Saturday, 8 January 2022

"व्यंग्य भारती" - 'कोरोना' - 'चुनाव' दोऊ खड़े "

"व्यंग्य" भारती
             " कोरोना'  'चुनाव'  दोऊ खड़े"

       अब प्रजातन्त के सबसे बड़े पर्व (चुनाव) का ऐलान हो गया, खुश तो बहुत होंगे तुम ! ये पर्व खास तुम्हारे लिए है ! तारणहार तुम्हारे लिए हर पांच साल में पर्व लेकर आ जाते हैं ! फिर भी तुम नाशुक्रे लोग पर्व देख कर पालक और पेट्रोल का रोना रोते हो ! अब दस फ़रवरी 2022 से  07 मार्च 2022 तक इस पर्व  को एंज्वॉय करो ! बीच में पर्व से निकल भागने की कौशिश मत करना !  इस पर्व से प्रजातन्त्र को मजबूती मिलेगी और प्रजा को काफ़ी सारी जड़ीबूटी ! चुनावी वादों को विटामिन प्रोटीन शिलाजीत और फाइबर समझ कर गटक लेना ! जब पर्व तुम्हारा है तो नखरा काहे का ! कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है! फ़रवरी और मार्च का महीना पाने का है, खोने के लिए पांच साल पड़े हैं ! कुछ निजी कारणों से दिसंबर में  "सांताक्लॉज" नहीं आ पाए थे, अब इस पर्व में पूरा कुनबा लेकर आयेंगे !
          तो,,,,प्रजातंत्र का सबसे बड़ा पर्व आ गया ! प्रजा को पता ही नहीं था कि उसके लिए इतने सारे हातिमताई मौजूद हैं ! अब जनहित में दूर दूर से साइबेरियन सारस  आयेंगे ! वो अपनी एक इंची आंखों में पूरा हिंद महासागर भरकर लायेंगे ! आते ही वो दरवाजा खटखटाएंगे ,- सोना लै जा रे ! चांदी लै जा रे -!
ऐसे मौके पर नौसिखिए लोग  लपक कर दरवाजा खोल बैठते हैं, जबकि भुक्त भोगी जागते हुए भी खर्रांटे लेने लगते हैं, जिससे विकास से बचा जा सके । अगले महीने इतने तारणहार लैंड करेंगे कि जनता कन्फ्यूज हो जाएगी कि किसकी पूंछ पकड़ कर भव सागर पार करे !
        जब शीरीनी बांटने वाले थोक में हों तो इस तरह का भ्रम होना स्वाभाविक है! वैसे भी चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद मौसम में जो बदलाव नज़र आ रहा है, उससे साफ है कि इस बार जनवरी में ही पलाश में फूल आ जायेंगे ! अब वेलेंटाइन भी फरवरी का इंतज़ार नही करेगा ! फ़रवरी के आसपास आदिकाल से बसंत भी आता रहा है, पर जबसे चुनाव और वैलेंटाइन साथ साथ आने लगे , बसंत ने  'वीआरएस' ले लिया ! विवश होकर लिए गए बसन्त के इस फैसले को वैलेंटाइन ने देशहित में उठाया गया कदम बताया है! (संभव है कि उपेक्षा से आहत वसंत आगे चलकर खुदकशी कर ले , और,,,उसकी इस आकस्मिक मृत्यु से प्रजातंत्र को मजबूती मिलती नज़र आये !) मजबूती  का  अद्वेतवाद  समझना  कौन  सा आसान काम है ! 'बरसे कंबल - भीगे पानी ' का रहस्यवाद आज तक कौन खोज पाया है ! बस साहित्य के  सारे "लाल बुझक्कड़" गैंती लेकर अपना अपना " हड़प्पा" खोद रहे हैं !
       चुनाव और कोरोना के बीच में विकास अटक गया है ! चुनाव आचार संहिता की वजह से 10 मार्च तक   विकास करने  पर रोक लगी है। इसलिए जनवरी फरवरी में करने की जगह विकास बाटने का काम किया जायगा ! सारे सांताक्लॉज उसी गिफ्ट पैकिंग में लगे हैं ! स्लेज गाड़ी में हिरनों को  जोतने पर वन्य जीव संरक्षण अधिनियम में फंसने का खतरा है, इसलिए शांता अब फरारी और बीएमडब्लू से आने लगे हैं! (स्लेज की अपेक्षा कार में 'विकास ' रखने के लिए ज़्यादा स्पेस होता है !) जन और तंत्र के बीच में - कोरोना कन्फ्यूज होकर गा रहा है, - ' अब के सजन फरवरी में,,,,, आग लगेगी बदन में,,,'! ( इसका मतलब कोरोना के तेज़ बुखार के साथ आने की संभावना है!)
          विकास थोड़ा घबराया हुआ है ! कोरोना का आंकड़ा बढ़ रहा है !  इस बार कोरोना के साथ उसका एक रिश्तेदार ( ओमिक्रॉन) भी आया है। लेकिन सांता क्लॉज धोती में गोबर लगाए गली गली आवाज़ लगा रहे हैं, - ' तू छुपा है कहां , ढूढता मैं यहां '! फिर से जन्नत को लाने के दिन आ गए ! लैपटॉप, स्कूटी, राशन, जवानी में वृद्धपेंशन, तीर्थ यात्रा , घर घर में कब्रिस्तान और शमसान की सुविधा सिर्फ एक वोट की दूरी पर ! कुछ तो लेना ही पड़ेगा ! इतना बड़ा पैकेज लाए हैं- कुछ लेते क्यों नहीं ! ऑप्शन बहुत हैं- सायकल से लेकर सूरज तक कुछ भी मांग लो ! बड़ी दूर से आये है साथ में "हाथी" लाए हैं ! बुधई काका छोपड़ी में ताला मार कर भागने की सोच रहे हैं ! पिछले चुनाव में रोज कोई न कोई  'देवता'  उनकी झोपड़ी में खाना खाने आ जाता था !
               एक महीने में बखार चर गए थे!
         अब कोई भी पार्टी विकास के नाम पर वोट  मांगने की मूर्खता नहीं करेगी ! वो दिन हवा हुए जब पसीना गुलाब था ! अब सतयुग है, इसलिए धर्म के अलावा सारे मुद्दे गौंड हैं ! धर्म ही न्याय है, धर्म ही विकास है ! इसलिए इस बार जो जितना बड़ा धर्माधिकारी होगा, उतना वोट बटोरेगा ! पिछले कुछ सालों की घोर तपस्या से यह शुभ लाभ मिला कि जनता ने धर्म को ही विकास समझ लिया है ! तपस्या का अगला चरण  "गेहूं" को लेकर है ! काश धर्म को ही गेंहू समझ लिया जाए ! उसके बाद फिर कभी किसान आंदोलन की नौबत नहीं आयेगी- एमएसपी का टंटा खत्म !! जब भी भूख लगी, सत्संग में बैठ गए ! 
             आज सुबह चौधरी ने मुझसे पूछा, -' उरे  कू
सुण भारती ! तू चुनाव में उतै गाम न जा रहो  के ?"
         " न  भाई ! कोरोना फिर बढ़ रहा है !"
" ता फेर चुनाव क्यूं करावे सरकार ? "
        "सरकार जानती है कोरोना की पसंद नापसंद , पर मुझे नहीं मालूम" !!
         "पसंद न पसंद ! समझा कोन्या ! कोरोना बीमारी है या फूफा लगे म्हारा ?"
       ' तीन साल से यही समझने की कोशिश में लगा रहा! बीच में कोरोना ने मुझे ऐसा रगड़ा कि याददाश्त तक आत्मनिर्भर ना रह सकी "!
        ' नू बता - अक - किस नै वोट गेरेगा इब के ?'
" जिस को तू कहेगा ! विकास और गेहूं की समझ तुम्हें ज्यादा है "! 
        " अपना वोट योगी जी नै दे दे ! सुना है अक बुलडोजर देख कर यूपी ते कोरोना भाग रहो ! योगी जी केले ही दूध का दूध  अर पानी का पानी अलग कर देवें"!
      " अच्छा याद दिलाया , कल से बुखार, जुकाम और छींक आ रही है ! बंगाली बाबा जिन्नात अली शाह को दिखाया था उन्होंने कहा कि - फर्स्ट अप्रैल तक किसी काली भैंस का सफेद दूध सुबह शाम उधार पीने से कोरोना मंहगाई की तरह भाग जाता है ! "
             चौधरी भड़क उठा, -' इब और उधार न द्यूं , कहीं अर  तलाश ले काड़ी भैंस नै ! कोरोना ते बचाने कू  सबै भैंसन पै मैंने सफेदी करा दई , इब हट जा भारती पाच्छे ने !!'

         अभी भी  दूध का संकट बना हुआ है !!

                       (सुलतान भारती)

1 comment:

  1. उत्कृष्ठ कोटि का व्यंग.वर्तमान राजनीति पर तीखा कटाक्ष.ये दिल में उतरने वाला आलेख है। सुलतान जी धन्यवाद।

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