Monday, 20 September 2021

" अपना अपना स्टैमिना है जी "

(व्यंग्य ''भारती"). "अपना अपना स्टेमिना है  साहब !"

             अब आपसे क्या छुपाना,,,,, अपने स्टेमिना को लेकर मैं कुछ खास सैटिसफाइड नहीं हूं ! दरअसल मैं स्टेमिना को लेकर अक्सर कन्फ्यूज हो जाता हूं कि इस पर भरोसा करूं या न करूं ! ऐसे स्टेमिना को लेकर कोई कैसे खुश हो सकता है जिसकी स्टोरी में शादी के बाद कोई महिला मित्र न हो ! ( धर्मपत्नी शादी से पहले मित्र हो सकती है,शादी के बाद तो,,,, हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता  है !) विश्व विख्यात ब्रिटिश लेखक चार्ल्स डिकेंस का मानना है कि - लगातार असफलता आदमी को अपनी नजर में बौना कर देती है-! ( मुझे भी लगता है कि पिछले तीन साल से मेरा कद काफ़ी कम हुआ है !) लेकिन मैं,,, चार्ल्स तोरी बतियां न मानू रे ,,,,,,!!
                स्टेमिना ,,,,,,बोले तो क्षमता की सबकी अलग कहानी है ! सब अपने स्टेमिना को धार देते रहते हैं ! बड़ी अजीब अजीब चीज़ो में लोगों ने अपनी क्षमता यानि स्टेमिना को डेवलप किया हुआ है! हमारे गांव में एक सज्जन ने रात के घनघोर अंधेरे में दूसरे के पेड़ का महुआ चुराने का स्टेमिना था ! इस स्टेमिना के चलते वो एक रात पेड़ से टपक पड़े और सुबह टूटी हुई टांग के साथ बरामद हुए ! जिसके पेड़ के नीचे पैर तुड़वा कर   बरामद हुए थे, उसी शख्स ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया ! उन्हें टांग टूटने का उतना दुख नहीं था जितना। उस रात महुआ न चुरा पाने का !
            किसी किसी में दूध के अंदर पानी मिलाने का ऐसा गज़ब का स्टेमिना होता है कि लैक्टोमीटर तो दूर खुद भैंस भी नहीं पहचान पाती !  मजे की बात ये है कि मिलावट को न दूधिया कुबूल करता है न भैंस ! ऐसी विषम परिस्थिति में अगर ग्राहक उसे गलत बताए तो भैंस और दूधिया दोनों बुरा मान जाते हैं ! मैंने अपने दोस्त चौधरी से एक दिन शंका ज़ाहिर की,- " अपनी भैसों को कोविड वैक्सीन लगवाई "?
       " तूने लगवा ली  के ?"
  " हां , एक लगवा ली, दूसरा लगना है "!
" दूसरा लगने के बाद भी तू चलता फिरता नज़र आया ता फेर भैसन कू लगवा लूंगा " !
  " मैं तो इसलिए पूछ रहा था कि तुम्हारी भैंसें आजकल पानी बहुत पी रही हैं" !
   "  मन्ने के बेरा ! पर तमै कैसे पता चल्या ?"
    " दूध के नाम पर सिर्फ सफेदी बची है "!
चौधरी भड़क उठा, " तमैं भैसन के कैरक्टर पे उंगली ठाने ते पहले नू सोच्या को न्या - अक - थारी सेहत उन्हीं की बदौलत बची रह गी "! 
    " सेहत का ही तो रोना है चौधरी ! नए साल में उधार दूध पीना शुरू किया था, चौथे महीने ही मुझे कोरोना ने धर दबोचा ! आठ किलो वजन खा गया ! काश भैंस ने मेरे बारे में से सीरियसली सोचा होता"!
       चौधरी ने मुझ पर ब्लेम लगाया, - " सबै गलती थारी है, तमै दूध का पेमेट हर महीने कर देना चाह ! नब्बे दिन तक तमै कूण  धार  देगो ! या में भैंस की गलती कोन्या  भारती ! कोई और भैंस होती तो इब तक थारा सर फाड़ देती "!
          भैंस का स्टेमिना सुन कर मैं चुप हो गया !
       कुछ लोग अपने स्टेमिना को लेकर गलतफहमी पाल लेते हैं ! गलतफहमी में जीना और कोमा में जीना एक जैसा है ! दोनों सूरतों में आदमी सिर्फ जीने का भ्रम बनाए होता है !  गलतफहमी में जीना बडा घातक होता है। प्राणी अपनी इमेज को अचानक ही कद्दावर मान लेता है और फिर सारे मुहल्ले से उम्मीद करता है कि उसके इस नए अवतार को लोग तस्लीम करें ! ऐसा महामानव मुहल्ले से लेकर महानगर तक कहीं भी बरामद हो सकता है ! कल दक्षिण दिल्ली ( संगमविहार) के कोरोणा वैक्सीन सेंटर में आए 4 फुट 11 इंच के एक महापुरुष मुझे अपना परिचय देते हुए कह रहे थे -" मुझे नहीं जानते! मुझे तो संगम विहार का बच्चा बच्चा जानता है !! कहीं बाहर से आए हो क्या "?
             " नहीं तो ! मैं भी संगम विहार से हूं"!
       " फिर मुझे कैसे नहीं पहचाना ! खैर अब गलती सुधार लो, और मुझे अंदर जाने दो ! "
       लेखक को अपने टैलेंट को लेकर अक्सर गलतफहमी हो जाती है ! वो चहता है कि सारी दुनियां उसे पढ़े मगर वो किसी को न पढ़े ! अपनी इमेज बिल्डिंग के लिए वो थोक में झूठ बोलता है,, - झारखंड साहित्य अकादमी मुझे सम्मानित करना चाहती है, मगर मैने मना कर दिया। मैं नक्सल प्रभावित राज्य में जाना ही नहीं चाहता ! दरअसल मैं प्रेम और श्रृंगार रस का पुजारी हूं, बंदूक और बारूद के नाम से ही मेरी रचना दूषित हो जाती है ! " साहित्य सम्मेलन में आमंत्रित न किए जाने का कारण वो कुछ यूं बताते हैं, -" लिस्ट फाइनल करने से पहले आयोजक का फ़ोन आया था, मैंने आमंत्रित किए जाने वाले कवियों की लिस्ट मांगी ! नाम देखने के बाद खुद जानें से मना कर दिया ! कम से कम रचनाकार का स्टेमिना और स्टैंडर्ड तो बराबर का होना चाहिए"!
   
        झूठ सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हो चुका है, पता नहीं कैसे - सत्यमेव जयते - का नगाड़ा पीटा जा रहा है ! हर कदम पर झूठ की मार्केटिंग ज़ारी है ! झूठ के स्टेमिना के सामने सत्यमेव जयते का ऑक्सीजन लेवल लगातार
गिर रहा है और विधायिका चाहती है कि  "सत्य"  को सिर्फ  स्लोगन (नारा) के भरोसे  "जयते"  मान  लिया जाए ,- मगर मैं क्या करूं, दिल है कि मानता नहीं !!
                                           _  (  सुलतान भारती)


Thursday, 16 September 2021

( व्यंग्य"भारती") परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर

                       (व्यंग्य "भारती")

          " परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर" !

              मुझे भी अब तक नहीं मालूम था कि साधुओं ने किस लिए शरीर धारण किया है ! अब जाकर पता चला कि साधुगण 'परमार्थ' के ब्रांड एंबेसडर बन कर पृथ्वी पर आए हैं ! पिछले कई दशक से वो परमार्थ कर रहे हैं और जनता उसका "फल" खा रही है ! ( एक प्रसिद्ध साधु के चेले ने तो गुरु के "परमार्थ" को हड़पने के लिए अभी हाल ही में अपने गुरू का ही ' राम नाम सत्य ' कर डाला !) कुछ कॉरपोरेट साधु तो नेताओं के वोट बैंक तैयार करते करते  सत्ता के  " गॉड फादर" हो गए ! किंतु जब हर दल के अपने अपने गॉड फादर होने लगे तो परमार्थ का लोड बढ़ गया ! शिक्षित और अशिक्षित दोनों  तारणहार के  आश्रम में होने वाले 'परमार्थ ' से परिचित और मौन थे ! सत्ता पर आस्था का बेताल सवार था ! ऐसे में "साधुन" को  'सद्कर्म' करने से भला कोई कैसे रोक सकता था ! किंतु घनघोर कलियुग मे सतयुग की 'शीरीनी'  बांट रहे इन "साधुन" पर तब गाज  गिरी जब  भाजपा  सत्ता में आ गई  !
                 भाजपा के सत्ता में आते ही कई सेवन स्टार बाबाओं के खाते में जमा 'परमार्थ ' की जांच शुरु हो गई! वाणप्रस्थ आश्रम की अंतिम सीढ़ी पर खड़े स्वर्णभस्म खा रहे साधु जेल जाने लगे ! "राम" और "रहीम" दोनों के चरित्र पर कालिख पोत रहे अवतारी पुरूष को उनके 'परमार्थ' समेत जेल भेज दिया गया ! कई साधु देश छोड़ कर निकल भागे और  विदेश  में  आश्रम खोल कर  'परमार्थ ' निर्माण में लग  गए ! एक ऐसी पार्टी सत्ता में आई थी जिसमें ओरिजनल साधु थे, अत: डुप्लीकेट साधु और उनके बुरे परमार्थ के "अच्छे" दिन शुरू हो गए थे ! रोज कहीं न कहीं से खबरें आने लगीं कि - ' जो बेचते थे दर्दे दवाए दिल, वो दुकान अपनी बढ़ा गए -!'
        परमार्थ के लिए साधु ही परमिट का हकदार है! आम आदमी का किया हुआ परमार्थ शायद मार्केट में नहीं चलता ! सज्जन आदमी के ' परमार्थ ' को मुहल्ले में भी क्रेडिट नहीं मिलता और स्वामी नित्यानंद का "परमार्थ" देश से भाग जाने  पर भी ब्रेकिंग न्यूज में आता है ! साधु सन्त चाहते हैं कि वो जो भी करें उसे 'परमारथ' माना जाए ! सांसारिक दृष्टि से देखने पर भले वो लुच्चई नज़र आये, पर वो परमार्थ है ! उसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए ! परमार्थ नाना प्रकार के हो सकते हैं ! संत चाहे नंगा होकर मालिश कराए या बलात्कार करे , वो परमार्थ की कटेगरी में ही आएगा ! संत समागम में आईं युवा मलिलाओं पर वो टॉर्च की स्पॉटलाइट डाले या फिर बुरी नजर ! उसके खिलाफ आवाज उठाना चरित्रहीनता और व्यभिचार में आता है ! संत का जन्म नहीं होता बल्कि परमार्थ के लिए वो मानव शरीर धारण करता है ! जेल जाकर भी उसका चाल, चरित्र,और चिंतन "परमारथ" में लगा होता है !
             धर्म कोई भी हो, महिलाएं सबसे पहले  अवतारी पुरुषों के संपर्क और सम्मोहन में आती हैं ! इसके बाद परमार्थ शुरु हो जाता है ! बाबा की झकाझक सफेद दाढ़ी से एक मोहिनी कंटिया बाहर आती है और आस्था के साथ 'परमार्थ' शुरु हो जाता है ! धीरे धीरे घर के मर्द भी विवेक की चिलम  पीना शुरू कर देते हैं ! 'परसाद' और 'परमार्थ' बढ़ता चला जाता है , काम क्रोध मद लोभ से मुक्ति मिलनी शुरू हो जाती है! प्राणी को मृत्यु लोक में रहते हुए भी देवलोक की अनुभूति होने लगती है ! सद्कर्म की कंटिया में फंसा एक जीव  मोहल्ले की कई  'मछलियों' को मोक्ष दिलाने का परमार्थ करता  है ! 
         न  "साधु जन" में कोई कमी आई है न  'परमार्थ' में ! यूपी के सुल्तानपुर स्थित मेरे गांव में एक दशक पहले भूईसर ( मुंबई) से एक सैयद बाबा पधारे ! वो सर से लेकर पैर तक परमार्थ में डूबे हुए थे ! भक्त और बाबा की शोहरत इन्फेक्शन की रफ्तार से फैली ! भक्तों में नर नारी दोनों की प्रचुरता । बाबा  मुस्लिम और हिंदू दोनों के चहेते थे ! बाबा के प्रचारक बाबा को काम क्रोध मद लोभ से कई किलोमीटर दूर बताते थे ! कुछ विरोधी भक्तों ने दबे स्वर में बताया कि- बाबा के पैर का दर्द युवा  महिलाओं  के  दबाने  से  ही  दूर  होता है-!  यही नहीं, बल्कि ऐसे संवेदनशील अवसर पर  पुरुष भक्तों के दर्शन मात्र से बाबा का पैर दर्द बढ़ जाता था ! पारिवारिक और सांसारिक मोह माया से मुक्त पैंसठ वर्षीय बाबा अविवाहित बताए जाते थे ! विगत वर्ष सैय्यद बाबा अचानक मुंबई प्रवास में   "स्वर्गीय" हो गए ! उन्हें दफनाने के लिए पैतृक गांव गोंडा लाया गया !  उनकी मय्यत में गए भक्त ये देख कर सदमे में आ गए कि मोह माया से परे होने का ढोंग करने वाले सय्यद बाबा शादीशुदा और बाल बच्चेदार थे ! जिस जमीन पर दफनाए गए ,वो भी एक विवादित भूखंड था ! स्वर्गीय होकर भी - माया तू न गई मेरे मन से - !
        ये जो पर्मारथ है न ! कभी कभी ठग और लुटेरे भी आजमाने लगते हैं ! उम्र के इंटरवल तक अविवाहित रहे एक साधु को अचानक गृहस्थ आश्रम के प्रति मोह उत्पन्न हुआ ! कई युवकों ने मिलकर एक कमसिन लड़के को साड़ी में दूर बिठाकर साधु से कहा, -' इस लड़की को पति बहुत मारता है , ससुराल से भाग आई है ! गरीब की बेटी है आपके साथ सुखी रहेगी -' ! कामिनी मोह में साधु अंधे हो चुके थे। मंदिर के सामने वरमाला पड़ी और रात में डकैती ! साधु को नशीली चीज पिला कर हनीमून से पहले ही, जीवन भर का जमा किया  'परमार्थ' , समेट कर दुल्हन  गैंग के साथ फरार हो चुकी थी ! होश में आने पर बाबा महीनों अंगारों पर करवटें बदलते रहे!

          सोशल मीडिया पर ऐसे ठगों का पूरा टिड्डी दल मौजूद है जो - साधून धरा शरीर - के गेटअप में कुछ यूं जाल बिछाते हैं, - 'कोई गारंटी नहीं, कोई डॉक्यूमेंट नहीं ! पांच मिनट में फटाफट लोन लीजिए  -'! ( इस सादगी में कौन न फंस जाए ऐ खुदा ! लगता है कि इनकम टैक्स विभाग की रेड से बचने के लिए दानवीर हातिमताई नोट की बोरी फेंकना चाहते हैं !) साहित्यकारों को फंसान  के लिए अलग तरह की कंटिया है, -  'क्या आप लेखक हैं और अपनी किताब को दुनियां के 175  देशों में देखना चाहते हैं ? यदि  'हां ' तो हमारे  'परमारथ प्रकाशन ' से किताब छपवाएं  और दुनियां के अगले बेस्ट सेलर  राइटर बने - '! ( पूरे शहर के प्रकाशकों द्वारा ठुकराई गई रचना को लेकर रचनाकार  "बेस्ट सेलर"  होने के लिए फौरन व्हेल के मुंह में छलांग मार देता है !)

              परमार्थ में लगा  "साधुन धरा शरीर" कलियुग में खूब फल फूल रहा है और सचमुच के परमार्थ  में सब कुछ गवां कर संत खुद को सीख दे रहा है - " नेकी कर और जूते खा " !! 

                        ( सुलतान भारती )।      
          ( दोस्तों, कमेंट ज़रूर करें , प्रतीक्षा रहेगी आपके शब्दों की !)



Wednesday, 15 September 2021

आदरणीय नड्डा जी,

आदरणीय जे पी नड्डा जी
भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष
 राष्ट्रीय कार्यालय दिल्ली
पिन 110001

संदर्भ -- यशस्वी प्रधान मंत्री के सर्वजन हिताय कार्यक्रम " प्रधान मंत्री जन कल्याण जागरूकता अभियान '' के बढ़ते प्रभाव एवम जुड़ते जनसमुदाय के विषय में !
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आदरणीय नड्डा जी,
                   भारत के यशस्वी प्रधानमन्त्री और विश्व राजनीति के धुरंधर नेता हमारे नरेंद्र मोदी जी की सभी योजनाएं सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की कसौटी पर खरी उतरी हैं ! उनका सदैव यह प्रयास रहा है कि देश की १४५ करोड़ आबादी का सहभागी बने अंतिम ज़रूरत मंद आदमी तक उनकी योजना की सूचना एवम सहभागिता का लाभ पहुंचे !
                किंतु सत्ता का वनवास काट रहे विपक्ष के दुष्प्रचार एवम हमारे जनसंपर्क की कमी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में हमारे पी एम की जनकल्याणकारी योजनाओं की सटीक और सामयिक जानकारी जनता को नहीं मिल पाती ! अपने कुत्सित स्वार्थ के चलते विरोधी दल प्रधानमन्तरी जी के इन बहुमुखी जनकल्याण योजनाओं के व्यापक प्रचार एवम प्रसार की गति कुंद करने में लगे रहते हैं! ( मिसाल के तौर पर  "तीन तलाक" के मुद्दे को देखिए ! मुस्लिम समाज की महिलाओं के चतुर्मुखी आजादी, बराबरी एवम विकास के लिए उठाए गए इस क़दम को भी विपक्ष ने अपने दुष्प्रचार की सामग्री बना ली है !) 
         हमारे संगठन में हर वर्ग के शिक्षित, समर्पित और संगठित युवा शामिल हैं! हमारा लक्ष्य है कि प्रधान मंत्री जनकल्याण योजनाओं से शहर से लेकर गांव के आखिरी आदमी तक  को जागरूक करना, जिससे देश के हर उस जरूरतमंद को इन योजनाओं का लाभ मिल सके , जिनको लक्ष्य कर हमारे पीएम ने ये योजनाएं शुरु की हैं !
        आशा है आप हमारे संगठन को जनहित और राष्ट्रहित में जागरूकता अभियान से जोड़ने की अनुमति प्रदान करेंगे - धन्यवाद

      ।।                    राष्ट्र हित में सदैव समर्पित आपका
                    

Thursday, 2 September 2021

("व्यंग्य भारती") दिल तो पागल है!!

           " दिल तो पागल है "

             अब इसमें मेरा क्या कसूर ! शाम को अच्छा भला था, सुबह बारिश होते ही बौरा गया । मैने अपने दिल से बात चीत शुरू की, -' हाय ! कैसे हो !'
       ' तुम से मतलब ?'
   " काहे भैंसे की तरह भड़क रहे हो ! मैने तो सिर्फ  हाल चाल पूछा है - ! शाम को तुम नॉर्मल थे, सुबह का मानसून देख कर भड़के हुए हो, दिले नादान तुझे हुआ क्या है !'
       " जहां बेदर्द मालिक हो वहां फरियाद क्या करना ! काश मैं किसी आशिक के जिस्म में होता ! मजनू, फरहाद - रोमियो में से किसी के बॉडी में फिट कर देते, पर किस्मत की सितमज़री देखो , लेखक के पहलू में डाल दिया ! दुनियां बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई !"
       मुझे हंसी आ गई, - ' अब बगावत करने से क्या हासिल होगा ! आख़री वक्त में क्या ख़ाक मुसलमा होंगे ! तुम्हें तीस साल पहले सोचना चाहिए था !"
         " बस यही तो रोना है ! मुझे सोचने की सलाहियत नहीं दी गई। तुम्हारे सर के अंदर जो सलाद भरा है, वो तय करता है कि मुझे कब रोना हैऔर कब आत्मनिर्भर होना है ! तुम्हारे पल्ले बंध कर रोना रूटीन हो गया और आत्मनिर्भरता ख़्वाब "!
         " दिल को संतोषी होना चाहिए"!
    " दिल पर दही की जगह नींबू मत टपका ! अभी जाने कब तक सजा काटनी होगी ! जिंदगी में कोई चार्म नहीं रहा ! लेखक का दिल होना किसी अभिशाप से कम नहीं है ! हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती "!
      ''' गोया तुम्हें अभी भी मुझसे मोहब्बत है !"
   ''' मुहब्बत और लेखक से ! मैं इतना भी मूर्ख नहीं !           "आखिर तुम्हें एक लेखक से इतनी नफ़रत क्यों है?"
        " तुम्हे पता है कि जिस्म का हर अंग रेस्ट करता है, सिर्फ दिल को ऐसी सजा दी गई है कि उसे दिन रात जागते रहना है ! मेरी ट्रेजेडी ये है कि मैं लेखक के जिस्म में हूं और लेखक जल्दी मरते ही नहीं "!
       " क्या बकवास है !!"
   " बकवास नहीं सच है, तुमने कभी किसी लेखक को सत्तर अस्सी साल से पहले मरते हुए देखा ?"
        " मेरे पास इसका कोई रिकॉर्ड नहीं, पर तुम्हें किसी लेखक के बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए "!
     " क्यों नहीं कहना चाहिए, जिस आदमी का किसी बैंक में सेविंग अकाउंट तक न हो, वो विजय माल्या और नीरव मोदी के खातों के जांच करवाने के लिए परेशान हो तो बुरा तो लगेगा ही "!
       " लेखक खुदा की बनाई हुई वो रचना है, जो  समाज और सत्ता का प्रदूषण दूर करने में उम्र खर्च कर देता है ! वो अतीत से ऑक्सीजन लेता है और वर्तमान से नाखुश रहता है ! दुनियां के लिए  भविष्य की अपार संभावनाओं की तलाश करने वाला लेखक अक्सर अपने बच्चों को खूबसूरत भविष्य नहीं दे पाता ! हकीकत में वो वर्तमान समाज का पंखहीन फरिश्ता है !"
      " अपनी तारीफ कर रहे हो !  बाई द वे, तुम्हें लेखक होने की सलाह किसने दी थी ?"
    " यही तो रोना है कि ये सलाह किसी ने नहीं दी ! इस दरिया ए आतिश में उतरने का फ़ैसला मेरा ही था !"
   दिल बड़बड़ाया, - " जैसा करम करोगे वैसा फल देगा भगवान "!
           हर इंसान के दिल की बनावट एक जैसी होती है, लेकिन कुंडली एक जैसी नहीं होती है । करने वाला दिमाग़ होता है, लेकिन इल्जाम दिल पर लगता है ,- शादी शुदा थे, लेकिन अपने से आधी उम्र की लड़की पर दिल आ गया ! दिल ही तो है !! इसमें खां साहब का क्या कुसूर ? दिल के हाथों मजबूर हो गए"!  ( पता लगा कि दिल के हाथ पैर भी होते हैं !)
           आदमी गुनाह करने के बाद भी बेकसूर बताया जाता है! सारी गलती दिल की होती है ! सुपारी काटने से लेकर सजा काटने तक सारा कुकर्म दिल करता है तो फिर शरीर का क्या कुसूर ! लेकिन इसके बावजूद दिल के बारे में दलील दी जाती है - दिल तो बच्चा है जी -! अस्सी साल तक जिसका बचपना न जाए , वो कुसूरवार
नहीं माना जायेगा ! इसका फायदा उठाकर दिल एक से एक खुराफात करता रहता है, - टकरा गया तुमसे दिल ही तो है -! दिल और दिमाग़ में ज़्यादा खुराफाती कौन है, इसे लेकर साहित्यकारों और साइंसदानों में सदियों से बहस छिड़ी ! वैज्ञानिक कहते हैं , जब पूरा शरीर दिमाग़ के आधीन है तो दिल की क्या बिसात ! ऐसे में - दिल बेचारा बिन 'सजना' (दिमाग़) के माने न -!
        इंसान जानबूझ कर दिल को कटघरे में खड़ा करता है, - ये दिल ये पागल दिल मेरा,,, करता फिरे आवारगी -! ' मैंने तो दिल के हाथों मजबूर होकर तीसरी शादी कर ली -! अच्छा तो गोया दिल ने गला दबा दिया था ! दिले नादान तुझे हुआ क्या है! इतनी गुंडा गर्दी का सबब क्या है -! इतना आग मूतेगा तो हार्ट फेल होना ही है ! लोग दिल की आड़ में कितनी पिचकारी चलाते हैं ! हमारे एक परिचित के  दिमाग में 'हनुमान ग्रंथि' उग आई है ! वो हमेशा अपने मित्रों की 'इमेज़ ' के लंका दहन में ही लगे होते हैं ! वो भी सारा किया धरा दिल पर मढ देते हैं - दिल है कि मानता नहीं -!!

    बच के रहना रे बाबा - दिल तो छुट्टा  (सांड) है जी !!

                   ( सुलतान भारती)