Monday, 24 October 2022

खुरदरी यादें

             "सखि! फिर से चुनाव आयो रे"

Sunday, 23 October 2022

" फिर से याद गांव की आई !!"

            ( यादों के दिए)

 "फिर से याद गांव  की आई"

           अवध के ऐतिहासिक जिला सुल्तानपुर का हमारा गांव " पटैला" ! बचपन मे झांकता हूं तो लंबा तबील वक्त भी मेरे बचपन की तस्वीर को रूबरू आने से रोक नहीं पाता ! मेरे बचपन की यादों से गुलज़ार मेरा गांव अचानक ही मेरी आखों के सामने नुमाया हो जाता है । बचपन के सारे संगी साथी (जो अब बूढ़े हो रहे हैं) अपनी उन्हीं शरारतों के साथ मेरे इर्द गिर्द जमा हो चुके हैं, और एक एक कर मुस्कराते हुए एलबम से बाहर आ रहे हैं,  ये आज अयाज़ है, ये झब्बन, बिक्कन , अनीस, सोमई, मेंहदी, संतू, बाबूलाल और ये ईश्वरदीन । मैं उन्ही के साथ सारी दुनियां भूल कर धीरे से अपने बचपन में उतर जाता हूं! वो मस्त मासूम और मोहक बचपन- जो  जाति धर्म, छुआछूत, ऊंच नीच और गरीबी अमीरी की दुनियावी सोच से मुक्त था !
       पटेला गांव सुन्नी शेख और सय्यदों का गांव है, जिसमें तब दस पन्द्रह घर दर्जी और बीस घर दलितों के थे, ( आज दलितों के पचास साठ घर हैं!) उनके बच्चे हमारे सहपाठी और दोस्त थे ! हम साथ साथ खेलते, कूदते और लड़ते थे ! हमारे दलित दोस्त बेधड़क हमारे घर में घुस आते थे ! हम शेख सय्यादों के बच्चों को कभी सिखाया ही नहीं गया कि दलितों से मेल जोल रखने पर मज़हब में इन्फेक्शन हो जाता है ! संतराम अखाड़ा कूदने में हमारा सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी था ! प्राइमरी स्कूल में बाबूलाल मेरा बेस्ट फ्रेंड था और ईश्वरदीन की हिंदी सुलेख से हमें बड़ी ईर्ष्या थी । बाबूलाल के घर के उबले हुए भुट्टे हम बगैर किसी संकोच के खा लेते थे ! (छीन कर खाने की अपनी लज़्जत थी !)
       उस वक्त हमारा गांव  बिजली की रोशनी से बहुत दूर था,मगर कुदरत ने हमारे दिलों को रोशन कर रखा था ! गांव में हर मौसम दिल खोल कर आता और हम बाहें फैला कर उसका खैर मकदम करते ! सर्दियों में ठंड के साथ भेड़ियों का खौफ भी हमें डराता था ! गरीबों के दुश्मन जाड़ा से लड़ने का क्या नायाब तरीका था!.धान के पुआल को कमरे में बिछाकर उस पर बिस्तरा लगा कर रजाई के नाम पर जो भी होता, ओढ़ कर सो जाते थे। हमारे ऑर्गेनिक गद्दे को देख लेता तो डनलप के गद्दे भी कोमा मे चले जाते ! बहुत गरीबी थी गांव में, पर कोई भूखा नहीं सोता था ! आपस में प्यार मोहब्बत और इत्तेहाद ने सबको समेट रखा था ! हमारे खेल भी दहलाने वाले थे, तालाब के किनारे खड़े महुआ के पेड़ से तालाब के पानी में छलांग मार कर फेंके हुए ईंट को ढूंढ कर निकालना ! ईट तो किसी एक को मिलती थी, लेकिन जोंकें सबको मिल जाती थीं । पूरी रात घर से दूर कब्रस्तान के नज़दीक जुते हुए खेत में कबड्डी खेलते थे और फजर की अजान से पहले भाग कर घर आ जाते थे। ( ताकि पता न चले कि बेटा खाट पर नहीं था !) फजर की अज़ान वो अलार्म थी जो हिंदू मुस्लिम दोनों की दिनचर्या  शुरु करने का संकेत देती थी ! ( वही अजान आज कुछ लोगों को सरदर्द दे रही है !)
       बसंत के मेले का इंतजार पूरे साल करते थे ! पांच किलोमीटर का कच्चा रास्ता खेलते कूदते पार कर लेते थे ! दो रुपये बहुत बड़ी रकम थी ! हम डेढ़ रुपए में कायनात खरीद लेते थे ! ये रुदौली की पपड़ी रही और उधर कोने में राधे की चाट पकौड़े की दुकान ! मैं मुरीद था उसके चाट का ! मेले में काले गन्ने का खास क्रेज था । और फिर आखीर में हम मिठाई के दुकानों पर ललचाते हुए पहुंचते थे ! इनके दाम हमें जलेबी की ओर धकेल देते ! हमारे सबसे अजीज़ दोस्त इब्राहीम के पास एक बेहतरीन तर्क होता था, -" ये सारी मंहगी मिठाइयां रात में जिन्न खरीदने आते हैं-" ( गुरबत कहां कहां से हौंसले लेती थी !)
     दीवाली पर कुम्हार हमारे घरों में भी दिए, जटोले और घरोंधे दे जाते थे! त्योहार और खुशियों का तब कोई बटवारा नहीं था ! ईद सबके लिए थी, दलितो के परिवार की महिलाएं सिवईऔर खाना हमारे घरों से लेकर जाती थीं ! हर मुस्लिम परिवार पड़ोसी के हक की सुन्नत अदा करता था ! सर्दियों में जब गन्ने कट कर आते तो पकते हुए गुड की खुशबू से गांव मुअत्तर हो जाता ! फिर रात की गहराती खामोशी मे एक से एक रहस्यमय, और तिलिस्मी कहानियां सुनने को मिलती ! सुनते सुनते अक्सर हम वहीं लुढ़क कर सो जाते थे !  क्या दिन थे , तब शायद चांद सचमुच हमारा ' मामा' था ! चांद और वैसी चांदनी फिर कभी नहीं देखी ! रात में आसमान की ओर देखता तो ऐसा लगता गोया चांद कह रहा हो, "- सो जा भांजे, मुझे पूरी रात तारों से गुजरना है ! तू सो जा तो आगे जाऊं, वरना बहन नाराज़ होगी "!
       हम क्यों बड़े हो गए ! हर खुशी छिन गई ! आज भी गांव जाकर स्कूल के पास जाकर दीवार और दरखतों को बड़ी  हसरत से देखता हूं ! लगता है पेड़ मुझे पहचानने की कोशिश कर रहे हैं ! मै अक्सर  पेड़ से अपनी पीठ सटा कर खडा हो जाता हूं ! सोचता हूं कि अभी वो मुझे अपनी शाखाओं में समेट लेगा ! यादों के दरीचे खुल जाते हैं पर दरखत की बाहें  नहीं खुलतीं ! लगता है पेड़ को बड़े घाव लगे हैं ! नई पीढ़ी को रिश्ते और दर्द का एहसास भी अब कहां  है।

   आ जा बचपन एक बार फिर,,,,,,,!!

                    --   ( सुलतान भारती)

           

Thursday, 20 October 2022

"क्रॉफ्ट मेला का उदघाटन संपन्न "

    फलाह द्वारा आयोजित क्रॉफ्ट मेला शुरू
विख्यात भाजपा नेता "जॉली" ने फीता काटा 

    पश्चिमी दिल्ली के द्वारका  सेक्टर 1 स्थित 
डीडीए ग्राउंड में क्रॉफ्ट मेला का उदघाटन भाजपा के विख्यात विधायक श्री विजय जॉली के हाथों संपन्न हुआ ! कल मेला ग्राउंड पहुंच कर भाजपा नेता ने फीता काटा और दीवाली मेला की विधिवत शुरुवात की औपचारिकता पूरी की ! मेला 30 तीस अक्टूबर तक चलेगा। मेले में हस्त शिल्प कला के उत्पाद के अलावा मनोरंजन और खाने पीने के काफी स्टॉल लगाए गए हैं!
   स्मरण रहे कि मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल द्वारा पोषित और समर्थित ये क्रॉफ्ट मेला पूरे देश में लगता है, जिसमें देश की संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी हस्तकला कौशल के नायाब उत्पाद और कारीगर ( आर्टिजन) देखने को मिलते हैं ! पूर्व सरकारों की अपेक्षा वर्तमान मोदी सरकार ने विलुप्त होती हस्त कला और कलाकारों को बचाने और आर्थिक पोषण देने में उल्लेखनीय काम किया, जिसका असर खुल कर सामने नज़र आता है। हस्त करघा मंत्रालय आर्टिजन और उनसे जुड़ी गैर सरकारी संस्थानों ( एनजीओ) को हर तरह का संभव सहयोग दे रही है!
      उदघाटन के मौके पर लोकप्रिय भाजपा नेता श्री विजय जॉली को नजदीक से देखने के लिए दर्शक और दुकानदार दोनो भारी संख्या में एकत्र हो गए थे! श्री जौली ने अपने संक्षिप्त संबोधन में कहा, ' दीवाली के इस पावन पर्व पर लक्ष्मी मां आप सबकी मनोकामना पूरी करें -!" मेला अथॉरिटी के अनुरोध पर भाजपा नेता ने दस्तकारों द्वारा तैयार किए गए उत्पाद को स्टॉल पर जाकर देखा और प्रसन्नता व्यक्त की । 
            मेले का आयोजन दिल्ली और देश की जानी मानी एनजीओ " फलाह" हैंडीक्राफ्ट सोसाइट  के द्वारा किया जा रहा है! इस अवसर पर कई समाजसेवी, पत्रकार और इस क्राफ्ट मेला के मुख्य आयोजक मोहम्मद यामीन ख़ान, वरिष्ठ प्रबंधक शशि रंजन दूबे, इवेंट मैनेजर गुलज़ार, यश कुमार और जयप्रकाश  भी  मौजूद रहे !

   मेला तीस अक्टूबर तक चलेगा !

Tuesday, 11 October 2022

(कलाम विद लगाम) "ऐसी वाणी बोलिए,,,,,,"

(कलाम विद लगाम)

      ऐसी वाणी बोलिए मन का "आपा" खोए 

    अब मै क्या बताऊं कि आत्मनिर्भरता ने कहां कहां रफ्तार पकड़ा है। वैसे तो झूठ,फरेब,छल, कपट, धोखा और मिलावट ने भी बड़ी तरक्की की  है ,लेकिन नफ़रत के सेंसेक्स ने आत्मनिर्भरता में जो छलांग मारी उसने सबको पीछे छोड़ दिया है ! तब से सहिष्णुता और मीठी वाणी मुंह के बल गिरे पड़े हैं! पता नही वो दोहा किस सतयुग में लिखा गया था !
ऐसी वाणी  बोलिए मन का आपा  खोए!
औरन को शीतल करेआपहुँ शीतल होय!!
      आज के दहकते  युग में ऐसी 'शीतल वाणी' का अमृत महोत्सव चल रहा है ! ऐसी दुःख भजन वाणी बोलने में दरोगा, संत और सांसद एक कतार में हैं ! वाणी के मानसून में विधायिका और न्यायपालिक बगैर छाता के भीग रही है ! 
          इधर इस दोहे के  "मन का आपा खोए" शब्द ने कुछ बुध्दिजीवियों के कान खड़े कर दिए हैं! उनका मानना है कि "आपा खोना". क्रोधित होने का संकेत है! दोहा लिखने वाला तो बवाल करने की सलाह दे रहा है,- ऐसी वाणी बोलिए कि सामने वाला "आपा खो कर" पथराव शुरू कर दे !( वैसे आज कल इस दोहे पर खुल कर अमल हो रहा है) एक से एक 'शीतल वाणी' सुनाई पड़ रही है,- ' इन लोगों का आर्थिक बहिस्कार करो '! जनहित में बोली गई इस देव वाणी को मिली तालियों की गड़गड़ाहट ने एक संत को इससे भी ज्यादा शीतल वाणी की प्रेरणा दे दी, -' उनका हाथ काटो! ज़रूरत पड़े तो उनका गला भी काटो -'! पुलिस गश्त मार रही है, कि ऐसी शीतल वाणी से आपा खो कर कोई पथराव करता नजर आ जाए तो उस पर बुल्डोजर छोड़ा जाए !!
         इस शीतल वाणी की महती कृपा से आए दिन बुलडोजर का अमृत महोत्सव नजर आ रहा है। जब किसी का घर गिरता है तो सिर्फ उस घर के लोग दुखी होते हैं, लेकिन घर के गिरने से "औरन के मन को" जो शीतलता मिलती है, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती ! लिहाजा "ऐसी वाणी" को थोड़ा और 'शीतल' करने का प्रयोग रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। महापुरुषों के बारे में कहा गया है, - महाजनो येन गता: स पंथा -!  ( महापुरूष जिस रास्ते पर चलें,वही  (अनुकरणीय) रास्ता है -!)
अब महापुरुष शीतल वाणी के साथ निकल पड़े हैं, और एक भारी भीड़ (विवेक और) "आपा" खोकर जनहित में सत्य मार्ग पर चल पड़ी है!
       अज्ञान काल में झूठ, द्वेष और नफ़रत को अच्छा नहीं समझा जाता था ! प्रभु की कृपा से अब जाकर अज्ञानता का कार्बन और जनता का दुर्दिन दूर हुआ हैं। वैसे भी हर घूरे के दिन फिरते हैं। तीनो ( झूठ, द्वेष और नफ़रत) एक दम से विजय माल्या की तरह आत्मनिर्भर हो चुके हैं ! सौभाग्य से दबी कुचली और शोषित नफ़रत को अब जाकर न्यायोचित सम्मान मिल पाया है !इस वक्त नफरत अपनाने, दुलारने और जबान में रोपने वाले ज्ञानी पुरूषों की भरमार है । एक ढूंढों हजार मिलते हैं, जैसी प्रचुरता है !
      तो,,, भद्रजनों! - ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए - का अक्षरश: पालन हो रहा है ! न वाणी की धार कुंद हो रही है न आपा खोने वालों का कोई अकाल  है! कवि ने आपा खोने का अर्थ कुछ और लगाया था, परंतु महापुरुषों ने "मरा मरा"
समझ कर ज्ञान की गठरी बांध ली ! अभिव्यक्ति की आजादी के मेन गेट पर जांच अधिकारी बैठते हैं, पर पिछवाड़े गेट की जगह "टटिया" लगाई जाती है, ताकि "शीतल वाणी" पूरी आजादी से अभिव्यक्त हो सके! मन का आपा खोने में कोई अवरोध नहीं आना चाहिए !
           ऐसी "शीतल वाणी" पहले कभी कभी सुनाई पड़ती थी,अब प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । सुबह से शाम आकाश वाणी चलती रहती है ! इसे सबसे पहले सुनने और जनहित में प्रसारित करने के लिए सोशल मीडिया के अग्निवीर काफी आगे हैं! इस प्रतिस्पर्धा में कभी कभी घटना घटने से  पहले ही घटना की खबर आ जाती हैं! शीतल वाणी सुनते ही बड़े चैनल कई पार्टियों के अग्नवीरो को डिबेट में जमा करते है और फिर कई वीरपुरुष आपा खो कर पहले से ज्यादा 'शीतल' वाणी का प्रयोग करने लगते है ! डिबेट के अंत में एंकर ऐलान करता है,- ' तो,, बुद्धिजीवियों के विचार, तमाम साक्ष्य और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान से ज़ाहिर होता है कि गलती एक सम्प्रदाय विशेष की है ! उन्हें उस दिन मस्जिद में नमाज पढ़ने जाना ही नहीं था, जिस दिन उधर से मूर्ति विसर्जन जुलूस को जाना था ! खैर आप सभी बुद्धिजीवी रिसेप्शन काउंटर से अपना अपना "लिफाफा" लेकर जाइएगा "!
                        क्योंकि
      आपा खोने के लिए लिफाफा बहुत जरूरी है !

                           (सुलतान"भारती") सीसी

Tuesday, 4 October 2022

(कलाम विद लगाम) "रावण इज बैक"

(कलाम विद लगाम)

   "रावण इज बैक"

      आज रावण बहुत अच्छे मूड में था, सुबह ही सुबह देवलोक में स्थित उसके फ्लैट की कालबेल बजी! एक देवदूत ने उसे शुभ सूचना दी, -' तुम्हारी छुट्टी मंजूर हो गई! अब तुम दिल्ली की रामलीला देखने पृथ्वीलोक जा सकते हो ! आज पांच अक्टूबर है ! ये रहा तीन दिन और अठारह घंटे का वीज़ा "! 
     " मेरे अस्त्र शस्त्र?"
" उसकी कोई जरूरत नहीं। इस सूटकेस में तुम  दोनो के कपड़े हैं ! धोती कुर्ता में मत जाना "!
    " दोनों कौन, क्या मंदोदरी भी जाएगी?"
   " मंदोदरी नहीं, शूर्पनखा !"
  नहीं"! रावण चिल्लाया!
       " हां ! तुम्हारी कुंडली का सबसे ताकतवर नक्षत्र वही है ! पैरोल पर छूटे हो, बहन को भी दिल्ली घुमा दो !"
         " क्या हम लंका नही जा सकते?"
" नहीं, वहां के हालात खराब हैं, तुम्हारे वर्तमान रिश्तेदार देश छोड़ कर भाग गए हैं! पूरे देश में लंका दहन चल रहा है ! जल्दी करो"!
       एक घंटे बाद सुबह के ठीक पांच बजे रावण अपनी छोटी बहन शूर्पनखा के साथ दक्षिण दिल्ली के संगम विहार वाले जंगल में लैंड हुआ ! वहां से बाहर आकर दोनों ने एक ऑटो रिक्शा वाले से पूछा, - इंडिया गेट चलोगे "? 
   रिक्शा चालक ने शूर्पनखा को ऊपर से नीचे तक
देखते हुए पूछा, " मैडम आप भी चलेंगी?"
      " हां" !
" आप चलेंगी तो मीटर से चल दूंगा, ताऊ जी चलेंगे तो इंडिया गेट का चार सौ रुपया"!
      रावण खून का घूंट पी कर रह गया, जब कि शूर्पनखा मुस्कराई, - तुम्हारी शादी हो गई कि नहीं?"
      अड़तीस साल उम्र में तीन बच्चों का बाप बन चुका आटो चालक कान पकड़ कर बोला, " राम का नाम लो जी, अट्ठाइस साल की उम्र भी भला शादी करने की होती है! वैसे,,,आप जैसी कोई मैरी ज़िंदगी में आए तो  'बाप'. बन जाएं "!
   "गाड़ी चला " रावण गरजा- " वरना कन्यादान की जगह मैं यहीं तेरा पिंडदान कर दूंगा"!
     ऑटो वाला गुर्राया, - " क्यों मेरे हाथों वीरगति पाना चाहते हो ! ये संगम विहार है ताऊ, यहां पर अक्सर आत्मा का परमात्मा से मिलन चलता रहता है! "!
           देवलोक के दिशा निर्देश से बंधा रावण कोई एक्शन नहीं ले सकता था। आधे घंटे बाद आटो रिक्शा इंडिया गेट पर रुका। शूर्पणखा ने रावण से कहा, -"क्या मैं उधर नौका विहार करने जाऊं डैड "?
       " कदापि नहीं शूर्पी ! ये सतयुग नहीं है , मैं चलता हूं तुम्हारे साथ "! 
     नौका विहार करते हुए रावण ने देखा कि संगम विहार वाला ऑटो ड्राइवर भी एक नाव पर धूम रहा था ! खतरा भांप कर रावण ने बहन को चेतावनी दी, -" अब कलियुग में भी मेरी नाक कटवाओगी क्या ! इस ऑटो वाले की यहीं जलसमाधि बनाता हूं! तुम्हारी च्वाइस इतनी घटिया कैसे हो गई?"
      "तो क्या करूं! शाही फेमिली के लोग मुझे पसंद करने की जगह मेरी नाक काट लेते हैं ! अब इस कलियुग में तो संगम विहार वाले ही  मिलेंगे बिग ब्रदर ! "
     " मै इसी लिए तुम्हारे साथ नहीं आना चाहता था, तुम्हारी सोच ब्यूटी पार्लर से हुक्का पार्लर तक
ही चलती है ! चलो चांदनी चौक चलते हैं "!
  " लेकिन यहां से लोदी गार्डेन ज्यादा नज़दीक है ! ऐसा करते हैं कि आप चांदनी चौक चले जाओ, मैं लोदी गॉर्डन हो कर आती हूं!"
      "नहीं !" रावण गरजा - " मैं तुम्हें अकेले नहीं जानें दूंगा "! 
   "क्यों?"
"सतयुग में दूध से जला था, तब से मट्ठा भी फूंक फूंक कर पीता हूं ! मै भी लोदी गार्डेन चलूंगा "!
    " वहां कोई भी लड़की अपने भाई को लेकर नही जाती, भाई समझा करो!"
   रावण ने मैप देखते हुए कहा, -" न लोदी गार्डेन और न चांदनी चौक ! जंतर मंतर चलते हैं!"
      " ठीक है,लेकिन संगम विहार वाले ऑटो से चलते हैं , क्या म्यूजिक लगा रखा था - 'मुस्किल कर दे जीना इश्क कमीना-!' 
         रावण की आंख आज सुबह से ही थोड़ी थोड़ी फड़क रही थी, अब एक दम से स्पार्क करने लगी ! जंतर मंतर के इंट्री गेट पर खड़े सब इंस्पेक्टर ने शूर्पनखा और ऑटो वाले को तो अंदर जाने दिया और रावण को गेट पर ही रोक लिया! रावण गुस्से में आ गया, - " मुझे क्यों रोका?"
       " थारे लक्षण ठीक न लगे मोय ! के नाम सै?"
        "रावण" !
    " कश्मीर ते आया है न ! हवलदार ! तलाशी लेना इसकी , अर  इसकी मूछों में कंघी मार कर देख लेना , के बेरा हशीश या हथगोला न छुपा रक्ख्या हो ! घणा खतरनाक दीखे "!
    बगैर किसी जुर्म के पकड़े जाने पर रावण का ब्लड प्रेशर बढ़ गया । हालांकि तलाशी में कुछ भी नही निकला था फिर भी सब इंस्पेक्टर धमका रहा था, -' सही बता दे, किसका आदमी है - हिजबुल का या लश्कर का"?
    "मेरे पास कुछ मिला क्या ?"
"अच्छा !  तो बेटा सुन ले ,मैं जो चाहूंगा वो तेरे धोरे बरामद हो ज्यागा "!
   " कैसे"! 
               " तीन घंटे थारी कारसेवा करूंगा, तू सब कुछ बरामद करवा देगा ! दिल्ली में घूम रहा है अर सूटकेस में दो सौ रुपए भी नही ! फ़कीर कहीं का !!" 
      रावण का दिल बैठ गया। कमबख्त ऑटो वाले के साथ शुर्पी ने पलट कर भी सुध नहीं ली थी! तभी एक लंबी कर रुकी और एक एसएचओ ने बाहर आकर सब इंस्पेक्टर को फटकारा, ' मेरे रिश्तेदार को क्यों रोक रखा है बेवकूफ?"
     " सॉरी सर ! इन्होंने बताया नहीं "!
"शट अप "!
        कार में बिठाकर आगे बढ़ते हुए दरोगा ने कहा, -" हैरान मत हो , मैं देवदूत हूं, दिल्ली देख कर पेट भर गया, या अभी लाल किले  जाकर रावण दहन भी देखना है?"
        " शूर्पि कहां है?"
 " वहीं चल रहा हूं, लोदी गार्डेन ! ऑटो वाला उसे बंगाल ले जाकर बेचने की प्लानिंग कर रहा है ! कलियुग में लोगों के कैरेक्टर में इतना प्रदूषण भर चुका है कि एक बार पूरी धरती को जोतना पड़ेगा।"
            रावण की बोलती बंद थी । सफेद रंग की बीएमडब्ल्यू कार तेजी से लोदी गार्डेन की ओर दौड़ रही थी!          (   क्रमश: )