"सिलेंडर फाइल्स"
मैंने कश्मीर फाइल नहीं देखी ! इतनी ब्लंडर मिस्टेक करने के बाद क्या पता मैं जागरूक और बुद्धिजीवी कैटेगरी में रह पाया हूं या तथाकथित 'लिब्रांडू' होकर रह गया ! ( कुछ सालों से ऊर्जावान विद्वानों ने खुदाई करके कई शब्द ढूंढ निकाले, और अपने इस योगदान से हिंदी साहित्य को काफी समृद्ध बनाया !) आप घर से निकलते वक्त नॉर्मल हो सकते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर महज़ एक पोस्ट डाल कर शाम तक लिब्रांडू हो सकते हैं! तो,,, अब अगर कश्मीर फाइल नहीं देखा, या देख कर चुप रहे तो भी आप लिब्रांडू हो सकते हैं! इन्फेक्शन से बचना है तो कश्मीर फाइल्स देखिए , ये जनहित और जनजागरण के लिए मुफीद बताई जा रही है ! नींबू की तरह आपके दाग दूर कर देगी !! आप लिब्रांडू से फौरन बुद्धिजीवी बन जायेंगे!!
सरकार चाहती है कि हर नागरिक को कश्मीर फाइल्स देखनी चाहिए ! इससे होने वाले प्रचंड फ़ायदे बहुत हैं ! कई शहर और सिनेमा हाल में ' फ़ायदा ' नजर आ चुका है ! शायद अभी चीनी कम है , इसलिए जागरूक नागरिकों से अपील की जा रही है कि सिनेमा हॉल में जाकर फिल्म देखें ! ( फिल्म में 1990 में कश्मीरी पंडितों के ऊपर हुए हमले और उनके विस्थापन को दिखाया गया है ! ) 32 साल की लंबी खामोशी के बाद अचानक ये दर्द सतह पर नज़र आया है! उस वक्त देश में वीपी सिंह की सरकार थी जिसे भाजपा ने समर्थन दे रखा था ! कश्मीर के गवर्नर थे जगमोहन ! ऐसी धर्म संसद के होते हुए भी इतना सब कुछ जाने कैसे हो गया ! अगर 32 साल बाद कश्मीर फाइल्स न बनती तो अपराधी का सुराग ही न मिलता !!
कुछ बुद्धिजीवी अपना दिमाग़ लगा रहे हैं ! वो सवाल खडा कर रहे हैं,-" बीच में 1990 क्यों नहीं नज़र आया ?" क्या वाहियात सवाल है! वो दोहा नहीं सुना - ' माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय -'! अभी तक 'ऋतु' नहीं आई थी, अब ऋतु आई है तो खैंची भर भर 'फल' प्राप्त हो रहा है ! फल के मामले में कर्नाटक सबसे आगे निकल गया है! फिल्म से विकास और भाईचारे को कितनी दिव्य प्रेरणा मिल सकती है , इसकी कल्पना प्रोड्यूसर को भी नहीं रही होगी ! अब कई और युगपुरुष ऐसी प्रेरक "फाइल्स" बनाने की सोच रहे हैं ! अभी विकास में जो कमी रह गई है, वो आने वाली 'फाइल्स ' में पूरी कर दी जाएगी!
केजरीवाल ने मज़ा किरकिरा कर दिया ! वो सुझाव दे रहे हैं कि अगर सबको फिल्म देखना ज़रूरी है तो क्यों न कश्मीर फाइल्स को नेट पर या सोशल मीडिया पर डाल दिया जाए -! क्यों डाल दें ? फ्री के आगे आपको कुछ सूझता ही नहीं ! सिनेमा हॉल में जाकर, तीन सौ रुपए के टिकट और अस्सी रूपए के पॉपकॉर्न के साथ फिल्म देखने से को विकास और भाईचारे की समझ आती है, वो फ्री में कहां आयेगी !! केजरीवाल जी कह रहे हैं कि फिल्म देखने से बेहतर है कि विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास कराया जाए -! काहे जल्दी मचाते हो! धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय -! पहले फिल्म -बाद में पुनर्वास !!
( अब बात करते हैं 1990 में हुए अमानवीय नरसंहार की ! उस जुल्म और ज्यादती के गुनहगारों को बक्श देना आईन और इन्सानियत के मुंह पर तमाचा है ! इस्लाम कहता है, - ज़ालिम पर रहम करना मजलूम पर जुल्म करने जैसा है -!! गुनहगारों को जुल्म के हिसाब से सजा मिलनी चाहिए , और विस्थापितों का पूरी ईमानदारी के साथ पुनर्वास होना चाहिए ! लेकिन स्थान और व्यक्ति विशेष की जगह सैकड़ों किलोमीटर दूर एक संप्रदाय विशेष को निशाना बनाने से इंसाफ की नीयत पर शंका स्वाभाविक है ! यह फिल्म अधूरा आईना है, जो इंसाफ और इंसान को भ्रमित और दिशाहीन कर रही है !)
और,,,,, फिल्म को फ्री में देखने के नुकसान ज़्यादा हैं ! नेट या सोशल मीडिया पर फ्री में ये फ़िल्म दिखाने से विकास और भाईचारे में उछाल आने की जगह संक्रमण हो सकता हैं! मान लो प्राणी घर के अंदर अपने फ़ोन पर कश्मीर फाइल्स देख रहा है ! इतने में डिलीवरी ब्वॉय एलपीजी गैस सिलेंडर लेकर आता है , उसका बढ़ा हुआ दाम सुनकर फिल्म का मज़ा ही किरकिरा हो सकता है ! अब घर के मालिक का दिमाग़ विकास और भाईचारे से फिसल कर मंहगाई की ओर जा सकता है! इसलिए हे केजरीवाल बाबू ! जनहित और जनजागरण के लिए फ्री का मोह त्याग दो !
'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का अनुसरण करो !!
( सुलतान भारती )
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