Thursday, 21 November 2024

[व्यंग्य चिंतन] बंट जाओ प्लीज, थोड़ा काटना है

           'व्यंग्य चिंतन'
बंट जाओ प्लीज, थोड़ा काटना है 

      अब का बताएं भैय्या, हंगामा सा बरपा है ! कोई काटने वाला है, जो सिर्फ इस बात काटता है कि लोग बाँटने पर आमादा 

Tuesday, 19 November 2024

हाफ वर्ल्ड

                 हाफ वर्ल्ड 

                  चारों तरफ से समंदर नें उस टापू को अपने आगोश में ले रखा था और टापू के  खूबसूरत बीच पर खड़ी 6 लड़कियां समुद्र की ओर ख़ामोशी से देख रही थीं ! उन में एक नीग्रो लड़की थी और 5 गहरे गोरे रंग की ! सभी नें एक जैसी यूनिफॉर्म पहन रखी थी और उन्होने अपने हाथों में एम वन एसाल्ट राइफल थाम रखी थी ! वो समंदर की ओर ऐसे देख रही थीं,  जैसे लहरो के नीचे से उनका कोई दुश्मन निकलने वाला हो ! 
   वो परियों की बेटियाँ थीं,  ऐसा उन्हें बताया गया था ! उन्हें समंदर के बाहर की दुनियां के बारे में कभी नहीं बताया गया ! 'ग्रान्ड मदर' ने उन्हें विपरीत लिंगी जीव के बारे में कभी कोई जानकारी नहीं दी थी ! उन्हें सेक्स , शर्म और धर्म से मुक्त शिक्षा दी गई थी ! देखने में वो सभी इतनी खूबसूरत थीं कि छू लेने मात्र से उनके मैला हो जाने का शक होता था ! उन्हें यह भी नहीं पता था कि वो सभी बेहद गोपनीय प्रोजेक्ट ' हाफ वर्ल्ड ' का हिस्सा हैँ  ! वो सभी युवा लड़कियां खामोश थीं और फ़िज़ाओं में समंदर की लहरो के तट से लगातार टकराने का संगीत सुनाई दे रहा था !
                      ( अंदर के किसी पेज से,,,,,,)

  सुल्तान भारती तिलिस्मी अल्फाज़ की आकाश गंगा रखते हैं! मेरे प्रकाशन से यह उनकी 6 ठवी किताब है ! किताब खोल कर 2 पेज पढ़िये , मेरा दावा है आप उनके शब्द सामर्थ्य, शैली और शख्सियत  के मुरीद बन जाएंगे !
                          नित्यानंद तिवारी 
                              [ प्रकाशक]


Monday, 11 November 2024

[ व्यंग्य भारती ] 'रोटी बेटी माटी'

व्यंग्य "चिंतन"

           'रोटी'   'बेटी'   'माटी' 

    'अरे ओ झुरहू काका,  इतनी सुबह कहाँ बदहवास होकर भागे जा रहे हो, जल्दी में लोटा लेना धूल गये का' ?
      " का बताएं बचवा ! कल नेता जी का भाषण सुनने के बाद रात भर नींद नहीं आई- ! अब खेत देखने जा रहा हूँ कि अपनी जगह है या कोई लेकर भाग  गया-! बड़ी मुसीबत है,  नीलगाय देखू या घुसपैठ-!'
       ' कौन घुसपैठ कर रहा है?'
    " वही जो रोटी, बेटी और माटी छीनने की घात में है , पिछले चुनाव में मंगल सूत्र छीनने की घात में था, पर नेता जी ने वोट लेकर बचा लिया था ! वैसे ससुरा आता तो भी घर में मंगल सूत्र न पाता-!'
        'क्यों ?'
    " सुखना की शादी में खेत गिरवी रख कर पांचू लाला से पैसे लिए थे ! फिर खेत छुड़ाने में तेरी काकी का मंगल सूत्र चला गया ! इस बार कोई नया घुसपैठिया है जो मंगलसूत्र की बजाय माटी, बेटी और रोटी सब छींनने की घात में है-! एक ही तो खेत बचा है '!
   " बुढ़ापे पर रहम खाओ काका ! इस उम्र में इतना दौड़ना घातक है-"!
 "तौ फिर का करी बचवा" ! 
       " नेताओं को सिर्फ वोट दिया करो,  उनके भाषण पर यक़ीन करने लगे तो नींद नहीं आएगी"!
             " हाँ  बेटवा, कल बड़ी मुश्किल से सोये तो सपने में 'पांचू लाला' को देखते ही आंख खुल गई "!
     " ऐसा क्या देखा?"
   " पाचू लाला मेरा खेत कंधे पर रखे शमसान की ओर भागे जा रहे थे,  मुझे याद है,  उन्होंने मुझे देख कर जुबान निकाल कर चिढ़ाया भी था-!" 
   " फिर तो ज़रूर जाओ ! इसी बहाने तुम्हें पता भी चल गया कि घुसपैठिया  बाहर का नहीं है-"!
        " का करें बचवा ! गरीब आदमी को सबसे डरना पड़ता है! सत्तर साल हो गये, डर जाता ही नहीं ! अब तो भूख से ज्यादा चुनाव डराता है-"!
     झुरहू काका चले गये,  ये देखने कि माटी और रोटी बची या नहीं ! 
   गावं से शहर तक  एक अज्ञात खौफ़ वायरल है! बहुसंख्यक को डराया जा रहा है, - " देवतादल को वोट  दो,  वर्ना राक्षस दल जीता तो,,,,ग़ज़ब भयो रामा जुलम भयो रे-! ऐसी महादशा आयी तो तुम्हारी महिलाओं के मंगल सूत्र छींन लिए जाएंगे"! ( आजादी के 75 साल बाद अब " राक्षस समुदाय" की नाभि का अमृत अचानक ऐक्टिवेट हो गया है है-! हनुमान जी ने आग लगा कर लंका का सारा सोना राख कर दिया था,  अब वो नुकसान मंगल सूत्र छींन कर पूरा किया जाएगा-!)
        तुलसी दास ने कहा था, - भय बिन होय न प्रीत-! उस दौर में  'प्रीत' की बड़ी मार्केट वैल्यू थी, आज ' बाँटने' और काटने' का नारा प्रीत पर भारी है ! [ वक़्त वक़्त की बात है , अब डेटर्जेन्ट से बने दूध का 'खोया' असली पर भारी है-! ढाबा से लेकर गाँव की शादी तक 'पनीर' की गंगा बह रही है-) हर जगह बिना  भय के 'प्रीत' का बोलबाला है ! पहले मिलावट में भय था,  अब प्रीत है ! अब शैम्पू से तैयार दूध में ज्यादा मोटी मलाई पड़ती है!
      सियासत में अब 'शेर' की तादाद बढ़ रही है! पार्टी के चारण गली में नारा लगा रहे हैँ, - 'देखो देखो कौन आया-!' भीड़ पहचान बता रही है-' शेर आया! शेर आया-!' पान की गुमटी पर एक बुजुर्ग शेर की तारीफ़ कर रहा है,-' तीन कत्ल और एक दर्ज़न डकैती का केस चल रहा है ! बलात्कार के केस में तीन महीना पहले अंदर गये थे ! पिछले हफ्ता ज़मानत पर बाहर आए हैं ! इस बार भी यही जीतेगे -! मुन्ना भैय्या के होते मजाल है कि कोई दूसरा क्षेत्र में दबंगई करे-!'  'भय' ने  'प्रीत' का माहौल बना दिया है ! चुनाव से पहले का विकास अंकुर ले रहा है ! अगली गली में नारा लग रहा है-
       "मंगलसूत्र"- की मज़बूरी है !
       "मुन्ना भैय्या "  ज़रूरी   है !!
मुन्ना भैया की सख्त ज़रूरत वायरल हो रही है!
               कभी हमारा देश- विभिन्नता में एकता-के लिए जाना जाता था, आज एकता की बजाय - बांटने और काटने- वाला नारा ज्यादा पापुलर है ! बड़े वाले विकास पुरूष डरा रहे हैँ कि 'देवता दल' को वोट न दिया तो 'दानव मोर्चा' पॉवर में आ जाएगा ! उनके सत्ता में तुम्हारा 'कटना' तय है,  खैरियत इसी में है कि ' बंटने' से बचो !  
     आकाशवानी होते ही सभी चुनाव पहचान पत्र लेकर लाइन में खड़े हो गये! कोई इतना भी नहीं पूछ रहा कि काटेगा कौन ! क्या देश संविधान विहीन हो चुका है ! पुलिस की भूमिका खत्म हो गयी है ? बहरकैफ, नई सुरक्षा व्यवस्था में सिर्फ देवताओ की पार्टी को वोट देने मात्र से सुरक्षा चक्र प्राप्त हो जाएगा !  लेकिन यक्ष प्रश्न तो ये है कि काटने  वाला कौन है, कहां का है और कहां रहता है? कभी मंगल सूत्र , कभी घर पर कब्जा और इस बार रोटी बेटी और माटी तीनो पर कब्ज़ा करने की तैयारी ! प्रशासन इतने बड़े अपराधी की सारी गुप्त योजनाएं कैसे जान लेता है? और जान लेने के बावजूद उन पर कोई ऐक्शन क्यों नहीं लेता ? 
      मैं भयभीत होने की कोशिश में बार बार चिंतित हो रहा हूँ !  शाम होते होते खबर चौधरी तक पहुंची तो उसने सुबह होने का भी इन्तेज़ार न किया,-'  उरे कू सुन भारती ! यू बाँटने अर् काटने का के मामला सै -! घना हंगामा है -!'
     "  मैंने भी सुना  है, पर कोई नहीं बता रहा है कि बांट कौन रहा है!'
      ' बुद्धि लाल  बता रहो, अक् कोई पंचर वाड़ा "अब्दुल"  है जो पहले मंगलसूत्र खींच कै भागा था, इब के भैंस अर् तबेला ठाकर भागने वाड़ा सै -! एक घंटे ते ढूंढ रहा हूँ,  कित मिलेगो -?'
 
           तब से मैं खुद परेशान हूँ,  लोग हर चुनाव में चौधरी को भड़का देते हैं  ! मेरे खुद समझ में नहीं आ रहा कि हर चुनाव से पहले 'अब्दुल'  पंचर का काम छोड़ कर  'चंबल' क्यों चला जाता है!
           अब  फिर "पंचर वाले अब्दुल" को "सुल्ताना डाकू" साबित किया जाएगा !

              ( Sultan bharti)
       

Friday, 18 October 2024

व्यंग्य 'चिंतन' "शहर में दंगा "

(व्यंग्य 'चिंतन')

शहर में दंगा 
  
     अचानक शहर में सकता छा गया! देखते ही देखते पूरे शहर में खबर बिजली की तरह फैल गई कि शहर में दंगा हो गया है ! ( शायद विकास का और कोई विकल्प था ही नहीँ!) चिंतित घर वालों को अफ़वाहों में तैर रही ख़बरे और डरा रही थीं, -चौक के पास जुलूस पर पथराव हुआ है- !
   मोहल्ले वाले आपस में बात करने लगे -' पथराव 
     किसने किया '?
" दंगायी लोगों ने "!
     "मगर क्यों?"
" वो कह रहे  थे कि  डीजे  पर गाली मत बजाओ ! क्यों न बजाए ! हमारी आस्था है  ! इसी बात को लेकर जलूस के लड़कों की आस्था ज्यादा आहत हो गई और उसमें से एक लड़के ने छत पर चढ़ कर उनका हरा झंडा रेलिंग समेत गिरा दिया ! बस इतनी सी मामूली बात पर उसे मार डाला गया,  देश में कानून व्यवस्था कितनी खराब है '! 
   " डी.जे. पर गाली क्यों बजाई जा  रही थी ?'
  ' सिर्फ आस्था के भरोसे जुलूस में कौन जाएगा दादा ! आज कल तो रामलीला में भी फ़िल्म के गाने और डांस चलता है !"
 एक युवक ने 'शुभ समाचार' दिया , -' अब दंगायी लोगों की लिस्ट बनाई जा रही है, इस बार बुलडोज़र  की ड्यूटी लंबी चलेगी-'!
    " पर चलेगा किस पर?"
   "उन्हीं लोगों पर,  जो हमारा जलूस देख कर पथराव करते हैँ "!
     " पर राम पदारथ बता रहे थे कि पथराव भी जलूस की तरफ से किया गया था !"
 " तो का करें ! वो पथराव कर ही नहीं  रहे थे तो कब तक इन्तेज़ार करते ! दंगा के लिए हम किसी और पर निर्भर क्यों रहें !" 
   टीवी पर खबर आ रही थीं, - शहर में हुए दंगे को लेकर प्रशासन एक्शन में आ गया है! दंगा ग्रस्त इलाके के आसपास "अवैध मकान,  दुकान,और धार्मिक निर्माण " को चिंहित करने का काम शुरू कर दिया है, ताकि 48 घंटे की नोटिस पर अवैध निर्माण गिराये जा सके -!
      एक बुजुर्ग से न रहा गया, -' इतने अवैध निर्माण ! प्रशासन ने पहले क्यों नहीं गिराया- '!
        न्यूज सुन रहे दूसरे बुजुर्ग बोल उठे-" दंगा होने के बाद प्रशासन का मोतियाबिन्द दूर होता है भैय्या-'!
     अगले दिन गोदी मीडिया के पत्रकार और सोशल मीडिया के यू tuber मवाद पैदा करने निकल पड़े ! दंगा में लुट कर जल चुकी एक दुकान को तोड़ रहे एक बुजुर्ग आदमी को देखते ही 'चीखता है भारत' के पत्रकार ने अपना ज्ञान उड़ेलना शुरू कर दिया, -' देखिये दिन दहाड़े एक दंगाई सीढ़ी लगा कर एक दुकान तोड़ रहा है! प्रदेश में इतना सख्त कानून व्यवस्था होते हुए भी दंगाई कितने बे खौफ़ हैँ आप देख सकते है ! दंगाई की ये ताज़ा तस्वीरें आप सबसे पहले मेरे चैनल पर देख रहे हैँ !'
   तभी सड़क से पुलिस की एक कार सायरन बजाती गुजरी , पत्रकार चिल्लाया, -' देखा आपने , पुलिस की हिम्मत नही पडी कि वो इस दंगाई को दीवार तोड़ने से रोक सके ! दाढ़ी और टोपी से आसानी से पहचान जा सकता है कि ये बुजुर्ग पत्थरबाज किस समुदाय से  है ! देखने से ही लगता है कि उसने पहले दुकान लूटा होगा, फिर जलाया होगा और आज ऑन कैमरा दुकान तोड़ कर उस पर कब्जा करने आया है-'!
  उसी वक़्त एक और एंकर आ पहुंचा,  थोड़ी दूर से ही माइक आई डी ऑन करके चिल्लाया ,-" लोग अपने अपने घर में हैं,  सन्नाटा जैसी स्थिति है! लेकिन इस हालत में भी दंगाई  बे खौफ़ होकर लूट पाट में लगे हैं ! अब मैं जो तस्वीर दिखाने जा रहा हूँ, उसे देख कर आपके होश उड़ जाएंगे ! एक दंगाई मेरे कैमरे की पकड़ में है ! उसके हाथ में एक बेहद खतरनाक हथियार है, जिससे पल भर में अच्छे भले युवा घर को धूल में मिलाया जा सकता है ! सब कुछ देखने से पहले आप मेरे चैनल को subscribe ज़रूर कर लें ! बुरे दिन चल रहे हैँ, चैनल आत्मनिर्भर रहेगा तभी आप मन भावन न्यूज सुन जायेंगे! गला सूख रहा है, दुकानें बंद हैं और परसों से पिया भी नहीं है-"!
    एक पल रुक कर एन्कर फिर शुरू हुआ, -" इस आतंकी और दंगाई को गौर से देखिये,  सर पर टोपी और हाथ में घातक फावड़ा ! इस उम्र में भी इस का मन दंगा, लूट औऱ आतंकी गतिविधि को समर्पित है ! ये हाहाकारी तस्वीरें सबसे पहले आप हमारे 'सतयुग' चैनल पर देख रहे हैँ ! चलिए मैं इस बुजुर्ग दंगाई से खुद बातचीत करने की कोशिश करता हूँ, कहीं यह ओसामा का गुरु 'अल जवाहिरी' न हो, बने रहें सतयुग के साथ-"!
    लेकिन तब तक वहाँ पहले से खड़े चीखता है भारत के पत्रकार ने बुजुर्ग का बाइट लेना शुरू कर दिया था, -' आप कब से इसे तोड़ रहे हैँ  -'!
       बुजुर्ग ने ख़ामोशी से पत्रकार को देखा और अपने काम में लगा रहा ! पत्रकार ने अगला सवाल दागा, -" आपने इस घर में आग कब लगाई थी ?" 
   इस बार भी बुजुर्ग कुछ नहीं बोला ! पत्रकार ने तीसरी बार पूछा,- " जिस दुकान को लूटने के बाद आपने आग लगाई और अब ध्वस्त करने में लगे हो,  उसके मालिक का नाम क्या था, जिंदा है या जला दिया गया-"! 
      "जिंदा है , मगर मुर्दा समझो बाबूजी-"!
 पत्रकार चीखता हुआ बोला,-' ये कुबूल कर रहे हैँ कि दुकान का असली मालिक अभी जिंदा है,  लेकिन मुर्दा से भी बदतर है! इसका मतलब उसे भयानक यातनायें दी गयी हैं, हो सकता है कि गर्दन न काट कर उस के हाथ पैर काट लिया हो-'! 
   सतयुग चैनल वाला बीच में ही बोल पड़ा -" शांति पूर्ण जुलूस पर आप लोग पत्थर क्यों मारते हैं ?"
     " मैं नहीं जानता बाबूजी-!"
    " आपके लड़कों ने पत्थर मारा होगा,  कितने बेटे हैं,  दस या बारह ?" 
  "एक" !
  दोनों पत्रकारों को धक्का लगा ! दूसरे वाले ने अपने गिरते हुए मनोबल को संभाला, -" आपका बेटा अब कहां है-?"
     " कुछ पता नहीं है,  पुलिस घर से उठा कर ले गई थी,  अब कहते हैं कि हमें पता नहीं-" ! इतना कह कर बुजुर्ग फफक कर रोने लगा !
     'चीखता है भारत' का पत्रकार ऐसे चीखा गोया ख़ज़ाना हासिल हुआ हो, -" शहर में हुए दंगे का मुख्य आरोपी फरार है  ! सूत्रो से मिली जानकारी के मुताबिक़ उसी ने धार्मिक जुलूस पर हमले की अगुवाई की थी ! उसके घर वाले रो रहे हैँ, लेकिन अब पछताये होत क्या,,,,!"
    सतयुग चैनल वाले ने बुजुर्ग से पूछा, -" जिसे तोड़ रहे हो उस दुकान के मालिक का नाम क्या है?'
 " साबिर अली "!
    नाम सुन कार दोनों को सदमा पहुंचा,  पहले वाले ने धीरे से पूछा- " तुम्हारा क्या नाम है?"
     " साबिर अली ! मेरे पास बुलडोज़र को देने के लिए पैसा नहीं है, इसलिए अपना ही घर खुद गिरा रहा हूँ बेटा भी गया और  घर भी ! कल से भीख माँगा करूँगा-"!
    जैसे गाज़ गिरी हो ! दोनों ने एक दूसरे को ऐसे देखा, जैसे कह रहे हों- सब धन धूल समान ! 

          'विस्फोटक ख़बर'  बनते बनते अचानक कोमा में चली गयी थी !

           ( sultan bharti)
     


Wednesday, 18 September 2024

('व्यंग्य' चिंतन ) "सितंबर में- हम कू हिन्डी मांगटा"

(" व्यंग्य" चिंतन)

' सितंबर में- हम कू हिंडी  मांगटा'

           अब यही समस्या है दुरंत ! "ऊपर" से आदेश है कि मंत्रालय के बाहर एक बैनर लगा दिया जाए कि हम हिन्दी पखवारा मना रहे हैं! आज से 15 दिन  तक लगातार हम सारे काम हिन्दी में करेंगे ! इसमें चाहे जितनी बाधा आए, हम 15 दिन पीछे नहीं हटेगे, आखिर हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है-'!
इसके बाद हिन्दी के प्रति मोह और माया दोनों बंधन मुक्त होकर बैनर में छलकने लगे ! कई ऑफिस और बैंक के गेट पर हिन्दी प्रेम साफ साफ चुगली कर रहा था, - कि  ये तो कुछ ज्यादा हो गया-! एक बैंक के सामने बैनर लगा था,- हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है, आओ इसे विश्व भाषा बनाएं-! (और ये महान काम भी उन्हें सितंबर में ही याद आता है !)
अक्टूबर लगते ही वो तमाम मोह माया से मुक्त हो कर अपने बच्चों के लिए ' इंग्लिश स्कूल ' ढूँढने में  लग जाते हैँ-!
        कमाल तो ये है कि हिंदी पखवारा मनाने का ऐसा बैनर दिल्ली के वो सरकारी अस्पताल भी   पूरी दिलेरी से  लगाते हैं जिनका एक भी डॉक्टर दवाई का नाम हिन्दी में नहीं लिखता ! इसके बावजूद हिन्दी के प्रति उनकी अगाध आस्था देखिये,  वो सितंबर का पूरा एक पखवारा  हिन्दी को विश्व भाषा बनाने में खर्च कर देते हैं ! अपने देश का डॉक्टर हिन्दी सिर्फ घर में बोलता है! ड्यूटी पर तो  छींक भी आ जाए तो अँग्रेजी में 'सोरी' बोल कर खेद व्यक्त करता है! इस से हिन्दी के प्रति उसके 'समर्पण' और अँग्रेजी के प्रति  'कर्त्तव्य' का पता चलता है! पार्टी में अँग्रेजी बोल कर वो गर्वित होकर टोह लेता है कि मौजूद लोगों पर उसकी विद्वता की कितनी छींटे पडी हैं ! कुछ लोग तो अपने अनपढ़ घरेलू नौकरो को भी अंग्रेज़ी में  डान्टते हैं ! इसके दो फायदे हैं, - एक- नौकर पर रोब ग़ालिब होता है, और नौकर को चूंकि अंग्रेज़ी नहीं आती,  इसलिए वो उतना बुरा नहीं मानता ! ( रिंद के रिंद रहे,  हाथ से जन्नत न  गई-!)
    हिन्दी पखवारा चल रहा है,  लोग घर में अंग्रेज़ी अखबार पढ़ रहे हैं! वर्मा जी अपने बेटे को अगस्त महीने में ही  सलाह दे रहे थे, -'  घर में अँग्रेजी बोलने की कोशिश करोगे तभी इंटरव्यू क्लीयर कर पाओगे ! लेकिन तुम्हारे कान पर तो ताला लगा है ! अगले महीने हिन्दी दिवस है, मैं चुप रहूँगा, किंतु गांधी जी के महीने में अगर अंग्रेज़ी बोलने से अना कानी की तो कान उखाड़ लूँगा--'
  " मगर हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है"!
" मुझे कोई एतराज़ नहीं हैं,  बस तुम अंग्रेज़ी बोलना शुरू कर दो-"!
      " अब तो हिन्दी में भी इंटरव्यू होने लगा है!"
' तो तुम्हें अंग्रेज़ी पसंद नहीं है?'
      " हिन्दी में जो मिठास है, वो अंग्रेज़ी में कहा !"
  "अंग्रेज़ी के बग़ैर कैरियर से मिठास उड़ जायेगी "!
      " आप तो घर में अंग्रेज़ी नहीं बोलते "!
 " मेरे बाप ने मुझे गावं में बढ़ाया था ! वो अंग्रेज़ और अँग्रेजी दोनों के दुश्मन थे "!
 " लेकिन पिछले हिन्दी दिवस पर आप मंच पर लोगों को शपथ दिला रहे थे कि हिन्दी को विश्व भाषा बना कर दम लेंगे-"!
    वर्मा जी गुस्से में लाल हो गये, -' बहुत ज़बान चलने लगी है, बाप से ज़बान लड़ाता है,  चल उन्तालिस का पहाड़ा सुना-'! 
 बेटे ने अँग्रेजी का कड़वा घूट गले के नीचे उतारा !
       'बुद्धि जीवी' जी हिंदी के मंचपछाड़ कवि हैं, उनकी कविताओं से पीड़ित शहर की साहित्य सभा ने उन्हें मंच से बनवास दे रखा है ! लेकिन बुद्धिजीवी जी नें हार नही मानी ! वो बग़ैर बुलाए मंच पर रचना समेत पहुंचने लगे ! उन्हें देखते ही समस्त साहित्यकारों में कोरोना जैसा आतंक फैल जाता ! दो तीन कवि सम्मेलन में अराजकता और असफलता के बाद आयोजक और बुद्धिजीवी जी में आखिरकार इस बात पर सहमति हो गयी कि उन्हें भी पारिश्रमिक दिया जाएगा,लेकिन वो उस दिन कवि सम्मेलन से दूर रहेंगे ! बुद्धिजीवी जी को इस सौदे में कोई खोट नजर आया ! 
         साउथ इंडिया के रहने वाले एक मंत्री जी साहित्य सम्मेलन में राष्ट्र भाषा हिन्दी की खूबसूरती पर प्रकाश डाल रहे थे , -' हिन्दी स्पीकिंग और रीडिंग  बहुत इजी ! हिन्दी दिवस वेरी गुड ! हिंदी पखवारा में गुड फीलिंग्स आता ! ये अभी हमारा नैशनल लैंग्वेज,  बट विश्वगुरु होने के बाद वर्ल्ड लैंग्वेज बनेगी- यू नो ? चलो इस बात पर ताली बजाने का ! एक स्लोगन रिपीट करने का-

सितंबर  मंथ का क्या पहचान !
'हिन्दी    भाषा    बने    महान' !!

      सितंबर खत्म, बैनर वापस आलमारी में! अलविदा हिन्दी पखवारा ! ये 15 दिन सरकारी बाबुर्ओं पर कितना भारी पड़ता है! वहीं हम हिन्दी  प्रेमी उत्तर भारत के लोगों का खोया हुआ मनोबल वापस आ जाता है ! शायद हम यूनिवर्स में पहले ऐसे लोग हैं जो अपनी राष्ट्रभाषा को पूरा साल देने की जगह एक पखवारा देते हैं ! कल 30 सितंबर है,  तो अलविदा हिन्दी पखवारा ! कुर्बानी के इसी 15 दिन से साल भर काम चलाओ ! अपना हीमोग्लोबिन दुरुस्त करो ! 'कथित हिन्दी प्रेमी' अगले सितंबर में फिर राष्ट्र भाषा के लिए पूरे एक पखवारे की कुर्बानी देंगे !

    तब तक के लिए हिन्दी के प्रति उनका मोह 'कोमा' में रहेगा !

                      [ सुल्तान भारती]
 


Sunday, 18 August 2024

("व्यंग्य" चिंतन ) सबका साथ सबका विकास

'व्यंग्य' चिंतन 

'सबका साथ सबका विकास'

 आसमान से गिरे ख़जूर में अटके ! सामने हाल में सोने की बजाय मैं ये सोच कर छत पर बने कमरे में सोने चला गया कि चौधरी समझेगा कि मैं घर में नहीं हूँ! अभी मुझे ठीक से नींद की खुमारी भी नहीं आ पायी थी कि चौधरी आ गया-' नीचे कूलर की हवा गरम लग रही- के ! दो घंटे ते कितै हाँड रहो!'
     ' पर मैं तो कहीं गया ही नहीं-!'
   'मन्ने के बेरा '- चौधरी कुर्सी पर बैठता हुआ बोला-'इब नू बता अक थारा विकास हो गयो के'?
     नींद के खुमारी की वज़ह से मैं कुछ और समझा,  मैंने कहा, - ' वो तो तीस साल बीत गए ! अब तो बच्चे काफ़ी बड़े हो गये !'
 चौधरी बिगड़ गया, - ' केले ही विकास कर लई मन्ने बताया कोन्या ?'
   जैसे अंगारा छू लिया हो,  मैं एक दम से खुमारी से बाहर आ गया! मैंने तुरंत सफ़ाई दी, - 'मैंने समझा तुम मेरी शादी के बारे में पूछ रहे हो!'
  ' मेरे गैल तू भी बुढ़ापे में आ लिया पर  'लव जिहाद' ते इब तक बाज न आ रहो-'!
   " अब मैंने क्या किया?"
       ' परे कर लव जिहाद ने,  नू बता- थारा विकास हो लिया, या कॉंग्रेस ने रोक रख्या सै ?'
   'कॉंग्रेस कैसे विकास रुकेगी,  वो तो विपक्ष में है!'
  'तभी तो कोई विकास ने होने दे रही ! न खुद विकास कर रही, अर् न होने दे रही ! इब केले प्रधान मंत्री जी के करें-!'
     विकट समस्या थी ! टीवी में खबर सुन कर चौधरी रुके हुए विकास को लेकर चिंतित था ! बस उसे शंका थी कि कहीं कॉंग्रेस से सांठ गांठ करके मैंने चुपचाप अपना विकास न कर लिया हो ! मेरी तरफ से आश्वस्त होकर चौधरी ने नई शुरुआत कर दी, -'देश की अर्थव्यवस्था घनी ऊपर लिकड़ गी, इब भैंस तो सस्ती हो ज्यागी ?'
    मेरी नींद उड़ चुकी थी ! ऊपर से चौधरी के सारे सवाल ' विकास' और  'आत्मनिर्भरता' के बारे में थे, जिसमें हम दोनों ही कुपोषण के शिकार थे ! चौधरी भैंसों के भविष्य को लेकर चिंतित था और मेरा खुद उसकी भैंसों से मानवीयता का नाता था!(  इन भैंसों ने ही कहीं न कहीं हम दोनों को एक बेहतरीन रिश्ते में बाँध रखा था !) 
     मैंने कहा ,-' सरकार तो किसानों के हक में है ! बहुत सारी स्क़ीम लाई है ! मुर्गा, बकरी,गाय और भैंस का फॉर्म खोलने के लिए  शहर से देहात तक किसान फायदा उठा रहे हैँ-!'
   चौधरी ने फिर सवाल दागा, -' पर कदी कॉंग्रेस ने विकास रोका, फिर,,,,,!'
  'कॉंग्रेस बनवास काट रही है,  वो क्यों किसानों का विकास रोकेगी ?'
   मेरे बारे में चौधरी की शंका थमने का नाम ही नहीं ले रही थी,- 'मेरे धोरे एक सवाड़ हा, सही सही बतावेगो-'?
     ' किस बारे में-?'
  ' तेरी आत्मनिर्भरता के बारे में-'!
' पूछ लो "!
      " इब के लोकसभा चुनाव में कॉंग्रेस ने घनी सीट लूट लई , इब तेरे धोरे कितने मंगलसूत्र इकठ्ठा हो गये-?"
     मैं तो आसमान से गिरा,ये कैसा सवाल था ! मैंने घबराकर पूछा,-' क्या मुफ़्त अनाज की योजना में गेहूं के साथ मंगलसूत्र भी मिलने लगा है-'?
         चौधरी ने मुझे चेतावनी दी, -' घना बुद्धिजीवी होने की ज़रूरत कोन्या-! मोय पतो है-अक् -कॉंग्रेस कू वोट देकर तम लोग मंगलसूत्र लूटना चाह रहे,  पर के कर सकै, सत्ता में आने के लिए आत्मनिर्भर न  हो पाए ! फिर भी इतनी सीट पाकर थोड़ा बहुत मंगलसूत्र तो छींना ही होगा ? के करेगा इतना लूट कै -! ऐसी आत्मनिर्भरता किस काम की ?"
              मुझे हंसी आ गई-' अच्छा तो मेरी ये वाली आत्मनिर्भरता तुम्हारे गले में अटक रही है ! भाई मेरे,  मैं लूटपाट में आत्मनिर्भर होने के मामले में बिलकुल अयोग्य हूँ ! मंगलसूत्र की कौन कहे मैं तो किसी का मोबाइल भी छीन कर नहीं भाग सकता ! अल्बत्ता दो बार चोर मेरा मोबाइल लेकर भाग चुके हैं ! अब तुम खुद सोचो मैं 'मंगलसूत्र' लूट कर कैसे आत्मनिर्भर हो सकता हूँ-?'
    चौधरी के चेहरे पर सुकून नज़र आने लगा, -'इब चाय तो मंगा ले,  इतना विकास तो होगा तेरे धौरे ?'
       पांच मिनट बाद चाय और बिस्कुट दोनो आ गया ! मैंने चौधरी से पूछा,- ' इस बार गाम ते बड़ी जल्दी आ लिया-'?
     चौधरी की आंखें आसमान में कुछ ढूढ़ने लगी थीं, -' गाम बदल गयो भारती! इब किसी के गैल  थारे धौरे बैठने का वक़्त है न लगाव ! सब की चादर लंबी हो - ली ! उतै अर बुरा हाल सै, सरकार विकास के खातिर ग्राम कू पैसा भेजे, पर विकास ग्राम प्रधान के दरवाज़े से आगे जाने कू त्यार कोन्या ! खैर, विकास ने परे कर,  अर् नू बता- अक् ,,,,बचपन में कदी तूने मंगलसूत्र छीना था-?"

    आज पहली बार मैंने चौधरी को घूर कर देखा तो चौधरी ठहाका मार कर हंसने लगा !

          [Sultan 'bharti'  Journalist]


Wednesday, 14 August 2024

(व्यंग्य चिंतन) पानी

[व्यंग्य चिंतन]  

" ई है "संगम विहार" ज़रा देख बबुआ"! 

    अब का बताएं भैया कि इस बस्ती में 'पानी'की समस्या ने किस तरह नाको चने  चबवा दिए ! दो दिन से  एक कविता याद आ रही है, ज़रा सुनिए -                        नल  से  वाटर  टपक   रहा  ऐसे !
                      किसी  विरहिन के आंसुओ जैसे !
                      तीन   दिन  से  नहीं   नहाये   हैं !
                      जब   से  "संगम विहार" आए हैं !!

      अब आप सोचते होंगे कि संगम विहार ज़रूर राजस्थान, सहारा या सिनाई रेगिस्तान की कोई बस्ती होगी,  जहाँ  अच्छे दिन की कोई पहुंच नहीं है ! अरे नाहीं  हो , ई अनाथ विधानसभा तो देश की राजधानी  दिल्ली में है और  वो भी साउथ दिल्ली में ! हे बाबू i ई मा हैरान होने की कौनो ज़रूरत नाहीं- ! संगम विहार में विकास आते हुए घबराता है ! ऐसी घबराहट उसे हर मौसम में होती है ! चलिए आज आपको उपेक्षा के हाशिए पर जी रहे संगम विहार के विकास की कहानी सुनाते हैं!
      1990 में जब मैं यहाँ आया तो कालोनी बस रही थी ! पानी और बिजली दोनों गायब ! विकास और तारणहार की जगह यहां नीलगाय घूमते थे ! 1993 में विधानसभा बनते ही विकास की सुनामी आ गई ! जनता की मुख्य समस्या पानी थी ,( वैसे सड़क और बिजली भी नहीं थी,  पर उसके बगैर लोगों ने जीने की आदत डाल ली थी!) 1993 में दिल्ली विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ तो संगम विहार की जनता कन्फ्यूज हो गई ! हर पार्टी के तारणहार विकास की लिस्ट लेकर आ गए थे ! जनता की समझ में नहीं आ रहा था कि  किसके वाले  'टूथपेस्ट' में नमक है ! जनता सिर्फ पानी, बिजली और सड़क का विकास चाहती थी, लेकिन यहां चुनाव में उतरे तारणहार-200 बिस्तर वाला हॉस्पीटल, कॉलेज, पार्क, पोस्ट ऑफिस, बैंक, सीवर सब कुछ देने पर उतारू थे !
         जब जनता ने देखा कि इतने सारे  'भागीरथ' गंगा लेकर आ गए हैं तो उनको विकास में कुछ काला नज़र आने लगा ! बस उन्होंने सारे  उम्मीदवारों को छोड़ कर एक आजाद उम्मीदवार को चुन लिया ! ( ये वही साल था जब संगम विहार  के लोग पूरी पूरी रात जाग कर "काला बंदर" ढूँढते थे ! दिन में काला बंदर और विकास दोनों जाने कहाँ छुप जाते थे ! संगम विहार की जनता ने हर पार्टी को मौक़ा दिया और सभी ने ' भरपूर' विकास किया,   पर यहाँ की जनता का दुर्भाग्य देखिये कि विकास उसके दरवाज़े तक नहीं पहुंचा ! ससुरा 'विकास' 'विधायक' के ऑफिस में आकर  पसर  जाता था !
       2015 की "झाड़ू क्रांति" के बाद संगम विहार के आम आदमी को पूरी उम्मीद थी कि - दुख भरे दिन बीते रे भैय्या- अब सुख आयो रे,,,! किन्तु पानी का संकट अभी भी बना हुआ था ! पार्टी सुप्रीमो ने संगम विहार की जनता का जल संकट देख कर वहाँ के विधायक को ही दिल्ली जल बोर्ड का मुखिया बना दिया, पर लगता था पानी ही संगम विहार आने को राजी नहीं था ! विधायक ' स्वर्ग'  (सोनिया विहार) से गंगा का पानी संगम विहार लाना चाहते हैं पर-' पानी है कि मानता नहीं-! बाद में बड़ी अनुनय विनय के बाद जब सोनिया विहार में गंगा का पानी घुसा तो उसने शर्त रख दिया,- मैं सदियों से पापियों को "तारने" में लगी हूँ,  पहले मैं यहां के पापियों को "तारने" का काम करूँगी !
सुना है यहां पर पानी माफ़िया बहुत हैं ! पहले उनके काम आती हूँ  ! और रही यहाँ की गरीब जनता,  तो उसके पास पानी तक तो है नहीं , मेरे धोने लायक पाप कहां से  लायेगी ! ऐसी निष्पाप जनता मेरे किस काम की -'! बस तभी से जनता टैंकर की 'नाभि का अमृत'  ग्रहण कर रही है और गंगा ने अपने पानी को पापियों के "कल्याण" में लगा दिया है-!
       "आप" की महिमा न्यारी, एक बार टिकट दे दिया तो उम्मीदवार को बदलने का जोखिम कौन उठाए ! इसी सोच ने सियासत में चारण पैदा कर दिया ! वर्तमान विधायक ने जगह जगह क्षेत्र में बोर करवा के पानी की कमी का आँशिक  समाधान तो किया है किन्तु अगस्त से दिसंबर तक ही इन बोरबेल में वाटर लेवल कारगर होता है! उसके बाद गर्मी के 6 महीने प्यासी जनता नारा लगाती हैं,,,,
संगम विहार की करूँण कहानी !
टंकी  खाली  -  सड़क  पे  पानी !!
      समझ में नहीं आता कि संगम विहार के लोगों को टैंकर से कब छुटकारा मिलेगा, कब उनके घर के  नलों में पानी आएगा? 
     संगम विहार में पानी की विकट समस्या है और खुद "पानी"भी एक बड़ी समस्या है , छत पर रखी टंकी खाली है और सड़क पर पानी की कोई कमी नहीं ! नाली की गंदगी बीमारी पैदा करती है! सीवर व्यवस्था इतनी अलौकिक है कि बारिस के दिनों में संगम विहार की लड़कों पर नदी बहने लगती  है, - ' शर्म उनको मगर नहीं आती-' ! विकास अभी विलुप्त है,  परंतु जैसे जैसे विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहा है, अप्रवासी 'तारणहार' विकास की वैतरनी लेकर क्षेत्र में आने लगे हैं !
             आज बारिश हुई है और मैं संगम विहार आया हुआ हूँ ! पीपल चौक पर खड़ा हूँ ! नेताओं  के आंख के अलावा हर जगह पानी नज़र आ रहा है ! दूर दूर तक सड़क पर पानी बह रहा है ! बारिश और  नाली का पानी एक होकर- मिले सुर मेरा तुम्हारा- याद दिला रहा है ! हमदर्द तक जाने के आटो वाला 15 रुपये की जगह मुझसे 25 रुपये मांग रहा है ! ( दस रुपया पानी में आटो चलाने के!)  पानी की इस आपदा ने जाने कितने लोगों को आत्मनिर्भर होने का अवसर दिया है !

आज की 'आपदा'  में आटो वाला मुझे भी 'अवसर' समझ रहा है !
                        Sultan bharti (journalist)