( जीस्त ए डॉली )
मैं शायद डॉली को दो साल से जानता हूं ! वैसे मुलाकात छे सात महीने पहले गांव जाने पर हुई ! बेहतरीन सोच, शब्द, संवाद, सादगी और,,,, शायरी! मिलने पर यकीन करना मुश्किल था कि ये खूबसूरत छोटी बच्ची इतनी कम उम्र में अल्फाजों की इतनी आकाशगंगा तामीर कर सकती है!! उसके अशआर में उर्दू भाषा के कई शब्द मुझे हैरत में डाल देते थे ! फिर मुझे पत्रकार इम्तियाज़ खान मिले तो पता चला कि किसान की इस बेटी ने उर्दू इम्तियाज़ खान साहब से सीखी थी !सुन कर मुझे अपने उस्ताद मरहूम डी पी पांडेय जी याद आ गए, जिन्होंने मुझे. 'सुलतान भारती' बनाने में एक अहम किरदार निभाया था ! अवध की जरखेज़ साहित्यिक मिट्टी की यही समुदायिक खासियत है जो गंगा जमुनी रवायत की जड़ों को रूहानी ताक़त बख्शती है !
सात महीने पहले मैं जब पहली बार डॉली से मिला , तभी मैने उसे अपना संकलन निकालने की सलाह दी थी, क्यों कि मैं चाहता था कि उसकी रचनाओं को पंख मिलें और उसके ख्वाब बिसुहिया (उनका गांव) से निकल कर विश्व भर में परवाज़ करें!
डॉली की रचनाओं में कई भाषाओं के शब्द सितारे मिल जाएंगे ! उसके रचनाओं की कायनात दर्द ज़ख्म सिसकियों की आहट से भरी हैं ! डॉली दर्द के इस कायनात के बारे में बेबाकी से लिखने में अपनी उम्र से भी कहीं आगे निकल जाती हैं ---
गमज़दा ख़्वाब ढोते रहे उम्र भर !
मौत के बाद भी कोई राहत नहीं !!
वह आंसू और उम्मीद की अलमबरदार हैं! अपनी रचनाओं में हालाते हाजरा पर सवाल उठाते हुए डॉली बड़ी कद्दावर नज़र आती हैं ---
हर शख़्स को है एक ही मंज़िल की जुस्तजू !
'वाइज' बताए रास्ते क्यूं हैं जुदा जुदा !!
"जीस्त ए डॉली" पाठकों की अदालत में है! देख कर अच्छा लगा कि डॉली के पहली ही किताब को साहित्य और सियासत जगत के कई चमकते सितारों के सशक्त भावात्मक आशीर्वाद मिलें हैं ! आगे डॉली को इसी कहकशां का एक सितारा बनना है ! डॉली की हिम्मत, साहित्यिक प्रतिभा, आसमान छूने की आशावादिता , बेखौफ अंदाज़ और सतत संघर्ष के हौंसले को सलाम करते हुए मैं उसे यकीन दिलाना चाहूंगा,,,,,,, कि
अकेला ही मुसाफ़िर कारवां बन जाता है जिस दिन !
उसी दिन मुश्किलों के हौंसले भी टूट जाते हैं !!
( सुलतान भारती )
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