अमूमन साहित्यकार की दो प्रजातियां पाई जाती है ! एक झेला जा सकता है, दूसरा लाईलाज ! पहले किस्म का रचनाकार टैलेंट की जगह जुगाड को आधार बनाता है ! ये जुगाड़ू साहित्यकार अक्सर टैलेंट वाले साहित्यकार के हिस्से की साहित्यिक पंजीरी चट कर जाते हैं ! जुगाड़ू रचनाकार की बगैर रीढ़ वाली रचनाएं भी आसानी से छप जाती हैं, समीक्षा भी अखबारों में आ जाती है और पुरस्कार की संस्तुति भी हो जाती है ! इसके बरक्स - प्रतिभाशाली साहित्यकार कलम, स्वाभिमान, और क्रोध से लबालब होता है ! वो अपने और ईश्वर के बीच में किसी तीसरे के अस्तित्व को बर्दाश्त ही नहीं करता ( कोई कोई तो ईश्वर को भी बड़ी मुश्किल से पास आने देता p है !)
कुदरती साहित्यकार के मित्र बहुत सीमित होते हैं ! ( झेलने की सहिष्णुता सबमें नहीं होती !) शादी के बाद आजीवन बीबी दुखी ! जिस कॉलोनी में घर हो , वहां के पडोसी दुखी ! ( मंच से बेदखल कई रचनाकार श्रोता की घात में रहते हैं !) ज़माना खराब है , नकली साहित्यकार का बाज़ार पर कब्ज़ा है ! "श्री जुगाड चंद" दुबई तक पहुंच गए और "बुद्धि लाल" जी को अपने ही शहर के कवि सम्मेलन में नहीं बुलाया जाता ! नियति के इसी छायावाद से प्रतिभा कुंठित है और कवि क्रुद्ध ! गधे एक सुर में घोड़ों के निष्कासन की वकालत कर रहें हैं ! साहित्य में गधा युग का प्रयास जारी है! कई सभ्रांत परिभाषाओं की खालपोशी तय है !
हमें झूठी प्रशंसा की दीमक लग गई है ! कई बार आपके द्वारा की गई झूठी प्रशंसा को रचनाकार सच मान लेता है ! सोचिए ! अगर कोई रचनाकार गलती से साहित्य के दरिया ए आतिश में उतर आया है और उसकी दुखी आत्मा उसे घर वापसी की सलाह दे रही हो , और ऐसे में कोई दुश्मन उसकी बेजान रचना को "कालजयी" कह दे तो क्या होगा ! वो तो आक्रामक तरीके से साहित्य सृजन की शपथ ले लेगा ! ऐसे में रचना कालजयी हो न हो , रचनाकार के परिवार का ' काल कवलित ' होना तय है ! कुछ लोगों को प्रशंसा करने का ऐसा रोग होता है कि उन्हें मौक़ा दिया जाये तो वो मक्खी में भी मिनरल्स और विटामिन ढूंढ लेंगे !
हर लेखक का सपना होता है - पुरस्कार हासिल करना ! सबको सपना देखने की आज़ादी है ! लेकिन प्रॉपर चैनल से पुरस्कार पाना बहुत कठिन है ! अपने देश की एक विचित्र साहित्यिक रवायत है ! यहां साहित्यकार की उम्र पचास साल के बाद शुरू होती है ! दस किलो आर्टिकल्स लिखने के बाद लेखक " वरिष्ठ " होना शुरू होता है ! सत्तर साल का होते होते वो " विख्यात " मान लिया जाता है ! ( स्मरण रहे, ज़्यादातर मामलों में वरिष्ठ या विख्यात होने के लिए "टेलेंट" की बाध्यता नहीं है !) प्रतिभा के बावजूद हर रचनाकार साठ साल की उम्र में वरिष्ठ मान लिया जाये , इसकी भी कोई गारंटी नहीं ! ऐसा भी हो सकता है कि ' वरिष्ठ ' और ' विख्यात ' होने की प्रतीक्षा में साहित्यकार सीधे "वीरगति" को प्राप्त हो जाए ! ( वैसे मरने के बाद रचना कार को ज़्यादा सम्मान मिलता है ! विरोधी भी कहते हैं, - " खुदा बख्शे ! बहुत सी खूबियां थीं मरने वाले में !)
मुझे याद है, जाने माने पत्रकार और " राष्ट्रीय विश्वास " अख़बार के कार्यकारी संपादक लतीफ़ किरमानी साहब ने आठ साल पहले यूपी के सबसे बड़े साहित्यिक पुरस्कार ' यश भारती ' के बारे में मुझसे कहा था , ' व्यंग्य विधा के स्थापित स्तंभकार हो !. इस बार अप्लाई करो ! तुम डिजर्व करते हो !' मै भी बहकावे में आ गया , सोचा पुरस्कार का नाम ' यश भारती ' और मै ' सुलतान भारती ' ! हो ना हो , इस पुरस्कार की प्रेरणा सरकार को मेरे ही नाम से मिली होगी ! अप्लाई करने के अगले ही दिन से अख़बार देखने लगा ! अगले महीने जब लिस्ट आईं तो आसमान से गिरा - पता चला कि ' अबहुं ना आए बालमा सावन बीता जाए -' !
अब मैं ऐसी गलती नहीं करता ! क्योंकि,,,, पुरस्कार हासिल करने वाले ' पाइथागोरस का प्रमेय ' कुछ कुछ समझ में आने लगा है !!
.... Sultan bharti
Kya baat kya baat.. Bharti Ji chha gaye.. superb piece
ReplyDeleteYou
ReplyDeleteYou are great Sir ji.
ReplyDeleteWhat an angle you have taken to describe the present scenario in today's life.
Hats off to your Imagination.
......Vijay Mohan