Sunday, 18 August 2024

("व्यंग्य" चिंतन ) सबका साथ सबका विकास

'व्यंग्य' चिंतन 

'सबका साथ सबका विकास'

 आसमान से गिरे ख़जूर में अटके ! सामने हाल में सोने की बजाय मैं ये सोच कर छत पर बने कमरे में सोने चला गया कि चौधरी समझेगा कि मैं घर में नहीं हूँ! अभी मुझे ठीक से नींद की खुमारी भी नहीं आ पायी थी कि चौधरी आ गया-' नीचे कूलर की हवा गरम लग रही- के ! दो घंटे ते कितै हाँड रहो!'
     ' पर मैं तो कहीं गया ही नहीं-!'
   'मन्ने के बेरा '- चौधरी कुर्सी पर बैठता हुआ बोला-'इब नू बता अक थारा विकास हो गयो के'?
     नींद के खुमारी की वज़ह से मैं कुछ और समझा,  मैंने कहा, - ' वो तो तीस साल बीत गए ! अब तो बच्चे काफ़ी बड़े हो गये !'
 चौधरी बिगड़ गया, - ' केले ही विकास कर लई मन्ने बताया कोन्या ?'
   जैसे अंगारा छू लिया हो,  मैं एक दम से खुमारी से बाहर आ गया! मैंने तुरंत सफ़ाई दी, - 'मैंने समझा तुम मेरी शादी के बारे में पूछ रहे हो!'
  ' मेरे गैल तू भी बुढ़ापे में आ लिया पर  'लव जिहाद' ते इब तक बाज न आ रहो-'!
   " अब मैंने क्या किया?"
       ' परे कर लव जिहाद ने,  नू बता- थारा विकास हो लिया, या कॉंग्रेस ने रोक रख्या सै ?'
   'कॉंग्रेस कैसे विकास रुकेगी,  वो तो विपक्ष में है!'
  'तभी तो कोई विकास ने होने दे रही ! न खुद विकास कर रही, अर् न होने दे रही ! इब केले प्रधान मंत्री जी के करें-!'
     विकट समस्या थी ! टीवी में खबर सुन कर चौधरी रुके हुए विकास को लेकर चिंतित था ! बस उसे शंका थी कि कहीं कॉंग्रेस से सांठ गांठ करके मैंने चुपचाप अपना विकास न कर लिया हो ! मेरी तरफ से आश्वस्त होकर चौधरी ने नई शुरुआत कर दी, -'देश की अर्थव्यवस्था घनी ऊपर लिकड़ गी, इब भैंस तो सस्ती हो ज्यागी ?'
    मेरी नींद उड़ चुकी थी ! ऊपर से चौधरी के सारे सवाल ' विकास' और  'आत्मनिर्भरता' के बारे में थे, जिसमें हम दोनों ही कुपोषण के शिकार थे ! चौधरी भैंसों के भविष्य को लेकर चिंतित था और मेरा खुद उसकी भैंसों से मानवीयता का नाता था!(  इन भैंसों ने ही कहीं न कहीं हम दोनों को एक बेहतरीन रिश्ते में बाँध रखा था !) 
     मैंने कहा ,-' सरकार तो किसानों के हक में है ! बहुत सारी स्क़ीम लाई है ! मुर्गा, बकरी,गाय और भैंस का फॉर्म खोलने के लिए  शहर से देहात तक किसान फायदा उठा रहे हैँ-!'
   चौधरी ने फिर सवाल दागा, -' पर कदी कॉंग्रेस ने विकास रोका, फिर,,,,,!'
  'कॉंग्रेस बनवास काट रही है,  वो क्यों किसानों का विकास रोकेगी ?'
   मेरे बारे में चौधरी की शंका थमने का नाम ही नहीं ले रही थी,- 'मेरे धोरे एक सवाड़ हा, सही सही बतावेगो-'?
     ' किस बारे में-?'
  ' तेरी आत्मनिर्भरता के बारे में-'!
' पूछ लो "!
      " इब के लोकसभा चुनाव में कॉंग्रेस ने घनी सीट लूट लई , इब तेरे धोरे कितने मंगलसूत्र इकठ्ठा हो गये-?"
     मैं तो आसमान से गिरा,ये कैसा सवाल था ! मैंने घबराकर पूछा,-' क्या मुफ़्त अनाज की योजना में गेहूं के साथ मंगलसूत्र भी मिलने लगा है-'?
         चौधरी ने मुझे चेतावनी दी, -' घना बुद्धिजीवी होने की ज़रूरत कोन्या-! मोय पतो है-अक् -कॉंग्रेस कू वोट देकर तम लोग मंगलसूत्र लूटना चाह रहे,  पर के कर सकै, सत्ता में आने के लिए आत्मनिर्भर न  हो पाए ! फिर भी इतनी सीट पाकर थोड़ा बहुत मंगलसूत्र तो छींना ही होगा ? के करेगा इतना लूट कै -! ऐसी आत्मनिर्भरता किस काम की ?"
              मुझे हंसी आ गई-' अच्छा तो मेरी ये वाली आत्मनिर्भरता तुम्हारे गले में अटक रही है ! भाई मेरे,  मैं लूटपाट में आत्मनिर्भर होने के मामले में बिलकुल अयोग्य हूँ ! मंगलसूत्र की कौन कहे मैं तो किसी का मोबाइल भी छीन कर नहीं भाग सकता ! अल्बत्ता दो बार चोर मेरा मोबाइल लेकर भाग चुके हैं ! अब तुम खुद सोचो मैं 'मंगलसूत्र' लूट कर कैसे आत्मनिर्भर हो सकता हूँ-?'
    चौधरी के चेहरे पर सुकून नज़र आने लगा, -'इब चाय तो मंगा ले,  इतना विकास तो होगा तेरे धौरे ?'
       पांच मिनट बाद चाय और बिस्कुट दोनो आ गया ! मैंने चौधरी से पूछा,- ' इस बार गाम ते बड़ी जल्दी आ लिया-'?
     चौधरी की आंखें आसमान में कुछ ढूढ़ने लगी थीं, -' गाम बदल गयो भारती! इब किसी के गैल  थारे धौरे बैठने का वक़्त है न लगाव ! सब की चादर लंबी हो - ली ! उतै अर बुरा हाल सै, सरकार विकास के खातिर ग्राम कू पैसा भेजे, पर विकास ग्राम प्रधान के दरवाज़े से आगे जाने कू त्यार कोन्या ! खैर, विकास ने परे कर,  अर् नू बता- अक् ,,,,बचपन में कदी तूने मंगलसूत्र छीना था-?"

    आज पहली बार मैंने चौधरी को घूर कर देखा तो चौधरी ठहाका मार कर हंसने लगा !

          [Sultan 'bharti'  Journalist]


Wednesday, 14 August 2024

(व्यंग्य चिंतन) पानी

[व्यंग्य चिंतन]  

" ई है "संगम विहार" ज़रा देख बबुआ"! 

    अब का बताएं भैया कि इस बस्ती में 'पानी'की समस्या ने किस तरह नाको चने  चबवा दिए ! दो दिन से  एक कविता याद आ रही है, ज़रा सुनिए -                        नल  से  वाटर  टपक   रहा  ऐसे !
                      किसी  विरहिन के आंसुओ जैसे !
                      तीन   दिन  से  नहीं   नहाये   हैं !
                      जब   से  "संगम विहार" आए हैं !!

      अब आप सोचते होंगे कि संगम विहार ज़रूर राजस्थान, सहारा या सिनाई रेगिस्तान की कोई बस्ती होगी,  जहाँ  अच्छे दिन की कोई पहुंच नहीं है ! अरे नाहीं  हो , ई अनाथ विधानसभा तो देश की राजधानी  दिल्ली में है और  वो भी साउथ दिल्ली में ! हे बाबू i ई मा हैरान होने की कौनो ज़रूरत नाहीं- ! संगम विहार में विकास आते हुए घबराता है ! ऐसी घबराहट उसे हर मौसम में होती है ! चलिए आज आपको उपेक्षा के हाशिए पर जी रहे संगम विहार के विकास की कहानी सुनाते हैं!
      1990 में जब मैं यहाँ आया तो कालोनी बस रही थी ! पानी और बिजली दोनों गायब ! विकास और तारणहार की जगह यहां नीलगाय घूमते थे ! 1993 में विधानसभा बनते ही विकास की सुनामी आ गई ! जनता की मुख्य समस्या पानी थी ,( वैसे सड़क और बिजली भी नहीं थी,  पर उसके बगैर लोगों ने जीने की आदत डाल ली थी!) 1993 में दिल्ली विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ तो संगम विहार की जनता कन्फ्यूज हो गई ! हर पार्टी के तारणहार विकास की लिस्ट लेकर आ गए थे ! जनता की समझ में नहीं आ रहा था कि  किसके वाले  'टूथपेस्ट' में नमक है ! जनता सिर्फ पानी, बिजली और सड़क का विकास चाहती थी, लेकिन यहां चुनाव में उतरे तारणहार-200 बिस्तर वाला हॉस्पीटल, कॉलेज, पार्क, पोस्ट ऑफिस, बैंक, सीवर सब कुछ देने पर उतारू थे !
         जब जनता ने देखा कि इतने सारे  'भागीरथ' गंगा लेकर आ गए हैं तो उनको विकास में कुछ काला नज़र आने लगा ! बस उन्होंने सारे  उम्मीदवारों को छोड़ कर एक आजाद उम्मीदवार को चुन लिया ! ( ये वही साल था जब संगम विहार  के लोग पूरी पूरी रात जाग कर "काला बंदर" ढूँढते थे ! दिन में काला बंदर और विकास दोनों जाने कहाँ छुप जाते थे ! संगम विहार की जनता ने हर पार्टी को मौक़ा दिया और सभी ने ' भरपूर' विकास किया,   पर यहाँ की जनता का दुर्भाग्य देखिये कि विकास उसके दरवाज़े तक नहीं पहुंचा ! ससुरा 'विकास' 'विधायक' के ऑफिस में आकर  पसर  जाता था !
       2015 की "झाड़ू क्रांति" के बाद संगम विहार के आम आदमी को पूरी उम्मीद थी कि - दुख भरे दिन बीते रे भैय्या- अब सुख आयो रे,,,! किन्तु पानी का संकट अभी भी बना हुआ था ! पार्टी सुप्रीमो ने संगम विहार की जनता का जल संकट देख कर वहाँ के विधायक को ही दिल्ली जल बोर्ड का मुखिया बना दिया, पर लगता था पानी ही संगम विहार आने को राजी नहीं था ! विधायक ' स्वर्ग'  (सोनिया विहार) से गंगा का पानी संगम विहार लाना चाहते हैं पर-' पानी है कि मानता नहीं-! बाद में बड़ी अनुनय विनय के बाद जब सोनिया विहार में गंगा का पानी घुसा तो उसने शर्त रख दिया,- मैं सदियों से पापियों को "तारने" में लगी हूँ,  पहले मैं यहां के पापियों को "तारने" का काम करूँगी !
सुना है यहां पर पानी माफ़िया बहुत हैं ! पहले उनके काम आती हूँ  ! और रही यहाँ की गरीब जनता,  तो उसके पास पानी तक तो है नहीं , मेरे धोने लायक पाप कहां से  लायेगी ! ऐसी निष्पाप जनता मेरे किस काम की -'! बस तभी से जनता टैंकर की 'नाभि का अमृत'  ग्रहण कर रही है और गंगा ने अपने पानी को पापियों के "कल्याण" में लगा दिया है-!
       "आप" की महिमा न्यारी, एक बार टिकट दे दिया तो उम्मीदवार को बदलने का जोखिम कौन उठाए ! इसी सोच ने सियासत में चारण पैदा कर दिया ! वर्तमान विधायक ने जगह जगह क्षेत्र में बोर करवा के पानी की कमी का आँशिक  समाधान तो किया है किन्तु अगस्त से दिसंबर तक ही इन बोरबेल में वाटर लेवल कारगर होता है! उसके बाद गर्मी के 6 महीने प्यासी जनता नारा लगाती हैं,,,,
संगम विहार की करूँण कहानी !
टंकी  खाली  -  सड़क  पे  पानी !!
      समझ में नहीं आता कि संगम विहार के लोगों को टैंकर से कब छुटकारा मिलेगा, कब उनके घर के  नलों में पानी आएगा? 
     संगम विहार में पानी की विकट समस्या है और खुद "पानी"भी एक बड़ी समस्या है , छत पर रखी टंकी खाली है और सड़क पर पानी की कोई कमी नहीं ! नाली की गंदगी बीमारी पैदा करती है! सीवर व्यवस्था इतनी अलौकिक है कि बारिस के दिनों में संगम विहार की लड़कों पर नदी बहने लगती  है, - ' शर्म उनको मगर नहीं आती-' ! विकास अभी विलुप्त है,  परंतु जैसे जैसे विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहा है, अप्रवासी 'तारणहार' विकास की वैतरनी लेकर क्षेत्र में आने लगे हैं !
             आज बारिश हुई है और मैं संगम विहार आया हुआ हूँ ! पीपल चौक पर खड़ा हूँ ! नेताओं  के आंख के अलावा हर जगह पानी नज़र आ रहा है ! दूर दूर तक सड़क पर पानी बह रहा है ! बारिश और  नाली का पानी एक होकर- मिले सुर मेरा तुम्हारा- याद दिला रहा है ! हमदर्द तक जाने के आटो वाला 15 रुपये की जगह मुझसे 25 रुपये मांग रहा है ! ( दस रुपया पानी में आटो चलाने के!)  पानी की इस आपदा ने जाने कितने लोगों को आत्मनिर्भर होने का अवसर दिया है !

आज की 'आपदा'  में आटो वाला मुझे भी 'अवसर' समझ रहा है !
                        Sultan bharti (journalist) 





Sunday, 4 August 2024

सेवा में,                         date 01. 08. 2024
आयुक्त महोदया 
केन्द्रीय Vidyalay संगठन 
18, संस्थागत क्षेत्र- शहीद जीत सिंह मार्ग   नई       दिल्ली 

सन्दर्भ-- मेरी अध्यापिका पत्नी के ट्रांसफर के                    सम्बंध में आवेदन पत्र!
महोदया ,
          पुनर्विचार हेतु मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि,,,,,,,
     मेरी  पत्नी महनाज़ ( आर्ट टीचर) दक्षिणी दिल्ली के वायुसेना बाद केंद्रीय Vidyalay में  नियुक्त  थी, विगत वर्ष उसका तबादला दिल्ली संभाग से 'कराईकल' (Chennai संभाग) कर दिया गया ! [करईकल Chennai से भी 2500 किलो मीटर दूर है!)
इतने दुर्ग़म स्थान पर पोस्ट संभालने के बाद हमारे दिल्ली स्थित परिवार में तमाम समस्याएं टूट पडी हैं, एक बार सुन लें,,,!
1-  मेरी दोनों बेटियाँ दिल्ली में पढ़ रही हैं, और उनके subjects करईकल वाले केंद्रीय Vidyalay में नहीं है! 
2- मेरी माँ ( नईमाँ   ) की उम्र 82 वर्ष है और बहुधा वो बीमार रहती हैं! वो भी मेरी बेटियाँ की देखभाल नहीं कर सकती !
3- ग्यारह और चौदह वर्षीया मेरी दोनों बेटियो को खाना, Tiffin, स्कूल भेजना,लाना और खुद ड्यूटी पर जाना,,,,दिनों दिन बेहद मुश्किल और चुनौती पूर्ण होता जा रहा है!
4- मैं  खुद Rhumatide Arthritis से पीड़ित हूँ और दिल्ली के मशहूर हॉस्पिटल Apollo में दिखाने के बाद मेरा इलाज चल रहा है!
5- फ़िलहाल इस वक़्त मेरी सास [ Mother in law) आकर मेरे परिवार को संभाल रही हैं, मगर कब तक ! उनका अपना परिवार भी है!
     मैं बहुत परेशान और तनाव में हूँ ! इस तरह तो हमारा परिवार बिखर जाएगा ! इस उमर में जब कि बच्चों को  माँ की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है, उनकी माँ मजबूरन उनसे बहुत दूर  है,और मैं उनका बाप कुछ नहीं कर सकता !
    मानवीयता के नाते कृपया मेरी पत्नी की Posting "करईकल"  से हटा कर  दिल्ली संभाग के आस पास - गुरुग्राम ,Faridabad, नोएडा, Ghaziabad [हरियाणा औऱ यूपी] के किसी केंद्रीय Vidyalay में ट्रांसफर कर दिया जाये,  ताकि वो कम से कम हर हफ्ते अपने बच्चों और परिवार से मिल सके, और अपने शैक्षिक और पारिवारिक दोनों कर्तव्य का पालन कर सके !       हमारे परिवार के लिए यह  बहुत बड़ा उपकार होगा आपका , धन्यवाद !

                                प्रार्थी 

                          मुहम्मद आसिफ़
                          H/O.   -   महनाज़ 
              [ कर्मचारी   क्रo संख्या    49211 ]