Thursday, 25 January 2024

(व्यंग्य चिंतन) डॉक्टर यमराज दोऊ खड़े,,,!

('व्यंग्य चिंतन')

डॉक्टर- यमराज दोऊ खड़े,,,,!

       अब यही कन्फ्यूजन है दुरंत,- "काके लागू पायं"! यमराज और डॉक्टर मुझे सहोदर से दिखने लगे हैं ! ऐसा अमृत काल के चलते नहीं हुआ, बल्कि ये दिव्य अनुभव बहुत पुराना है! पहले डॉक्टर और यमराज को मैं दो अलग अलग जीव मानता था, सौभाग्य से अब ये भ्रम दूर हो चुका है! आज पता चला कि दिशा भ्रम था, दर-असल दोनों दो जिस्म एक जान हैं ! दोनों का मंत्रालय और मक़सद एक है,- आत्मा को परमात्मा तक पहुंचाना ! यमराज के इस दुरूह काम को  स्पीड पोस्ट की रफ़्तार देता है डॉक्टर ! कई बार तो ऐसा होता है कि प्राणी की एक्स्पायरी डेट दूर होती है किन्तु जीव- 'और लंबी उम्र' की कामना में- डॉक्टर के पास चला जाता है ! इस अक्षम्य भरोसे के चलते अंततः वो यमराज का अपॉइंटमेंट ले बैठता है !
        का  करें  ! अच्छी तरह कुंडली देखे बग़ैर हम किसी भी प्राणी को भगवान जो घोषित कर बैठते हैं ! इस परम्परा के चलते कई ऐसे प्राणी भगवान मान लिए  गए जो ठीक से इंसान भी नहीं हो पाए थे ! ( वैसे भी, आज के दौर में इंसान होने की अपेक्षा भगवान होना ज्यादा आसान है !) भगवान होते ही डॉक्टर अपने फॉर्म में आ गए ! 'जीवन' तो दे नहीं सकते थे, अलबत्ता उसे छोटा करने का तरीका वो जानते थे! ये वो नीम हकीम डॉक्टर हैं, वो  नर मरीज़ को नाशवान और (युवा) महिला मरीज़ को पकवान समझने लगे ! घुटना बदलने, वॉल्व लगाने और स्टंट लगाने के काम में जीते जी "मोक्ष" हासिल करने लगे ! मरीज़ इन्हें भगवान समझते और ये मरीज़ को नाशवान! कालांतर में  इन भगवानों से प्रेरणा लेकर छोटे मोटे हास्पीटल के जूनियर भगवानों ने मरीज़ों को मोक्ष देने की ठान ली, मैं शिकार होते होते बचा !
            तंबाकू,बीड़ी, पान, गुटखा,सिगरेट से मुक्त नीरस जीवन जीने का परिणाम यह हुआ कि मेरे दाँतों को पायरिया हो गया ! डॉक्टर टूथपेस्ट बदलते रहे और हमदर्द दोस्त सुझाव ! चौधरी का सुझाव था, - " तुझे अल्कोहल पीना चाहिए, पेट अर् दांत के सभी कीड़े मर ज्यां गे '!
वर्मा जी इस ख़बर से बेहद खुश दिखे,-' दाँतों का रोग आदमी के पाप की निशानी है! मेरे दांत में कोई रोग नहीं है ! ख़ैर,,,कहा सुना माफ़ करना भाई-"!
    क्या बताऊँ, मैंने भरसक कोशिश की कि दांत दर्द से मुक्ति मिल जाये ! मैं रूट कैनाल की मांग करता मगर डॉक्टर उखाड़ने पर अडिग होते! दांत उखाड़ कर ( शुगर में भी) आइसक्रीम खाने की सलाह देते रहे ! कुछ ही सालों में मेरे दोनों जबड़ों में पतझड़ नज़रे आने लगा! मगर ये तो बड़ी मुसीबत का छोटा ट्रेलर था !
          12 जनवरी 2024 की सुबह विगत 4 साल से हिल रहा बिल्कुल सामने का एक दांत जीडीपी की तरह गिर गया ! ये दांत सामने का था और इस उम्र में भी मुझ में जवान होने के भ्रम को बनाए हुए था ! इसे हर हाल में बरकरार रखना ज़रूरी था ! इस बार अपने  दोनों शुभचिंतकों से सलाह लिए बग़ैर मैं नई दिल्ली के एक अर्ध सरकारी अस्पताल चला गया ! यहां पर सब कुछ नजर आने के बाबजूद एक्सरे अनिवार्य सा है ! चालीस रुपये का पर्चा बनवाकर मैं अंदर गया! एक जूनियर डॉक्टर ने पूछा ,- ' क्या हुआ है?'
 " सामने का दांत टूट गया है, दांत लगवाना है "!
उसने सामने टूटे हुए दांत के दाएं बायें साबुत खड़े दाँतों को ठोकते हुए कहा,- ' इन्हें भी निकालना पड़ेगा-!'
    " क्यों?"
 " " यह भी हिल रहे हैं "!
  " बिल्कुल नहीं हिल रहे "!
मेरा कॉन्फिडेंस देख जूनियर डॉक्टर हिल गई! वहां दांत निकालने और लगाने पर दोहरी कमाई थी! डॉक्टर अब मुहं खुलवा कर अंदर झांकने लगी ! वो दांतों को औजार से बजाती और लिखती रही ! पूरे सात मिनट बाद उसने कहा, -' अंदर के पांच दांत ख़राब हैं !"
       " मुझे तो उन से कोई प्रॉब्लम नहीँ है-"!
   " उन्हीं से सारी प्रॉब्लम है "!
मुझे गुस्सा आ गया- ' मैडम! मेरी प्रॉब्लम ये सामने का टूटा हुआ दांत है-!'
वो अपने सीनियर डॉक्टर को बुला लाई ! डॉक्टर ने मुझसे पूछा,-" क्या प्रॉब्लम है-"?
   " इस टूटे हुए दांत की जगह मुझे नया दांत लगवाना है-"!
   "उसके लिए अंदर के पांच दांत निकालने पड़ेंगे "!
                 मैं जैसे आसमान से गिरा ! एक दांत लगवाने के बदले 5 दांत की शहादत !! डॉक्टर मुझे साक्षात यमराज नज़र आने लगा ! मगर मैं कहां आसानी से काबू आने वाला था! मैंने कहा,-" इस दांत के लगने 
में पीछे के दांत कैसे अड़चन डाल रहे हैं?"
      " जब तक पीछे के ये दांत निकाले नहीं जायेंगे, नया दांत मजबूती नहीं पकड़ेगा !"
    डॉक्टर मजबूती का एक ऐसा फॉर्मूला बता रहा था जिसने मुझे सकते में डाल दिया !! मैंने हैरत से 
   पूछा -" मगर क्यों?"
   " इसकी जड़ उन्हीं दांतों ने दबा रखी है! उन्हें निकालने के बाद नया दांत मजबूती पाएगा, -!"
मैं अड़ गया-' मुझे नहीं लगवाना नया दांत -"!

    मैं वापस आ गया ! टूटे हुए दांत को बार बार देख कर घनघोर चिंता में हूँ ! एक मित्र ने खबर दी है कि उनकी पत्नी ने संगम विहार के डॉक्टर से एक दांत लगवाया है ! दाम पूछा तो पता चला, सिर्फ 5000 रुपया ! सुनकर ऐसा लगा गोया छाती पर पहाड़ गिरा हो ! नौकरी विहीन प्राणी के लिए अमृत काल ठीक वैसे है जैसे मायावती के लिए 2024 का आम चुनाव ! न एनडीए और न इन्डिया ! न  खुदा ही मिला न विसाल ए सनम,,,!( ओ दूर जाने वाले! हमको भी साथ ले ले रे! हम हो गए अकेले !!)
तो,,,,मित्रों,,,,,
 दांत लगवाने,,, आखिर जाऊँ तो जाऊँ कहाँ !!


Sunday, 14 January 2024

('व्यंग्य' चिंतन) शर्म की भ्रूण मृत्यु

("व्यंग्य" चिंतन) 

'शर्मलेस,- हो जाने का सुख 

         अब इसमें मैं क्य़ा कर सकता हूं, मुझे आजकल शर्म नहीं आ रही है ! अच्छा भला अमृत काल इन्जॉय कर रहा था कि- अचानक  'शर्मप्रूफ' हो गया ! बस अचानक ऐसा लगा गोया कैरेक्टर का प्लग फ्यूज हो गया हो ! चरित्र से 'शर्म' नाम की फीलिंग डिलीट हो चुकी थी,  थोड़े दिन बड़ा अज़ीब सा लगा, फिर आनंद आने गया ! ( धीरे धीरे अमृत काल में एडजस्ट हो रहा था ! ) पहले तो इस तामसी परिवर्तन को लेकर खुद पर शक हुआ ,और खुद से सवाल भी,-'अबे, ये क्या किया ! बेहया होकर खुश नज़र आ  रहा है ! दिले नादां तुझे हुआ क्या है-?' अंदर से आवाज़ आई- 'मूर्ख ! अमृत काल में भी शर्म का बोझ उठाए घूम रहा है ! कितना पिछड़ा प्राणी है !! ज़माने के साथ चलना सीख, वर्ना इस दकियानूसी गुणों के कारण तुझे गुफ़ा युग में धकेल दिया जायेगा'-!
       ये क्या हुआ-जिसको समझा था खमीरा वो भकासू निकला ! पहले मैं शर्म आने को लेकर बड़ा गर्वित हुआ करता था ! ( ये तब की बात है जब शर्म जैसी बहुत सी 'रूढ़िवादी' संवेदनाओं पर लोग गर्व किया करते थे) आज  शर्मलेस  होकर शंकित हूँ ! पड़ोस के 'वर्मा जी'  लताड़ रहे हैं ,- ' शर्म अब  आउट ऑफ डेट हो चुकी है! शर्म और समाज में से किसी  एक  को चुन  ले ! समय रहते अपडेट  हो  जा ' -!  शर्मलेस  होने से पहले मैं पांचू लाला से मिला, जो खाने के मसालों में मिलावट के लिए जाने जाते थे! मुझे उम्मीद थी कि वो अपने कुकृत्य पर ज़रूर शर्मिन्दा होंगे ! मैने सीधे पूछ लिया,- ' लोगों का इल्ज़ाम है कि आप हल्दी और धनिया पाउडर में घोड़े की लीद मिलाते हैं? आपको शर्म आनी चाहिए _!"
         " अब तक तो आई नहीं , शर्म ही क्यों मुझे तो खाने के बाद डकार भी नहीं आती ! वैसे एक बात बताओ, मुझे धनिया की वज़ह से शर्म आनी चाहिए या लीद की वज़ह से?"
     " मिलावट की वजह से !"
     " वो घोड़े की गलती से हुआ है ! जहां मसाले तैयार होते हैं, वहीं मेरा घोड़ा बंधा था ! ये घोड़े के अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ा मामला है! लोग तो मिर्ची के पाउडर में ईंट पीस कर मिला देते हैं! और वैसे भी सच में झूंठ मिला कर बोलने में किसी को एतराज़ नहीं है! मेरा मासूम घोड़ा बेचारा,,,,वो तो हल्दी मिर्ची कुछ नहीं खाता ! घास खाता और लीद देता है-"!
       उपदेश लेकर मैं लौट आया। पांचू लाला काफ़ी पहले लोक लाज के बंधन से मुक्त हो चुके थे और अब मुझ से भी ज्यादा खुद को हल्का और पाप मुक्त महसूस कर रहे थे ! लोक लाज,पाप,दया,भय जैसी अपराध बोध कराने वाली मानवीय संवेदनाओं से परे होकर वो साक्षात देवदूत होने के निकट थे ! उनके परिवर्तन की मैथेमेटिक्स देख मैं हीन भावना से सिकुड़ा जा रहा था !
    उस दिन बड़ी मुश्किल से मैंने उन का मुरीद होने से खुद को रोका था !
        शर्माने से ज्यादा मुश्किल काम है शर्म से मुक्त हो पाना ! लोग बड़ी कठिन साधना के बाद इस अवस्था को प्राप्त होते हैं ! भिखारी होने के लिए शर्म से मुक्त होना प्रथम शर्त है, अभिनय दूसरी अनिवार्यता है।इस कला के माहिर कृत्रिम दर्द की ऐसी ऐसी आवाजें निकालते मैं कि प्राणी पत्नी की नज़र से छुपा कर रखा हुआ पचास का  आखिरी नोट भी पर्स से निकाल कर दे देता है ! उसे लगता है कि आज उसने माया को बहुत सही जगह इनवेस्ट किया है, जो उसके और मोक्ष के बीच में स्पीड ब्रेकर बनकर खड़ा था ! 
     कार रोक कर आदमी सड़क के किनारे बैठे तोते वाले ज्योतिषी को हाथ दिखाता है! ज्योतिषी हाथ देखते ही समझ जाता है कि बड़ा लम्पट आदमी है! घर में एक सुंदर और टिकाऊ बीबी होने के बावजूद फील्ड में 3-3 वैलेंटाइन  रखी हुई  है! उसने पिंजरा खोलते हुए तोते से कहा,- ' महाराज ! इस दिव्य पुरुष की कुंडली निकालिये-!'
     तोता चिल्लाया,- ' कुत्ता ! कमीना !! हरामी"!! 
              कार वाले ने घबराकर कर पूछा-' ये क्या कह रहे हैं महराज जी ?'
    "आशीर्वाद दे रहे हैं ! जितनी ज़्यादा गाली  उतना बड़ा आशीर्वाद ! तुमने ज़रूर कोई बड़ा पुण्य का कार्य किया हैं ! महाराज जी !अब इनका भाग्य कार्ड निकालिये !'
  " खुद निकाल ले, मैं चोंच गंदी नहीं करूंगा-!  तीन दिन से एक तोती इस पेड़ पर आकर बैठ रही है और तू दस मिनट के लिए भी मुझे पैरोल पर नहीँ छोड़ता !' तोता चिल्लाया !
    लगातार झूठ बोल बोल कर सालों पहले सच और शर्म से मुक्त हो चुका ज्योतिषी मुस्करा कर बोला,-'"महाराज कह रहे हैं कि वो तुम्हारी क्षति ग्रस्त कुंडली के लिए आज एक विशेष अनुष्ठान करेंगे , क्योंकि शनि की वक़्र दृष्टि से घबराकर मंगल निकल भागा है-!'
     " मुझे क्या करना होगा सर !"
 ज्योतिषी ने समझ लिया कि पिछले कई दिनों से चल रहा अकाल आज सुखद मानसून की शक़्ल में  वापस लौट आया है !
     सियासत औऱ शर्म में अक्सर विलोम संबंध पाया गया है ! इस पंक पयोधि में आने के बाद संत महात्मा भी संक्रमित पाए गए हैं ! प्राचीन काल में शर्म,दया और हया जैसे मानवीय गुणों वाले शख्स को संस्कारी माना जाता था, किन्तु अमृत काल में हुए  ताज़ा रिसर्च में बलात्कारी भी संस्कारी पाए गए हैं ! इस नई खोज के बाद जेलों में बंद कई विभूतियों की 'संस्कार' समेत बाहर आने की उम्मीदें बढ़ गई हैं ! बिलकीस बानो के केस में एक दो नहीं पूरे 11 बलात्कारी संस्कार से ओतप्रोत पाए गए !अब संविधान में भले हत्या और बलात्कार के लिए कठोर दंड हो पर अमृत काल में 'संस्कारी' को सजा देना तो कबूतर को कत्ल करने जैसा है ! लिहाज़ा सभी संस्कारी मुक्त कर दिए गए और लाठी की जगह समाज ने उन्हें लड्डू खिलाए ! 
         21 वर्षीया बिलकीस बानो के बयान से तब पता चला कि ज्यादातर 'संस्कारी' उसके पड़ोसी थे जिन्हें वो चाचा या अंकल कहती थी, लेकिन उसे क्या पता था कि वो सभी दया ,शर्म ,भय और भविष्य की सोच से मुक्त होकर अब 'संस्कारी' हो चुके हैं! जेल से बाहर आने पर उनके (कु) कर्म पर माला डाली गई, लड्डू खिलाए गए !  संस्कारी घरों की महिलाओं ने शायद गीत भी  गाये हों , -' मोरा पिया घर आया  हो राम जी'-! 
         ( मगर,,,, अचानक इस हरे भरे बसंत में पतझड़ टपक पड़ा ! सुप्रीम कोर्ट ने अपनी जांच में संस्कार के पीछे छुपा उनका जुर्म देख लिया और  उन की "घर वापसी" का आदेश दे दिया। )

      तब से, 'संस्कारी' से लगभग 'पूज्यनीय' हो रहे सभी बलात्कारी घरों से गायब हैं ! अतीक की लापता पत्नी की खोज में सर से पैर तक चिन्तातुर नज़र आने वाले मीडिया मुगल इस - "सामूहिक लापता कांड"- की जगह,-गाज़ा,हिज्बुल्लाह औऱ हूती पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं !

 ( तुमको रक्खे राम तुमको अल्लाह रखे!)

         

    

(शख्सियत) मुहम्मद यामीन खान

हिम्मत-ए-मर्दा मददे खुदा' इस मुहावरे से जिस शख्सियत की ज़िंदगी या कहें जीवन-संघर्ष को शब्दों में बाँधने की कोशिश कर रहा हूँ उसका नाम है यामीन खान। भावुकता, संघर्ष, सेवा और संकल्प ही है जिनकी पहचान। आजकल ये शिल्पकारों के शिल्पी माने जाते हैं, उनके बीच तो मसीहा ही समझे जाते हैं। यामीन के मुताबिक, उनकी ज़िंदगी की जंग जोश से भरे एक युवा होते 16 वर्षीय किशोर के रूप में देश की राजधानी दिल्ली से शुरू हुई। वह नवम्बर'84 की जलती हुई दिल्ली थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ यामीन की मानें तो खासकर सिखों के खिलाफ एक उन्माद दिल्ली की सड़कों पर सैलाब की तरह उमड़ रहा था। शायद एक खास कौम के बरख़िलाफ़ उठे सत्तादल के भटके युवाओं के उन्माद की वजह यह थी कि इंदिरा को उन्हीं के आवास के गेट पर गोलियों से भूनकर शहीद करने वाले उनके अपने ही अंगरक्षक सिख थे। फिर क्या था, कुछ ही घण्टों के बाद उस वक्त के अंध-जोशीले कांग्रेसी और इसीतरह के और नौजवान शिखों के घर जलाने, उन्हें मारने-काटने, घर जलाने में मुब्तिला हो गये, उस सनक में उन्हें बूढ़े, बच्चे, महिला, जवान में कोई फर्क नहीं दिख रहा था (भले ही बाद में पछतावा हुआ हो)। अपने दिल-दिमाग से ज्यादा जोश और दोस्त(जो उनके मुताबिक उस समय के आरएसएस के लोग थे) को सही समझने वाले आम  लड़कों की तरह जोश में होश खो देने वाली उस भीड़ में यामीन भी शामिल हो गये। लेकिन एक अनाथ सरदारनी जो उन (इंदिरा के) हत्यारों को बराबर गालियां और श्राप दे रही थी, उसकी बातें सुनकर यामीन की इन्सानियत जाग गई। अचानक उस सादा दिल जवान के ज़मीर को झटका लगा कि 'आखिर इन बेकसूर लोगों को किसी एक की गलती की सज़ा ये उन्मादी युवा क्यों दे रहे हैं, और बिना कान देखे कौए को खदेड़ने वालों की तरह हम भी इनमें जोश में शामिल हो गये हैं।' इन्सानियत जागते ही वहशीपन भागता नज़र आया। अब यामीन इन निर्दोष लोगों के साथ खड़े थे। –शायद उन्हें उस वक्त प्राइमरी की किताबों में पढ़ी सिद्धार्थ (गौतम) की कथा में कही  ' मारने वाले से बचाने वाला बड़ा (महान) होता है '–बात का मर्म समझ में आ गया। मानो हृदयपरिवर्तन हो गया हो। न केवल कई लोगों / परिवारों को बचाया, बल्कि हिम्मत-साहस, जज्बे के साथ युवा सिखों के जत्थे तलवारें लेकर निकले तो यह खुद उस हिंसक भीड़ का सामना करने के लिए सीना तानकर खड़े हो गए। पुलिस की मंशा के विपरीत सिखों के बचाव में भीड़ पर यथाशक्ति हमलावर होने की वजह से पुलिस के डंडे खाए, हवालात तक पहुंचे। उनके एक खास करीबी की मानें तो, 'हवालात का दरवाज़ा अन्य 'पुलिसिया आरोपों' की वजह से भी देखने का 'सु-अवसर' प्राप्त हुआ। हालांकि वे खुद इस सवाल को 'बचपना' कहकर टाल देते हैं, लेकिन समझने की कोशिश करें तो जवाब मिल ही जाता है। 
खैर, उनसे हुई बातचीत के मुताबिक, 84 के दंगे से उपजे जनसेवा के भाव ने उनकी जिंदगी बदल दी। उसे  इंसानियत की राह पर चलने का मुकद्दस मकसद दे दिया। कुदरती होनी में विश्वास करने वाले, खुर्जा (अलीगढ़) के  बरका गाँव में जन्मे, बचपन बिताए यामीन खान के समाजी जिंदगी की राह आसान की 1986 में उनकी शरीक-ए-हयात ने। बकौल खान, 'मैं इस बात के लिए उनका एहतराम करता हूँ कि वे बहुत डिमांडिंग लेडी नहीं रहीं, शुरुआती दौर में उनके त्याग, सन्तुलन और सन्तोष ने मुझे समाज सेवा के काम में आगे बढ़ने का हौसला दिया। जितना भी मिला उसी में घर और बच्चों की सलीके से परवरिश कर हमें उस तरफ़ से बे-फिक्र किया।'.. और वे चल पड़े ऐसे काम की तलाश में, जिसमें सेवा और दोनों हो...इस बीच करीब एक दशक तक उन्होने समाजसेवा के जुनून में लोगों, संस्थाओं से जुड़ते-टूटते रहे। कुछ गलत लोगों की संगत के बायस पुलिस के हत्थे चढ़े, तो अच्छे काम व बर्ताव के नाते अनेक सामाजिक और पत्रकार साथियों से मदद मिली। पत्रकारिता का क्रेज देखकर उधर हाथ भी आजमाया । एक वक्त आया, जब उन्हें लगा कि आजकल समाजसेवा की लम्बी पारी 'एकला चलो रे' की तर्ज़ पर खेलना 'बहुत कठिन है डगर पनघट की' जैसा है। बिना किसी संस्था के यह काम कर पाना आसान नहीं होता। 
     1998 में आते-आते वे 'समझदार' हो गये और 'अल फ़लाह' संस्था (NGO) बनाई। लेकिन कार्यप्रणाली और उससे सम्बन्धित दांव-पेच सीखने, जज़्बे को राह देने के लिए यामीन नगीना धामपुर संस्था से जुड़े। संस्था के साथ जुड़कर उन्होंने उस दौरान उड़ीसा व गुजरात में आये भीषण भूकम्प के हताहतों/पीड़ितों को राहत/सेवा प्रदान की। नगीना धामपुर, बिजनौर से जुड़कर उन्हें सेवा करने और काम जानने का मौका तो मिला ही, उनके प्रदर्शनी/ शिल्प बाजार में सहयोगी होने के नाते गरीब कल्याण और कारीगरी को प्रोत्साहित करने वाली सरकारी योजनाओं का भी ज्ञान हुआ। इसके लिए वे संस्था के साथ ही प्रेरणास्रोत और मददगार रहे महिला गरीब कल्याण योजना से जुड़े दिल्ली सरकार के तत्कालीन अधिकारी ए.के. हांडा का आभार जताते हैं ।फिर क्या था? फ़लाह हैंडीक्राफ्ट सोसायटी का बेड़ा चल पड़ा। कहते हैं किसी व्यक्ति के आगे बढ़ने और ऊचाईयां छूने के पीछे किसी औरत का हाथ होता है। यामीन इसे क़ुदरत खास करम मानते हैं कि खुदा ने उन्हें ऐसी दो औरतें बख्शी। दूसरी पत्नी उन्हें मीडिया से जुड़ाव के दौरान मिलीं। उन्हें भी पत्रकारिता का शौक था। शौक और साथ के नाते दोनों करीब आये और एक-दूजे के हो गये। अब वे समाजसेवा और व्यवसाय में खासा सहयोग करने लगीं। कारोबार परवान चढ़ने लगा।
इस सवाल पर कि समाजसेवा और कारोबार एक साथ कैसे साधते हैं?---यामीन खान इसे जेनुइन सवाल करार देते हुए बताते हैं कि जब वे सरकार की गरीब, दस्तकारी, महिला कल्याण से जुड़ी योजनाओं/कार्यों के बारे में गहराई से जान गये, तो दिल्ली और आसपास के गरीब रहवासियों, झुग्गी बस्तियों में जाकर ऎसे लोगों की तालाश की, जिनके पास हुनर तो है, लेकिन अपने उत्पादों को बढ़ाने के लिए पूंजी और बेचने के बाज़ार नहीं है। जब वे इस तरफ़ बढ़े तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। अबतक न केवल सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, ख़ासकर शिल्पकारी, हथकरघा, पॉटरी, कुम्हारी, सिलाई-कढ़ाई (इम्ब्रायडरी), खिलौने, अचार, पापड़, मुरब्बा, समान्य कपड़े बनाने वाले कामों से जुड़े विभाग व उपक्रमों से सहायता दिलाकर अपनी देखरेख और सम्बन्धित सरकारी के सक्षम/सक्रिय निर्देशन में पिछले एक-डेढ़ दशक में दिल्ली के संगम विहार, फरीदाबाद और आसपास के तीन हज़ार से अधिक परिवारों के रोजी-रोटी का जुगाड़ किया, बल्कि करीब दो दर्जन प्रदर्शनी/शिल्प बाजार लगवा कर उनके उत्पादों को बाजार दिया और घरेलू महिलाओं को बाहर निकलने का मौका और मंच दिया। जड़ी-बूटियों को जंगलों से खोजकर आम व खास का इलाज करने वाले पुश्तैनी वैद्यों को भी उन्होंने मदद, व्यापार और बाज़ार दिया। वे फ़लाह हैंडीक्राफ्ट सोसायटी, जिसके कि वे कोआर्डिनेटर हैं, के हस्तशिल्प के विकास सम्बन्धी कार्यों को आगे बढ़ाने में सबसे ज्यादा श्रेय 'सिडबी' को देते हैं। उनके मुताबिक, सुल्तान भारती (अध्यक्ष), पूनम शाक्य (जनरल सेक्रेटरी), सुनीता आदि मेम्बरान का सबसे बड़ा गाइडेंस और सहयोग मानते हैं। यामीन बताते हैं कि अब उन्होंने अपने बच्चों को भी स्वतंत्र होकर कार्य करने का मौका दे दिया है।
हाल ही में दिल्ली के द्वारका में आयोजित दस दिवसीय नेशनल गांधी शिल्प बाज़ार की सफलता और उत्पादों की रिकार्ड बिक्री से उत्साहित यामीन खान से जब पूछा कि एक तरफ़ देशी संस्कृति को बढ़ावा, दूसरी ओर फ़ैशन शो जैसे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की तरह फ़ैशन शो जैसे आइटम का इस्तेमाल करना, कितना उचित है? उन्होंने कहा, इसके पीछे भी घरेलू महिलाओं के भीतर की कला को उभारने के साथ ही अपने उत्पाद के प्रति आकर्षण बढ़ाना ही उद्देश्य है।
पूरे डेढ़ घंटे बाद जब मुहम्मद यामीन खान का साक्षात्कार ख़त्म हुआ तो अपनी मैग्ज़ीन ( उदय सर्वोदय) के ऑफिस की ओर लौटते हुए रह रह कर मेरे जेहन में अवध के शायर एम के "राही" का एक शे'र  गूंज रहा था-
कोई तन्हा मुसाफ़िर कारवाँ बन जाता है जिस दिन!
उसी  दिन  मुश्किलों  के  हौसले  भी  टूट  जाते हैं!!

                 (सत्य प्रकाश)


Friday, 5 January 2024

अफजल ka इंटरव्यू

शख्सियत 

" है राम के वज़ूद पर  हिन्दोस्तां को नाज़"
                                         अफजाल 
                 ( राष्ट्रीय संयोजक राष्ट्रीय मुस्लिम मंच)

         अगर आप भारतीय राजनीति से खुद को जरा भी अपडेट रखते हैं तो- मुस्लिम राष्ट्रीय मंच- से वाकिफ़ होंगे! 2006 में आरएसएस द्वारा गठित इस संघठन का मकसद था, देश के ज़्यादा से ज्यादा मुसलामानों को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ना ! इसके सूत्रधार हैं  इन्द्रेश कुमार जी और राष्ट्रीय संयोजक हैं अफजाल जी ! विनम्र और संघर्षशील अफजाल के सतत संघर्ष  का ही नतीज़ा है कि विपरीत विचारधारा और परिस्थितियों में भी उन्होंने संगठन को अंकुर से वृक्ष की शक़्ल में खड़ा कर दिया !
     ठीक 1 जनवरी 2024 की सुबह तयशुदा प्रोग्राम के तहत एक कार नोएडा की तरफ से कश्मीरी गेट ( पुरानी दिल्ली) की ओर बढ़ रही थी ! इस पर मेरे अलावा उदय सर्वोदय पत्रिका के चीफ़ एडीटर तबरेज खान और सह संपादक अजय चौहान बैठे हुए थे ! पत्रकार अजय सिंह- मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के सुप्रीमो इन्द्रेश और संयोजक अफ़जाल के काफी क़रीबी हैं ! आधे घंटे बाद हम लोग अफ़जाल भाई के घर में मौजूद थे! वहाँ पर अफजल के अलावा मंच के राजस्थान प्रमुख दादू खान और महबूब खान के अलावा संघ के वरिष्ठ प्रचारक महिरध्वजसिंह भी मौजूद थे ! उन सब को  किसी प्रोग्राम में जाना था, इसलिए बग़ैर किसी औपचारिकता के मैंने अफ़जाल  भाई से सवाल दाग दिया,-  " सारे ही चैनलों पर- राम मंदिर- की ही चर्चा है ! क्या लगता है, इसके आगे सारे मुद्दे गौण हो  गए हैं-?"

     " नहीं ऐसा नहीं है, विकास के सारे काम भी चल रहे हैं ! राम मंदिर का मुद्दा कोई आज का नहीं बहुत पुराना है ! महापुरुष किसी एक वर्ग या संप्रदाय के नहीं  होते ! मर्यादापुरुषोत्तम राम के बारे में किसी शायर ने कहा है-

है  राम  के  वज़ूद  पर  हिन्दोस्तां  को नाज़ !
अहले नज़र समझते हैं उनको इमाम ए हिंद !!

अगर निजाम ए मुस्तफा का ज़िक्र होता है तो हमें अच्छा लगता है, उसी तरह रामराज का भी स्वागत होना चाहिए।  रामराज यानि सब के लिए इन्साफ़, सबका विकास !"
,,,,,,,,( सवाल)- ' जिस लक्ष्य को लेकर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना की गई, क्य़ा वो लक्ष्य पूरा हो गया है-?'
   ( जवाब) - '  हमनें वो ज़माना देखा जब दूसरी सरकारें थीं और आए दिन देश में दंगा होता था, कर्फ्यू लगा होता था! महीनो लोगों की मुलाकात नहीं हो पाती थी ! आज देश में वैसा कुछ नहीं है! हमारी कोशिश है कि मुस्लिम नजदीक आयें, समझें और गलतफ़हमी से मुक्त हो कर प्रगति और निर्माण में भागीदारी निभाएं ! हमारे मंच को इस दिशा में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त हो रही है"!

,,,,,,,(सवाल)-" राम मंदिर के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सबको पता है, मैं उस पर नहीं जाऊँगा ! मेरा सवाल है कि काशी और मथुरा का मुद्दा भी उसी ढर्रे पर है, आपका क्य़ा कहना है-?"
(जवाब)----" इस विषय में जनमत और संप्रदायमत  अलग अलग हो सकते हैं, इसलिए निर्णायक फैसले के लिए कोर्ट होता है ! एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था में संविधान ही तय करता है कि फ़ैसला क्या हो ! तो,,,,,मैं यही कहूंगा कि कोर्ट का जो भी फ़ैसला हो, दोनों पक्षों को स्वीकार्य होना चाहिए- "!

(सवाल),,,,,,   " देश की जनता के नाम क्या संदेश देना चाहेंगे ?"
 (जवाब),,,,;" देश में रहने वाले सभी हिन्दू औऱ मुसलामान को संविधान का पालन करना चाहिए ! संविधान का जो भी फ़ैसला हो, सबको स्वीकार्य होना चाहिए! देश का मुसलमान कहीं बाहर से नहीं आया है! राम किसी के लिए पूज्य हैं तो  किसी के लिए श्रद्धेय ! पूज्य और श्रद्धेय में कोई ख़ास फर्क नहीं है!"

(सवाल),,,," पूज्य और श्रद्धेय में बड़ा बारीक फर्क है,- चलिए, यहां पर - मुस्लिम राष्ट्रीय मंच- के सह संयोजक हाजी दादू खान जोइया हैं जो राजस्थान हाई कोर्ट में एडवोकेट हैं- आपसे मेरा सवाल है कि राम मंदिर बनवाने में आपके संगठन का कितना योगदान है "?
(जवाब),,,,," हमारे संगठन ने माननीय राष्ट्रपति जी को पत्र लिखकर राममंदिर बनाने के लिये अनुरोध किया ! देश के हिन्दू मुसलामानों से सम्पर्क कर इस विषय में आम सहमति बनाने का सघन प्रयास किया! राम मंदिर निर्माण में सहमति बनाने के लिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने भी  बढ़ चढ़ कर प्रयास किए हैं ! मंच का प्रमुख उद्देश्य है कि विवाद न हो और भाई चारा बना रहे -"!

(आखिरी सवाल),,,,," मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के एक और पदाधिकारी महबूब खान यहां पर हैं, जो राजस्थान के गंगा नगर से ज़िला संयोजक हैं ! महबूब खान जी, राम मंदिर निर्माण में मुसलामानों की क्य़ा रुख होना  चाहिए -"?
( जवाब),,,,; " मैं तो चाहता हूँ कि आपस में भाई चारा होना चाहिए और सभी हिंदू मुस्लिम भाइयों को मिल जुल कर  रहना चाहिए-"! 

     ( समाप्त)