Monday, 23 August 2021

( व्यंग्य भारती) "भगवान का दिया सब कुछ है"

          " भगवान का दिया सब कुछ है "!

            मंहगाई है, बेकारी है, कोरोना है, लगातार लुढ़कती जीडीपी है, आए दिन लाठियां खाते और सर फड़वाते किसान हैं ! डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस सिलेंडर , सरसों के तेल का रोना क्यों ! ये सब भगवान का किया धरा है ! इसमें  किसी का कोई दोष नहीं !  'वो' अच्छे दिन लाना चाहते थे किंतु विपक्ष के बरगलाने पर भगवान कोरोना और ब्लैक फंगस लेकर आ गए ! देश में मानसून से लेकर मंहगाई तक केे बिगड़े सुर के पीछे सिर्फ और सिर्फ भगवान का हाथ है ! भगवान जब देने पर उतारू हो जाए तो अच्छा बुरा नहीं देखते ! आजकल ऊपर वाला देने के मूड में है फिर भी प्राणी शक कर रहा है,- ' काम  मांगा था, कोरोना तो नहीं मांगा था  -! ' (नीचे वाले तेरा जवाब नहीं- !)
              इधर नफ़रत का गुड़ चबैना बांटने वाली मीडिया अगस्त में बेचैन थी कि तभी ऊपर वाले ने तालिबान की शक्ल में नफ़रत का नया लिफाफा भेज दिया ! अब मीडिया खुश है - कुछ दिन के लिए जबान को  'हलाहल' हासिल हो गया ! उम्मीद है कि तालिबान के भरोसे सितंबर आराम से पार हो जाएगा ! बाकी तीन महीने सूखा पड़ा तो भगवान का दिया ' हिंदू मुस्लिम' का गुड़ चबैना तो है ही ! आज कल इसी समुद्र मंथन से सारे रत्न प्राप्त हो रहे हैं ! मीडिया के लिए ये अमृत है तो सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर ! इसी डिटर्जेंट से सारे दाग " अच्छे" नज़र आते हैं ! सब इसी हमाम में कूद पड़े हैं, अब किसी को विकास की कोई जरूरत नहीं रही ! लोग दावा कर रहे हैं, ' भगवान का दिया सब कुछ है -'! ( पर अभी नजर नहीं आ रहा है !) हिंदू मुस्लिम से कभी फुर्सत मिली तो वो ' सब कुछ' मैं भी ढूंढने निकलूंगा - !
             देता तो भगवान ही है, लेकिन देने से पहले वो शायद लिस्ट चेक नहीं करता ! लेन देन में कहीं कुछ गडबड है ! पात्र कुपात्र और कर्म पत्र  टेली नहीं करते। लगता है कि बड़ी जल्दी में पैकेज साइन किया गया है ! अब देखो ना - 'आटे' की जगह कनस्तर में 'आपदा' आ गई है ! उधर मसाले में लीद मिलाने वाले  'पांचू सेठ' ने एक और विधवा आश्रम खोल लिया है ! उद्घाघाटन में आए मंत्री जी विधवाओं को देखकर बहुत खुश नज़र आ रहे थे ! पांचू सेठ और मंत्री जी दोनों  'भगवान का दिया सब कुछ ' देख कर अपनी खुशी छुपा नहीं पा रहे थे । फीता काट कर मंत्री जी माइक पर बोल रहे थे, - ' यत्र नार्यः पूज्यंते रमंते तत्र देवता : मनुष्य को हर हाल में खुश रहना चाहिए - जाहे विधि राखे राम ताहि विधि रहिए -! पांचू सेठ के पास भगवान का दिया सब कुछ है ! सेठ जी पंचतत्व से बने हैं, इसलिए पांचू कहे जाते हैं ! हम सब उसी  "पंच तत्व" से बने हैं, इसलिए हमें इन तत्वों में विलीन होकर परमानंद की प्राप्ति करनी चाहिए ! इस 'काम' में' क्रोध'  कैसा ! इस नाशवान शरीर की यही सदगति है -'! पांचू सेठ ने सबसे पहले ताली बजाई ! पंचतत्व वाले  'गूढ़ आध्यात्म' का रहस्य वो दो साल पहले ही समझ गए थे, जब नेता जी के सुझाव पर पहला विधवा आश्रम खोला था !
             गाने का एक मुखड़ा है,- ना जाने किस भेष में  मिल जाएं भगवान-! यानि भगवान भेष बहुत बदलते हैं ! उनकी इस आदत के चलते ठग, चोर उचक्के, व्यापारी और लुटेरे  को ' भगवान ' होने में कभी कठिनाई नहीं पेश आई ! दुनियां ठगी जाती है और ऊपर वाला सोच में पड़ जाता है कि ये मैने कब किया  -! धार्मिक ठगों से तो भगवान आए दिन ठगा जाता है । कभी रावण ने संत बनकर मां सीता को ठगा , तो कभी खड़क सिंह ने कुपोषित मरीज़ बनकर बाबा भारती को ठग लिया ! खड़क सिंह ने भी घोड़ा छीन कर अपने गैंग में कहा होगा - ' आज भगवान का दिया सब कुछ है , - कट्टा है, बंदूक है, फरसा है और अब सुलतान जैसा घोड़ा भी है -'! ये लेन देन का ऐसा मामला है कि भगवान् को मुफ़्त में मिला क्रेडिट रास नहीं आता ! खुश होने की जगह खुदा सोचने लगता है कि - ये  सब कुछ मैने कब दिया ? कट्टा - पिस्तौल तो मेरे पैकेज में था ही नहीं - ! 
             - भगवान का दिया सब कुछ है' - ऐसा भगवान को क्रेडिट देने के लिए नहीं , इल्ज़ाम लगाने के लिए  बोला जाता है - " बापू पानी की तरह दारू पीने लगे थे, भगवान से उनकी खुशी नहीं देखी गई ! बस एक दिन पिताजी ने अंधेरे में ' सुरा' की जगह 'सल्फास' की शीशी गटक ली-! वैसे  भगवान का दिया गांजा, भांग, दारू और सल्फास सब कुछ था घर में ! शुक्र है कि मरने के मामले में भी किसी से कुछ मांगना नहीं पड़ा !"  हरि अनंत हरि कथा अनंता, किस किस अपराध में उसे याद किया जाता है, - ' लड़के ने पढ़ाई में बहुत मेहनत की थी पर खुदा को मंजूर नहीं था ! अब देखो ना - कोरोना जैसी आपदा में भी पास होने का अवसर नहीं मिला -'! ( ईश्वर को लड़के की जगह खुद बैठ कर इक्जाम दे देना था ! )
                    भगवान का दिया सब कुछ है - लूट मार, अपहरण, हत्या, लाठी चार्ज, घोटाला और रोजाना मजबूत होती अर्थव्यवस्था ! और क्या चहिए, रूखी सूखी खाय कर ठंडा पानी पीव ! मानसून को ममता दीदी ने बंगाल की खाड़ी में रोक लिया है ! दिल्ली जल बिन मछली हुई  पड़ी है और केजरीवाल कह रहे हैं कि- ' हम तो पानी फ्री दे रहे हैं ! इसके बाद भी अगर नल में पानी नहीं आ रहा तो मोदी जी दोषी हैं ! आज कल तो हमारी आत्मा  ( यूपी और उत्तराखंड के अलावा ) काम क्रोध मद लोभ की तरफ़ देखती भी नहीं है ! पार्टी में भगवान का दिया 'भगवंत मान' हैं  - और ले कर क्या करूंगा  -!"
          ' भगवान का दिया सब कुछ है'- ये कहने में क्या जाता है ? हकीकत यह है कि भगवान कितना भी दे दे, इंसान उसे चैन से बैठने नहीं देगा ! रोज एक नई लिस्ट फरिश्ते लेकर आ जाते हैं ! हफ्ते  में एक वक्त जुमा की नमाज़ पढ़ कर प्राणी पूरे छे दिन दुआ मांगता है, - ' इस बार तेरह नंबर वाले घोड़े पर सट्टा लगाऊंगा ! मौला देख लेना, मुझे रोज़ रोज़ मांगने की आदत नहीं है -'! इंसान ही दूसरे इंसान को गलत सीख देता है - संतोषम परम् सुखम का पालन करना चाहिए -! सीख हमेशा दूसरों को दी जाती है , अपनी चाहत की लिस्ट तो - देवो न जाने कुतो मनुष्य: - ! सूद पर पैसा देने वाला अगले दिन से ही उसका  खेत निगलने का ख़्वाब देखने लगते हैं ! मूल रकम पाकरआत्मा को मोक्ष नहीं मिलता ! सूद से ही घर में  संतोषम परम् सुखम आता है !
            ( मित्रों ! व्यंग्य पढ़ कर कमेंट जरुर करें !)

( सुलतान भारती )

             

               

Tuesday, 17 August 2021

(व्यंग्य " भारती") अगले जनम मोहे लेखक न कीजो

                 व्यंग्य "(भारती") "
       "अगले जनम मोहे  "लेखक" न  कीजो'

         आज मैं शपथ लेता हूं कि जो कहूंगा सच कहूंगा - सच के अलावा ( ज़माने का लिहाज़ करते हुए ) थोडा बहुत झूठ भी बोलूंगा ! झूठ के बगैर सरवाइव कैसे करूंगा ! वैसे मेरे मज़हब में पुनर्जन्म की सुविधा नहीं है, फिर भी अगर मेरे ' सद्कर्मों ' से खुश होकर मेरे स्वर्ग वाले पैकेज में पुनर्जन्म का ऑप्शन दिया गया तो,,,, मैं किसी कीमत पर लेखक होना पसंद नहीं करूंगा ! जिस शायर ने इश्क को "आग का दरिया " बताया है, उसका सर्वे अधूरा है ! वो हिंदी के लेखक से मिल लेता तो गलतफहमी दूर हो जाती ! सच तो ये है कि लेखक के प्रोफेशन में जितनी आग है उसका फिफ्टी पर्सेंट भी आशिकी में नहीं है। मजनू को जीवन में सिर्फ एक लड़की लैला को झेलना पड़ता था ! उसी में उसका द एण्ड आ गया । अगर मजनूं को इश्क की जगह एक उपन्यास छपवाने के लिए दौड़ना पड़ता तो वह अपने आप मर जाता !
                  अपनी लाइफ के इंटरवल तक आते आते मुझे ये आत्मज्ञान प्राप्त हुआ कि ऊपर वाले ने मेरे सारे खुदरा गुनाहों के एवज में हिंदी का लेखक बना दिया है , - जा अपने किए की सजा काट -! ऊपर वाला बहुत अच्छी तरह जानता है कि प्राणी के भाग्य पैकेज में अगर इंजीनियर,डॉक्टर, एक्टर, ट्यूटर, मास्टर,शूटर, मिनिस्टर, कॉरपोरेटर, बिल्डर आदि के जीन्स  डाला गया तो  वो और उसकी फेमिली गुड फील करेगी ! किंतु जिसे मरने से पहले कठोर  कारावास देना हो उस  लेखक के  'डीएनए'  में अच्छे क्वॉलिटी का स्वाभिमान प्लांट कर दो !  बस अब न लेखक के नसीब में  सुकून होगा न उसकी फैमिली के ! लक्ष्मी जी दीवाली  की  रात  उसके मुहल्ले में कदम भी  नहीं  रखेंगी ! उल्लू  लैंड  करने से पहले लक्ष्मी को इनफॉर्म करेगा, - ' इस  मुहल्ले में सरस्वती जी का एक कृपापात्र रहता है , इसलिए लैंड करना बेकार है - आगे चलते हैं '!
            मैंने बहुत से लेखक देखे हैं ! लेखक को झेलना बड़ा मुश्किल काम है!  ईश्वर की तरह लेखक की व्यथा और  वैरायटी भी अनंत है ! मेरे विचार से अपने देश में "लेखक" तीन किस्म के होते हैं ! तीसरे और आखिरी किस्म का लेखक खाते पीते घर का नौनिहाल होता है ! कॉलेज में उसकी क्लास में एक सुदामा जैसा गरीब छात्र है जो रचनाकार है। इस वजह से क्लास की तीनों लड़कियां उस लड़के की ओर आकर्षित हैं ! एक अदद गर्ल फ्रेंड की चाहत में सुविधा भोगी छात्र भी लेखक बन जाता है! लेकिन इसके बावजूद इश्क के बादलों को बगैर मानसून के गुजरते देख वो लेखन छोड़ कर रेस्टोरेंट खोल लेता है! इश्क और लेखन के मुकाबले ये धंधा ज़्यादा पोटेंशियल है ! कभी कभी सुदामा भी अपनी रचना सुनाकर उधार खाने आ जाता है ! ( सुदामा के जाते ही लड़का उसके खाते में पांच रुपए बढ़ा कर लिख लेता है ! )
     इस प्रजाति के एक जबरदस्त लेखक हमारे मित्र हुआ करते थे ! ( वो अब नहीं रहे।) जब घर वाले उनकी शादी ढूंढ रहे थे तभी उन्हें एक  विवाहित महिला से इश्क हो गया ! उन्होंने महिला को भनक भी नहीं लगने दिया कि कोई उसके प्रेम में आकंठ डूबा सूखे तालाब में छलांग मार रहा है! जब दो छोटे बच्चो की मां को पता चला तो वो घबरा गई ! उसने अपने पति को बताया ! पति ने बड़ी नेक सलाह दे डाली, - ' लाला जी ( प्रेमी के बाप )काफ़ी बुजुर्ग हैं, जल्दी मर जाएंगे ! आज कल यही लौंडा दूकान पर बैठता है। सावधानी से ईश्क करना और जब भी दूकान पर जाना बड़े बेटे 'रिंकू'  को  साथ  लेकर जाना -" । ये इश्क तीन महीने में ही दूकान को खोखला कर गया ! लाला जी खुद दुकान पर बैठने लगे तो प्रियसी ने जाना छोड़ दिया। बस 'गम -ए- हिज्र' में आशिक़ लेखक बन गया और दो महीने में ढाई सौ पेज़ का एक उपन्यास लिख डाला ! विपरीत प्रतिभा  देख  घर  वाले घबरा गए ! आखिरकार मर्ज का पटाक्षेप करने की रणनीति बनाई गई और आनन फानन  मेरे मित्र की शादी कर दी गई ! और इस तरह एक "महान लेखक" रेगिस्तान में भटकने से बच गया !
         दूसरे श्रेणी का लेखक 'वानप्रस्थ आश्रम' की बेला में लेखक होना शुरू होता है ! पूरी ज़िंदगी वो लेखन के बारे में सोचता भी नहीं ! कभी साहित्यिक प्रोग्राम में जाता भी नही ! वो बड़ा बिज़नेस मैन हो सकता है, या सरकार में बैठा उच्च स्तरीय अधिकारी ! सेवामुक्त होने के बाद अचानक उसके अंदर प्रतिभा की गूलर फूटती है और लेखन के तमाम भुनगे उसे काटने लगते हैं। वो फ़ौरन अंग्रेज़ी में एक किताब लिखना शुरू कर देता है, और ऐलान करता है कि -' उक्त किताब में सत्तारूढ़ पार्टी के कई मंत्रियों के चेहरे बेनकाब होंगे -'! विपक्ष उस किताब  का  कंक्रीट  चेक  किए बिना हजारों  किताबें ख़रीद  कर  लेखक को बेस्ट सेलर लेखक बना देता है ! ( पढ़ने के बाद पता चलता है कि - जिसको समझा था खमीरा वो "भकासू" निकला -!)
            अव्वल नंबर यानि प्रथम श्रेणी का लेखक 'गॉड गिफ्टेड' लेखक होता है ! उसका डी एन ए अलग होता है! वो लेखन के अलावा कोई और काम करना अपना अपमान समझता है ! उसकी  खसरा खतौनी में खेत कम और खुद्दारी ज़्यादा होती है ! ( खेत उसे मरने नहीं देते और खुददारी उसे जीने नहीं देती !)वो दुर्वासा ऋषि की तरह घर से क्रोध लेकर चलता है ! भेदभाव, झूठ, नफ़रत,असहिष्णुता, सांप्रदायिकता, धर्मांधता, और चाटुकारिता से घोर विरोध के चक्कर में वो मोहल्ले में अकेला पड़ जाता है! वो सत्ता और व्यवस्था का भी कट्टर विरोधी है इसलिए अक्सर घर के कनस्तर में आटा नही होता ! उसे कोई भी सत्ता व्यवस्था रास नहींआती ! अपने देश के अलावा उसे पूरी दुनिया दोषमुक्त नज़र आती है ! मगर उसकी कहकशां में ज्ञान, शब्द सामर्थ, संभावना, सद्भावना और मुहब्बत की भरमार होती है ! उसकी रचनाओं को फ्री में छापने वाले संपादक और प्रकाशक से भी ' वो' सहमत और संतुष्ट नहीं होता ! 
                 प्रथम श्रेणी के लेखक को पहचानें कैसे ? बहुत आसान है, असली लेखक की बीबी हमेशा दुखी नज़र आती है। वो अपनी सभी सहेलियों को नेक सलाह देती रहती है - ' कभी किसी लेखक से शादी मत करना ! आर्टिकल के चैक इतने लेट आते हैं कि एक चैक के इंतज़ार में दो बार खुदकशी कर सकती हो-'! लेखक की मुहल्ले में किसी से पटती नहीं और नौकरी बार बार छूट जाती है ! असली लेखक अपनी प्रशंसा को भी शक की नजर से देखता है ! चौबीस कैरेट शुद्ध लेखक के जीन में कहीं न कहीं नास्तिकता परवरिश पाती है !   वो  इस  दुनियां और दुनियां बनाने वाले से भी बहुत ज़्यादा कन्विंस नहीं होता ! उसे न स्वर्ग की चाहत होती है न दोजख का खौफ ! अलबत्ता उसकी सच्चाई और इंसानियत से खुश ऊपर वाला उसे कई 'आमंत्रित'  संकट से उबारता रहता है ! अपने खुद्दार और बागी स्वभाव के चलते उसके दोस्त सीमित , प्रशंसक और विरोधी असीमित होते हैं ! ज़िंदगी एक इस्तीफे की शक्ल में हमेशा उसकी जेब में होती है !  इसलिए अगले जनम के बारे में उसकी दिली तमन्ना होती है कि,,,,,,,

हमारी रूह को तुम फिर से कैदे जिस्म मत देना !
बड़ी  मुश्किल से काटी है 'सजाए ज़िंदगी' हमने !!

      ( मित्रों कमेंट ज़रूर करें !!      (सुलतान भारती)           
 

Tuesday, 10 August 2021

व्यंग्य ("भारती") आज का "एकलव्य"

                " आज  का एकलव्य "

               महारथी द्रोण ने स्पोर्ट सेक्रेटरी को बुला कर आदेश दिया, - ' धनुर्विद्या के सारे स्टूडेंट को एस.एम.एस भेजो, सुबह सारे लोग लाक्षागृह स्टेडियम के ग्राउँड  टाइम पर पहुंचें ! नो एनी एक्सक्यूज़ !!' सचिव ने पूछ लिया ' ऐसी कौन सी इमरजेंसी है सर ! ओलंपिक को तो अभी तीन साल बाकी हैं !"
   ' इसी सोच के चलते गोल्ड मेडल को तरस जाते हो ! नो आरगूमेंट  इन दिस रिगार्ड ! जो कहा है करो !" इतना कहकर कोच द्रोणाचार्य अपनी कार की ओर चले गए !
उनके जाने के बाद कैंटीन के शेफ ने सेक्रेटरी से पूछा, -'का हो शुकुल ! चीफ साहेब काहे फायर हो रहे हैं ?'
       " ओलंपिक चैंपियन पैदा कर रहे हैं ! कल पांडव और कौरव दोनों खानदान के तीरंदाज़ को ग्राउण्ड में बुलाया है ! लेकिन ये हाथी के दिखाने वाले दांत हैं ! मामला कुछ और है !" 
      " ऐसा क्या"?
" बीस साल से इनका कैरेक्टर स्कैन कर रहा हूं! ये हस्तिनापुर के नहीं सिंहासन के वफादार हैं ! राजनीति में कमजोर विपक्ष का होना किसी कारावास से कम दुखदाई नहीं होता ! द्रोण जी बड़े माहिर खिलाड़ी हैं "!
     " मैं समझा नहीं भइया ?"
" अरे वर्मा जी ! मामला जलेबी की तरह सरल है ! द्रोण जी  पिछले बीस साल से कोच बने हुए हैं - कोऊ होय नृप हमें का हानि -! पांडव और कौरव दोनों एक दूसरे के प्रबल विरोधी, और ये दोनों दलों के पूज्यनीय ! जुए की आड़ में कोई हारे या किसी महिला का चीर हरण हो , ये सत्ता के साथ बने होते हैं ! लगता है मामला कुछ और है! दाल में कुछ काला है वर्मा जी "!
" आप को ऐसा क्यों लगता है "?
  " हम तो बादल की जगह हवा की  नमी परख कर ही मानसून का मिजाज़ परख लेते हैं!"
      " अब आप क्या करेंगे ?"
    " स्टिंग ऑपरेशन ! उनके कांफ्रेंस हॉल में खुफिया कैमरा लगा देता हूं ! कल भांडा फूट जाएगा "!
        लेकिन अगले दिन द्रोण ने प्लान चेंज कर दिया ! स्टेडियम की बजाय धनुर्धर अर्जुन को अपने बंगले पर बुला कर पूछा -' ये एकलव्य कौन है जानते हो ?'
       " क्लस्टर कॉलोनी का कोई दलित धनुर्धारी है जो बांस की तीर धनुष से ओलंपियन होने की प्रैक्टिस कर रहा है"!
     " कभी आमना सामना हुआ है ?"
 " आई डोंट बोदर गुरु जी ! ऐसे छोटे लोगों का तो मैं प्रणाम भी नहीं स्वीकारता ! मामला क्या है ?"
     " मामला गंभीर है, दो साल पहले पड़ोसी राज्य के एक दलित नेता का लेटर लेकर ये लड़का एकलव्य मेरे दफ़तर में आया था ! मैने उसका बायोडाटा और परफॉर्मेंस देखी - गज़ब का धनुर्धारी है ! उसे ओलंपिक टीम में शामिल करने पर एक गोल्ड मेडल पक्का है ! तभी मैंने फैसला कर लिया था कि देश के किसी भी स्टेडियम में उसे घुसने नहीं दूंगा ! एकलव्य तुम्हारे करियर के लिए कोरोना है "!
       " तो अब तक वो हस्तिनापुर में कर क्या रहा है गुरुदेव ? उस पर  'रासुका' लगा कर फ़ौरन अंदर काहे नाहीं करते !"
   ' क्रोध नहीं कौन्तेय ! मानसून बदल गया है- अब किसी दलित के साथ खुले आम दबंगई नहीं कर सकते ! और "कृष्ण" के होते ये संभव नहीं है ! कुछ और करना होगा "!
       " उसकी बस्ती पर बुल्डोजर चलवा दो ! और भी कई ऑप्शन हैं गुरु जी -, डीडीए से सर्कुलर जारी करवाओ या फिर पूरी बस्ती को वनविभाग की संपत्ति घोषित करवा दो "!
        " नहीं हो सकता , तुम्हारा फार्म हाउस भी वहीं पर है - अर्जुन समझा करो "!
         " तो फिर उसे अर्बन नक्सली घोषित कर सीधे एनकाउंटर करवा दो"! 
     " अगर ऐसा हुआ तो मरणासन्न विपक्ष को तुरंत  ऑक्सीजन सिलेंडर मिल जाएगा अर्जुन ! मामले की गंभीरता को - जानम समझा करो - ! सुना है  एकलव्य मेरी मूर्ति लगाकर धनुष विद्या सीख रहा है  ! मेरी परमीशन के बगैर  ?"
      " फिर तो  उस पर सीधा राजद्रोह का केस बनता है ! बगैर किसी मुकदमे के बीस साल के लिए अंदर करवा दो ! या फिर इसका नाम अलकायदा को फंडिंग करने वालों के साथ नत्थी कर दो "!
        " कहा न  कि कृष्ण जी के होते ऐसा कुछ नहीं हो सकता वत्स ! लेकिन ठहरो, एक रास्ता है ! सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी ! एकलव्य ! मैं आ रहा हूं -अब तो तू गया !!"
         " कैसे ?"
   " मैं उससे गुरु दक्षिणा मांगूगा " !  
        " जो चाचा श्री देते हैं उससे पेट नहीं भरता क्या ! ये भीख मांगने की आदत अच्छी नहीं है।"
          " मैं आटा नही अंगूठा मांगने जा रहा हूं वत्स ! अब तुम प्रैक्टिस छोड़ो और किसी बढ़िया प्राइवेट हॉस्पिटल की तलाश करो ! सर्जन अपने फेवर का होना चाहिए!. अंगूठा ऐसा काटे कि चौबीस घंटे में पूरे हाथ में इंफेक्शन हो जाए जिस से तीसरे दिन पूरा हाथ काटना पड़े ! इस बार गुरुदक्षिणा में पूरा हाथ चाहिए !  अपने  सारे दरबारी चैनल कल हॉस्पिटल में होने चाहिए ! कल हमारे फेवरिट चैनल दिन भर  गुरुदक्षिणा में अंगूठा देने वाले दलित शूरवीर की प्रशंसा करते रहें !"
            '' इस विज्ञापन से क्या होगा ?''
    " दूसरे मूर्ख शिष्यों को अंगूठा देने की प्रेरणा मिलेगी , अर्जुन समझा करो "!

       लेकिन,,,,,रातों-रात पांसा पलट गया था ! अगली सुबह जब द्रोण एकलव्य की बस्ती में पहुंचे तो वहां का मंज़र देख कर उनके पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई ! जहां कल तक उनकी मूर्ति लगी थी, वहां 'बाबा भीम राव अम्बेडकर     की मूर्ति नज़र आ रही थी और एकलव्य को सम्मानित करते हुए खुद युवराज दुर्योधन दलित जनसभा को संबोधित करते हुए माइक पर ऐलान कर रहे थे , - ' आप लोगोँ ने मेरा जो सम्मान किया  है, मैं अभिभूत हूँ ! आने वाले ओलंपिक में हस्तिनापुर से इस बार ओलंपिक दल के मुखिया होंगे- हमारे  मित्र धनुर्धारी एकलव्य कुमार ! कल से अपने सारे काम छोड़कर शाही कोच गुरु महारथी द्रोणाचार्य  एकलव्य को ट्रेनिंग देने आया  करेंगे ! " 
            सुन कर  गुरु द्रोण को चक्कर आ गया !  मंच पर फूल मालाओं से लदे योगीराज कृष्ण के होंठों पर मुस्कराहट देख कर द्रोणाचार्य को सारा खेल  समझ में  आ गया था  ! 
   समय "चक्र" ने अपना काम कर दिया था !

                                     ( सुलतान भारती )

Friday, 6 August 2021

"हम फेकेंगे तो फेंकोगे कि फेंकता है"

                 ( व्यंग्य "भारती")
         हम 'फेंकेंगे' तो फेंकोगे कि ''फेंकता" है
                     ----------------------- 
            मुबारक हो, किसी ने तो दम लगा कर ऐसा फेंका कि बड़े बड़े फेंकू धूल फांकने लागे ! टोकियो में भी एक से एक फेंकने वाले आए थे , जिनका फेंकने में बड़ा नाम था !  लेकिन नीरज चौपड़ा ने जब फेंका तो सारे फेंकने वाले कोमा में चले गए। तब से  फेंकने वालो को यही सदमा खाए जा रहा है कि आखिर नीरज चोपड़ा को इतना लंबा फेंकने के लिए प्रेरणा कहां से मिली ! उनके प्रेरणा स्रोत को जानने के लिए पूरा विश्व सर पटक  रहा है , और भारत वाले ऐसे मुस्करा रहे हैं गोया कह रहे हों - ' इशारों को अगर समझो राज को राज रहने दो -!' कभी कभी फेंकना देश हित में होता है ! अब तो हर भारतीय गर्व से कह सकता है कि - फेंकने में भी हमारा कोई मुकाबला नहीं ! हम फेंकने पर आ जाएं तो,,,, सुनो सुनो ओ दुनियां वालो, चाहे जितना ज़ोर लगा लो ! सबसे आगे होंगे हिन्दुस्तानी -'!
         नीरज ने जैवलिन ( भाला) क्या फेंका पूरा देश सोशल मीडिया पर फेंकने में लग गया ! फेंकने वालों को फेंकने का बहाना चाहिए ! भीगे उपले की तरह जाने कब से सुलग रहा दिल एक दम से धुआं देने लगा ! बस टोकियो की आड़ में सोशल मीडिया पर ओलंपिक शुरु हो गया ! कुछ विद्वानों ने ऐसी ऐसी पोस्ट फेंकी कि नीरज चोपड़ा भी  कन्फ्यूज हो  कर इस सोच  में  पड़  गया ,- जब मुझ से भी लंबा फेंकने वाले थे तो मुझे क्यों भेजा गया -!'  इस फेंका फांकी में अनायास ही फेसबुक के ओलंपियन नीरज की उपलब्धि को बौना करने में लगे थे ! फेंकने की शाश्वत परंपरा में ये बिलकुल निचले पायदान पर जमी 'काई' थी जो खुद को गिराने के लिए काफ़ी थी !
            वो एक ऐतिहासिक क्षण था जब नीरज भाला लेकर दौड़ा ! उसके भाले की रफ्तार के साथ करोड़ों भारतीयों की दुआएं भी परवाज़ कर रही थीं ! उसी भाले को दुनियां किसी अलग नज़र से देख रही थी और भारत में सोशल मीडिया के महापुरुष किसी और नज़र से ! फेंकने, उड़ने और लपेटने का मैराथन शुरु हो गया ! सोशल मीडिया पर  उड़ता भाला किसी को ज़ख्मी कर रहा था तो किसी को गुदगुदा रहा था ! लोग फेंक फेंक कर इतने गर्वित थे गोया  2024  की जीत का दरवाजा यहीं से खुल रहा हो ! दिल को बहलाने का गालिब खयाल अच्छा है ! 'नीरज' चोपड़ की जीत को सेलिब्रेट करने की बजाय लोग हवा में नज़र आ रहे " नानाजी" पर भाला फेंकने में लगे हुए थे ! इसी फर्जी ' ओलंपिक' से कई लोगों का ऑक्सीजन और शुगर लेवल ठीक हो रहा था ! फेंकने का टूर्नामेंट शुरू हो गया।
         फेंकता हर कोई है, किसी को टार्गट कंफर्म होता है तो कोई हवा में फेंकता है । जो कामयाब होता है, उसका तुक्का भी जनता को तीर नज़र आता है! फेंकने की गति, दिशा और कामयाबी - कॉन्फिडेंस पर निर्भर करती है ! और,,,, अच्छे नस्ल का कॉन्फिडेंस सत्ता में आने पर ही अंकुर लेता है ! सिंहासन बत्तीसी पर बैठने वाले पहले भी फेंका करते थे ! नब्बे के दशक में फेंकने वालो  ने  क्या  नारा  फेंका  था, - चार कदम सूरज की ओर -!  दिल्ली छोड़ कर वहां सूरज पर जाने क्या करने जा रहे थे ! जनता में नारा फेंक कर  'नर पति' सो गए मगर सूरज घबरा  कर सोचने लगा, - खुदा खैर करे, दिल्ली छोड़ कर मेरे पास क्या करने आ रहे हैं -! कहीं सदरी में समंदर तो नहीं भर रखा है -'?
          फेंकने वालों को फेंकने का बहाना चाहिए ! कल 'वर्मा जी' मोहल्ले में फेंक रहे थे ,- ' एक पत्रकार पूरी कॉलोनी को प्रदूषित कर सकता है ! अच्छा होगा कि मैं खुद मोहल्ला छोड़ कर कहीं और चला जाऊं -'! पास में खड़े दूध वाले चौधरी ने आग में घी डाल दिया,- ' कद लिकड़ रहे यहां ते ! ट्रक कौ खर्चा म्हारी तरफ़ ते !' वर्मा जी नजरों से ही भाला फेंक कर चलते बने ! फेंकना फितरत में शामिल हो जाए तो लाइलाज है। ऐसे फेंकने वाले शहर से गांव तक फैले हैं ! देहात का आदमी शहर से लौट कर गांव में फेंकता है,- ' जिस फैक्ट्री में काम करता हूं उनकी लड़की मुझे देखते ही फिदा हो गई थी !' मगर गांव वाले ऐसे फेंकू को कभी सेरियसली नहीं लेते  !जब भी किसी फेंकू को संजीदगी से लिया जाता है तो "कृपा " वहीं अटक जाती है ! इश्क में नाकाम आशिक की कल्पना शक्ति गजब की होती है ! सुनने वाले कुआंरे लौंडे हफ्तों पैरों में तकिया दबाकर करवटें बदलते है !

           हर आदमी  मौका पाकर फेंकता है ! हमारे देश में हारने वाला ज्यादा फेंकता है ! इमेज का डैमेज कंट्रोल का मामला हो या छवि चमकाने का , दोनों सूरतों में फेंका जाता है। फेंकने के लिए इश्क और सियासत बड़ी पोटेंशियल जगह है ! यहां नाकाम लोग तबियत से फेंक कर गैस खारिज़ करते हैं ! रिश्ता तय करते वक्त वर और वधू पक्ष हैसियत से ज़्यादा फेंकते हैं ! तो,,,, फेंकने पर इतना मत फेंको कि भाला पलट कर बूमरेंग हो जाए ! सियासत में  कोई पहली बार नहीं फेंक रहा है, एक से एक रिकॉर्डधारी गुजरे हैं  ! आप भी हॉर्न बजाते रहें - जगह मिलने पर 'साइड'  दी जायेगी ! तब जो मुंह में आए फेंक लेना ! एक शेर मैं भी फेंकता हूं ---

पेश्तर इसके कि हम उंगली उठाएं गैर पर !
अपनी सीरत का गिरेबां देख लेना चाहिए !!
                                                  (सुलतान भारती)

Monday, 2 August 2021

"अजगर करे न चाकरी"

        ( व्यंग्य "भारती")        
    "अजगर" करे न चाकरी" 

अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम !
दास मलूका कह गए सब के दाता "राम"!!

         इस दोहे से "चाकरी"  अर्थात सरकारी नौकरी की इंपोर्टेंस का पता चलता है ! कवि ( मलूक दास) सरकारी नौकरी को कितना महत्व देते थे ! उनकी नजर में चाकरी ( नौकरी) करने वाले ही 'काम' करते थे , बाकी सारे निठल्ले लोग रामजी पर निर्भर थे ! खास कर अजगर और पंछी उनकी नज़र में मुफ्तखोर थे ! ( ये कवि की अपनी व्यक्तिगत राय थी जिस पर अजगर या पक्षी की तरफ से आज तक कभी जनहित याचिका नहीं दायर की गई !) कवि के नजरिए से चाकरी करने वाले सुविधा भोगी लोगों के भरोसे ही सतयुग सांस लेता है ! चाकरी करने वाले अगरये मुगालता पाल लें कि देश उन्हीं के भरोसे चल रहा है तो गलत क्या है ! किंतु बहुत दिनों तक ताना सुनते सुनते आखिरकार बीसवीं शताब्दी में अजगर ब्यूरोक्रेसी में शामिल हो कर चाकरी करने लगे ! यही 'प्रगतिशील अजगर' आजकल कंप्यूटर पर विकास की फसल उगा रहे हैं! जब किसान आंदोलन में सारे किसान धरने पर बैठ गए तो खेती विशेषज्ञ अजगर  कागजों पर ट्रैक्टर और मंडी चलाने लगे ! तब से किसान आंदोलन कमज़ोर तथा फसल और अर्थ व्यवस्था  मजबूत हो रही है !  
                 अजगर का काम निगलना है और निगलने को कवि  "काम" में नहीं गिनता ! घात लगाना, शिकार को जकड़ना और फिर साबुत निगलना काम में नहीं आता ! जंगल कटे तो काफ़ी अजगर भेष बदलकर गावों में  रहने लगे ! ये दो पैर वालेअजगर निगलने के मामले में यहां भी काफ़ी बदनाम रहे पर निगलना नही छोड़ा ! अब दूसरों की ज़मीन और बंजर निगलना ही इनका पेशा है !  चोरी या चाकरी करना इनकी फितरत के खिलाफ है ! किंतु लेखक ने पंछी को  कैसे  निठल्ला  घोषित कर दिया ! क्या कवि ने अपनी लाइफ में कभी किसी पंछी को घोसला बनाते और अपने बच्चों को बचाने के प्रयास में सांप का शिकार होते नहीं देखा ? कवि ने  पंछी को जन धन योजना के लायक भी नहीं समझा !
           कई बार ऐसी रचनाएं भी साहित्य में शामिल कर ली गई हैं जिनका औचित्य शोध का विषय है। राजदरबारी कवियों का बुद्धि वैभव राजा की प्रतिभा और पसंद पर निर्भर करता था ! बादशाह का फेवरेट कवि या शायर जो भी लिख मारता वही साहित्य मान लिया जाता था ! आज़ भी कई  "चारण"  साहित्य के भीष्म पितामह बने हुए हैं ! साहित्य के ये कोलंबस कई दिवंगत साहित्यकारों की रचनाओं में  रहस्यवाद और छायावाद ढूंढ रहे हैं ! स्वर्ग में बैठा रचनाकर भी ये देख कर सकते में है कि जो मसाला उसने डाला ही नहीं वो कैसे बरामद हो रहा है ? अतीत में खानदानी रईस की तरह खानदानी साहित्यकार होने की भी सुविधा थी ! राजकवि की बेतुकी तुकबन्दी भी कालजई रचना मान ली जाती थी ! चुनौती का अर्थ साम्राज्य और साहित्य से विद्रोह माना जाता था ! ऐसे महान कवि और दबंग साहित्यकारों के कई गद्दीनशीन आज भी मौजूद हैं ! ये ओरिजनल साहित्य साधकों के लिए किसी 'परजीवी' से कम नहीं हैं ! इन्हीं का तैयार किया 'खांड' बाजार में 'कलाकंद' बता कर बेचा जा रहा है !  कुछ साहित्यिक अजगरों ने तो बाकायदा यूनियन बनाकर 'साहित्य सम्मान' की फेंसिंग तक कर रखी है ! 
          वैसे साहित्य की अपेक्षा सियासत में अजगर ज़्यादा हैं ! जीवन में कुछ न करने के बाद भी यह जीव सम्माननीय और पूज्यनीय बताए जाते हैं ! जनता की हर गाली पर वो थोड़े और महान हो जाते हैं ! सरकारी चारण उनकी आत्मकथा लिख कर उन्हें कालजई बनाने में लगे होते हैं ! निगलने की परंपरा को मरने के बाद भी सरकारी ज़मीन पर अपना स्मारक बनवा कर निभाते हैं ! जनता के कटे पर नमक छिड़कने के लिए ऐसे "अजगर " की मौत को ' देश के लिए अपूरणीय क्षति'  बताया जाता है !  ये अपूरणीय क्षति हमेशा अजगर के मरने पर ही होती है , - ' पंछी ' के मरने पर चिराग़ लेकर ढूढ़ने पर भी आज़ तक  'क्षति' नहीं देखी गई !
         जबसे गांवों के विकास फंड की रकम बढ़ी है, कई 'अजगर'  जनहित में प्रधान बन गए ! जनहित और जनसेवा काफ़ी पोटेंशियल साबित हुआ है ! गांव में मिलजुल कर निगलने का ज्यादा विकल्प है ! कोई मुंह खोल कर एतराज़ करे तो थोड़ी शीरीनी उसके आगे भी उगल देते हैं ! यह पंजीरी क्लोरीन की तरह चरित्र को कीटाणु मुक्त कर देती है ! कवि ने जाने कैसे कह दिया, - ' अजगर करे न चाकरी,,,,! अजगर के  बगैर तो विकास चक्र रुक जाएगा ! सारी दुनिया का बोझ 'वो' उठाते हैं ! देश के तमाम कुपोषित  "पंछी" इन्हीं की कृपा से पुष्टाहार योजना का गेहूं पाते हैं ! पिछली सरकार में ये कृपा मनरेगा  में अटक गई थी !
             कोरोना हर समस्या की नर्सरी  है ! अब तो विपक्ष को भी लगने लगा है कि हो न हो "कमल" को "कोरोना" ही ब्रेस्ट फीडिंग करा रहा हो ! गुल्लक में चाकरी  नहीं , जेब में पैसा नहीं- फिर भी मोरल हाई ! माजरा क्या है भाई ! आख़िर ये अच्छे दिन कब जाएंगे! सात साल लंबे पतझड़ में आत्मविश्वास के सारे पत्ते झड़ गए ! हजार बार बोला - गो  अच्छे दिन  गो -! किंतु जाने की बजाय अच्छा दिन दीर्घायु हो रहा है ! सारे टोटके आजमा लिए पर कुंडली में "शनि" जैसे अजगर बन कर लेट गया है ! मन का' पंछी' आह भर कर गुहार लगा रहा है ,- कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन !!
                            (  सुलतान भारती )