Monday, 2 August 2021

"अजगर करे न चाकरी"

        ( व्यंग्य "भारती")        
    "अजगर" करे न चाकरी" 

अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम !
दास मलूका कह गए सब के दाता "राम"!!

         इस दोहे से "चाकरी"  अर्थात सरकारी नौकरी की इंपोर्टेंस का पता चलता है ! कवि ( मलूक दास) सरकारी नौकरी को कितना महत्व देते थे ! उनकी नजर में चाकरी ( नौकरी) करने वाले ही 'काम' करते थे , बाकी सारे निठल्ले लोग रामजी पर निर्भर थे ! खास कर अजगर और पंछी उनकी नज़र में मुफ्तखोर थे ! ( ये कवि की अपनी व्यक्तिगत राय थी जिस पर अजगर या पक्षी की तरफ से आज तक कभी जनहित याचिका नहीं दायर की गई !) कवि के नजरिए से चाकरी करने वाले सुविधा भोगी लोगों के भरोसे ही सतयुग सांस लेता है ! चाकरी करने वाले अगरये मुगालता पाल लें कि देश उन्हीं के भरोसे चल रहा है तो गलत क्या है ! किंतु बहुत दिनों तक ताना सुनते सुनते आखिरकार बीसवीं शताब्दी में अजगर ब्यूरोक्रेसी में शामिल हो कर चाकरी करने लगे ! यही 'प्रगतिशील अजगर' आजकल कंप्यूटर पर विकास की फसल उगा रहे हैं! जब किसान आंदोलन में सारे किसान धरने पर बैठ गए तो खेती विशेषज्ञ अजगर  कागजों पर ट्रैक्टर और मंडी चलाने लगे ! तब से किसान आंदोलन कमज़ोर तथा फसल और अर्थ व्यवस्था  मजबूत हो रही है !  
                 अजगर का काम निगलना है और निगलने को कवि  "काम" में नहीं गिनता ! घात लगाना, शिकार को जकड़ना और फिर साबुत निगलना काम में नहीं आता ! जंगल कटे तो काफ़ी अजगर भेष बदलकर गावों में  रहने लगे ! ये दो पैर वालेअजगर निगलने के मामले में यहां भी काफ़ी बदनाम रहे पर निगलना नही छोड़ा ! अब दूसरों की ज़मीन और बंजर निगलना ही इनका पेशा है !  चोरी या चाकरी करना इनकी फितरत के खिलाफ है ! किंतु लेखक ने पंछी को  कैसे  निठल्ला  घोषित कर दिया ! क्या कवि ने अपनी लाइफ में कभी किसी पंछी को घोसला बनाते और अपने बच्चों को बचाने के प्रयास में सांप का शिकार होते नहीं देखा ? कवि ने  पंछी को जन धन योजना के लायक भी नहीं समझा !
           कई बार ऐसी रचनाएं भी साहित्य में शामिल कर ली गई हैं जिनका औचित्य शोध का विषय है। राजदरबारी कवियों का बुद्धि वैभव राजा की प्रतिभा और पसंद पर निर्भर करता था ! बादशाह का फेवरेट कवि या शायर जो भी लिख मारता वही साहित्य मान लिया जाता था ! आज़ भी कई  "चारण"  साहित्य के भीष्म पितामह बने हुए हैं ! साहित्य के ये कोलंबस कई दिवंगत साहित्यकारों की रचनाओं में  रहस्यवाद और छायावाद ढूंढ रहे हैं ! स्वर्ग में बैठा रचनाकर भी ये देख कर सकते में है कि जो मसाला उसने डाला ही नहीं वो कैसे बरामद हो रहा है ? अतीत में खानदानी रईस की तरह खानदानी साहित्यकार होने की भी सुविधा थी ! राजकवि की बेतुकी तुकबन्दी भी कालजई रचना मान ली जाती थी ! चुनौती का अर्थ साम्राज्य और साहित्य से विद्रोह माना जाता था ! ऐसे महान कवि और दबंग साहित्यकारों के कई गद्दीनशीन आज भी मौजूद हैं ! ये ओरिजनल साहित्य साधकों के लिए किसी 'परजीवी' से कम नहीं हैं ! इन्हीं का तैयार किया 'खांड' बाजार में 'कलाकंद' बता कर बेचा जा रहा है !  कुछ साहित्यिक अजगरों ने तो बाकायदा यूनियन बनाकर 'साहित्य सम्मान' की फेंसिंग तक कर रखी है ! 
          वैसे साहित्य की अपेक्षा सियासत में अजगर ज़्यादा हैं ! जीवन में कुछ न करने के बाद भी यह जीव सम्माननीय और पूज्यनीय बताए जाते हैं ! जनता की हर गाली पर वो थोड़े और महान हो जाते हैं ! सरकारी चारण उनकी आत्मकथा लिख कर उन्हें कालजई बनाने में लगे होते हैं ! निगलने की परंपरा को मरने के बाद भी सरकारी ज़मीन पर अपना स्मारक बनवा कर निभाते हैं ! जनता के कटे पर नमक छिड़कने के लिए ऐसे "अजगर " की मौत को ' देश के लिए अपूरणीय क्षति'  बताया जाता है !  ये अपूरणीय क्षति हमेशा अजगर के मरने पर ही होती है , - ' पंछी ' के मरने पर चिराग़ लेकर ढूढ़ने पर भी आज़ तक  'क्षति' नहीं देखी गई !
         जबसे गांवों के विकास फंड की रकम बढ़ी है, कई 'अजगर'  जनहित में प्रधान बन गए ! जनहित और जनसेवा काफ़ी पोटेंशियल साबित हुआ है ! गांव में मिलजुल कर निगलने का ज्यादा विकल्प है ! कोई मुंह खोल कर एतराज़ करे तो थोड़ी शीरीनी उसके आगे भी उगल देते हैं ! यह पंजीरी क्लोरीन की तरह चरित्र को कीटाणु मुक्त कर देती है ! कवि ने जाने कैसे कह दिया, - ' अजगर करे न चाकरी,,,,! अजगर के  बगैर तो विकास चक्र रुक जाएगा ! सारी दुनिया का बोझ 'वो' उठाते हैं ! देश के तमाम कुपोषित  "पंछी" इन्हीं की कृपा से पुष्टाहार योजना का गेहूं पाते हैं ! पिछली सरकार में ये कृपा मनरेगा  में अटक गई थी !
             कोरोना हर समस्या की नर्सरी  है ! अब तो विपक्ष को भी लगने लगा है कि हो न हो "कमल" को "कोरोना" ही ब्रेस्ट फीडिंग करा रहा हो ! गुल्लक में चाकरी  नहीं , जेब में पैसा नहीं- फिर भी मोरल हाई ! माजरा क्या है भाई ! आख़िर ये अच्छे दिन कब जाएंगे! सात साल लंबे पतझड़ में आत्मविश्वास के सारे पत्ते झड़ गए ! हजार बार बोला - गो  अच्छे दिन  गो -! किंतु जाने की बजाय अच्छा दिन दीर्घायु हो रहा है ! सारे टोटके आजमा लिए पर कुंडली में "शनि" जैसे अजगर बन कर लेट गया है ! मन का' पंछी' आह भर कर गुहार लगा रहा है ,- कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन !!
                            (  सुलतान भारती )


2 comments:

  1. देश की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था पर तीक्ष्ण कटाक्ष, बेहतरीन रचना है। मगर क्या इससे राजनीतिक और साहित्यिक अजगरों पर कोई असर पड़ेगा, इसमे सन्देह है, ख़ैर लेखक का काम जन चेतना जगाना है।

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  2. वैसे साहित्य की अपेक्षा सियासत में अजगर ज़्यादा हैं ! जीवन में कुछ न करने के बाद भी यह जीव सम्माननीय और पूज्यनीय बताए जाते हैं ! जनता की हर गाली पर वो थोड़े और महान हो जाते हैं ! सरकारी चारण उनकी आत्मकथा लिख कर उन्हें कालजई बनाने में लगे होते हैं ! निगलने की परंपरा को मरने के बाद भी सरकारी ज़मीन पर अपना स्मारक बनवा कर निभाते हैं ! जनता के कटे पर नमक छिड़कने के लिए ऐसे "अजगर " की मौत को ' देश के लिए अपूरणीय क्षति' बताया जाता है ! ये अपूरणीय क्षति हमेशा अजगर के मरने पर ही होती है , - ' पंछी ' के मरने पर चिराग़ लेकर ढूढ़ने पर भी आज़ तक 'क्षति' नहीं देखी गई !
    वाह बहुत बढ़िया लिखते हो भाई। 👍👍👍

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