अब इस सवाल पर - हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है -! कई बुद्धिजीवी नस्ल वाले ऑब्जेक्शन उठाएंगे कि सही वाक्य है - हम दिल दे चुके सनम -! अरे भइया ! काहे दिमाग़ में मथानी चलाते हैं ! वोट का मौसम है तो वोट ही देंगे ! जहां काम आए सुई, कहां करे तलवार ! यूपी में जाकर देख लीजिए - दिल कोई नहीं मांग रहा है, सब को वोट चाहिए ! यही नहीं, दिल के मुकाबले वोट की मार्केट वैल्यू भी ज्यादा है ! वोट दे दो - सतयुग और रामराज दोनों ले लो ! वोट दे दो - समूचा हाथी ले लो ! एक अदद वोट के बदले लैपटॉप, झाड़ू, साइकल ,दारू कुछ भी ले लो ! किडनी देकर भी इतनी जन्नत नहीं मिलती ! वोट देने से सरकार बन जाती है, जब कि दिल देने से - मुन्नी बदनाम होती है ! काहे बदनामी ओढ़ते हैं, दिल को चूल्हे पर रखिए और वोट दे आइए ! वोट देने से विकास का कुपोषण दूर होता है ! वोट देने की अपील दुनियां करती है, दिल देने की सलाह बीवी तक नहीं देती ! लोग कहते हैं, दिल तो पागल है ! तो पागल से पचास फुट दूर रहें ! काहे कपड़ा फड़वाते हैं !!
वोट देते आए हैं, इस बार भी इरादा किया है, लेकिन अभी ये नहीं फ़ैसला कर पाया कि कौन से वाले 'सनम' को दूं ! ढेर सारे सनम आए हैं! घोर कन्फ्यूजन हो गया है ! कल सुबह सुबह जैसे ही गांव के झुरहू काका लोटा लिए अरहर के खेत में जाने के लिए झोपडी से निकले, सामने से एक देवता नई चमचमाती सायकल लेकर आ गए और काका का पैर पकड़ कर बोले, -' ये आपके लिए है ! रख लेंगे तो मेरा उद्धार हो जायेगा ! आपके एक वोट से गांव को विकास और मुझे जीते जी मोक्ष मिल जायेगा -" ! झुरहू काका धर्म संकट में पड़ गए ! उनका जबरदस्त प्रेसर नेता जी के मोक्ष में बाधक बन रहा था ! देर तक खड़ा होना घातक हो सकता था ! दूसरी तरफ नई साइकल !- काके लागूं पांय- जैसी सिचुएशन थी ! पहली बार विकास दरवाज़े तक पहुंचा था , वरना तो ग्राम प्रधान के दरवाज़े से कभी आगे बढ़ता ही नहीं ! वो बड़ी हसरत से सायकल की ओर देख ही रहे थे कि अचानक उन्हें महसूस हुआ कि अगर जरा भी देर हुई तो धोती खराब हो जायेगी ! प्रेसर इतना बढ़ गया था कि सायकल की मोह माया छोड़ कर वो सरपट भागे और अरहर के खेत में घुस गए!
वापस लौटे तो दरवाजे पर साइकल की जगह हाथी खड़ा था। इतने बड़े विकास को रखने के लिए उनकी झोपडी बहुत छोटी थी ! वो फ़ौरन नीम की दातून चबाते हुए झोपडी के अंदर चले गए! दो विकास ठुकरा कर वह थोडा चिंतित थे ! आधा घंटा भी नहीं बीता था कि बाहर से किसी ने पुकारा ! झुरहू काका बाहर आए, इस बार ग्राम प्रधान के साथ एक नए तारणहार फूल लेकर खड़े थे ! ग्राम प्रधान तारणहार से कह रहे थे, - ' निश्चिंत रहें, इसका नाम मनरेगा में दर्ज है ! ये विकास का साथ देगा तभी इसे आवास दिया जाएगा ! कुछ पाने के लिए कुछ देना पड़ता है -' झुरहू जानता था कि पाना संदिग्ध है और देना विधि का विधान ! चेतावनी और विकास का विकास पत्र देकर दोनों चले गए ! तभी झुरहू की झोपड़ी के ऊपर बैठा कौआ जोर जोर से बोलने लगा- ' कांव कांव ' !!
झुरहू कांप उठा ! पिछ्ले चुनाव में भी ये मनहूस कौआ ऐसे ही बोला था! उस दिन एक नेता जी उसके मेहमान बने थे, और वह भी जबरदस्ती ! झुरहू को वह मनहूस दिन पांच साल बाद आज भी याद था ! कौआ बोलने के ठीक दो घंटे बाद ही नेता जी अपने दो गनर, एक ड्राइवर दो पत्रकार और रसोइए को लेकर इसकी झोपड़ी पर आ पहुंचे थे ! ( शायद रास्ते में ही उन्होंने कौए को हायर कर खबर भेज दी थी! ) आते ही नेताजी ने झुरहु को खुशखबरी सुनाई , - ' मैं तीन दिन से गरीब आदमी ढूंढ रहा हूं, सरपंच ने बताया कि सौभाग्य से गांव के सबसे गरीब दलित तुम हो, बड़ी प्रसन्नता हुई तुमसे मिलकर ! आज मैं तुम्हारी कुटिया में ही भोजन करूंगा! '! झुरहू की आखों के सामने अंधेरा छा गया था, घर में ढाई किलो आटा ही बचा था ! उसने डरते डरते कहा, - " साहेब आटा तो,,,,,,,!'
" मूर्ख! मैं यहां आटा खाने आया हूं क्या! " फिर अपने रसोईये से बोले, -" गाडी की डिक्की से छे मुर्गे निकाल लो ! आज का डिनर इसी की झुग्गी में करना है ! और हां, सिवास रीगल की तीन बोतल भी पेटी से निकाल लेना, आत्मचिंतन के लिए दो गिलास पी लेता हूं ! जनहित में क्या क्या करना पड़ता है ! पास के कस्बे में जाकर दो किलो चिकन रोल भी ले आना -!"
" झुरहू के लिए ?"
" नहीं हम लोगों के लिए ! हम चिकन मटन खिला कर झुरहू की आदत खराब नहीं करेंगे.! वह सात्विक भोजन करता आया है ! उसके लिए दो चार रोटी और नमक मिर्च की चटनी बना देना - ऐश करेगा "!
पांच साल हो गए, झुरहू काका धोती में पत्थर बांध कर उस कौए को तलाश रहे थे ! कौआ आज़ बोला,तो दातून फेंक कर वो तुंरत बाहर निकले , पर उन्हें देखते ही कौआ मुंडेर से उड़ गया ! मेहमान और विकास से खुद को बचाने के लिए झुरहू काका भाग कर मटर के खेत में
छुप गए , मगर उनके कान विकास की आहट पर लगे हुए थे !
ताज़ा ताज़ा भाषण लेकर चुनाव में उतरे उम्मीदवार माइक पर बोल रहे थे,-'पचीस साल से आप दूसरों को सेवा का मौका दे रहें हैं ! इस बार मेरी बारी है ! मेरा चुनाव चिह्न है, - "कोल्हू" कृपया एक बार पेरने का मौका जरूर दें ! पेरने के मामले में मैं कोई लिहाज़ या भेदभाव नहीं करता ! मेरा नाम ही ' विकास ' है !आम आदमी हो या खास आदमी , मेरी नज़र में सब गन्ने के समान हैं ! असली समाजवाद चाहिए तो कोल्हू पर मुहर लगाकर मुझे विजयी बनाएं ! मेरे जीतने के बाद कम से कम क्षेत्र की जनता को पांच साल तक ये मलाल तो नहीं होगा कि उसके गांव में कभी विकास नहीं आया ! मैं हर साल आता रहूंगा ! विकास से भागने या छुपने की कोई जरूरत नहीं है !"
झुरहू काका मटर के खेत से निकल कर भागे और दोबारा अरहर के खेत में छुप गए ! इस भगदड़ में उनके लोटे का पानी वहीं गिर गया !
( सुलतान भारती)