अब हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है! अब तो शायद पूरी दुनिया के समझ में आ गया है कि कोरोना को हम पसंद आ गए हैं ! वो मरदूद यहां से जाने को राज़ी नहीं है ! जाने उसे किसने क्या घुट्टी पिला दी है कि जाने के लिए - कोरोना है कि मानता नहीं ! कई लोगों ने समझाया भी कि , - घर वापसी कर ले , मां बाप कुंभ में ढूंढ रहे होंगे ! गाना गा रहे होंगे - तू छुपा है कहां ढूंढता मैं यहां ,,,,!' पर उसे अपने पिता श्री ( चीन) से ज़रा भी लगाव नहीं ! बड़ी नालायक औलाद है । यहां के मल्टी टैलेंटेड नेताओं के पैर पकड़ कर कह रहा है, " तेरे चरणों से जुदाई तो नही मांगी थी ,,,,,!'
2020 में जब कोरोना आया तो मैच्योर्ड नहीं था़ , ना समझी में कहीं भी घुस जाता था । फिर उसे गुरुकुल के आचार्य मिले और उसका टाइम टेबल और रूट चार्ट से उसे अपडेट किया गया । अब उसे बताया जाता था कि अगले दिन उसे किस गरीब की बस्ती से पलायन करना है और किस मार्केट में चटाई बिछा कर लेट जाना है !कई अवतारी पुरुष मल्टीनेशनल कंपनियों से डाटा इकत्र कर जनता को बता रहे थे ,- अमेरिका, इटली, चीन और ब्राज़ील के मुक़ाबले अपने यहां स्थिति काफ़ी नियंत्रित है -! कोरोना पूरे अप्रैल २०२० में गुड फील करता रहा ! मैंने सोचा कि कोरोना को भी मनरेगा योजना में शामिल कर लिया गया है और और अब उसे मुख्य धारा से कोई अलग नहीं कर सकता ।
वर्मा जी के कई यक्ष प्रश्न हैं जिन्हें सुनकर सरकारी और गैरसरकारी अधिकारी पूंछ उठाकर भागते हैं ! वो कल ऐसा ही एक सवाल मुझसे पूछ रहे थे, - " लॉक डाउन से कोरोना को क्या प्रॉब्लम आती है ?" मैंने वर्मा जी को टालना चाहा, - " इस सवाल का जवाब कोई नेता दे सकता है या पुलिस अधिकारी "! वर्मा जी अड़ गए, " चलो थोड़ी देर के लिए तुम खुद को लेखक की जगह कोरोना मान लो, अब बताओ, लॉक डाउन से एक कोरोना को क्या असुविधा हो सकती है।" मैं उनके सवालों में फंस गया था, निकलने का कोई रास्ता नहीं था, मैने हमला वाला रास्ता पकड़ा, " लॉक डाउन से कोरोना को कम नुकसान है, लेखक को ज़्यादा । लेखक कब तक घर में सहन किया जाएगा! आखिरकार उसे गेहूं के लिए बाहर निकल कर जाना होगा । कोरोना के लिए गेहूं की कोई बाध्यता नहीं है"!
वर्मा जी ने मुझे घूर कर देखा, - " मुझे तो बताया गया था़ कि तुम्हें कोरोना हो गया है,और तुम्हारा दिमाग़ अब आउट ऑफ कंट्रोल हो चुका है ! लानत है, लोग आजकल भी झूठ बोल रहे हैं।" उन्हे ये जानकर बिलकुल खुशी नहीं हुई थी कि मैं सही सलामत हूं! वो हवा में दुलत्ती मार कर निकल गए!
वैसे एक हकीकत है कि शायद पूरे देश के व्यंग्यकारों ने मिलकर भी कोरोना के खिलाफ़ इतना ना लिखा होगा जितना अकेले मैने लिखा है। इतना मजाक तो एक मुर्दा भी सहन नहीं कर सकता ! लोगों ने तो कोरोना को पूड़ी सब्जी खिला कर खुद गोबर तक खा लिया , मूत्र पी लिया कि , अब से कोरोना शांत हो -! यहां एक मैं था कि लॉक डाउन में भी बाहर निकल कर उसे ढूंढता रहा, लिखता रहा और मजाक उड़ाता रहा। इसलिए जब १६ अप्रैल 2021 को मै कोरोना के हत्थे चढ़ा तो कोरोना समर्थक काफ़ी खुश थे,, ( आज आया है ऊंट पहाड़ के नीचे !) जब मुझे पता चला कि मुझे कोरोना हुआ है तो मैं डरने की जगह थोड़ा हैरान हुआ! हैरान इसलिए क्योंकि मुझे अभी तक यकीन नहीं था़ कि कोरोना एक क्रूर हकीकत है !
तो,,, दोस्तों ! आपको एक बड़े तजुर्बे की बात बताता हूं। मौत का एहसास क्या है ? सांस और हिचकी के बीच के खला पर रुका खुदा का फैसला जो आप खुली आंखों से देख कर भी आगे खुद को जगा नहीं पाते। मेरी ऑक्सीजन 82 से 88 तक दौड़ रही थी और मैं पूछने पर घर बालों को 92 और 94 बता देता था। सच तो ये भी था कि मैं कहीं से कहीं तक कोरोना या मौत को लेकर ज़रा भी खौफ में नहीं था । अलबत्ता बैखौफ होने के पीछे का जो मज़बूत कंक्रीट होता है, उसे मैने पहचान लिया है। वो आपके नेक अमल हैं ! अगर आप दूसरों के लिए जीने को वरीयता देते हैं तो आप को न मौत से खौफ होगा न ज़िंदगी से बहुत ज़्यादा लगाव !
आज शायद बीस दिन बाद ब्लॉग लिखने बैठा हूं। अभी ठीक से चल नहीं पा रहा हूं। धीरे धीरे धीरे ताकत रिस्टोर हो रही है। मेरे तमाम चाहने वालों ने दुआओं और शुभकामनाओं की रेड कार्पट बिछा दी थी मेरे लिए ! यही तो आप कमाते हैं अपने लिए । यही सबसे बड़ी दौलत है हम जैसों के लिए !
तो,,, शब्बा खैर, खुदा करे हर इंसान को शिफा हासिल हो और कल का सूरज आपकी कामयाबी की रोशनी लेकर आए ! ( अब तो दफा हो ले कोरोना !)
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