Sunday, 24 October 2021

व्यंग्य "भारती" "लक्ष्मी मैया लिफ्ट करा दे"

व्यंग्य "भारती"
              " लक्ष्मी मैया लिफ्ट करा दे" 

       मुझे उल्लू भले पसंद हों पर उल्लू को मैं पसंद नहीं हूं !  हर बार दीवाली आने से पहले मुझे बड़ी उम्मीद होती है कि इस बार उल्लू मेरी रिक्वेस्ट फाइल आगे फॉरवर्ड कर देगा , पर पता चला कि - कारवां निकल गया गुबार देखते रहे! मोहल्ले में मैं फिर आत्मनिर्भर होने से रह गया ! उधर हर साल  की तरह इस साल भी "पांचू सेठ" ने दीवाली की रात मे जुआ खेला और अगले दिन गरीबों की झुग्गियों में जाकर मिठाई बांटी - रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई -!
          तो जनाब मैं बता रहा था कि उल्लू मुझे बिल्कुल पसंद नहीं करता, उसकी वजह से हर साल मेरिट सूची में होते हुए भी मै  लिफ्ट होते होते रह जाता हूं । मुझे ऐसा लगता है कि उल्लू हर बार मेरी फाइल पर 'डाउटफुल' लिख देता है ! लक्ष्मी जी पूछती होंगी, - " डाउट फुल ! कौन है ये ?"
     " इसका नाम सुलतान भारती है, बड़ा खतरनाक आदमी है " !!
   " कैसे ?" 
    " लेखक है !  आपकी धुर विरोधी सरस्वती जी के खेमे का आदमी है !"
         " कभी मेरे बारे में भी कुछ लिखा है ?"
      "लिखता तो मैं इसकी फाइल पर  डाऊटफुल कभी न लिखता ,- ' उल्लू ने  मेरी   फाइल  हटाते  हुए कहा होगा ,-' ये आदमी हमेशा सरस्वती जी की तारीफ़ लिखता रहता है !"
              इतना कहकर उल्लू ने मेरी फाइल की जगह ट्रैफिक पुलिस के एक दरोगा की फाइल  रखते हुए कहा होगा , - " इस पर कृपा कर दें ! हर वक्त इसकी जबान पर एक ही नाम रहता है,- श्री लक्ष्मी जी सदा सहाय - !"
        " क्या चाहता है"?
      " उसी जनसेवा में अपने दोनों बेटों को लाना चाहता है , जिसमें खुद लगा है !"
      इस तरह हर साल दीवाली पर उल्लू जीत जाता है और मैं आत्मनिर्भर होते होते रह जाता हूं !
     पिछली दीवाली पर मेरी फाइल अटका कर मुझे चिढ़ाने के लिए अगले दिन उल्लू मेरे घर की मुंडेर पर आकर बोलने लगा । उसकी आवाज़ सुन कर मैं बाहर आया !   उल्लू  मुझे  देखते  ही  जानबूझ  कर   गाने  लगा ,- " जानें फिर क्यूं जलाती है दुनियां मुझे "!
     बिलकुल ताजा सवेरा था, नीम के पेड़ पर ओस की बूंदें तक अलसाई नज़र आ रही थीं! अन्दर के गुस्से का लावा पीते हुए मैं मुस्कराया , " सुबह  सुबह  तुम्हारा मनहूस दीदार ! मौला जानें क्या होगा आगे "!
     "बधाई हो, तुम्हारी फाइल रिजेक्ट हो गई है ! तुम लिखना छोड़ कर पकौड़े क्यों नहीं बेचते !"
मैं गुस्से में कोयले की तरह सुलग रहा था, फिर भी आग पीते हुए मुस्कराया, -"  घटिया प्राणी की तुच्छ सोच ! जाने लक्ष्मी जी तेरे जैसे पनौती को कैसे झेल रही हैं !!"
    " अंदर से तुम कितना सुलग रहे हो, इस चीज़ का मुझे पूरा अंदाज़ा है ! अगर इस वक्त कोई तुम्हारे श्रीमुख में थर्मोमीटर रख दे तो वो फट जाएगा ! ख़ैर - भाभी जी घर पर हैं ?"
        " कौन भाभी! किसकी भाभी ?"
 " तुम्हारी बीवी, मेरी भाभी ! मुझे बड़ी सहानुभूति है भाभी जी से ! एक लेखक की बीवी होना किसी सज़ा
 से कम नहीं है ! एक सुन्दर, सुशील और संस्कारी महिला ने भला तुम्हारे अंदर क्या देखा था ?"
     " अब तुम मेरे घर के मामले में दख़ल दे रहे हो , औकात में रहो !!"
       " तुम्हें शुगर है, गुस्सा अफोर्ड नहीं कर पाओगे ! बाई द वे - तुम लेखकों की एक आदत मुझे कतई पसंद नहीं है "!
       " क्या ?"
     " तुम लोगों को पूरी दुनियां पर गुस्सा आता है! सारी व्यवस्था निरंकुश और भ्रष्ट नज़र आती है ! हर स्वस्थ गेहूं के अंदर घुन ढूंढने की बीमारी है! वर्तमान की अपेक्षा तुम्हें हर बार अतीत कुछ ज़्यादा सुनहरा नज़र आता है ! भाभी जी की कसम ! कल्पनाओं में जीना छोड़ दो "!
     " कल्पना की बात तेरे जैसे उल्लू की समझ में कभी नहीं आयेगी ! 'कल्पना ' जीवंत और सक्रिय मानसिकता का प्रमाण है, कल्पना - हर निर्माण का भ्रूण है और ' कल्पना ' ही प्रत्येक आविष्कार के जन्म लेने की प्रारंभिक प्रक्रिया है ! लेकिन ये गूढ़ बातें तेरे जैसे मूढ़ के भेजे में कहां आयेंगी "!
       " अपनी पीठ इतनी मत ठोंको की स्पाइनल कॉर्ड पर असर पड़े ! कल्पना के कोलंबस , एक हकीकत और सुन लो ! सुखद कल्पना अंतत: बहुत तकलीफ देती हैं ! खैर - भाभी जी घर पर हैं ?"
      " क्यों ?" 
    "  ईद पर उन्होंने मुझे स्पेशल ड्रायफ्रूट वाली सूतफेनी खिलाई थी !"
      " बदले में तूने मेरी फाइल रिजेक्ट करवा दिया "!
  अचानक उल्लू गंभीर हो गया, - ' एक्चुअली फाइल देखते ही मुझे तुम्हारा चेहरा याद आ जाता है ! विरोधी खेमे के आदमी की जनसेवा मैं नहीं कर सकता ! अगली दीवाली पर अपनी फाइल पर तुम भाभी जी का नाम लिख देना "!
        " उससे क्या होगा ?"
   ' फाइल सैंक्शन हो जायेगी ! और हां, तुम्हारे नाम से एक कविता लिखी है, अगली दीवाली पर फाइल में सबसे ऊपर इसे लिख देना ! फाइल खोलते ही लक्ष्मी जी साइन कर देंगी ! कविता सुनो, बीच में टोकना मत "!

 और उल्लू शुरू हो गया ,,,,,,

"लक्ष्मी मैया लिफ्ट करा दे!
कोठी बंगला गिफ्ट करा दे !!

संगम विहार से ऊब गया हूं !
नॉर्थ ब्लॉक में शिफ्ट करा दे!!       लक्ष्मी मैया,,,,,

रामराज  का  चोला पहने !
रावण को वनवास दिला दे !!,,,,,,,,,,, लक्ष्मी मैया,,,,,,

प्यार   मुहब्बत   भाईचारा !
घर घर की पहचान बना दे!!,,,,,,,,,, लक्ष्मी मैया,,,,,,,,,

सूखे ओंठ सिसकती आंखें!
झोपड़ियों  में  दिए जला दे !!,,,,,,,,,, लक्ष्मी मैया,,,,,,,,

इस दीवाली  बस इतना ही !
निर्धन को "सुलतान"बना दे !!
                  लक्मी मैया लिफ्ट करा दे !!"

        कविता सुना कर  "उलूकराज" उड़ गया और मैं तब से सोच रहा हूं कि बुद्धिजीवियों को आख़र कब तक ये उल्लू  ओवरटेक करते रहेंगे!!
                                          (सुलतान भारती)







Tuesday, 19 October 2021

व्यंग्य "भारती" माय नेम इज़ " ख़ान "

व्यंग्य "भारती"
       माय नेम इज़ "ख़ान"

        एक नुक्कड़ की दुकान पर चल रही चर्चा,,,,,,

    "आर्यन खान के पास चिलम मिली थी या गांजा ?"              'कुछ नहीं' !  
" कुछ तो मिला ही होगा , ' दिल धक धक गुटखा'जैसी कोई चीज़  ?"
     " एक अदद बीड़ी भी नही मिली, जो  जिगर वाली आग से सुलगाई जाती ।"
   ' फिर काहे एनसीबी वाले गांजा फूंक रहे हैं बचवा ?"
" चच्चा ! बात ई है कि आर्यन ने फ़ोन पर ड्रग की चर्चा की थी ! इसी जुर्म में उसे आजीवन कारावास देने का समुद्र मंथन चल रहा है !"
    " ऐसा सख्त कानून कब से लागू हुआ ?"
" देर आयद दुरुस्त आयद ! आर्यन खान से इस कानून की शुरुआत हो रही है ! देश की युवा पीढ़ी नशे से मुक्त हो, इसके लिए एनसीबी इतना कठोर परिश्रम कर रही है ! शाहरूख खान को तो खुश होना चहिए चच्चा  !"
   " काहे कुफर बोलते हो बचवा ! बगैर नशा पत्ती के बरामद हुए बच्चे को जेल भेज दिया गया और ऊपर से कहते हो कि बाप को खुश होना चाहिए।" 
      " बगैर गुनाह के गांधी जी ने भी सजा काटी थी ! उनके पास भी अंग्रेजों को कोई पुड़िया नहीं मिली थी "!
     " तो क्या बच्चे को गांधी जी समझ कर पकड लिया गया  है ! ऐसी मुखबिरी किसने की बचवा ?"
   " अंग्रेजों की हुकूमत में गांधी जी के दुश्मन कम थे, आज ज़्यादा हैं ! बहुत सारे लोग गांधी जी की चार्ज शीट लिए घूम रहे हैं! अगर मिल गए तो छोड़ेंगे नहीं ! "
      " गांधी जी ने आखिर बिगाड़ा क्या है ?"
               " उनके अपराध का खुलासा धीरे धीरे हो रहा है। पहले जो इतिहास लिखा गया था , वो पक्षपात पूर्ण था ! उसमें गांधी जी की जगह महात्मा गोडसे के खिलाफ चार्ज शीट दाखिल की गई थी "!
        " मगर गांधी जी की हत्या हुई थी ?"
     " आपने देखा था हत्या होते हुए "?
                " नहीं!"
       " मगर आर्यन खान को ड्रग के बारे में फोन पर बतियाते हुए रंगे हाथ अरेस्ट किया गया है ! ढेर सारी बातचीत बरामद हुई थी"
    " आर्यन खान का मामला गांधी जी जैसा है क्या ?"
      " अभी कुछ कहना मुश्किल है ! जांच चल रही है ! पहले और अब की जांच प्रणाली में बहुत फ़र्क है ! पहले अपराध होने के बाद जुर्म के आधार पर चार्ज शीट तैयार की जाती थी, अब पहले अपराधी को पकड़ा जाता है फिर उसका अपराध ढूंढा जाता है ! आर्यन खान के पास से अभी तक गांजा,चिलम, हशीश, हेरोइन कुछ नहीं बरामद नहीं हुआ है , पर वो अपराधी सबित हो चुका है ! देर सबेर अपराध भी साबित हो जाएगा ! एनसीबी के घर देर है - अंधेर नहीं है "!
        तब से ' चच्चा ' बड़े क्षुब्ध हैं ! उन्हें अपने गंजेहड़ी बेटे की उतनी चिंता नहीं है, जितनी आर्यन खान की फिक्र है ! इस राष्ट्रीय चिन्ता में वो अकेले नहीं हैं,  'वर्मा' जी भी दिलो जान से चिंतित हैं ! कल मेरे सामने आग उगल रहे थे , -' एनसीबी ड्रग माफिया और पेडलर पर लगाम लगाने की जगह नशे की चर्चा करने पर पाबंदी लगा रही है ; घनघोर अन्याय है "!
        ' आर्यन खान उस पार्टी में क्या करने गया था ?''
    " किसी के कहीं जाने पर रोक नहीं है ! क्रूज पर तेरे जैसे फटीचर पत्रकार तो जाएंगे नहीं, आर्यन खान जैसे रईसजादे ही जायेंगे ! ये सुनकर - तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं !!"
      " क्या ये साबित हो गया कि लड़का निर्दोष है ?" '           "एनसीबी ने निर्दोष साबित करने के लिए नहीं पकड़ा है ! अभी दोषी साबित करने की कवायद शुरू है ! वैसे इस केस का हस्र भी ' रिया ' जैसा ही होगा ! ज्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं "!
         वर्मा जी का कोई भरोसा नहीं, कब किसका विरोध करेंगे और कब समर्थन ! सबको पता है कि आर्यन ज्यादा दिन तक जेल में नहीं रहेगा !वो किसी गरीब या मजलूम का बेटा नहीं है, जरूरत पड़ी तो वकील की फौज उतर आएगी ! अपने देश में लोग थाने के अंदर कत्ल कर के जमानत पर बाहर आ जाते हैं ! मेरे मित्र चौधरी को आर्यन खान के जेल जाने की खबर 
 देर से मिली ! उसने सुबह होने का भी इंतजार नहीं किया और सीधा रात ग्यारह बजे मेरा दरवाजा टखटाया, - उरे कू सुण भारती ! शाहरुख कौ छोरा हुक्के के गैल पकड़ा गयो  के ?"
       " ये ब्रेकिंग न्यूज़ कौन लाया?"
' वो  ' लाल बुद्धि ' वाड़ा कह रहो '!
  " तुम्हारा मतलब बुद्धिलाल जी ऐसा कह रहे हैं ! नहीं, ये हुक्का पार्लर का नहीं क्रूज़ का केस है ! एनसीबी को आर्यन खान की बात से पता चला  कि उससे बड़ा नसेहडी और ड्रग माफिया भूतो न भविष्यति "!
      " हे भगवान ! के हो गया छोरे नै !! वैसे कितनी ड्रग पकड़ी  गी  छोरे के गैल ?"
     " एक ग्राम भी नहीं ! न छोरे के पास ड्रग मिली, न  ही बच्चे ने नशा किया था !"
      " ता फेर छोरे कू पकड़ा क्यों ?"
     " आर्यन ने फ़ोन पर ड्रग का नाम लिया था "!
चौधरी गुस्से से चिल्लाया, - ' बावला हो गयो  के ! नाम लेना कूण से अपराध में आवे सै ?"
     " नशे के खिलाफ़ जंग शुरु हो चुकी है ! एनसीबी ने क्रांति का झंडा उठा लिया है । नशा मुक्त समाज की शुरूआत महाराष्ट्र से होगी - एनसीबी का एक ही नारा !
                                      नशा मुक्त महाराष्ट्र हमारा !!
    " दिल्ली क्यों नहीं, इतै दिल्ली में घने स्मैकिए हांडे सूं ! देश की।राजधानी कू  नशा मुक्त बना दे !"
   ' यहां क्रूज़ पर रेव पार्टी की सुविधा नहीं है! कनॉट प्लेस के आस पास बड़े गरीब किस्म के स्मैकिए नज़र आते हैं ! वो भीख मांग कर स्मैक खरीदते हैं !  यहां दिल्ली में रेव पार्टी या गांजा पार्टी नहीं होती, बस छोटी मोटी गौ मूत्र पार्टी होती है "!
      " पूरे प्रदेश में एक ही नशेहड़ी लिकडा के ?"
" नहीं, आठ दस पकड़े गए थे, पर वो या तो नशा लिए हुए थे या ड्रग के साथ पकड़े गए थे! उनमें कोई भी ऐसा हार्ड कोर अपराधी नहीं था जिसकी बातचीत पकड़ी गई हो ! आर्यन खान पर कई धाराएं लगाई जाएंगी !"
      चौधरी  सर पकड़ कर जमीन पर बैठ गया , -' कती  समझ में  न  आ  रहो यू अपराध"!

         लेकिन कुछ लोग बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि आर्यन ने किया क्या है ! उसके नाम के बाद खान का लगना ही किसी बड़े गुनाह से कम नहीं है !  मीडिया की धर्मनिरपेक्षता मुखर होकर नशे के खिलाफ़ धर्मयुद्ध छेड़ चुकी है। ऐसा लगता है गोया आर्यावर्त में इससे पहले कभी किसी ने बीड़ी तक नहीं पिया था ! व्हिस्की से गलाला और तंबाकू से मंजन करने वाले एंकर भी " ड्रग" पर  डिबेट चला  रहे हैं ! अखबार में नशे के खिलाफ़ बड़े बड़े आर्टिकल लिखे जा रहे हैं  ! सोशल मीडिया के कई धर्मयोद्धा ड्रग मुक्त हो चुके देश के माथे पर इसे एक कलंक की तरह देख रहे हैं ! ऐसा लग रहा है गोया आर्यन खान का जुर्म कम से कम आजीवन कारावास पर जाकर रुकेगा , नहीं  तो सतयुग रूठ जाएगा !!

         ( सुलतान भारती)
      

Tuesday, 12 October 2021

(व्यंग्य "भारती") "क्या करूं, शक्ल ही ऐसी है "

(व्यंग्य "भारती"

               "क्या करूं, शक्ल ही ऐसी है !!" 

          मैं इस मुआमले में  कुछ नहीं कर सकता ! कहीं ज़रूर कुंडली में भारी उलटफेर हो गया जो मैं इस शक्ल सूरत के साथ बीसवीं सदी में पैदा हो गया ! मुझे तो हजारों साल पहले वाले सतयुग में पैदा होना था जब
आदमी को आदमी पहचानता था ! खामखा केजरीवाल के शासन में जीने के लिए भेज दिया जब आदमी को डोमिसाइल से पहचाना जाएगा ! ऊपर से आदमियत भरा चेहरा ! आदमी बनाकर पैदा करना ही था़ तो कम से कम चेहरा तो बदल देते ! भेड़िया, हाइना, शेर, तेंदुआ, जगुआर, नाग, कोबरा या  ब्लैक मोंबा का चेहरा दे देते ! मानव शरीर के साथ  इंसानी सूरत और सीरत  देकर प्रभु तूने अच्छा नहीं किया ! दुनियां बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई,,,,! या फिर इंसान का जिस्म देकर अजगर और कोबरा का कैरेक्टर दे देते ! (जैसा कि आजकल समाज में नज़र आ रहा है !) खुद को सूरत सीरत और शरीर से इंसान पाकर आज मैं ठगा सा महसूस कर रहा हूं ! ऐसी फीलिंग हो रही है गोया कैटफिश से भरे तालाब में किसी ज़िंदा मुर्गे को फेंक  दिया गया हो !
       वो गाना तो आपने सुना होगा, - अच्छी सूरत भी क्या बुरी शै है, जिसने डाली गलत नज़र डाली-! खैर इस कैटेगरी का मैं इकलौता पीस नहीं हूं - एक ढूंढो हज़र  मिलते हैं - ! मैं चेहरे के मासूमियत की बात कर रहा हूं ! कुछ लोगों का चेहरा तो इंसान का होता है लेकिन मासूमियत खरगोश की मिलती है ! ऐसे प्राणी कदम कदम पर अंगौछे की तरह इस्तेमाल होते हैं ! हर कोई उन्हें अंधे की गाय समझ कर  'दुहने ' की घात में रहता है ! कुछ लोग तो शक्ल से इतने सज्जन होते हैं कि कोई भी उनके कुर्ते में नाक पोंछ कर भाग जाए ! ऐसे  'शराफत अली' घर और बाहर दोनों जगह  ऑक्सीजन की कमी महसूस करते हैं ! त्योहार के दिन भी असंतुष्ट रहते हैं!
              कुछ लोग ऐसा फेस लेकर पैदा होते हैं कि गलती न होने पर भी डांट खाते हैं ! समाज के शातिर लोग अपने गुनाह और गलतियों का  'अंडा ' उनके घोंसले में रख देते हैं ! 'शराफत' अली को बुरा लगता है, गुस्सा भी आता है लेकिन मुंह से आवाज़ नहीं आती ! लिहाज़ में मना नहीं कर पाते ! ये जो संकोच और लिहाज़ होता है न, इंसान को बहुत नुकसान पहुंचाता है ! ये  'सतोगुण ' कुदरत उन्हें ही देती है जिन्हें सतयुग में आकर भी जिंदगी की सजा काटनी है ! चाल, चरित्र और चेहरा ऐसा लेकर कलियुग में पैदा हो गए जैसे सतयुग में रजिस्टर बदल गया हो ! घर से ऑफिस तक 'ततैया'  पीछा नहीं छोड़ती !  'सज्जन राम' को इन ततइयों पर गुस्सा बहुत आता है,पर उन्हें लड़ने का तजुर्बा नहीं है ! जहां तक लड़ने और पलट कर जवाब देने का सवाल है, वो सारा आक्रोश और गुस्सा बीवी बच्चों पर निकाल कर उधारी चुका देते हैं!
           ऐसे शराफत अली और ' सज्जन दास ' दुनियां में जिंदगी का सलीब ढोने के लिए भेजे जाते हैं ! ये बेशक अपने परिवार वालों के लिए ज्यादा काम के ना हों, पर दुनियां वालों के लिए बड़े उपयोगी होते हैं ! लोग इन्हें मछली का चारा समझ कर तरह तरह से इस्तेमाल करते हैं ! शहर में इन्हीं  के खून पसीने की कमाई का पैसा ' पीयरलेस ' में डूबता है ! इन्हीं की शरीफ़ बीवी के गहने  साफ़ करने वाले घर से  "साफ़" कर जाते हैं ! इनसे काम लेकर न मालिक पैसा देता है न ठेकेदार ! गांव में इन्हीं के नाम से सरपंच लोन ले लेता है ! दूर दराज भट्ठों पर इन्हीं का परिवार बंधुआ मजदूर बनता है ! शहर से गांव तक - 'अबला चेहरा' हाय तुम्हारी यही कहानी -! मरने से पहले चेहरा पीछा नहीं छोड़ता ! कितना मल्टी पर्पज चेहरा है, - दुनियां भर के चोर उचक्के ठग बदमाश और लूटेरों के काम आता है !
                 ऐसे शराफ़त अली स्वभाव से दयालु और आस्था से घोर धर्मालु होते हैं ! पाप से एक किलोमीटर दूर रहने वाले ऐसे जीव को नर्क से घनघोर डर लगता है! उनकी खुरदरी ज़िंदगी में जन्नत के प्रति काफी सॉफ्ट कॉर्नर होता है ! उनके चेहरे से धर्माधिकारियों को काफ़ी सारी 'राहत' मिलती है! ये पेट काट कर किश्तों में जन्नत का इंटालमेंट देते रहते हैं ! चेहरे  का खामियाजा तो देना ही है , - जब तक है जान , जाने जहान मैं नाचूंगा,,,,! इनका चेहरा अपने आप में इंसानियत का स्प्रे मारता साइन बोर्ड होता है, इसलिए इन्हें ' खर दूषण ' आराम से ढूंढ लेते हैं ! पूरी दुनियां इन्हें लैब में काम आने वाली 'परखनली' समझती है ! कई बार 'शराफत अली' को अपने चेहरे पर शदीद गुस्सा आया, पर चेहरा एक्सचेंज नहीं हो सकता ! इन्सानियत भरा चेहरा ज़िंदगी के लिए अभिशाप हो गया ! आज 'शराफ़त 'और 'सज्जन राम ' के  रोए नहीं चुक रहा , ' मेरे जीन्स बच्चों के दुर्भाग्य न बन जाएं ! मैं इस युग के लिए आउट ऑफ डेट हो चुका हूं ! बच्चों में ज़माने के लिहाज से थोड़ा भेड़िए वाला जीन्स आ जाए तो,,,,,, बात बन जाए -' !
                 
चेहरे को लेकर एक गीत है, - दिल को देखो चेहरा न देखो -! अबे जो सामने है वही तो देखेंगे ! पसलियों  के पीछे  छुपे  दिल को तो सिर्फ़ डॉक्टर देखता है ! दिल के मारों को दुनियां पूछती है, (उसमें किक है!) चेहरे से मार खाए इंसान को कोई नहीं पूछता !   मेरे गांव में एक जमालुद्दीन हैं, चेहरे से ही कबूतर की तरह मासूम हैं ! कोई उन्हें संजीदगी से नहीं लेता ! मैंने देखा ही नहीं कि कभी किसी ने उन्हें ' जमालुद्दीन ' कहकर पुकारा हो ! कोई जमालू तो कोई जकालू कहता है, कई बच्चे कचालू कह कर पुकारते हैं ! गरीब और शरीफ़ का नाम लोग रोटी की तरह तोड़ कर इस्तेमाल करते हैं ! किस्मत की सितमजरी देखिए कि तीन बेटियों के बाप हैं, बेटा एक भी नहीं ! बुढ़ापा चल रहा है, पसंद नापसंद की सीमा रेखा कब की मिट चुकी है ! ख़्वाब में अब कोई इंद्रधनुष नहीं उगता ! हंसी का पोखर मुस्कराहट की हद तक सूख गया है । पिछली गर्मियों में मैंने उन्हें बीवी से डांट खाते देखा था ! पता चला कि दस दिन सड़क निर्माण में मजदूरी की थी , मांगने पर ठेकेदार ने डांट कर भगा दिया ! लगातार टूट रहा आदमी अपना हक भी दमदारी के साथ  कहां मांग पाता है !     

  जब मायूसी हद पार करती है तो " जमालू" अपनी बेहद खस्ताहाल सायकल को खूंटी से उतार कर साफ करने लगते हैं ! शायद दोनों के दर्द की शक्लें एक जैसी हो चुकी हैं !!

 मित्रों   कैसा लगा व्यंग्य !  ( सुलतान "भारती" )
           

Saturday, 2 October 2021

" पतझड़ में बसंतोत्सव"!

( व्यंग्य "भारती")      "पतझड़ में बसंतोत्सव"


          मरहूम अब्बा श्री के नाम में कुछ मिस्टेक थी तो बिजली का बिल लेकर मैं  'बीएसईएस' के ऑफिस पहुंचा ! तारीख़ थी, 04-10-2021 . वहां जाकर पता चला कि सरकारी संस्थान में कोरोना ने बाबुओं को कितनी सुविधा उपलब्ध कराई है ! विंडो के पीछे बैठा क्लर्क मुझे देखते ही गुर्राया, - " प्रॉब्लम बाद में बताना, पहले फेस मास्क ठीक करो ! नाक से नीचे फिसल रहा है ! कोरोना बाटने आए हो क्या "!
  " तुम्हें मेरी नाक में कोरोना नज़र आ रहा है क्या ?"
" किसी के माथे पर लिखा है कि वो कोरोना फ्री है ! लोग जाने क्या क्या लेकर घूमते हैं! खैर तुम क्या लाए हो?"
      " बिजली के बिल में नाम ठीक कराना है"!
" तो पहले गलत नाम क्यों लिखाया था ?"
    "ये गलती तुम्हारे विभाग ने की है !" 
         " तीन नंबर खिड़की पर जाओ !" 
     तीन नंबर खिड़की पर बताया गया कि कोरोना के चलते फिजिकली डॉक्यूमेंट नहीं जमा हो सकते ,  क्या 
भरोसा आप बिजली बिल के साथ साथ ब्लैक फंगस भी  टोपीलेकर आए हों ! ऑन लाइन डॉक्यूमेंट सम्मिट करने lपर  यूवायरस पाइप लाइन में फस जाते हैं ! पीछे खड़े हुए एक सज्जन  बगैर पूछे बताने लगे - " दो महीने से चक्कर काट रहा हूं । ये कागज़ात लेते नहीं और ऑन लाइन एक्सेप्ट नहीं होता ! त्रिशंकु बनकर बीच में लटके रहोगे ! कोरोना  हरामखोरों के लिए कितने अवसर लेकर आया है "!
           लौट के बुद्धू बस स्टॉप पर आए ! शेड पर खड़े होते ही मेरी नज़र एक सरकारी विज्ञापन पर पड़ी ! पढ़ कर मैं सन्न् रह गया ! मुझे अपने पिछड़ेपन पर गुस्सा आने लगा ! आज जाकर मुझे पता चला कि देश  "विकास उत्सव"  मना रहा है ! सचमुच अक्ल के मामले में मैं अभी भी नाबालिग हूं । देश विकास उत्सव मना रहा है और मूर्ख लोग विकास ढूंढ रहे हैं ! गली में छोरा शहर ढिंढोरा,,,,! घर मेंउपलब्ध कनस्तर का आटा अंतिम सांस ले रहा था ! मुझे तुरंत विकास की ज़रूरत थी ! मैं विकास उत्सव के विज्ञापन को इस उम्मीद और आत्मीयता से देख रहा था, गोया अभी अभी आटा समेत कनस्तर बाहर आने वाला है। कनस्तर नहीं आया, उल्टे बस आ गई और एक बार फिर मैं  विकास से वंचित हो गया - करम गति टारे नाहि टरे !
         "विकास उत्सव" के बारे में जानकारी प्राप्त होने के बाद मेरी मन: स्थिति - नींद न आए मुझे चैन न आए कोई जाओ जरा ढूंढ के लाओ - जैसी हो चुकी है ! मैने अपने पड़ोसी 'चौधरी' से मशविरा किया, - "देश विकास उत्सव मना रहा है! "! 
     चौधरी ने मुझे ऐसे देखा जैसे मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं है! फिर धीरे से बोला , -" फेस मास्क लगाकर लिकड़ा कर घर ते ! आखिर हो गया न कोरोना !! इब घर जा , अर भटकटैया का काढ़ा पी कै सो ज्या !"
       " पर मुझे तो कुछ हुआ भी नहीं!"
" नॉर्मल होता तो दिन में  "विकास उत्सव" के धोरे कदी न जाता ''!
       " मैने बस स्टॉप पर लिखा देखा था। तीन साल से बेकारी ओढ़ कर लेटा हूं, ऐसे में किसी को विकास करते कैसे देख सकता हूं ! मैने सोचा शायद तुम्हें उस जगह का पता हो, जहां बसन्त आया हुआ है "!
       " किस्मत फूट गी  म्हारी ! बारह साड़ लिकड़ गया विकास  अर बसंत कू देखे ! इब तो सुबह शाम तमैं ही देखूं सूं ! कती पतझड़ पसर गयो जिंदगी में " !
         " मैं क्या करूं कहां जाऊं ! सच बड़ा संदिग्ध हो गया है ! हकीकत और प्रोपेगंडा के बीच का फ़र्क ही मिटता जा रहा है ! भूख और खाली पेट के बीच में - संतोषम परम् सुखम - अड़ गया है । स्लोगन ने सच को निगल लिया है ! मैं बड़ी शिद्दत से केजरीवाल की तरह एक स्वस्थ मुस्कराहट चहता हूं ! लेकिन मुस्करा नहीं पा रहा हूं ! जैसे ही सावन की कल्पना करता हूं, सामने पतझड़ आ जाता है ! "
           " गाम लिकड़ ले मेरे गैल तीन दिन के लिए ! उतै धान कौ खेतन में सावन उतरो सै ! वरना विकास उत्सव ढूंढ ढूंढ कै कती पागल हो ज्या  गा "!
       मैंने सोचा, एक से भले दो, जाकर ' वर्मा जी ' से भी
पूछ लिया, - ' सावन के बारे में क्या कहना चाहेंगे ?"
   " सिर्फ इतना कि सावन में अंधा होने पर पूरी ज़िंदगी इंसान को हरा हरा नज़र आता है ! लगता है तेरे  घर में गेहूं आ गया है ! जब तक भाजपा सरकार है, मौज कर ले।"
      " पर फ्री राशन तो केजरीवाल सरकार दे रही है?"
 "  खाते में हर फसल पर पैसा तो मोदी सरकार डालती है ! उसके बगैर गेहूं नहीं उगता, इसलिए अबकी बार मोदी सरकार "!
 " मैं भी विकास उत्सव मनाना चाहता हूं, कैसे मनाऊं" ?
         " तेरे मन में खोट है ! तुझे सच कभी नहीं नज़र आएगा ! जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी त्यों तैसी ! कुछ समझा "?
        " अज्ञानी हूं , मार्ग दर्शन करें "!!
    " ईश्वर नजर नहीं आता किंतु करोड़ों भक्त उसे हर वक्त महसूस करते हैं ! ठीक उसी तरह विकास है, जिन्हें नजर आ रहा है वो 'उत्सव' मना मना रहे हैं, जिन्हें तुम्हारी तरह दूध में मक्खी ढूंढने की बीमारी -उन्हें न "विकास" नज़र आता है  न  "उत्सव" ! तूने- 'फर्स्ट डिजर्व देन डिजायर- ' वाली कहावत तो सुनी होगी न ! पहले खुद को इस लायक़ बनाओ कि तुम्हें " विकास" दिखाई पड़े ! जिस दिन ये योग्यता आ गई तुम अपने आप "उत्सव" मनाने लगोगे ! अभी हट जा ताऊ पाच्छे नै, हवा आने दे "!!

   मैं अभी भी पतझड़ में बसंत ढूंढ रहा हूं !!

( दोस्तों पढ़ कर कमेंट ज़रूर करें !  ( सुलतान भारती )
               


        

''हास्य धारावाहिक"

(  हास्य  धरावाहिक )

      " मारे गए   गुलफाम "
( " सारांश " )       (Synopsis).   
          काल खंड- ( इक्कीसवीं सदी  2021.)

           स्टोरी 

 (  आपदा में अवसर की तलाश में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की रुहेलखंड यूनिवर्सिटी से निकले दो ग्रेजुएट और  जिगरी दोस्त ,,,,, साबिर  और सतबीर ! ! एक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर, और  दूसरा ग्रेजुएट के अलावा कुश्ती में चैंपियन  और कराटे में ब्लैक बेल्ट ! दोनों किसान के बेटे नौकरी की तलाश में दिल्ली आते हैं ! दोनों गांव की रामलीला में एक्टिंग करते करते भेष बदलने और अभिनय के शौकीन हो चुके हैं ! उन के पास डिग्री के साथ हिम्मत , हिकमत , जोश और हौंसला तो था लेकिन शायद क़िस्मत ब्लैक एंड व्हाइट थी ! लगातार नौ महीने नौकरी के लिए ऑफिसों की परिक्रमा करने के बाद भी जब नौकरी न मिली तो सतवीर जाट की खोपड़ी घूम गई , - उरे कू सुण साबिर !"
          " हां सत्ते !"
  " इब के करेगा भाई "?
    " के करूं  यार ! कल भी नौकरी ढूंढने निकलूंगा !"
" कोल्हू के बैल बण  गे -" सतवीर जाट  बिगड़  गया - " सुबह ते शाम तक नौकरी खातर चक्कर काटते जूते घिस  गे  म्हारे "!
     " तो करें क्या ! गांव लौट चलें "?
" मन्ने के बेरा ( मुझे क्या पता) ! मगर नू लगे अक अपनी
 किस्मत  में  नौकरी  कोन्या ! ''
      " हंबे !" साबिर ने हामी भरी - " घणा धक्का खा लिया सत्ते "! 
        अचानक सतवीर मुस्कराता है, -"  यू दिल्ली ने हमारे गैल बढ़िया न करी ! इब मैं सूद समेत सबै वापस कर द्यूंगा !" 
      " सूद समेत वापस ? ज़रूर तू कुछ गडबड करेगा "!
" इब तक हम नौकरी के पाछे दौड़ते रहे, इब नौकरी बाड़े  हमारे पाच्छे दौड़ांगे "!
 साबिर ने सर पीट लिया, - " जाने अब तुझे क्या फितूर सूझा है "! 
           सतवीर मुस्कराया , - " रामलीला !!"
     " रामलीला ! क्या मतलब ?"
" रामलीला में मैं राम बनता था, अर तू लक्ष्मण "!
      "तो" ?
    " उम्र में तू मेरे ते आठ महीने बड़ो सै, पर जिन्दगी कौ रामलीला  में तू मेरो शागिर्द बनेगो - लक्ष्मण की तरया"!
     साबिर ने अपना सर नोचते हुए पूछा - " पक्का मरवाएगा मुझे ! करना क्या है मेरे बाप ? " 
         " इब तक हम नौकरी ढूंढते थे, इब नौकरी बाड़े मोए ढूंढेंगे ! लोग म्हारे धौरे मोह माया लेकर आंगे अर यहां ते सुकून प्रेम और संतोष लेकर ज्यांगे "!
     "ऐसा कौन सा काम करेगा सत्ते ! मेरे तो कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा !! ज़रूर किसी बड़ी मुसीबत को न्यौता देने वाला है !! अब मुझे साफ साफ बताओ "!

( और फिर  सतवीर जाट के दिमाग़ से जो  'लाजवाब' प्लान  निकल कर बाहर आया उसे सुनकर इंजीनियर साबिर अली की आंखें फैल गईं ! मगर उस धंधे में कुछ भी गैरकानूनी नहीं था, इसलिए थोडा न नुकर के बाद साबिर भी तैयार हो गया !
      तो,,,, आखिर वो धंधा क्या था ?  दोनों जिगरी दोस्तों ने इस बार  अपने लिए " आपदा" को न्यौता दिया था या   किसी बढ़िया  " अवसर " को !  जानने के लिए देखते रहिए - हास्य, व्यंग्य,सौहार्द और राष्ट्रवाद की चाशनी में सराबोर विख्यात व्यंग्यकार सुलतान भारती की कलम का ताज़ा तिलिस्म- " मारे गए गुलफाम.''!!! बहुत जल्द "डी वी चैनल" पर  !!)