Sunday, 25 July 2021

" ऑक्सीजन खा कर मरे होंगे !'

         ऑक्सीजन खा कर मरे होंगे ''

       सतयुग में दैहिक दैविक भौतिक संताप नही था, इसलिए डॉक्टर और अस्पताल नहीं होते थे ! तब लोग नार्मल मौत मरते थे, बीमारी थी ही नहीं ! कालचक्र
चलता चलता दोबारा कलयुग पर आकर रुक गया है ! कांग्रेस के लए कलियुग में आयातित दैहिक दैविक भौतिक बीमारियों से अब देश मुक्त हो चुका है ! इसलिए  कोई प्राणी  'आटा' या 'ऑक्सीजन' की कमी से नहीं मरेगा  ! किंतु  सत्ता वनवास झेल रहे विपक्ष ने आरोप लगाया है कि अप्रैल और मई में सैकड़ों लोग ऑक्सीजन की कमी से मर गए !  यह सरासर सफ़ेद झूठ है ! देश में ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं हुई ! देश में इतनी ऑक्सीजन है कि कभी कभी सिलेंडर में ब्लॉस्ट हो जाता है ! इस तरह ऑक्सीजन की अधिकता से लोग मर जाते हैं ! ग्रामीण बहनों में चल रही 'उज्ज्वला योजना' भी इस बात का प्रमाण है कि देश में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है !
           मरने वालों को मरने का बहाना चाहिए। कोरोना से नही मरे तो ऑक्सीजन सिलेंडर निगल लिया। देश में न तो ऑक्सीजन देने वाली गाय की कमी है न ही पीपल की ! फिर भला कोई ऑक्सीजन की कमी से कैसे मर सकता है ! थोडा बहुत ऑक्सीजन कम पड़ भी जाती तो आम,महुआ, बबूल और कींकर से ले लेंगे ! अकेले यूपी में इतने पेड़ पौधे हैं कि पूरे देश को ऑक्सीजन दे सकता है ! महानगरों में भी शायद ही कोई अस्पताल होगा जहां पीपल या बंदर न उपलब्ध हों ! ये दोनों जनहित में हैं ! एक से ऑक्सीजन मिलती है दूसरे से आस्था - मरीज़ मर ही नहीं सकता ! और अगर इतनी सुविधा के बाद भी कोई मर गया तो उस की जांच होनी चाहिए, क्या पता अपोजिशन ने उसे मरने के लिए मोटिवेट किया हो !
          जो लोग सरकार पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से लोग मरे हैं ! उनके ऊपर एफआईआर दर्ज होनी चाहिए ! प्रूफ क्या है, मरने के बाद क्या मुर्दे ने बयान दिया था या यमराज ने बिसरा रिपोर्ट भेजी है  ? ये सरासर झूठ है! देश में सिलेंडर की कमी हो सकती है, ऑक्सीजन की नही ! बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण का  अभियान चलाया जा रहा है , फिर काहे हल्ला मचाते हो ! दूसरी लहर में एक भी आदमी ऑक्सीजन की कमी से नहीं मरा ! जो गंगा में बहते हुए बंगाल की ओर जा रहे थे, उनमें से किसी एक का बयान दिखा दो ! एक भी स्टेटमेंट है किसी के पास ? ये सब विपक्ष की साजिश है जो  विकास देख कर अंट संट बोल रहा है !! सीधा सा मामला है - एक्सपायरी डेट आई - मर गए ! इसमें ऑक्सीजन की क्या गलती ! कितने डॉक्टर सिलेंडर पर लेटे लेटे भवसागर पार कर गए ! वहां किसको दोष दें ?
                     इसलिए ज़्यादा बकर बकर मत करो ! जब से विपक्ष के बरगलाने पर किसानों ने आन्दोलन शुरू किया है, तब से खाद्य संकट काफी बढ़ गया है ! जनता भूख से मर रही है और बेचारा कोरोना मुफ्त में बदनाम हो रहा है ! खुद किसान काजू  खा रहा है, और जनता को 'कुम्हड़ा' भी नसीब नहीं ! कांग्रेस को ऐसा अन्याय नहीं करना चाहिए ! उन्हें मंहगाई और भुखमरी से हुई मौत के लिए अविलंब देश से माफ़ी मांगनी चाहिए ! हम विपक्ष का दर्द समझ रहे हैं ! धृतराष्ट्र को भी यही बीमारी थी -"सत्ता मोह" ! अब जनता और  ईवीएम माता का आशीर्वाद किसे मिलेगा ये तो - देवो न जाने कुतो विपक्ष: !! तुम्हारे छाती पीटने से सतयुग नहीं जाने वाला ! धीरज से काम लो , बनवास लंबा है !
            पहले जब ऑक्सीजन सिलेंडर फट जाते थे, तब किसी ने नहीं कहा कि ऑक्सीजन की वजह से मौत हुई ! (गैस तो गैस है - ऑक्सीजन हो या एल.पी.जी.!) हमने कभी कमी नहीं होने दी ! तो फिर काहे इतना बड़ा झूठ बोलते हो ! विपक्ष को प्रायश्चित करना चाहिए ! रही मरने की बात तो पहले भी  लोग मरा करते थे ! द्वापर त्रेता और कलियुग में भी वायरस आते थे , पर कोई सत्ता पर ऑक्सीजन की कमी का इल्ज़ाम नही लगाता था ! ऑक्सीजन के लिए ईश्वर ने गाय, पीपल और जंगल पैदा कर दिया है ! ऑक्सीजन की जिम्मेदारी  ईश्वर की  है, सरकार  की  नहीं ! हम  अर्थव्यवस्था  संभाले  या  ऑक्सीजन सिलेंडर ! ये तो हमारी महानता है कि हम कांग्रेस के द्वारा ऊसर बना दी गई भूमि को उपजाऊ बनाने में लगे हैं ! ( और कोई होता तो झोला उठा कर चला गया होता !)
           मृत्यु शाश्वत सत्य है ! रजिस्टर में प्राणी की एक्सपायरी डेट देखते ही यमराज अपने भैंसे  से बोल पड़ते हैं, - "चलो रे  डोली उठाओ कहांर-!" अब तुम चाहे पूरा ऑक्सीजन सिलेंडर रोगी के मुंह में घुसेड़ दो , तो भी कुछ नहीं हो सकता ! वक्त से पहले कोई नहीं मरता और एक्सपायरी डेट के बाद कोई नहीं चलता ! तो इसमें ऑक्सीजन के होने या न  होने का आरोप क्यों ! वो कहावत नही सुनी,- हिल्ले रोज़ी बहाने मौत-! ऑक्सीजन तो बहाना था ,असल में बंदे को मौत के साथ डेट पर जाना था ! इसलिए हे सत्ता का अज्ञातवास काटने वाले राजहंस ! ऐसा आरोप मत लगाओ कि ऑक्सीजन की कमी के चलते लोगों की मौत हुई थी ! ऑक्सीजन की कहीं कोई कमी नहीं है , अस्पताल में न  शमशान में ! तीसरी लहर कॉलबेल बजा रही है-खोलो प्रियतम खोलो द्वार-! चुनाव समझ कर दरवाजा मत खोल देना ! अभी तुम्हारी ग्रहदशा ठीक नहीं चल रही ! ऐसी मन:स्थिति में अक्सर कोरोना में पेगासस और पेगासस में कोरोना दिखाई देता है!

            इस मानसून में निर्गुण गाइए - मन रे ! काहे  न धीर धरे - !
                                           ( सुलतान भारती )
 

Saturday, 24 July 2021

           
                 अबुल हाशिम  और  " परवाज़"

अबुल हाशिम की पूरी ज़िंदगी साहस, संघर्ष और सफलता का एक मजमुआ है जो हजारों ख्वाब को परवाज़ देने में सक्षम है ! लेखक की ज़िंदगी पगडंडी से शुरू होकर पत्थर की सीढियों से गुजर कर अपने मंजिले मकसूद तक जाने का एक अविष्मरणीय सफरनामा है !
        लेखक ने गज़ब की भाषा अपनाई है जो पाठकों को परवाज़ के आखिरी पन्नों तक अपने तिलिस्म में बांध कर रखती है ! किताबों की कायनात में  "परवाज़" एक मशाल भी है और एक मिसाल भी ! पढ़ने के बाद हर पाठक मेरे इस दावे से सहमत होगा।

Monday, 19 July 2021

आस्था

                             '' आस्था "

          अल्लाह झूठ न बोलाए - आजकल अजगर से ज्यादा आस्था से डर लगने लगा है - क्या पता कब निगल जाए ! आस्था और अजगर में गज़ब की समानताएं हैं ! दोनों ही ज़िंदा प्राणी को जकड़ कर शिकार करते हैं ! दोनों का शिकार तिल तिल कर मरता है ! फर्क बड़ा मामूली है - बेचारा अजगर नाशवान है, आस्था अजर अमर है !अजगर छुपकर शिकार करता है ,जबकि आस्था खुलेआम मजमा लगा कर शिकार करती है। अजगर के शिकार करने की एक लिमिट है' ( एक शिकार निगलने के बाद वो महीनों शिकार के करीब नहीं जाता!) आस्था का शिकार से कभी पेट नहीं भरता , वह हर वक्त शिकार को पुकारता रहता है,- ' खुला है मेरा पिंजरा आ मोरी मैना ' -!
                     "अंधी आस्था" कोरोना से ज़्यादा घातक है ! अंध आस्था से संक्रमित जीव को  कोई दवा सूट नहीं करती ! भरपूर ऑक्सीजन में भी फेफड़े प्रॉपर सांस नहीं लेते! आस्था से पीड़ित मरीजों  के तारणहार का एड्रेस पब्लिक शौचालय  में मिलता है, - ऊपरी हवा, गुप्त रोग, काला जादू , सफेद टोटका, नाकाम इश्क और इकतरफा मुहब्बत में कामयाबी के लिए काली भक्त बंगाली बाबा   सूफी "कोरोना शाह" से मिलें-'! ( छिछोरे आशिक तुरंत ताबीज़ लेने निकल पढ़ते है !) यहां तर्क बुद्धि, विवेक और आंख वालों का प्रवेश वर्जित है - इसलिए जूते के साथ इन्हें भी बाहर उतार कर आएं ! आस्था को देखने के लिए आंखें बन्द करनी पड़ती हैं ! 

        आस्था का फूड चार्ट काफी लंबा है ! पहले ये सिर्फ जानवर की बलि लेती थी, अब आदमी भी इसकी हिट लिस्ट में है ! हर धर्म में आस्था के शिकारी और व्यापारी शिकार मौजूद  हैं ! इनकी यूनिफॉर्म अलग हो सकती है धंधा एक ही है,- आस्था के उस्तरे से जनता का मुंडन करना ! फिर चाहे अजमेर हो या अयोध्या , कोई फ़र्क नहीं पड़ता ! पब्लिक के लिए जो धर्म है, इनके लिए धंधा ! पब्लिक आस्था लेकर जाती है - आह लेकर आती है ! आस्था से लैस शिकारी पाप पुण्य की अनुभूति से मुक्त होकर शिकार को नोचता है ! चूंकि वह पृथ्वी पर ईश्वर/ अल्लाह का अधिकृत प्रतिनिधि है , अत: उसे  नर्क और दोजख का कोई भय नहीं होता ! स्वर्ग और नर्क की चिंता जनता का मैटर है !
         कई साल पहले ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की ज़ियारत के लिए अजमेर गया था ! जब गया तो अकीदत से लबालब था ! लौटा तो ऐसा लग रहा था गोया किसी ने मेरी किडनी निकाल ली हो ! वहां जाकर महसूस किया कि जेबकतरों का एक गिरोह दरगाह के बाहर सक्रिय है, दूसरा दरगाह के अंदर !  बाहर वाले छुप छुपा कर जेब काटते हैं ! अंदर वाले गाव तकिया लगा कर खुलेआम  "कारसेवा" करते हैं ! बाहर वाले से आप बच सकते हैं , अंदर वाले से नहीं ! जैसे मानसून से लदे बादलों को मोर पहचान कर नाचने लगता है, ठीक वैसेजेब में 'मानसून' लेकर आए भक्तों को मुज़ावर ताड़ लेते हैं ! मुण्डन से पहले   आवभगत कुछ इस तरह शुरू होती है , -  आइए हजरत क्या नाम है आपका ?'
      ' सय्यद मुहम्मद जमील !' 
   ' माशा अल्लाह! सय्यद हैं आप ! सय्यद साहब अपना एड्रेस बताइए !'  ( आप खुशी खुशी पता लिखाते हैं !) अब आस्था पर उस्तरा शुरू हुआ,- ' कितना नज़राना दे रहे हैं ?  निकालिए !'
    आप एफिल टॉवर से फिसल कर बंगाल की खाड़ी मेंआकर गिरते हैं ,- " कैसा नज़राना ! मैं समझा नहीं !"
 " इतने बड़े बुजर्गे दीन के दरबार में खड़े होकर बखील होना ठीक नहीं , निकालिए नज़राना "!! इस बार उसका लहजा दबंगई का था़ !
       " बुजुर्गाने दीन को पैसे की क्या जरूरत ?"
 अब खादिम की त्योरी चढ़ गई, - '' दिल्ली से पैदल चल कर आए हो क्या ? तुम भी तो यहां कुछ मांगने ही आए हो ! कुछ पाना है तो जेब ढीली कर ! इस हाथ दे उस हाथ ले "!  मैंने सोचा - बहस बेकार है ! ज़्यादा बहस किया तो अंदर ज़ियारत भी नहीं करने देगा ! चुपचाप सौ रुपए का नोट पकड़ा दिया ! नोट लेकर उसने मुझे ऐसे देखा गोया कह रहा हो,- इतनी छोटी औकात ! आइंदा ध्यान रखना, यहां के हम सिकंदर- !! ( मुझे बनारस के पंडों पर बनी दिलीप कुमार की फिल्म "संघर्ष" याद आ गई !)
               बाहर की दुकानों पर जायरीनों के लिए बिकने वाली चादर,फूल, शीरीनी की दुकानों पर खादिम के ही आदमी बैठे हैं ! मजार से घूम कर ये चादरें दुबारा बिकने आ जाती हैं  आस्था का कोल्हू बगैर बैल के चालू है !  ख़्वाजा साहब की नेम प्लेट लगाकर श्रद्धालुओं का जूस निकाला और बेचा जा रहा है ! जाने वाले लोगों की मुरादें पूरी हों या न हों, पर आस्था के 'अंगुलिमाल'  का टार्गट तो कोरोना भी नहीं रोक पाता ! जेब में रखी सारी 'आस्था' दे दे -मुरादें ले ले !! ( वरना बददुआ का भी व्यापक इंतज़ाम है )! 
      अजमेर के ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के अस्तित्व का तो एक सच्चा इतिहास है, पर आस्था के खुदरा कारोबार चलाने वालों ने तो दूर दराज गांवों में हजारों कल्पित 'सूफी',  'ख़्वाजा' या ' शहीद बाबा' की 'प्राण प्रतिष्ठा' कर दी है ! यहां  आस्था के लोबान में घर की जीडीपी जलती है ! ऐसी हर मजार की तहकीक करने पर लगभग एक जैसी कहानी बताई जाती है, - " एक बार की बात है, गांव के सुकई चच्चा का रात में पेट खराब हुआ तो वो लोटा लेकर उधर झाड़ियों में चले गए! रात के दो बजे थे, अभी वो धोती खोल कर बैठे ही थे कि सफेद कपड़े में तलवार लिए एक बुजुर्ग काले घोड़े पर बैठ कर झाड़ियों से बाहर निकले और कड़क कर बोले '  मेरी मजार के पास पेट ख़ाली कर रहा है ! यहां पर मेरा मजार बनवा , वरना गांव में तबाही आ जायेगी - ! बस तब से 'घोड़े वाले बाबा' की कृपा से सुकई के घर में किसी का पेट नहीं खराब हुआ ! साल में दो बार उर्स होता है "!
         गांवों में ऐसे शहीद बाबा बहुत हैं जिनकी कोई शिनाख्त नहीं पर किवदंतियां अनंत हैं ! आस्था के कई कोलंबस तो - सरकारी जमीन ,विवादित भूखंड, रेलवे प्लेटफॉर्म' और हाईवे के बीचों बीच डिवाइडर के नीचे भी  'शहीद बाबा' को भी ढूंढ लेते हैं ! गांवों में पाए जाने वाले इन दिव्य शहीद और सूफी बाबाओं की हिंदू वर्जन विभूतियां अनंत हैं, जगह जगह पीपल पर  'पहलवान वीर बाबा' उपलब्ध हैं जो भाग्यशाली भक्तों को 'सिर्फ रात' में दिखाई देते हैं ! ( शहीद बाबा और पहलवान बाबा दिन में शायद सोशल डिस्टेंसिंग के चलते बाहर नहीं निकलते !)  "खौफ" - अकीदत  का ऑक्सीजन है ! भय के बगैर आस्था दूध कहां देती है। खौफ बरकरार रहे तो तारणहार का वेट लॉस  नहीं होगा!आस्था की तहबाजारी वसूलने में लगे महापुरुष जानते हैं कि प्राणी दिव्य और अलौकिक की खोज में ज्यादा घूमता है ! जिन्न, खबीस, चुड़ेल, प्रेत, शहीद बाबा, पिशाच या पहलवान बाबा की 'सवारी' कभी गलती से भी पढ़े लिखे आदमी पर नहीं आती ! ये महान विभूतियां हमेशा गरीब और अनपढ़ को ही चुनती हैं ! हमारे बचपन की एक कहानी है ! उर्स के मौके पर एक अनपढ़ और गैर नमाजी आदमी पर "शहीद बाबा" की सवारी आ गई ! वह ढोंगी आदमी तुरंत सम्मानीय और पूज्यनीय हो गया ! अनपढ़ और पढ़े लिखे सभी नर नारी उसे अपनी अपनी घरेलू समस्याएं बताने लगे !अब खुदा ने मैदान छोड़ दिया था और सारा चार्ज शहीद बाबा का प्रतिनिधि संभाल चुका था ! तभी गांव के प्रधान ने धीरे से पूछा,- ' शहीद बाबा ! आप का नाम क्या है ?' 
      इस आकस्मिक सवाल के लिए ' शहीद बाबा' बिलकुल तैयार नहीं थे ! मगर देर तक चुप्पी आस्था के दूध में नींबू साबित हो सकती थी ! उन्होंने जल्दबाजी में जवाब दिया , ' मेरा नाम ' अनजनते ' ( कुछ पता नहीं ) है '!! तब से आज तक उस मजार को "अनजनते शहीद की मजार ' के नाम से जाना जाता है ! बहुत दिनों से उपेक्षित उस मजार पर पिछले साल से बेकारी के मारे एक नौजवान ने चार्ज संभाल लिया है ! देखते हैं कि घोड़ा समेत  शहीद बाबा झाड़ियों से किस जुमेरात को बाहर आते हैं !!

     ।।।।           ( सुलतान भारती )         ।।।।
              

Saturday, 17 July 2021

' देख पराई चूपड़ी मत ललचावे जीव '

  " देख पराई चूपड़ी मत ललचावे जीव"

           मैं बालकनी में बैठा हूं, सुबह से बारिश की झमाझम चल रही है । आत्मनिर्भर और सरकारी सुविधा भोगी लोगों के लिए ये पकौड़े का मौसम है और गरीब के लिए टटिया और छप्पर संभालने का ! मेरी प्रॉब्लम कुछ और है! किसी फेसबुकिया आलिम ने मेरे फोन पर मैसेज भेजा है, - देख पराई चूपड़ी मत ललचावे जीव -!  तब से मैं इसी सांप सीढ़ी में उलझा हुआ हूं ! क्या कोई महान आत्मा  इस पंक्ति का अर्थ बता सकता है ? ( वो  अर्थ बिलकुल मत बताना जो मिडिल स्कूल में 'मास्साब' ने सिखाया था !) मुझे तो इस पंक्ति के पीछे खड़े छायावाद  की फ़ोटोकॉपी  चाहिए !  बड़ा मुश्किल काम है ना !सोच कर ही अक्ल गाण्डीव  रख कर भागने लगती  है !  वर्मा जी से पूछा तो बोले,- ' आसान है-बता देता हूं -- 'फ्री में कोविड शील्ड लगवाने वालों को,  पैसा देकर स्पुतनिक लगवाने वालों से ईर्ष्या नहीं करना चाहिए -'! मैने एतराज उठाया, - जब ये दोहा लिखा गया, तब कोरोना कहां था "?  वर्मा जी  आंखें तरेर कर ढिठाई पर उतर आए - 'तो क्या हुआ, हैजा प्लेग और चेचक तो  प्रचुर मात्रा में था़ , उसमें एडजस्ट कर लो " !
                           ये सरासर जबरदस्ती थी, फिर भी मैंने उनसे अनुरोध किया, -' आप जैसे प्रकांड विद्वान से देश को बड़ी आशाएं हैं ! सत्यमेव जयते का अस्तित्व आप जैसे लोगों के कारण अजर अमर है "! खुश होने की बजाय उन्होंने शंकित होकर मुझे देखा , फिर फर्जी दार्शनिक के अंदाज़ में बोले- ' इसका अर्थ है - दूसरे का लिंटर पड़ते देख कर अपने दिल का छप्पर नहीं जलाना चाहिए -!" फिर अचानक भड़क उठे -' तेरी बहुत बुरी आदत है , तू मेरा मुकाबला कभी नहीं कर सकता !"
     " क्यों क्या हुआ ?"
  ' तेरे दो चार लेख क्या छप गए कि तू खुद को मुझसे बड़ा लेखक समझने लगा ! अब यहां पर तू पराई चूपड़ी
पर राल टपका रहा है "!
            " नहीं टपकाऊंगा, पर इतना तो बता दो कि आप किस अख़बार में लिखते हैं , मैंने कभी पढ़ा  या देखा नही! !!"
       वर्मा जी बगैर बताए ही उठ कर चले गए।
          समस्या जस की तस है ! चाह कर भी खुद को  -पराई चूपड़ी - से हटा नहीं पा रहा हूं ! आख़र  क्या है ये पराई चूपड़ी , जिसकी तरफ झांकने से कैरेक्टर ढीला होता है ! ये जानने के लिए दोहे की पहली लाइन उठा कर देखते हैं ,- रूखी सूखी खाय कर ठंढा पानी पीव -! दोहे का सीक्वेंस बताता है कि इसे लिखने वाले कवि के घर में आटे का कनस्तर खाली हो गया था और अगले दिन के लिए सिर्फ बासी रोटी बची थी ! कवि ने सुबह ब्रेकफास्ट में नाश्ते की फरमाइश की होगी और तब बीवी ने फटकार लगाई  होगी , -' कनस्तर खाली है और 'पांचू ' लाला अब और उधार नहीं देने वाला ! रात को यही दो रोटी बची थी ! एक तुम खा लो, दूसरी को चूहे खा गए ! आग लगे इन चूहों को - तुम्हारी बे लज्जत कविताओं को छोड़ कर हमारी रोटियां खा जाते हैं ! इसी को कहते हैं,- ' कंगाली में चूहे ज्यादा -'! 
       और,,,तब कवि ने बासी रोटी खाकर इस ताज़ी रचना को जन्म दिया होगा ,- रूखी सूखी खाय कर ठंडा पानी पीव- ! देख पराई चूपड़ी,,,,,,,!!
       लेकिन अभी भी दिल है कि मानता नहीं ! अगर ये दोहा कबीर का है तो ठीक है, क्योंकि उनके फूड चार्ट में 'रूखी सूखी' की बहुतायत थी, किंतु यदि इसे  रहीम खानखाना ने लिखा है तब तो मामला गंभीर है ! कवि खुद तो अकबर महान के शाही दस्तरखान पर बैठ कर फ्राइड चिकन खाए और पब्लिक को नज़र न लगाने की सीख दे !! ( बहुत नाइंसाफी है यह !)
           मुझे लगता है, सतयुग कभी आया ही नहीं। ये सुविधा भोगी एलीट कवियों का षडयंत्र है जो सर्वहारा वर्ग की महत्वाकांक्षा और स्वप्न की भ्रूण हत्या के लिए हर दौर में ऐसी रचनाएं लाते थे ! ऐसी रचनाएं पुनर्जन्म के ऐश्वर्य और वर्तमान के अभाव को उम्रदराज कर देती थीं ! इस मकड़जाल में फंस कर सर्वहारा वर्ग गरीबी को  'नियति 'और  स्वर्ग को अपना 'फिक्स डिपॉजिट' समझ कर भूखे पेट निर्गुण गाता था, - ' माया  महा  ठगिनी  हम जानी -! आस्था में ठगों की घुसपैठ आज भी चालू है! किंतु अब स्कूलों में ये  क्यों पढ़ाया जाता है  कि  - देख पराई चुपड़ी मत ललचावे जीव -! क्या ऐसी शिक्षा नई जेनरेशन के लिए गुफा युग में लौटने की प्रेरणा नहीं है ? पड़ोसी की "चूपड़ी" देख कर ही तो हम अपने घर में कलर टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन और बाइक लाते हैं ! वरना हम आज़ भी मोह माया से परे किसी  गुफ़ा में चकमक रगड़ रहे होते !
                     जो एक बार गांव का सरपंच बन जाता है,  वो भी मरते दम तक अपनी  'चूपड़ी ' छोड़ना ही नहीं चाहता !  अच्छे नंबर नहीं आने पर जब पार्टी हाई कमान किसी मंत्री से इस्तीफा मांगता है तो मंत्री का फेस एक्सप्रेशन देखिए ! ऐसा लगता है गोया  इस्तीफा  नहीं - किडनी मांग लिया हो । इतनी तकलीफ़ और बेचैनी तो यमराज का भैंसा  देख कर भी नहीं होती ! आज़  के महापुरुषों ने दलित, दुर्बल और दुखियारों को गेहूं देने के लिए अवतार नहीं लिया है ! ये काम ईश्वर का है, वही भरा हुआ बोरा उठाए ! महापुरुष का काम गेहूं नहीं उपदेश देना है ! उपदेश में गेंहू से ज़्यादा फाइबर होता है! इसलिए सरकारी राशन की दुकान की अपेक्षा महापुरूषों के आश्रम में ज़्यादा भीड़ नज़र आती है ! घर का  'गेंहू ' दे कर  भक्त 'उपदेश ' घर ले आते हैं -  देख पराई  'चूपड़ी '  मत ललचावे जीव-!  ( भक्त के घर से आश्रम में आई कोई "चूपड़ी" महापुरुष को पसंद आ गई तो  फिर - समरथ को नहिं दोष गोसाईं -!)
                  प्रगतिवादी समाज को बुलेट युग से बैलगाड़ी युग में लाने के लिए एक और दोहा मुलाहिजा फरमाएं, - उतना पैर पसारिए जितनी लंबी सौर - !        ( 'सौर ' से कहीं 'सौर मंडल 'मत समझ लेना ! उनका काम था लिखना, अब इसमें गुण, निर्गुण, रहस्यवाद या छायावाद तलाशने का काम तुम्हारा है !) इस पंक्ति का अर्थ है कि घर की चादर जितनी लम्बी हो, उसी हिसाब से पैर फैलाना चाहिए !  कवि कितना संतोषम परम् सुखम का मानने वाला था कि चादर " बड़ी " लाने की जगह पैर "छोटा" करने का फतवा दे रहा है ! ( यकीनन कवि दयावान था, वरना पैर सिकोड़ने की जगह पैर को काटने का सुझाव देता !)  मैं तो कवि से सिर्फ इतना पूछना चाहता हूं कि दो चार सर्दियां निकलने के बाद जब चादर घिसकर डाइपर के साइज़ की हो जाए तो इन मरदूद पैरों का क्या करना है !!

                                         ( सुलतान भारती )
           

Sunday, 11 July 2021

हमारे "दो"- नहीं तो "रो"

           हम  'दो ' हमारे "दो"! ( नहीं तो "रो" ) !

           अब जनसंख्या वृद्धि के कुसूरवार लोगों की खैर नहीं है ! बेलगाम दौडते घोड़े को लगाम लगाने की फुल तैयारी है ! बढ़ती आबादी से कितनी प्रॉब्लम होती है - इसे मुख्यमंत्री से बेहतर और कौन समझ सकता है ! उत्तर प्रदेश के उत्तम प्रदेश बनते ही यूपी में अब कुछ करने को बाकी भी नहीं बचा ! यूपी में विकास का सारा प्रॉस्पेक्टस पूरा हो चुका है, बस यही जनसंख्या नियंत्रण वाला एक काम छूट गया था ! चुनाव से ठीक पहले उसका भी  नंबर आ गया ! बाकी,,,, और कोई समस्या तो बची नहीं ! गुंडे और गैंगस्टर तस्बीह लेकर जेल में चरित्र निर्माण कर रहे हैं ! बुल्डोजर के डर से कोरोना दूर दूर तक नज़र नहीं आता !  कांग्रेस और सपा के बुलाने पर अप्रैल में दूसरी लहर के साथ आया कोरोना जान बचाने के लिए गंगा में कूद कर बहता हुआ ममता दीदी की ओर चला गया ! ले देकर यूपी में जनसंख्या वृद्धि के अलावा बुलडोजर के योग्य अब कुछ बचा नहीं !    
        गरीबी, महंगाई,बेकारी तो अजर अमर है, लिहाजा उसे एडजस्ट करके जीना होगा ! पूर्व सरकारों ने भी उन्हें कभी छेड़ा नहीं ! एडजस्ट करने में वैसे भी हमारा कोई मुक़ाबला नहीं है। सरकार भी इस काम में हमारी भरपूर मदद करती है। पिछले साल जब कोरोना से दुनियां के तमाम देश थर थर कांप रहे थे तो हमारे देश के महापुरुष और जनता - थाली ताली घंटा घड़ियाल  बजा रही थी ! एक बारगी तो कोरोना भी सहम गया ! जल्द ही सरकार ने जनता को आगाह किया कि- घबराइए नहीं, कोरोना कहीं नहीं जा रहा , आपको कोरोना के साथ एडजस्ट हो कर जीना होगा- !  ( यहां आने के साल भर बाद कोरोना को भी फेमिली वाली फीलिंग आने लगी थी ! ) तब से- हम बने तुम बने इक दूजे के लिए - महसूस करके जी रहे हैं । हमें कोरोना से कोई दिक्कत नहीं है, अलबत्ता कोरोना को हमसे दिक्कत आ रही हो तो कह नहीं सकता ! अब देखिए ना - पहली 'लहर' में कोरोना हमारे काम आया (आपदा में अवसर ) ! "दूसरी" में हम कोरोना के काम आ गए ! तीसरी लहर को पचाने के लिए जुगाड़ चल रहा है ! हमने भी मोहल्ले के बंगाली बाबा "सूफी कोरोना शाह " से ताबीज बनवा लिया है !
         बाई द वे, एडजस्ट करके जीने में अपना कोई मुक़ाबला नहीं ! दुनियां के कोने कोने से ठुकराई हुई बीमारिया हमारे यहां लंबी पारी खेल जाती हैं ! लगातार आक्रमण ने हमारा स्टैमिना इतना मजबूत कर दिया है कि बर्ड फ्लू से पीड़ित  मुर्गा खाकर भी हमें छींक तक नहीं आती, बल्कि कुपोषण दूर हो जाता है !  एडजस्ट करने का बडा गौरवशाली इतिहास रहा है! अब चाहे वो बीमारी हो या बाहरी हमलावर ! हम एडजस्ट करते गए और हमारा स्टेमिना बढ़ता गया। विज्ञान कहता है कि कोई भी चीज़ कभी खत्म नहीं होती, बस उसका स्वरूप बदल जाता है ! ये गूढ़ रहस्य भी सबसे पहले हमारे ही समझ में आया है ! जब कोई चीज़ कभी खत्म ही नहीं होगी तो काहे को सर पटकें ! कुछ लोग विपक्ष के भड़काने में आ कर -'कोरोना जा जा जा -' गाने लगे थे ! आत्मज्ञान प्राप्त होने के बाद मुझे तो शाइनिंग इंडिया जैसा फील हो रहा है।
               जनसंख्या वृद्धि पर आए नए कानून से लाखों लोगों का रोटी कपड़ा और मकान का सपना भी साकार हो जायेगा !  जनसंख्या वृद्धि के कुसूरवार अपराधियों से रोटी कपड़ा और मकान छीन कर भूमिहीनों में बांट दिया जाएगा ! कोई देश ऐसे ही महान नहीं हो जाता ! एक कहावत है - कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है -! ( इस परियोजना मे " खोना" पक्का है,  "पाना" संदिग्ध !) प्रस्ताव तीन महीने पहले  आता तो आज़ यूपी के हज़ारों ग्राम प्रधान आह भर रहे होते, - ' बना खेल मोरा बिगड़ गयो रे ! गज़ब भयो रामा जुलम भयो रे !' नवजवानों की बंजर उम्मीदों में तो चिराग़ जल उठे हैं ! अभी तो  'सुविधा कटौती ' की चेतावनी नजर आ रही है ! लिस्ट आना बाकी है ।कौन कौन सी सरकारी सुविधा हाथ से जाएगी ,ये खुलासा अभी बाकी है। 
          जनसंख्या वृद्धि के मुद्दे ने सोशल मीडिया पर बैठे कथित योद्धाओं को काम पर लगा दिया है ! तमाम "थिंक टैंक"अपना अपना बारूद उगल रहे हैं! जनसंख्या वृद्धि से समाज को होने वाले तमाम इंफेक्शन पर रोशनी डालने वाले ये फेसबुकिए विद्वान पिछले महीने तक कोमा में थे ! (अब सारे घर के नलका टोंटी बदल कर मानेंगे !) इन विद्वानों का क्या कहना, इन्हे आबादी से कम - आबादी को 'बढ़ाने ' वाले "देशद्रोहियों" से ज्यादा मतलब है ! बगैर मांगे सलाह दे रहे हैं ! दो बच्चोंवाले परिवार को दी जाने वाली ' सुविधा ' की लिस्ट सरकार फाइनल कर ले,- बाकी 'चार बीवी चालीस बच्चे'  वाले परिवार की लिस्ट इन विद्वानों से मिल जायेगी ! कुछ नवजवान जानना चाहते हैं कि जीवन पर्यन्त अविवाहित रहने के लिए भी क्या कोई पैकेज है !!
             किंतु अभी जन्नत और दोजख पाने वालों की लिस्ट फ़ाइनल भी नहीं हो पाई थी कि दूध में मक्खी गिर गई !  एनडीए के सहयोगी और जद यू के सुप्रीमो नीतीश कुमार  ने बयान ज़ारी किया कि ,- जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए महिलाओं का शिक्षित और जागरूक होना ज़रूरी है -! कई लोगों को ये बयान सतयुग के अनुकूल नहीं लगा ! अभी इस बयान पर शर संधान बाकी ही था कि बिहार सरकार की एक महिला नेता ने जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए पुरुषों की नसबंदी का सुझाव दे डाला ! हिंदू मुस्लिम का झांझ मजीरा बजाने वाले चैनल देश की बढ़ती आबादी के पीछे सिर्फ एक वर्ग विशेष द्वारा छेड़ा गया 'जनसंख्या जेहाद ' देख रहे हैं ! ऐसे बुद्धिजीवियों का मानना था कि अगर इन 'जेहादियों ' को सबक न सिखाया गया तो सतयुग दरवाजे से वापस लौट जाएगा ! जनसंख्या और चिंता दोनों बढ़ रही है!

           पार्टी के शीर्ष नेताओं में भी जनसंख्या को लेकर मतभेद है ! मोदी जी को देश की सवा सौ करोड़ की आबादी में 'संभावना" नजर आती है और योगी जी को 'समस्या' !अब यही समस्या है दुरंत ! विपक्षी दल चीन की आबादी का हवाला देकर अश्वमेध यज्ञ रोकना चाहते हैं ! देश में यही प्रॉब्लम है, बैलगाड़ी के आगे बढ़ने से पहले ही लोग उसके आगे काठ रख कर बैठ जाते हैं !

 इस तरह तो हम कभी भी विश्व गुरू नहीं बन पाएंगे !!

               (   सुलतान भारती  )

Sunday, 4 July 2021

. " कछुआ जीता क्यों"

          '' कछुआ और खरगोश- खामोश !''

                                मैं शपथ लेता हूं कि आज जो भी कहूंगा सच कहूंगा, सच के अलावा किसी के घर में नहीं झांकूंगा ! कहते  हैं कि सच ही आखिरकार जीतता है ! ( हिंदी फिल्मों में आज तक यही देखा है।) सारे स्क्रिप्ट राइटर झूठ के  मौसम में सच को जिताने पर उतारू हैं। कड़वे सच को अवॉइड किया जा रहा है और मीठे झूठ को लोग सच साबित करने में लगे हैं ! सौ मीटर की दौड़ भी सच हार रहा है, मगर चारण उसे मैराथन विजेता घोषित करने में लगे हैं। काहे को झूठ की अफीम चटाते हो ! थाने का मुंशी गांधी जी की तस्वीर के नीचे बैठ कर रिश्वत लेता है ! बहुत कठिन है डगर पनघट की! सत्यमेव जयते वाली मुगली घुट्टी हम लोग भी बचपन से पीते आए हैं मगर हकीकत में हर तरफ़ झूठ पसरा हुआ है ! 
                     हमने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी, कछुआ और खरगोश की कहानी !  'मास्साब ' ने कछुए की जीत पर कहा था, - ' देखा बच्चो ! लगातार मेहनत करने से ही सफलता मिलती है, और रास्ते में कभी सोना नहीं चाहिए -''! ( हालांकि वो क्लास में कुर्सी पर बैठे बैठे सो जाते थे !) वो मेरा बचपन था , फिर भी कछुए का जीतना मेरे गले नहीं उतरा था ! गांव में मैंने कछुए को रेंगते और खरगोश को दौड़ते देखा था ! मुझे कहानी में झोल लगा ! पता नही क्यों  'मासाब ' कछुए से रिश्तेदारी निभा रहे थे ! यही नहीं, उन्होंने सारे बच्चों को चेतावनी भी दे दी थी, - ' बच्चो ! परीक्षा में ये सवाल आ सकता है कि रेस में कौन जीता ! जवाब है कि कछुआ जीता ! खबरदार अगर तुम लोगों में से किसी ने भी दिमाग लगाने की गलती की - रट  लो "!!  ( सच को धुंधला करने के लिए ये मेरा पहला ब्रेन वॉश था !)
          मैने अपने बच्चों को कभी नहीं सिखाया कि उस दौड़ में कछुआ जीत गया था, फिर भी बच्चे स्कूल से वही सीख कर आए ! कमाल है ,गुफा युग से गजोधर युग तक कछुआ ही जीत रहा है और खरगोश हर बार  चिलम पीकर सो जाता है ! कछुए की जीत में मंद बुद्धि छात्रों को अपना भविष्य उज्ज्वल नज़र आ रहा है, और होनहार स्टूडेंट ये सोच कर सदमे में हैं कि जीतेगा तो अपना " कछुआ" ही। मैं हैरान हूं कि आज तक किसी खरगोश ने  'एनसीईआरटी'  के इस कहानी पर आपत्ति भी नही दर्ज कराई ! देश में काफ़ी समय से इतिहास पर आरोप लगाया जा रहा है ! स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र निर्माण के नायकों को लेकर भी विवाद है ! (आरोप है कि इतिहास में नायक की जगह खलनायकों के नाम वाली लिस्ट चली गई थी !) हो सकता है कि खरगोश के साथ भी ऐसा ही साहित्यिक भ्रष्टाचार हुआ हो !
           मुझे पूरा यकीन है कि जंगल मैराथन में हुई वो दौड़ पहले से ही "फिक्स" थी ! सवाल उठता है  कि हार जाने के लिए 'बुकी' ने खरगोश को क्या ऑफर दिया होगा ! कछुए की जीत पर पब्लिक की कितनी बड़ी रकम डूबी और बुकी ने कितना कमाया !! खरगोश आराम से मान गया या  ' दुबई ' से फोन आया था ! जीतने वाले कछुए को पॉपुलैरिटी के अलावा भी कुछ मिला या नहीं ? और,,,, दस करोड़ अशर्फी वाला सवाल, - ये चमत्कारी दौड़ आज तक दोबारा क्यों नहीं हुई ! शायद इन सारे सवालों का जवाब मेरे पास है ! मेरा अनुमान है कि इस ऐतिहासिक दौड़ की पृष्ठभूमि
 और हार जीत का ताना बाना कुछ यूं बुना गया होगा  !!
        कटते पेड़, घटते शिकार और सूखते तालाब से  चिंतित उस जंगल के राजा शेर ने अपने महामंत्री लोमड़ से कहा होगा ,- ' नदी ने दो साल से अपना रास्ता बदल लिया है ! अब हमारा इलाका सूख रहा है और उत्तर दिशा वाला जंगल हरियाली से भरपूर है ! हमारे शिकार भी उधर ही जा रहे हैं। कुछ सोचो , वरना अगले मानसून तक हम सब को सुसाइड करना होगा ।"
     " हुकुम ! हम भी उसी जंगल में चलते हैं !!"
" मूर्ख ! नाले की तरह तेरा दिमाग़ भी सूख रहा है ! उस जंगल के शेर से हमारा एग्रीमेंट है कि हम एक दूसरे की सीमा में घुसपैठ नहीं करेंगे; कुछ और सोचो !''
    " सोच लिया ! हम एक रेस कराते हैं ! एक जबरदस्त रेस । उस जंगल के शेर और सारे जानवरों को  जंगल मैराथन में बुलाते हैं ! "
" रेस ! कैसी रेस ?"
"कछुआ और खारगोश की रेस ! जो जीतेगा, वो दोनों जंगल का मालिक होगा!"
   " नॉनसेंस !" शेर गरजा " इसमें सस्पेंस नहीं है , वो तो खरगोश ही जीतेगा "!
      नार्मल धूर्तता के साथ लोमड़ मुस्कुराया, " नहीं हुकुम ! हमारा कछुआ जीतेगा और उनका खरगोश हार जाएगा "!
     " कैसे ! आख़र कैसे ?"
 " सिर्फ सौ मीटर की रेस होगी । कछुआ और खारगोश में पहला ऑप्शन वो चुने! ज़ाहिर है कि वो लोग खरगोश ही चुनेंगे  ! मैं भी यही चाहता हूं !"
 "लोमड़ तेरे दिमाग में क्या चल रहा है ! अगर कहीं मैं  हारा तो तुझे वहीं खा जाऊंगा "!
       " मेरी प्लानिंग सुनो हुकुम, आप सिर्फ एक शर्त रखना कि रेस का मैदान मैं वहां जाकर चुनूंगा - बस समझो जीत पक्की "!
    '' अपने खुराफाती दिमाग़ का एक्स रे तो दिखा "!
  " मैं रेस का रास्ता ऐसा चुनूंगा जो लंबी घास से गुजर कर किसी तालाब पर खत्म होगा ! रेस से दो दिन पहले हम अपने कछुए को तालाब से निकाल कर भूखा रखेंगे, जिससे रेस के दिन तालाब में कूदने से पहले कछुआ कहीं न रुके ! अब बारी आती है खरगोश की, जो दस सेकेंड में सौ मीटर दौड़ सकता है ! रेस के रास्ते में बड़ी बड़ी घास के बीच में  मारीजुआना ( गांजा) के रस से भरी गाजर छुपा कर रख दूंगा ! खरगोश खुद को गाजर खाने से नहीं रोक पाएगा और गाजर खाने के बाद वो कुंभकरण के जगाने पर भी नहीं उठेगा ! उधर भूखा प्यासा कछुआ तालाब की खुशबू पाकर मिल्खा सिंह की तरह दौड़ेगा ।"
         शेर ने लोमड़ को गले से लगा लिया, ' मेरी हो गई उनकी कोठी हबेली ! मैं हूं राजा भोज - तू मेरा गंगू तेली!! जियो मेरे चाणक्य "!

            आगे कहने को कुछ बचा ही नहीं ! कछुआ जीत गया , खरगोश हार गया ! हारने वाले शेर को बनवास पर जाते वक्त भी ये सदमा खाए जा रहा था कि खरगोश सोया क्यों  !!
           इस कहानी से हमें एक सबक मिलता है !

१: लक्ष्य के रास्ते में कभी "गांजा" नहीं पीना चहिए  !!

        ( Sultan Bharti)