Friday, 2 February 2024

अग्नि दृष्टि "दीप जलाता हू एकता का"

( समीक्षा )
दीप जलाता हूं एकता का 

        अपना देश प्रतिभाओं की कहकशां है! फिर चाहे वो प्रतिभा टेक्नोलॉजी की हो या फिर साहित्य की! अगर हम साहित्य की बात करें तो  इस देश की समृद्ध मिट्टी ने इतने साहित्य सितारे दिए हैं जो सदियों तक कहकशां को रोशन करते रहेंगे! सीमित और असीमित की गणना हम नहीं करते पर मुंशी प्रेमचंद, असदउल्लाह खान (ग़ालिब) इस्मत आपा, कृष्ण चंदर, आचार्य चतुर्सेन,  सआदत हसन मंटो जैसे गौरवशाली नाम अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि रखते हैं!
और ये परंपरा शाश्वत चल रही है!
         साहित्य की रचना उम्र के आधीन नहीं है। ये ईश्वरीय संकेत की प्रतिध्वनि है! न जाने किस उम्र में किसे ये संकेत हासिल हो जाए! विश्वविख्यात रूसी किताब 'हाउ द स्टील वास टेम्पर्ड' के लेखक निकोलाई आस्ट्रोवस्की ने युद्ध मे आंख गवां देने के बाद ये किताब बोल बोल कर किसी से लिखवाई थी! भगवती जी की ये प्रथम पुस्तक है ! वरिष्ठ साहित्यकार इसकी रचनाओं के कला पक्ष से बेशक कम प्रभावित हों, किन्तु पुस्तक का भाव पक्ष लाजवाब है और कई बार उसे पढ़ते हुए पाठक के सामने मुंशी जी और अदम गोंडवी की रचनाएं याद आ जाती हैं-, एक बानगी देखिये,,,,
जिनके चेहरों पर लिखी थी  जेल की  ऊँची फ़सील
रामनामी ओढ़ कर संसद के अंदर आ  गए !! (अदम गोंडवी)
भगवती प्रसाद कहते हैं,,,;;

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