Sunday, 22 December 2024

(व्यंग्य 'चिंतन') सांता क्लॉज़ की प्रॉब्लम

( व्यंग्य चिंतन)   "सांता क्लॉज़ की प्रॉब्लम"

      अपना चौधरी है न,  नए साल के आने से पहले ही स्वागत की तैयारी में लग जाता है! उसे 'न्यू ईयर' को हर हाल में  'हैप्पी' देखना जो होता है ! इसलिए 31 दिसम्बर से पहले ही दो चार बोतल 'हैप्पी' का जुगाड़ कर लेता है, ताकि हैप्पी होने के रास्ते में कोई रुकावट न पैदा हो ! इस मामले में वो किसी से किसी किस्म का सहयोग नहीं चाहता! तबेले से लगे हुए कमरे में टीवी लगा कर वो 25 दिसम्बर से ही  हैप्पी होना शुरू हो जाता है !
         25 दिसंबर की सुबह मैं चौधरी से मिला तो मुझे देखते ही उसने चेतावनी दी, - ' उरे कू सुन भारती ! नए साड़ में हैप्पी होने खातर तू कित ज्या गा  ? घनी चुप लगा रखी सै -'!
       'सोच रहा हूं, इस बार थारे गैल मना लूँ नया साड़ ! क्या खिलाओगे -?'
      'नो भई नो ! मैं  केले ही ठीक सूं ! अर इब थारे गैल दोस्ती खत्म समझो-'!
   मैं हैरान था, -' मैंने तो सारी उधारी भी चुका दी थी , क्या वर्मा जी ने कान भरे हैँ ?
       'बुद्धि लाल नू बता रहो, अक् मैं सनातनी सूं- अर् मन्ने मुसलामान ते दूर रहना चाह '!
    मैं हैरान था. ,-' तुम सनातनी हो गये और मुझे पता भी नहीं चला-!'
    "इब तक मन्ने भी पता न चल्या ! लाल बुद्धि वाड़ा नू सलाह दे रहो अक् मुझे सनातनी होकर अपनी भैंस कौ दूध मुसलामानन कू नहीं बेचना चाह-"!
     " कोई बात नही , कल से मुझे राम खिलावन की भैंसों का दूध खरीदना है ' !
   ' क्यों?'
   " क्योंकि साठ साल के बाद तुम अचानक सनातनी हो गये जिसे मुसलामानों को doodh ही नहीं बेचना ,!
    "पर मुझे क्यों नहीं लगता अक् मैं सनातनी बन गया ! नू बता भारती, तू सनातनी कद बनेगो ?"
     " पहले तुम सनातनी बन लो,  पीछे मैं भी बन लूँगा "!
      ' पर पहले कदी बना को न्या!" 
      चौधरी को उलझन में देख मैंने विषय बदल दिया,  - ' दरवाज़ा बंद कर सोना, कहीं रात में सांता क्लॉज़ एकाध भैंस लेकर भाग न जाए '!
        मैं घर की ओर लौट पड़ा !
   उधर pahadi वाले रास्ते से सैकड़ों साल बाद एक सांता क्लॉज़ अपनी गाड़ी से पास की बस्ती की ओर बढ़ रहा था! हिरण तेजी से स्लेज गाड़ी खींच ते हुए पास की बस्ती की ओर बढ़ रहे थे! सांता क्लॉज़ हिरणों से कह रहा था,  सदियों के बाद coma से बाहर आया हूँ,  सब कुछ कितना बदल गया! क्या पता बस्ती के लोग पहचान पाते हैँ या नहीं. ! खैर,,,अब चलो मिल कर-"जिंगल बेल'-  गाते हैँ!'
      सुनसान रास्ते में गीत की आवाज़ गूंज उठी! जंगल के bhaalu भेड़िये खरगोश और दरख्तों पर सोने वाले panchhi भी जाग कर जिंगल बेल गाने लगे! पूरी क़ायनात जैसे जाग उठी थी !
       आगे चेकपोस्ट थी , सुरक्षा गार्ड ने barriers लगा kar

    
       

Wednesday, 11 December 2024

[व्यंग्य चिंतन] क्या आप भी शरफ आदमी ह ैँ!' '

'क्या आप भी शरीफ आदमी हैं!'

      मनसा, वाचा कर्मणा मैं शरीफ आदमी हुआ करता था , पूरी तरह गांधी वादी ! अल्बत्ता दूसरा गाल कभी आगे नहीं किया, ( क्योंकि मैं जनता था कि पीटने वाला एक गाल से कभी संतुष्ट नहीं होता है !) मैं शरीफ तो था, पर इतना नहीं कि कोई मेरे कुरते में नाक पोछ कर भाग जाए ! शारीफ आदमी  दूध देने वाली उस लावारिस गाय की तरह होता है जिसे हर आदमी दुहनें की घात में होता है! हमारे गाँव के जमालू भाई ऐसे ही शरीफ लोगों में आते हैं ! हालाकि वो आदमी हैं, मगर लोग उन्हें अक्सर लावारिस गाय समझते हैं,  कई ठेकेदार काम लेकर उन्हें मजदूरी कम देते हैँ या रोक लेते हैं ! शोषण या पीडा हद से बढ़ जाए तो शब्द भी समाधान की तरह विलुप्त हो जाते हैँ ! ऐसे में इंसान के आँसू भी दर्द को बहाने से मना कर देतेहैं ! जमालू भाई के एक भी खेत नहीं हैँ, मगर चार बेटियाँ हैँ ! दो बेटियाँ व्याह दी,  दो की फिक्र में आज कल शहर में रिक्शा चलाते हैं! सवारी जो दे दे,  ले लेते हैँ, कि  सवारी कहीं नाराज़ न हो जाए ! इसी शराफत नें उनकी ज़िंदगी की ज्यादातर खुशियों से सारे रंग छींन लिए हैं,  शराफत अभिशाप भी होती है !
       मैंने शरीफ लोगों पर गहन रिसर्च किया तो जाना कि यहाँ भी नकली माल ज़्यादा है!  फर्जी मुस्कराहट के साथ बेहद गर्मजोशी से मिलने वाला हर शख्स  शरीफ नहीं होता ! ज़रूरत से ज्यादा गंभीर नज़र आने वाला शख्स भी शराफत को नहीं, 'बगुला' को  अपना आदर्श मानता है! ( बच के रहना रे बाबा,,,) मिलावट का माल बेचने वाला जिस कॉन्फिडेन्स और गंभीरता  के साथ मिलावटी सामान के शुद्धता की गारंटी देता है,उसे सुनकर तो असली माल को भी हीनता का एहसास होनें लगता है ! अब ये सारे काम शरीफ आदमी के बस  का कहां ! वह तो  व्यापार के कुरुक्षेत्र में उतरते ही पाप पुण्य के माया मोह में उलझ कर गांडीव फेंक देगा ! शरीफ आदमी पर धर्म का तिलिस्म सवार होता है ! वो सत्य,दया,शील, त्याग, संतोष में परम सुख और दान में आनंद की तलाश में रहता है ! इन्हीं दिव्य अनुभूति की खोज में ज़िंदगी खर्च कर देता है, और एक दिन अपनी आक्रोशित और असंतुष्ट पत्नी को मजधार में छोड़ कर दुनियां से चल देता है  ! शरीफ होना और खुशहाल होना दो विरोधी विशेषताएं हैँ! (अपवाद से इनकार नहीं!)
      मैं खुद बड़ा शरीफ आदमी हुआ करता था ! शराफत कुर्बानी मांगती है ! शराफत के बारे में 'कबीर' का अनुभव और भी खतरनाक था,- जो घर फूके आपनो चले हमारे साथ - ! बहुत नुकसान उठाने के बाद कबीर को ये ज्ञान प्राप्त हुआ होगा ! तब तक तो बाबा "भारती" का घोड़ा कई बार 'खड़कसिंह' लेकर भाग चुका था ! ) मैं अक्सर सोचता हूँ कि शरीफ आदमी शातिर क्यों नहीं होता ? उसकी फितरत में आक्रमन न सही बचाव तो होता ! अति सरल और सज्जन आदमी किस अजाब में जीता है ! दूसरी तरफ,,,खलनायक तान कर सोता है!
       दुनियां में सज्जन और शरीफ लोगों की आबादी ज्यादा है, तभी दुष्ट और 'खल' प्रकृति के प्राणी फलफूल रहे हैँ ! हमारे एक मित्र हैँ,  सरवर उज्जैनवाल, कई बार लोगों नें ठगा , हर बार सरवर भाई नें कसम खाई कि अब शराफत के नज़दीक नहीं जाऊँगा,  कोई जिये या मरें ! मगर जनाब, वो कहावत है न- आखिरी वक़्त में क्या खाक मुसलामा होंगे-! शराफत छोड़ना कौन सा आसान काम है! जब बदमाशी आपके जीन्स में ही नहीं है,  खलनायक बनेगे कैसे ! हमारे अवध में ऐसे नौसिखिया के बारे में भी कहावत है,- चुरावै न जाने लईके भागे-! आखिरकार चोरी करना भी एक कला है और गुंडई करना तो उससे भी बड़ी कला ! तो,,,आज भी सरवर भाई अपने शरीफ होने की किश्त भर रहे हैँ ! समाज हो या सियासत, शरीफ आदमी हर जगह घाटे में है !
       15 साल की उम्र से अखबार में छपने लगा था !.शराफत मेरे खून में थीं, इसलिए संपादक फायदा उठाते रहे ! एक सैनिक अखबार नें पूरे 50 आर्टिकल का पेमेंट डकार लिया ! दो चार आर्टिकल का पैसा डकार लेना तो संपादक का जन्मसिद्ध अधिकार होता है! शरीफ आदमी को किसी की जेब से पैसे निकालने की कला नहीं आती, बस लुटना जनता है ! उसे अजनवी नहीं, नजदीकी रिश्तेदार और मित्र लूटते हैं! कई बार तो वो ऐसे आदमी से ठगा जाता है, जिस के बारे में उसके मित्र भी सावधान कर चुके होते हैं कि- ' वो कई लोगों के पैसे खा चुका है-' ! लेकिन शरीफ आदमी,- आ बैल मुझे मार- की आदत से ग्रस्त होता हे, ठगे जाना  उसकी नीयति है!
      शराफत छोड़ना चाहता हूं, पर कैसे छोड़ना है, वो भी नहीँ आता 62 साल पुरानी बीमारी है ! केजरीवाल जी की खांसी जैसी जिद्दी है ! सच तो यह है कि ज़्यादातर शरीफ आदमी को सही या गलत आदमी को परखने का शऊर ही नहीं होता ! ठगो को मालदार बनाये रखते के लिए खुदा ने शरीफ आदमी को इस चतुराई से वंचित कर दिया है! जब तक है जान,,,,लुटते रहिए !
         एक शे'र मुलाहजा फरमाएं,.....

हमें किसी को परखने का भी शऊर नहीं !
हर एक शख्स पर एतबार कर लिया मैंने !!

      ......[ सुलतान 'भारती']




Sunday, 1 December 2024

[व्यंग्य चिंतन] "हम खोदनें आये हैं "

व्यंग्य चिंतन

हम 'खोदने' आये हैँ 

     अजी हम से बच कर कहां जाइयेगा ! जहाँ भी जाएंगे, हमें फावड़े के साथ खड़ा पायेगे ! हम खोदने का प्रण कर चुके हैँ ! जायज नाजायज मेरा विषय नहीं है! जब जहाँ खोदने का 'ईश्वरीय' आदेश आएगा, हम फावड़ा चला देंगे ! हमारे पास खोदने की लंबी लिस्ट है,  सारे घर को खोद डालूँगा ! ऊपर जो है,  वो ( सच) नहीं है ! जो ( नीचे) है वही सच है ! हम सच खोद कर ऊपर लाएंगे,  क्यों कि हम सत्य खोदक है! [ वैसे  बता दूँ, खोदना हमारा कर्म है ! सत्य बरामद हो या न हो, हमें कोई फर्क नहीं पड़ता  ! किसी का दिल टूटे या भरोसा, फावड़ा नहीं टूटना चाहिए ! फावड़ा है तो मुमकिन है ! लोग अज़ीब अज़ीब सवाल पूछ ते हैँ, - जो नीचे है, वो कैसे नज़र आ गया ! अरे बाबू , जाकी रही भावना जैसी,,,,! अब तो फावड़ा उठा लिया है, हट जा ताऊ पाछे ने-!
     काम बहुत है, समय कम ! कुछ खोद डाला है, बहुत कुछ खोदना बाकी है !  67 साल के 'दानव शासन ' में लिखे गये इतिहास को  इतने कम समय में खोदना आसान नहीं था, फिर भी हमने लक्ष्य को प्राप्त किया ! जब हम इतिहास खोद रहे थे, तभी हमारे आर्किटेक्ट नें देख लिया था, किसके नीचे क्या है! हम तभी से कुदाल और गैती का इन्तेज़ार करने लगे थे! शुक्र है कि अब इतिहास हमारा है,  नई नस्ल को "सम्प्रदाय विशेष" के इन्फेक्शन से बचाने का व्यापक प्रबंध हो गया है ! अब अगर ये बंटे तो काट दिए जाएंगे ! अज्ञान काल में देश का जो  इतिहास  लिखा गया था, उसमें फाइबर नही था ! वामपंथी लेखक- विभिन्नता में एकता, सौहार्द, भाईचारा,गंगा जमुनी संस्कृति और जाने क्या क्या वाहियात चीज़ को बनाने में लगे थे ! हमने उसे खुरच दिया, और इतिहास को उबाल कर शुद्ध कर लिया है! जब हमने इतिहास को खोदना शुरू किया तो लोगों नें  बड़ा चिल्ल पो मचाया , लेकिन हमारे प्रचंड बहुमत के आगे ढेर हो  गये !
     बताया न हमारी लिस्ट लंबी है, इतिहास खोद कर नए सिलेबस का पौधा रोप दिया है! अब दूसरे सम्प्रदाय की आस्था खोदने की बारी है ! विधर्मियों में हमारी कोई आस्था नहीं है! हमें पता चला है कि उनके हर आस्था केंद्र के नीचे हमारी आस्था दबी हुई है ! हमें खोद कर अपनी आस्था बाहर निकालना है ! फावड़ा लेकर हम उसी रेस्क्यू ऑप्रेशन में लगे हैं ! पिछले नारे को अब और धारदार बना दिया है, - सब कुछ खोद के जाएंगे !
      .                        नया     सवेरा      लाएंगे !!
    हम क्रांतिकारी हैं, धर्म योद्धा हैं! हम विश्ववत कुटुम्बकम में यक़ीन करते हैं,  इसलिए मौक़ा मिला तो सारी दुनियां खोदेंगे ! जहाँ जहाँ 'राक्षस राज'  है, हम खुदाई करेंगे ! हमारे 'दिव्य'  वैज्ञानिक मस्जिद देखते ही ताड़ लेते हैँ कि इसकी नीव के नीचे क्या है! कुछ लोग अज्ञानता के चलते विरोध करते हैँ, और मारे जाते हैँ ! पुलिस हमारी आस्था के साथ खड़ी है! वो पूरी श्रद्धा से गोली चला रही है! हम धर्मकार्य  करने को आतुर, कुछ लोग मरने को आतुर ! हम जानते हैँ- कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ेगा ! पाना हमें है,  खोना उन्हें ! खोदनें से महंगाई और बेरोजगारी विकलांग होती है और आस्था उर्वर - मन लागा राम फकीरी मा ! फावड़ा लेकर हम कितना महान काम कर रहे हैँ! कुछ लोगों को इस धर्म क्रांति में फाइबर ही नहीं नज़र आ रहा ! घनघोर  कलियुग है!
        खैर,  खुशी की बात है कि बड़ी मीडिया नें हमारी खुदाई के प्रति आस्था दिखाई है,  वो हमारे फावड़े के साथ खड़े हैं! धर्म के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा देख कर कुछ लोग सकते में हैं! कुछ चैनल तो सतयुग  लाने की जल्दबाजी में 24×7 को ही खुदाई परिचर्चा में लगा दिया है! हमें क्या पता कि शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय, सुरक्षा और संवाद सभी  महकमो में हमारे इतने शुभचिंतक भरे हैं! खैर,  मीडिया में बैठे भक्तों नें हमारी प्रचंड धर्म क्रांति को बारूद मुहैया कराने में जो योगदान दिया है, उसे इतिहास याद रखेगा ! खोदनें की जितनी जल्दी हमें है,  उससे हजार गुना ज्यादा जल्दी सोशल मीडिया के विद्वानो को है! उनकी आतुरता - काल्ह करे सो आज कर- पर विश्वास करती है! अच्छा है कि हमारे समर्थक आस्था के मामले में 'तर्क को तुर्क'  समझ कर डील करते हैँ ! कई चैनलों नें अपने न्यूज रूम को खोद कर अखाड़ा बना दिया है,जहाँ दिन रात 72 हूरो पर रिसर्च और गाली गलौज दोनों चल रहा है! यहां आस्था को धोबी पाट लगा कर चित किया जाता  है !
           इतनी प्रचुर मात्रा में ऐसी प्रचंड आस्था- भूतो न भविष्यति- ! अब तो बाबा लोग भी देश को "दानव मुक्त" बनाने निकल पड़े हैं! सतयुग लाने की ज़िम्मेदारी संतों के कंधो पर है! 'विश्व का कल्याण हो'- की शुरुआत देश में शुरू हो चुकी है ! बग़ैर खेत खोदे किसी फसल के विकास का अंकुर नही फूटता , इसलिए खोदना बहुत ज़रूरी है! हम महा विकास के प्रथम चरण में खड़े हैँ, हमें पूरी दुनियां खोदना है ! अभी तो,,, इब्तदा-ए- इश्क है रोता है क्या ! विकास के इस महायज्ञ में-कोई रोके नहीँ कोई टोके नहीं हम- विश्ववत कुटुम्बकम- में गंभीर आस्था रखते हैँ  !दुनियां हमारा कुटुम्ब है, तो कुटुम्ब को खोदनें का विरोध कैसा ! 
            हमें खोदने दें, तभी विश्व का कल्याण होगा ! कोई रोके नहीं कोई टोके नहीं ! कुछ लोग हमें याद दिलाने में लगे है कि दुनियां आसमान में पानी खोज रही है और हम ज़मीन के नीचे मंदिर ढूंढ रहे हैँ! अरे भैया, ज़मीन के ऊपर जो पानी है,उसे छोड़ कर मंगलग्रह  पर  पानी  क्यों ढूंढ रहे हो ? तुम्हारे पास तर्क है हमारे पास फावड़ा ! मुझे कोई बहस नहीं करना ! तुम्हें ऊपर मंगल ग्रह पर जाना है तो जाओ, - हमें तो फावड़ा समेत मस्जिद के नीचे जाना है !

           [ Sultan Bharti]