Monday, 19 September 2022

(कलाम विद लगाम)

(कलाम विद लगाम)

        "केसरिया "चीता" पधारो म्हारे देश"!

   अब ये हंगामा है क्यूं बरपा - चीता ही तो आया है! इतनी हाय तौबा काहे की! मीडिया बताए तो सही कि उसे चीते के आने से इतना सदमा क्यों लगा है ! अरे भय्या, हम हैजा , महंगाई, बर्ड फ्लू से प्रदूषित मुर्गा, कोरोना सब झेल कर बैठे हैं- चीता की क्या चिंता ! वो बेचारा तो खुद नामिविया के नीग्रो से दुखी होकर आया है, जो उसके मुंह से हिरन छीन कर खा लेते हैं ! तारणहार की जय हो ।जो  हालात के मारे चीते को यहां ले आए ! लेकिन भारतीय मीडिया ने चीते के स्वागत में इतना झांझ मजीरा बजाया कि चीता घबरा कर खुद को कुछ और समझने लगा ! उधर विरोध को अपना राजधर्म समझने वाले विपक्ष ने चीते को निशाना बना कर हमला शुरू कर दिया - सोशल मीडिया पर भी सेनाएं सजने लगीं।
        ख़बर जंगल पहुंची, शेर ने व्हिप जारी कर दिया ! सारे जानवर इकट्ठा हुए ! शेर ने चिंता प्रकट की, -' सुना है अपने जंगल में कोई घुसपैठिया आ रहा है? जानवर हैरान! हिरन ने अपनी राय दी, -' राजा जी ! हमे चीते से डर नहीं लगता, इंसानों के प्यार से डर लगता है '! शेर ने अपनी समस्या रख दी , - ' मैं तो लगभग शाकाहारी हो चुका हूं , टोटल भेजिटेरियन ! सन दो हजार उन्नीस के बाद अपनी गुफा के बाहर नोटिस बोर्ड लगवा दिया हूं कि कृपया गाय, भैंस, बकरी बकरा यहां से दूर जाकर घास चरें "!
     मुंह लगे लोमड ने पूछा, " गाय पर तो रोक है, पर भैंस और बकरा बकरी का शिकार करना क्यों छोड़ा?"
     " खतरा है जान जाने का ! मैं बकरे का शिकार करूं और हमारे विरोधी उसे गाय साबित कर दें तो,,,! हमारी तो हो गई मॉब लिंचिंग! न बाबा न ! अपन शाकाहारी ठीक हैं ! अब ई चीता यहां क्यों आया ! लगता है मुझे नामीविया भागना पड़ेगा "!
       तो,,, चीता आ गया है। चीता लाने वाले ने भी नहीं सोचा होगा कि मीडिया को चीते से  इतनी ऊर्जा और फाइबर हासिल होगा ! लगता है इसके पहले मीडिया ने चीते का फोटो भी नहीं देखा था! इतना  मान  सम्मान  देख कर खुद चीता सदमे में है, - कहीं चुनाव न लडवा दें ! हे वन देवी रक्षा करना, मीडिया के लक्षण ठीक नहीं लगते- ' !
     फ़िलहाल चीता आ गया है, उम्मीद है कि अब महंगाई जन बचाकर भागेगी! एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती ! तभी तो दूर दृष्टि से मालामाल मीडिया देश हित में इतना खुश है ! चीता  इन, महंगाई आउट ! नो डाउट !! सावन की जगह चीता को आने दो ! यूपी के अवध क्षेत्र में धान के खेत सूख रहे थे ! मानसून लेट था, चीता टाइम पर आ गया ! चीता के आते ही बारिश शुरू !अब किसान और मीडिया दोनों खुश हैं ! केसरिया "बालम" पधारो म्हारे देस !! 

    खैर चीता आ गया है ! मीडिया न बताती तो कैसे बता चलता देश में चीता आया है! सरहद से घुसपैठिये अंदर आ जाते हैं तो मीडिया को पता नहीं चलता, उसके अंडर कवर एजेंट तब चीता ढूंढ रहे होते हैं ! अब तक चीता नामीबिया में था , तभी महंगाई अंदर आ गई ! अब चीता अंदर है तो महंगाई और बेकारी  नामीबिया  का पता पूछ रही हैं ! मीडिया के तमाम 'अंडर कवर एजेंट' चीता के इर्द गिर्द घूम रहे हैं -" तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती, महंगाई हम क्या देखें ! भीड़ और मीडिया का मारा चीता सड़मे में है ! चीता का आना बेशक एक मानवीय पहल हो ,पर मीडिया को पूरा यकीन है कि एक दिन ओज़ोन के परत में हो रहे छेद को भी यही चीता बंद करेगा  !   तो,,,,,,,,
  
चीता आ गया है, शायद अब कोरोना चला जाए !!
       

"अन्तरिक्ष की बेटी"

              "अन्तरिक्ष की बेटी"

         अवध एक्सप्रेस से महज़ आठ किलोमीटर के फासले पर बाजगढ़ का सराना घाट ! रात नौ बजते ही बाबू मल्लाह ने नाव को खूंटे से बांधा और घर में उतारी महुआ की तेज़ शराब पीकर नाव में ही रजाई ओढ़ कर लेट गया ! उसके आज घर न जाने की वजह यह थी क्योंकि बसंतपुर के मेले में बाजगाढ़ के पठानों के आठ दस लड़कों को नौटंकी देख कर रात में ही नदी के उस पार उतारना था ! बाबू मल्लाह को इस वीराने में अब दर नहीं लगता था, यहां के पशु पक्षी नीलगाय और मैदानी इलाकों में कभी कभी नज़र आने वाले भेड़िए तक उसे पहचान गए थे । सराना घाट के जंगल तरह तरह की आवाज से गूंज रहा था ?
       अचाननक बाबू उछलकर उठ बैठा ! नींद से जाग कर वह आंखें फाड़ फाड़ कर चारों ओर देखने लगा! उसने किसी तेज़  धमाके की आवाज़ सुनी थी ! आसमान में चांद सहमा हुआ नीचे झांक रहा ! यकायक उसने महसूस किया कि वह गरमी और पसीने से भीग रहा है !  आसपास का वातावरण अचानक गर्म हो उठा था! उसने गबराई हुई नजरों से  बाईं तरफ नदी की ओर देखा तो खौफ से दहल गया ! एक बीघे के क्षेत्र में नदी का पानी खौल कर उबल रहा था और मछलियां तड़पती हुईं उछल रही थीं ! जैसे एक बीघे के पानी को आग के ऊपर रख दिया गया हो !
         अचानक दाईं तरफ से उसे किसी ने पुकारा ! उसने घूम कर देखा, तो ऐसा लगा कि उसका कलेजा उछलकर गले से बाहर आ जायेगा ! गोमती नदी के पानी की जलधारा में दो लड़कियां खड़ी थीं। चालीस साल से नाव चला रहे बाबू मल्लाह ने कभी इतनी खूबसूरत लड़कियां नहीं देखी थीं ! जहां वो खड़ी थीं, नदी का पानी उनकी कमर तक था ! जब की बाबू जानता था कि उस जगह पानी की गहराई तीस फीट से कम नहीं थी ! लड़कियों के काले लिबास से  कई किस्म  की रोशनी फूट रही थी ! उन्हें जल देवता की बेटी समझ कर बाबू ने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया तो दोनों लड़कियां खिलखिला कर हंसने लगीं ! 
            बड़ी वाली लड़की ने  बाबू मल्लाह की ओर देख कर कुछ कहा ! बाबू मल्लाह को लगा कि कुछ अजनबी शब्द हवाओं से गुज़रे और फिर उसे अपनी भाषा में सुनाई पड़ा,-' मैं और मेरी छोटी बहन तुम्हारी नाव पर घूमना चाहते हैं"!!
  
                 ( अगले महीने आने वाले मेरे उपन्यास "अंतरिक्ष की बेटी"   से  चंद लाइनें ")

Wednesday, 14 September 2022

(कलाम with लगाम) "आई लव हिंडी यू नो" !

 "कलाम विद लगाम "

   "आई  लव  हिंडी  यू  नो"

      मैने बड़ी हैरत से देखा, बैंक के मैन गेट पर एक बड़ा सा बैनर लटक रहा था, जिसमें बैंक के ग्राहकों को याद दिलाया जा रहा था - ' हिन्दी में काम करना बहुत आसान ! हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है ! आइए हम इसे विश्व भाषा बनाएं -'! अंदर आने वाले ग्राहकों को विश्व भाषा बनाने में बड़ी दिक्कत पेश आ रही थी ! जिन्होंने बैनर देखा ही नहीं, वो हमेशा की तरह अंग्रेजी में विड्रॉल फॉर्म, चेक और डिपोजिट स्लिप भर कर सहज नजर आ रहे थे, मगर जिन्होंने पहली बार बैनर पढ़ा था ,वो बड़ेअसमंजस में थे, कि विश्व भाषा बनाने के लिए किस काउंटर पर जाएं! मुझे अपने कुपोषित खाते से पंद्रह सौ रुपए निकालने थे ! मैने विड्राल भर कर दे दिया ! क्लर्क ने एक बार भी नहीं पूछा किआज के दिन इंग्लिश में क्यों भरा !!
        मैं हैरान था कि भला बैनर लटका देने से किस तरह हिन्दी की सफल सेवा की जा रही है! हिंदुस्तान में भी हिंदी का दिवस और पखवारे की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? इंग्लैंड क्या इंग्लिश डे मनाता है !! सिर्फ नारा उछाल कर उपलब्धियां नहीं हासिल होती ! हिन्दी को सिर्फ राष्ट्रभाषा घोषित करने से काम नहीं चलेगा बल्कि उसे रोटी और रोजगार का व्यापक आधार देना होगा। साथ ही देश के एलीट वर्ग और प्रशासन में बैठे लोगों को चाहिए कि वह हिन्दी को बैनर से निकाल कर अपने बच्चों में ले आएं!
          हमारे यूपी में हिंदी कक्षा एक से पढ़ाई जाती है और अंग्रेज़ी क्लास सिक्स से । शहर से लेकर सुदूर गांवों तक अंग्रेज़ी ड्रोसरा के ज़हरीले पौधे की तरह हिंदी का खून चूस रही है ! हिंदी को विश्व भाषा बनाने वाले नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं। इसी से पता लगता कि हिन्दी के प्रति वो कितनी बड़ी कुर्बानी दे रहे हैं ! अंग्रेजी के प्रति बढ़ते मोह में हिंदी विकास  की गति चिंतनीय है ! मिडिल क्लास वर्ग में भी घुटनों के बल चल रहे बच्चे को दूध कम अंग्रेज़ी ज़्यादा पिलाई जाती है। अपने 
घर आए पड़ोसी से बच्चे के टेलेंट की नुमाइश की जाती है,-' शाशा ! अंकल से शेक हैंड करो !' लगता है कि हिंदी में सलाम नमस्ते करते ही बच्चे का भविष्य ख़राब हो जाएगा !!
      सितंबर की बयार पाते ही हिन्दी प्रसार और प्रचार में लगी संस्थाएं उसे विश्व भाषा बनाने में जुट जाती हैं ! सरकारी अनुदान को ठिकाने लगाने के लिए अपने अपने गुल्लक के कवि, शायर, चारण,चिंतक  और साहित्यकारों  को   काम   में   लगा  दिया  जाता  है ,-'जागो मोहन प्यारे जागो -! इन्हीं साहित्यिक फावड़ों से हिन्दी विकास फंड को व्यवस्थित किया जाता है ! मरते दम तक साहित्य समंदर के यही "सील" मंचों पर पसरे होते हैं ! हिंदी को राष्ट भाषा से विश्व भाषा बनाने का भार इन्हीं के हड्डी विहीन कंधों पर है ! इनके होते नई पीढ़ी के ऊर्जावान साहित्यकारों को सिर्फ़ ऑक्सीजन पर जीवित रहना है !
        कल पड़ोस में रहने वाले वर्मा जी मुझ पर रोब डालते हुए कह रहे थे, -' शुक्र है कि बेटे का एडमिशन हो गया ! सुनकर तुम्हारा तो खून जल गया होगा ! बुरा मत मानना, वहां पर छोटे मोटे या फर्जी पत्रकारों के बच्चे नहीं पढ़ सकते ! हिंदी बोलने पर जुर्माना भरना पड़ता है, यू नो !!"  वर्मा जी खुद हिंदी मीडियम की उपज हैं किंतु बच्चे के अंग्रेज़ी ज्ञान को पूरे मोहल्ले में बांटते हैं ! मिडिल क्लास वर्ग से ब्याह कर आई महिलाएं अपने बच्चों को अंग्रेजी में ही दुलारती डांटती हैं, -' चिंटू ! डोंट ईट मिट्टी ! फेंको, थ्रो करो !!' बच्चा अंग्रेज़ी और हिन्दी के बीच फंस कर रोने लगता है -'! मां चाहती है कि उसका नौनिहाल रोए तो भी अंग्रेज़ी में ! मां और बाप को अंग्रेज़ी में 'मम्मी' और 'पापा' बोलना शुरू करे, तभी पेरेंट्स को मोक्ष की प्राप्ति होगी ! अगर गलती से भी  बच्चे के श्री मुख से "अब्बा" या  "पिता जी" जैसे रूढ़िवादी शब्द निकल गए , तो समझो कि जीवन अकारथ गया, और सोसायटी  में उसकी प्रतिष्ठा का टाइटेनिक  बगैर आइसबर्ग से टकराए डूब गया ।

      इस वक्त मैं अपने कमरे में लेटा बेकारी की चौथी वर्षगांठ मना रहा हूं, और पड़ोस के वर्मा जी "आर डब्ल्यू ए" की मीटिंग में भीष्म प्रतिज्ञा करते हुए दहाड़  रहे हैं, -' हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है ! आओ हम सब मिलकर इसे विश्व भाषा बनाएं ! साथ ही इसमें अडंगा डालने वाले फर्जी पत्रकारों को पाकिस्तान भगाएं "!

     हिंदी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोग जोश में ताली बजा रहे हैं !! मुझे मालूम है कि अब 2023 वाले हिंदी पखवारे तक ज्यादातर मौसमी योद्धा कोमा में  चले जाएंगे!!
       

Sunday, 4 September 2022

( कलाम विद लगाम) "ठेस रहित अपमान"

(कलाम विद लगाम)

        " ठेस रहित अपमान"

       महापुरूष ने धर्म विशेष पर फिर अनर्गल टिप्पणी कर दी , और बावेला मचने पर कहा, - ' मेरा मतलब वो नहीं था जो समझा गया' -! मतलब साफ़ है, सुनने वालों को गलतफहमी में ठेस पहुंची थी ! इस हालत में जनता को मान्यवर जी से ठेस सहित माफ़ी मांगनी चाहिए.!   उनका ससम्मान जेल आगमन होता है, इस संवैधानिक अनुष्ठान से उनकी लोकप्रियता बढ़ती है और वो इसी बेलगाम बयानों से,,,,,, 'हृदय सम्राट' हो जाते हैं! चरित्र निर्माण में ये कबीर के उलटवांसी - बरसे कंबल भीगे पानी- जैसी है ! किसी के धर्म का चीरहरण करने  से  भी  अब अपने चरित्र का डैमेज कंट्रोल  किया जाता है ।
          जब से अवतारों ने पृथ्वी पर आना छोड़ा है, तभी से बाबाओं का आगमन जोरों से है ! ये बाबा कलयुग के वो एलियन है जो बगैर उड़न तश्तरी के आते हैं और रुकी हुई  कृपा बरसा कर चार्टर्ड प्लेन से आश्रम लौट जाते हैं। भक्तों को मोहमाया से परे रहने का कीमती सुझाव देकर माया और मोहिनी दोनों पर झपट्टा मारते हैं! सियासत का उचित मानसून देख कर इनमे से कुछ बाबा दूसरे धर्म पर बेलगाम होकार ज्ञानवाणी सुना कर फॉलोअर्स को मंत्रमुग्ध करते हैं! प्रशासन को खर्राटा भरते देख  जबान बेलगाम होकर विधर्मियों के नरसंहार का सुझाव तक दे देती है ! बड़े चैनल उनके संविधान विरोधी बयान को "बिगड़े बोल" कहकर भार रहित कर देते हैं ! बाबा इस आस्था के बदले मीडिया को आशीर्वाद देते है ।  एंकर फुल बेशर्मी के साथ बाबा के "ठेस रहित" बयान की पैरवी करता है! देश विश्व गुरु होने की दिशा में धीरे से एक कदम और आगे जाता है! 
          'कलाम बेलगाम वाले' वाले  बुद्धिजीवियों की तादाद बढ़ रही है । दूसरे के धर्म में घुन तलाशने के लिए  कई  अंधे  दूरबीन लेकर आ गए हैं ! आए दिन कहीं न कहीं बेलगाम हो कर नफ़रत का सशक्तीकरण करते रहते हैं ! इधर कई महीनों सेआस्था में घातक परिर्वतन देखा गया है ! मंदिर के सामने से खामोशी से गुजर जाते हैं और मस्जिद को देखते ही अखंड कीर्तन और महा आरती के लिए व्याकुल हो जाते है ! आस्था में इतना समाजवाद पहले कभी नहीं देखा गया !
             ये नए मिजाज़ का संस्कार है ! पहले आस्था के साथ खिलवाड़ किया जाता है , और जब संवैधानिक शिकंजा कसता है तो कहते हैं, -' मुझे क्या पता कि इतने कम तापमान वाले अपमान से भी ठेस पहुंच जायेगी ! मेरा इरादा किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था ! मैं तो आज कल ठेस रहित बयान देता हूं" !  (आखिर उन्हें जमानत भी तो लेना होता है !) नेता जी अपने ज़हरीले किंतु ठेस रहित बयानों के लिए काफ़ी लोकप्रियता बटोर चुके हैं ! वह काफ़ी सजग रहते हैं,और जैसे ही उन्हें महसूस होता है कि उनकी लोकप्रियता का तापमान गिर रहा है - वो तुरंत एक ज़हरीला बयान देकर लोकप्रियता का सेंसेक्स लुढ़कने से रोक देते हैं ! बिगड़े और विवादास्पद बयान उनके चरित्र निर्माण में उर्वरक  की भूमिका निभाते हैं!
       घनघोर कलिकाल में  जनता की जागरूकता प्रशंसनीय है! लोग तरकारी छोड़ कर ताजमहल खोदने पर उतारू हैं। जो गुस्सा तरकारी के महंगा होने पर उमड़ रहा था,उसे ताजमहल की ओर डाइवर्ट कर दिया गया ! महंगाई और बेकारी वाले गुस्से को पहले से ही झेल रहा ताजमहल सकते में है ! इस जनजागरण से आत्मनिर्भरता नजदीक और जीडीपी दूर होती नज़र आती है ! समस्याओं के निराकरण के लिए अब पंचवर्षीय योजनाओं से बढ़िया भारत पाक क्रिकेट मैच हो गया है ! जनता की बौद्धिक जागरूकता का कुछ ठिकाना नहीं कि कब महंगाई से डाइवर्ट होकर मैच से ऑक्सीजन लेने लगे !

    जहां तक  "ठेस" का सवाल है, जनता के अलावा किसी को नहीं लगनी  चाहिए ! नेता और पुलिस को तो बिलकुल ठेस नहीं लगनी चाहिए! जनता का क्या है, उसे तो आए दिन ठेस लगती है ! दो चार दिन सुकून से निकल जाए और ठेस न लगे तो जनता घबरा जाती है , - ' तीन दिन पहले ठेस लगी थी, पूरे बहत्तर घंटे बीत गए - मौला जाने क्या होगा आगे !  पहली बार ऐसा हुआ है जब देश में अजान,नमाज और मदरसों को देख कर भी कुछ लोगों को "ठेस" लगने लगी है ! 

        फिर कोई रूट डायवर्ट हुआ है !!

              
                    
          

Friday, 2 September 2022

संगम विहार परबड़े चैनल" की कृपा !

            ( अग्नि दृष्टि)

  संगम विहार पर "बड़े चैनल" की कृपा" !

      अगस्त की 25 तारीख़ को पौने चार बजे स्कूल से घर लौट रही सोलह वर्षीय नैना मिश्रा पर चलाई गई गोली की गूंज में कई सवालों के जवाब अभी भी हवा में तैर रहे हैं ! आख़िर मासूम छात्रा पर गोली किसने चलाई !!  डीसीपी  (दक्षिण दिल्ली) "विनीता मेरी" जी हमलावर का नाम बॉबी कुमार बताती हैं, तिगड़ी  थाना अधिकारी भी उसी का नाम लेते हैं ! लेकिन निन्दनीय अपराध की इस घटना में हिन्दू मुस्लिम, लव जेहाद और मदरसों को घसीटने वालों को इस नाम में हीमोग्लोबिन और फाइबर नही नज़र नहीं आता ! लिहाजा उनके सारे जिक्र की सूई अमानत अली उर्फ अली के इर्द गिर्द घूमती रही !
            इसमें कोई शक नहीं कि इकतरफा प्यार की असफल कोशिश के नतीजे में तीसरे अपराधी अमानत अली ने इस षडयंत्र का तानाबाना बुना था और घटना को अंजाम देने के लिए उसी ने दो देसी कट्टे और कारतूस का प्रबंध किया था ! उसके दोनों आवारा दोस्त ( बॉबी कुमार और सुमित कुमार) इस षडयंत्र में उसके सहयोगी बने! घटना वाले दिन अली बाइक चला रहा था और दोनो असलहे के साथ पीछे बैठे थे ! गोली बॉबी ने चलाई जो सर की जगह बाएं कंधे में घुस गई! लड़की को फौरन पास के बत्रा हॉस्पिटल में ले जाया गया , नैना अब खतरे से बाहर - लेकिन जेरे इलाज है! तेजतर्रार पुलिस उपायुक्त मेरी जी की तत्परता से बनाई गई रणनीति और संगम विहार पुलिस के जबर्दस्त ऐक्शन ने, सभी आरोपी हमलावारों की धर दबोचा और संगम विहार को नफरत और सियासत का अखाड़ा बनाने वाले लोगों का मंसूबा फेल कर दिया।
        1 सितंबर और 02 सितंबर 2022 कई बार  नंबर वन का दावा करने वाले चैनल ने प्राइम टाइम में अपने न्यूज में संगम बिहार की इस घटना पर फोकस किया, एंकर ने अपने विशिष्ट अंदाज़ में इस घटना के द्वारा दर्शकों को बताया कि " गोली अली उर्फ अमानत ने चलाई है"! समझ में नहीं आता कि बॉबी कुमार का नाम लेने से क्या चैनल की "टीआर पी ' गिर जाती !! यह साम्प्रदायिक नहीं तो और क्या हैं ! लव जेहाद के फ़ोकस में सिर्फ अमानत अली प्रमुखता से नजर आ रहा था और बाइक पर सवार  सुमित कुमार तथा गोली चलाने वाला बॉबी कुमार बिलकुल नहीं नज़र आ रहे थे!  ऐसा भी क्या नज़रिया सच बोलने की इजाज़त न दे! सांप्रदायिकता शायद ईमानदार पत्रकारिता और आंख के  "रेटीना" पर भी घातकअसर डालती है , तुलसी दास जी कहते हैं --

जाकी  रही भावना जैसी !
प्रभु मूरत देखी त्यों तैसी !! 

         गनीमत रही कि 32 साल से सुख दुख में एक दूसरे के साथ रह रहे संगम विहार के हिन्दू मुसलमानों की राष्ट्रीय एकता इतनी मज़बूत है कि नफ़रत की ऐसे हवाएं उनके इत्तेहाद की बुनियाद नहीं हिला पातीं ! खैर, आगे से दोनों समुदाय को सतर्क रहकर समाज के बीच रह रहे ऐसे अमानत अली  और बॉबी का इलाज ढूंढना होगा ! क्योंकि ऐसे ही ज़हरीले वायरस हमारे भाईचारे की जड़ों में मट्ठा डाल कर उसे  बर्बाद करते हैं !
  
याद रखें, -- बेटियां हमारी ज़ीनत हैं ! और,,,,,
अपराधी से हमारा कोई रिश्ता नहीं!!

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