व्यंग्य "चिंतन"
'रोटी' 'बेटी' 'माटी'
'अरे ओ झुरहू काका, इतनी सुबह कहाँ बदहवास होकर भागे जा रहे हो, जल्दी में लोटा लेना धूल गये का' ?
" का बताएं बचवा ! कल नेता जी का भाषण सुनने के बाद रात भर नींद नहीं आई- ! अब खेत देखने जा रहा हूँ कि अपनी जगह है या कोई लेकर भाग गया-! बड़ी मुसीबत है, नीलगाय देखू या घुसपैठ-!'
' कौन घुसपैठ कर रहा है?'
" वही जो रोटी, बेटी और माटी छीनने की घात में है , पिछले चुनाव में मंगल सूत्र छीनने की घात में था, पर नेता जी ने वोट लेकर बचा लिया था ! वैसे ससुरा आता तो भी घर में मंगल सूत्र न पाता-!'
'क्यों ?'
" सुखना की शादी में खेत गिरवी रख कर पांचू लाला से पैसे लिए थे ! फिर खेत छुड़ाने में तेरी काकी का मंगल सूत्र चला गया ! इस बार कोई नया घुसपैठिया है जो मंगलसूत्र की बजाय माटी, बेटी और रोटी सब छींनने की घात में है-! एक ही तो खेत बचा है '!
" बुढ़ापे पर रहम खाओ काका ! इस उम्र में इतना दौड़ना घातक है-"!
"तौ फिर का करी बचवा" !
" नेताओं को सिर्फ वोट दिया करो, उनके भाषण पर यक़ीन करने लगे तो नींद नहीं आएगी"!
" हाँ बेटवा, कल बड़ी मुश्किल से सोये तो सपने में 'पांचू लाला' को देखते ही आंख खुल गई "!
" ऐसा क्या देखा?"
" पाचू लाला मेरा खेत कंधे पर रखे शमसान की ओर भागे जा रहे थे, मुझे याद है, उन्होंने मुझे देख कर जुबान निकाल कर चिढ़ाया भी था-!"
" फिर तो ज़रूर जाओ ! इसी बहाने तुम्हें पता भी चल गया कि घुसपैठिया बाहर का नहीं है-"!
" का करें बचवा ! गरीब आदमी को सबसे डरना पड़ता है! सत्तर साल हो गये, डर जाता ही नहीं ! अब तो भूख से ज्यादा चुनाव डराता है-"!
झुरहू काका चले गये, ये देखने कि माटी और रोटी बची या नहीं !
गावं से शहर तक एक अज्ञात खौफ़ वायरल है! बहुसंख्यक को डराया जा रहा है, - " देवतादल को वोट दो, वर्ना राक्षस दल जीता तो,,,,ग़ज़ब भयो रामा जुलम भयो रे-! ऐसी महादशा आयी तो तुम्हारी महिलाओं के मंगल सूत्र छींन लिए जाएंगे"! ( आजादी के 75 साल बाद अब " राक्षस समुदाय" की नाभि का अमृत अचानक ऐक्टिवेट हो गया है है-! हनुमान जी ने आग लगा कर लंका का सारा सोना राख कर दिया था, अब वो नुकसान मंगल सूत्र छींन कर पूरा किया जाएगा-!)
तुलसी दास ने कहा था, - भय बिन होय न प्रीत-! उस दौर में 'प्रीत' की बड़ी मार्केट वैल्यू थी, आज ' बाँटने' और काटने' का नारा प्रीत पर भारी है ! [ वक़्त वक़्त की बात है , अब डेटर्जेन्ट से बने दूध का 'खोया' असली पर भारी है-! ढाबा से लेकर गाँव की शादी तक 'पनीर' की गंगा बह रही है-) हर जगह बिना भय के 'प्रीत' का बोलबाला है ! पहले मिलावट में भय था, अब प्रीत है ! अब शैम्पू से तैयार दूध में ज्यादा मोटी मलाई पड़ती है!
सियासत में अब 'शेर' की तादाद बढ़ रही है! पार्टी के चारण गली में नारा लगा रहे हैँ, - 'देखो देखो कौन आया-!' भीड़ पहचान बता रही है-' शेर आया! शेर आया-!' पान की गुमटी पर एक बुजुर्ग शेर की तारीफ़ कर रहा है,-' तीन कत्ल और एक दर्ज़न डकैती का केस चल रहा है ! बलात्कार के केस में तीन महीना पहले अंदर गये थे ! पिछले हफ्ता ज़मानत पर बाहर आए हैं ! इस बार भी यही जीतेगे -! मुन्ना भैय्या के होते मजाल है कि कोई दूसरा क्षेत्र में दबंगई करे-!' 'भय' ने 'प्रीत' का माहौल बना दिया है ! चुनाव से पहले का विकास अंकुर ले रहा है ! अगली गली में नारा लग रहा है-
"मंगलसूत्र"- की मज़बूरी है !
"मुन्ना भैय्या " ज़रूरी है !!
मुन्ना भैया की सख्त ज़रूरत वायरल हो रही है!
कभी हमारा देश- विभिन्नता में एकता-के लिए जाना जाता था, आज एकता की बजाय - बांटने और काटने- वाला नारा ज्यादा पापुलर है ! बड़े वाले विकास पुरूष डरा रहे हैँ कि 'देवता दल' को वोट न दिया तो 'दानव मोर्चा' पॉवर में आ जाएगा ! उनके सत्ता में तुम्हारा 'कटना' तय है, खैरियत इसी में है कि ' बंटने' से बचो !
आकाशवानी होते ही सभी चुनाव पहचान पत्र लेकर लाइन में खड़े हो गये! कोई इतना भी नहीं पूछ रहा कि काटेगा कौन ! क्या देश संविधान विहीन हो चुका है ! पुलिस की भूमिका खत्म हो गयी है ? बहरकैफ, नई सुरक्षा व्यवस्था में सिर्फ देवताओ की पार्टी को वोट देने मात्र से सुरक्षा चक्र प्राप्त हो जाएगा ! लेकिन यक्ष प्रश्न तो ये है कि काटने वाला कौन है, कहां का है और कहां रहता है? कभी मंगल सूत्र , कभी घर पर कब्जा और इस बार रोटी बेटी और माटी तीनो पर कब्ज़ा करने की तैयारी ! प्रशासन इतने बड़े अपराधी की सारी गुप्त योजनाएं कैसे जान लेता है? और जान लेने के बावजूद उन पर कोई ऐक्शन क्यों नहीं लेता ?
मैं भयभीत होने की कोशिश में बार बार चिंतित हो रहा हूँ ! शाम होते होते खबर चौधरी तक पहुंची तो उसने सुबह होने का भी इन्तेज़ार न किया,-' उरे कू सुन भारती ! यू बाँटने अर् काटने का के मामला सै -! घना हंगामा है -!'
" मैंने भी सुना है, पर कोई नहीं बता रहा है कि बांट कौन रहा है!'
' बुद्धि लाल बता रहो, अक् कोई पंचर वाड़ा "अब्दुल" है जो पहले मंगलसूत्र खींच कै भागा था, इब के भैंस अर् तबेला ठाकर भागने वाड़ा सै -! एक घंटे ते ढूंढ रहा हूँ, कित मिलेगो -?'
तब से मैं खुद परेशान हूँ, लोग हर चुनाव में चौधरी को भड़का देते हैं ! मेरे खुद समझ में नहीं आ रहा कि हर चुनाव से पहले 'अब्दुल' पंचर का काम छोड़ कर 'चंबल' क्यों चला जाता है!
अब फिर "पंचर वाले अब्दुल" को "सुल्ताना डाकू" साबित किया जाएगा !
( Sultan bharti)