मुर्दे गंगा में बहाए जा रहे हैं। कानपुर से गाजीपुर तक मुर्दों की कतार ! मुर्दे रिश्तों पर थूक रहे हैं! मुर्दे फादर्स डे और मदर्स डे पर अपने कलियुगी बेटों के फर्जी पोस्ट की अर्थी लेकर बह रहे हैं ! मुर्दों की खामोशी में गज़ब का शोर है ! लोग घरों से निकल कर घाट पर आ गए हैं ! ये चलते फिरते मुर्दे हैं जो तैरते मुर्दों से अलग कपड़े पहने हुए हैं ! बस्ती के मुर्दों को आते देख बहने वाले मुर्दे आपस में बतियाने लगे, -' थोडा रुक कर बहते हैं ! शायद हमारे लिए आए हैं !'
" काहे किनराते हो , जो परिवार के थे वो कुत्तों के हवाले कर गए ! ये तो गैर हैं"!
'' इस त्रासदी में गैर ही तो काम आए हैं"!
एक दर्जन लाशें उथले पानी की रेती में स्थिर हो गईं.!. ज़िंदा लाशें थोड़ी दूर पर रुक कर आपस में बात करने लगीं, - " ये लाशें किस जाति की हो सकती हैं ?"
" कैसे पता चलेगा ? कफन तो बडा सस्ते वाला लगता है " ।
" कई कफ़न तो फटे हुए है, किसी काम के नहीं हैं"!
पहले वाला लाशों की जाति को लेकर अभी भी चिंतित था , " जानें कौन सी जाति के हैं, गंगा मैया को गंदी करने चले आए "!
लाशें घबरा कर फिर बहने लगीं !दो किलो मीटर आगे गंगा के किनारे तीन युवा कुत्तों का एक गैंग आपस में बात कर रहा था, ' अब तो और कुछ खाने का मन ही नहीं करता ''!
'' मेरे अंदर तो शाकाहारी फीलिंगआने लगी थी," एक और कुत्ता बोल पड़ा '.अब जाके आया मेरे बेचैन दिल को करार"!
कुत्तों का मुखिया बोला, '' वैसे जिन्होंने अपने परिजनों को हम कुत्तों के हवाले किया है, उनका ज़रूर हम कुत्तों से पूर्व जन्म का नाता है"!
'' बेशक! इतना तो कोई अपना ही केयर करता है "!
'' इंसान का कैरेक्टर हम कुत्तों से भी गया गुजरा है, इस दौर ने साबित कर दिया है"!!
मै न्यूज देख रहा हूं, दरिया गंज ( दिल्ली) में तीन व्यापारी गिरफ्तार।! रेमडेसीवीर इलेक्शन दस गुना से अधिक दाम पर बेच रहे थे ! ऑक्सिमीटर और ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी का क्या कहना! आपदा को अवसर में बदलने का हुनर इन्ही के पास है! क्या इनके अंदर ईमान, दया, गुनाह, इंसानियत या दर्द का कोई भी एहसास नहीं होता ? तो,,,,, ये ज़िंदा कहां हैं ! दूसरों की आपदा को अपने लिए अवसर बनाने के लिए ये जीते जी मर जाते हैं ! अब ये.आंसू, दया और धर्म की तुच्छ सांसारिक सोच से मुक्त होकर जिंदों के बीच आराम से विचरते हैं! ऐसे बहुत सारे मुर्दे आपके आसपास आबाद हैं, जिनकी वजह से मुर्दे तैर रहे हैं!
हम नई परिभाषा नहीं तलाशते, पुरानी को दुहरा कर संतुष्ट हैं! गंगा में तैरती लाश के साथ सड़ते रिश्तों से पहले हमें सरकार की नाकामी नजर आने लगती है! हम खुद पर कोई दोष नहीं लेते, ऐसा करने से हमारे ज़िंदा होने की आशंका बढ़ जाती है! इसलिए हम हालाते हाजरा की जलवायु सूंघ कर मुर्दों के साथ बहने लगते हैं ! इल्जाम लेना बड़ी हिम्मत का काम है, इसलिए हम जोखिम उठाने की अपेक्षा दूसरों को दोषी साबित करने में लगे होते हैं!
मुर्दे बह रहे हैं, कथित जिंदे गंगा के किनारे खड़े अफसोस कर रहे हैं ! मुर्दे लावारिस हैं, उनके वारिस रात में उन्हें गंगा के हवाले कर मोक्ष के प्रति आश्वस्त हैं! मोक्ष और मुर्दों के बीच में कुत्ते खड़े हैं ! मुर्दे बह रहे हैं, तट पर खड़े मुर्दे अपने भविष्य को लेकर चिंता व्यक्त कर रहे हैं, " मै मुर्दों को नहीं, इन कुत्तों को लेकर चिंतित हूं! कल को ये कुत्ते हमारी बस्ती में आकर मानव मांस तलाशेंगे ! सरकार को कुछ करना होगा"!
मुझे एक शे'र याद आ रहा है !
साहिल के तमाशाई हर डूबने वाले पर !
अफसोस तो करते हैं इमदाद नहीं करते !!
( सुलतान भारती)
MANDI hai toh Mumkin hai 😂😂😂 heheheheeee
ReplyDeleteUnfortunately true.
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