Friday, 28 January 2022

" व्यंग्य भारती" " हम "वोट" दे चुके सनम "

(व्यंग्य  "भारती ")   " हम   "वोट"  दे चुके सनम "


       अब इस सवाल पर - हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है -! कई बुद्धिजीवी नस्ल वाले ऑब्जेक्शन उठाएंगे कि सही वाक्य है - हम दिल दे चुके सनम -! अरे भइया ! काहे दिमाग़ में मथानी चलाते हैं ! वोट का मौसम है तो वोट ही देंगे ! जहां काम आए सुई, कहां करे तलवार ! यूपी में जाकर देख लीजिए -  दिल कोई नहीं मांग रहा है, सब को वोट चाहिए ! यही नहीं, दिल के मुकाबले वोट की मार्केट वैल्यू भी ज्यादा है ! वोट दे दो - सतयुग और रामराज दोनों ले लो ! वोट दे दो - समूचा हाथी ले लो ! एक अदद वोट के बदले लैपटॉप, झाड़ू, साइकल ,दारू कुछ भी ले लो ! किडनी देकर भी इतनी जन्नत नहीं मिलती ! वोट देने से सरकार बन जाती है, जब कि दिल देने से - मुन्नी बदनाम होती है ! काहे बदनामी ओढ़ते हैं, दिल को चूल्हे पर रखिए और वोट  दे आइए ! वोट देने से विकास का कुपोषण दूर होता है ! वोट देने की अपील दुनियां करती है, दिल देने की सलाह बीवी तक नहीं देती ! लोग कहते हैं, दिल तो पागल है ! तो पागल से पचास फुट दूर रहें ! काहे कपड़ा फड़वाते हैं !!
          वोट देते आए हैं,  इस बार भी इरादा किया है, लेकिन अभी  ये नहीं फ़ैसला कर पाया कि कौन से वाले 'सनम'  को दूं ! ढेर सारे सनम आए हैं! घोर कन्फ्यूजन हो गया है ! कल सुबह सुबह जैसे ही गांव के  झुरहू काका लोटा लिए अरहर के खेत में जाने के लिए झोपडी से निकले, सामने से एक देवता नई चमचमाती सायकल लेकर आ गए और काका  का  पैर पकड़ कर बोले, -' ये आपके लिए है ! रख लेंगे तो मेरा उद्धार हो जायेगा ! आपके एक वोट से गांव को विकास और मुझे जीते जी मोक्ष मिल जायेगा -" !  झुरहू काका धर्म संकट में पड़ गए ! उनका जबरदस्त प्रेसर नेता जी के मोक्ष में बाधक बन रहा था ! देर तक खड़ा होना घातक हो सकता था ! दूसरी तरफ नई साइकल !- काके लागूं पांय- जैसी सिचुएशन थी ! पहली बार विकास दरवाज़े तक पहुंचा था , वरना तो ग्राम प्रधान के दरवाज़े से कभी आगे बढ़ता ही नहीं ! वो बड़ी हसरत से सायकल की ओर देख ही रहे थे कि अचानक उन्हें महसूस हुआ कि अगर जरा भी देर हुई तो धोती खराब हो जायेगी ! प्रेसर इतना बढ़ गया था कि सायकल की मोह माया छोड़ कर  वो सरपट भागे और अरहर के खेत में घुस गए!
          वापस लौटे तो दरवाजे पर साइकल की जगह हाथी खड़ा था। इतने बड़े विकास को रखने के लिए उनकी झोपडी बहुत छोटी थी ! वो फ़ौरन नीम की दातून चबाते हुए झोपडी के अंदर चले गए! दो विकास ठुकरा कर वह थोडा चिंतित थे ! आधा घंटा भी नहीं बीता था कि बाहर से किसी ने पुकारा ! झुरहू काका बाहर आए, इस बार ग्राम प्रधान के साथ एक नए तारणहार फूल लेकर  खड़े  थे ! ग्राम  प्रधान  तारणहार   से   कह  रहे  थे, - ' निश्चिंत रहें, इसका नाम मनरेगा में दर्ज है ! ये विकास का साथ देगा तभी  इसे आवास दिया जाएगा ! कुछ  पाने   के  लिए  कुछ  देना  पड़ता  है -' झुरहू जानता था कि पाना संदिग्ध है और देना विधि का विधान ! चेतावनी और विकास का विकास पत्र देकर दोनों चले गए ! तभी झुरहू की झोपड़ी के ऊपर बैठा कौआ जोर जोर से बोलने लगा- ' कांव कांव ' !! 
         झुरहू कांप उठा ! पिछ्ले चुनाव में भी ये मनहूस कौआ ऐसे ही बोला था! उस दिन एक नेता जी उसके मेहमान बने थे, और वह भी जबरदस्ती ! झुरहू को वह मनहूस दिन पांच साल बाद आज भी याद था ! कौआ बोलने के ठीक दो घंटे बाद ही नेता जी अपने दो गनर, एक ड्राइवर दो पत्रकार और रसोइए को लेकर इसकी झोपड़ी पर आ पहुंचे थे ! ( शायद रास्ते में ही उन्होंने कौए को हायर कर खबर भेज दी थी! ) आते ही नेताजी ने झुरहु को खुशखबरी सुनाई , - ' मैं तीन दिन से गरीब आदमी ढूंढ रहा हूं, सरपंच ने बताया कि सौभाग्य से गांव के सबसे गरीब दलित तुम हो, बड़ी प्रसन्नता हुई तुमसे मिलकर ! आज मैं तुम्हारी कुटिया में ही भोजन करूंगा! '! झुरहू की आखों के सामने अंधेरा छा गया था,  घर में ढाई किलो आटा ही बचा था ! उसने डरते डरते कहा, - " साहेब आटा तो,,,,,,,!'
       " मूर्ख! मैं यहां आटा खाने आया हूं क्या! " फिर अपने रसोईये से बोले, -" गाडी की डिक्की से छे मुर्गे निकाल लो ! आज का डिनर इसी की झुग्गी में करना है ! और हां, सिवास रीगल की तीन बोतल भी पेटी से निकाल लेना, आत्मचिंतन के लिए दो गिलास पी लेता हूं ! जनहित में क्या क्या करना पड़ता है ! पास के कस्बे में जाकर दो किलो चिकन रोल भी ले आना -!"
     " झुरहू के लिए ?" 
   " नहीं हम लोगों के लिए ! हम चिकन मटन खिला कर झुरहू की आदत खराब नहीं  करेंगे.! वह सात्विक भोजन करता आया है ! उसके लिए दो चार रोटी और नमक मिर्च की चटनी बना देना  - ऐश करेगा "!
    पांच साल हो गए, झुरहू काका धोती में पत्थर बांध कर उस कौए को तलाश रहे थे ! कौआ आज़ बोला,तो दातून फेंक कर वो तुंरत बाहर निकले , पर उन्हें देखते ही कौआ मुंडेर से उड़ गया !  मेहमान और विकास से खुद को बचाने के लिए झुरहू काका भाग कर मटर के खेत में
छुप गए , मगर उनके कान विकास की आहट पर लगे हुए थे !
         ताज़ा ताज़ा भाषण लेकर चुनाव में उतरे  उम्मीदवार माइक पर बोल रहे थे,-'पचीस साल से आप दूसरों को सेवा का मौका दे रहें हैं ! इस बार मेरी बारी है ! मेरा चुनाव चिह्न है, - "कोल्हू" कृपया एक बार पेरने का मौका जरूर दें ! पेरने के मामले में मैं कोई लिहाज़ या भेदभाव नहीं करता ! मेरा नाम ही ' विकास ' है !आम आदमी हो या खास आदमी , मेरी नज़र में सब गन्ने के समान हैं ! असली समाजवाद चाहिए तो कोल्हू पर मुहर लगाकर  मुझे विजयी बनाएं ! मेरे जीतने के बाद कम से कम क्षेत्र की जनता को पांच साल तक ये मलाल तो नहीं होगा कि उसके गांव में कभी विकास नहीं आया ! मैं हर साल आता रहूंगा ! विकास  से भागने  या  छुपने  की कोई जरूरत नहीं है !"

   झुरहू काका मटर के खेत से निकल कर भागे और दोबारा अरहर के खेत में छुप गए ! इस भगदड़ में उनके लोटे का पानी वहीं गिर गया !

                                    ( सुलतान भारती)

Sunday, 16 January 2022

'बही खाता' नुकसान उठाने का अध्यात्म

"बही खाता"
                ' नुकसान पर खुश होनें का आध्यात्म"

        आज़ सुबह से मूड खराब है। रात बेटे ने जाने कहां फ़ोन गिरा दिया ! कॉलेज लाईफ में खोने वाला ये बेटे का दूसरा फोन था ! बेटा इकलौता हो तो बिगड़ने और लगातार नुकसान पहुंचाने का अधिकार पत्र लेकर पैदा होता है ! दस हजार का फटका लग चुका था!  मैं घर के बाहर उदास बैठा था कि तभी मुहल्ले के ज्योतिषी 'दिशा शूल  शास्त्री' जी तोते का पिंजरा लेकर उधर से निकले ! 
मेरे पास आकर बोले, - ' काहे पेड़ से लटके चमगादड़ जैसा मुंह लटकाए  हो ! माजरा का है ?" 
      मेरी नज़र शास्त्री जी के तोते पर थी ! उनका तोता मुझे फूटी आंख भी नहीं देखना चहता था ! उसे पत्रकार और लेखकों से सख्त एलर्जी थी ! मुझे देखते ही उसने शोर मचाया, -' भाग भाग भाग !' 
     शास्त्री जी ने तोते से पूछा, -' क्या हुआ चिंतामणि '?
तोते ने यलगार किया , -' मार ! मार !! मार !!!'
     शास्त्री जी ने मुझसे पूछा, - " ये क्या हाल बना रक्खा है, पहली डोज लगवाई है  का ?"
     " नहीं, एक फोन पहले भी खो चुका था - यह दूसरा फोन था "!
       " तो का हुआ ! समझिए बहुत बडी दुर्घटना होते होते रह गई ! का पता कोई ट्रेन आपके ऊपर से गुजरने वाली थी, जो दस हजार के नुकसान पर ही रुक गई !''
    " मेरे घर के आस पास तो कोई रेलवे लाईन नहीं है ?"
       " चिंतामणि ने तुम्हें देखते ही तीन बार ' मार मार मार ' कहा ! कम से कम तीन दिन तक रेलवे लाईन से दूर रहना ! अलबत्ता कहो तो मैं ' काल छाया हरण ' मंत्र का जाप करवा दूं ? सिर्फ पांच सौ इक्यावन रुपए का खर्चा आयेगा बस "!
      " तीन दिन बाद सोच कर बताऊंगा "!
 शास्त्री जी से पहले उनका तोता गुस्से में चिल्लाया,- " थू थू थू ! आगे बढ़ !!"
      दिशा शूल शास्त्री जी ने अपने तोते को समझाने की बजाय मुझे सलाह दी, -' बेहतर है कि तुम चिंतामणि के रास्ते में मत पड़ो !' तोता पिंजरे के अंदर से मुझे तिरछी नजरों से ताड़ रहा था! मैंने जान बूझ कर ज़ोर से कहा, - ' कोरोना के सीजन में इतना मंहगा तोता कैसे अफोर्ड कर रहे हैं आप? मैं एक ऐसा तोता दिलवाता हूं जो मिर्ची की जगह सिर्फ ऑक्सीजन लेता है "!
      शास्त्री जी जाने कब से ऐसे ही तोते की तलाश में थे, ऑफर सुनते ही वो फौरन धर्मसंकट में पड़ गए, खतरा भांप कर तोता चिल्लाया, - " यजमान आया ! यजमान आया !! यजमान आया !!"
    शास्त्री जी पिंजरा लेकर चौराहे की ओर बढ़ गए !
                 काले धागे के साथ ढेर सारी ताबीज, भभूत, रेडीमेड गंडा, अभिमंत्रित जल की बोतलें, नींबू और लाल मिर्च पाउडर साइकल पर लिए कॉलोनी के जानें माने बंगाली तांत्रिक बाबा कोरोना शाह सामने से आ गए ! मैने पूछ लिया,. ' सायकल लेकर भी पैदल पदयात्रा भांज रहे हैं ! पंचर है का ?"
      " तुम्हें देख कर रुक गया था ! सुना है कि तुम्हारे लौंडे ने फ़ोन गुमा दिया ? बड़े किस्मत वाले हो !"
  " काहे अंगारे पर माचिस गिराते हो शाह जी?"
" सही कह रहा हूं, फ़ोन खोने को नुकसान में मत काउंट करो ! समझ लो कोई बहुत बड़ी  मुसीबत टल गई ।"
   " बगैर फ़ोन की बलि लिए मुसीबत टल जाती तो मान जाता सूफ़ी जी " !           
             " तब कैसे  मान जाते ! तुम्हारे जैसे नास्तिक नुकसान उठाकर तो मानते नही , बगैर नुकसान के कब मानने वाले हो !" 
        " दस हजार के फोन ने घर के बजट को विकलांग बना दिया !"
       " क्या पता तुम्हारे ऊपर कोई उल्कापिंड गिरने वाला था और आखिरी पल में सिर्फ फोन लेकर लौट गया !! तुम्हें तो इस नुकसान पर खुशी मनानी चाहिए "!
      " खुशी मनाने से फोन तो लौटने से रहा "!
    " गज़ब के आदमी हो ! खुद उल्कापिड के जबड़े से निकल आए , उसकी खुशी नहीं है ! कम से कम तुम्हें इक्यावन रुपए वाली एक ताबीज़ तो लेनी चाहिए "!
       " कौन सी ताबीज़ ?"
   " कोरोना का सीज़न चल रहा है, ऐसा करो कि एक 'कोरोना शिकस्त गंडा"  बंधवा लो , फ़ायदे में रहोगे ! "
        " कैसे ''   ?
" इसे भाभी जी भी पहन सकती हैं। बस थोड सा लोबान और डालना होगा "! 
      " तुम्हारा ये ताबीज़ उल्कापिंड से तो बचा लेगा न" !
              बस सूफी साहब भड़क उठे,- ' इक्यावन रुपए में ही जन्नत का पूरा मॉल खरीदोगे क्या ! तुम्हारे पड़ोस में बस कर मैने खोया बहुत है, पाया कुछुवै नाही "!
         अगले दिन बाबा  "मोहमाया निष्ठुरानंद" के ठीये पर गया ! उनके एक मुरीद ने बताया था कि बाबा हर खोई हुई चीज का सही सुराग ढूंढ बता देते हैं ! इस नेक काम के लिए कुछ लेते भी नहीं , मोह माया से पूरी तरह निष्ठुर हैं ! 'कुछ लेते ही नहीं ' सुनकर मेरी मृतप्राय आस्था में भी अंकुर फूटा था ! मगर मेरी कहानी सुनकर बाबा निष्ठुरा नंद ने डरावनी गंभीरता ओढ़ ली, - " फ़ोन बहुत दूर जा चुका है! वापस लाने के लिए एक जोड़ी जिन्न और एक जोड़ी पिशाच भेजना होगा !" 
      " खाली पिशाच से काम नहीं चल सकता?"
" नहीं, " बाबा निष्ठुरता से बोले-" मोह माया से मुक्त हो कर सोचो ! तेरा था क्या जो खोने का शोक करता है ! जो कल तक तेरा था , आज किसी और का है ! जिन्न और पिशाच के कल्याण हेतु खर्च न किया तो कल किसी और का हो जाएगा "!
        " जिन्न और प्रेत का कितना खर्चा आयेगा ?"
   मगर बाबा के कुछ बोलने से पहले ही एक नए नंबर से बेटे ने फोन करके बताया -" पापा ! फोन नाई की दूकान पर छूट गया था ! आज दो दिन बाद उसने दूकान खोली तो नंबर देखकर फोन किया है ! जा रहा हूं फोन लाने "!
    "क्या हुआ यजमान ?" शंकित होकर बाबा ने पूछा !!
" कुछ नहीं, जिन्न और प्रेत फोन लेकर नाई की दूकान पर बैठे हैं - मुझे बुलाया है !!"

                   बाबा को काटो तो खून नहीं !!

              ( सुलतान भारती)

       

Saturday, 8 January 2022

"व्यंग्य भारती" - 'कोरोना' - 'चुनाव' दोऊ खड़े "

"व्यंग्य" भारती
             " कोरोना'  'चुनाव'  दोऊ खड़े"

       अब प्रजातन्त के सबसे बड़े पर्व (चुनाव) का ऐलान हो गया, खुश तो बहुत होंगे तुम ! ये पर्व खास तुम्हारे लिए है ! तारणहार तुम्हारे लिए हर पांच साल में पर्व लेकर आ जाते हैं ! फिर भी तुम नाशुक्रे लोग पर्व देख कर पालक और पेट्रोल का रोना रोते हो ! अब दस फ़रवरी 2022 से  07 मार्च 2022 तक इस पर्व  को एंज्वॉय करो ! बीच में पर्व से निकल भागने की कौशिश मत करना !  इस पर्व से प्रजातन्त्र को मजबूती मिलेगी और प्रजा को काफ़ी सारी जड़ीबूटी ! चुनावी वादों को विटामिन प्रोटीन शिलाजीत और फाइबर समझ कर गटक लेना ! जब पर्व तुम्हारा है तो नखरा काहे का ! कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है! फ़रवरी और मार्च का महीना पाने का है, खोने के लिए पांच साल पड़े हैं ! कुछ निजी कारणों से दिसंबर में  "सांताक्लॉज" नहीं आ पाए थे, अब इस पर्व में पूरा कुनबा लेकर आयेंगे !
          तो,,,,प्रजातंत्र का सबसे बड़ा पर्व आ गया ! प्रजा को पता ही नहीं था कि उसके लिए इतने सारे हातिमताई मौजूद हैं ! अब जनहित में दूर दूर से साइबेरियन सारस  आयेंगे ! वो अपनी एक इंची आंखों में पूरा हिंद महासागर भरकर लायेंगे ! आते ही वो दरवाजा खटखटाएंगे ,- सोना लै जा रे ! चांदी लै जा रे -!
ऐसे मौके पर नौसिखिए लोग  लपक कर दरवाजा खोल बैठते हैं, जबकि भुक्त भोगी जागते हुए भी खर्रांटे लेने लगते हैं, जिससे विकास से बचा जा सके । अगले महीने इतने तारणहार लैंड करेंगे कि जनता कन्फ्यूज हो जाएगी कि किसकी पूंछ पकड़ कर भव सागर पार करे !
        जब शीरीनी बांटने वाले थोक में हों तो इस तरह का भ्रम होना स्वाभाविक है! वैसे भी चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद मौसम में जो बदलाव नज़र आ रहा है, उससे साफ है कि इस बार जनवरी में ही पलाश में फूल आ जायेंगे ! अब वेलेंटाइन भी फरवरी का इंतज़ार नही करेगा ! फ़रवरी के आसपास आदिकाल से बसंत भी आता रहा है, पर जबसे चुनाव और वैलेंटाइन साथ साथ आने लगे , बसंत ने  'वीआरएस' ले लिया ! विवश होकर लिए गए बसन्त के इस फैसले को वैलेंटाइन ने देशहित में उठाया गया कदम बताया है! (संभव है कि उपेक्षा से आहत वसंत आगे चलकर खुदकशी कर ले , और,,,उसकी इस आकस्मिक मृत्यु से प्रजातंत्र को मजबूती मिलती नज़र आये !) मजबूती  का  अद्वेतवाद  समझना  कौन  सा आसान काम है ! 'बरसे कंबल - भीगे पानी ' का रहस्यवाद आज तक कौन खोज पाया है ! बस साहित्य के  सारे "लाल बुझक्कड़" गैंती लेकर अपना अपना " हड़प्पा" खोद रहे हैं !
       चुनाव और कोरोना के बीच में विकास अटक गया है ! चुनाव आचार संहिता की वजह से 10 मार्च तक   विकास करने  पर रोक लगी है। इसलिए जनवरी फरवरी में करने की जगह विकास बाटने का काम किया जायगा ! सारे सांताक्लॉज उसी गिफ्ट पैकिंग में लगे हैं ! स्लेज गाड़ी में हिरनों को  जोतने पर वन्य जीव संरक्षण अधिनियम में फंसने का खतरा है, इसलिए शांता अब फरारी और बीएमडब्लू से आने लगे हैं! (स्लेज की अपेक्षा कार में 'विकास ' रखने के लिए ज़्यादा स्पेस होता है !) जन और तंत्र के बीच में - कोरोना कन्फ्यूज होकर गा रहा है, - ' अब के सजन फरवरी में,,,,, आग लगेगी बदन में,,,'! ( इसका मतलब कोरोना के तेज़ बुखार के साथ आने की संभावना है!)
          विकास थोड़ा घबराया हुआ है ! कोरोना का आंकड़ा बढ़ रहा है !  इस बार कोरोना के साथ उसका एक रिश्तेदार ( ओमिक्रॉन) भी आया है। लेकिन सांता क्लॉज धोती में गोबर लगाए गली गली आवाज़ लगा रहे हैं, - ' तू छुपा है कहां , ढूढता मैं यहां '! फिर से जन्नत को लाने के दिन आ गए ! लैपटॉप, स्कूटी, राशन, जवानी में वृद्धपेंशन, तीर्थ यात्रा , घर घर में कब्रिस्तान और शमसान की सुविधा सिर्फ एक वोट की दूरी पर ! कुछ तो लेना ही पड़ेगा ! इतना बड़ा पैकेज लाए हैं- कुछ लेते क्यों नहीं ! ऑप्शन बहुत हैं- सायकल से लेकर सूरज तक कुछ भी मांग लो ! बड़ी दूर से आये है साथ में "हाथी" लाए हैं ! बुधई काका छोपड़ी में ताला मार कर भागने की सोच रहे हैं ! पिछले चुनाव में रोज कोई न कोई  'देवता'  उनकी झोपड़ी में खाना खाने आ जाता था !
               एक महीने में बखार चर गए थे!
         अब कोई भी पार्टी विकास के नाम पर वोट  मांगने की मूर्खता नहीं करेगी ! वो दिन हवा हुए जब पसीना गुलाब था ! अब सतयुग है, इसलिए धर्म के अलावा सारे मुद्दे गौंड हैं ! धर्म ही न्याय है, धर्म ही विकास है ! इसलिए इस बार जो जितना बड़ा धर्माधिकारी होगा, उतना वोट बटोरेगा ! पिछले कुछ सालों की घोर तपस्या से यह शुभ लाभ मिला कि जनता ने धर्म को ही विकास समझ लिया है ! तपस्या का अगला चरण  "गेहूं" को लेकर है ! काश धर्म को ही गेंहू समझ लिया जाए ! उसके बाद फिर कभी किसान आंदोलन की नौबत नहीं आयेगी- एमएसपी का टंटा खत्म !! जब भी भूख लगी, सत्संग में बैठ गए ! 
             आज सुबह चौधरी ने मुझसे पूछा, -' उरे  कू
सुण भारती ! तू चुनाव में उतै गाम न जा रहो  के ?"
         " न  भाई ! कोरोना फिर बढ़ रहा है !"
" ता फेर चुनाव क्यूं करावे सरकार ? "
        "सरकार जानती है कोरोना की पसंद नापसंद , पर मुझे नहीं मालूम" !!
         "पसंद न पसंद ! समझा कोन्या ! कोरोना बीमारी है या फूफा लगे म्हारा ?"
       ' तीन साल से यही समझने की कोशिश में लगा रहा! बीच में कोरोना ने मुझे ऐसा रगड़ा कि याददाश्त तक आत्मनिर्भर ना रह सकी "!
        ' नू बता - अक - किस नै वोट गेरेगा इब के ?'
" जिस को तू कहेगा ! विकास और गेहूं की समझ तुम्हें ज्यादा है "! 
        " अपना वोट योगी जी नै दे दे ! सुना है अक बुलडोजर देख कर यूपी ते कोरोना भाग रहो ! योगी जी केले ही दूध का दूध  अर पानी का पानी अलग कर देवें"!
      " अच्छा याद दिलाया , कल से बुखार, जुकाम और छींक आ रही है ! बंगाली बाबा जिन्नात अली शाह को दिखाया था उन्होंने कहा कि - फर्स्ट अप्रैल तक किसी काली भैंस का सफेद दूध सुबह शाम उधार पीने से कोरोना मंहगाई की तरह भाग जाता है ! "
             चौधरी भड़क उठा, -' इब और उधार न द्यूं , कहीं अर  तलाश ले काड़ी भैंस नै ! कोरोना ते बचाने कू  सबै भैंसन पै मैंने सफेदी करा दई , इब हट जा भारती पाच्छे ने !!'

         अभी भी  दूध का संकट बना हुआ है !!

                       (सुलतान भारती)