Monday, 26 December 2022

(व्यंग्य भारती) "फिर भी,,,,, हैप्पी न्यू ईयर"

(व्यंग्य भारती)

"फिर भी हैप्पी न्यू ईयर "

          आप सबको हफ़ता भर पहले कैसे मालूम हो जाता है कि आने वाला साल हैप्पी होने जा रहा है ? हम बाइस साल की उम्र तक गांव में में रहे ! इस दौरान कभी नए साल को हैप्पी होकर आते नहीं देखा ! एक जानवरी को भी दुखीराम हैप्पी होने की जगह रोआंसे ही नज़र आते थे, " का बताई भइया  ! गेहूं तौ ठीक है, लेकिन सरसों मा "माहू" लाग गवा"!  कमबख्त माहू को भी यही खेत मिलता है, हर साल दुखीराम के खेत में घुस जाता था ! बगल पांचू लाला की दूकान में माहू कभी नहीं लगा ! पांचू लाला तांगा लेकर गेहूं खरीदने गांव गांव घूमते थे, जब वो लाला से सेठ हो गए तो  गांव खुद पांचू लाला के पास जाने लगा ! दुखी राम की लाइफ में नया साल कभी हैप्पी नहीं हुआ ! उसकी और पांचू सेठ के घोड़े की कुंडली एक जैसी थी ! दोनों अपनी अपनी दुर्भाग्य को ढो रहे थे ! घोड़ा पांच साल में मरा और दुखीराम पचास साल में ! सुविधा भोगी संत और विचारक कहते हैं कि परिश्रम करने से आदमी महान हो जाता है ! दुखीराम दिन के बारह घंटे फावड़ा चला कर भी पचास साल में महान नहीं हो पाए, पांचू सेठ विधवा आश्रम खोल कर पांच साल में महान हो गए! लगता है, आदमी होने से महान होना कहीं ज़्यादा आसान है!
    ज़माना कितना बदल गया, लोग उस  सांता क्लाज को भी लूट लेते हैं, जो कभी नियति के हाथों लुटे आदमी के आंसू पोछता था । फरवरी 2020 से कोरोना स्वच्छ भारत आभियान में लगा हुआ है ! तब से बुद्धिलाल जी फेसमास्क लगाकर गुटखा खाते हैं ! वो एक कवि हैं, कोरोना काल कवियों के लिए किसी पतझड़ से कम पीड़ादायक नहीं रहा !    'दो गज की दूरी ' मास्क ज़रूरी - का अर्थ अब जाकर समझ में आया ! बहादुर शाह ज़फ़र का एक शेर है,- दो गज जमीन भी न मिली कूचे यार में '- । दो गज का नारा "कब्र" (मौत) के लिए है ! कोरोना कहता है - मास्क ख़रीद कर पहनो नहीं तो कब्र में जाना तय है -! मौलाना साहब ये नहीं बता रहे कि कोरोना से वीरगति को प्राप्त होने पर जन्नत मिलेगी या दोजख ! कोरोना को कॉरपोरेट देवताओं ने मास्क का ब्रांड एंबेसडर बना कर अरबों डॉलर कमाए ! ज़िंदा लोग सदियों से मुर्दों का कारोबार संभालते आए हैं ! बहुत से विद्वान तो कोरोना को पूज्यनीय बनाना चाहते थे, पर इस असमंजस में आस्था दिग्भ्रमित थी कि 'वो' स्त्रीलिंग में आता है  या पुलिंग में ! ताली,थाली और गाली में से जाने उसे क्या सूट करता है !! 
        सही बोलूं तो कोरोना जैसी महान उपलब्धि के सामने 'मंदिर मस्जिद' का राग भी छोटा पड़ गया था ! इससे दुखी होकर कुछ महापुरुषों ने कोरोना का पीछा किया और  ' जमातियों' में उनका डीएनए ढूंढ लिया ! आंख और मुंह से गांधी जी का बंदर बन चुकी देश की मीडिया को भी मरकज और जमाती साक्षात कोरोना बम नज़र आने लगे थे !
जमातियों की शक्ल में कुछ लोगों को कोरोना के फूफा नजर आने लगे थे। कोरोना लाइलाज़ था, लेकिन फूफा जी का इलाज था ! पुलिस जमातियो को पकड़ पकड़ कर थाने ले जाने लगी! फिर पुलिस वालों ने गुहार लगाई कि फूफा जी बिरयानी मांग रहे हैं ! बिरयानी खिलाई गई तो पुलिस वालों ने बयान दिया कि फूफा जी थाली में थूक रहे हैं !  (गमीमत थी कि वो थाली में छेद करते नहीं पाए गए! ) सभ्य पुलिस वाले अतिथि देवो भव - का पालन करते हुए बिरयानी खिला रहे थे, और जनता घरों में कैद आर्तनाद कर रही थी, - ' कोरोना  तुम  कब जाओगे' ! 
        पिछले तीन साल भुगत चुका हूं, अब मैं किसी को नए साल के लिए - हैप्पी न्यू ईयर - का अभिशाप नहीं देने वाला ! साल 2021 में मुझे लोगों ने हैप्पी न्यू ईयर की बद्दुआ दी थी, 14 अप्रैल को कोरोना ने मुझे धर दबोचा , उस दिन पहला रोजा था ! खैर, ऑक्सीजन लेवल 80 और 83 के बीच पींग मारता रहा मगर मैं शायद अस्पताल न जाने की वजह से जिंदा बच गया ! या फिर इसलिए, क्योंकि कोरोना को जब पता चला कि मैं हिंदी का लेखक हूं तो वो खुद मुझे छोड़ कर चलता बना ! सोचा होगा, - हिंदी के लेखक को मरने के लिए कोरोना की जरूरत नहीं है ! जाते  हुए  ज़रूर  पाश्चाताप   किया  होगा, -' हम से भूल हो गई, हम का माफी दई दो , गलत घर में दाखिल हो गया यजमान '- !! 
        इधर सांताक्लॉज़ के साथ ट्रेजडी हो गई !नए साल से ठीक 6 दिन पहले हिरणों की स्लेज गाड़ी में बैठ कर 'जिंगल बेल' गाते हुए बस्ती की ओर जा रहे थे कि रास्ते में पुलिस ने रोक लिया ' कित जा रहो ताऊ?"
     " बस्ती में बच्चों को तोहफ़ा देना है और उनके साथ जिंगलबेल  गाना है "!
  " घनी जल्दी है  के !  थोड़ा 'जिंगल बेल' मन्ने भी दे दे।     
         " मैं समझा नहीं "?
    पुलिस वाले कोgu" समझदारी ने परे कर, अर नु  बता- ये गायों कू ठा कर कितै  जा रहो?"
           गाय का नाम  सुनते ही सांता क्लॉज़ कांप उठा-"गाय! मेरे पास तो बछड़ा भी नहीं है!"
     पुलिस वाले ने हिरणों की ओर उंगली उठाते हुए कहा-' तो फिर ये क्या है! आंखों में धूल झोंकते हो! के  करूँ थारा , "जिंगल बेल"  भी देने कू  त्यार न दीखे ताऊ -"!
     सांता थर्रा उठा ! बस्ती दूर और एनकाउंटर नज़दीक नजर आने लगा ! सांता ने हाथ जोड़ लिया- ' आप अफसर हैं, हिरण को  गाय भी साबित कर सकते हैं "
    " तो फिर जल्दी कर  ताऊ,  ' जिंगल बेल' दे दे-'तुष्टिकरण'  लेले ! ताउ समझा करो-'!
     मेरी समझ में नहीं आता कि नए साल के आने में  मुबारक जैसी क्या चीज होती है ! हमारे देश में तो मुसीबतों का आना जाना लगा ही रहता है, इसमें हैप्पी होने की क्या बात ! कभी बर्ड फ्लू तो कभी स्वाइन फ्लू ! अब तो हम आपदा को अवसर बनाने में विश्वगुरु होने के करीब हैं ! हमीं हैं जो बर्ड फ्लू से ग्रसित मुर्गे को  खाकर प्रोटीन प्राप्त करते हैं ! गनीमत है कि कोरोना कभी सशरीर सामने नहीं आया , वरना झुरहू चच्चा महुआ की दारू के साथ "चखना" के तौर पर नया प्रयोग कर डालते ! 
        राहुल गांधी जैसे ही राजस्थान से दिल्ली की ओर चले, वैसे ही मीडिया ने चीन से भारत की ओर पदयात्रा करते कोरोना को देख लिया ! वो भी भारत जोड़ो के समर्थन में चल पड़ा है! मानसून परख कर दूरदर्शी दुकानदारों ने  फेसमास्क से लेकर  अर्थी का सामान तक स्टॉक करना शुरू कर दिया है ! पांचू सेठ पंडित भगौतीदीन से कन्फर्म करने के लिए पूछ रहे हैं, - पंडित जी, आपका जंत्री क्या कहता है, अफवाह है या सचमुच कोरोन चल पड़ा है?' पंडित जी जानते थे कि सेठ को कौन सी चिंता खाए जा रही है ! उन्होंने फ़ौरन गंभीरता ओढ़ ली,- 'दुखद सूचना है यजमान ! कोरोना की कुंडली से शनि की साढ़े साती दूर हो चुकी है! मंगल खुद लालटेन हाथ में लेकर कोरोना को इधर आने का रास्ता दिखा रहा है ! देख लेना, इस बार गेहूं में बाली की जगह कोरोना ही नज़र आएगा ! नया साल मुबारक हो यजमान "!!

     इस "दुखद" भविष्यवाणी पर पांचू सेठ ने पहली बार पंडित जी को 11 रुपये की जगह  21 रुपए की दक्षिणा दी थी ! 
                                    Sultan bharti 
                                       (journalist )
 
          

Saturday, 24 December 2022

शायरी 1992

शायरी 1992         " तब्दीली"

ये  कैसी  रोशनी आने लगी  है!
अंधेरा  साथ  में  लाने  लगी है !!

नया  किरदार  देखा  बागबां का!
कली खिलने से डर जाने लगी है !!

धुआं है आग है नफ़रत तबाही !
नई  दुनियां नजर आने लगी है !!

कहीं मज़दूर की बस्ती जली है !
वो देखो चील मंडराने लगी  है !!

हमारी  मौत  पर  कोई  न रोया  !
नमी आंखों से उड़ जाने लगी है !!

बहुत हमदर्द है हाकिम हमारा !
हिफाजत लाश की होने लगी है

वफ़ा  खुद्दारी  ईमानो  हया अब!
ये दौलत कम नजर आने लगी है !!

सियासत की हया को देख कर अब !
तवायफ  को   शरम  आने  लगी है !!

सभी के वास्ते जो घर खुला था !
उसी पर बिजलियां गिरने लगी है !!
             

कोई "सुलतान" को अदना बना दे !
बुलंदी  खार   सी  चुभने  लगी  है !!

Monday, 19 December 2022

healthy heart

Healthy heart
Darood +११ baar " या कबी यो" +दरूद 

Sunday, 18 December 2022

(व्यंग्य भारती) शर्म इनको मगर नहीं आती

(व्यंग्य भारती)

"शर्म इनको मगर नहीं आती "

     अपने अपने तरीके से हर कोई आत्मनिर्भर होने में लगा है! लेकिन इस कालिकाल में उम्मीदों में बौर आने से पहले ही लसिया जाते हैं! जब कामयाब होने वाले कम हों और बेकारी के शिकार ज़्यादा, तो विरोध और विद्रोह में से कुछ भी हो सकता है! जहां संतोषम परम सुखम है, वो जगह क्रांति के लिए बंजर है ! क्रांति का अर्थव्यवस्था से भी गहरा नाता है ! रोटी की फिक्र आदमी को मेंदा से मस्तिष्क की ओर नहीं जाने देती ! धीरे धीरे आदमी पेट से सोचने लगता है ! ऐसी सिचुएशन में बहुमत के दिमाग को कुछ लोग हाइजैक कर नर्सरी बना लेते हैं ! अब वहां मनपसंद विचारधारा रोपी जाती है ! सर्वहारा वर्ग विचारधारा को ही गेहूं और धान समझकर आत्मनिर्भरता की ओर चल पड़ता है ! ऐसी नर्सरी का आविष्कार सबसे पहले कांग्रेस ने ही किया था, आज छोटे भाई ने संभाल लिया है!
रंग पर रिसर्च शुरु हो गया है !
       ये पहली बार है कि "रंग" बेशर्म नज़र आया है! कुछ लोग आहत होने वालों से पूछ रहे हैं कि अक्षय कुमार और मनोज तिवारी की फिल्मो से आस्था को इंफेक्शन क्यों नहीं हुआ था ! यहां तो फ़िल्म के नाम ( पठान) से ही आस्था आहत गैंग सड़क पर उतर आया  ! बुनियाद देख कर ही आत्मा आहत होने लगती है,ऊपर से जेएनयू में आस्था रखने वाली हीरोइन ! इस फिल्म को तो देखना भी महापाप है ! विरोध जायज है, जब इंडस्ट्री में कंगना जी जैसी संस्कारी और सात्विक विचार वाली हीरोइन साक्षात मौजूद है तो दीपिका को क्यों साइन किया गया ! किसने  ऐसी बेशर्मी की ! बहुत नाइंसाफी है यह! इसकी सजा मिलेगी ! ऐसे गानों को देख देख कर आठ आठ साल के बच्चे भी गुल्लक फोड़ कर फ़िल्म देखने भागेंगे ! ऐसे गानों से संस्कार को पाला मार सकता है !
         बायकॉट के विरोध में विपक्ष अड़ गया है, काहे बहिष्कार करें, अक्षय कुमार और निरहुआ के गाने का विरोध काहे नहीं किया । उस गाने में तो ज़्यादा वायरस थे , तब आस्था काहे नहीं आहत हुई ! अब तो आटा बेच कर फ़िल्म देखना है! फ़िल्म नहीं देखूंगा तो विपक्ष धर्म का पालन कैसे होगा ! फिल्म नहीं देखा तो दीपिका और शाहरुख के घर वाले भूखों मर जाएंगे । तुम्हारी आस्था को चोट पहुंच रही है,इधर मेरी आस्था को इसी गाने से फाइबर हासिल हो रहा है ! अब आस्था का ध्यान तो रखना होगा ! परिवार का ध्यान रखने के लिए 5 किलो गेहूं है न ! आस्था का ध्यान कौन रखेगा !  पहले तो लोग ही एक दूसरे की आस्था का ध्यान रखते थे ! तब वाली आस्था इतनी कुपोषित भी नहीं थी कि पीली धूप देख कर मुरझाने लगे !
         आज दोपहर होते होते आस्था आहत गैंग के वर्मा जी ने चौधरी के कान भर दिए! चौधरी सीधा मेरे पास आकर बोला, -" उरे कू सुण भारती ! कितै जा रहो आज फिल्मी छोरी के गैल"!
      " कौन छोरी?" 
" वही छोरी, जो पीला लंगोट बांध कर आस्था आहत कर रही है ! के नाम सै बेशर्म छोरी कौ "?
       " दीपिका पादुकोण"!
"घणी जल्दी याद आ गयो नाम ! कितै छुपा रख्या सै छोरी नै!!"
   " मैं शादीशुदा आदमी हूं, क्यों मेरी आस्था को आहत कर रहे हो?"
     "वर्मा नू बता रहो अक तू फिलम देखने कू तावला सै ?"
      " तौबा तौबा ! मैने आज तक तुम्हारे बगैर कोई फ़िल्म कभी देखी"?
   " नू बता, कूण सी फिलम आई है " बेशरम रंग" ।
       " गाना है, फ़िल्म नहीं "!
" गाने ते आस्था आहत हो रही, या फिल्म ते?"         "हीरोइन ने जो लंगोट बांध कर गाना गाया है, उस के रंग से ! अगर लंगोट का रंग हरा होता तो आस्था नॉर्मल होती!"
        चौधरी का दिमाग़ घूम गया, - " पर हीरोइन कू लंगोट पहनने की के जरूरत थी ! बाकी कपड़े चोरी हो गए  के "?
      चौधरी का सवाल जायज़ है! बात रंग की छोड़ दें तो सवाल है ये है कि हीरोइनों के बदन पर कपड़े सिमट क्यों रहे हैं? हालत ये है कि सूट सलवार और साड़ी जैसे गरिमापूर्ण भारतीय परिधान लगभग विलुप्त हो गए ! इस नंगेपन से हमारी आस्था क्यों नहीं आहत होती ! बेकारी और मंहगाई से आहत होने के लिए पब्लिक को लावारिस छोड़ दिया गया है ! प्रशासन कभी आहत नही होता ! करप्शन,सांप्रदायिकता और नफरत की आंच भी उनकी आस्था तक नहीं जाती । कितनी मोटी खाल है !! "बेशर्म रंग" कितना गाढ़ा चढ़ा हुआ है किरदार पर ! ज़िंदगी से थपेड़े मारती अभाव,संघर्ष और गुरबत की लहरें कहीं किसी दिन अपना रास्ता न बदल दें! भूख और बेकारी की समस्या को समाधान चाहिए, शब्द नही।
           सोशल मीडिया के समर्पित योद्धा आग बबूला हैं! संस्कार और संस्कृति को बचाने की सारी जिम्मेदारी इन्ही के कंधो पर है ! पिछले आठ सालों में एक से बढ़कर एक  क्रांति आई है! कोराेना भले जनता के लिए लाभदायक न रहा हो, लेकिन कुछ लोगो ने उस बंजर आपदा में भी नफरत उगाने का अवसर पैदा कर लिया ! कोरोना से मरे बाप की अर्थी को कंधा  न  देकर भी इनकी आस्था कभी शर्मिन्द न हुई  !  संप्रदाय विशेष के कंधों पर बाप चिता पर जाता रहा और बेटा अर्थी ढोने वालों के थूक में कोरोना की नर्सरी ढूंढता रहा। गंगा में लावारिस बहते रिश्ते सहारा ढूंढते रहे और  बेशर्म लोग रंग में नफरत !

       कबीर की एक उलटबांसी थी, - बरसे कंबल भीगे पानी -! सच को झुठलाने और झूठ को पुनर्जीवित करने का इतना बड़ा समुद्र मंथन पहले कभी नहीं हुआ !!

          

Monday, 5 December 2022

ग़ज़ल सर्द रातों में पसीना मुझे आता क्यों है!

(ग़ज़ल)
सर्द  रातों  में  पसीना  मुझे  आता  क्यूं  है !
खुशी में ज़ख्म का चेहरा नज़र आता क्यूं है !!

जो मेरे ख्वाब की  ताबीर  नहीं बन सकता!
वो  तसव्वर  में  मेरे  बारहा  आता  क्यों है !!

सनद इंकार या इकरार की हासिल तो नहीं !
फिर  कोई  मेरी तरफ उंगली उठता क्यों है !!

मैं भी इंसान हूं  खुशियों की जुस्तजू  भी है !
मेरे  हिस्से  में  भला  दर्द  जियादा  कpp  है!!

हर एक दर पे तो झुकता नहीं है सर अपना !
इतनी  खुददारी  किसी एक को देता क्यूं है !!

हर  गुनहगार  को  बख्शेगा उसका वादा है !
फिर तू आमाल फरिश्तों से लिखाता क्यूं है !

मेरे  ख्वाबों में कोई रोता है सिसकी  लेकर !
क्या पता ज़ख्म और पहचान छुपाता क्यूं है!!

ज़िंदगी एक तामाशे के सिवा कुछ  भी नहीं !
मौत  बरहक है, भला मौत से डरता  क्यूं है !!

शरीक अपनी खुशी में सभी इन्सान को कर !
सबब ए अश्क भी मजलूम का बनता क्यूं है!!

अश्क भी आग से कमतर नहीं होते "सुलतान"!
इस  हकीकत  से कोई  आंख  चुराता  क्यूं  है !!

             ग़ज़ल गो,,,,,,( सुलतान भारती)

Sunday, 4 December 2022

शायरी

शायरी
मुझे झुकाने  की  चाहत में टूट जाओगे!
मिरे क़िरदार की बुनियाद में वो लोहा है!!