Thursday, 30 March 2023

व्यंग्य "भारती" 'पत्रकारिता का मूत्र स्तर'

व्यंग्य 'भारती'

"पत्रकारिता का मूत्र स्तर"
      अपराधी मूत रहा है! पीछे खड़ी पुलिस अपराधी को देख रही है, और पुलिस के पीछे खड़ी मीडिया मूत देख रही है -जाकी रही भावना जैसी -!
पुलिस आपस में बात कर रही है, -' एक मिनट के लिए ढील नहीं देना है , क्या पता रास्ते में इसके साथी इसे छुड़ाने की कोशिश करें -' !
      पीछे थोक में खड़ी मीडिया मूतने की लाइव कवरेज दिखाने में आ रही दिक्कत को लेकर परेशान है! सबसे बड़ी दिक्कत पुलिस की वजह से है! हर ख़बर पर पहली नज़र रखने वाले चैनल का एंकर अपने कैमरामैन पर नाराज हो रहा है, -' जब सारा 'पानी' खेत में समा जाएगा,तब दिखायेगा क्या? ट्रायपॉड ऊंचा कर -'!
   ' इससे ऊंचा नहीं हो सकता '!
   नंबर वन चैनल वाला एंकर थोड़ा आगे था, उसने कमेंट्री शुरू कर दिया था, - ' दर्शक सुन सकते हैं, मूतने की आवाज़ यहां तक आ रही है, शायद पूरा तालाब पी कर आया है ! उसके खड़े होकर मूतने की एक्स्लेसिव तस्वीरें दर्शक सीधे देख रहे हैं! धैर्य रखिए, हम कोशिश कर रहे हैं कि दर्शकों को धार भी दिखा सकें -!'
     एक अन्य एंकर दर्शकों को अपने बलिदान और चिन्ता से अवगत करा रहा है, -' हमें क्या पता था कि 'भाई'  मूतने के लिए ये जगह सिलेक्ट करेगा, पता होता तो दो दिन पहले ही खेत में कैमरा छुपा दिया होता ! तब दर्शक पीठ की जगह प्रत्यक्ष देख रहे होते '!
           तभी नंबर वन चैनल का एंकर खुशी से ऐसे  चिल्लाया, गोया उसकी लॉटरी निकल आई हो, - "दर्शक अपने अपने टीवी सेट की आवाज थोड़ा कम कर लें, मूतने की आवाज़ के साथ धार भी दिखाई दे रही है ! ये तस्वीरें सबसे पहले आप मेरे चैनल पर देख रहे हैं -'!
                 डांट खा चुका उसका कैमरामैन गुस्से में बड़बड़ाया, - ' अब दिखाने के लिए हमारे पास बस यही सब  बचा है -'!
      एंकर अपनी खुशी नहीं छुपा पा रहा, -' हमारे मेगा फिक्सल कैमरे और "धार" के बीच में साठ फीट का फासला है, बीच में पुलिस बाधक न होती तो हम कैमरा लेकर बिलकुल धार के सामने खड़े होते ! पुलिस ने हमेशा अभिव्यक्ति की आज़ादी में रोड़ा अटकाया है -'!
              एक चैनल का एंकर ऐसे चिल्लाता हुआ दौड़ रहा था गोया उसने दोनों पैरों में गर्म तवा बांध लिया  हो, जिससे एकजगह टिक कर बोलना मुश्किल हो - ' वो खड़े होकर मूत रहा है! हालांकि उसके धर्म में खड़े होकर मूतने पर पाबंदी है ! इतनी मीडिया और पुलिस की मौजूदगी में भी वो खुलेआम अपने सामाजिक नियमों का उल्लंघन कर रहा है! इससे पता चलता है कि ये कितना जघन्य अपराधी है -' ! 
       "धार"  न  देख  पाने  से  आहत एक चैनल का एंकर अपराधी पर अपना शोध प्रस्तुत कर रहा था -' उसने पुलिस वैन से उतरते ही मूंछें ऐंठ कर मीडिया को देखा था ! लगभग बीस साल से इसकी मूछें ऐसी ही हैं! उसे मूछों से बहुत प्यार है, अगर पुलिस इसकी मूंछ काट ले तो ये अपने आप मर जायेगा , आज़ तो गाड़ी का पलटना थोड़ा मुश्किल लगता है -'!
      नंबर वन चैनल का एंकर चीखा, - ' धार तेज़ हो रही है, इसका मतलब उसे वाकई बहुत देर से पेशाब की हाजत बनी हुई थी ! दर्शक देख सकते हैं कि धार का रंग क्रिस्टल की तरह सफेद है, लगता है जैसे इसे किसी किस्म की बीमारी नहीं है ! मुझे तो कोरोना काल में ही शुगर हो गई थी -'!
    एक एंकर दावा कर रहा था -' जिन लोगों ने देर से टीवी सेट खोला है, उन्हें अपडेट कर दूं कि जिस खेत में वो मूत रहा है, उसमें गेहूं की फसल नहीं बोई गई थी, वरना आज अनर्थ हो जाता ! मानव मूत्र में अल्कोहल  होता  है जो गेहूं के पौधे को जला देता है ! इसलिए धान हो या गेहूं , दोनों  को सार्वजनिक शौचालय से दूर रखा जाता है -'!
    धार का फ्लो धीमा होता देख नंबर वन चैनल का एंकर निराश लग रहा था, - ' धार का फ्लो धीमा हो गया है, दर्शक देख सकते हैं! आखिरकार हर मूत का एक अंत होता है ! और,,,, लीजिए धार का नज़र आना बंद हो गया ! अब वो घूमने की मुद्रा में है ! वो वैन की तरफ वापस आएगा ! काश वो पांच मिनट और मूतता ! उससे खेत को नुकसान हो सकता है, पर उसके मूतने से हमारी टीआरपी तो बढ़ रही थी -'!
         मूतने के बाद अपराधी पुलिस वैन की ओर वापस लौट रहा था ! सारे मीडिया कर्मी वैन की ओर लपके ! दिव्य ज्ञान से सराबोर कई सवाल पेंडिंग थे ! सबसे पहले  हर ख़बर पर पहली नज़र रखने वाले एंकर ने सवाल दागा,-' जो आपने मूता, वो एनकाउंटर के डर के कारण था, या सचमुच प्रेसर बना हुआ था?'
              अपराधी कुछ जवाब देता, उसके पहले ही  नंबर  वन  चैनल  के एंकर ने  सवाल  दाग दिया,-' काफ़ी सारा मूता तुमने,अब कैसा फील हो रहा है -?'
     तभी पीछे से एक पुलिस ऑफीसर ने एंकर से कहा, - ' मुलजिम को  जितना ( आग) मूतना  था, मूत चुका है ! अब तो पिंड छोड़ो - ' !!

     मूतने को लेकर कई भ्रूण सवालों ने हलक में ही दम तोड़ दिया! अपराधी वैन में बैठ चुका था !

             ( सुलतान "भारती")

Friday, 24 March 2023

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         ( "व्यंग्य भारती")

      " अपना कटोरा और कर्ज़ का घी "

        अपना अपना स्टाइल है, अपनी अपनी किस्मत ! कोई बोरे में नोट रखकर भी घी नहीं खा पाता और कोई कर्ज़ लेकर घी पीता है ! मैंने दोनों तरह के आदमी देखे हैं। हमारे यूपी में एक कहावत कही जाती है, - समय से पहले और किस्मत से ज्यादा कुछ नहीं मिलेगा  -! ये चार्ज ऊपरवाले पर लगाया जाता है, कि उसने भैंस किसी को दी, और घी किसी और के लिए फिक्स कर दिया ! मामला गंभीर है, जिन्हें ईश्वर, समाज और बैंक तीनों लोन नहीं देते - वो क्या करें !!
       घी के बारे में तमाम कहावतें हैं! एक कहावत है कि - कुत्ते को घी हजम नहीं होता -! पर ये पता कैसे चला ! शंका स्वाभाविक है, हड्डी तक हजम करने वाले कुत्तों को घी हज़म क्यो नहीं है! हमारे वर्मा जी कहते हैं, - ' कांग्रेस के आने से पहले देश में घी दूध की नदियां बहती थीं, कुत्तों को उल्टी लग गई थी ! ये जो कुत्ते हैं, उन्हें अमृत कहां सूट करता है -! '
    ' वो घी दूध की नदियां कहां चली गई?'
 ' उसके पीछे गौ तस्करों का हाथ है, धीरे धीरे नदियों में दूध की जगह बरसात का पानी बहने लगा। लोगों ने दूध में पानी मिलाकर बेचना शुरू कर दिया! फिर नकली घी आ गया जिसे आदमी और कुत्ते दोनों ने एडजस्ट कर लिया - '!
    ' आपने खाकर देखा?'
   उन्होंने मुझे खा जाने वाली नज़र से देखते हुए चेतावनी जारी की -' इस कॉलोनी में कुछ बांग्लादेशी घुसपैठिए फर्जी कागज़ात बनवा कर रह रहे हैं , मैं जल्दी ही उनके पीछे बुल्डोजर लगवाता हूं , तू भी शक के दायरे में है  - !
      मामला घी का था, मैंने अपने एक और अजीज़ मित्र से राय लेना जरूरी समझा! उनका घी दूध दोनों से गहरा रिश्ता था ! रोजा खोलने के बाद मैं जाकर उनसे मिला! मुझे देखते ही चौधरी ने चेतावनी जारी किया,- ' मन्ने दूध कौ दाम एक रुपया बढ़ा दिया, के करूं - जीडीपी घणी नीचे पौंच गी , ऊपर ठाना पड़ेगो ' !
      ' अभी रोजे चल रहे हैं, रमजान के बाद जीडीपी बढ़ा लेते -!'
   '  काल्ह करे सो आज कर ! नेक काम इसी महीने कर लें तो बढ़िया होगा -'!
    ' घी के बारे में कुछ पूछना था ' !
' मेरी भैंसों ने तय किया है कि वो बगैर घी वाड़ा दूध लिकाडेंगी -'!
    ' मैंने खरीदना नहीं है, सिर्फ पूछना है कि क्या घी के लिए कर्ज़ मिल सकता है -'!
   " मन्ने के बेरा ! भैंसन ते पूछ ले '!
          वैसे मैंने गांव में एक आदमी देखा है जो आज़ भी ज़िंदा है और बयासी साल की उम्र में भी काफ़ी तंदुरुस्त है! ग्रामीण बैंक में लोन की कोई भी स्कीम आए, वो फ़ौरन ले लेता है! लोन की वसूली करने वालों का न खौफ, न लौटाने की फिक्र ! बैंक अधिकारी को घर जाकर भी बैरंग लौटना पड़ता था! एक बार तो पुलिस को देखते ही दस लीटर केरोसिन के डिब्बे में रखा सारा पानी अपने ऊपर उड़ेल कर उसने दूर से ही बैंक वालों को ललकारा, -' गोहार लागो गांव वालों! बैंक वाले मुझे मिट्टी का तेल डाल कर जिंदा जलाने जा रहे हैं -!'
     उस दिन बैंक अधिकारियों ने हाथ जोड़ कर बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाई थी! 
      बैंकों की आबरू लूट कर विदेश भागने वाले माल्या और मोदी ( नीरव) जैसे महापुरुष 'ऋणम कृत्वा घृतम पिवेत'- पर कितनी आस्था रखते हैं! कर्ज यहां लिया और घी विदेश में पी रहे हैं ! कर्ज़ को लेकर अपने देश में आम लोगों की सोच बढ़िया नहीं है! सज्जन और शरीफ आदमी कर्ज लेकर मुसीबत में फंस जाता है ! शातिर आदमी कर्ज लेकर घी  खाता  है और शरीफ आदमी जेल की हवा ! किसान  कर्ज लेता है और  किश्त चुकाने में असमर्थ होते  ही बैंक उसकी भैंस तक खोल लेता है !  बड़ा आदमी लोन के साथ बैंक को ही भैंस समझ कर गठरी में बांध कर उड़ लेता है !
       घी  का जो रिश्ता भैंस से होता है, वही रिश्ता खाने  वाले  का  घी से होता है ! भैंस पालने वाला  अकसर घी नहीं खाता, और घी खाने वाले अक्सर  भैंस नहीं पालते ! और,,,,घी  के  लिए  रॉ मैटेरियल ( दूध) मुहैया कराने वाली बेचारी भैंस को सूंघने के लिए भी घी नहीं मिलता ! दूसरों के पैसे से घी पीने वाले हर युग और दौर में बरामद हुए हैं! इस कलियुग में उनकी तादाद  सबसे ज्यादा है ! मुहल्ले में 'कमेटी ' डालने से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चिट फंड कंपनी के नाम से यही लोग जनता को भैंस समझ कर घी निकाल रहे हैं ! इस घी में स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों  का भी हिस्सा तय होता है ! एक लूट कर भागता है तो दूसरा नए नाम के साथ शहर में सतयुग लेकर आ जाता है,- एक  लगाओ तीन पाओ -!

     दूसरों के पैसे से मुफ्त में घी पीने वाले इन्ही "वीर पुरुषों" की स्तुति में एक कहावत है, -शक्कर खोर' (ठग) को शक्कर ( घी), और टक्कर खोर (पीड़ित व्यक्ति) को टक्कर ( शोषण) मिलती है -! (जाकी रही भावना जैसी -! (प्रतिरोध जब समर्पण में बदलता है, तब समाज को केंचुआ बनाने वाली ऐसी कहावतें जन्म लेती हैं! ताकि जनता घी खिलाने को "कर्म" और  शोषण को अपनी "नियति" समझ ले !)
   इस "शक्करखोर जमात" के कई महारथी समाज को दुहने के बाद आज सियायत को अपनी सेवाएं दे रहे हैं ! वैसे जहां तक घी पीने की बात है, जनता को 5 साल में एक बार वायदों की शक़्ल में मिल ही जाता है  !!

       ,,,,, कि मैं कोई झूठ बोल्या !!

     

Wednesday, 8 March 2023

( बही खाता) "गरीब का मौसम"

" बही खाता"

                 "गरीब का मौसम"

       मेहरबान ! कदरदान !!  मौसम कोई भी हो, गरीब के हित में कोई नहीं ! शहर से लेकर गाँव तक, गर्मी से लेकर सर्दी तक हर मौसम गरीब विरोधी है, गरीब का दुश्मन है। सर्दी, गर्मी  बरसात सभी अपने अपने नाखून उसी के खाल पर परखते हैं ! अमीर वर्ग जहां हर मौसम की केस हिस्ट्री में अपनी ऐयाशी का 'डीएनए' ढूँढ लेता है,वहीं गरीब आदमी मौसम की पदचाप से ही सिहर उठता है । हर मौसम सर्वहारा वर्ग का जानी दुश्मन है! अप्रैल में पुरवाई तेज होते ही गरीब आदमी अपनी पत्नी बुधना से शंका जाहिर करता है,- ' लगता है, फिर आँधी आएगी, कहीं छपरा न उड़ जाये-'!
 घर वाली की आशंका और भी भयावह है,-'पिछली आँधी में ये नीम का पेड़ उखड़ कर बस गिरने ही वाला था कि 'धमसा माँई' ने बचा लिया था !'
    " कैसे ?'
  " जैसे ही पेड़ ने आँधी में झूमना शुरू किया, मैंने  धमसा माई को सुमिरन करके मन्नत मांग ली  '!
     'कौन  सी मन्नत ?' मजदूर को लगा कि आज तो नीम के पेड़ को गिरने से से कोई नहीं बचा सकता !
   ' हे धमसा माई ! ई  आँधी मा हमार छपरा न उड़ा तो तुम्हें एक बकरा भेंट दूंगी '! 
     सुनकर दुखीराम का कलेजा दहल गया  आज फिर नीम का पेड़ झूमने लगा था ! उसने चिल्ला कर कहा,-' इस बार मन्नत मत मांगना '!
            बुधना ( दुखीराम की लुगाई ) ने अपराध बोध से भरी आंखों से पति को देखा-' मन्नत तो मांग ली-" !
    दुखीराम को लगा कि नीम का पेड़ उखड़ कर सीधा सीने पर गिरा हो ! उसने घबरा कर सामने देखा, पेड़ अपनी जगह पर था ! आँधी थम गई थी मगर दुखीराम को लग रहा था जैसे नीम का पेड़ ज़बान निकाल कर उसे चिढ़ा रहा हो!
        गर्मी में भी दुखीराम पर मौसम की खास मेहरबानी होती है ! जब पूरे गाँव के घरों में बिजली के पंखे और कूलर चलते हैं तो दुखीराम का हाल चाल पूछने के लिए पूरे गाँव के मच्छर उसके लेटने का इन्तेज़ार करते हैं ! दिन भर की हड्डी तोड़ मेहनत के बाद दुखीराम ऐसे सो जाता , कि मच्छर खून पी कर उसी की नाक मे घुस कर सो जाते थे ! कभी कभी ऐसा भी होता था कि पड़ोसी झुरहू अपने बैलों को मच्छर से बचाने के लिए भूसा सुलगाता और ऊपर से नीम की हरी पत्ती डालता, तब ज़रूर  मच्छर घबरा कर दुखीराम को छोड़ कर भाग जाते थे !
       बरसात में मुसीबत बांध तोड़ कर बहती हुई दुखीराम के घर आती ! सामने गली में बहता हुआ पानी बगैर रोक टोक के घर के अंदर घुस आता था! बारिस मे पानी सिर्फ सामने के दरवाज़े से  ही नहीं  छत से भी टपकता था ! अबकी तीसरी बरसात थी मगर इस बार भी दुखीराम का छपरा बजट के बाहर था ! क्या करें, प्रधान कह रहे थे कि सरकार मनरेगा में पैसा ही नहीं डाल रही है ! बादल गरज गरज कर बताते कि बिजली की नजर उसके छपरा पर है ! उधर,,,गाँव के जमालू भी जाग रहे होते! अमीर लोगों के लिए बारिस संगीतमय होती है,मगर जमालू के लिए सितम ढाती रात ! हर गरज के साथ जमालू का यक़ीन पक्का हो जाता कि गिरने के लिए बिजली उन्हीं का घर ढूंढ रही है!
        सर्दी - दुखीराम और जमालू दोनों के लिए क़हर की तरह थी! जमालू  के घर के मुख्य दरवाज़े की लकड़ी सड़ कर टूट चुकी थी और वहाँ से घूस, चूहे और नेवले के साथ छोटे कद के कुत्ते तक  बेखटके अंदर आकर जमालू की रजाई में घुस जाते थे! गुरबत ने  घर में ऐसा समाजवाद ला दिया था कि जमालू की रज़ाई में घुसा कुत्ता उसी रज़ाई मे मौजूद बिल्ली पर एतराज नहीं करता था ! लगातार शक़्ल सूरत खो कर चादर की तरह पतली हो रही रज़ाई ओढ़ने वाले जमालू  इस समाजवाद के अंदर छुपे 'रहस्यवाद' से पूरी तरह परिचित थे !
    जमालू को आज भी याद है कि बचपन कैसा गुजरा था ! जब फसल कटकर किसानों के घर चली जाती तो जमालू ऐसे खेतों मे छुट गई गेहूँ की बाली ,चने की ठोठी , मकई की बाली ढूंढ कर घर लाते ! जमालू और दुखीराम दोनों भूमिहीन ! दोनो के पेट और पीठ के बीच में न जाने कहाँ भूख बैठी थी,एक ऐसी खौफनाक भूख जो रोटी न  मिलने पर गरीब के सपने, सेहत सौंदर्य और,,,उम्र भी खा लेती है ! इस गाँव ने इंद्र की तरह उनसे पसलियों तो नहीँ मांगी ,लेकिन वक़्त  सब कुछ तो ले चुका था ! दोनों में एक समानता और थी! दुखीराम खेत में चूहों के बिल खोद कर गेहू की बालियां निकाल कर चूहों को आशीर्वाद देता था और जमालू रज़ाई में बच्चे देने वाले चूहों को गालियाँ ! जमालू की बीबी खैरूल चूहों की इस हरकत के लिए भी जमालू को ही जिम्मेदार ठहराती थी, -' ये सब तुम्हारी वज़ह से  हुआ है-'!
       चार चार बच्चों के बाप जमालू ने इस आरोप को लेकर एक बार सफाई देते हुए दुखीराम से कहा  था-' चुहिया ने जो भी बच्चा दिया, उसमे मेरा  कोई हाथ नहीं है -'!

         सवाल उठता है कि ऊपर वाला गरीब को पैदा क्यों करता है। जवाब है,- गरीब के लिए यह दुनिया नहीं बनाई गयी, अल्बत्ता इस दुनियां के लिए गरीब बनाया गया है! अमीरों के लिए,गरीब खुशहाली का फर्टिलाइजर है ! निर्माण का मसाला है ! इतिहास में कभी दर्ज न होने वाली गुमनाम शहादत की फेहरिश्त है,और,,,,,सभ्यता तथा संस्कृति के कॉरीडोर मे बिछा हुआ वो लाल कालीन है , जो गरीब के लहू से सुर्खरूं  हुआ है ; फिर क्या फर्क पड़ता है कि उसका नाम जमालू हो या दुखीराम !!