Tuesday, 1 April 2025

वक्फ बोर्ड "हंगामा सै नू बरपा"

 (व्यंग्य चिंतन)

 हंगामा सै नू बरपा
 बेक द

Saturday, 29 March 2025

(व्यंग्य 'चिंतन') - 'तोहफ़ा ए ईद '

 व्यंग्य 'चिंतन'
 'तोहफ़ा - ए - 'ईद '

      अब का बताई हो , ईद सर पर है और अभी तक कही से भी कोई  तोहफा नहीं आया ! वैसे पहले भी  कभी ईद पर कोई  तोहफा नही  आता था !  पर तब यह सोचकर सब्र कर लेते थे,  कि सरकार का काम मंहगाई और चुनाव देना है, तोहफ़ा  देना नहीं !  [ वैसे हमारी मंहगाई  भी किसी तोहफे से कम है क्या ! ] दरअसल बचपन के अलावा लाइफ मेें कभी ईद पर तोहफ़ा  मिला ही नही ! जब कुछ हासिल करने की उम्र थी तो नौकरी की जगह बीवी मिल गई, फिर उसके बाद चिरागों मेें रोशनी न रही ! बङे दिन बाद  ये पहली ईद है जब तोहफे का नाम सुना है !
      मिडिल स्कूल में जब पढृता था तो गणित के एक बङे 'मरकहा' मास्टर हुआ करते थे, गौरीशंकर 'पांङे' ! छात्रों पर बङा आतंक था उनका ! बांस की छङी से पीटते थे और दंड की इस प्रकृया को 'परसाद ' का नाम दे रखा था ! जब 'सुटकुनी' नाम की छङी हमारे हाथों पर पङती तो दो दिन तक बायें हाथ से पिछवाडा भी धोने में  दिक्कत आती थी ! वो प्रसाद पाने के लिए ईद की अनिवार्यता भी नही थी ! हमारे हर गणित के घंटे पर 'मास्साब' के 'परसाद' का आतंक होता था ! जिस दिन वो न आते वो हमारे लिए ईद का दिन लगता था ! हम अपने पिटने की शिकायत घर में  भी नही कर सकते थे ! उस दौर में गल्ती होने पर छात्रों को पीटना 'मास्साब' का जन्मसिद्ध अधिकार हुआ करता था ! एकाध बार मैने घर में शिकायत किया तो उलटे अब्बा ने मुझे ही पीटते हुए कहा था,- 'अच्छा ! उस्ताद की शिकायत करता है ! वहां भी बदमाशी किया होगा' -! आज तोहफा ए ईद सुनते ही 'परसाद' की याद ताजा हो गयी, [ कही  ये वो तो नहीं ? ]   का करें,  दूध का जला छाछ को भी फूंक मार कर पीता है ! बचपन के ईद जैसी लज्जत फिर कभी नही मिली ! जब पहली बार रोजा रखता तो भी तोहफा मिलता था ! दो पैसे से लेकर दो आने,,चार आने पाकर हम निहाल हो जाते ! अम्मा हमे एक रूपए देते हुए नसीहत भी करतीं, -' ईद में  सब मत खरचा करना'!  'कारून' के इस खजाने को ईद तक बचा के रखना कौन सा आसान काम था ! मै और मेरा छोटा भाई एक दूसरे की ईदी रखने के गुप्त ठिकाने की तलाश में बङी मेहनत करते थे ! बचपन  दरअसल  बसंत की तरह होता है ! उसके जाते ही खुशियों  पर पतझड छा जाता है, जो जवानी की दहलीज से गुजर कर बुढापे तक ख्वाब और खुशियों के सब्ज पत्तों को पीलापन देता रहता है ! फिर कोई तोहफ़ा  इस स्थायी मुहर्रम  को ईद का एहसास   नहीं दे पाता !
         कल ईद है, मेरे कई मित्र तोहफा ए ईद को लेकर मुझसे ज्यादा चिंतित हैं! वर्मा जी की चिन्ता इस बात को लेकर नहीे है कि ' तोहफे में क्या क्या है',- बल्कि वो इसलिए ज़्यादा चिंतित हैं कि तोहफ़ा ए ईद  किट कही मुझे न मिल जाए ! इस फिक्र में वह ठीक से सो भी नही रहे ! आज अलस्सुबह छै बजे उन्होंन मुझे फोन कर के जगा दिया, -'  किट मिल गयी तो सर के नीचे रखकर कैसे सुकन से सो रहे हो !आंखों का सारा पानी सूख गया क्या '? 
     किट के लिए उन्हे दांत किटकिटाते महसूस कर मुझे सचमुच बङी खुशी हुई ! मैने बङी गंभीरता पूर्वक कहा,-' मै तो सोच भी नही रहा था कि इतने सामान के साथ इतना बढ़िया तोहफ़ा मिलेगा ! पता नही किसने मेरा नाम सुझाया -'?
    बस वर्मा जी को क्रेडिट लेते देर न लगी,- ' इस पूरे शहर मेें  मेरे अलावा कोई  तुझे  पसंद  नही करता ! मैने ही भाजपा मंडल कार्यालय में तेरा नाम भेजा था ! वरना तुझे जानता कौन है -'!
    ' ओह ,,,मैं तो समझ रहा था कि सांसद जी ने भेजा है , फोन करके कन्फर्म कर लेता हूं !'
       वर्मा जी ने पल्टी मारी , ' अगर उनकी तरफ से ये किट आई है तो मेरी शिफारिस से आने वाली किट कभी भी आ सकती है ! उसे तुम  रख लेना !मै तेरे दरवाजे से बस दस मिनट दूर हूं ! ये किट मुझे दे दे भारती, तुझको रक्खे राम तुझको अल्ला रक्खे ! लेन-देन से सौहार्द हरा भरा रहता है-'!
     उनकी आतुरता देख मै चिल्लया, -'  मै तो मजाक कर रहा था, किट आयेगी तो पूरी ईमानदारी से आधी आपको सौंप दूंगा ! आखिर सौहार्द को हरा भरा रखने का सवाल है ! और वैसे भी इस मोहल्ल का सौहार्द तुम्हारे बगैर कभी भी मुर्झा सकता है' !
         उधर से वर्मा जी ने गम्भीर चेतावनी दी, - मुझे फौरन विडियोकॉल करो और सर के नीचे वाली तकिया को दिखाओ -!'
      इस कठिन अग्नि परीक्षण के बाद भी सुकून के लिए अभी एक और बाधा दौड़ की आशंका थी ! और वो आशंका शाम होते होते सच साबित हुई, जब चौधरी ने घर आकर मुझे घूरते हुए सवाल दागा,- ' उरे कू सुण भारती ! तमै उधार दूध दे दे कर मेरी दो भैंसन कू सदमा लग गयो, अर तू म्हारी पार्टी कौ तोहफा केले ही केले हजम कर रहो -! इब लिकाङ दे बोरी नै -'!
        ' कैसी बोरी -?'
   " ईदी वाङी बोरी आई है थारे धौरे , म्हारे जासूस काङोनी के कोने कोने मेें  मुसीबत  की  तरह  मौजूद सूं ! ये बोरी मन्ने दे दे भारती !'
    'नहीं'!
' के मतलब ?'
' तुम मेरे घर की तलाशी ले सकते हो, तोहफे वाली बोरी मिले तो तुम्हारी,  और न मिले तो तीन किलो उधार दूध कल सुबह मुझे चाहिए-!'
   ' पर वर्मा जी नू बोल्या अक वाने तमै पीठ पर बोरी ले जाते  दूर ते देखा हा !' 
     ' आटे की बोरी थी, जाकर देख लो'!
अब हम दोनों सदमें मे थे ! बङी देर बाद चौधरी के मुंह से निकला, -' तमै भी न मिली  'तोहफे वाङी' बोरी ! ता फिर या पैंतीस लाख ईदी के बोरे कितै गये -?'
         हम तीनों  के धोरे इस सवाङ का जवाब कोन्या ! इब तमै  पतो है ता फिर चौधरी और वर्मा जी कू बता दो ! दोनों घणे चिंतातुर सूं  !
      बहरकैफ, बगैर बोरी के भी आप सब को ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद !

            [ सुलतान  'भारती' ]

Wednesday, 19 March 2025

व्यंग्य चिंतन " कृपया शान्ति बनाए रखें "

              [व्यंग्य चिंतन]

      "कृपया शांति बनाये रखें"

           अचानक शहर में दंगा हो गया ! रात भर दंगाई फूंक ताप करते रहे । बङी मेहनत का काम था, पब्लिक को अपने ही पडोसी का घर लूटने और फूंकने के लिए तैयार करना ! वो कठिन काम सफल रहा और शहर का 300 साल पुराना  दंगा न होने का रिकॉर्ड टूट गया ! शहर के  'फसादी लाल' को लक्ष्य और सुकून दोनों की प्राप्ति हुई ! अब दंगे के अगले चरण की बारी थी ! बगैर आराम किए 'फसादीलाल' जी प्रशासन की मदद करने के लिए अमन कमेटी के निर्माण में लग गगये ! अगले दिन  लाउडस्पीकर पर ऐलान होने लगा ,-' कृपया शान्ति बनाए रखें'- !  दंगे के बाद शांति बनाए रखने की कला में  फसादीलाल जी को महारत हासिल थी ! वो रुन्धे हुए गले से ऐलान कर रहे थे,- ' कृपया शांति बनाए रखे' ! हालांकि आध के लिए  ये आसान  काम नहीं है ! मुझे मालूम है कि आपका घर और दूकान यानि सुख और शान्ति र्दोनो लुट चुकी है, किन्तु  कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पङता है-'!
         प्रशासन भी शान्ति बहाल करने मे लगा था ! लेकिन शांति बहाल करने के लिए सबसे बङा प्रयास बङे चैनल शुरु कर चुके थे, - ' स्क्रीन पर  एक एंकर खुजली पीङित कुत्ते की तरह लगभग दौडते हुए बता रहा है, - ' दंगे के मास्टर माइंड की पहचान हो चुकी है, सबसे पहले उसकी तस्वीर आपको हमारे चैनल -'पीटता है भारत'- पर नजर आ रही है ! इसे गौर से देखिए, इसका पहनावा देख कर ही इसके गंभीर अपराध का पता चल जाता है ! खैर, अब प्रशासन से उम्मीद है कि इनका घर बुलडोज़ करने और परिवार को जेल भेजने में  विलंब नही किया जायेगा '-!
      'शान्ति' का विचित्र मानसून आया हुआ है ! पहले शांति को दौड़ाया जाता है'फिर उसको बहाल करने का समुद्र मंथन शुरू होता है ! इस तरह के अमृतकाल में बरामद  हलाहल को ही शांति का अमृत घोषित कर दिया जाता है, -अब,,, तुमको मिर्ची लगे तो मैं क्या करू ! पीडित लोगों के लिए शान्ति के महायज्ञ की व्यवस्था अमन कमेटी द्वारा की जायेगी ! तब तक रोना पीटना बंद कर शान्ति  बनाए रखे ! लुटा और जला हुआ घर देख कर यदि सांसारिक मोह माया के चलते रोने का मन करे तो पवित्र गीता का प्रवचन याद करे, - तेरा था क्या, जिसे खोने का शोक करता है- ! इसलिए,,,आंसू न बहा फरियाद न कर, दिल रोता है तो रोने दे-! शान्ति बनाए रखें- वही आप को मोक्ष दिलाएगी। 
     देर आयद लेकिन दुरस्त आयद, अब शान्ति स्थापित  करने वाले पाइथागोरस का प्रमेय मेरे भी समझ में आने लगा है ! मामले का छायावाद ये है कि - शांति 'स्थापित' करने के लिए  शांति का  'विस्थापित' होना जरूरी है ! अगर जहां  पहले से ही शांति पसरी पङी हो, तो क्या खाक शांति स्थापित होगी ! उल्टे इन्क्रोचमेंट का केस बन जायेगा ! इसलिए,  शांति को जनहित में, पहले उस जगह से खदेङा जाएगा- ! फिर  उसके  बाद वहां बुलडोज़र और पुलिस के सहयोग से शांति को स्थापित किया जाएगा ! शांति स्थापना के नये एपीसोड में कुमार कामरा ख़ामखा परेशान हैं! शांति बनाए रखने में कुर्सियां ही नहीँ  हड्डियाँ भी टूटती हैं ! [ पहले आओ पहले पाओ !] 
       विपक्ष चाहता ही नहीँ कि शान्ति बनी रहे, बल्कि बुलडोज़र तो जी जान से शांति बनाए रखने में लगा है ! इस उपक्रम में पुरानी, जईफ और जर्जर हो चुकी शांति को विस्थापित कर पुन: स्थापित किया जा रहा है ! नागपुर में शान्ति बनाए रखने के लिए बुलडोज़र काम पर लग गये हैं !  नागपुर की 300 साल की बुज़ुर्ग,  'वयोवृद्ध शांति' की प्राण प्रतिष्ठा इसलिए ज़रूरी थी ! अगर आपके आसपास भी कही ऐसी मरणासन्न शान्ति हो, तो आप फौरन संपर्क करें! इस मामले में विपक्ष रोडा जरूर अटकायेगा, मगर शान्ति बनाये रखने की राह में हम हर संकट से लडने को तैयार बैठे हैं! हम जनहित में शांति बनाए रखने के लिए कोई भी कुर्बानी दे सकते हैं! जब तक पूरे देश में शान्ति स्थापित नही  कर लेते, - हट जा ताऊ पाच्छे नै ! 
      हम इसी अभियान में लगे हैं! इसलिए ज्यादा चिल्ल पों मत करें , शान्ति बनाए रखे! ये जो शान्ति है न , बहुतै जरूरी है ! इसे लोग अलग-अलग तरीके से बनाए रखते हैं , हमारा अपना तरीका है ! मेरे वाले तरीके से कायम होने वाली शान्ति में विपक्ष को फाईबर नही नजर आता,हमारे भक्तो को तो सारा प्रोटीन  और  विकास इसी में नजर आता है ! मंहगाई ऐसी है कि कई सर्वसुलभ खाद्य पदार्थ थाली से उड गये, मगर बुलडोज़र वाले विकास को देख कर भक्त गा रहे हैं, - औरो का दुख देखा तो मैं अपना दुख भूल गया-! 
               तो,,,, शान्ति बनाए रखें ! कुछ भी हो जाए,  भूलकर भी कभी पत्थर न चलाएं ! इस जघन्य अपराध मे बगैर सबूत और गवाह के बुलडोज़र चलाने की परंपरा विकसित हो चुकी है ! अत: पहले घर तबाह होगा फिर आर्थिक तौर पर पूरा परिवार ! बेशक 10 साल बाद बाइज्जत बरी हो कर बाहर आ जाएं ! पर उस से मिलेगा क्या, जब चिङिया चुग गयी खेत -!

        इसलिए, हमको 'शान्ति' बनाने दें !वर्ना सद्भाव बनाने के जुर्म मेें हम तुम्हरे पीछे बुलडोज़र लगा देंगे!
                     [ सुलतान 'भारती']

Friday, 7 February 2025

5 Great Hafiz e Quran in Islam

The 5 Great Hafiz e Quraan in Islam 

1- Muaaz bin Jabal
2- Ubada
3- Abu Darda
4- Abu ayub Ansari
5- Ubai bin kaab 

Saturday, 25 January 2025

[पुस्तक समीक्ष]      "शब्द हमारे घायल हैं'

    'यह किताब,आम आदमी के दर्द का आइना है'!
                                  ,,,, सुलतान 'भारती',,,,,,
 
       मेरा देश प्रतिभाओं का देश हैं ! इन प्रतिभाओ ने देश से लेकर विदेश तक अपनी अपनी विधा में 'सर्वोत्तम' का लोहा मनवाया है! हर क्षेत्र और हर विधा मे प्रतिभावान शख्सियत ने लगातार दबदबा बनाया हुआ है ! अगर साहित्य की बात करें तो आंकङे गर्वित करते हैं! विश्व की विशालतम आबादी के अनुसार इस देश में साहित्यकार भी बहुत हैँ! दुबई की जितनी आबादी होगी,  उससे ज़्यादा हमारे देश में साहित्यकार होंगे ! प्रतिस्पर्धा सदैव सर्वश्रेष्ठ को आगे लाती है ! इसलिये मेरे मुल्क में सर्वश्रेष्ठ होने के लिए कला को लगातार धार देना पड़ता है ! लेकिन भारत में कुछ भी असंभव नही, कभी-कभी किसी और फन में महारत हासिल कर चुके महारथी को स्वंय अनुभूति होती है कि उसके अंदर एक और विधा की ऊर्जा छुपी है, और वो उसे जन्म देने की तीव्र व्याकुलता महसूस करता है !
      मिर्जापुर [यूपी ] के प्रख्यात समाजसेवी और कॉंग्रेस विधायक (पूर्व), भगवती प्रसाद चौधरी के साथ हूबहू ऐसा हुआ। 
          युवावस्था से 6o साल की उम्र तक वो समाज सेवा और सियासत में डूबे रहे और फिर अचानक उनके अंदर कोई और अंकुर फुटा ! अचानक चौधरी साहब महसूस करने लगे कि, समाज की पीङा,व्यवस्था परिवर्तन से उपजा जन आक्रोश,सामूहिक बेचैनी, साम्प्रदायिकता का फैलता जहर, उनसे शब्द मांग रहे हैं ! उन्होंने अपने निकटतम मित्रों से अपनी अनुभूति साझा की, और लिखने लगे ! वर्ष 2024 में उनकी पहली पुस्तक,,,,,,,का मिर्जापुर में भव्य विमोचन हुआ ! समारोह में आये दर्ज़न भर विख्यात साहित्य सितारों ने किताब की जम कर प्रशंसा की !  भगवती जी को हिम्मत मिली तो यह नई रचना 'श्रद्धा सुमन'/'शब्द  हमारे घायल हैं'- का जन्म हुआ ! प्रकृति का नियम है कि बेटियों का अपने बाप की तरफ ज्यादा अनुराग होता है, और बेटों का अपनी मां की तरफ ! प्रस्तुत रचना ,,,,,,, एक ममतामयी मां की असीम कुर्बानियो के प्रति एक ज़िम्मेदार बेटे की 'खिराज ए अकीदत' है , भावुक, भावनात्मक और भावपूर्ण !,,,,,

पूरे परिवार की श्रद्धा है उस देवी के चित्र चरण मे।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,, कृपा है माता 'रम्पा' का।

      भगवती जी ऐसे साहित्यकार हैं,जो साहित्य सृजन मे विधा की लीक पर चलने की बजाय अपनी तराशी हुई साहित्यिक पगडंडी पर चल पङते हैं! अभिव्यक्त के इस नये प्रयोग ने उन्हे सबसे अलग पहचान दिलाई ! वो मंच और मुशायरे के व्यवसायिक चेहरे बेशक न बने,  पर अपनी रचनाओं में वो आम आदमी की पीडा और शोषण के अलमदार नज़र आते हैं ! अपनी इस सशक्त  नुमांइदगी से वह बेहद संतुष्ट हैं ! एक संघर्षशील परिवार में जन्म लेकर समाज और सियासत में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के बावजूद भगवती और उनकी रचनाएँ अपनी ज़मीन से ही जुड़ी रहीं ! इस नई पुस्तक,,,,,,,,,,"शब्द हमारे घायल हैं",,,,,की अधिकांश रचनाओ  में भी रचनाकार- आम आदमी के दर्द, शोषण, व्यव्स्था,भ्रष्टाचार, किसान,खेत आंदोलन, मंहगाई,बेरोजगार, मंदिर, मस्जिद आदि ज्वलंत मुद्दों के साथ खङा नज़र आता है ! वो जैसा सोचते और महसूस करते हैं, हूबहू काग़ज़ पर उतार देते हैँ !  पीङा को काट-छांट कर बेहतरीन शब्दो  में परोसना उन्हे नही आता ! बानगी देखिए,,,,,
देश को बर्बाद और मित्रों को आबाद किया !
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,,,अमीरो से संवाद किया !!34

        उनकी रचनाएँ सद्योजात बच्चे की तरह कोमल और प्राकृतिक सौंदर्य के एहसास से मुअत्तर होती हैं ! जैसे ताज़ा ताजा जमीन से बाहर आया कोई कोमल अंकुर,,,,,,,मिट्टी की गंध लिए ! जैसे ओस की बूंद में अलहाई गेंहू की बालियों से अभी अभी बाहर आया गेहूं का कोई दाना ! उनकी रचनाएँ किसी कवि या शायर की तर्वियत का परिणाम नही हैं! (वैसे उनके मित्र मंडल मेें साहित्यकारों की कमी  नहीं है !) वह बहुत आम शब्दो में बेहद खास संदेश दे जाते हैं! वो  आम लोगों के बेहद खास कवि हैं, उनकी कुछ रचनाएँ दिल पर ऐसा गहरा निशान डाल जाती हैं गोया  बांस की कांटेदार छङी नंगी पीठ पर पड़ी हो,- बानगी पेश है,,,,,,,

मजदूर हूं साहब सुबह को शाम करता हूँ, 
आपकी ज़िंदगी की मुश्किलें आसान करता हूं!
,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,, , (पेज 5 )

         भगवती प्रसाद शहर में रहकर विशालतम ग्रामीण भारत में अपनी रचना का खमीर तलाशते हैं!किसान आंदोलन होता है तो वो अपने शब्दो के साथ किसानों के शाना ब शाना खङे नज़र आते हैं!
उनकी कलाम में स्याही नहीं दिल  के कोमल एहसास होते हैँ - सीधा रूह में उतर जाने वाले,,,,  
अब तो सावन में भी न दिखता सावन,
कहां  खो  गए  अपने  वो रिश्ते पावन !
,,,,,,,,,, 
,,,,,,, ,,,,,,,,,,( पेज 14 )
   

         बेशक, वो अपने साहित्यक सफर के अभी शुरूआती दौर में हैं, और खामियों की इस पगडण्डी से हर कलमकार गुजर कर सुर्खरू होता है ! लेकिन चूंकि  उन्हें कई उच्च कोटि के साहित्यकारों का सान्निध्य प्राप्त है , इसलिए उन्हें अँगूठा लेने वाले किसी द्रोणाचार्य को नही ढूँढ़ना पड़गा ! बाकी,,,वक़्त,हालात और तजुर्बे खुद इन्सान को उस्ताद बना देते हैं! मैं उनकी कामयाबी के लिए मुसलसल दुआ गो  रहूगा !
     आखिर में,  इस किताब  की चार बेहतरीन पंक्तियाँ,,,,,चलते चलते-----

'धूप'   का   अपहरण  हो   गया ,
निष्क्रिय    उपकरण   हो   गया !
ख्वाब      सारे    धरे    रह  गए ,
विनाश ही जब  विकास हो गया !   [पेज 9 ]


              सुलतान 'भारती'  (पत्रकार)            ('मुंशी प्रेम चंद साहित्य सम्मान'-से सम्मानित लेखक)
                            

Thursday, 16 January 2025

व्यंग्य चिंतन. दिल्ली चुनाव: "गुरु'' 'घन्टाल' दोऊ खड़े

[व्यंग्य चिंतन]

दिल्ली चुनाव : 'गुरु'  'घंटाल' दोऊ खड़े 

        अब का बताएं झुरहू काका ! दिल्ली की हर गली और कूचा में,,,छाई बहार है, जिया बेकरार है!  दिसंबर वाले सारे सांता क्लॉज़ जनवरी में आकर जनता का दरवाज़ा पीट रहे हैँ- 'खोलो प्रियतम खोलो द्वार' ! अंदर लेटे प्रियतम के घर 5 किलो के हिसाब से 6 वोटरों का अनाज आ चुका है,  अब जीते जी इस से बड़ा विकास घर में रखने की न जगह है न दिल में चाहत ! विकास की पराली में सपनों की हरियाली झुलस गयी है ! विकास पुरूष जनता को सर्दी में वही विकास देते हैं, जो - देखन में 'पौवा' लगे- वार करे गंभीर -'! और उसके साथ मुर्गा का 5 टोकन मिल जाए तो सांसारिक विकास की मोह माया में कौन पड़े ! अंदर घर में लेटे हुए झुरहू चाचा जानते हैँ कि चुनाव के बाद ये सभी सारस 5 साल  के लिए कोमा में चले  जाएंगे !
        सभी सांता क्लॉज़ विकास का गोदाम जनवरी में ही खाली करने में उतारू हैँ ! विकास की ऐसी आतुरता 5 साल में एक ही बार आती है,-फिर उसके बाद चिरागो में रोशनी न रही-! विकास जनता को बांट कर निर्लोभी प्राणी तपस्या पर निकल जाते हैं-!  फ़िलहाल इस वक़्त तो दिल्ली में ज़बरदस्त मधूमास उतरा हुआ है! अगले महीने फरवरी में चुनाव है और फरवरी में ही वेलेन्टाइन 
 है! वेलेन्टाइन की महक मिलते ही  संस्कार को इस विदेशी फफून्द से बचाने के लिए हम गोलबंद हो जाते हैँ! खास इसी दिन (14 फरवरी) को संस्कार पर 'कोरोना' का खतरा होता है ! अगले दिन [15 फरवरी केदिन ] संस्कार को अपने आप 'जेड सुरक्षा' मिल जाती है! वेलेन्टाइन और धर्म योद्धा अपने अपने खेमे को लौट जाते हैं!
       दिल्ली में ग़ज़ब की ठंढ है,  जनता सोना चाहती है, नेता दरवाज़ा पीट रहे हैँ, - 'तेरे द्वार खड़े भगवान ! भगत भर ले रे झोली',,,! भगत पिछले शाम को ही 'विकास' की पूरी बोतल पीकर रात से ही खर्राटे मार रहे हैँ ! भगत ने तीन बोतल 'विकास' जमा कर लिया है, और अब माया मोह दोनों से उनका लगाव लगभग हाशिए पर है ! पड़ोस के बुद्धिलाल जी नें सर्दी को देखते हुए एक नए उम्मीदवार से बिलकुल नए किस्म का विकास मांग लिया था,- ' चौधरी साहब ! बहुतै ठंढ है ,अगर एक ट्राली सूखी लकड़ी और एक बोरी गंजी (शकरकंद) भेज  देते, तो  पूरे  मोहल्ले  का  वोट  आपको जाएगा-'!  अगले ही दिन सूखी लकड़ी के साथ एक 'कुंटल विकास' आ गया !
       दिल्ली की सड़कों का निर्माण नए तरीके से करने की घोषणा की गयी है! जब विकास देने वाले ज़्यादा हों और लेने वाले कन्फ्यूज, तो विकास लीक से हट कर होता है!  'हिंसा'- चुनाव की विशेषता है या आवश्यकता ,इस पर बहस हो सकती है पर इनकार नहीं ! लगभग हर चुनाव में इसका दर्शन होता है, पर पब्लिक को कभी नहीं पता चलता कि दोषी कौन था ! दरअसल दोषी कोई होता ही नहीं, और नेता के मामले में पुलिस ज्यादा सर नहीं खपाती ! ऐसे सियासी टकराव में पुलिस को 'पंचामृत' भी नहीँ प्राप्त होता ! दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की कार पर 'हमला' और केजरीवाल की  कार का 'दौड़ कर' भाजपा कार्यकर्ताओं के पैरो पर चढ़ने की खबर है! कार पर पत्थर मारा गया तो कार को गुस्सा आना स्वभाविक था !
         चुनाव के मौसम में हर पार्टी के तारणहार का प्रथम प्रयास 'कच्ची कालोनी में पहले विकास' बाँटने की होती है ! पक्की और पाश कालोनी के निवासी बग़ैर विकास के ही वोट देते रहते हैं! वो विदेशी दारू पीते हैं और शेयर बाजार में इनवेस्ट करने के लिए टायलेट मे अखबार को घंटे भर चाटते है और मतदान के रोज अक्सर वोट देने भी नहीँ जाते ! कई तो बड़े गर्व से कहते हैं, - western electoral system is more better than ours, you know?' लगता है इनके बाप दादा नें अपनी झुग्गी महारानी विक्टोरिया के घर के पिछवाङे ही डाल रखी थी !
        दिल्ली में चुनाव और सर्दी का सेंसेक्स ऊपर जा रहा है ! जनता टीवी और अलाव दोनों को  समय दे रही है! दिल्ली के किनारे आबाद गांवो में विकास बांटनें वाली गाड़ी रात में आती हैं ! आज कल मुहल्ले में अजीब अजीब आवाजें सुनाई पड़ती हैं,-" इस बार - ये  'हाथ' हमें दे दे ठाकुर-!" 
कोई ऑफर दे रहा है,- आजा मेरी  'हाथी' पे बैठ जा -! कोई बुजुर्ग महिला का पैर पकड़ कर  फरियाद कर रहा है- ' फूल' तुम्हें भेजा है माते , 'फूल' ब्रांड ही अपनाना ! राम विरोधी 'झाड़ू'  'पंजा', उनके धोरे मत जाना' -!! जो आजाद उम्मीदवार हैँ,  उनके पास बिलकुल लेटेस्ट ऑफर है, -'  इस विधानसभा में इंटर मीडिएट की शिक्षा देने वाला एक भी स्कूल नहीं है,  मैं जीता तो एक यूनिवर्सिटी बनवा दूँगा-'! सड़क, सुरक्षा, हॉस्पिटल और बैंक खोलने वाले तो कई हैँ !
      चौधरी इस बार कॉंग्रेस के 'गैल' है ! चौधरी अपनी पसंद और नापसंद कभी छुपाता नहीँ, आज उसने सुबह मुझे चेतावनी भी दे दी,- ' उरे कू सुण भारती , कॉंग्रेस के अलावा इब किसी के धोरे विकास बचा कोन्या ! इब के पंजा कू वोट गेरना -'!
        'पिछली बार तुमने "झाडू"  के बारे में भी यही कहा था-'!
    " पर पाछे पांच साड़ उन्ने विकास किया कोन्या ! उल्टे मेरी एक भैंस कू ऐसी नज़र लगी, अक् दूध देना बंद कर दई , धंधा कती मंदा हो गयो !"
    "जहाँ कहोगे वहीं वोट जाएगा, बस तुम भी मेरे 'विकास' का ख्याल रखना "!

        .चौधरी मुझे घूरता रहा,  क्योंकि विकास के मामले में उसे बंटवारा बिलकुल पसंद नहीं !

   .....     ...   [सुल्तान भारती] ------'