" गरीबी रेखा का गेहूं "
मैं बड़ी मुश्किल से भाग्यशाली हो पाया हूं ! दीवार के अमिताभ बच्चन की तर्ज पर बोलूं तो-' मेरे मेरे पास (संगम विहार में) मकान है, सरकारी राशन है, बगैर पानी की टंकी है और गरीबी रेखा के नीचे वाला (बीपीएल) कार्ड है - तुम्हारे पास क्या है - अंय - !!" हीन भावना के साथ सामने वाला कहेगा -" मेरे पास केजरीवाल हैं"! अब इसके बाद तो किसी चाहत की ज़रूरत ही नहीं
मैं खामोश हूं और वर्मा जी तर्क दे रहे हैं, -' भला केजरी सरकार से पहले दिल्ली में क्या था - कुछ भी नही ! विकास देखने के लिए गली में एक कैमरा तक नहीं था ! विकास जमुना वाले लोहे के पुल पर खड़ा पसीना पोंछ रहा था ! दिल्ली गुफा युग में पड़ी थी और सारी पार्टियां तीतर बटेर की लड़ाई को विकास समझ रही थीं ! ऐसे अंधकार युग में केजरीवाल जी "अन्ना हज़ारे" नामक वाहन पर सवार होकर डायरेक्ट जंतर मंतर पर अवतरित हुए ! उनकी भुजाओं में झाड़ू जैसा कोई अमोघ अस्त्र था जिस के प्रहार से पहले कांग्रेस, बाद में भाजपा और आखिरकार अन्ना भी कराह रहे हैं !"
अब विकास पुरूष दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, और हारी हुई पार्टियां दर्शक दीर्घा में बैठी विकास में घुन तलाश रही हैं ! फिर विकास पुरूष ने गिनती शुरु करवाई कि कितने प्राणी गरीबी रेखा के ऊपर हैं और कितने नीचे। गरीबी रेखा के नीचे वालों को फ़ौरन बीपीएल कार्ड देने का ऐलान किया गया ! ऐसे कार्ड धारी के लिए मिलने वाली सुविधाओं में फाइबर से भरपूर सरकारी राशन का गेहूं था ! बस फिर क्या था, गरीबी रेखा से नीचे जाने के लिए भगदड़ मच गई ! खुद को गरीब साबित करने के लिए लोगों का उत्साह देख कर विकास पुरूष मुस्कुराए , मुफ़्त में गेहूं पाकर जनता आत्मनिर्भर होने का सपना देख रही थी ! जो समर्थ और सर्वशक्तिमान थे, वो भीड़ को धक्का दे कर सबसे पहले गरीबी रेखा के नीचे चले गए ! जांच अधिकारी इतनी सशक्त गरीबी देख कर भौंचक्के थे, और गरीबी रेखा के ऊपर खडे 'ओरिजनल गरीब' आत्मनिर्भर होने के लिए छटपटा रहे थे ! क्या तिलिस्म था, आम आदमी कलम की जगह 'झाड़ू ' पाकर सशक्त हो रहा था ।
सब को बीपीएल कार्ड चाहिए था, सारी दिल्ली गरीबी रेखा के नीचे जाने के लिए व्याकुल थी ! विकास में भगदड़ की ख़बर मेरी बेगम को लगी ! उन्होनें ललकारा , -'कहां सोए पड़े हो ! गरीबी रेखा के नीचे नहीं जाना है क्या ? पिछड़े कहीं के !! पता है - वर्मा जी पिछ्ले महीने ही आत्म निर्भर हो गए ! "
मैंने समझाया " हिंदी का लेखक हूं, गरीबी रेखा के नीचे जाने के लिए मुझे प्रयास करने की जरूरत नहीं है। लक्ष्मी जी लेखकों वाली कॉलोनी में आती ही नहीं"!
" अपना साहित्य अपने पास रखो , और जल्दी से बीपीएल वाला कार्ड बनना लो ! तुम्हारे दोस्त चौधरी तक भैंसों को लेकर गरीबी रेखा के नीचे जा चुके हैं ! तुम कब जागरूक होंगे और कब गरीबी रेखा के नीचे जाओगे !"
मैं जाग गया ! प्रक्रिया मुश्किल थी,पर नामुमकिन नहीं! पहले स्थानीय विद्यायक से फॉर्म पर मुहर और दस्तखत करवाना था ! विधायक के सहयोग के बग़ैर 'गरीब' होना मुश्किल था ! लेकिन विधायक मुझे देखते ही नाराज़ हो गए, - " जिसे देखो वही गरीब होने कू तावला सै ! काम मैं करूं, अर वोट तम झाड़ू के धोरे गेर दो!"
" लेकिन वोट तो मैं आपको देता हूं , गरीब होने के लिये किसी और के पास क्यों जाऊं "?
" मुफ्त में ही गरीब होना चाहते हो क्या?"
खैर फॉर्म अटेस्ट हो गया, पर आत्मनिर्भरता में अभी एक बाधा दौड़ बाकी थी ! स्थानीय थाने से फॉर्म का एक क्लॉज अटेस्ट कराना था कि मेरे ऊपर कोई अपराधिक मामला नहीं है! (गरीब साबित होने के लिए सचरित्र होना ज़रूरी है!) मैं आश्वस्त था, क्योंकि आज़ तक थाने से मेरा कोई वास्ता ही नहीं था ! बड़े कॉन्फिडेंस के साथ फॉर्म लेकर थाने की ओर चल पड़ा ! पर जैसे जैसे थाना करीब आता गया, कॉन्फिडेंस लीक होने लगा ! हालत यह हुई कि जब थाने के गेट पर पहुंचा तो चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी और सांस ऐसे फूली हुई थी गोया मैं किसी की जेब काट कर भागा हूं ! कॉन्फिडेंस पसीना बन कर बह रहा था और मुझे अपने ही चरित्र पर शक होने लगा था । क्षेत्र के बीट कॉन्स्टेबल को ढूंढ कर मैंने हड़बड़ाते हुए कहा, -" मैं गरीबी रेखा के नीचे जाना चाहता हूं !"
उसने ऊपर से नीचे तक घूर कर मुझे देखा, - " गरीब होने के लिए तू बिलकुल सही जगह आया है ! पर नू बता, अक गरीब होण ते पहले कुछ पाणी पत्ता लेगा या घणी जल्दी सै ?"
मैंने थूक निगलते हुए कहा, -' ये फॉर्म अटेस्ट कराना है ! थोड़ा जल्दी है "!
" भाई तू गरीबी रेखा के नीचे जाए या मालगाड़ी के , मन्ने के मिलेगो ? मोए के पत्तो, अक तेरो खिलाफ़ कोई केस नही है ! हांफ तो ऐसा रहो अक जैसे तने कदी छेड़खानी की हो, चेन खींच कर भागा हो या फिर किसी की जेब काट ली हो ! थारी जांच पड़ताल करने पर ही पता चलेगा !"
मेरी आंखों के नीचे अंधेरा छा गया ! मैं अपनी ही नजरों में संदिग्ध लगने लगा ! जूता खरीदने के लिए जेब में रखा पांच सौ का नोट फ़ौरन बीट कॉन्स्टेबल को दिया ! वो फौरन गंभीर हो कर बोला, - " गांधी जी की जै हो ! " दस्तख़त और मुहर के बाद कॉन्स्टेबल ने नेक सलाह भी दे डाली, -" और किसी नै गरीब होना हो तो अपने गैल ले आना , रेट होगा आठ सौ रुपए "!
" पर अभी तो मैंने पांच सौ रुपए ,,,,!!"
" तीन सौ तुम्हारा कमीशन रहेगा !! "
कुफ्र टूटा खुदा खुदा करके ! गरीबी रेखा से नीचे आकर भी सुकून नहीं मिला ! जब से बीपीएल कार्ड बना है, केस देने के लिए बीट कॉन्स्टेबल बराबर फ़ोन कर रहा है !
क्या बताऊं, बहुत कठिन है डगर पनघट की !!
( सुलतान भारती)
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