अमृतकाल के "बाबा "
अब मैं क्य़ा बताऊँ, मैं तो खुद कंफ्यूज हूँ! देश में बुद्धिजीवी कम और बाबा ज़्यादा नज़र आने लगे हैं, जहाँ जाइयेगा हमें पाइएगा - जैसी उपलब्धता है। सड़क से संसद तक बाबाओं की भरमार है! वो दिन हवा हुए जब बाबा जंगलों में तपस्या किया करते थे! अब उन्होंने कॉलोनी को ही जंगल बना लिया है,-परमारथ के कारने साधू धरा शरीर- ! अब बाबा मुसीबत की तरह हर जगह उपलब्ध हैं! एक ढूंढ़ो हजार मिलते हैं! जनहित में अवतार लेकर आश्रम में बैठे हैं ! पत्नी समेत आइए ( क्योंकि अकेले आने पर 'मोक्ष' की सुविधा संदिग्ध है !) शनि मुक्त कुंडली और स्वर्ग की गारन्टी सरकार नहीं दे सकती !
इन बाबाओं ने समाज को खेत और जनता को फसल समझ लियाहै ! शहर से लेकर गाँव तक जनकल्याण की पंजीरी बांट रहे हैं ! ये मंदिर मस्जिद में भेद नहीं रखते, बस पर्स में 'आस्था' होनी चाहिए ! अधिकांश बाबाओं की रुकी हुई कृपा 'युवा महिला भक्तों' को देखते ही रिलीज होने लगती है ! नर भक्तों का भी स्वागत है,शर्त बस इतनी है कि भक्त अपनी बुद्धि घर छोड़कर आए ! यदि भक्त घर की सुंदर और युवा महिलाओं को साथ ले कर आए तो बाबा के शीघ्र दर्शन पाने में विलंब और बाधा नहीं होती ! कई साल पहले हमारे गाँव में एक मुस्लिम बाबा रेगुलर आया करते थे ! महिला भक्तों को देखते ही उनके पैरों में अज्ञात दर्द शुरू हो जाता था ! विचित्र दर्द था जो युवा महिलाओं के पैर दबाने से ही दूर होता था
ज्यादातर "बाबा" मोह और माया से मुक्त होते हैं , इसलिए वो भक्तों को भी यही सुझाव देते रहते हैं ! भक्त घर की माया को ले जाकर बाबा को देता रहता है! बाबा का आश्रम भव्य होने लगता है और भक्त का घर 'नरिया खपड़ा' से फिसलकर छपरा पर आ जाता है ! माया दूर और मोक्ष नज़दीक आता रहता है !
बाबा नाना प्रकार के होते हैं, हरि अनंत हरि कथा अनंता,,,,! कुछ बाबा दयनीय होते हैं, कुछ दबंग ! कुछ एकान्तप्रिय होते हैं, कुछ लोकप्रिय ! कुछ बाबा सिर्फ भोले भाले लोगों को ही ठगते हैं,लेकिन कुछ सेवन स्टार बाबा अंग्रेज़ी बोलकर हाई क्लास लोगों को ठग लेते हैँ ! ऐसे सुपरस्टार बाबाओं की सेवा में कई कुपोषित और गरीब बाबा इस उम्मीद में होते हैं कि कभी तो ये मरेगा !मोह माया से मुक्त ऐसे ग्लोबल बाबाओं के इर्द गिर्द दर्ज़नों 'मादा बाबा' पाई जाती हैं! उन्हीं को देख कर बेकारी के मारे युवा बाबा भी "मोह" और "माया" से मुक्त होने की दीक्षा लेने लगते हैं ! विचारधारा की बात करें तो ज्यादातर बाबा भयंकर रूप से सेकुलर होते हैं,( क्योंकि इन्हें हर सम्प्रदाय को बग़ैर भेदभाव के लूटना होता है!) इसलिए ये मॉनसून देख कर राम रहीम की शाल ओढ़ लेते हैं! शहर से लेकर गाँव तक , जहाँ जाइयेगा -इन्हें पाइएगा !
कुछ प्राणी ऐसे भी होते हैं जो चाह कर भी बाबा नहीं हो पाते, लेकिन वो 'शहीद' और 'विलुप्त' हो चुके बाबाओं को ढूंढ निकालने में माहिर होते हैं ! वो आसपास की आबादी के हिसाब से शहीद बाबा, पहलवान बाबा, धमसा माई, पीर बाबा, बाबा पीपल शाह, पांचपीर बाबा , नौ गजी बाबा, उसरहा बाबा, दंगली बाबा, अनजंते शहीद बाबा को ढूढ़ निकालते हैं ! (फरिश्ते और देवदूत रजिस्टर चेक करके सकते में आ जाते हैं कि आखिर ये 'बाबा' कब शहीद हुआ ? ईश्वर के रिकॉर्ड में उनके जन्म और मृत्यु दोनों का डाटा गायब ! ज़मीन के नीचे वाले "शहीद बाबा" की आत्मा अपने नामकरण को लेकर अलग बेचैन है ! उधर ज़मीन के ऊपर उनके घर वापसी की प्रक्रिया चालू है ! ज़मीन के ऊपर बैठा भक्त उनके नाम पर रसीद छपवा कर चंदा और ईटा मंगवाने में लगा है !
'बाबा' पाप प्रूफ होते हैं ! वो पाप करें तो - 'कोई कारण होगा !आम आदमी से गुनाह हो जाए तो पाप मुक्त होने की प्रक्रिया इतनी खर्चीली है कि अगले जन्म में कौआ होने का ऑप्शन भी सस्ता लगता है ! वैसे तो बाबा सांसारिक नहीं होते, किन्तु उनका धंधा सांसारिक प्राणियों के कारण ही फलता फ़ूलता है! बाबा सियासत से दूर होते हैं किन्तु सियासत उनका पिंड नहीं छोड़ती ! और अब तो बाबाओं के प्रयास से अमृत काल की वापसी हो गई है! ऐसा इसलिए संभव हो पाया है, क्योंकि सियासी घडियाल जनता के बीच कम और इनके सानिध्य में ज्यादा रहते हैं !
कायर शख्स खुद्दार होने का जोखिम नहीं उठाता ! ऐसे बुद्धिजीवी कामयाब चारण साबित होते हैं ! चारण सिर्फ राजदरबार मे ही नहीं होते, समाज , सियासत औऱ साहित्य में भी भरे पड़े हैं !
मानसून देखकर कुछ चारण पत्रकार बन बैठे तो काफ़ी पत्रकार चारण बन गए,- तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो ! तुम्हीं हो अब्बा- चचा तुम्हीं हो-!! दूरदर्शन के अर्जुन को सिर्फ़ सरकार का सतयुग दिखाई देता है ! जब रेगिस्तान में नागफनी के फूल देख कर सरसों की अनुभूति हो तो समझ लें कि आत्मा रीढ़ विहीन हो चुकी है और शारीर बेताल को ढोने के लिए बिलकुल उपयुक्त है ! बाबाओं को भी ऐसे ही वाहन पसंद हैं!
बाबा नाम का ये परजीवी हर सम्प्रदाय में पाया जाता है, कहीं कम कहीं ज़्यादा ! ये धर्म के पेड़ से लिपटे हुए वो मनीप्लांट हैँ जो केवल खून पीकर ऊपर चढ़ते हैँ ! कालांतर में भक्त लोग बाबा को ही धर्म समझ लेते हैँ !
धर्म लहू-लुहान है और मनी प्लांट हरा भरा ! नागफनी के फूल देख कर सरसों की अनुभूति में भावविभोर होकर एक सरकारी चारण गा रहा है,-'
प्रिय! अमृत काल महोत्सव आया !
सरसों में मकरंद समाया !
पान खाय आशिक बौराया !
कविता में पैबंद लगाया !
अमृत जग को रास न आया !
डार्लिंग ! आन मिलों 'केएफसी' में !!
( किन्तु "डार्लिंग" नागफनी को सरसों मानने का रिस्क नहीं ले रही है !)