Friday, 25 February 2022

( व्यंग्य भारती) " कड़ी नज़र" की धीमी कवायद !

(व्यंग्य भारती)

 "कड़ी नज़र "की सुस्त कवायद"

      अमेरिका कह रहा है कि उसने स्थिति पर कड़ी नज़र रखी हुई है! फ्रांस भी दावा कर रहा है कि उसने भी कड़ी नज़र रखी हुई है। यूके, कनाडा, जर्मनी और दीगर ताकतवर मुल्क भी कड़ी नज़र रखे हुए हैं! नाटो के दूसरे सहयोगी, जिनकी सीमा रूस   से नहीं लगती वो और भी कड़ी नज़र रख रहे हैं ! गिरती  हुई अर्थ व्यवस्था के कारण पाकिस्तान की नजर कुछअर्थ ज़्यादा कमज़ोर हो चुकी है, इसलिए इमरान खान सीधे रूस पहुंच गए ताकि फ़ैसला कर सकें कि कौन सी नजर रखने से लोन लिया जा सकता है। कुछ ऐसे देश भी कड़ी नज़र रखने का दावा कर रहे हैं जो नज़राने से गुजारा करते आए हैं ! बहुत कम देश ऐसे बचे हैं जो कड़ी नज़र नहीं रख पा रहे हैं! ऐसे लोग युद्ध का मानसून देख कर अभी ये फ़ैसला नहीं कर पा रहे हैं कि निंदा करें या कड़ी नज़र रखें ! कहीं ऐसा न हो कि जोश और जल्दबाजी में कड़ी नज़र उठा लें और नज़र फ्रेक्चर हो जाए!
        अमेरिकन राष्ट्रपति जो वाइडन  रोज सुबह उठ कर एक बार कड़ी नज़र रखते हैं ! यूक्रेन के साथ साथ दुनियां को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए कि वाणप्रस्थ आश्रम जाने की उम्र में भी वो कड़ी नज़र उठा रहे हैं ! ( इस सादगी पे कौन न मर जाय ऐ खुदा! लड़ते हैं मगर हाथ में तलवार भी नहीं  ! ) हम भी ' वाइडन चच्चा' के स्टैमिना की दाद देते हैं ! एक हमारे वर्मा जी है , अप्रैल में भी दोपहर तक रजाई नही छोड़ते ! दुनियां के कई देश अभी भी कन्फ्यूजन में हैं कि कड़ी नज़र उठाने का शुभ मुहूर्त  आया  या  नहीं। इस  असमंजस  में वो  बार  बार ' कड़ी नज़र' के करीब जाते हैं और फिर बगैर "उठाए" वापस आ जाते हैं! इस कतार में फ्रांस सबसे आगे खड़ा है!  जब कड़े कदम उठाना ' पिनाक' बन जाए तो कड़ी नज़र वाली- 'दो बूंद ज़िंदगी की'- दी जाती है ! युक्रेन को जो वाइडन वही ड्रॉप दे रहे हैं!
        युक्रेन को  अमेरिका क्यों बर्बाद देखना चहता है ! आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच हुए जंग में भी वह इसी शिखंडी भूमिका में नज़र आया था, जब टर्की के दिए ड्रोन आर्मीनिया को तबाह कर रहे थे तो अमेरिका और उसके नाटो सैन्य सहयोगी कड़े कदम और कड़ी नज़र रखने की कवायद में लगे हुए थे ! युक्रेन की पीठ ठोंक कर उसे बारूद के हवाले कर अमेरिका जाने पुतिन को क्या "कड़ा सबक" सिखाना चहता है। सद्दाम की पीठ ठोक कर इसी तरह कुवैत पर कब्ज़ा करवाया था और फिर सद्दाम को विलेन साबित कर उसका खात्मा ! यही खेल लीबिया और अफगानिस्तान मे खेला गया! लेकिन इस बार रूस सामने है जो कड़े कदम, कड़ी नज़र और कड़े प्रतिबंध का आलाप  लगाने वालों को सीधे  "ऐतिहासिक अंजाम भुगतने" की धमकी दे रहा है ! ऐसे में यूएस और उसकी चिलम भरने वाले मुल्क कड़ी नज़र से काम चला रहे हैं ! देखो ये कड़ी नज़र की खिचड़ी कब तक पकाई जाती है !
          अमेरिका को दुनियां माफ़ नहीं करेगी! एक हंसते मुस्कराते खुशहाल देश को लोग खंडहर में बदलते देख रहे हैं और इस हालत को पैदा करने वाला अमेरिका कड़ी नज़र और कड़े कदम की लफ्फाजी पर अटका हुआ है ! रणछोड़दास की उसकी ये भूमिका के उलट रूस हलफ और हमला दोनों मोर्चे को और आक्रामक बना रहा है ! अब वो अपने समस्त विरोधिओ  और संभावित दुश्मनों को परमाणु युद्ध की धमकी दे रहा है ! नाटो की थू थू ज़्यादा बढ़ी तो पूर्वी यूरोप के चोर दरवाजों से युक्रेन को हथियार भेजा जानें लगा !
       आख़र लोग  ' कड़ी नज़र' को  रखते कहां हैं जिसे उठाने में इतनी दिक्कत आती है। हम तो समझते थे कि सिर्फ हमारे देश में कड़ी नज़र रखने की परंपरा है ! लेकिन दिखाई पड़ गया कि अमेरिका तक शागिर्द बन चुके है - अब जाके आया मेरे, बेचैन दिल को करार  ! मुझे लगता है कि कड़ी नजर को पास में रखने की बजाय दूर कहीं ताला मार कर रखते हैं, जिससे गुस्सा लगने के बावजूद जल्दी न उठाया जाए!  हमारे देश में भी भी कड़ा कदम उठाने से पहले बड़ी सावधानी और विचार विमर्श किया जाता है! कड़ी नज़र से कड़े कदम उठाने तक कभी कभी सरकार का कार्यकाल पूरा हो जाता है ! कड़ी नज़र को कड़े कदम तक पहुंचने में कितना वक्त लगता है, इसका पता  मिर्ज़ा ग़ालिब को भी था ! तभी तो वो कहते हैं,- आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक -'! 
          यूक्रेन की  "आह" को भी एक उम्र की दरकार है, अभी तो जुम्मा जुम्मा आठ दिन भी नहीं हुए ! रहीम खानखाना ने पहले ही कह दिया है, - धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय -'! कड़ी नज़र की बैलगाड़ी चल रही है , इंशा अल्लाह सांस उखड़ने तक कड़े कदम तक पहुंच जायेगी - बलम जरा धीर धरो - ! ( जल्दी का काम शैतान का होता है !) रूस को बड़ी जल्दी पड़ी है ! इतनी जल्दी पाजीपन से परमाणु बम की बातें करने लगा ! हमारे देश में भी सब कुछ बड़े इत्मीनान से होता है! अभी पीछे कोरोणा काल में जब लाखों मजदूर पैदल भागने लगे तो उसपर भी कड़ी नज़र रखी गई थी! शत्रुता वश कोंग्रेस ने उनके लिए बसें भेज दी थी ! राज्य सरकार ने कड़ी नज़र रखी तो- ड्राइविंग लाइसेंस, परमिट, पॉल्यूशन, लाइट, सर्टिफिकेट सब में कोरोना पाया गया! बसें खड़ी रह गईं और मज़दूर पैदल चलने में आत्मनिर्भर होते रहे ! अब उसी तर्ज पर यूक्रेन को आत्म निर्भर होने को मजबूर होना पड़ रहा है! किसान, मजदूर,छात्र , नौकरी पेशा और गृहस्थ से लेकर राष्ट्रपति तक हथियार उठा कर मैदान में उतर रहे हैं!

        यूक्रेन और रूस की तबाही का आंकलन दुनियां कर रही है , इस युद्ध में न उतर कर अमेरिका अब बहुत कुछ खोने जा रहा है ! रूस की फतह से दुनिया में शक्ति
संतुलन की नई परिभाषा तामीर होगी और विश्व बाज़ार से अमेरिकी दबदबे की तस्वीर उतर जाएगी ! यूक्रेन की तबाही के साथ इस जंग का समापन अमेरिकी  वर्चस्व के खात्मे की शुरुआत होगी !     

       ( सुलतान भारती)

1 comment:

  1. बेहतरीन व्यंग्य। पैनी नजर। वाह ,👌👌

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