Monday, 28 November 2022

"व्यंग्य भारती" चंदन विष व्यापत नहीं,,,,,!

(व्यंग्य भारती)

" चंदन विष व्यापत नहीं,,,,"!

           अब हमका का पता, काहे ! कौन सवाल जवाब के कोल्हू में उंगली दे! स्कूल में पढ़ाते हुए 'पंडी' जी हों या  'माससाब' "क्यों" पूछने पर बांस की 'सुटकुनी' उठा लेते थे ! ये   सुटकुनी  ससुरी "छड़ी" से टोटल डिफरेंट थी ! हाथ के साथ पीठ पर भी विश्वत रेखा खींच देती थी। अभिव्यक्ति की आज़ादी मस्साब के पास हुआ करती थी , वही सवाल पूछते थे ! मुझे तभी से दोहे की ये लाइन खटकती थी ! काहे नाही विष व्यापत ! बचपन में "बीछी" (बिच्छू) का डंक खाकर मैं घर के साथ पूरा मुहल्ला सर पर उठा लेता था ! यहां तो बिच्छू की जगह भुजंग का मामला था। मुझे तो चंदन और मीडिया की सांठ गांठ मालूम होती है! मास्साब से शंका समाधान करता तो वो सुटकुनी से सर्जिकल स्ट्राइक कर देते ! का करें, 1970 में मरकहा गुरु भी  "गोबिंद" हुआ करता था, उस दौर में छात्र को पीटना गोविंद का सुटकुनी सिद्ध अधिकार हुआ करता था ! घर में मास्साब की शिकायत करने पर उल्टे अब्बा श्री से पिटाई की आशंका !
        सुनी सुनाई दंत कथा लिख कर लाल बुझक्कड को साहित्यकार हो जाने का अधिकार था ! बड़ा हो जाने पर पता चला कि चंदन ने खामखा भुजंग को बदनाम कर दिया है! वो बेचारा तो सपेरे से बचने के लिए सात दिन  से  भूमिगत था ! (जंगल में सपेरे आए थे । ) चंदन को खतरा वीरप्पन से था, और नाम भुजंग का बदनाम हो रहा था ! दरअसल सात दिन बाद अज्ञातवास से बाहर आकर बेचारा भुजंग  कौआ के अंडे खाने के लिए  एक पेड़ पर चढ़ गया ! उसे क्या पता कि पेड़ चंदन का है या धतूरे का !  उसके पहले वो कभी चन्दन पर चढ़ा भी नहीं था ! भुजंग को देखते ही कौआ उड़ गया और भूखा प्यासा भुजंग बिल में जाकर कोमा में चला गया। कौए ने भुजंग की इमेज खराब करने के लिए ये कहानी कवि को बता दी ।बस कवि ने चंदन को हीरो और भुजंग को अमरीश पुरी बना दिया ! उसके बाद आज तक कवियों ने वीरप्पन का कभी नाम नहीं लिया! इसे कहते हैं कि - जबरा मारे ( मगर) रोने न दे -!! साहित्यिक षडयंत्र कितना घातक होता है!
      नाग (भुजंग) बेचारा, भूख का मारा ! कौआ का अंडा खाने के लिए पहली बार चंदन पर चढ़ा था ! उसे क्या पता कि कौए ने अपना अंडा पहले ही कोयल के घोंसले में रख दिया है और फर्जी  घोंसला चंदन के पेड़ पर टांग दिया है ! कविता की तलाश में जंगल में घूम रहे कवि को कौआ मिल गया! कौए ने भुजंग को खलनायक और चंदन के पेड़ को नायक बना दिया ! कवि ने पहली बार चन्दन पर भुजंग देखा था, उसने कौए की कहानी पर भरोसा किया और बादशाह ने कवि की कविता पर !सत्यापन किसी ने नहीं किया, - महाजनों येन गता: स पंथ:- मान लिया गया ! कहावत बन गई तो चन्दन को "बेचारा" और भुजंग को राक्षस मान लिया गया ! वो तो भला हो वीरप्पन का, जिसने चंदन को गुमनामी से बाहर निकाला और  दुबारा लोकप्रियता दिलाईं ! जनता को यकीन दिलाया कि चंदन के पेड़ पर कोई भुजंग नहीं रहता ! तस्करी के लिए फॉरेस्ट और सियासत में बैठे दो  पैर वाले  भुजंगों  से साठ गांठ करनी पड़ती है । यही विधि का विधान है।
        प्रशासन ऐसे भुजंग से भरा हुआ है, जो जनहित में घातक हैं लेकिन उन्हे कोई कौआ किलहंटी या "तोता" चिन्हित नही करता ! बल्कि खुद मिडिया के कौए ही भुजंग की इमेज को चंदन से ओतप्रोत करते रहते हैं! कौए इनके प्रचार मंत्री हैं और तोता ताबेदार ! शत शत जोहार !! मिट्टी की जगह महल मे रहते और मलाई खाते इन भुजंगो पर किसी जहर का असर नहीं होता ! इन्हें चंदन से बड़ा लगाव होता है ! ये चंदन के पेड़ पर नहीं जाते, बल्कि चंदन खुद चलकर इनके पास आता है ! चंदन का वृक्षारोपण करते हुए फोटो खिंचवाना इन्हे अत्यंत प्रिय है । इनका जीवन चक्र चंदन के टीके से शुरू होकर चन्दन की चिता पर खत्म होता है!  
   वैसे,,,एक ठो "लघु" साइज वाली  "शंका"  है ! चंदन पर भुजंग के जहर का अगर असर नहीं होता तो क्या ये चंदन की विशेषता है या चंदन में कमी है ! इंसान ईश्वर की बनाई सर्वश्रेष्ठ रचना है, और उस पर तो भुजंग के विष का भरपूर असर होता है ! चंदन पर क्यों नहीं होता ! इसलिए नहीं होता, क्योंकि कहानी सच से कोसों दूर है! कौआ और वीरप्पन दोनों ने भुजंग के बहाने चंदन का शोषण किया ! कौआ ने चन्दन पर घोंसला बनाया, और वीरप्पन एक पेड़ छोड़ कर चंदन काटता रहा ! प्रशासन और वीरप्पन दोनों से प्रताड़ित भुजंग आखिरकार जंगल छोड़कर आबादी में चला गया ! लेकिन भुजंग के अज्ञातवास के बाद भी एनसीआरटी ने आजतक दोहे को पाठ्यक्रम से नहीं हटाया ।
     ये मुट्ठी भर वीरप्पन और कौए आज भी वैभव के चंदन से सर्वहारा वर्ग को दूर रखने के लिए "भुजंग" का खौफ़ खड़ा करते हैं, - "काम, क्रोध, मद और लोभ से दूर रहो ! पाप का चंदन मेरे जैसे निकृष्ट पापी के लिए छोड़ दो, और तुम कष्ट,अभाव और गुरबत की सलीब ढोते हुए स्वर्ग की बाधा दौड़ पूरी करो -"! बहुमत  जन्नत  के  लिए  खुद  को क्वालीफाई करने में लगा है !

 आज दोहा लिखने वाला बुनियादी कवि, वह कौआ और वीरप्पन में से कोई नहीं है, लेकिन चंदन के पीछे मुफ्त में बदनाम होने वाला बेचारा भुजंग आज भी अपने विष का दंश झेल रहा है !

  बुजुर्ग सही कहते हैं,- बद अच्छा, बदनाम बुरा -!

                              ( सुलतान भारती)

  

Sunday, 13 November 2022

किराए दार !

 किराए दार ध्यान दें!
  ( पूजा मिश्रा, रंजीत पंडित और हेरून मिश्रा जी)

श्रीमति/ माननीय, 
            मई 2022  के बाद इस मकान में नई नई समस्याओं का अंतहीन सिलसिला शुरू हो चुका है ! क्रैंपटन जैसी कंपनी के मोटर का बार बार खराब होना और  बंदरों के आतंक की जो कहानी मेरे छत पर पैदा होती है, वो अन्यत्र कहीं नहीं है! कोई भी मकान मालिक इतना नुकसान उठा कर नही चल सकता !  अत: अब मैने अंतिम फैसला किया है कि,,,,,
A,    आगे से बंदर सीढ़ी, पानी का पाइप या टंकी कुछ भी तोड़े, उसे किरायेदार ही लगवाएंगे, और वो पैसा किराए में एडजस्ट नहीं होगा !

B,,,,, अब अगर मोटर फूंकेगी तो आप जिम्मेदार हैं,    चाहे आपस में चंदा करके बनवाएं या अपनी मोटर ले आएं।

C,,,, मुझे रेंट एग्रीमेंट कराने हेतु आप तीनों फ्लेट के मुखिया का दो दो फोटो और आधार कार्ड की एक कॉपी चाहिए! मेरे व्हट्स ऐप पर भेज दें!
           ये जरूरी है, इसे अन्यथा न लें!

                      आपका
                    सुलतान भारती 
              9899962243 ,  9310608221
           

Friday, 11 November 2022

(कलाम विद लगाम) हृदय परिर्वतन का सीजन

(कलाम विद लगाम)           ( व्यंग्य)

            "हृदय परिर्वतन का सीजन"

      अल्लाह रहम करे, फिर एक चुनाव आ गया ! दिल्ली नगर निगम चुनाव ! ये मौसम नेताओं के लिए मधुमास जैसा सुखद है, और जनता के लिए एक बार फिर ठगे जाने का ! नेता के लिए चुनाव लडना कोई प्राब्लम नही है, उसने तो इसी के लिए इस धरती पर जन्म लिया है,- जब तक है जान जाने जहान,,,,! नेता के लिए सिर्फ एक समस्या होती है कि वो किस नए वादे और विकास का झुनझुना लेकर वोटर के बीच जाए कि पहचान लेने के बाद भी जनता खुद  को ठगे जाने से न बचा पाए ! इस दुरूह बाधा दौड़ को जीतने के बाद वो 5 साल के अज्ञातवास पर निकल जाता है, और पीछे जनता लक्षागृह में सुलगती रहती है, ( जैसा करम करेगा, वैसा फल देगा भगवान!)
        "फल" का सीजन आ पहुंचा है ! दिल्ली नगर निगम चुनाव अगले महीने होगा ! अगले महीने सांता क्लॉज के आने का शेड्यूल होता है, लेकिन अब सभी पार्टियों के सांता इसी महीने दिल्ली आ जायेंगे! सबके पास अपना अपना विकास है। सबकी स्लेज़ गाड़ी गिफ्ट से भरी है ! सब अपने अपने इलाके की जनता का दरवाज़ा खटखटा रहे हैं, -सोना लै जा रे ! चांदी लै जा रे ! विकास कैसे दे दूं ओ पब्लिक कि बड़ी नादानी होगी-! अगले वार्ड में दूसरी पार्टी सांताक्लॉज जनता को जन्नत का झांसा दे रहा है, - बड़ी दूर से आए हैं, साथ में 'झाड़ू' लाए हैं - ! ( एक बार और कुंडली पर फिरवा लो!)
जनता किवांड की दराज से झांक कर देखती है, कुछ पुराने तारणहार हैं जो पिछली बार किसी और पार्टी से आए थे, और अब किसी और पार्टी की तस्वीह पढ़ रहे हैं,- ' वो पार्टी जनहित में नहीं है, विकास का मौका ही नही देती , कहती है - न खाऊंगा न खाने दूंगा! तो क्या पांच साल व्रत रख कर गुजारा करूंगा?" 
      पार्टी के प्रति आस्था और वफादारी टिकट पर आकर टिक गई है! आज टिकट मिलने की आख़िरी तारीख है ! कई और सांता क्लॉज लाइन में लगे हैं ! कई अपने अपने स्लेज में लोहे का रॉड,हॉकी,पत्थर और लाठी भी लाए हैं! अगर विकास का टेंडर किसी और को मिला तो आस्था को ईंट में लपेट कर मारेंगे! कुछ तो दूसरी पार्टी से टिकट खरीद लेते हैं और कुछ अपनी ही पार्टी के लंका दहन के लिए आज़ाद उम्मीदवार बन कर मैदान में कूद जाते हैं ! ऊनके दोनों हाथों में लड्डू है, जीत गए तो 'विकास' करेंगे, हार गए तो विपक्षी पार्टी का पैसा गया ! ' तेरा था क्या जिसे खोने का शोक करता है !' पैसा तो वोट .काटने के लिए प्रमुख विपक्षी दल ने लगाया था ! वर मरे या कन्या, अपने "विकास" पर ओस नही गिरेगी ! 
       पार्टी की प्रॉब्लम सबसे बड़ी है ! सीट एक है और विकास का टेंडर लेने वाले कई ! टिकट किसी एक को ही मिलेगा,बाकी निष्ठा का लबादा उतार कर लंका दहन करेंगे ! निष्ठा टिकट से शुरू होकर टिकट पर ही ख़त्म हो जाती है ! इसका कार्यकाल 5 साल या 35 साल होना - इस  हाथ  दे उस  हाथ ले - पर डिपेंड करता है ! हर नेता में एक हनुमान ग्रंथि होती है, जो टिकट कटते ही उसे लंका दहन को उकसाती है ! बस यहीं से हृदय परिर्वतन का अंकुर फूटता है और कई प्राणी तराजू से कूद कर दूसरी पार्टी ज्वाइन कर लेते हैं! टिकट कटते ही प्राणी के अंदर अविश्वसनीय ज्ञान और दिव्य नेत्र ज्योति प्रगट होती है! अचानक ही उसे अपनी पार्टी के गेहूं में घुन और विरोधी पार्टी में फाइबर दिखाई देने लगता है !
         दिल्ली का संगम विहार ! इसे दिल्ली के लोग खांडवप्रस्थ और संकटविहार के नाम से जानते हैं ! यहां जनता कम और नेता ज़्यादा हैं, और यही सबसे बड़ी प्रॉब्लम है ! सियासत थोक में विकास न्यूनतम ! हमारे यूपी में एक कहावत है, - ज़्यादा जोगी मठ उजाड़ -! बस ये हाल है हम दीवानों का !
यहां 4 साल 11 महीने  एकता और विकास पर चर्चा होती है और चुनाव घोषित होते ही जनता खेमों में बंट जाती है ।  1993 से पार्टियां बारी बारी से इसे समग्र विकास देने में लगीं हैं, मगर पेयजल तक हर जगह उपलब्ध नहीं है ! आम आदमी पार्टी ने अपेक्षाकृत काफ़ी विकास किया, मगर पानी के लिए आज भी संकट जारी है। संगम विहार के दरवाज़े पर मेट्रो आ गई है, फिलहाल प्यास लगे तो इसी से काम चलाओ! मानसून में सड़कें और गालियां तालाब बन जाते है ! अब चुनाव में तारणहार फिर जन्नत देने आयेंगे, और हम फिर विकास का एक नया सपना लेकर ठगे जाएंगे!
         हर वार्ड में हंगामा है ! जिनका टिकट कट गया, शायद उन्हें इतना आघात नही पहुंचा जितना उनके समर्थकों को पहुंचा है! कुछ उतने आहत हैं गोया किसी ने उनकी किडनी निकाल ली हो ! कुछ औंधे मुंह ऐसे गिरे हैं जैसे उनका टाइटेनिक जहाज़ डूब गया हो ! चहेते उम्मीदवार को टिकट न मिलने का गम लिवर, किडनी और दिल तीनो में खुजली पैदा कर रहा है। ( ये रिश्ता क्या कहलाता है!!) जहां ऐसे संवेदनशील समर्थक  बैठे हों, जो विकास के बगैर भी उम्मीदवार के लिए जौहर व्रत पर उतारू हों, वहां विकास की ज़रूरत ही क्या है !!

             मैं फेसबुक देख रहा हूं, जिन्हें टिकट नहीं मिला, वो हृदयपरिर्वतन कर लोक परलोक सुधार रहे हैं ! सदमे में पड़े समर्थक भी २५ नवंबर तक सामान्य होकर मुख्य धारा से जुड़ जाएंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि वार्ड को उम्मीदवार से ज्यादा उनकी ज़रूरत है! उन्हीं की तपस्या से विकास की
भागीरथी पृथ्वी पर आएगी ! आओ दधीचि! बची हुई हड्डियों को तारणहार लेने आए हैं! विकास के हवनकुंड में काम आएंगी !!

               सुलतान "भारती"   

Tuesday, 8 November 2022

अन्तरिक्ष की बेटी

" अभी नहीं , इंगेजमेंट के बाद"!
नाज़िम ने आह भरी और गाने लगा,- ' गोरी के नखरे प्यारे लगदे मैनू,,,,'!
     गुलनूर ने कृत्रिम गुस्से से उसे घूर कर देखा, तो नाजिम गाने लगा -' जाने फिर क्यूं सताती है दुनियां मुझे ! प्यार की आग में तन बदन जल गया,,,!'
     गुलनूर खिलखिला कर हंस पड़ी !!

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Thursday, 3 November 2022

पत्रकार/समाज सेवी

            "पत्रकार/ समाज सेवी बैठक"

      एक स्वस्थ समाज की संरचना के लिए आधार, निर्माण, संवर्धन और सशक्तिकरण  में प्रथम भूमिका निभाने और अपराध, करप्शन तथा भय मुक्त समाज के ख्वाब को अमली जामा पहनाने के लिए जान पर खेलने वाले प्रत्रकार प्रजातंत्र के प्राण और प्रहरी होते हैं! उपभोक्ता वादी संस्कृति तथा अपराध और सियासत के बढ़ते गठजोड़ ने आज के पत्रकारों को ज़िम्मेदारी और जानलेवा खतरों के घेरे में खड़ा होकर अपनी भूमिका निभाने की चुनौती का चक्रव्यूह दे दिया है! 
            मेरी दिली ख्वाहिश है समाज और देश के कीट नाशकों के सफाए में लगे इन बहादुर पत्रकारों के साथ कुछ पल बिताकर मैं भी खुद को सम्मनित और गौरवान्वित महसूस करूं! मैने इन्ही खतरों की परछाइयों तले पत्रकरिता के पैंतीस साल निकाले हैं! क्षेत्र के प्रतिष्ठित विद्वान् प्रखर बुद्धिजीवी, समाज सेवी और अवध के प्रख्यात कवि कर्म राज शर्मा 'तुकांत' की सदारत में कल ( 05.11.2022) शनिवार को (समय एक बजे दिन) हम एक  विचार विनिमय संगोष्ठी में  बैठेंगे !
            आप मेरे आवास ( पटेला गांव,तहसील बल्दीराय) आकर बैठेंगे तो मुझे यकीनन आपके साथ वक्त बांट कर अजहद खुशी होगी ! चाय की चुस्की और नाश्ते के बीच हम अपने परिचय और अनुभव भी साझा कर लेंगे !

            तो,,,,आ रहे हैं  न आप  ?

                आपका अपना
               सुलतान  "भारती"
           जर्नालिस्ट और साहित्यकार
(मुंशी प्रेमचंद साहित्य सम्मान से सम्मानित)
   9899962243   9310608221