Monday, 18 April 2022

(अग्नि दृष्टि) " असहिष्णुता का खौलता लावा"!

"अग्नि दृष्टि"
( संपादकीय)

असहिष्णुता का खौलता लावा

     राम चरित मानस में एक अर्धाली है, - ' जाकी रही भावना जैसी ! प्रभु मूरत देखी त्यों तैसी-' ! अर्थात् हमारी भावना ही हमारी आस्था का मापदंड तय करती है ! आस्था चूंकि संपूर्णता चाहती है और संपूर्णता के लिए समर्पण पहली शर्त है! समर्पण में निश्छलता का समावेश न हो तो आस्था कालांतर में व्यवसायिक हो जाती है! यदि इबादत में समर्पण न हो तो धर्म व्यवसाय बन जाता है! लोक कल्याण की भावना धर्म से डिलीट होते ही विश्वत  कुटुंबकम की भावना खत्म हो जाती है ,।और प्राणी धर्म को अपने हिसाब से चलाने लगता है !  धर्म से दूरी बढ़ते ही इंसान की आस्था और आध्यात्मिक शक्ति का ह्रास होने लगता है , जिनकी पूर्ति के लिए व्यक्ति  अपना आभामंडल बनाने और बचाने के लिए हर अनैतिक और अमानवीय हथकंडा अपना लेता है ! आस्था में एकाग्रता की कमी चारित्रिक संक्रमण का संकेत है, धर्म चाहे कोई भी हो ! आज चारों तरफ़ धर्म को लेकर हाहाकार है! करता इंसान है और इल्जाम धर्म और ईश्वर पर रख देता है !
                   इंसान को कुरान में "अशराफल मखलूक'' ( सर्वश्रेष्ठ प्राणी) कहा गया है ! कुरआन में ईश्वर कहता है - लकद  खलकनल इंसाने फी  अहसने  तकवीम - ! यानि (हमने मनुष्य को सर्वोत्तम तरीक़  से बनाया है!) लेकिन वही इंसान जमीन पर आकर अपना बुद्धि वैभव और विशेषता का प्रयोग निर्माण की अपेक्षा विध्वंस में लगाने लगता है ! हर धर्म को बढ़िया बताने वाला इंसान आज एक दूसरे के धर्म को समाप्त करने को ही सबसे बड़ा धर्म बता रहा है ! सब एक दूसरे के गेहूं में घुन ढूंढने में लग गए हैं ! और इस अधर्म में धर्मगुरु सबसे आगे हैं ! कोई अपनी गलती मानने को राज़ी नहीं ! सदियों से प्यार मुहब्बत भाईचारे का अलमदार बना हमारा देश इसी धार्मिक उन्माद का इस वक्त दंश झेल रहा है ! इसका ताज़ा ज़ख्म इसी राम नवमी को कई जगह देखा गया !
                इस बार की रामनवमी सदियों से चली आ रही रामनवमी से बिलकुल अलग थी !. शांत, स्निग्ध, आस्था से ओतप्रोत होने की जगह एक संप्रदाय विशेष के प्रति नफरत और आक्रामक इरादों से भरी हुई ! आस्था की जगह आक्रामकता से लबरेज़ नारे - ' हिंदुस्तान में रहना होगा ! तो वंदे मातरम् कहना होगा -!' ये नारे एक इंडिकेटर थे कि इस रामनवमी के केंद्र बिंदु में आस्था नहीं आक्रामकता है ! शांति और सद्भाव नहीं शरारत है। रास्ते में पड़ने वाले मंदिरों पर रुकने की बजाय सिर्फ़ मस्जिद पर पहुंच कर 'आस्था' प्रस्फुटित होती रही ! शायद आज़ अगर खुद मर्यादा पुरुषोत्तम वहां होते तो गुनहगार को अपने हाथ से दंड देते! 
          हर जगह एक जैसी घटना देखी गई ,- जलूस का मस्जिद पर आकर रुक जाना, उत्तेजक नारे बाजी करके एक  संप्रदाय  विशेष को टकराव पर विवश कर देना  !  पुलिस का तब तक तमाशाई बनकर खड़े रहना, जब तक कि जुलूस के सशस्त्र लोग अपने मंसूबों में कामयाब न हो जाएं! बाद में पीड़ित पक्ष पर पुलिस और प्रशासन द्वारा एक तरफा कार्रवाई ! और,,,,इन सब में मीडिया की भूमिका सबसे ज्यादा शर्मनाक देखी जा रही है! ज्यादातर चैनल पीड़ित पक्ष के लोगों को ही दंगाई, आतंकी और साजिशकर्ता साबित करने में पसीना बहा देते हैं ! दो एक चैनल जो सच बोलते हैं वो नक्कारखाने में तूती की आवाज़ से ज़्यादा अहमियत नहीं रखता ! आज़ अगर सोशल मीडिया न होती तो जाने क्या होता!
         मैं योगी जी की तारीफ़ करूंगा इस विषय में ! देश के सबसे बडे़ और सबसे संवेदनशील प्रदेश में रामनवमी के मौके पर कहीं भी तशद्दुद का कोई वाक्या नज़र नहीं आया, बल्कि कई संवेदन शील इलाकों में मुस्लिम समुदाय अपने हिंदू भाईयों पर फूल की बारिश करते नज़र आए ! ये योगी आदित्यनाथ जैसे सख्त
  प्रशासक ही ऐसा करिश्मा कर सकते हैं ! सुनकर और देख कर यकीन पुख्ता हो जाता है कि प्रशासन अगर सख्त और संजीदा हो तो अपराधी का मंसूबा  कभी कामयाब नही हो सकता !!
           बहुत पहले देवानंद और जीनत अमान की एक फिल्म आई थी - हरे रामा हरे कृष्णा -! उसका एक गीत याद आ रहा है, - ' देखो वो दीवानों ऐसा काम ना करो! राम का नाम बदनाम न करो -'! शायद आज इस गीत पर सबसे ज्यादा अमल करने की ज़रूरत है ! इन्हीं पंक्तियों के साथ - समानता , सहिष्णुता,सौहार्द, सामाजिक संवाद,और सामप्रदायिक एकता की हम कामना करते हैं  !! आओ, हम सब  मिल कर  नई सोच के साथ एक नए  सूरज  का इस्तकबाल करें !! 
       अवध के शायर एम के  ''राही" का एक शे'र है ---

हिंदू है अगर जिस्म तो धड़कन है मुसलमान!
दोनों  के  इत्तेहाद  से कायम  है  "हिंदुस्तान"!!

              ( सुलतान भारती)

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