Saturday, 25 January 2025

[पुस्तक समीक्ष]      "शब्द हमारे घायल हैं'

    'यह किताब,आम आदमी के दर्द का आइना है'!
                                  ,,,, सुलतान 'भारती',,,,,,
 
       मेरा देश प्रतिभाओं का देश हैं ! इन प्रतिभाओ ने देश से लेकर विदेश तक अपनी अपनी विधा में 'सर्वोत्तम' का लोहा मनवाया है! हर क्षेत्र और हर विधा मे प्रतिभावान शख्सियत ने लगातार दबदबा बनाया हुआ है ! अगर साहित्य की बात करें तो आंकङे गर्वित करते हैं! विश्व की विशालतम आबादी के अनुसार इस देश में साहित्यकार भी बहुत हैँ! दुबई की जितनी आबादी होगी,  उससे ज़्यादा हमारे देश में साहित्यकार होंगे ! प्रतिस्पर्धा सदैव सर्वश्रेष्ठ को आगे लाती है ! इसलिये मेरे मुल्क में सर्वश्रेष्ठ होने के लिए कला को लगातार धार देना पड़ता है ! लेकिन भारत में कुछ भी असंभव नही, कभी-कभी किसी और फन में महारत हासिल कर चुके महारथी को स्वंय अनुभूति होती है कि उसके अंदर एक और विधा की ऊर्जा छुपी है, और वो उसे जन्म देने की तीव्र व्याकुलता महसूस करता है !
      मिर्जापुर [यूपी ] के प्रख्यात समाजसेवी और कॉंग्रेस विधायक (पूर्व), भगवती प्रसाद चौधरी के साथ हूबहू ऐसा हुआ। 
          युवावस्था से 6o साल की उम्र तक वो समाज सेवा और सियासत में डूबे रहे और फिर अचानक उनके अंदर कोई और अंकुर फुटा ! अचानक चौधरी साहब महसूस करने लगे कि, समाज की पीङा,व्यवस्था परिवर्तन से उपजा जन आक्रोश,सामूहिक बेचैनी, साम्प्रदायिकता का फैलता जहर, उनसे शब्द मांग रहे हैं ! उन्होंने अपने निकटतम मित्रों से अपनी अनुभूति साझा की, और लिखने लगे ! वर्ष 2024 में उनकी पहली पुस्तक,,,,,,,का मिर्जापुर में भव्य विमोचन हुआ ! समारोह में आये दर्ज़न भर विख्यात साहित्य सितारों ने किताब की जम कर प्रशंसा की !  भगवती जी को हिम्मत मिली तो यह नई रचना 'श्रद्धा सुमन'/'शब्द  हमारे घायल हैं'- का जन्म हुआ ! प्रकृति का नियम है कि बेटियों का अपने बाप की तरफ ज्यादा अनुराग होता है, और बेटों का अपनी मां की तरफ ! प्रस्तुत रचना ,,,,,,, एक ममतामयी मां की असीम कुर्बानियो के प्रति एक ज़िम्मेदार बेटे की 'खिराज ए अकीदत' है , भावुक, भावनात्मक और भावपूर्ण !,,,,,

पूरे परिवार की श्रद्धा है उस देवी के चित्र चरण मे।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,, कृपा है माता 'रम्पा' का।

      भगवती जी ऐसे साहित्यकार हैं,जो साहित्य सृजन मे विधा की लीक पर चलने की बजाय अपनी तराशी हुई साहित्यिक पगडंडी पर चल पङते हैं! अभिव्यक्त के इस नये प्रयोग ने उन्हे सबसे अलग पहचान दिलाई ! वो मंच और मुशायरे के व्यवसायिक चेहरे बेशक न बने,  पर अपनी रचनाओं में वो आम आदमी की पीडा और शोषण के अलमदार नज़र आते हैं ! अपनी इस सशक्त  नुमांइदगी से वह बेहद संतुष्ट हैं ! एक संघर्षशील परिवार में जन्म लेकर समाज और सियासत में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के बावजूद भगवती और उनकी रचनाएँ अपनी ज़मीन से ही जुड़ी रहीं ! इस नई पुस्तक,,,,,,,,,,"शब्द हमारे घायल हैं",,,,,की अधिकांश रचनाओ  में भी रचनाकार- आम आदमी के दर्द, शोषण, व्यव्स्था,भ्रष्टाचार, किसान,खेत आंदोलन, मंहगाई,बेरोजगार, मंदिर, मस्जिद आदि ज्वलंत मुद्दों के साथ खङा नज़र आता है ! वो जैसा सोचते और महसूस करते हैं, हूबहू काग़ज़ पर उतार देते हैँ !  पीङा को काट-छांट कर बेहतरीन शब्दो  में परोसना उन्हे नही आता ! बानगी देखिए,,,,,
देश को बर्बाद और मित्रों को आबाद किया !
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,,,,,अमीरो से संवाद किया !!34

        उनकी रचनाएँ सद्योजात बच्चे की तरह कोमल और प्राकृतिक सौंदर्य के एहसास से मुअत्तर होती हैं ! जैसे ताज़ा ताजा जमीन से बाहर आया कोई कोमल अंकुर,,,,,,,मिट्टी की गंध लिए ! जैसे ओस की बूंद में अलहाई गेंहू की बालियों से अभी अभी बाहर आया गेहूं का कोई दाना ! उनकी रचनाएँ किसी कवि या शायर की तर्वियत का परिणाम नही हैं! (वैसे उनके मित्र मंडल मेें साहित्यकारों की कमी  नहीं है !) वह बहुत आम शब्दो में बेहद खास संदेश दे जाते हैं! वो  आम लोगों के बेहद खास कवि हैं, उनकी कुछ रचनाएँ दिल पर ऐसा गहरा निशान डाल जाती हैं गोया  बांस की कांटेदार छङी नंगी पीठ पर पड़ी हो,- बानगी पेश है,,,,,,,

मजदूर हूं साहब सुबह को शाम करता हूँ, 
आपकी ज़िंदगी की मुश्किलें आसान करता हूं!
,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,, , (पेज 5 )

         भगवती प्रसाद शहर में रहकर विशालतम ग्रामीण भारत में अपनी रचना का खमीर तलाशते हैं!किसान आंदोलन होता है तो वो अपने शब्दो के साथ किसानों के शाना ब शाना खङे नज़र आते हैं!
उनकी कलाम में स्याही नहीं दिल  के कोमल एहसास होते हैँ - सीधा रूह में उतर जाने वाले,,,,  
अब तो सावन में भी न दिखता सावन,
कहां  खो  गए  अपने  वो रिश्ते पावन !
,,,,,,,,,, 
,,,,,,, ,,,,,,,,,,( पेज 14 )
   

         बेशक, वो अपने साहित्यक सफर के अभी शुरूआती दौर में हैं, और खामियों की इस पगडण्डी से हर कलमकार गुजर कर सुर्खरू होता है ! लेकिन चूंकि  उन्हें कई उच्च कोटि के साहित्यकारों का सान्निध्य प्राप्त है , इसलिए उन्हें अँगूठा लेने वाले किसी द्रोणाचार्य को नही ढूँढ़ना पड़गा ! बाकी,,,वक़्त,हालात और तजुर्बे खुद इन्सान को उस्ताद बना देते हैं! मैं उनकी कामयाबी के लिए मुसलसल दुआ गो  रहूगा !
     आखिर में,  इस किताब  की चार बेहतरीन पंक्तियाँ,,,,,चलते चलते-----

'धूप'   का   अपहरण  हो   गया ,
निष्क्रिय    उपकरण   हो   गया !
ख्वाब      सारे    धरे    रह  गए ,
विनाश ही जब  विकास हो गया !   [पेज 9 ]


              सुलतान 'भारती'  (पत्रकार)            ('मुंशी प्रेम चंद साहित्य सम्मान'-से सम्मानित लेखक)
                            

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