाग दौड़ के भ्रष्टाचार दूर करना चाहते हो ?"
       मंत्री जी को ये कला नहीं आती थी, लिहाज़ा बैठ गए ! लेकिन मुख्यमंत्री को सुझाव अच्छा लगा , - " इस पर विस्तार से चर्चा की जाए !"
       खेल मंत्री खड़े होकर बोले- ' अति उत्तम ! रन फॉर भ्रष्टाचार भगाओ - बढ़िया रहेगा ! पिछली सरकार ने इसी तर्ज पर ग़रीबी दूर करने के लिए दौड़ कराई थी ! सोशल डिस्टेन्स का पंगा है वरना लगे हाथ भ्रष्टाचार की बजाय" रन फॉर कोरोना" भी निपटा देते !"
      वाणिज्य मंत्री बोल पड़े, " एक प्रार्थना है, अभी कोरो ना को भगाने की जल्दी ना की जाए वरना वैक्सीन का क्या होगा ! मेरा मतलब,,,,, बलम जी धीरे धीरे।"
         स्वास्थ्य सचिव ने धीरे से पूछा , " दौड़ होगी तो सोशल डिस्टेंस कैसे बरकरार रखेंगे ?"
       खेलमंत्री नाराज़ हो गए , " भ्रष्टाचार के रास्ते में आने वाली हर बाधा दूर की जायेगी ! मेरा मतलब इस दौड़ के रास्ते की बाधा ! हम कोशिश करेंगे कि इस महत्वपूर्ण दौड़ में भाग लेने वालों की सुख सुविधा के लिए कोई कसर बाकी ना रहे ! जगह जगह रास्ते में कोल्डड्रिंक, पिज्जा, बर्गर, आमलेट, ड्राईफ्रूट, फल और
मिनरल वॉटर उपलब्ध कराए जाएं !"
  वित्त सचिव धीरे से बोले , ' बजट बढ़ रहा है !"
 मुख्यमंत्री ने वीटो कर दिया , ' भ्रष्टाचार के लिए कुछ भी करेगा ! आगे बोलो !"
       अब पर्यटन मंत्री खड़े हो गए , "रन फॉर भ्रष्टाचार भगाओ- के विज्ञापन पर अगर दो चार सौ करोड़ खर्च कर दिए जाएं तो इस दौड़ को देखने के लिए विदेशों से भारी तादाद में पर्यटक आ सकते हैं ! '
    वित्त सचिव ने पूछ लिया,- " पर्यटकों से क्या दो चार सौ करोड़ की भरपाई हो जाएगी "?
     " समस्या भ्रष्टाचार की है भरपाई की नहीं ! कॉरॉना से जो आर्थिक नुक़सान पहुंचा है, उसकी भरपाई हो रही है क्या ? भ्रष्टाचार तो कोरोना से ज़्यादा घातक है !"
       " आप आगे बताएं !" मुख्य मंत्री बोले ! 
   पर्यटन मंत्री मगन हो गए, " सांस्कृतिक मंत्रालय अगर सहयोग दे तो ये कार्यक्रम और बेहतर हो जाएगा ! धावक और दर्शकों के मनोरंजन के लिए जगह जगह गीत, मुशायरा , भजन और कव्वाली का रंगा रंग प्रोग्राम भी आयोजित हो ! संगीत के तानसेनी माहौल में भ्रष्टाचार को भावभीनी विदाई दी जाए !"
       परिवहन मंत्री ने सुझाव दिया , ' भीड़ चाहिए तो फिल्मी हीरो हीरोइन को भी बुलवाया जाए "!
    कैबिनेट ने बहुमत से समर्थन दिया ! आखिर में जेल मंत्री खड़े हुए, " प्रदेश की अधिकांश जेल क्षमता से ज़्यादा आत्मनिर्भर  हैं ! क्यों ना इस ऐतिहासिक दौड़ में अनुभवी कैदियों का भी सहयोग लिया जाए ! कई तो भ्रष्टाचार का कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं !"
                   पर्यटन मंत्री ने एक और अमूल्य सुझाव दिया, " प्रदेश के भिखारियों के सहयोग के बारे में क्या राय है ? अहा क्या संदेश जायेगा ! भ्रष्टाचार की दौड़ में भिखारियों ने बाजी मारी !"
       मुख्यमंत्री ने आह भरी, " दाता एक राम - भिखारी सारी दुनियां ,,,,!"
       पर्यटन मंत्री के जोश में उबाल आ गया , - " रन फॉर भ्रष्टाचार भगाओ ' के इस मैराथन में भाग लेने वाले सारे देशप्रेमियों को ब्रांडेड जूते, मोज़े, ट्रेक सूट और कैप फ्री दिया जाए ! इसे सप्लाई करने वाली कंपनी हमारे फूफा की है ! इतना भव्य आयोजन देख कर भ्रष्टाचार का मनोबल टूट जाएगा " !
        वित्त सचिव घबरा कर खड़े हो गए, " सर ! इतना पैसा कहां से आएगा "?
     परिवहन मंत्री ने वित्त सचिव का पाजामा खींच कर बिठाते हुए कहा, ' काहे बीपी बढ़ाते हैं ! जब तक ये कोरोना जिंदा है खुद को अनाथ मत समझिए ! आपदा है तो अवसर भी है ! ये सब कुछ जनता के लिए ही तो कर रहे हैं , वरना हमें भ्रष्टाचार से क्या तकलीफ़ है !"
               उधर सीएम खड़े हो कर समापन वक्तव्य दे रहे थे, '-  फ़ौरन पूरे बजट को फाइल की शक्ल में मेरे पास भेजा जाए ! भ्रष्टाचार को भगाने में पैसे का मुंह नहीं देखा जाएगा ! इस भव्य दौड़ के आयोजन और खर्च का पूरा विवरण मुझे तीन दिन में चाहिए "!
        वित्त सचिव ने धीरे से पूछा, " क्या केंद्र इस मेगा बजट को मंजूरी दे देगा ? "
          " हमारे पास दो विकल्प हैं! या तो "केंद्र"  मदद करे या  "कोरोना" ! दूसरा विकल्प ज़्यादा पोटेंशियल  है ! फिर भी पहले केंद्र से बात करते है ! तब तक आप सब इस दौड़ को सफल बनाने के लिए वैचारिक मंथन करें - आज की सभा समाप्त की जाती है! बजट मंजूर होते ही तमाम बड़ी कंपनियों को टेंडर के लिए बुलाते हैं ! भ्रष्टाचार को भगाने का कोई मौका क्यों छोड़ें !"

      फिलहाल तब तक के लिए ' भ्रष्टाचार" को राहत देती इस रुकावट के लिए खेद है !

           ( सुलतान भारती )
        

Thursday, 14 January 2021

अच्छी रचना का अंचार

       अगर कोई संपादक या प्रकाशक इस ज़िद पर अड जाए कि "अच्छी" रचना भेजिए तो लेखक क्या करे ! और अगर रचनाकर व्यंग्यकार हो तो,,,,,? व्यंग्यकार के इतर कोई लेखक होगा तो वो संपादक के बचपने को सीरियसली ले लेगा ,किन्तु  व्यंग्यकार तो संपादक की विधिवत कुंडली चेक करेगा कि उन्हें कब से  'अच्छी रचना ' की आदत पड़ी है !  मुख्यधारा में चल रहे किसी  ज़िंदा व्यंग्यकार की भेजी गई रचना पर ऐसी टिप्पणी करना कि- अच्छी रचना भेजिए- महफिल में पाजामे का नाड़ा खींच लेने जैसा है ! लेखक माशाअल्लाह लोकल अख़बार से लेकर नेशनल तक वोकल हो रहा हो तो करैला नीम चढ़ा समझो ! लेखक तब से आग बबूला है, - मुझसे अच्छी रचना मांग रहा है ! गोया मैंने आजतक जो लिखा है वो ,,,सब धन धूरि समान ! तब से व्यंग्यकार अंगारों पर लोट रहा है !
           उसने संपादक की मैगज़ीन को ऑपरेशन टेबल पर रखकर पिछले एक साल के सारे अंक को दुबारा पढ़ डाला ! विषय,शैली, शब्द चयन,प्रवाह और पंच पर बहुत ईमानदारी से नज़रें इनायत की ! ( यह बडा़ मुश्किल काम होता है, क्योंकि व्यंग्यकार को अपने अलावा सबके गेहूं में घुन ढूंढने की आदत है !) पढ़ कर उसे लगा कि कई लोगों की रचनाएं बगैर रीढ़ के चल रही हैं ! अब उसका क्रोध भड़क उठा ! वो जानना चाहता था कि संपादक की नज़र में  - अच्छी रचना- का पैमाना क्या है ! मामला व्यंग्य रचना का था, वरना वो छोड़ भी देता ! संपादक ने आखिर साहित्य के ' दूर्वाषा ' को छेड़ा था ! व्यंग्यकार ने संपादक के व्हाट्स ऐप पर जाकर देखा, वहां आज भी वो टिप्पणी हस्बे मामूर नजर आ रही थी , - ' अच्छी रचना ' भेजिये -! अचानक उसे लगा कि इबारत गायब हो गई और उस जगह संपादक जबान निकाल कर उसे चिढ़ा रहा है ! बड़ी मुश्किल से उसने फोन को पटकने से अपने आप को रोका !
          तीसरे दिन उसने अपने एक व्यंग्यकार मित्र से इस राष्ट्रीय आपदा पर बात की,- ' साला मुझसे " अच्छी रचना"- मांग रहा है -!'
            ' अरे ! ये तो सरासर हिमाकत है ! उसे आपसे मज़ाक नहीं करना चाहिए था ! कहां से लाओगे?"
             ' मैंने उसे सबक सिखाना है ! संपादक होने से ये मतलब तो नहीं कि उसे हमसे ज़्यादा व्यंग्य की समझ है ! अभी उसकी खाल उतारता हूं !'
        " कैसे "?
    " उसके व्हाट्स ऐप पर जाकर लिखता हूं, - आपको कब से - अच्छी रचना - सूट करने लगी ? आदत मत खराब कीजिए मान्यवर ! हमनें तो पत्रिका की मर्यादा का ध्यान रखा है ! अच्छी रचना,,,,वो परी कहां से लाऊं '!
       " आजकल कुछ देवता व्यंग्य विधा में  विंध्याचल डाल कर मथ रहे हैं ! वो अलग बात है कि "अमृत" की जगह ' मतभेद ' का हलाहल निकल आता है ! दरअसल इस विद्या को पोषित, पल्लवित और प्रसारित करने की अपेक्षा व्यंग्य के कई भूगर्भ शास्त्री  इस विद्या की जड़ें हिलाकर देखना चाहते हैं कि उसमें हास्य कितना है और व्यंग्य कितना ! एक बार दिख जाए तो उसी हिसाब से रचना में गोबर और यूरिया डाला जाए '!
         " व्यंग्य में नया प्रयोग क्यों नहीं ?"
     " ये हमारी साहित्यिक परंपरा के विरुद्ध है ! महाजनों येन गता: सा पंथा: - ! हमने व्यंग्य विद्या में जिन्हें  ' 'पितामह ' मान लिया सो मान लिया ! बस हमनें सदियों के लिए आंख और विवेक पर गांधारी पट्टी बांध ली है - तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो -!  नई परिभाषा और नए कीर्तिमान के किसी अंकुर को हम ऑक्सीजन नहीं देंगे ! दूर जाकर सन्नाटे में शब्द फेंको"!
      लावा उगल कर दोनों क्रेटर अब ख़ामोश हैं !
           मुंह पर  फेसमास्क है जबान पर नहीं ! कलम चले ना चले जबान को - अच्छी रचना- की दरकार है ! अपने व्यंग्य में कंक्रीट हो ना हो - व्यंग्य और व्यंग्यकार की परिभाषा यही तय करेंगे ! अब मुझसे भी नहीं रहा जा रहा , इसलिए मैं भी थोड़ी अभिव्यक्ति की आज़ादी छींकता हूं ! मेरा मानना है कि जितने भी स्थापित व्यंग्यकार हुए हैं, उन्होंने किसी निर्धारित मानदंड का कभी पालन नहीं किया ! वो मानदंड पर सर खपाते तो इतना बढ़िया कभी ना लिख पाते ! व्यंग्यकार पैदाइशी विद्रोही होता है ! ख़ुद्दारी और आज़ादी उसके खून में बहती है। ( मानदंड का अनुपालन असली व्यंग्यकार की फितरत में नहीं आता !) व्यवस्था, ब्यूरोक्रेसी, बदलाव, घटनाक्रम, तंत्र और हालाते हाजरा उसकी कलम को शब्द और दिशा देते हैं - ना कि मापदंड ! 
                               हास्य और व्यंग्य अलहदा करके देखने की योग्यता मुझमें नहीं है ! व्यंग्य का प्रयोग लगभग हर इंसान करता है, पर विरले ही इस फन को शब्द दे पाते हैं ! इस फन को सीखने या  सिखाने का कोई स्कूल नहीं है ! व्यंग्यकार नास्तिक की हद तक निर्भीक होता है, इसलिए उसे सहमत करने की ज़िद ना करो !  व्यंग्यकार अपने अलावा (कभी कभी )सिर्फ ईश्वर का  लिहाज़ करता है ! ( ऐसे जीव से मापदंड और परंपरा का अनुपालन करने की उम्मीद कौन करेगा !) लीक तोड़ने पर आमादा ऐसे महामानव से " अच्छी रचना" मांगने वाला संपादक मेरी नज़र में तो अक्ल से आत्मनिर्भर नहीं हो सकता !


     ,,,,,कि मैं कोई झूठ बोल्या !!

           (    सुलतान भारती)
          
         

Sunday, 10 January 2021

(लघु कथा) "सितारों की बस्ती '

            आज भी तो कुछ नहीं बदला था ! सरकारी अस्पताल की वही चीख पुकार , वार्ड ब्वाय की वही बदतमीजी ! ट्राली और स्ट्रेचर खींचने की वही इरीटेट करती आवाज ! छत पर ख़ामोश घूरते पंखे की ओट में छुपी वही छिपकिली ! पिछले तीन महीनों में कुछ भी नहीं बदला था ! इसी बीच कई मरीज़ लाश बान कर अस्पताल से जा चुके थे I उसे मरने से नहीं बल्कि इस छिपकली से डर लगता था।।अब तो उसे ऐसा लगता था गोया छिपकली पूरे वार्ड में सिर्फ़ उसे ही घूरती है !जाने वो खाना खाने कब निकलती थी! कुछ दिनों से तो उसे ऐसा महसूस होने लगा था कि छिपकली उसे बड़ी खामोशी से धमकाने भी लगी है ! पिछली रात उसे  अहसास हुआ जैसे छिपकली कह रही हो, ' अब तेरी बारी है, तू बस अब मरने वाला है-'  करवट बदलता वो पूरी रात बेचैन रहा !
 नशे की लत छुड़वाने के लिए उसे एक नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया गया था , जो अब खुद एक यातना शिविर लगने लगा था! वो उस दिन को कोस रहा था जब दोस्तों की महफल  में बैठ कर उसने ड्रग्स को गले लगाया था ! यहां पर इलाज़ सरकारी वित्तीय सहायता को निगलने कि खानापूरी भर थी ! लगातार बिजली के झटके ने उसकी सेहत खत्म कर दी थी ! नशे के अभाव में नींद नहीं आती थी !अट्ठाइस साल की उमर मे ही उसके चेहरे का तिलिस्म उड़ गया था ! छिपकली से आतंकित होकर उसने तय कर लिया था कि वो हर कीमत पर अस्पताल से बाहर ही मरेगा - अंदर नहीं ! उसे छिपकली को बताना था कि - देख मै ज़िंदा वापस जा रहा हूं -! 
     और फ़िर,,,  रात के चार बजे वो निकल भागा ! बदन के कपड़ों के अलावा उसके पास कुछ नहीं था ! शहर सो चुका था मगर सड़कें जाग रही थीं ! नो एंट्री पीरियड में बेलगाम  भारी वाहन सड़कों को रौंदते हुए चल रहे थे ! सड़क पर पहुंच कर उड़ने खूब खींच कर फेफडों में हवा जमा किया ! फेफड़े तंदुरुस्त और मजबूत लगे !. ऐसा महसूस करते ही उसके जीने की इच्छा जाग उठीं ! ये आज़ादी की हवा थी ! वो जल्द से जल्द घर पहुंच कर अपनी मां और छोटी बहन को चौंका देना चाहता था। वो कल्पना कर रहा था कि उसे सामने देख कर मां क्या कहेगी , -' अरे पूजा ! देख कौन आया-  मेरा बेटा  अरविंद !!' 
                                दूर रेड लाइट  नजर आई तो उसने जल्दी से सड़क पार करना चाहा ! अचानक रोंग साइड से आता हुआ भीमकाय ट्रक बगल नमूदार हुआ ! उसने जल्दी से वापस मुड़ने की कोशिश की मगर कमज़रील या किस्मत - लड़खड़ाकर गिर गया ! बजरी से लदे ट्रक के एक तरफ के पहिए उसके सीने और पेट से गुज़र गए ! अचानक उसे लगा जैसे मां और बहन के चेहरे इसके ऊपर झुके हुए हैं ! डूबती हुई चेतना को झकझोर कर उसने हाथ उठाने की कोशिश की, मगर सड़क से चिपका हाथ निकला ही नहीं ! वो धीरे धीरे बुदबुदा रहा था , ' देखा! मैने कहा था ना -मै वहां नहीं मरूंगा -'!
       
   फिर अचानक जैसे शहर अंधेरे में डूब गया !

     सुलतान भारती
I- block 12/ 1083 Sangam vihar South Delhi 220080

Saturday, 9 January 2021

लघु कथा - ' टूटती लकीरें '

        मटियामहल से फराशखाने तक आने मे उसे महसूस हो गया कि अंदर कुछ दरक सा गया है । पल पल ऐसा महसूस हो रहा था कि इसके रिक्शे पर दो सवारियां नहीं बल्कि पहाड़ रख दिया गया हो !  रिक्शे पर बैठी वो एक युवा मां थी जो अपने तीन साल के बेटे को बार बार ये ताकीद कर रही थी ,-'  मामू के घर में किसी बच्चे से मार पीट मत करना' ! बच्चा बहुत ही शैतान था और बड़ी मुश्किल से मां उसे संभाल रही थी ! जामा मस्जिद के दक्षिणी गेट से बाईं तरफ मुड़ते ही बच्चे की नज़र बकरों पर पड़ी और वो उन्हें भी लेने की ज़िद करने लगा, - ' वो सफ़ेद वाला चाहिए -'!  बड़ी मुश्किल से मां ने उसे रिक्शे से बाहर कूदने से रोका था !
     थोड़ी देर के लिए समरू  अपना दुख दर्द भूल गया ! उस बच्चे की आवाज़ में अब एक नए चेहरे का अक्स उभर रहा था ,- सोनू ! उसका अपना बेटा सुरेंद्र ! अब तो जवान हो रहा होगा ! ग़रीबी और ग्रामीण राजनीति ने उसका परिवार बर्बाद कर दिया था। सरपंच के विरोध में खड़ा होने का खामियाजा ऐसा भयानक था कि पुश्तैनी तीन बीघे जमीन वकील खा गए और जब फर्जी केस की सजा काट कर समर बहादुर उर्फ समरू  जब जेल से बाहर आया तो किसान से मजदूर हो चुका था ! पत्नी अपने छे साल के बेटे सुरेंद्र के साथ मायके चली गई थी ! खेत और परिवार के बगैर समरू को पूरा गांव अजनबी सा लगा ! तीन चार दिन वो अपने खेतों को देख देख कर रोता रहा और एक दिन घर को खुला छोड़ कर गांव से निकल गया ! एक धुंधला सपना था कि दिल्ली शहर में पैसे कमाकर अपने टूटे ख्वाबों में दोबारा रोशनी जगाएगा ! और,,, अब आठ साल से वो रिक्शा चला रहा था ! सपनों में रंग तो नहीं आए, अलबत्ता उसके जिस्म और ज़िंदगी मे बेवक्त शाम उतरने लगी !
                         अचानक तेज आवाज़ आईं और वो अतीत से उछल कर वर्तमान में आ गया ! लड़की चीख रही थी, ' बहरे हो गए हो अंकल ! कब से चिल्ला रही हूं कि रिक्शा रोक दो , सुनते ही नहीं !' समरू अपराध बोध से दब गया था ! उसने रिक्शा रोका ! युवती अपने बेटे के साथ नीचे उतरी, पर्स खोला और पांच सौ का एक नोट निकाल कर समारू को पकड़ाया ! समरु ने धीरे से कहा , -' छुट्टा नहीं है बेटी !'
       " कोई बात नहीं अंकल ! रख लो ! खाना खा लेना और अपने बच्चों के लिए कुछ ले लेना !".
        समरु को लगा कि जैसे सूरज की तपिश में अचानक चांदनी घोल दी गई है ! वो रिक्शा लेकर वापस लौट पड़ा ! हर पल उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे काफ़ी लोग इसका पीछा कर रहे हैं और हज़ारों नज़रे उसकी जेब पर लगीं हो ! चांदनी चौक की ओर लौटते हुए उसके तमाम ख्वाब फिर ज़िंदा हो गए ! बेटे के लिए एक सूट कपड़ा खरीदना था, बीबी के लिए बनारसी साड़ी ना सही, दो तीन सौ वाली साड़ी तो लेना ही था ! एक खेत हो जाता तो  मैं खेती करता और हमारी बीबी खेत पर खाना लेकर आती ! अंकुरित ख्वाब कद्दावर हो  रहे थे और पांच सौ का नोट  बौना होता जा रहा था ! 
         अचानक रिक्शा रुक गया , सामने दारू का ठेका था ! वो यंत्रचलित सा काउंटर पर पहुंच कर बोला, ' एक एयरिस्टोक्रेट की पूरी बोतल !' पंद्रह मिनट बाद वो कौड़ियां पुल के सार्वजनिक शौचालय के पास नशे में धुत बडबडा रहा था, ' आओ सब मुझे मार कर खा जाओ- तुम क्या मारोगे ! मैं  तो कब का मर गया हूं ! क्या करूं इस आंधी में मेरा एक भी तिनका रुकता ही नहीं है ! सब उड़ गया,,,,! ' बेटा पत्नी खेत ख्वाब और गाँव सारी तस्वीरें धुंधली होती चली गईं 
     और,,, फिर उसी फुटपाथ पर उसके खर्राटे गूंजने लगे ! अब ट्रेफिक का कोई शोर उस तक नहीं पहुंच रहा था!
         सारी चिंता की लकीरें टूट गईं थीं !

            ( सुलतान भारती)

Wednesday, 6 January 2021

"फिर भी,,,,, हैप्पी न्यू ईयर !!"

        आज मैं जो भी कहूंगा सच कहूंगा - सच के अलावा ( मौक़ा मिला तो....) काफ़ी सारा झूठ भी बोलूंगा ! क्योंकि पिछले साल ( २०२०) की चरित्रहीनता से काफ़ी प्रभावित हुआ हूं ! पूरे साल ऐसे ऐसे झूठों से वास्ता पड़ा कि अपने सच पर शर्मिंदा होता रहा ! अब जब कि झूठ के मुआमले में मै काफ़ी आत्मनिर्भर हो चुका हूं तो गरीबी रेखा पर खड़ा मेरा ज़मीर आगबबूला है ! होने दो, कुपोषित आशाओं की गठरी लेकर अपने सूर्यास्त में सबेरा तलाशने दो उसे । मैंने देर से झूठ को पहचाना, पर कोई बात नहीं- देर आयद दुरुस्त आयद ! अब मुझे पूरी उम्मीद है कि कोरॉना, कंगाली, बेकारी, बदहाली , साम्प्रदायिकता के बाबजूद साल 2021 पूरे फॉर्म में हैप्पी होने जा रहा है ! ( अपना हाथ पांव बचा कर चलना !) 
          दिसंबर जब भी आता है, व्यापारी और नेता बहुत खुश होते हैं ! जाने कैसे एक हफ्ता पहले ही इन्हें नए साल के  "हैप्पी"  होने का पता चल जाता है ! ३१ दिसंबर की रात में ही मोहल्ले से लेकर मेन मार्केट तक पोस्टर चिपक जाता है ! ( पोस्टर में नेता से ज़्यादा उसके चेले हैप्पी नज़र आते हैं !) मोहल्ले वाले जब एक जनवरी को घर से बाहर निकलते हैं तो हर तरफ नए साल के हैप्पी होने की तस्वीर टेखकर हैरान हो जाते हैं ! हमारे दिलजले पड़ोसी " वर्मा " जी की प्रतिक्रिया आप भी सुनें, - ' मैं अख़बार लेने घर से बाहर निकला तो ये देख कर हैरान था कि रातों रात साल ' हैप्पी ' हो चुका था !   हालांकि मुझे अभी भी नज़र नहीं आ रहा था ! मैंने अपने पड़ोसी ' बुद्धिलाल ' से पूछा , ' दिन के दस बज गए और तुम ऐसे नजर आ रहे हो , जैसे विजय माल्या तुम्हारा ही बैंक लेकर भागा हो ' !
     - बुद्धीलाल बोले, - ' एक उचक्का दूध की थैली छीन कर भाग गया '!
   " तो क्या हुआ ! साल तो हैप्पी हो गया ! मै तो देर तक सोता हूं इसलिए नहीं देख पाया , तुमने तो साल 2021 को हैप्पी होते देखा होगा ?"
     वो रुआंसे होकर बोले, ' मैंने सिर्फ इतना देखा की वो आया और थैली छीन कर भाग गया ! अब मुझे क्या पता कि कि ' हैप्पी होकर ऐसा करेगा '!
     अचानक वर्मा जी मुझ पर ही भड़क उठे , ' तुम पत्रकार लोगों की चार आंखे होती हैं ना ! मैने तो आज तक नए साल को कभी हैप्पी होते देखा नहीं, तुम्हें कैसे नज़र आ जाता है ! हर आने वाले साल को तुम पत्रकार लोग जनवरी में हैप्पी बता देते हो और फिर पूरे साल उसमें कोरोना निकालते रहते हो ! खबरदार जो मुझे नए साल की मुबारकबाद देने की कोशिश की "!
       क्रोध में वो दुर्वाशा ऋषि नज़र आने लगे थे, मै उनके सामने से हट गया ! वर्मा जी करैला ज़रूर हैं मगर हक बोलते हैं ! साल 2020के बारे में भी लोगों ने हैप्पी न्यू ईयर कहा था ! फावड़ा लेकर भी यादों का मलबा हटाऊं तो भी कहीं दस ग्राम "हैप्पी" नहीं मिलेगा ! पूरा साल दुखीराम के नाम रहा! लोग ट्रंप के लाए तोहफ़े को संभालते रहे ! एक तरफ कोरोना - दूसरी तरफ आत्मनिर्भरता !! ( गुरु गोविन्द दोऊ खड़े,,,) जनता नौकरी ढूंढ़ रही थी और डॉक्टर किडनी ! हर किसी को अर्थव्यवस्था मजबूत करने की जल्दी थी ! ज्यादा जागरूक लोग देसी दारू के ठेकों पर लाइन लगा कर खड़े थे ! अर्थव्यवस्था के लिए हर जोख़िम उठाया जा रहा था ! सोशल डिस्टेंस देखते तो अर्थव्यवस्था मज़बूत होने की जगह ग़रीबी रेखा के नीचे चली जाती!
       इस बार २०२१ में मैने सिर्फ उन्हीं चंद लोगों को हैप्पी न्यू ईयर कहा है , जिनसे बदला लेना है ! अब मेरे समझ में आ गया है कि ऐसा कहकर लोग अपना शनि उतारते हैं ! ऐसे लोगों को कमी नहीं जो अपना बही खाता देख कर आश्वस्त हैं कि उनकी शुभकामनाएं किसी बददुआ से कम नहीं है ! पहली जनवरी को वो पुरी चैतन्यता से लिस्ट बना कर अपने विरोधी और खाते पीते पड़ोसियों को नींद से जगा कर हैप्पी न्यू ईयर की शुभकामना दे देते हैं ! ( वो दोहा तो सुना ही होगा - तोकों फूल के फूल हैं - वाको है " त्रिशूल"!) साल के पहले सप्ताह में ही जिसे इतने त्रिशूल भेंट किए गए हों, उसकी किस्मत में  कोरोना नहीं तो क्या होगा !
                      वैसे,,,,साल 2020 बडा़ क्रांतिकारी रहा ! शर्म, हया और लाज लिहाज से जिनका दूर दूर तक कोई नाता नहीं था,वो भी मुंह ढक कर निकलने लगे ! फेस मास्क को ख़्वाब में भी ना देखने वाले इसी को संजीवनी बूटी समझने लगे ! सोशल मीडिया पर इसके समर्थन और विरोध में हजारों चारण दिन रात ज्ञान की गंगा बहा रहे थे !  चालान के डर से लाखों लोगों को इसी से कोरोना रुकता नज़र आ रहा था , तो विपक्षी चारण दावा कर रहे थे, -' फेस मास्क का माइक्रो छेद भी कोरोना के साइज से दस गुना बड़ा है ! अगर कोरोना चाहे तो अपनी फेमिली के साथ फेस मास्क से घुस कर आपके मुंह में कॉलोनी बना सकता है ! ' सोशल डिस्टेंस की अनिवार्यता के चलते कवि साहित्यकार मंच से बेदखल होकर साहित्य सृजन में पिले पड़े थे ! श्रोता चैन से सो रहे थे और बीबियों की नींद हराम थी ! नौकरी गवां चुके कई असाहित्यिक प्राणियों ने करुण रस में लिखना सीख लिया था, - ' दुनियां बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई ! तूने काहे को पत्नी बनाई '!
      नए साल में  चार दिन बाद मै अपने दोस्त ' चौधरी ' 
से मिला ! विगत कई वर्षों से हमने ये नियम बना लिया था कि एक जनवरी को कोई किसी को हैप्पी न्यू ईयर का अभिशाप नहीं देगा ! मैने देखा कि चौधरी भैंसों का दूध दुह कर अख़बार देख रहा था ! मुझे देखते ही उसने गुस्से में पूछा, -.' इब कूण सा कीड़ा लिकड़ आयो मुर्गे में ?'
  ' वही, जो तीन साल पहले आया था जब मुर्गा और आलू एक भाव में बिके थे - बर्ड फ्लू '!
     " तू इतै कैसे आया ?"
   ' सोचा चार दिन बाद शनि उतर गया होगा, चलो हैप्पी न्यू ईयर कह दूं '!
     " भैंसन कौ चारा घणा महंगा हो गया , मैने भी दूध दस रुपए किलो बढ़ा दिया "!
        " किसान के खाते में सरकार बराबर पैसे ड़ाल रही है ! और तुम दूध महंगा कर रहे हो ! एक बार भैंसों से पूछ तो लेते ?"
      " मन्ने पूछा हा, नू बोली- अक - बेशक मेरे दूध कू नाले में गेर दे, पर कदी लेखक कू उधार मत नै दे"!
        " नया साल में एक और कीड़ा आ रहा है, इंगलैंड से ! अल्ला जाने क्या होगा आगे !"
       " थारे गैल रहूंगा तो सुखी कैसे रह सकूं ! साड दो हजार बीस ने आधा खून पी लई , इब बचा हुआ खून नया कीड़ा खावेगो ! कोरोना तो लिकड़ा भी ना इबे घर ते ! नू बता, सबै कीड़े म्हारे देश में क्यूं आ जावें , इनके देश में घणी बेकारी है - के ?"
           " नहीं, दरअसल हम अतिथि को देवता समझते हैं ! इसलिए हर विदेशी बीमारी नाक उठाए आ जाती है, और हम उसे अतिथि समझ कर कह देते हैं - आ गले लग जा - ! क्या करें - दिल है कि मानता नहीं -"!

       तब से चौधरी मुझे घूर रहा है !