Monday, 19 July 2021

आस्था

                             '' आस्था "

          अल्लाह झूठ न बोलाए - आजकल अजगर से ज्यादा आस्था से डर लगने लगा है - क्या पता कब निगल जाए ! आस्था और अजगर में गज़ब की समानताएं हैं ! दोनों ही ज़िंदा प्राणी को जकड़ कर शिकार करते हैं ! दोनों का शिकार तिल तिल कर मरता है ! फर्क बड़ा मामूली है - बेचारा अजगर नाशवान है, आस्था अजर अमर है !अजगर छुपकर शिकार करता है ,जबकि आस्था खुलेआम मजमा लगा कर शिकार करती है। अजगर के शिकार करने की एक लिमिट है' ( एक शिकार निगलने के बाद वो महीनों शिकार के करीब नहीं जाता!) आस्था का शिकार से कभी पेट नहीं भरता , वह हर वक्त शिकार को पुकारता रहता है,- ' खुला है मेरा पिंजरा आ मोरी मैना ' -!
                     "अंधी आस्था" कोरोना से ज़्यादा घातक है ! अंध आस्था से संक्रमित जीव को  कोई दवा सूट नहीं करती ! भरपूर ऑक्सीजन में भी फेफड़े प्रॉपर सांस नहीं लेते! आस्था से पीड़ित मरीजों  के तारणहार का एड्रेस पब्लिक शौचालय  में मिलता है, - ऊपरी हवा, गुप्त रोग, काला जादू , सफेद टोटका, नाकाम इश्क और इकतरफा मुहब्बत में कामयाबी के लिए काली भक्त बंगाली बाबा   सूफी "कोरोना शाह" से मिलें-'! ( छिछोरे आशिक तुरंत ताबीज़ लेने निकल पढ़ते है !) यहां तर्क बुद्धि, विवेक और आंख वालों का प्रवेश वर्जित है - इसलिए जूते के साथ इन्हें भी बाहर उतार कर आएं ! आस्था को देखने के लिए आंखें बन्द करनी पड़ती हैं ! 

        आस्था का फूड चार्ट काफी लंबा है ! पहले ये सिर्फ जानवर की बलि लेती थी, अब आदमी भी इसकी हिट लिस्ट में है ! हर धर्म में आस्था के शिकारी और व्यापारी शिकार मौजूद  हैं ! इनकी यूनिफॉर्म अलग हो सकती है धंधा एक ही है,- आस्था के उस्तरे से जनता का मुंडन करना ! फिर चाहे अजमेर हो या अयोध्या , कोई फ़र्क नहीं पड़ता ! पब्लिक के लिए जो धर्म है, इनके लिए धंधा ! पब्लिक आस्था लेकर जाती है - आह लेकर आती है ! आस्था से लैस शिकारी पाप पुण्य की अनुभूति से मुक्त होकर शिकार को नोचता है ! चूंकि वह पृथ्वी पर ईश्वर/ अल्लाह का अधिकृत प्रतिनिधि है , अत: उसे  नर्क और दोजख का कोई भय नहीं होता ! स्वर्ग और नर्क की चिंता जनता का मैटर है !
         कई साल पहले ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की ज़ियारत के लिए अजमेर गया था ! जब गया तो अकीदत से लबालब था ! लौटा तो ऐसा लग रहा था गोया किसी ने मेरी किडनी निकाल ली हो ! वहां जाकर महसूस किया कि जेबकतरों का एक गिरोह दरगाह के बाहर सक्रिय है, दूसरा दरगाह के अंदर !  बाहर वाले छुप छुपा कर जेब काटते हैं ! अंदर वाले गाव तकिया लगा कर खुलेआम  "कारसेवा" करते हैं ! बाहर वाले से आप बच सकते हैं , अंदर वाले से नहीं ! जैसे मानसून से लदे बादलों को मोर पहचान कर नाचने लगता है, ठीक वैसेजेब में 'मानसून' लेकर आए भक्तों को मुज़ावर ताड़ लेते हैं ! मुण्डन से पहले   आवभगत कुछ इस तरह शुरू होती है , -  आइए हजरत क्या नाम है आपका ?'
      ' सय्यद मुहम्मद जमील !' 
   ' माशा अल्लाह! सय्यद हैं आप ! सय्यद साहब अपना एड्रेस बताइए !'  ( आप खुशी खुशी पता लिखाते हैं !) अब आस्था पर उस्तरा शुरू हुआ,- ' कितना नज़राना दे रहे हैं ?  निकालिए !'
    आप एफिल टॉवर से फिसल कर बंगाल की खाड़ी मेंआकर गिरते हैं ,- " कैसा नज़राना ! मैं समझा नहीं !"
 " इतने बड़े बुजर्गे दीन के दरबार में खड़े होकर बखील होना ठीक नहीं , निकालिए नज़राना "!! इस बार उसका लहजा दबंगई का था़ !
       " बुजुर्गाने दीन को पैसे की क्या जरूरत ?"
 अब खादिम की त्योरी चढ़ गई, - '' दिल्ली से पैदल चल कर आए हो क्या ? तुम भी तो यहां कुछ मांगने ही आए हो ! कुछ पाना है तो जेब ढीली कर ! इस हाथ दे उस हाथ ले "!  मैंने सोचा - बहस बेकार है ! ज़्यादा बहस किया तो अंदर ज़ियारत भी नहीं करने देगा ! चुपचाप सौ रुपए का नोट पकड़ा दिया ! नोट लेकर उसने मुझे ऐसे देखा गोया कह रहा हो,- इतनी छोटी औकात ! आइंदा ध्यान रखना, यहां के हम सिकंदर- !! ( मुझे बनारस के पंडों पर बनी दिलीप कुमार की फिल्म "संघर्ष" याद आ गई !)
               बाहर की दुकानों पर जायरीनों के लिए बिकने वाली चादर,फूल, शीरीनी की दुकानों पर खादिम के ही आदमी बैठे हैं ! मजार से घूम कर ये चादरें दुबारा बिकने आ जाती हैं  आस्था का कोल्हू बगैर बैल के चालू है !  ख़्वाजा साहब की नेम प्लेट लगाकर श्रद्धालुओं का जूस निकाला और बेचा जा रहा है ! जाने वाले लोगों की मुरादें पूरी हों या न हों, पर आस्था के 'अंगुलिमाल'  का टार्गट तो कोरोना भी नहीं रोक पाता ! जेब में रखी सारी 'आस्था' दे दे -मुरादें ले ले !! ( वरना बददुआ का भी व्यापक इंतज़ाम है )! 
      अजमेर के ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के अस्तित्व का तो एक सच्चा इतिहास है, पर आस्था के खुदरा कारोबार चलाने वालों ने तो दूर दराज गांवों में हजारों कल्पित 'सूफी',  'ख़्वाजा' या ' शहीद बाबा' की 'प्राण प्रतिष्ठा' कर दी है ! यहां  आस्था के लोबान में घर की जीडीपी जलती है ! ऐसी हर मजार की तहकीक करने पर लगभग एक जैसी कहानी बताई जाती है, - " एक बार की बात है, गांव के सुकई चच्चा का रात में पेट खराब हुआ तो वो लोटा लेकर उधर झाड़ियों में चले गए! रात के दो बजे थे, अभी वो धोती खोल कर बैठे ही थे कि सफेद कपड़े में तलवार लिए एक बुजुर्ग काले घोड़े पर बैठ कर झाड़ियों से बाहर निकले और कड़क कर बोले '  मेरी मजार के पास पेट ख़ाली कर रहा है ! यहां पर मेरा मजार बनवा , वरना गांव में तबाही आ जायेगी - ! बस तब से 'घोड़े वाले बाबा' की कृपा से सुकई के घर में किसी का पेट नहीं खराब हुआ ! साल में दो बार उर्स होता है "!
         गांवों में ऐसे शहीद बाबा बहुत हैं जिनकी कोई शिनाख्त नहीं पर किवदंतियां अनंत हैं ! आस्था के कई कोलंबस तो - सरकारी जमीन ,विवादित भूखंड, रेलवे प्लेटफॉर्म' और हाईवे के बीचों बीच डिवाइडर के नीचे भी  'शहीद बाबा' को भी ढूंढ लेते हैं ! गांवों में पाए जाने वाले इन दिव्य शहीद और सूफी बाबाओं की हिंदू वर्जन विभूतियां अनंत हैं, जगह जगह पीपल पर  'पहलवान वीर बाबा' उपलब्ध हैं जो भाग्यशाली भक्तों को 'सिर्फ रात' में दिखाई देते हैं ! ( शहीद बाबा और पहलवान बाबा दिन में शायद सोशल डिस्टेंसिंग के चलते बाहर नहीं निकलते !)  "खौफ" - अकीदत  का ऑक्सीजन है ! भय के बगैर आस्था दूध कहां देती है। खौफ बरकरार रहे तो तारणहार का वेट लॉस  नहीं होगा!आस्था की तहबाजारी वसूलने में लगे महापुरुष जानते हैं कि प्राणी दिव्य और अलौकिक की खोज में ज्यादा घूमता है ! जिन्न, खबीस, चुड़ेल, प्रेत, शहीद बाबा, पिशाच या पहलवान बाबा की 'सवारी' कभी गलती से भी पढ़े लिखे आदमी पर नहीं आती ! ये महान विभूतियां हमेशा गरीब और अनपढ़ को ही चुनती हैं ! हमारे बचपन की एक कहानी है ! उर्स के मौके पर एक अनपढ़ और गैर नमाजी आदमी पर "शहीद बाबा" की सवारी आ गई ! वह ढोंगी आदमी तुरंत सम्मानीय और पूज्यनीय हो गया ! अनपढ़ और पढ़े लिखे सभी नर नारी उसे अपनी अपनी घरेलू समस्याएं बताने लगे !अब खुदा ने मैदान छोड़ दिया था और सारा चार्ज शहीद बाबा का प्रतिनिधि संभाल चुका था ! तभी गांव के प्रधान ने धीरे से पूछा,- ' शहीद बाबा ! आप का नाम क्या है ?' 
      इस आकस्मिक सवाल के लिए ' शहीद बाबा' बिलकुल तैयार नहीं थे ! मगर देर तक चुप्पी आस्था के दूध में नींबू साबित हो सकती थी ! उन्होंने जल्दबाजी में जवाब दिया , ' मेरा नाम ' अनजनते ' ( कुछ पता नहीं ) है '!! तब से आज तक उस मजार को "अनजनते शहीद की मजार ' के नाम से जाना जाता है ! बहुत दिनों से उपेक्षित उस मजार पर पिछले साल से बेकारी के मारे एक नौजवान ने चार्ज संभाल लिया है ! देखते हैं कि घोड़ा समेत  शहीद बाबा झाड़ियों से किस जुमेरात को बाहर आते हैं !!

     ।।।।           ( सुलतान भारती )         ।।।।
              

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