Wednesday, 27 April 2022

( व्यंग्य भारती) "अज़ान से इंफेक्शन "

  ( व्यंग्य भारती)

           "अज़ान से इंफेक्शन"

       अपने देश में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है कि दुनियां हमारी प्रतिभा देख कर सकते में है! जहां दुनियां के क्षुद्र
वैज्ञानिक परमाणु अस्त्र से निजात पाने, ओजोन की क्षतिग्रस्त परत की मरम्मत करने, ग्लेशियर के पिघलने को रोकने, पेय जल संकट  दूर करने और अंतरिक्ष में बस्तियां बसाने जैसे बेकार के कामों में लगे हुए हैं, वहीं हम इन छोटे मोटे पचडो में पड़ने की बजाय सीधे  "हिन्दू मुस्लिम"  के अखंड कीर्तन में लगे हैं - एकहि साधे सब सधे -! विश्व गुरु होने के लिए सुरंग यहीं से खोदनी है! इस काम में अभी कंपटीशन भी नही  है! पता नहीं क्यों, कोई और देश विश्व गुरू होने को आतुर नहीं है !! हमारा लक्ष्य है कि एक बार विश्व गुरु बन  जाएं ,फिर तो किसी भी  'एकलव्य'  से उसका अंगूठा ले लेंगे ! इसलिए हम इसके अलावा और कुछ  बनना भी नहीं चाहते! उधर अमेरिका विश्व गुरु बनने की बजाय चौधरी बन कर परेशान है ! पैसा बांट बांट कर आज कंगाल होने की कगार पर है ! उसे नाटो के देशों को दक्षिणा देनी पड़ती है । विश्व गुरु बनता तो देने की बजाय दक्षिणा से मालामाल हो जाता !
          खैर छोड़िए ! तो,,,,,, हमारे देश में आज कल कुछ विलक्षण सोशल वैज्ञानिक उग आए हैं! वह जनहित में कल्याणकारी खोज कर रहे हैं !  आए दिन एक नई खोज से जनता और जनार्दन को सकते में डाल रहे हैं ! उनकी डिमांड है,- ' हिंदुस्तान में रहना होगा ! तो वंदे मातरम् कहना होगा -!!' ( कुछ लोगों के अड़ जाने के कारण विश्व गुरू बनने में इतना विलंब हो रहा है !) जब कभी देश हित में ऐसी खोज होती है तो टीआरपी का अकाल झेल रही मीडिया का ऑक्सीजन लेवल एकदम से  आत्म निर्भर हो जाता है !  सुबह शाम नफ़रत का समुद्र मंथन तेज हो जाता  है ! बताया जाता है कि इस कोलाहल से प्रजा को कन्फ्यूजन  और  प्रजातंत्र को मजबूती मिलती है ! हम संकल्प ले चुके सनम !!
          इन क्रांतिकारी सोशल वैज्ञानिकों ने दूसरे धर्मों के गेहूं में घुन ढूढने का बीड़ा उठा लिया है , - सारे घर के बदल डालूंगा - की तैयारी चल रही है ! धर्म को समझने का काम बुद्धिजीवी से छीन कर बुलडोजर को दे दिया गया है ! न्याय पालिका में आई क्रांति का श्रेय भी बुल्डोजर को ही जाता है ! वादी प्रतिवादी जितनी देर में एफआईआर की सोचते हैं, उतनी देर में सजा पर अमल हो जाता है , कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे -!
    इन्ही सामाजिक वैज्ञानिकों की ताज़ा खोज अजान से होने वाला "घातक इंफेक्शन"  है ! इस इंफेक्शन से आज 75 साल बाद अचानक बच्चों की पढ़ाई बाधक हो गई है, और देश आगे नहीं बढ़ पा रहा है ! इतना ही नहीं, इसी तीन चार मिनट की लाउड स्पीकर से दी गई अजान की वजह से कुछ लोगों की नींद जा रही है, सरदर्द आ रहा है! हवा की गुणवत्ता ख़त्म हो रही है और स्वास्थ्य और भाईचारे पर बुरा असर पड़ रहा है -! अज़ान  के इतने दुष्परिणाम ढूंढने वाले महापुरुष उसका दो  समाधान बता रहे हैं! ध्वनि प्रदूषण दूर करने का पहला समाधान है कि मस्जिदों से लाउड स्पीकर उतार दिया जाए !  दूसरा सुझाव और भी दिव्य है,- हर मस्जिद के सामने लाउड स्पीकर लगा कर हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए-! आशा है कि इस प्रयोग के बाद भाईचारा बढ़ जाएगा और सम्पूर्ण पृथ्वी  ध्वनि प्रदूषण से  से मुक्त हो जाएगी ! ( इस खोज से पूरी  दुनियां  में हमारी  जय जयकार हो  रही। है !  "नासा" तक के वैज्ञानिक सकते में आ गए हैं !)
              ज़िंदगी के खूबसूरत 24 साल मैंने यूपी के अपने गांव में गुजारे ! हिंदू मुस्लिम की आबादी वाला माहौल ! गांव तो जागता ही था सुबह फजर की अज़ान से ! हर हिंदू और मुसलमान किसान का रूटीन इसी अज़ान से शुरु होता था ! तब बिजली नहीं थी , घरों में घड़ी बहुत कम थी इसलिए इशा की अज़ान  से लोग रात का खाना और सोने की तैयारी शुरू करते थे! जिस दिन अज़ान की आवाज़ सुबह नही सुनाई पड़ती थी, कई लोगों का रूटीन डिस्टर्ब हो जाता था! बगल कई हिंदू बाहुल्य गांव थे, जहां से सुबह शाम मंदिर की सुमधुर घंटियों की आवाजें आया करती थीं! उन गांवों में आज़ भी मेरे बेहतरीन दोस्त हैं! हमने किसी के मुंह से कभी अज़ान के लिए ऐसे इल्जाम नहीं सुने ! आज़ भी शाम की नमाज़ के बाद हिंदू मुस्लिम औरतें अपने नवजात और बीमार शिशुओं को नमाजियों से फूंक डलवाने के लिए मस्जिद के सामने खड़ी नज़र आती है ! ये तस्वीरें ही हमारी गंगा जमुनी रवायत की मजबूत मिसाल और रोशन मशाल हैं!
              तो,,,, ख़ोज चालू है ! लाउड स्पीकर से अज़ान देने पर अभी अंत्याक्षरी अभी चल ही रही थी कि एक नई ख़ोज आ गई! इस बार अज़ान की दो बुनियादी लाइनों पर ज्ञान उड़ेलते हुए इसे ' समस्त धर्मों का घोर अपमान' बता दिया ! नई ख़ोज ने खुलासा कर दिया कि लक्ष्य लाउड स्पीकर नहीं अज़ान है ! ये इंफेक्शन किस दवा से ठीक होगा , देवो न जानति कुतो मनुष्य: ! इस बीमारी पर आकर  विकास के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा खड़ा हो गया है ! धर्म योद्धा सतयुग लाने के लिए कमर कस चुके हैं और नेपथ्य में धर्मयुद्ध का आवाहन जारी है! कभी धर्म ने इंसानियत की परिभाषा तय की थी, आज लहूलुहान इन्सानियत धर्म को देख कर सदमे में है! 
        धर्म योद्धा अब धर्म युद्ध को तैयार है! उसका घोड़ा खड़ा हिनहिना रहा है, पीछे अक्षौहिणी सेना का कोलाहल है ! बीच में जनता चीख रही है --

 'रोटी  कपड़ा और मकान ! 
 कब तक दे  देंगे   श्री मान !!' 

            
 धर्म योद्धा जवाब  दे रहे हैं _

 'राज तिलक की करो तयारी ! 
 आ   रहे   हैं   भगवा धारी '!!

       यानि  इंतज़ार करना पड़ेगा, विकास की बाली अभी पूरी तरह से पकी नहीं है !!

                                     (सुलतान भारती)

Monday, 18 April 2022

(अग्नि दृष्टि) " असहिष्णुता का खौलता लावा"!

"अग्नि दृष्टि"
( संपादकीय)

असहिष्णुता का खौलता लावा

     राम चरित मानस में एक अर्धाली है, - ' जाकी रही भावना जैसी ! प्रभु मूरत देखी त्यों तैसी-' ! अर्थात् हमारी भावना ही हमारी आस्था का मापदंड तय करती है ! आस्था चूंकि संपूर्णता चाहती है और संपूर्णता के लिए समर्पण पहली शर्त है! समर्पण में निश्छलता का समावेश न हो तो आस्था कालांतर में व्यवसायिक हो जाती है! यदि इबादत में समर्पण न हो तो धर्म व्यवसाय बन जाता है! लोक कल्याण की भावना धर्म से डिलीट होते ही विश्वत  कुटुंबकम की भावना खत्म हो जाती है ,।और प्राणी धर्म को अपने हिसाब से चलाने लगता है !  धर्म से दूरी बढ़ते ही इंसान की आस्था और आध्यात्मिक शक्ति का ह्रास होने लगता है , जिनकी पूर्ति के लिए व्यक्ति  अपना आभामंडल बनाने और बचाने के लिए हर अनैतिक और अमानवीय हथकंडा अपना लेता है ! आस्था में एकाग्रता की कमी चारित्रिक संक्रमण का संकेत है, धर्म चाहे कोई भी हो ! आज चारों तरफ़ धर्म को लेकर हाहाकार है! करता इंसान है और इल्जाम धर्म और ईश्वर पर रख देता है !
                   इंसान को कुरान में "अशराफल मखलूक'' ( सर्वश्रेष्ठ प्राणी) कहा गया है ! कुरआन में ईश्वर कहता है - लकद  खलकनल इंसाने फी  अहसने  तकवीम - ! यानि (हमने मनुष्य को सर्वोत्तम तरीक़  से बनाया है!) लेकिन वही इंसान जमीन पर आकर अपना बुद्धि वैभव और विशेषता का प्रयोग निर्माण की अपेक्षा विध्वंस में लगाने लगता है ! हर धर्म को बढ़िया बताने वाला इंसान आज एक दूसरे के धर्म को समाप्त करने को ही सबसे बड़ा धर्म बता रहा है ! सब एक दूसरे के गेहूं में घुन ढूंढने में लग गए हैं ! और इस अधर्म में धर्मगुरु सबसे आगे हैं ! कोई अपनी गलती मानने को राज़ी नहीं ! सदियों से प्यार मुहब्बत भाईचारे का अलमदार बना हमारा देश इसी धार्मिक उन्माद का इस वक्त दंश झेल रहा है ! इसका ताज़ा ज़ख्म इसी राम नवमी को कई जगह देखा गया !
                इस बार की रामनवमी सदियों से चली आ रही रामनवमी से बिलकुल अलग थी !. शांत, स्निग्ध, आस्था से ओतप्रोत होने की जगह एक संप्रदाय विशेष के प्रति नफरत और आक्रामक इरादों से भरी हुई ! आस्था की जगह आक्रामकता से लबरेज़ नारे - ' हिंदुस्तान में रहना होगा ! तो वंदे मातरम् कहना होगा -!' ये नारे एक इंडिकेटर थे कि इस रामनवमी के केंद्र बिंदु में आस्था नहीं आक्रामकता है ! शांति और सद्भाव नहीं शरारत है। रास्ते में पड़ने वाले मंदिरों पर रुकने की बजाय सिर्फ़ मस्जिद पर पहुंच कर 'आस्था' प्रस्फुटित होती रही ! शायद आज़ अगर खुद मर्यादा पुरुषोत्तम वहां होते तो गुनहगार को अपने हाथ से दंड देते! 
          हर जगह एक जैसी घटना देखी गई ,- जलूस का मस्जिद पर आकर रुक जाना, उत्तेजक नारे बाजी करके एक  संप्रदाय  विशेष को टकराव पर विवश कर देना  !  पुलिस का तब तक तमाशाई बनकर खड़े रहना, जब तक कि जुलूस के सशस्त्र लोग अपने मंसूबों में कामयाब न हो जाएं! बाद में पीड़ित पक्ष पर पुलिस और प्रशासन द्वारा एक तरफा कार्रवाई ! और,,,,इन सब में मीडिया की भूमिका सबसे ज्यादा शर्मनाक देखी जा रही है! ज्यादातर चैनल पीड़ित पक्ष के लोगों को ही दंगाई, आतंकी और साजिशकर्ता साबित करने में पसीना बहा देते हैं ! दो एक चैनल जो सच बोलते हैं वो नक्कारखाने में तूती की आवाज़ से ज़्यादा अहमियत नहीं रखता ! आज़ अगर सोशल मीडिया न होती तो जाने क्या होता!
         मैं योगी जी की तारीफ़ करूंगा इस विषय में ! देश के सबसे बडे़ और सबसे संवेदनशील प्रदेश में रामनवमी के मौके पर कहीं भी तशद्दुद का कोई वाक्या नज़र नहीं आया, बल्कि कई संवेदन शील इलाकों में मुस्लिम समुदाय अपने हिंदू भाईयों पर फूल की बारिश करते नज़र आए ! ये योगी आदित्यनाथ जैसे सख्त
  प्रशासक ही ऐसा करिश्मा कर सकते हैं ! सुनकर और देख कर यकीन पुख्ता हो जाता है कि प्रशासन अगर सख्त और संजीदा हो तो अपराधी का मंसूबा  कभी कामयाब नही हो सकता !!
           बहुत पहले देवानंद और जीनत अमान की एक फिल्म आई थी - हरे रामा हरे कृष्णा -! उसका एक गीत याद आ रहा है, - ' देखो वो दीवानों ऐसा काम ना करो! राम का नाम बदनाम न करो -'! शायद आज इस गीत पर सबसे ज्यादा अमल करने की ज़रूरत है ! इन्हीं पंक्तियों के साथ - समानता , सहिष्णुता,सौहार्द, सामाजिक संवाद,और सामप्रदायिक एकता की हम कामना करते हैं  !! आओ, हम सब  मिल कर  नई सोच के साथ एक नए  सूरज  का इस्तकबाल करें !! 
       अवध के शायर एम के  ''राही" का एक शे'र है ---

हिंदू है अगर जिस्म तो धड़कन है मुसलमान!
दोनों  के  इत्तेहाद  से कायम  है  "हिंदुस्तान"!!

              ( सुलतान भारती)

Tuesday, 12 April 2022

(व्यंग्य भारती)। निंबुडा निंबुड़ा निंबुडा !

(व्यंग्य भारती)   " निंबुड़ा निंबुड़ा निंबुड़ा"!!!

            मैं निंबू का विरोधी नहीं हूं ! निंबू शायद मेरी फूड चेन में सबसे ऊपर है! मैं निंबू रोज़ इस्तेमाल करता था, पर विगत तीन दिन से नींबू  मुझे निचोड़ रहा है ! वैसे आत्मनिर्भर तो मैं तीन साल पहले ही हो गया था, लेकिन इधर रमजान और नवरात्रि के संगम में निंबू ऐसे टपका कि मंहगाई विश्वगुरु होते होते बची। फिर भी मैं निंबू की निन्दा नही करना चाहता था, क्योंकि मंहगाई तो आत्मा की तरह अजर अमर है!  न आग इसे जला सकती है, न पानी इसे डुबो सकता है! ( बल्कि कई सरकारें इसमें खामखा डूब गई हैं! ) ऐसा भी नहीं है कि देश पहली बार मंहगाई की मुंह दिखाई दे रहा है! हकीकत तो ये है कि महंगाई विपक्षी दलों के लिए जीवनदायिनी ऑक्सीजन की तरह है! इसलिए हे पार्थ ! नींबू के महंगा होने का शोक मत करो ! कभी तुम नींबू को लटकाते थे -आज़ नींबू ने तुम्हें लटका दिया है!
         विचित्र खबरें आ रही हैं , गिनीज़ बुक वाले सकते में हैं! यूपी की एक सब्ज़ी मंडी की ख़बर है, चोरों ने पूरे पचास किलो नींबू का बोरा चुरा लिया ! पूरा प्रदेश सकते में है - गजब भयो रामा जुलम भयो रे। भरे अप्रैल में कलियुग आ गया !! प्रशासन सकते में है, बुलडोजर खुद बाबा से पूछ रहा है,.. ' किसके गोदाम की कपाल क्रिया करनी है?' प्रदेश के निंबू व्यापारी अपना अपना गोदाम टटोल रहे हैं कि कहीं चोर ने निंबू का बोरा इधर ना छुपा दिया हो! बुलडोजर ने व्यापारी को भी सात्विक बना दिया है ! कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि नींबू का दाम सुनकर एक दिन आदमी का चेहरा पीला पड़ जाएगा ! अगर यही स्थिति रही तो कुछ दिन बाद लोग निंबू को लॉकर  में  रखने  लगेंगे  और अखबारों में खबरें  कुछ  इस  तरह होंगी,--' एयरपोर्ट पर अमेरिका से आए एक तस्कर के पाजामे से आधा किलो नींबू बरामद -!' ब्रेकिंग खबर ये भी हो सकती है , - ' चीन से आए नकली नींबू के पचास कंटेनर पकडे गए ! भारतीय अधिकारियों ने चीन के राजदूत को कसकर फटकार लगाई ! राजदूत ने घिघियाते  हुए सफाई दी, - ' क्या करूं सर ! दिल है कि मानता नहीं ! "
           परसों वर्मा जी नाराज़ होकर मुझसे कह रहे थे, -'' अभी तक दुनियां यही जानती थी कि निंबू सिर्फ दूध फाड़ता है , लेकिन आज सबको पता चल गया कि नींबू का दाम सुनकर  भी बहुत कुछ फट जाता  है !" मेरा अपना सरदर्द है, वर्मा जी का अपना ! रमज़ान में निंबू करैले की तरह नीम पर चढ़ा बैठा है ! ऐश्वर्या राय ने 'निंबुड़ा निंबुड़ा' गाकर नींबू का भाव बढ़ा दिया ! जानें कौन सा निगोड़ा नींबू था़ जिसे बेचने के लिए  ऐश्वर्या ने ऐसा गाना गाया था ! आज़ मंडी में नींबू ऐश्वर्या राय की तरह सेलेब्रिटी हुआ पड़ा है और आदमी टूटे मनोबल के साथ सकुचाया हुआ दुकानदार से पूछ रहा है,- ' निंबू क्या भाव है?'' निंबू से ज़्यादा दुकानदार का पारा चढ़ा हुआ है,- ," दो सौ सत्तर रुपए हैं जेब में !!"  दाम सुनकर ग्राहक को लगता है कि सायकल का पिछला पहिया पंचर हो गया है ! वो धीरे से पीछे हटता है और  दुकानदार अपराजेय  होकर पीछे से बोली बोलता है ,- ' घर में नहीं दाने , अम्मा चली भुनाने -''!
        चार दिन पहले अवध ( सुल्तानपुर) के पत्रकार सनाउद्दीन ने निंबू के नेशनल रुतबे के हिसाब से अपने पत्रकार मित्रों से रेट जानना चाहा तो सारे देश की मंडियों का जो तापमान नापा गया, उसके मुताबिक स्वस्थ हिमोग्लोबिन  वाले  नींबू  280/ से  300/ रुपए प्रति किलो ! विकलांग नींबू 200/ से 230/रुपए प्रति किलो, और गन्ने  के जूस में इस्तेमाल होने वाले सूखा पीड़ित नींबू का रेट दस रुपया प्रति नींबू पता लगा।! लगता है जैसे विश्व गुरु होने की सबसे ज्यादा जल्दी "नींबू" को ही है !

वो गाना याद आ रहा है - प्यास भड़की है सरे शाम है जलता है जिगर -! प्यास भड़की है तो जिगर पर एक चुटकी नमक डाल दो ! जिगर से कह दो कि नींबू से दूर रहे, दिल जलता है तो जलने दे,,,,,,,! बारह रोजे निकल गए ,  तेरहवे रोजे की पूर्व संध्या पर बेगम ने पंद्रह रुपए देते हुए मुझे आदेश दिया, - " मिस्टर भारती ! कहीं से भी तीन  नींबू खरीद कर लाओ "! तब से ऐसा लग रहा है गोया किसी ने कांग्रेस के डैमेज कंट्रोल करने का काम मुझे दे दिया है ! इतना पसीना तो हातिमताई को भी उस दिन  न आया होगा, जब हुस्न बानो ने उन्हें सात सवालों का जवाब लाने को कहा था !

          काश ! आज़ मेरे हाथ में अलादीन का चिराग होता !! ओ भूमंडल के सस्ते निंबुओं - आवाज़ दो कहां हो !! त्राहिमाम दोस्तों ! मैं अभी भी सब्जी मंडी में घूम रहा हूं ! बगैर नींबू  खरीदे घर जाऊं कैसे !!

                       ( सुलतान भारती)

Sunday, 10 April 2022

प्राक्कथन

                       प्राक्कथन

          (    जीस्त    ए    डॉली    )

            मैं शायद डॉली को दो साल से जानता हूं ! वैसे मुलाकात छे सात महीने पहले गांव जाने पर हुई ! बेहतरीन सोच, शब्द, संवाद, सादगी और,,,, शायरी! मिलने पर यकीन करना मुश्किल था कि ये खूबसूरत छोटी बच्ची इतनी कम उम्र में अल्फाजों की इतनी आकाशगंगा  तामीर कर सकती है!! उसके अशआर में  उर्दू भाषा के कई शब्द मुझे हैरत में डाल देते थे ! फिर मुझे पत्रकार इम्तियाज़ खान मिले तो पता चला कि किसान की इस बेटी ने उर्दू इम्तियाज़ खान साहब से सीखी थी !सुन कर मुझे अपने उस्ताद मरहूम डी पी पांडेय जी याद आ गए, जिन्होंने मुझे. 'सुलतान भारती' बनाने में एक अहम किरदार निभाया था ! अवध की जरखेज़ साहित्यिक मिट्टी की यही समुदायिक खासियत है जो गंगा जमुनी रवायत की जड़ों को रूहानी ताक़त बख्शती है !
          सात महीने पहले मैं जब पहली बार डॉली से मिला , तभी मैने उसे अपना संकलन निकालने की सलाह दी थी, क्यों कि मैं चाहता था कि उसकी रचनाओं को पंख मिलें और उसके ख्वाब बिसुहिया (उनका गांव) से निकल कर विश्व भर में परवाज़ करें!
      डॉली की रचनाओं में कई भाषाओं के शब्द सितारे मिल जाएंगे ! उसके रचनाओं की कायनात  दर्द ज़ख्म सिसकियों की आहट से भरी हैं ! डॉली दर्द के इस कायनात के बारे में बेबाकी से लिखने में अपनी उम्र से भी कहीं आगे निकल जाती हैं ---

गमज़दा ख़्वाब ढोते रहे उम्र भर !
मौत के बाद भी कोई राहत नहीं !!

      वह आंसू और उम्मीद की अलमबरदार हैं!  अपनी रचनाओं में हालाते हाजरा पर सवाल उठाते हुए डॉली बड़ी कद्दावर नज़र आती हैं ---  

हर शख़्स को है एक ही मंज़िल की जुस्तजू !
'वाइज'  बताए   रास्ते  क्यूं   हैं  जुदा  जुदा !!

      "जीस्त ए डॉली" पाठकों की अदालत में है!   देख कर अच्छा लगा कि डॉली के पहली ही किताब को साहित्य और सियासत जगत के कई चमकते सितारों के सशक्त भावात्मक आशीर्वाद मिलें हैं ! आगे डॉली को इसी कहकशां का एक सितारा बनना है !  डॉली की हिम्मत, साहित्यिक प्रतिभा,  आसमान छूने की आशावादिता , बेखौफ अंदाज़ और सतत संघर्ष के हौंसले को सलाम करते हुए मैं उसे यकीन दिलाना चाहूंगा,,,,,,, कि 

अकेला ही मुसाफ़िर कारवां बन जाता है जिस दिन !
उसी  दिन  मुश्किलों  के  हौंसले  भी  टूट  जाते  हैं !!

                           (  सुलतान भारती )