Friday, 27 November 2020

" कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन!"

        ''जामुन"  से   "जोंक''  तक 

      मुझे आज तक बचपन से ज़्यादा लज्जतदार कुछ नहीं मिला ! शायद बचपन देख कर ही खुदा को जन्नत बनाने का ख्याल आया होगा ! बचपन,,,,यानी हमारी हुकूमत और बादशाहत का वो दौर जब हमारी चाहत पूरी करने वाले कतार लगाकर खड़े होते हैं ! जब हमारे रूठने पर पूरा घर मनाने पर उतर आता है ! जब हमारे रोने की आवाज़ से मोहल्ले के डॉक्टर को छोड़कर सब मायूस हो जाते हैं! वो बचपन, जहां बच्चे के देर तक जागने पर लोरियां जन्म लेती हैं , खिलौने बोलते हैं और मां बाप रात आखों मे काट देते हैं !
         वही बचपन, जो  इन्सान की ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार आता है और यादों के ढेरों ख़ज़ाने सौंप कर चला जाता है! उम्र हमें इतनी भी मोहलत नहीं देती कि ज़िन्दगी के इस बेहतरीन ख़ज़ाने को हम पूरी तरह सहेज कर रख सकें ! उसके पहले ही हम वर्तमान की धूप में खड़े कर दिए जाते हैं, जहां हालात और दुनियां हमारी यादों पर अपने मोहरे खड़े कर देती है ! बस वहीं से हमारी सल्तनत का शीराजा बिखरने लगता है, हम चक्रवर्ती सम्राट से सीधे चौकीदार होने लगते हैं ! आज़ादी खत्म - अधीनता की ज़िन्दगी शुरू ! पहले टीचर के आधीन, फिर बॉस के आधीन और फिर बीबी के आधीन ! अंतर: बुढ़ापे में औलादों के आधीन ! 
      बचपन   !  क्या बादशाहत के दिन थे यार! नमक तेल लकड़ी की कोई फ़िक्र नहीं । ऊंच नीच के बारे में हमें कभी बताया ही नहीं गया ! हम शेख़ सैय्यद ! हमारे दोस्तों में दलित, ठाकुर,अहीर पंडित सभी थे!  आज़ सोच कर हैरान हो जाता हूं बाबूलाल की लाई हुई उबली शकरकंद हम सब मिलकर खा लेते थे ! ( ऊंच नीच और जाति के बारे में सारा ज्ञान स्कूल से  मिला ज़रूर पर अमल की पाबन्दी या सख्ती नहीं थी।) अखाड़ा, कुश्ती और कबड्डी में मेरा प्रतिद्वंदी संतराम भी एक दलित था ! गांव में जाता हूं तो संतराम के साथ आज भी हम बचपन की यादों के सारे एलबम उलट लेते हैं।
          वैज्ञानिकों का दावा है कि इंसान का दिमाग जन्म से पांच वर्ष की आयु तक ९५ प्रतिशत डेवलप हो जाता है! बकाया ५ फीसदी विकसित होने में पंद्रह साल लग जाते हैं ! हमारे दौर के बचपन की उम्र दस साल तक थी। हमारी पीठ पर दस किलो किताबों का बोझ नहीं होता था । शुरुआत में लकड़ी की एक मजबूत तख्ती होती थी । उसी से हम आपसी विवाद तक निपटा लेते थे । तख्ती को घोंट कर चमकाने के लिए हम भी जाने कहां कहां से संजीवनी बूटी लाते थे ! आपस में लड़ते ज़रूर थे़, पर कभी घर में बताते नहीं थे़ ! ( तब घर में पिटने की भरपूर सम्भावना रहती थी।) 
         छोटे से बचपन का दायरा हमारे दिलों की तरह बडा़ था ! गांवों में बिजली नहीं थी मगर चांद की रोशनी में हम देर रात तक खेला करते थे । कुएं के पानी में खाना पकता था, उसी से खेत सींचते और उसी को पीते, पर कभी बीमार नहीं हुए ! बल्कि जिस कुएं के पास पेड़ होता, उसका पानी गर्मियों में रूह तक को सुकून देता ! ( आज हर घर में हैंडपंप है और उपेक्षित और लावारिस कुएं अपना बचपन ढूंढ रहे हैं!) हमें याद है कि मेला देखने के लिए मां से मिले २ रुपए पाकर हम कितने लबालब होकर घर से निकलते थे़ । इतनी बड़ी रकम देकर अम्मा ताकीद भी करती थीं कि छोटे भाई के लिए क्या क्या लाना है!
                            धान की फसल के बाद जब गेंहू के लिए खेत जोते जाते और सर्दियां दबे पांव गांव में उतरती, तो हम पूरी चांद रात गांव से बाहर खेतों में कबड्डी खेलते । सुबह खेत की हालत देखकर किसान गालियां देते जिसे हम लौंडे विटामिन और प्रोटीन समझकर लेते। जाड़े की सर्द रातों में पकते हुए गुड़ की सोंधी खुशबू में मदमस्त गांवों और चांदनी में बुझते हुए अलाव के गिर्द तिलिस्मी कहानियों में खोए हम बच्चे! अक़्सर कहानियां पूरी होने से पहले ही अलाव के किनारे हम नींद में लुढ़क जाते थे !  ( कहानी का वही रूहानी तिलिस्म जाने कब मेरी कलम और किरदार में उतर गया !) मै आज भी उन गुमशुदा कहानियों को ढूंढता हूं !
      मैं जब जब बचपन में झांकता हूं तो यादों के तालाब में  'जोंकें ' ज़रूर नज़र आती हैं! हर साल तालाब में कमल खिलते , हर दिन हम नहाते और हर दिन हमारा कोई ना कोई दोस्त जोंक का शिकार बनता ! हमें मगरमच्छ से ज़्यादा खौफ इस ३ इंच की  जोंक का होता था । तालाब में हमारे खेल भी बडे़ चुनौती वाले और खतरनाक हुआ़ करते थे ! मसलन - तालाब के किनारे वाले पेड़ पर चढ़ कर तालाब में छलांग मारना ! गहराई में  ईंट को फेंकना,फिर उसे पानी में डुबकी मार कर सबसे पहले निकालना ! वो हमारा मैराथन था !
         जाने कहां गए वो दिन ! बडा़ क्या हुआ , खुशियों की सारी कायनात छोटी हो गई ! चालीस साल दिल्ली में रहकर भी मेरा  गांव  और बचपन धुंधला ना हुआ़ ! ये सिर्फ हमारा बचपन नहीं है , यादों के इस आइने में आप सब के बचपन मुस्करा उठे होंगे ! वो बचपन - जो सरापा ज़िंदगी हमारी मायूसी को अपनी मासूम शरारतों भरी  यादों से दूर कर देता है! बचपन - यानी हमारी सल्तनत की वो जागीर जो हमारी सांसों के साथ ही विदा होती है!
 हमारे  मासूम अरमानों का ख्वाबगाह ! 

            काश ! हमारी ज़िन्दगी हमारे बचपन से कुछ सीख लेती ! हम क्या जवाब देंगे अपने बचपन को !  . आजा बचपन एक बार फिर,,,,,,,!!!

           ( सुलतान भारती )

     

Monday, 23 November 2020

" सूर्पनखा रिटर्न "!

                 ( आप सब कल्पना कीजिए कि आज़ 2020 में अगर सूर्पनखा की नाक काटी गई होती तो बाहुबली रावण और उसकी फैमली पर क्या प्रतिक्रिया होती ! तो ,, आइए देखते हैं !!)

              " एक कटी हुई नाक" ! 

        अपने शानदार फॉर्महाउस अशोक वाटिका में रावण बैठा गृहमंत्री विभीषण के बारे में खुफिया एजेंसी की भेजी गई रिपोर्ट देख रहा था । सुपरसोनिक पुष्पक विमानो के सौदे में  "विभू" ने करोडो डॉलर कमीशन खाया था ! यानी इस जन्म में भी विभीषण अपनी आदत से मजबूर थे ! रावण ने फाइल एक तरफ रखी, हाथ को सेनेटाइज किया और चेहरे से फेस मास्क उतारते हुए खुलकर सांस ली। उसके बाद वह लैपटॉप पर अपनी फेवरेट फिल्म  ' बजरंगी भाई जान ' देखने लगा ! तभी उसके फ़ोन पर मिस्ड कॉल आई ! रावण ने पलट कर फोन किया , उधर से जानी पहचानी कॉलर ट्यून बजी,' "मुश्किल करदे जीना - इश्क कमीना '!
        रावण समझ गया कि दूसरी तरफ उसकी छोटी बहन सूर्पनखा है ! रावण घबरा गया , बहन रोती हुई  कह रही थी, ' भैया ! मेरी नाक फिर कट गई !'
  रावण को बिलकुल हैरानी नहीं हुई ! उसने नॉर्मल लहज़े में पूछा, " तुम नाक लेकर जाती ही क्यों हो ?"
  सूर्पनखा ने धमकी दी, " अगर इस केस में आप ने कुछ ना किया तो मैं अपनी कटी हुई नाक का विडियो विभीषण भइया को पोस्ट कर दूंगी । विभू भइया तुरंत वॉयरल कर देंगे ! फिर अपनी नाक कैसे बचाओगे "?
        इतना कहकर शूर्पी ने फ़ोन काट दिया !
रावण धर्मसंकट में था ! मेघनाथ किडनी बदलवाने इण्डिया गया हुआ था ! विभीषण एक और कमीशन का चेक लेने मलेशिया की यात्रा पर था। कुंभकरण था तो लंका में, लेकिन एक कुंटल गांजा पीकर छे महीने के लिए कोमा में जा चुका था ! रावण ने डायरी देख कर तीन नाम निकाले ,और फ़िर पहला फोन अमेरिका में चुनाव हार चुके डॉनल्ड ट्रंप को मिलाया ! रावण ने बहन के नाक कटने की व्यथा बताई, तो उधर से ट्रंप ने रावण का मजाक उड़ाते हुए कहा, " भतीजे! तुम समझदार नहीं खोत्ते  हो जो इस जमाने में भी नाक की परवाह करते हो ! हमारे देश में तो महिलाओं का कुछ भी लुट जाए, पर हम उसे नाक पर नहीं लेते "!
        " क्यों ?"
             "  इतना भी नहीं समझे कि अब लक्ष्मी बाई का नहीं, जलेबी बाई का ज़माना है! जानम समझा करो"!
      रावण ने फ़ोन काट दिया - वाइडन से हारने के बाद ट्रंप अनाप शनाप बोल रहे थे़ !  रावण ने अपने कुलगुरू का नंबर निकाला जो बलात्कार के अपराध में भारत की एक जेल में बंद थे़ ! रावण ने फ़ोन करके कहा, ' सत श्री अकाल गुरु जी !"
      " ओय रावण पुत्तर ! की हाल चाल है ट्वाडा !"
  " क्या बताऊं गुरु जी ! छोटी बहन की नाक कट गई !"
"ओय तो इसमें माइंड करने दी की गल ! हुण तुसी ऐवे कर, सूर्पनखा नू साड्डे कोलों पेज दे! असी एडजस्ट कर लांगे ! साड्डे नाल रहेगी ता ऐश करेगी !"
रावण हैरान था, " मै समझा नहीं गुरु जी !"
    " त्वाडे समझने दी की लोढ़ ! नाक कट गी तो कट जान दे ! त्वाडी बहन विदाउट नाक भी चलेगी ! बस तुसी शुर्पी नू साड्डे कोलों पेज दे !"।                                     अब रावण का माथा ठनका,उसने गुस्से से पूछा, "आप कहना क्या चाहते हैं ?"
            " देख पुत्तर ! वाहे गुरु ने किन्नी सोनी जोड़ी बनाई है ! कुंडली दा मैच देख - हम दोनों ने ही नाक कटाई है !! बल्ले बल्ले, ते याहू याहू !!"
रावण गुस्से से चिल्लाया , " सूर्पनखा तुम्हारी बेटी की तरह है! तुम्हें शर्म आनी चाहिए !!"
         " मै इस दुनियां के रिश्ते मानता ही नहीं ! "शूरपी" ने पेज दे ! असी इक नवीं फिल्म बनावांगे, और ज़मानत मिली तो अगला वेलेंटाइन लंका आकर मनावांगे !"                   रावण ने घबराकर फ़ोन रख दिया ! थोड़ी देर में नॉर्मल होने के बाद रावण ने आखिरी फोन अपने फेमिली फ्रैंड प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को लगाया ! उधर से हिन्दी में गाने की आवाज़ आई,, - मोहे -  'पीओके '  पे नंदलाल छेड़ गयो रे ! गज़ब भयो रामा जुलम भयो रे !"
      रावण हैरान था, " खान साहब ! क्या हो गया ! हिन्दी में रो रहे हो ?" 
        " ओय खोचे रावन बिरादर ! इस भरी दुनियां में कोई भी हमारा ना हुआ़ ! मै फटेहाल पाकिस्तान को संभालूं या फजलुर रहमान को ! पीओके पर हालत ख़राब है निरादर !"
        " पीओके पर क्या हुआ ?"
             " उधर इंडियन आर्मी रोज आकर हमारा दरवाज़ा खटखटा कर मेरे बारे में पूछती, - " खोचेे  बुड्ढा घर पर है ?"
   "   वेरी बैड !"
 " खोचे इससे भी बुरा ! छप्पन मुस्लिम कंट्री हैं, पर मोडी जी ने क्या शहद चटाई है कि आज की डेट में - इस भरी दुनियां में कोई भी हमारा ना हुआ़ ! खैर तुमने कैसे याद किया बिरादर !"
                 अब रावण ने अपने दर्दे दिल की वजह बताई , " बहन की नाक कट गई खान भाई !"
    इमरान खान चौंक कर बोले, ' सिस्टर ने बताया कि किसने नाक काटा ?"
       रावण ने झूठ बोला, " मैंने नहीं पूछा !"
" खोचे पूछने का ज़रूरत ही नहीं, नाक तो ज़रूर किसी हिन्दुस्तानी ने काटा होगा !"
      रावण दंग था ! इमरान को कैसे पता, " भाईजान ! आप तो जीनियस हो ! आप को कैसे पता चला! ओह ख़ान तुसी ग्रेट हो !"
   "  ओय नहीं रावण बिरादर ! ये ग्रेट वाली नहीं, शर्म की
बात है ! अल्लाह दुहाई है दुहाई है ! कश्मीर से कारगिल तक हमने नाक ही कटाई है !! हमकू पता है !!"
      रावण की उम्मीद ठंडी हो रही थी !
   " खोचे रावण बिरादर ! बीसवीं सदी में तुमने पहली बार नाक कटाई है, इसलिए बिलबिला रहे हो ! हम तो पिछले सत्तर साल से रेगुलर नाक कटा रहे हैं !" 
    " अदभुत नाक है ! " 
  " ट्रेज्डी देखो ! हिन्दुस्तान का मुस्लिम भी हमारा सपोर्ट नहीं करता ! उधर का हिन्दू मुस्लिम आपस मे लाठियां चलाता है, पर हमारा नाक काटने के लिए दोनो एक हो जाता है !"
         " बहुत दुख हुआ "! 
  " इस सर्जिकल स्ट्राइक ने रही सही मेरे नाक की "टीआरपी" ही खत्म कर दी "!
         " मेरे लिए क्या सलाह है भ्राता श्री ?"
" एक बार कटी सो कटी ,  कोशिश करो कि आगे नाक ना कटे ! "! इतनी सलाह देने के बाद इमरान खान ज़ोर ज़ोर से गाने लगे , " दुनियां बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई ! तूने काहे को नाक बनाई "!!

             रावण सर पकड़ कर बैठ गया !

Saturday, 21 November 2020

" कोरोना तुम कब जाओगे"!

           अमा कोरोना मियां, बड़े बेगैरत किस्म के जीव हैं आप ! गुरबत में आये मेहमान की तरह जम कर बैठ गए हो ! हजारों लोगों को निगल कर भी पेट भरा नहीं ! करोड़ों बेरोजगार बददुआ दे रहे हैं और तू बेहयाई से डटा हुआ है! अबे अब तो चीन लौट जा! या फिर चीनी सेना की तरह जूते खाकर वापस जाएगा ! यहां से जाने के सवाल पर  क्यों केजरीवाल के खांसी की तरह ख़ामोश है! अब तो हम आत्मनिर्भर भी हो गए, अब किसलिए रुका है? अब तो हमें छोड़कर - कबूतर जा जा जा !!
       फरवरी में जब तुम आए तो जनता आश्वस्त थी कि अच्छे दिन की तरह तुम भी , सबेरे वाली गाड़ी से , चले जाओगे ! तब कौन जानता था कि तेरा आना मंहगाई की तरह स्थायी होगा ! विरोधी लहते हैं कि उस वक्त तुम और ट्रम्प साथ साथ आए थे! ट्रंप चले गए - कोरोना तुम कब जाओगे ! मार्च में हमारे नेताओं ने कहा था कि गर्मी में तुम्हारा प्रकोप होगा ! तब मुझे उनकी भविष्यवाणी नहीं समझ में आई थी ! बाद में पता चला कि मरकज वाले तुम्हे थैलों में भरकर लाये थे ! ( इसका पता पहले मींडिया को लगा बाद में केजरीवाल को ! ) गरमी जैसे जैसे बढ़ी वैसे वैसे प्राइवेट और सरकारी डॉक्टर तेजी से आत्मनिर्भर हो रहे थे ! तुम दीर्घायु हो रहे थे और लोग बेरोजगार , पर देश आगे बढ़ रहा था !
       तुम्हारा डर बढ़ता गया और लोग बेखौफ होते गए ! तुझे जुलाई अगस्त में ही चले जाना चाहिए था! तब तेरी वापसी सम्मान जनक होती ! अब तू मातम करता हुआ चीन जाकर बतायेगा कि - बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे में हम आए ! अबे देख किया ना, तुझे कैसे तवायफ की तरह नचा रहे हैं ! कहां कहां तेरा इस्तेमाल हो रहा है, और तू मना भी नहीं कर सकता ! तेरी वजह से कितने घर में मुहर्रम उतर आया और   कितनो के घर दीवाली ! तुझे भी पता नहीं होगा कि पांच रुपए वाला फेस मास्क इतना चमत्कारी हो चुका है !  भारतीय पुलिस तेरी कुंडली बना रही है! वो सड़क पर कार रोक कर फेस मास्क चेक कर रही है! नाक से नीचे खिसके फेस मास्क
 को "जमाती" समझा जायेगा ! दो हज़ार का चालान !! दे दाता के नाम - तुझे " कोरोना" समझे !
          तू भी गज़ब का है ! बिहार के इलेक्शन के दौरान कोमा में चला गया ! जनता और जनार्दन दोनो थूथन उठाए विकास बटोरते रहे ! चुनाव में फेस मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की ज़रूरत इसलिए नहीं पड़ी, क्योंकि बड़े बड़े कोरोना चुनाव प्रचार में व्यस्त थे ! तुम्हें बता दिया गया था कि उधर मत जाना - दिशाशूल है ! सेंसेक्स नीचे चला गया और तुम कोमा में ! दिल्ली वाले इस गलतफहमी में स्वेटर खरीदने निकल पड़े कि पटाखे भी फोड़ लिए, अब तो कोरोना पक्का मर गया होगा ! ( हमें तो सदियों से पराली और प्रदूषण की  आदत है !) अब तो ' छठ ' भी निकल गया ! कोरोना तुम कब जाओगे !
                 लो जी, सब निपट गया, अब फिर तुम्हारी ज़रूरत पड़ गई , अत: साजन आन मिलो ! सुना है कि फिर तुम्हारी खुमारी टूट चुकी है !  दिल्ली में अभी चुनाव दूर है, इसलिए केजरीवाल जी दुबारा लॉक डॉउन की सोच रहे हैं ! कोरोना दद्दा ! मान गया तुम्हें, चुनाव से डरते हो - चुन्नीलाल से नहीं ! बाज़ार में विकलांग आलू भी पचास रुपए किलो बिक रहा  है, और जनता बगैर दिहाड़ी के आत्म निर्भर हो रही है ! बेकारी और गुर्बत के इसी रहस्यवाद  से कबीर पैदा हुऐ थे। अब तो  बरसे कंबल भीगे पानी का छायावाद समझ में आ गया होगा ।
गो कोरोना गो ! चीनी जनता तेरी याद में गा रही होगी, - अबहूं ना आए बालमा , सावन बीता जाए!
           हो सकता है इटली, फ्रांस अमेरिका आदि देश तुझे भूल जाएं , पर हम तुझे याद रखेंगे ! याद रखेंगे कि कोई दुश्मन देश से आया था, जिसकी नस्ल हमने बदली थी ! तू हमें इसलिए याद करेगा कि पश्चिमी देश तुझसे डरते थे और तू हमसे ! हमारे ठेके पर लगी भीड़ देखकर तुझे हमारे स्टेमिना का अंदाजा हो गया होगा ! तो,,, मेरे बारे में क्या ख्याल है! नया साल दिसंबर को लेकर चिंतित है! सारे  सांताक्लॉज इस बार बिहार में थैला खाली कर आए हैं ! अब बांटने के लिए तू ही बचा है ! इब हट जा ताऊ पाछे ने ! विकास आने दे ! अभी गनीमत है, सब्र मेरा - अभी लबालब भरा नहीं है !
 घणा खून पी गया !  इब लिकड़ ले बावली पूंछ !!

    देर ना हो जाए  कदी  देर ना हो जाए !!

Monday, 16 November 2020

"सच और झूठ के बीच का पर्दा !"

            आज मैं वादा करता हूं कि जो भी बोलूंगा, सच बोलूंगा - सच के अलावा काफ़ी सारा झूठ भी बोलूंगा! और क्यों ना बोलूं ! आफ्टर ऑल,,,, अभिव्यक्ति की आज़ादी है ! लिहाज़ा अब करूंगा गंदी बात !! नहीं, सच और झूठ की बात चल रही है, गंदी बात हमारे संस्कार से बाहर का एजेंडा है! झूठ कितना पॉपुलर और पॉवरफुल है कि अदालत तक को यकीन नहीं कि कोई शख्स बगैर गीता या कुरान को हाथ में लिए सच बोलने का रिस्क उठायेगा ! ( बल्कि किताब पर हाथ रखकर भी लोग झूठ की शरण में चले जाते हैं!) झूठ के सामने खड़ा - सत्यमेव जयते - कितना दीन हीन और अविश्वसनीय लगता है! 
       संस्कृत का एक श्लोक देखिए, सत्यम ब्रूयात - प्रियम ब्रुयात -!(सच बोलना चाहिए , मीठा सच बोलना चाहिए!) ये कैसे होगा ! सच तो कड़वा बताया गया है !! वो  ' परी ' कहां से लाऊं ? आगे कलियुग का समर्थन करते हुए सुझाव दिया गया है, - प्रिय असत्यम ब्रूयात ! अप्रिय सत्यम मा ब्रू यात ! जो स्वादिष्ट लगता हो, वो झूठ बोला जा सकता है ! ( चुनाव में तमाम दलों के नेता इसी श्लोक से प्रेरणा  पाते हैं !) जो कड़वा लगे या कलेजा छील दे, ऐसा अप्रिय सच कभी मत  बोलो ! झूठ की मार्केटिंग में इस श्लोक की बड़ी भागीदारी है ! कााा
                                लोग सच का बोर्ड लगा कर खुलेआम झूठ बेचते हैं! सड़क से संसद तक झूठ का दबदबा है ! झूठ च्यवनप्राश है, अमृत कलश है - वीटो पॉवर है ! झूठ बिकता है, चलता है डिमांड में है! सच कहावतों और कहानियों से ऑक्सीजन लेकर ज़िंदा है !सच हिंदी फिल्मों का आख़री सीन है जिसमें साधनहीन हीरो महाबली खलनायक पर विजय पाता है! हर सरकार सच को बचाने की शपथ लेती है पर  दिनों दिन सच गरीबी रेखा से नीचे जा रहा है ! कोई झूठ के पक्ष में खड़ा नहीं है फिर भी उसके सामने सच कैसे कुपोषित हुआ पड़ा है । 
         आज की दुनियां में तो कुछ चतुर सुजान ने वक्त की डिमांड देखते हुए सच बोलने पर "जीएसटी" लगा दी है, - बोलने का दुस्साहस करोगे तो भारी कीमत चुकाना पड़ेगा ! दूसरी तरफ, झूठ को टैक्स फ्री कर दिया है ! सारे बोलो,,,! सच के रास्ते में पड़ने वाले सारे मैनहोल के ढक्कन हटा दिए गए हैं, जिससे सच को नीचे गिरने में असुविधा न हो ! और,,,,,झूठ के रास्ते में पड़ने वाले सारे स्पीड ब्रेकर हटा दिए गए हैं - ' कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को -'! दोनों की सेहत में ज़मीन आसमान का फर्क देखिए, झूठ का स्टेमिना ऐसा मजबूत है कि कोरोना की पूरी कॉलोनी निगल जाए तो ज़ुकाम भी ना हो ! और,,,,,सच अगर मूली की तस्वीर भी देख ले तो छींकने लगेगा ! इसी झूठ ने कई धर्मों के सच को लहूलुहान किया है ! 
           चूंकि अतीत हमेशा सुनहरा और गौरवशाली होता आया है, इसलिए सच का भविष्य सोच कर सिहर जाता हूं ! एक हिन्दी फिल्म का गाना है - झूठ बोले कौआ काटे -! तो गोया अब झूठ से इन्सानों को कोई परहेज़ नहीं रहा ! सिर्फ कौओं को "घी" हज़म नहीं हो रहा है ! मगर कौए कब से सत्यवादी हो गए ! वो तो खुद झूठ के ब्रांड एंबेसडर बताए जाते हैं ! जबसे कलियुग आया है, कौओं ने हंसो से मोती छीन लिया है और तमाम अमराइयों से कोयल को बेदखल कर दिया है! अगर गलती से कोई कोयल नज़र आ जाए तो कौए ऑफर देते हैं, -' आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा ! मालिश कराना है '!
           झूठ अजर अमर है! झूठ रावण है ! हर बार अपना पुतला छोड़कर भीड़ में खड़ा हो जाता है ! भीड़ पुतला जला कर संतुष्ट है ! रावण  "नाभि" सहलाता हुआ मुस्कराता है ! वो अपने अमरत्व के प्रति आश्वस्त है ! असत्य पर सत्य की विजय से जनता गदगद है और हकीकत से आगाह रावण आश्वस्त! भीड़ में खड़ा "सच" रावण को पहचान रहा है , मगर सत्यमेव जयते के सिंहनाद में खोई जनता पुतले को रावण समझ बैठी है !
"झूठ" के  सांकेतिक दहन से  "सच" की जीत और रामराज की वापसी साफ साफ नजर नज़र आ रही है !

            सिर्फ रावण को असलियत पता है कि  "झूठ" दीर्घायु  हो रहा है !!

Thursday, 12 November 2020

" दीवाली स्पेशल!"

लक्ष्मी मैया  लिफ्ट करा दो !
कोठी बंगला गिफ्ट करा दो !!

संगम विहार से  ऊब गया मैं!
नॉर्थ ब्लॉक में शिफ्ट करा दो !! 
                                 लक्ष्मी मैया,,,,,,,,!
बहुत  हुई  "आपदा"  "आपदा"!
अब थोड़ा "अवसर" दिलवा दो!! 
                          .  ......लक्षमी मैया,,,,,,!
उल्लू को अब करो रिटायर !
हंसों  के  भी दिन लौटा  दो !!
                             लक्ष्मी मैया,,,,,,,,!
सूख रहा रिश्तों का पोखर!
फिर से बहती नदी बना दो !!
                              लक्ष्मी मैया,,,,,,,!
प्यार , मुहब्बत  - भाईचारा !
घर घर की पहचान बना दो !!
                              लक्ष्मी मैया,,,,,,!
"राम नाम" का चोला पहने!
रावण को बनवास दिला दो!!
                                लक्ष्मी मैया,,,,,,!
भूखा बचपन आंख में आंसू!
चेहरों पर मुस्कान सजा दो!!
                               लक्ष्मी मैया,,,,,,,,!
खुशियों पर अधिकार सभी का!
ऊंच  नीच  का  फर्क  मिटा  दो !!
                                    लक्ष्मी मैया,,,,,!
"नंबर वन"  हो  भारत   अपना !
ताकत - दौलत - प्यार दिला दो!!
                                     लक्ष्मी मैया,,,,,!
"कोरोना"  खा    गया   नौकरी !
अब  तो  ये  तांडव  रुकवा  दो !!
                                    लक्ष्मी मैया,,,,,!
इस "दीवाली"  बस  इतना  ही !
निर्धन को  "सुलतान" बना दो!!
                                   लक्ष्मी मैया,,,,,,,!

  -     (  सुलतान  " भारती" )  -

Tuesday, 10 November 2020

।। "खांसते रहो !"

             आदमी की फितरत देखिए, मरना ही नहीं चाहता ! बीमार होने पर आसानी से अस्पताल नहीं जाना चाहता और कोरोना को मौसमी वॉयरल बताकर डॉक्टरों से बचना चाहता है। विकास की तरह बीमारी भी - हरि अनन्त हरि कथा अनंता - है। डॉक्टर और केमिस्ट की  जन्नत का दरवाजा इसी दोजख से होकर जाता है। कितने  "ज़मीनी भगवान" ( डॉक्टर) तो अपनी बेटी का रिश्ता तक बीमारी का मुहूर्त देखकर तय करते हैं , " लड़के वाले जल्दी मचा रहे थे,पर मैंने शादी की तारीख़ दिसम्बर से हटाकर जून कर दी!  मई जून खांसी, ऐक्सिडेंट, टीबी और हैजा का सीज़न होता है - यू नो !"
        खांसी से पीड़ित लोग अमूमन उतना नहीं घबराते जितना सुनने वाला घबराता है । क्या पता टीबी ना हो ! खांसी की वैरायटी बहुत है। डॉक्टर को भी उतना ज्ञान नहीं होगा जितना यूपी वालों को होगा ! सरसों के खेत में उड़ता हुआ भुनगा गले में घुस जाए तो यूपी वाले ऐसे खांसते हैं गोया गले में पेड़ उग आया हो ! हुक्का पीने वाले बुजुर्ग खांसने पर उतर आएं तो पूरे मोहल्ले का रतजगा करा दें! इतने ज़बरदस्त तरीके से खांसते हैं कि आंतों में रूकी हुई गैस भी ख़ारिज हो जाती है ! हमारे गांव के गियासू भाई बीड़ी के चेन स्मोकर थे, ( खुदा उन्हें जन्नत दे!) जब खांसना शुरू करते तो मुंह के अलावा भी कई जगह से आवाज़ आती थी !
         कुछ लोगों ने खांसने में भी काफी नाम कमाया है! इन्हें अगर वरीयता क्रम में रखा जाए तो  'केजरीवाल' जी की खांसी को गोल्डमेडल मिलेगा ! क्या खांसी थी, उड़ी बाबा! लोग निरूपा रॉय की खांसी भूल गए ! जब खांसने पर उतारू हो जाते तो टीवी देख रहा अभिभावक बीबी को डांटता था, "  बच्चों को टीवी से थोडा़ दूर बिठाया करो "!  उन्होंने खांस खांस कर पूरे देश को इमोशन में ला दिया था ! उनकी खांसी से घबराकर दिल्ली के वोटरों ने  डिसाइड किया कि जिताने से ही जान छूटेगी ! और,,,, जीतते ही उन्होंने मफ़लर और खांसी को अलविदा कर दिया ! अब उनकी खांसी अच्छे दिन की तरह नदारद है और दिल्ली वाले खांस रहे हैं ! विरोधियों का दिल पराली की तरह जल रहा है और केजरीवाल जी मुस्करा कर प्रदूषण पर झाड़ू फेर रहे हैं! आंकड़ों में पराली खाद में बदल रही है और खांसी मुस्कराहट में ! खुशहाल दिल्ली फेस मास्क लगाए आज भी खांस रही है!
         कुछ खांसी सामयिक होती है, कुछ अल्कोहलिक और कुछ मौसमी! एक  "कुकुर खांसी" भी होती है जिसकी दवा है - कुकर सुधा !( नाम से ऐसा लगता है कि इसका आविष्कार  किसी कुत्ते ने किया होगा !) लेकिन इसके इतर एक रहस्यमय खांसी ऐसी ऐसी भी है जो सनातनकाल से चली आ रही है, और आजतक उसका कोई इलाज नहीं है ! अगर आपके याददाश्त का प्लग स्पार्क नहीं कर रहा तो याद दिला देता हूं!
                ये रहस्यमय खांसी की बीमारी हिन्दी फ़िल्मों के गरीब हीरो की विधवा मां को होती थी ! याद कीजिए, गरीब गांव का बचपन से गरीब और अनाथ हीरो ! हीरो की खांसती हुई अम्मा ! पास में सनातनकाल से बनता आ रहा एक बांध ! ( पता नहीं उस बांध का ठेकेदार कौन है !) हर तीसरी फिल्म में माता जी खांस रही हैं और बांध पर डायनामाइट फट रहा है! हीरो पीपल के नीचे वाले गुरुकुल में पढ़ कर भी डायरेक्ट दरोगा हो रहा है! दर्शक सोच रहे हैं कि अब हीरो माता जी के बलगम की जांच ज़रूर कराएगा , पर हीरो इतना हयादार नहीं है वो माता जी के लिए खांसी की दवा लाने की बजाय हीरोइन से इश्क कर रहा है।  खांसी और ज़ालिम जमींदार के बीच में माता जी ऑक्सीजन पीकर खड़ी हैं ! ( मैंने उन्हें किसी फिल्म में खाना खाते नहीं देखा !)

        जब से कोरो ना आया है, हर बीमारी में उसी की छवि नज़र आती है ! तीन दिन पहले  जुकाम हुआ,फिर बुखार और फिर गला ख़राब ! मित्रों ! ये किस बीमारी के लक्षण हैं ! मुझसे आजिज आए दोस्तों की खुशी के लिए बता दूं कि तीन दिन से खांसी भी आ रही है ! कोरो ना सोच कर ख़ुश होने वाले मित्र मुगालते में ना रहें ! आज मैं बिलकुल ठीक हूं ! दर्द और बुखार दोनों ठीक हो चुका है ! क्या कहें -  कुछ लोगों की बददुआ में एंटी बायोटिक की तासीर होती है !
          खांसते रहिए !!     ( सुलतान भारती)

Saturday, 7 November 2020

" अब किसी बात पर नहीं आती ! " (हँसी)

                   मैं जो भी कहूंगा, सच कहूंगा ! सच के अलावा,,, (मौका मिला तो काफ़ी सारा झूठ भी बोलूंगा!) यकीन मानों मैं हंसना चाहता हूं! ( कई लोग मेरे इस दुस्साहस पर हैरान होंगे !) पिछले चार महीने से बिलकुल हँसी नहीं आई ! हँसी के विलुप्ति के पीछे कांग्रेस या कोरोना का कोई हाथ नहीं है! बल्कि जब मार्च २०२० में कोरोना आया तो मैं हंस रहा था, -  बेटा  आ तो गया है अब बहुत बे आबरू होकर जायेगा -! आज कोरोना बड़ी साँसत में है! दुनियां के बड़े बड़े ताकतवर देश के नेता उसे सुनकर कांप रहे हैं, लेकिन यहां तो जूता पॉलिश करने वाला भी मास्क नहीं पहनना चाहता ! यहां कोई ये बिदाई गीत भी नहीं गा रहा है, " अब तो फूफा जी (ट्रंप) भी चले गए - कोरोना तुम कब जाओगे " !
             मई २०२० में आख़िरी बार हँसी आई थी, उसके बाद आत्मनिर्भर नहीं हो पाया ! पूरा जून बीस लाख करोड़ का इंतजार करता रहा! हंसना तो बहुत दूर, इतना सीरियस हो गया था कि ख़्वाब में भी कल्कुलेटर लेकर हिसाब लगाने लगता था कि इतनी आत्मनिर्भरता कहां कहां खर्च करना है! ऐसे में हंसना कौन कहे, मुस्कराने की भी फुरसत किसे थी !! अगले दो महीने प्रधान मंत्री मत्स्य पालन योजना में जाल डाल कर बैठा रहा ! इतनी भागदौड़ की कि रोना आ गया , प्रोजेक्ट रिर्पोट नहीं आई ! बार बार दिल कर रहा था कि अपने ऊपर हंसू, पर हलक सूखा हुआ था!
          नवंबर शुरू हो चुका है। मुद्रा और मनोबल दोनों पकड़ से बाहर हैं ! कल वर्मा जी समझा रहे थे कि आदमी को खुश रहना चाहिए ! खुश रहने से सेहत अच्छी रहती है ! ( वर्मा जी की सरकारी नौकरी है!) मैं भी चाहता हूं कि  हँसू और खुश रहूँ, पर कैसे ! हँसी तो मुंह से निकल कर जैसे पेट में गिर चुकी है ! दो तीन बार मुंह पीट कर देख लिया - कोई फायदा नहीं। गलाला करके देख लिया ! बलगम निकल गया, बेवफ़ा हँसी नहीं निकली! एक शेर बरबस जबान पर आ गया - 
पहले आती थी हाले दिल पे हँसी!
अब  किसी  बात  पर  नहीं आती !!
                          अतीत  हमेशा सुनहरा ही क्यों होता है ! ( कोई बतायेगा नहीं !) ' पहले देश सोने की चिड़िया थी ' ! ( तब शायद विकास की जिम्मेदारी नेताओं पर नहीं थी !) ' पहले दूध घी की नदियां बहती थी '! ( गाय भैंस पानी पीकर नदी में दूध छोड़ देती थीं!) अब क्या प्रॉब्लम है! आज भी देखिए - कलियुग जा रहा है , सतयुग आ रहा है! चारों ओर धर्मयुद्ध की गर्जना ! मंदिर मस्जिद, शादी ब्याह, फिल्म, विज्ञापन  पटाखे  सब का  "डी एन ए" टटोला जा रहा है ! इसके बावजूद अगर किसी को हँसी नहीं आती तो वो अपराधी है या विद्रोही ! मुझे अपना ही एक शेर राहत देता है ,-
हर एक ज़ख़्म पर हंसने का हुनर पैदा कर !
वगरना   रोने  के  दुनियां  में  सौ  बहाने हैं !!
          तो,,, ताज़ा नवैयत ये है कि अब मुझे बिलकुल हँसी नहीं आ रही ! कोई  "हकीम लुकमान" या "वैद्य धन्वंतरि" का नुस्खा काम नहीं आया तो मैंने चौधरी को अपनी दिक्कत बताई, - मुझे हँसी नहीं आ रही ?"
     " पर माेय रोना आ रहो ! कूण सा बुरा बखत था जिब मैं थारे धौरे आकर बसा । कती हंसने कू तरस गयो "!
    " मुझे तो छे महीने से हँसी नहीं आ रही ! क्या करूं, कहां जाऊं"? 
       " मेरे बकाया पैसे लौटा दे, उधारी का बोझ हटते ही दोनो हंसने के लायक हो ज्यां गे "!
       
        दो दिन से लगातार छींक आ रही है ! कल से खांसी, जुकाम और बुख़ार भी है ! ये सारे लक्षण "आत्मनिर्भरता" वाले हैं! दिल को समझा रहा हूं, -' ट्रंप की हार को दिल पर मत ले ! वो हार कर भी मुस्करा रहे हैं और तेरी तो अठन्नी भी  नहीं  गिरि, फिर भी शक्ल से ऐसा लग रहा है जैसे तुम्हारा ही बैंक बैलेंस लेकर विजय माल्या भागा हो।"  दिल बेवजह मायूस है और हँसी जैसे कुएं में गिर गई है ! अतीत कितना सुंदर था जब बात बात पर हंस लेते थे ! अब तो शायर कहते हैं -,

या  तो  दीवाना  हंसे  या  तू जिसे  तौफीक़ दे!
वरना इस दुनिया में आकर मुस्कराता कौन है !!

Tuesday, 3 November 2020

" नेता और प्याज़" !

         मैने जब सुना कि नीतीश कुमार जी पर प्याज़ फेंकी गयी तो मुझे अपनी किस्मत पर रोना आया। दुख की जगह मुझे नीतीश जी के भाग्य से ईर्ष्या हुई, - काश ये प्याज़ मेरे ऊपर फेंकी होती तो कम से कम घर के किचन को गुड फील होता। आज कल सब्जी की दुकान पर खड़े होकर प्याज़ का दाम पूछो तो सुनकर कलेजा बैठ जाता है! किस्मत की कलाबाजी देखिए कि उनके ऊपर प्याज फेंकी जा रही है जिसे प्याज़ की कोई चाहत नहीं है !इस वक्त उनकी चिंता वोट को लेकर है, और उन्हें प्याज़ मिल रही है। इसी को कहते हैं,। - बिन मांगे  ' प्याज़ ' मिले,  मांगे मिले ना 'वोट '!
                                नीतीश जी सियासत के घाघ खिलाड़ी हैं, अरसे से विपक्ष के छिलके उतारते आए हैं! इस बार हालात ने समीकरण बिगाड़ रखा है! महंगाई, रोज़गार और भ्रष्टाचार पर विजय पाने से पहले प्याज़ टपक पड़ी ! प्याज़ बड़ी अचूक मिज़ाइल है, जब जब वार करती है - खाली नहीं जाता ! बीजेपी के लिए प्याज़ अशुभ रही है! सुषमा स्वराज ( स्वर्गीय) जब दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं तो दिल्ली में कांग्रेस ने उस वक्त नारा दिया था, - प्याज़ टमाटर तेल खतम !
       बीजेपी का  खेल  खतम !!
          मज़े की बात ये है कि इस चुनाव में कोरोना किसी का मुद्दा नहीं है! ( दैवीय आपदा पर नेताओं का क्या ज़ोर !) देश में कोरोना को इतना अंडर स्टीमेट कर दिया है कि वो ठीक ठीक पैसला नहीं कर पा रहा कि रुके या जाये ! जनता डरने की जगह बगैर फेस मास्क के भीड़ में घूम रही है और कोरोना भीड़ देख कर सदमे में हैं! लोग कोरोना से ज़्यादा प्याज़ से डर रहे हैं ! प्याज़ का इंडेक्स ऊपर जा रहा है, कोरोना का नीचे ! प्याज़ बाउंड्री रेखा के बाहर जा रही है और कोरोना गरीबी रेखा से नीचे ! 
               प्याज़ फेंकने के मामले पर नीतीश का कहना था,- ' फेंकने से कुछ नहीं होगा '! वो ठीक कह रहे हैं कि फेंकने से कुछ नहीं होगा ! देश में पहले से ही एक से एक  " फेंकने" वाले मौजूद हैं ! ऐसे ऐसे फेंकने वाले मौजूद हैं कि एक बार फेंक कर भूल जाते हैं और जनता उसे सच समझ कलियुग के पतझड़ में सतयुग का बसन्त ढूढने लगती है ! नीतीश जी तजुर्बेकार नेता हैं ! तभी वो कह रहे हैं कि फैंकने से कुछ नहीं होगा ! जाने उनका इशारा किस तरफ़ है, पर जानते वो भी हैं कि "फेंकने" से कुछ नहीं होता ! फिर भी लोग फैंकने से बाज नहीं आते , मौका मिलते ही " फेंकने" लगते हैं!
             कल बेगम एक किलो प्याज़ खरीद कर लाई और सीधा मुझ पर हमला कर दिया, " आगे से बाज़ार तुम्हीं जाना, पता तो चलें कि प्याज़ को ढूढने में कितना खतरा है !"
      " प्याज़ खरीदने में कैसा खतरा?"
                  " प्याज़ खरीदने में नहीं, ढूढने में खतरा है! मण्डी में प्याज़ कम है और भीड़ ज़्यादा  ! सस्ती प्याज़ ढूढने पर भी नहीं मिलती, कोरोना भीड़ में कहीं भी मिल  सकता है ! आज लगे इस चाइनीज़ कीड़े में "!

  बेगम आग उगल कर चली गईं, और मै कल्पना करने लगा, - काश - "लक्ष्मी मैया"  लिफ्ट करा दे! 
                     प्याज़ टमाटर गिफ्ट करा दे !!


        

Monday, 2 November 2020

" निंदा" में रस बहुत है,,,,,,!

            अगर कोई मुझसे पूछे कि - रस कितने प्रकार के होते हैं , तो मेरा जवाब होगा, ' चाहे जितने तरह का हो पर निंदा रस के सामने सारे भिन्डी हैं ! मीडिल क्लॉस में दाखिले से पहले ही मैं इस रस की महानता से परिचित हो गया था। जब हम लंच में क्लॉस से बाहर जाते तो गणित और विज्ञान के अध्यापकों की निन्दा करते  और फीस टाइम पर ना देने के लिए अध्यापक के सामने अपने मां बाप की निन्दा करते, - मेरी कोई गलती नहीं, फीस मांगने पर अब्बा ने कान ऐंठ दिया था -!  ( ये सरासर झूठ था!) निंदा रस की लज्जत का क्या कहना! अनार और आम के जूस को मूर्छा आए जाए, गन्ना बगैर काटे गिर जाए और संतरा सदमे से गश खा जाए !
        साहित्यिक रस ( वीर रस, श्रृंगार रस, वीभत्स रस, सौन्दर्य रस , करुण रस आदि) मिल कर भी निन्दा रस का मुकाबला नहीं कर सकते! निंदा रस ने सदियों से सबका टीआरपी गिरा रखा है ! सारे रसों के लिए महाबली निंदा रस कोरोंना साबित हुआ है !ये एक ऐसा रस है जिसका ज्ञान जेनेटिक होता है! किसी से पूछने की ज़रूरत नहीं पड़ती ! हमारे वर्मा जी कद में छोटे हैं, पर - घाव करें  गंभीर - की खासियत रखते हैं ! उनके पास निंदा रस का पूरा गोदाम रहता है! पहले आओ - पहले पाओ की सहूलियत भी है ! वो बगैर दोस्ती दुश्मनी के भी बिलकुल निर्विकार भाव से निंदा करते हैं !
            पिछले हफ्ते की बात है, मोहल्ले के कवि  बुद्धि लाल " पतंग" के लिए चंदा लेने वर्मा जी मेरे घर आए! मैंने पूछा, ' उनके कविता की  "पतंग" मोहल्ले से बाहर भी उड़ती है या नहीं "?
                बस निंदारस का क्रेटर खुल गया। वर्मा जी बगैर नफा नुक़सान के "अमृत" उगलने लगे, " सारे मंचो से धक्का देकर खदेड़ा हुआ कवि है। पूरे शहर से इसकी पतंग कट गई है, वो तो  मैंने हाथ पकड़ लिया। तुम्हें तो पता है कि मैं कितना दयालु और कृपालु हूं। कोई कुछ भी मांग ले, मैं मना नहीं कर पाता"!
        " मुझे अर्जेंट पांच हज़ार रुपए की जरूरत है"! 
   वर्मा जी के निंदा रस की पाइप लाइन मेरी तरफ घूम गई, '  बाज़ार लगी नहीं कि गिरहकट हाज़िर "! इतना कहकर वो बगैर चन्दा लिए झपाक से निकल लिए!
       कुछ लोगों ने तो अपनी जीभ को निंदा रस का गोदाम बना लिया है ! दिन भर बगैर ऑर्डर के सप्लाई चलती रहती है ! उनके रूटीन में निंदा ही नाश्ता है और निंदा ही उपासना ! उपासना पर हैरत में मत पड़िए, वो गाना सुना होगा, कैसे कैसों को दिया है - ऐसे वैसों को दिया है '! यहां  बन्दा ईश्वर की निन्दा कर रहा है कि " तूने अपने बंदों को छप्पर फाड़कर देने में बड़ी जल्दबाजी की है, पात्र कुपात्र भी नहीं देखा ! मेरे जैसे होनहार और सुयोग्य  के होते हुए भी सारी पंजीरी  " ऐसे वैसों" को बांट दी !" ( कम से कम पूछ तो लेते !)
         कुछ लोग निंदा रस को अपनी लाइफ का आइना बनाकर जीते हैं ! वो अपनी निंदा में अपने चरित्र की परछाईं देखते हैं, ' निंदक नियरे राखिए - आंगन कुटी छवाय "! जब निंदा रस का जिक्र होता है तो महिलाओं को कैसे इग्नोर कर दें ! इस विधा में भी महिलाओं ने बाजी मार रखी है। अपनी आदत से मजबूर कुछ महिलाओं ने इस कला में डिप्लोमा और डिग्री दोनो ले रखी है ! ख़ास कर गांवों में कुछ महिलाओं के योगदान स्वरूप अक्सर दो परिवारों में लाठियां चल जाती हैं! गांव हो या शहर निंदा रस लबालब है। लगभग हर आदमी भुक्तभोगी है। अपने फ्रैंड सर्कल में कंघी मार कर देखिए, कोई ना कोई बरामद हो जायेगा, जिसने आपको कभी ना कभी ज़रूर ये कहा होगा, ' फलां आदमी से आपके रिश्ते ख़राब चल रहे हैं क्या ? परसो ऐसे ही मुलाकात हो गई तो कह रहा था, - किसी से बात ही नहीं करते, बड़े सड़े दिमाग़ के आदमी हैं "!

   आप कई दिन बेचैन रहते हैं! बार बार खुद को सूंघते हैं, क्या पता , कहीं सचमुच तो नहीं सड़  गया !!