Saturday, 29 March 2025

(व्यंग्य 'चिंतन') - 'तोहफ़ा ए ईद '

 व्यंग्य 'चिंतन'
 'तोहफ़ा - ए - 'ईद '

      अब का बताई हो , ईद सर पर है और अभी तक कही से भी कोई  तोहफा नहीं आया ! वैसे पहले भी  कभी ईद पर कोई  तोहफा नही  आता था !  पर तब यह सोचकर सब्र कर लेते थे,  कि सरकार का काम मंहगाई और चुनाव देना है, तोहफ़ा  देना नहीं !  [ वैसे हमारी मंहगाई  भी किसी तोहफे से कम है क्या ! ] दरअसल बचपन के अलावा लाइफ मेें कभी ईद पर तोहफ़ा  मिला ही नही ! जब कुछ हासिल करने की उम्र थी तो नौकरी की जगह बीवी मिल गई, फिर उसके बाद चिरागों मेें रोशनी न रही ! बङे दिन बाद  ये पहली ईद है जब तोहफे का नाम सुना है !
      मिडिल स्कूल में जब पढृता था तो गणित के एक बङे 'मरकहा' मास्टर हुआ करते थे, गौरीशंकर 'पांङे' ! छात्रों पर बङा आतंक था उनका ! बांस की छङी से पीटते थे और दंड की इस प्रकृया को 'परसाद ' का नाम दे रखा था ! जब 'सुटकुनी' नाम की छङी हमारे हाथों पर पङती तो दो दिन तक बायें हाथ से पिछवाडा भी धोने में  दिक्कत आती थी ! वो प्रसाद पाने के लिए ईद की अनिवार्यता भी नही थी ! हमारे हर गणित के घंटे पर 'मास्साब' के 'परसाद' का आतंक होता था ! जिस दिन वो न आते वो हमारे लिए ईद का दिन लगता था ! हम अपने पिटने की शिकायत घर में  भी नही कर सकते थे ! उस दौर में गल्ती होने पर छात्रों को पीटना 'मास्साब' का जन्मसिद्ध अधिकार हुआ करता था ! एकाध बार मैने घर में शिकायत किया तो उलटे अब्बा ने मुझे ही पीटते हुए कहा था,- 'अच्छा ! उस्ताद की शिकायत करता है ! वहां भी बदमाशी किया होगा' -! आज तोहफा ए ईद सुनते ही 'परसाद' की याद ताजा हो गयी, [ कही  ये वो तो नहीं ? ]   का करें,  दूध का जला छाछ को भी फूंक मार कर पीता है ! बचपन के ईद जैसी लज्जत फिर कभी नही मिली ! जब पहली बार रोजा रखता तो भी तोहफा मिलता था ! दो पैसे से लेकर दो आने,,चार आने पाकर हम निहाल हो जाते ! अम्मा हमे एक रूपए देते हुए नसीहत भी करतीं, -' ईद में  सब मत खरचा करना'!  'कारून' के इस खजाने को ईद तक बचा के रखना कौन सा आसान काम था ! मै और मेरा छोटा भाई एक दूसरे की ईदी रखने के गुप्त ठिकाने की तलाश में बङी मेहनत करते थे ! बचपन  दरअसल  बसंत की तरह होता है ! उसके जाते ही खुशियों  पर पतझड छा जाता है, जो जवानी की दहलीज से गुजर कर बुढापे तक ख्वाब और खुशियों के सब्ज पत्तों को पीलापन देता रहता है ! फिर कोई तोहफ़ा  इस स्थायी मुहर्रम  को ईद का एहसास   नहीं दे पाता !
         कल ईद है, मेरे कई मित्र तोहफा ए ईद को लेकर मुझसे ज्यादा चिंतित हैं! वर्मा जी की चिन्ता इस बात को लेकर नहीे है कि ' तोहफे में क्या क्या है',- बल्कि वो इसलिए ज़्यादा चिंतित हैं कि तोहफ़ा ए ईद  किट कही मुझे न मिल जाए ! इस फिक्र में वह ठीक से सो भी नही रहे ! आज अलस्सुबह छै बजे उन्होंन मुझे फोन कर के जगा दिया, -'  किट मिल गयी तो सर के नीचे रखकर कैसे सुकन से सो रहे हो !आंखों का सारा पानी सूख गया क्या '? 
     किट के लिए उन्हे दांत किटकिटाते महसूस कर मुझे सचमुच बङी खुशी हुई ! मैने बङी गंभीरता पूर्वक कहा,-' मै तो सोच भी नही रहा था कि इतने सामान के साथ इतना बढ़िया तोहफ़ा मिलेगा ! पता नही किसने मेरा नाम सुझाया -'?
    बस वर्मा जी को क्रेडिट लेते देर न लगी,- ' इस पूरे शहर मेें  मेरे अलावा कोई  तुझे  पसंद  नही करता ! मैने ही भाजपा मंडल कार्यालय में तेरा नाम भेजा था ! वरना तुझे जानता कौन है -'!
    ' ओह ,,,मैं तो समझ रहा था कि सांसद जी ने भेजा है , फोन करके कन्फर्म कर लेता हूं !'
       वर्मा जी ने पल्टी मारी , ' अगर उनकी तरफ से ये किट आई है तो मेरी शिफारिस से आने वाली किट कभी भी आ सकती है ! उसे तुम  रख लेना !मै तेरे दरवाजे से बस दस मिनट दूर हूं ! ये किट मुझे दे दे भारती, तुझको रक्खे राम तुझको अल्ला रक्खे ! लेन-देन से सौहार्द हरा भरा रहता है-'!
     उनकी आतुरता देख मै चिल्लया, -'  मै तो मजाक कर रहा था, किट आयेगी तो पूरी ईमानदारी से आधी आपको सौंप दूंगा ! आखिर सौहार्द को हरा भरा रखने का सवाल है ! और वैसे भी इस मोहल्ल का सौहार्द तुम्हारे बगैर कभी भी मुर्झा सकता है' !
         उधर से वर्मा जी ने गम्भीर चेतावनी दी, - मुझे फौरन विडियोकॉल करो और सर के नीचे वाली तकिया को दिखाओ -!'
      इस कठिन अग्नि परीक्षण के बाद भी सुकून के लिए अभी एक और बाधा दौड़ की आशंका थी ! और वो आशंका शाम होते होते सच साबित हुई, जब चौधरी ने घर आकर मुझे घूरते हुए सवाल दागा,- ' उरे कू सुण भारती ! तमै उधार दूध दे दे कर मेरी दो भैंसन कू सदमा लग गयो, अर तू म्हारी पार्टी कौ तोहफा केले ही केले हजम कर रहो -! इब लिकाङ दे बोरी नै -'!
        ' कैसी बोरी -?'
   " ईदी वाङी बोरी आई है थारे धौरे , म्हारे जासूस काङोनी के कोने कोने मेें  मुसीबत  की  तरह  मौजूद सूं ! ये बोरी मन्ने दे दे भारती !'
    'नहीं'!
' के मतलब ?'
' तुम मेरे घर की तलाशी ले सकते हो, तोहफे वाली बोरी मिले तो तुम्हारी,  और न मिले तो तीन किलो उधार दूध कल सुबह मुझे चाहिए-!'
   ' पर वर्मा जी नू बोल्या अक वाने तमै पीठ पर बोरी ले जाते  दूर ते देखा हा !' 
     ' आटे की बोरी थी, जाकर देख लो'!
अब हम दोनों सदमें मे थे ! बङी देर बाद चौधरी के मुंह से निकला, -' तमै भी न मिली  'तोहफे वाङी' बोरी ! ता फिर या पैंतीस लाख ईदी के बोरे कितै गये -?'
         हम तीनों  के धोरे इस सवाङ का जवाब कोन्या ! इब तमै  पतो है ता फिर चौधरी और वर्मा जी कू बता दो ! दोनों घणे चिंतातुर सूं  !
      बहरकैफ, बगैर बोरी के भी आप सब को ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद !

            [ सुलतान  'भारती' ]

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